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Saturday, March 30, 2019

Holy Qur'an with Creative Visualisation by Dr. Anwer Jamal

अलफ़ातिहा: एक मौज्ज़ा और एक अद्भुत चमत्कार
अलफ़ातिहा पवित्र क़ुरआन की सबसे पहली सूरह है।  आप यूट्यूब पर इस पवित्र सूरह के बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी हासिल कर सकते हैं। बहुत से आलिमों ने अपने वीडियोज़ में इस सूरह के बारे में बहुत अच्छी शास्त्रीय जानकारी दी है। इंटरनेट पर आपको इसके बारे में बहुत अच्छी बुक्स भी मिलेंगी। इतना सब लिखने के बाद भी सूरह फातिहा की करिश्माई ताक़त के बारे में बताने के लिए बहुत कुछ बाक़ी है।
अल फ़ातिहा एक दुआ है और यह एक बहुत असरदार दवा भी है। दुआ दिल की पुकार है। दिल का यक़ीन जितना मज़बूत होगा, दुआ उतनी ही असरदार होगी। जब दिल बीमार होता है तो दुआ भी बेअसर होती है। दिल की बीमारी दूर करने की दवा यह पवित्र सूरह अलफ़ातिहा खुद है। दिल की बीमारी है, यक़ीन का बिगड़ जाना। दिल की बीमारी है, भलाई और बुराई की तमीज़ खो देना। दिल की बीमारी है, अपने आपको, अपनी मंजिल को भूल जाना और सीधे रास्ते से हट जाना। अपने आपको रूपयों के पैमाने से तौलना और ख़ुद को दूसरों से घटिया और ग़रीब मानना दिल की बीमारी है। यह नाशुक्री है। अपने रब के नाशुक्री करना दिल की सबसे बड़ी बीमारी है। 
इंसान का सबसे बड़ा संकट यह है कि उसका नज़रिया बिगड़ा हुआ है। जब इंसान का नज़रिया बिगड़ जाता है तो हर काम में नाकामी और मायूसी उसकी तक़दीर बन जाती है। वह मुसीबत में घिर जाता है। वह अपनी मुसीबत दूर होने के लिए ऊपर वाले से दुआ करता है तो उसकी दुआ भी बेअसर हो जाती है। यह संकट को और ज़्यादा विकट करने वाली बात है। 
हर इंसान संकट में अपने पैदा करने वाले को पुकारता है लेकिन हर इंसान को वक़्त पर ऊपर वाले की मदद नसीब नहीं होती। कभी एक इंसान को बिना मांगे मन की मुराद मिल जाती है और कभी उसी इंसान को बहुत कोशिशें करने के बाद ज़रूरत की चीज़ तक नहीं मिल पाती। लोगों की जिंदगी गुज़र जाती है लेकिन वे यह बात कभी समझ नहीं पाते कि ऐसा क्यों होता है?
हर इंसान अपनी आत्मा में जानता है कि उसका एक पैदा करने वाला है; जिसने उसे ज़िंदगी दी है, जो उसे सांस देता है और वही इंसान को मौत देता है। सबका रब वही एक है। हर इंसान अपनी आत्मा में अपने रब को पहचानता है। हर इंसान अपने रब से हर समय जुड़ा हुआ है। हर इंसान चाहता है कि जब वह अपने रब से कुछ मांगे तो उसका रब उसे उसकी मांगी हुई चीज़ ज़रूर दे।
आज हम आपको रब से मांगने और पाने के बारे में ही इस लेख में बताएंगे। आज हम आपको आपकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा राज़ बताएंगे। जिसे जानने के बाद आप की ज़िंदगी पूरी तरह बदल जाएगी। आज हम आपको  आपके दिल की ताक़त के बारे में एजुकेट करेंगे। हम आपको दिल की बीमारी और उसकी सेहत के बारे में बताएंगे। आज हम आपको बताएंगे कि आपकी अक़्ल और आपका दिल कैसे काम करता है?
कुदरत का क़ानून कैसे काम करता है?
आपकी ज़िंदगी में जो कुछ हुआ, वह क्यों हुआ?
जो हो रहा है वह क्यों हो रहा है?
और जो होगा वह क्यों होगा?
आज हम आपको आपके दिल की क्रिएटिव पावर का इंट्रोडक्शन देंगे। इस पवित्र सूरह की उम्दा तफ़्सीरें आप सुन चुके हैं। आज हम आपको इस पवित्र सूरह से दिल और नज़रिए का इलाज करना और अपने मक़सद में कामयाबी पाना सिखाएंगे, जोकि आपकी मुराद है। आज हम आपको इस महान सूरह में पोशीदा वैलनेस साइंस के उसूल सिखाएंगे।
आप सबने यह बात सुनी होगी कि दुआ आपके यक़ीन से कुबूल होती है लेकिन आपने यह बात नहीं सुनी होगी कि आपकी जो दुआएँ कुबूल नहीं होतीं  उनमें भी आपका यक़ीन ही रुकावट बनता है। आपकी दुआ आपके यक़ीन से ही क़ुबूल होती है और आपकी जो कुबूल होने से रूकती है, उसके पीछे भी आपका ही यक़ीन होता है। जिसे वेलनेस साइंस में लिमिटिंग बिलीफ़ (Limiting Belief) कहते हैं। एक यक़ीन आपकी दुआ को सपोर्ट करता है और दूसरा यक़ीन आपकी दुआ को रेज़िस्ट करता है। जो यक़ीन आपकी दुआ को सपोर्ट करता है वह अच्छा ययक़ी है और जो आपकी दुआ में रेज़िस्टेंस बनता है, वह आपके लिए घातक यक़ीन है। आपके अंदर रेजिस्टेंस जितना कम होगा, आपकी दुआ उतनी ज़्यादा और जल्दी क़ुबूल होगी।
इख़्लास (शुद्ध भाव से पूर्ण समर्पण करने) से रेजिस्टेंस कम होता है।
इसलिए आपको यह जानना ज़रूरी है कि
यक़ीन क्या है?
यह कैसे बनता है?
किस तरह का यक़ीन दुआ को सपोर्ट करता है?
और किस तरह का यक़ीन रेजिस्टेंस बनता है?
इख़्लास क्या है?
इख़्लास से रेज़िस्टेंस कैसे कम होता है।

दुआ के रुक्न क्या हैं?
दुआ के दो रुक्न (स्तम्भ) हैं। जो न हों तो दुआ सिरे से दुआ ही नहीं होती। लोगों की दुआ बेअसर होने की वजह यही है कि अक्सर लोगों को दुआ के रुक्न के बारे में जानकारी नहीं है। नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुआओं की एक बहुत प्रामाणिक किताब 'हिस्ने हसीन' में आदाबे दुआ के अध्याय में बताया गया है कि दुआ के दो रुक्न हैं:
1. यक़ीन   2. इख़्लास
इसके अलावा दुआ के कुछ और आदाब की बहुत उम्दा जानकारी भी इस अध्याय में दी गई है।
पवित्र क़ुरआन में दिल, यक़ीन और इख़्लास, ये शब्द बहुत व्यापक अर्थों में आए हैं। उन सब का बयान इस छोटी सी किताब में मुमकिन नहीं है और यहाँ उसकी ज़रूरत भी नहीं है। हम इस छोटी सी किताब में आपको सिर्फ़ कुछ बहुत ज़रूरी जानकारी देना चाहते हैं, जिससे आप दिल, यक़ीन और दुआ के आपसी रिश्ते को समझ सकें। आपकी आसानी के लिए हम दिल की जगह सब्कॉन्शियस माइंड शब्द इस्तेमाल करेंगे। यह शब्द वेेेेलनेस साइंस का शब्द है। इससे आप इंटरनेट पर सब्कॉन्शियस माइंड की पावर के बारे में पढ़कर और ज़्यादा जानकारी हासिल कर सकेंगे और यह राज़ समझ सकेंगे कि आपका सब्कॉन्शियस माइंड बहुत ज़बर्दस्त क्रिएटिव पावर रखता है। आप सचमुच बहुत ज़्यादा ख़ुशनसीब हैं कि आपको यह जानकारी मिल रही है। यह जानकारी आपको अपनी ज़िंदगी में मनचाहे बदलाव करने की आज़ादी देती है।
आपका माइंड आपका अनमोल ख़ज़ाना है। यह वैसा ही एक ख़ज़ाना है, जैसा आपने अली बाबा की कहानी में एक गुफ़ा में छिपे खज़ाने के बारे में पढ़ा है। यह ख़ज़ाना आपकी चेतना, आपकी 'मैं' है। इस ख़ज़ाने की कोई हद (Limit) नहीं है क्योंकि आपकी चेतना में कोई सीमा नहीं है। आप अनंत विकास कर सकते हैं।

आपका आपका यक़ीन कैसे बनता है?
आपके माइंड के दो पहलू हैं। एक कॉन्शियस और दूसरा सबकॉन्शियसस। कॉन्शियस माइंड और सब्कॉन्शियस माइंड, एक ही माइंड के दो पहलू हैं। आप अपने कॉन्शियस माइंड से विचार और तर्क करते हैं और आख़िर में एक फ़ैसले तक पहुंचते हैं। आपके विचार बार-बार दोहराने की वजह से आपके सबकॉन्शियस माइंड में उतर जाते हैं। आप उन्हें सच मानने लगते हैं। वे आपके सबकॉन्शियस माइंड का पैटर्न बन जाते हैं। बार-बार दोहराने की वजह से वे विचार आपका यक़ीन (Belief) बन जाते हैं, जिसे हिंदी में विश्वास कहते हैं। आपके लिए यह जान लेना ज़रूरी है कि आपका सबकॉन्शियस माइंड उन विश्वासों के अनुरूप ही आपकी ज़िंदगी में हालात बनाता है।

आपका माइंड कैसे काम करता है?
आपका सबकॉन्शियस माइंड आपकी भावनाओं का मक़ाम है। यह क्रिएटिव है। अगर आप अच्छा सोचते हैं तो आपको अच्छे नतीजे मिलते हैं और अगर आप बुरा सोचते हैं तो आपको बुरे नतीजे मिलते हैं। आप की आदतन सोच जैसी होती है वैसा ही आपका जीवन होता है। आपका माइंड इसी तरह काम करता है।
यह बात सबसे ज़्यादा ध्यान देने लायक़ है कि जब सबकॉन्शियस माइंड किसी विचार को स्वीकार कर लेता है तो वह हर पल उस विचार पर काम करता है। सब्कॉन्शियस माइंड अच्छे और बुरे दोनों तरह के विचारों पर समान रूप से काम करता है। ज़्यादातर लोग इस हकीकत से अनजान हैं। इसीलिए वे सबकॉन्शियस माइंड का नेगेटिव यूज़ करते हैं और बहुत नुक़्सान उठाते हैं। जब सबकॉन्शियस माइंड का नेगेटिव यूज़ किया जाता है तो यह नाकामी, घुटन, डर, ग़म, गुस्सा, शक और मायूसी पैदा करता है। जो लोग सब्कॉन्शियस माइंड के काम करने का तरीक़ा जानते हैं। वे इसका पॉज़िटिव यूज़ करते हैं और उन्हें कामयाबी, खुशी और समृद्धि मिलती है।
आपका सब्कॉन्शियस माइंड, कॉन्शियस माइंड की तरह दलील और बहस नहीं करता। यह उस उपजाऊ ज़मीन की तरह है, जो ज़रा नम है। यह हर तरह के बीज को स्वीकार कर लेती है। चाहे वह बीज बबूल का हो या आम का।  आपके विचार बीज हैं। नकारात्मक और घातक विचार आपके सबकॉन्शियस माइंड में नकारात्मक रूप से काम करते हैं। वे जल्दी ही या थोड़े समय बाद आपके जीवन में प्रकट होते हैं। वे अपनी प्रकृति के अनुरूप आपके जीवन में नकारात्मक घटनाएं पैदा करते हैं। आपने नफ़रत, डर, ग़म, गुस्से और जलन के विचार बोए थे तो मानो आपने बबूल के बीज बोये थे। आपको बबूल बोकर आम नहीं मिले। आपको बबूल ही मिले। यही प्रकृति का नियम है।

अल्लाह ने कितनी अच्छी मिसाल दी है?
क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ने कैसी मिसाल पेश की? अच्छी उत्तम बात एक अच्छे शुभ वृक्ष के जैसी है, जिसकी जड़ गहरी जमी हुई हो और उसकी शाखाएँ आकाश में पहुँची हुई हों; अपने रब की अनुमति से वह हर समय अपना फल दे रहा हो। अल्लाह तो लोगों के लिए मिसालें पेश करता है, ताकि वे जाग्रत हों। और अशुभ और अशुद्ध बात की मिसाल एक अशुभ वृक्ष के जैसी है, जिसे धरती के ऊपर ही से उखाड़ लिया जाए और उसे कुछ भी स्थिरता प्राप्त न हो। ईमान लानेवालों को अल्लाह सुदृढ़ बात के द्वारा सांसारिक जीवन में भी और परलोक में भी सुदृढ़ता प्रदान करता है और अत्याचारियों को अल्लाह (उनके अत्याचार के कारण) विचलित कर देता है। और अल्लाह जो चाहता है, (अपने क़ानून के अनुसार) करता है।
-पवित्र क़ुरआन 14:24-27

यह बात भी याद रखने लायक़ है कि आपका सबकॉन्शियस माइंड यह साबित करने की कोई कोशिश नहीं करता है कि आपके विचार सही हैं या ग़लत हैं, अच्छे हैं या बुरे हैं। यह तो आपके विचारों और सुझावों की प्रकृति के अनुरूप रेस्पॉन्ड करता है। मिसाल के तौर पर आप किसी झूठ को सच मान लें तो यह उस झूठ  कर रेस्पॉन्ड करेगा। जैसे कि आप किसी रस्सी को साँप मान लें तो यह आपके अंदर वैसा ही डर पैदा करेगा जैसे कि आपके अंदर सचमुच साँप देखकर डर पैदा होता। आपका सबकॉन्शियस माइंड रस्सी को साँप मान लेता है क्योंकि आपके कॉन्शियस माइंड ने उसे रस्सी के बजाय सांप मान लिया था।
हिप्नोटिस्ट लोगों को सुझाव (suggestions) के ज़रिए ऐसे ही रस्सी का सांप दिखाते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि सबकॉन्शियस माइंड कोई चुनाव और तुलना नहीं करता है जोकि तार्किक प्रक्रिया के लिए ज़रूरी है। आपका सबकॉन्शियस माइंड किसी भी सजेशन को, सुझाव को स्वीकार कर लेगा; भले ही वह बिल्कुल झूठा हो। वह सुझाव स्वीकार करने के बाद उस सुझाव की प्रकृति के अनुरूप ही प्रतिक्रिया करेगा।
अगर आप अपने नज़रिए में खुद को ग़रीब मानते हैं। अगर आप बार-बार यह महसूस करते हैं कि
मैं अकेला हूँ।
मैं परेशान हूं।
मैं दुखी हूं।
मैं नाकाम हूँ।
मेरे सामने अब कोई रास्ता बाक़ी नहीं है।
मैं इस मुसीबत से बाहर नहीं निकल सकता।
अब तो मुझे मौत ही मुक्ति देगी।
यह जमाना ही ख़राब है।
...तो आपके जीवन में आपका सबकॉन्शियस माइंड ऐसे हालात बनाएगा कि आपका यह घातक विश्वास पूरा हो और वह आपको उसी हाल में रखेगा, जिस हाल का आप विश्वास करते हैं। आपके बाहरी हालात आपके अंदरूनी नज़रिए का प्रतिबिम्ब मात्र हैं।

अलफ़ातिहा दिल की सबसे बड़ी बीमारी का इलाज कैसे करती है?
'मैं ग़रीब हूँ। मैं अकेला हूँ।' यह एक झूठ है। यह एक बीमार नज़रिया है, जो दिल की सबसे बड़ी बीमारी है। इस बीमारी को नाशुक्री कहा जाता है। इस बीमारी का इलाज यह है कि आप सच क़ुबूल करें। सच यह है कि ईशवर अल्लाह आपके साथ है। आप उन नेमतों को देखें, जो ऊपर वाले ने आपको जिंदगी के रूप में दी है। आपको उसने ज़मीनो आसमान, सूरज चांद सितारे, धूप रौशनी हवा पानी हरियाली सब्ज़ी और अच्छे खाने, मां-बाप रिश्तेदार दोस्त और बीवी बच्चे दिए हैं।
आप यह स्वीकार करें कि 'मेरे रब ने मुझे बेशुमार नेमतें दी हैं। उसी ने सारे जहानों को बनाया है और सारे जहानों की चीज़ों को मेरी भलाई में लगाया है। मैं उसका शुक्र अदा करता हूं। वह बेहद रहमत वाला है और उसकी रहमत मुझ पर सदा बनी रहती है। वही अंजाम के दिन का मालिक है। किसी दूसरे में अपनी कोई ताक़त नहीं है। हरेेेेक उसी के क़ानून का पाबंद हैं। वह मेरे साथ है और मैं उसी की मदद से अपने सब काम आसानी से करता हूं।' जब आप ऐसा कहते हैं तो आप अपने दिल को चंगा (Healed) करते हैं।
सूरह अलफ़ातिहा में आप यही सच स्वीकार करते हैं। पहले आप अपने नज़रिए (Self Concept) में अकेले औरऔर कमज़ोर थे। आपकी ज़िन्दगी में आपके यक़ीन के मुताबिक़ वैसे ही हालात ख़ुद ब ख़ुद ज़ाहिर हो रहे थे, जो आपके यक़ीन की तस्दीक़ (verification) कर रहे थे। सूरह फ़ातिहा पढ़ते हुए आप यक़ीन करते हैं कि सारे जहानों (Worlds) का पैदा करने वाला और आप पर सदा रहम करने वाला आपके साथ है, जो आपकी मदद करता है। इससे आपका अपने बारे में अपना नज़रिया (Self Concept) बदलता है।
जब आप ऐसा करते हैं और रब से अपने काम में उसकी मदद माँगते हैं तो आपको उसकी मदद मिलती है। इस वक़्त भी आप उसी की मदद से साँस ले रहे हैं, जिससे आपका शरीर ज़िन्दा है।
शुक्रगुजार बनकर विश्वास के साथ रब से मदद माँगिए, आपको उसकी मदद ज़रूर मिलेगी।

जैसा आप दूसरों के साथ करेंगे, वैसा आपके साथ होगा
आप ज़मीन वालों पर रहम करें, आसमान वाला आप पर रहम करेगा।
आप अपने ऊपर निर्भर लोगों की, बेघर अनाथों और ग़रीबों की सुनें, ऊपर वाला आपकी सुनेगा।
जो आप दूसरों के साथ करते हैं, ऊपर वाला वैसा ही आपके साथ करता है।
इसलिए आप दूसरों से अपने लिए जैसा व्यवहार पसंद करते हैं, वैसा व्यवहार आप ख़ुद दूसरों के साथ करें।
आप अपनी ख़ूबियों को ज़ाहिर करें। आप दूसरों को। माफ़ करें।

सुख-शांति और समृद्धि पाने का तरीक़ा क्या है?
आप मानसिक रूप से जिस बात को भी सच मानेंगे, आपका सबकॉन्शियस माइंड उसे स्वीकार कर लेगा और फिर वह उस विश्वास के अनुरूप आपके जीवन में हालात साकार कर देगा। बस आपको अपने सब्कॉन्शियस माइंड से कामयाबी, ख़ुशी, सुख-शांति और समृद्धि के विचार को स्वीकार करवाना है। इसके बाद आपका सब्कॉन्शियस माइंड रब के क़ानून के तहत अपनी क्रिएटिव पावर से काम लेकर आपकी मनचाही कामयाबी, ख़ुशी, सुख-शांति और समृद्धि पैदा कर देगा। आपका सबकॉन्शियस माइंड उस पर छोड़ी गई विचारों की इच्छा को आपकी जिंदगी में साकार करने के लिए पूरी लगन से काम करता है।
आपके माइंड का क़ानून यह है कि आपके सब्कॉन्शियस माइंड की प्रतिक्रिया आपके कॉन्शियस माइंड में रखे गए विचार की प्रकृति से तय होती है।
आपका सबकॉन्शियस माइंड जज़्बाती और चुनाव की शक्ति से ख़ाली है। आपका कॉन्शियस माइंड जिस बात को सच मानता है, यह भी उसे सच मान लेता है। इसलिए यह बहुत अहम है कि आप ऐसे विचार और वाक्य चुनें जो आपको कामयाबी, सुख-शांति और ख़ुशी दें। जो आपको सेहत दें और आपकी आत्मा को आनंद से भर दें।

सूरह अलफ़ातिहा बिगड़े हुए काम कैसे बनाती है?
सूरह अलफ़ातिहा के सभी विचार और वाक्य ऐसे ही हैं। उन्हें नमाज़ में बार बार दोहराने से वे सबकॉन्शियस माइंड का पैटर्न बन जाते हैं। फिर वे दूसरे विचारों से सिन्क्रोनाइज़्ड हो जाते हैं और जीवन में कामयाबी, सुख-शांति, समृद्धि, सेहत और ख़ुशी के हालात ख़ुद बनते चले जाते हैं।
माइंड पर रिसर्च करने वाले स्कॉलर्स ने बताया है कि जब विचार आपके सबकॉन्शियस माइंड तक पहुंच जाते हैं तो दिमाग की सेल्स में उनकी छाप बन जाती है। जैसे ही आपका सबकॉन्शियस माइंड किसी विचार को स्वीकार कर लेता है, वह उसे फ़ौरन साकार करने में जुट जाता है। विचारों के तालमेल के साथ काम करते हुए यह अपने मक़सद को साकार करने के लिए उस सारी जानकारी का इस्तेमाल करता है जो आपने ज़िंदगी भर जमा की है। यह आपके अंदर की अथाह ताक़त, एनर्जी और अक़्ल का इस्तेमाल करता है। नतीजे पाने के लिए यह क़ुदरत के सभी क़ानूनों का इस्तेमाल करता है। कई बार यह आपकी प्रॉब्लम का हल फ़ौरन तलाश कर लेता है जबकि कई बार कई दिन, हफ़्ते या इससे भी ज्यादा वक़्त लग जाता है। इसके तरीक़े बहुत अनोखे हैं।
यह बात आप हमेशा याद रखें कि कॉन्शियस और सब्कॉन्शियस, दो माइंड नहीं हैं। वे एक ही माइंड में होने वाली प्रोसेस के दो फ़ील्ड हैं। आपका कॉन्शियस माइंड दलील और तर्क करता है। यह काले और सफ़ेद में फर्क़ करता है। यह नफ़े और नुक़सान को तौलता है। यह विकल्प चुनता है। मिसाल के तौर पर आप अपना जीवन साथी चुनते हैं। आप अपना घर, अपना लिबास या पढ़ने के लिए कोई किताब चुनते हैं, तब आप ये सारे फ़ैसले कॉन्शियस माइंड से करते हैं। दूसरी तरफ़ आपके कॉन्शियस सेलेक्शन के बिना ही आपका दिल अपने आप काम करता है और आपकी बॉडी में साँस, ब्लड सर्कुलेशन और हाज़्मे की ज़रूरी प्रक्रियाएं चलती रहती हैं। ये सारे काम आपका सबकॉन्शियस माइंड करता है। इन प्रक्रियाओं के लिए आपके कॉन्शियस कंट्रोल की ज़रूरत नहीं होती है।
कॉन्शियस माइंड को ऑब्जेक्टिव माइंड भी कहा जाता है क्योंकि इसका ताल्लुक़ बाहरी चीज़ों से होता है। यह शरीर की पाँच ज्ञान इंद्रियों के ज़रिए सूचनाएं हासिल करता है। आपका ऑब्जेक्टिव माइंड आपके माहौल से संपर्क का गाइड और डायरेक्टर है। आप का ऑब्जेक्टिव माइंड ऑब्ज़र्वेशन, एक्सपेरिमेंट्स और एजुकेशन से सीखता है। मान लीजिए आप ताजमहल देखते हैं। आप उसके खूबसूरत पत्थरों की तराश को देखते हैं, आप उसकी बुनियादों को, उसकी दीवारों को और उसके मीनारों की ऊँचाई को देखते हैं। आप इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि यह आर्किटेक्चर का एक अनोखा नमूना है। यह नतीजा निका निकालना ऑब्जेक्टिव माइंड का काम है। जैसा कि हम पहले बता चुके हैं कि तर्क करना और तौलना इसका सबसे बड़ा काम है।
आपके सबकॉन्शियस माइंड को सब्जेक्टिव माइंड भी कहा जाता है। यह अपने माहौल के प्रति जागरूक होता है लेकिन शरीर की ज्ञान इंद्रियों के माध्यम से नहीं। आपका सबकॉन्शियस माइंड अंतर्ज्ञान से सब कुछ भाँप लेता है। इसमें जज़्बात और यादें क़ायम रहती हैं। यह अपनी पूरी ताक़त से सबसे ज़्यादा अच्छा काम तब करता है, जब आपके शरीर  की पाँचों ज्ञानेंद्रियां काम न कर रही हों। जब आप ऊँघ रहे होते हैं या उनींदी हालत में होते हैं, तब यह सब्जेक्टिव माइंड सबसे अच्छी तरह काम करता है। जब आप शांत होते हैं, तब यह आपके हित में काम करता है। जब आप खुश होते हैं और अच्छा महसूस करते हैं, तब यह आपकी सपोर्ट में काम करता है।
आपकी ज़िंदगी में हमेशा ऐसी कोई हालत रहती है, जिस पर आप दुख महसूस कर सकते हैं और ठीक उसी पल में आपकी ज़िंदगी में वे नेमतें भी मौजूद होती हैं, जिन्हें देखकर आप खुश हो सकते हैं।
1.'मैं लोगों से बहुत दुखी हूं' और
2.'मैं अपने रब से ख़ुश हूँ',
आप इन दो विचारों में से इसी पल में किसी एक विचार को चुनने के लिए आज़ाद हैं। आप इसी पल में दुख महसूस कर सकते हैं और आप इसी पल में ख़ुशी को भी महसूस कर सकते हैं। आप दुखी होना चाहते हैं या आप ख़ुश होना चाहते हैं; यह पूरी तरह आपका अपना चुनाव है। आपका ख़ुश होना या दुखी होना बाहर के हालात पर निर्भर नहीं है। यह पूरी तरह आपके चुनाव पर निर्भर है। इसी पल में, जिसमें आपकी सांस चल रही है, खुश होना या दुखी होना आपके मेन्टल एटीट्यूड पर निर्भर है।

आपके साथ क्या ट्रेज्डी हुई है?
आपके साथ ट्रेज्डी यह हुई है कि बचपन में आपके माँ-बाप ने और आसपास के लोगों ने आपके सबकॉन्शियस माइंड में  डर, ग़म, ग़ुस्से, नफ़रत, जलन और शक के विचार बबूल और कैक्टस के बीजों की तरह बो दिए हैं। अब वे बबूल और कैक्टस आपके हालात बन कर आपके जीवन में प्रकट हो रहे हैं और आप दुख भोग रहे हैं। आपके साथ जो भी हुआ है, वह सिर्फ़ इसलिए हुआ है क्योंकि उन घटनाओं का कारण कुछ विश्वासों के रूप में आपके सबकॉन्शियस माइंड में जमााए गए जो कि एक पैटर्न के रूप में अब भी मौजूद और सक्रिय हैं।
आपके माइंड को दुख पर ध्यान जमाने के लिए ट्रेंड किया गया है। इसलिए आप हर समय उन बातों पर ध्यान जमाए रखते हैं, जिनसे आपको दुख महसूस होता है। आप उन बेशुमार नेमतों को भूल जाते हैं, जिन्हें देखकर आप खुश हो सकते हैं, जिन पर आप रब का शुक्र अदा कर सकते हैं। ज़्यादातर लोग जब अपने रब की नेमतों और निशानियों पर से गुज़रते हैं तो वे ऐसे गुज़रते हैं, जैसे वे उन्हें दिखाई न दे रही हों। यह अंधापन शरीर की आंख का अंधापन नहीं होता बल्कि यह उस दिल का अंधापन होता है जो सीने में है। 
अगर आप भी अपनी जिंदगी में ज़्यादा वक़्त दुख महसूस करते हैं तो इसका मतलब यही है कि आप उन बातों पर ध्यान जमाए रखते हैं जो आपको दुख देती हैं। इससे यह पता चलता है कि आपका मेंटल एटीट्यूड नेगेटिव है। इसमें आपका ज़्यादा दोष नहीं है। आपके मां बाप ने और आपके माहौल ने आपके माइंड में नकारात्मक सोच के साँचे बना दिए हैं। उन्होंने आपको माफ़ी, मुहब्बत, मदद, ख़ुशी, कामयाबी और समृद्धि के विचार देने के बजाय आपको ग़रीबी, नफ़रत, डर, ग़म, गुस्से, शक और दुख के नकारात्मक विचार दिए हैं। उन्होंने आपको अतीत की कड़वी दास्तानें सुनाई हैं। उन्होंने आपको भविष्य का डर दिखाया है। आपका माइंड अतीत और भविष्य में डोलता रहता है और वह वर्तमान से ग़ायब है, जहां कि आप मौजूद हैं।

समाधान
आपको कामयाबी, सुख-शांति और समृद्धि के लिए अपनी नकारात्मक सोच के इन साँचों को जल्दी से जल्दी बदलना होगा।

यूनिवर्सल एनर्जी और दिव्य चेतना का संबंध क्या है?
जिस यूनिवर्स में आप रहते हैं, उसकी हर चीज़ ऊर्जा से बनी है। चारों तरफ़ फैला हुआ यह विशाल यूनिवर्स ऊर्जा की लहरों का एक समुद्र है। आप इस समुद्र की एक बूंद है क्योंकि आपका शरीर भी उर्जा का एक रुप है। आपका विचार भी उर्जा का वैसे ही एक रुप है जैसे कि हर चीज़ ऊर्जा का एक रूप है। मानसिक विचार हो या बाहर की चीज़, हर एक ऊर्जा का ही रूप है। यह ऊर्जा अपना रूप बदलती रहती है। विचार प्राकृतिक प्रक्रिया से गुज़रकर वस्तु बनते रहते हैं। यह सारी ऊर्जा एक ही दिव्य चेतना (ख़ुदी Consciousness) में मौजूद है। जिसे 'अव्वल नूर' और 'नूरे अहमदी' कहते हैं। आपकी चेतना उसी दिव्य चेतना का अंश है।
जब आप किसी विचार या किसी चीज़ पर ध्यान देते हैं तो आप उसे अपनी ऊर्जा देते हैं। आप जिस चीज़ पर ध्यान देते हैं, वह आपको ज़्यादा महसूस होती है। जिस चीज़ को आप ज़्यादा महसूस करते हैं, वह आपकी ज़िंदगी में ज़्यादा बढ़ती है और ज़्यादा देर तक क़ायम रहती है। जब आप अपनी आत्मा में दुख महसूस करते हैं तो आप अपना दुख बढ़ाते हैं।  जब आप कहते हैं कि 'मैं दुखी हूँ' तो आप अपने दुख को मज़बूती से पकड़ लेते हैं। आप उसे विदा होने से रोक देते हैं।  ऐसा करके आप अपनी जिंदगी में दुख के नए नए हालात को आने की दावत भी देते हैं और आप इससे ग़ाफ़िल होते हैं।
जो लोग दीन की दावत में लगे हुए हैं, उन्हें यह राज़ समझ लेना चाहिए कि वे अपने यक़ीन और एहसास से अपनी ज़िन्दगी में अच्छे बुरे हालात और अच्छे बुरे लोगों को आने की दावत देते हैं। आप अच्छा यक़ीन करके और अच्छा एहसास रखकर अपनी ज़िन्दगी में अच्छे हालात और अच्छे लोगों को बुलावा दे सकते हैं। यह आत्मिक बुलावा एक ख़ामोश बुलावा है। दावत देने वाले ज़्यादातर बहन भाई इस तरीक़े को नहीं जानते। वे भविष्य की भयानक कल्पना से डरकर और डराकर बुरे हालात को दावत दे रहे हैं। वे अपनी कल्पना में विपरीत हालात में भी समस्या के समाधान को देखकर लोगों को अच्छी ख़बर दे सकते हैं। मैंने अपने उस्ताद महान रहस्यदर्शी आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह को विपरीत हालात में भी अच्छी कल्पना करते हुए और अच्छी ख़बरें देते हुए देखा है।

जब आप अपनी आत्मा में खुश होते हैं और अच्छा महसूस करते हैं, जब आप रब की दी हुई नेमतों पर ध्यान देते हैं और उन पर खुशी के साथ उसका शुक्र करते हैं तो आप अपनी जिंदगी में खुशी को बढ़ाते हैं और ज़्यादा नेमतों को आने की दावत देते हैं। अब आप अच्छी तरह जान सकते हैं कि सूरह अलफ़ातिहा आपकी ख़ुशी को बढ़ाती है और आपकी ज़िंदगी में ज़्यादा नेमतें खींचकर लाती रहती है।

हरेक समस्या से मुक्ति पाने का साइंटिफ़िक तरीक़ा क्या है?
आपकी जिंदगी में जो नेमते हैं, आप उन पर शुक्र करें और जो समस्याएं हैं, उन समस्याओं के हल पर विचार करें। आप अपनी समस्याओं पर नहीं बल्कि उनके समाधान पर ध्यान जमाएं। अपनी समस्याओं पर ध्यान जमा कर आप कहीं पहुंचने वाले नहीं हैं। हर समस्या का कोई हल ज़रूर  होता है।
जब आप समस्या पर विचार करते हैं तो उस विचार से एक चित्र आपके माइंड में बनता है जो एक नकारात्मक चित्र होता है। ठीक ऐसे ही जब आप समस्या के हल पर विचार करते हैं तो वह विचार आपको अपने माइंड में एक चित्र के रूप में दिखता है। आपको यह जानना ज़रूरी है कि आपका माइंड बुरे और अच्छे दोनों तरह के चित्र बनाता रहता है। आपको ख़ुद ब ख़ुद बनने वाले इन चित्रों पर नजर रखनी है और बुरे चित्रों को हटाकर अच्छे चित्र पर ध्यान जमाना है।
आप अपने मन की अथाह शक्ति से काम लेना चाहते हैं तो आप अपनी समस्या के हल को एक चित्र के रूप में अपने दिल में हाज़िर कर लें। अगर आप उसे अपनी शक्ति और अपने साधनों से हासिल कर सकते हैं तो आप उसे करें और अगर आप उसे नहीं कर सकते, तब भी मायूसी की कोई बात नहीं है। आप उसके हल के चित्र (Image) को अपने दिल में जमाए रखें। जब आप उसे अपनी कल्पना में बार-बार देखते रहेंगे तो वह चित्र आपके दिल में जम जाएगा।
यह काम रात को सोते वक़्त बिल्कुल आख़िर में करें। उस वक़्त आप उनींदी हालत में होते हैं और आपके शरीर की पांचों ज्ञानेंद्रियां लगभग निष्क्रिय (inactive) होती हैं। आप जो पाना चाहते हैं, उस चीज़ को या उस हालत को अपने दिल में देखें और और सूरह अलफ़ातिहा पढ़ते रहें। आप इसी हालत में सो जाएं। रात के वक़्त बिल्कुल आख़िर में आप जो विचार अपने सबकॉन्शियस माइंड को देते हैं, वह पूरी रात उस पर काम करता है। वह आपकी ज़िंदगी में ऐसे मौक़े, लोग और साधन खींच कर लाता है, जो आपको उस चीज़ को या उस हालत को पाने में मदद कर सकते हैं।
आप अपनी कल्पना में पांचों सेंस; देखना, सुनना, छूना, चखना और सूंघना शामिल कर लें ताकि वह आपके सबकॉन्शियस माइंड में एक रीयल सीन फ़ील हो। आप उस सीन में लोगों को उस चीज़ या हालत के मिलने पर मुबारकबाद देते हुए देख और सुन सकते हैं। वे आपसे हाथ मिला रहे हैं और आप उनके हाथ का दबाव अपने हाथ पर महसूस कर सकते हैं। उस वक़्त आप कुछ मिठाई खा रहे हैं तो उसका ज़ायक़ा और उस माहौल की ख़ुशबू महसूस कर सकते हैं। सीन बिल्कुल नेचुरल हो, उसमें फंतासी (Fantasy) न हो।
रोज़ रोज़ यह करने से पूरा सीन आपके सबकॉन्शियस माइंड पर क्लियर हो जाएगा। यह सीन आपको बिल्कुल रीयल फ़ील होगा। जब यह सीन क्लियर हो जाए और रियल फ़ील होने लगे तो आप समझ लेेेें कि यह अब आपके सबकॉन्शियस माइंड का पैटर्न बन चुका है।
रात में जब घर में सब सो रहे हों, तब आप जागकर बिस्तर पर लेटे लेटे ही यह काम कर सकते हैं। रात का यह वक़्त तहज्जुद का वक़्त कहलाता है। इस वक़्त आपका सबकॉन्शियस माइंड नींद ले चुकने की वजह से शांत होता है। इस वक़्त वह पूरी पावर से आपके हक़ में काम कर सकता है। यह काम आप 5-10 मिनट करें। आप इससे ज़्यादा देर तक भी यह काम कर सकते हैं लेकिन यह ध्यान रखना है कि ध्मान भटकने और बिखरने न पाए। जब आपका ध्यान अपने मन की मुराद से, अपने मक़सद से हटने लगे, तब आप फिर से अपनी पसंद की चीज़ या हालत देखने लगें।
सुबह को बिल्कुल जागते ही आपके शरीर की पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ एकदम काम करने के लायक़ नहीं हो जातीं। उस वक़्त भी 5-10 मिनट यह काम ज़रूर करें।
किसी भी चीज़ या हालत की कल्पना करने से पहले यह तय लें कि वह चीज़ आपके कल्याण और विकास में मददगार हो, आपको उसकी सचमुच ज़रूरत हो और आपको यक़ीन हो कि यह चीज़ मिलना या यह हालत होना पॉसिबल है। जिस चीज़ या हालत को पाना आप इम्पॉसिबल मानते हों, उसकी कल्पना न करें। उस चीज़ या हालत के पाने को इंपॉसिबल मानना आपके सबकॉन्शियस माइंड का एक पैटर्न है। यह पैटर्न ही आपके लिए एक रेज़िस्टेंस है। आपको यह चीज़ या हालत सिर्फ़ तभी मिल सकती है, जब आप अपने सबकॉन्शियस माइंड से यह रेज़िस्टेंस दूर कर लें।
इख़्लास क्या है?
हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि इख़्लास से रेजिस्टेंस दूर होता है। इख़्लास यह है कि आप अपने पैदा करने वाले की अनंत शक्ति पर यक़ीन करें कि वह हर चीज़ पर क़ुदरत (सामर्थ्य) रखता है। वह चाहे तो अपनी अनंत शक्ति से आपके लिए यह काम कर सकता है। आप अपने आपको पूरी तरह उसी पर निर्भर समझें और अपना काम सिर्फ़ उसी के हुक्म से होने का ऐसे यकीन करें जैसे समुद्र में डूबती हुई नौका वाले करते हैं।
'वही है जो तुम्हें थल और जल में चलाता है, यहाँ तक कि जब तुम नौका में होते हो और वह लोगों को लिए हुए अच्छी अनुकूल वायु के सहारे चलती है और वे उससे ख़ुश होते हैं कि अचानक उनपर प्रचंड वायु का झोंका आता है, हर तरफ़ से लहरें उनपर चली आती हैं और वे समझ लेते हैं कि बस अब वे घिर गए, उस समय वे अल्लाह ही को, निरी उसी पर आस्था रखकर पुकारने लगते हैं, "अगर तूने हमें इससे बचा लिया तो हम ज़रूर शुक्र करेंगे।"
-पवित्र क़ुरआन 10:22

जो लोग समुद्री सफ़र करते रहते हैं। वे इस हालत को जानते हैं कि एक डूबने वाले आदमी का ध्यान हरेक शक्ति और युक्ति से कैसे हट जाता है। वह पूरे समर्पण भाव से और शुद्ध ह्रदय से अपने पैदा करने को कैसे पुकारता है?
अगर आपने समुद्री सफ़र नहीं किया तो आप आँखें बन्द करके कल्पना कर सकते हैं कि आप एक नौका में हैं और हर तरफ़ दूर तक सिर्फ़ पानी ही पानी है। हवा बिल्कुल ठीक है और आप अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ रहे हैं। सब लोग एन्ज्वाय कर रहे हैं। आप भी ख़ुश हैं और अपने घर वालों से मिलने के बारे में सोचकर मुस्कुरा रहे हैं। अचानक वह सब होने लगता है, जिसका ज़िक्र ऊपर पवित्र आयत में आया है। नौका का कप्तान सारी तदबीरें करके फ़ेल हो जाता है। कहीं से आपको कोई मदद नहीं मिल सकती। आपकी पुकार आपका कोई मददगार सुन नहीं सकता और कोई सुन भी ले तो वह कुछ कर नहीं सकता। अब ऐसी हालत में हरेक से निराश होकर केवल अपने पैदा करने वाले अजन्मे अविनाशी परमेश्वर से ही मदद की जो आशा होती है, वह इख़्लास होता है।
इख़्लास के लिए आप पवित्र क़ुरआन की उन आयतों को बार-बार पढ़ते और समझते रहें, जिनमें ईश्वर अल्लाह की अनंत शक्ति का बयान है जैसे कि सूरह इख़्लास, आयतुल कुर्सी, सूरह बुरूज और सूरह यासीन की आयतें, जो कि इस किताब के शुरू में लिखी हुई हैं। ये आयतें बार बार पढ़ने और समझने से ये आपके सबकॉन्शियस माइंड का कोर बिलीफ बन जाएंगी, जो रेजिस्टेंस को खत्म कर देंगी और आपको सफलता दिलाएंगी।
यह सब करने से आपके माइंड पर आप का मक़सद (Goal) क्लियर हो जाता है। इससे यह फ़ायदा होता है कि आपका सबकॉन्शियस माइंड आपका गोल पाने के लिए मुनासिब मौक़े, लोग और साधन खींचकर आपकी जिंदगी में ले आता है। यह माइंड की नेचर है कि जब उस पर गोल क्लियर हो जाता है तो वह उसे हासिल करने के लिए हर मुमकिन कोशिश करता है। वह मुनासिब मौक़े, लोग और साधन दिखाता है, जो पहले भी मौजूद थे लेकिन वे गोल क्लियर न होने की वजह से पहले दिख नहीं रहे थे।

पहले एक क्रिस्टल क्लियर इमेज के रूप में आप अपने माइंड पर अपना गोल क्लियर करें फिर बाहर ज़रूरी काम करें
जब माइंड पर गोल क्लियर हो जाता है तो वह उसे पाने के साधन, मौक़े और लोग दिखाने लगता है। जो कुछ आपको बाहर देखना है, आपको पहले उसे अपने दिल में देखना होगा। जिस चीज़ या हालत को आप अपने दिल में देखते हैं और उसे रीयल फ़ील करते हैं और यक़ीन करते हैं कि यह एक सच है जो कि मैं अंदर देख रहा हूँ; आप क़ुदरत का कानून भी जानते हैं कि आप जिस चीज़ के होने का यक़ीन करते हैं, वह आपकी जिंदगी में कुछ वक़्त बाद हो जाती है। आप की सच्चाई अंदर से बाहर आ जाती है। एक वक़्त आता है जब अंदर के पोशीदा राज़ बाहर आ जाते हैं। आपके हालात में जो कुछ आज बाहर है, वह पहले आपके सबकॉन्शियस माइंड में सोच के साँचे के रूप में मौजूद था। आज और अब जबकि आप अपनी सोच के साँचे बदल रहे हैं तो आपकी ज़िंदगी में बदलाव आना लाज़िमी है।
जो नापसंद बात आज आपकी जिंदगी में बाहर है, वह फ़ना होने वाली है क्योंकि एक नई हालत आपकी जिंदगी में आने वाली है। जिसे आज आप अपने दिल में देख रहे हैं और महसूस कर रहे हैं, जिस हालत को आज आप अपने दिल में जी रहे हैं, कल वही आपकी जिंदगी में बाहर सच होने वाली है। आपका यकीन के साथ देखना उस चीज़ को आपकी ज़िंदगी में खींच लाएगा। जो आप देखते हैं, उसे आप जन्म देते हैं। जो लोग यूनिवर्स एंड माइंड के क़ानू़न को जानते हैं, वे सब लोग जानते हैं कि ऐसा ही होता है।
  • आप बीमार हैं तो आप अपनी कल्पना में खुद को पूरी तरह हेल्दी देख और महसूस कर सकते हैं।
  • अगर आप अपने बाहरी हालात में ग़रीब हैं तो आप अपनी कल्पना में खुद को धनी देख सकते हैं और महसूस कर सकते हैं। 
  • आप पढ़ाई में कमज़ोर हैं तो आप अपनी कल्पना में अपने आप को अच्छे नंबरों से पास होते हुए देख सकते हैं।
  • अगर आप बेरोज़गार हैं तो आप ख़ुद को अपनी पसंद का काम करते हुए और रुपया कमाते हुए देख सकते हैं।
  • अगर आप की दुकान पर सेल कम है तो आप अपनी कल्पना में अपनी दुकान पर ग्राहकों की भीड़ देख सकते हैं।
  • अगर आप की फ़सल कम है तो आप अपने खेत में भरपूर फसल देख सकते हैं।
  • अगर आपका पैसा किसी ने उधार लेकर दबा लिया है और वह वापस करने से मना कर रहा है तो आप अपनी कल्पना में उसे वह रक़म खुशी-खुशी वापस करते हुए देख सकते हैं।
  • अगर आप किराए के मकान में रहते हैं और आपको अपने मकान की ज़रूरत है तो आप कल्पना में अपनी पसंद के मकान में रह सकते हैं।
  • अगर आपकी पत्नी आप से लड़ कर अपने मायके जाकर बैठ गई है तो आप उसे अपने घर में अपने पास बैठ कर बातें करते हुए देख सकते हैं। आप अपने दिल में उससे बातें कर सकते हैं और आप देखेंगे कि उसके वापस आने के साधन बनने लगेंगे।
  • अगर आप कुंवारे हैं और शादी करना चाहते हैं तो आप अपनी पसंद के गुणों वाले जीवनसाथी को अपने पति या अपनी पत्नी के रूप में देख सकते हैं।
  • अगर आप शादीशुदा हैं और आपका अपने जीवनसाथी से मनमुटाव रहता है तो आप उसे अपने आपको प्रेम और सम्मान देते हुए और अपनी बात मानते हुए देख सकते हैं।
  • आप को किसी गलत मुकदमे में फंसा दिया गया है और आप दुख भोग रहे हैं। आपको हारने का डर सता रहा है तो आप अपनी कल्पना में जज को अपने समर्थन में फैसला देते हुए देखकर खुशी महसूस कर सकते हैं। आप खुद को मुकदमा जीता हुआ देख सकते हैं।
  • आप अपने हक़ में सुबूत और गवाह पेश नहीं कर पाए और आप निर्दोष होने के बावजूद बेवजह जेल में बंद हैं तो आप खुद को जेल में बंद है देखने और दुखी महसूस करने के बजाय आप खुद को अपने घर पर अपने परिवार के बीच में देखकर खुशी महसूस कर सकते हैं। आप महसूस कर सकते हैं कि मैं आजाद हूं। आप 'मैं' के साथ जो भी हालत देखते और महसूस करते हैं, वह एक वक़्त बाद सच होकर आपके सामने आ जाती है।
  • अगर आपके पीछे कुछ ज़ालिम बदमाश, माफ़िया डॉन पड़े हैं और वे आपको सता रहे हैं। आपकी जान और इज़्ज़त ख़तरे में है। आप कमज़ोर हैं और वे बलवान हैं तो आप अपनी कल्पना में ख़ुद को बलवान और उनको खाए हुए भूसे की तरह कुचला हुआ देख सकते हैं। जिसकी मिसाल ईश्वर अल्लाह ने सूरह अलफ़ील में दी है। आप उनके हाथ टूटे हुए देख सकते हैं। यह मिसाल सूरह लहब में दी गई है। ईश्वर अल्लाह ने अपनी वाणी पवित्र क़ुरआन में मिसालें इसीलिए दी हैं कि बात आपके माइंड पर क्लियर हो जाए। पवित्र क़ुरआन की मिसालें आपको पवित्र शक्ति से लैस करती है। ये गूढ़ ज्ञान (रहस्यमय ज्ञान) में आती हैं। जिनका उपयोग सब लोग नहीं जानते। ऐसा सिर्फ़ तभी करें, जब ऐसा करना दीन में और देश के क़ानून में जायज़ हो।
ये मेरी ज़िन्दगी के सच्चे अनुभव हैं
मैंने ये सब आपको अपने अनुभव बताए हैं। फिर मैंने अपने करीबी दोस्तों को यह ज्ञान दिया। उन सबको अपने कामों में इतनी ज़्यादा कामयाबी मिली कि उन सबके वाक़यात से एक पूरी किताब भर जाएगी। मैंने अपना मकान, बिज़नेस, कार, माल और परीक्षा में अंक ऐसे ही पाए हैं। मैंने इसी तरीक़े से अपना जीवन साथी और फिर बच्चे पाए हैं। इसी तरीक़े से मुझे अच्छे और मददगार दोस्त मिलते रहते हैं। मैं इस वक़्त आपसे अपने निजी एक्सपीरियंस शेयर कर रहा हूं।

एक परिवार का तुरंत कल्याण कैसे हुआ?
देहरादून में एक लड़की सुनंदा की छोटी बहिन काजल अपने प्रेमी के साथ चली गई। काजल किसी से प्रेम करती है, यह बात घर वालों में कोई न जानता था। घर वालों ने उसका रिश्ता पक्का कर दिया था। जल्द ही उसकी शादी होने वाली थी। सुनंदा ने किसी के कहने पर मुझसे सलाह माँगी। मैंने उससे कहा कि वह सूरह अलफ़ातिहा की मदद वाली आयत, चौथी आयत 'इय्याका नाबुदु व इय्याका नस्तईन' (हम तेरी  ही बन्दगी करते हैं और तुझी से मदद माँगते हैं) पढ़े और अपनी कल्पना में अपनी बहिन को अपने घर पर देखे। सुनंदा ने ऊपर बताए गए तरीक़े से काम लेते केवल यही एक आयत पढ़ी। वह दिन  में भी यह आयत पढ़ती रही। 24 घंटे के अंदर ही उसकी बहिन का पता चल गया। घर वाले उसे वापस ले आए। घर लौटने के बाद भी काजल अपने बेरोज़गार शराबी आशिक़ को त्यागने के लिए तैयार न थी। जहाँ उसका रिश्ता हुआ था, वहाँ भी उसके भागने की ख़बर पहुँच चुकी थी। वे मिलने आने वाले थे। बड़ी विकट हालत थी।  सुनंदा ने फिर मुझसे मदद माँगी। मैंने उसे बताया कि हर हालत में सिर्फ़ एक पैदा करने वाला ही आपकी मदद कर सकता है।
1. इसलिए जो आप चाहते हैं, उस मुराद की हालत पर अपने दिल में ध्यान जमाकर
2. पूरे इख़्लास और
3. पूरे यक़ीन के साथ अपने पैदा करने वाले से बार बार मदद माँगो।
सुनंदा ने ऐसा ही किया। काजल के दिल से उसके प्रेमी का विचार निकल गया। होने वाला पति और उसके घर वाले काजल से मिलने आए। उन्होंने उसे कहा कि वे उसे अब भी अपनाएंगे। कुछ वक़्त बाद सुनंदा ने यह ख़ुशख़बरी दी कि काजल की शादी हो गई है। इस तरह एक परिवार ने कई विकट समस्याओं से मुक्ति पाई और उसका इसी दुनिया में तुरंत कल्याण हुआ।
आपकी समस्या कुछ भी हो, आप उसके हल को अपनी कल्पना में देख सकते हैं। आपके माइंड में कोई सीमा नहीं है। आप जो चाहे, वह देख सकते हैं। आप जिस बात का चाहें, उसका यकीन कर सकते हैं। आपका शक और डर ही आपके सीमा है।
आपको इस तरीक़े पर भी शक हो सकता है कि यह तरीक़ा बहुत आसान लग रहा है। क्या यह तरीका काम करेगा?

वेलनेस साईंसेज़
आपके दिल में ऐसा शक आए तो आप इंटरनेट पर 'द साइंस ऑफ ग्रेटीट्यूड' और 'क्रिएटिव विज़ुआलाइश़ेन' के नाम से बहुत सारा स्टडी मैटेरियल पढ़ सकते हैं। विदेशी मनोवैज्ञानिकों ने नबियों की शिक्षाओं पर रिसर्च करके अब कल्याण के विषय पर कई साईन्सेज़ बना ली हैं।

स्मार्ट वर्क का कांसेप्ट
आपको ये बातें कल्पना लोक की जादुई बातों जैसी लग रही होंगी और आप सोच रहे होंगे कि अगर सब कुछ कल्पना से ही हो जाता है तो फिर कर्म करने की क्या ज़रूरत है?
पहली बात यह समझ लीजिए कि हमने यह नहीं लिखा है कि आप केवल कल्पना करें और उस कल्पना से ही आपका सब काम ख़ुद अंजाम तक पहुँच जाएगा। आपको कल्पना के अलावा कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। अगर आप ऐसा समझ रहे हैं तो मेहरबानी करके आप यह लेख दोबारा पढ़ें। हमने यह लिखा है कि आप जो काम करना चाहें, पहले आप उसे अपनी कल्पना में करें, उसके बाद कामयाबी के यक़ीन के साथ स्मार्ट वर्क करें।
दूसरी बात यह है कि अपने रब को पहचानना, उसकी ख़ूबियों को पहचानना और उसके क़ानूने क़ुदरत को पहचानना एक बहुत बड़ा काम है। इसके बाद क़ानूने क़ुदरत के मुताबिक़ कल्पना करना, अपने अंदर विचार और भावनाओं को नियंत्रित करना; अपने मन पर संयम करना है, जो तक़्वा में आता है। ये कोई मामूली काम नहीं हैं, जो हर एक कर लेगा। इसके लिए बहुत सब्र और लगातार अभ्यास की ज़रूरत है। क़ानूने क़ुदरत के मुताबिक़ ऐसी कल्पना करना जो बाहर की दुनिया में ज़ाहिर हो जाए, एक मानसिक कर्म है; दिल का एक बहुत बड़ा अमल है। हम आपको बड़े अमल की तरफ़ तवज्जो दिला रहे हैं।
तीसरी बात यह है कि जब तक अंदर का अमल नतीजे के रूप में बाहर ज़ाहिर न हो, तब तक आपको  ज़ाहिरी  दुनिया में मुनासिब अमल से भी उसे लगातार सपोर्ट करना ज़रूरी है। ये भी अमल ही होते हैं।
चौथी बात यह है कि इस पीरियड में आपको अपने अंदर वे गुण कौशल (Skills) भी डेवलप करने ज़रूरी है, जिनसे आप उन चीजों को और उस हालत को संभाल सकें। आप किसी मनपसंद चीज़ या किसी हालत को अपनी कल्पना और आस्था से पा ज़रूर सकते हैं लेकिन उसे संभालने के लिए आपको गुण कौशल की ज़रूरत पड़ती है। यह सब अपने अंदर डेवलप करना भी कर्म ही कहलाता है। यह तरीक़ा आपको कर्म से ग़ाफ़िल नहीं करता बल्कि यह आपको ऐसा काम करना सिखाता है जो आपको मनचाहे नतीजे दे। इसे स्मार्ट वर्क कहा जाता है। पुरानी सोच हार्ड वर्क जानती है। वेलनेस साईंस स्मार्ट वर्क सिखाती है।
आपको यह चमत्कारी तरीक़ा सिखाने का मक़सद आपके यक़ीन और आपकी चाहत के टकराव के बारे जागरूक करना है ताकि आप अपने अंदर और बाहर के पहलुओं में तालमेल बैठाते हुए काम करना सीख सकें।
सूरह अलफ़ातिहा क़द्रदानी और शुक्र का तरीक़ा सिखाती है, जो सब नबियों का तरीक़ा है। यही कामयाबी का सीधा रास्ता है। आप कामयाब लोगों के बारे में पढ़ें, जिन पर ईश्वर अल्लाह की कृपा और नेमतें बरसी हैं। आप उनके अच्छे गुणों को ज़्यादा से ज़्यादा अपनाएं। आप अपने अंदर जो भी अच्छाई रखेंगे, वह बाहर आपकी ज़िन्दगी में हालात के रूप में रेफ़्लेक्ट ज़रूर होगी।
जब आप ऐसा करते हैं तो आप ईश्वर अल्लाह के प्रकोप से और भटकने बच जाते हैं क्योंकि अब आप अंधेरों से उजाले की तरफ़ आ चुके हैं।

सावधानियाँ
1. आपको सबसे ज़्यादा सावधान रेजिस्टेंस से रहना है। आप बचपन से अब तक सोच के जिस साँचे को अपने अंदर लिए हुए हैं, वह आपको एकदम और आसानी से नहीं बदलने देगा। वह बार बार आप पर कंट्रोल करने की कोशिश करेगा। आपको अपने मक़सद पर और अपनी नई आदत पर जमे रहना होगा। इसके बावजूद पुरानी आदत बार बार उभर कर आएगी। मुझ में मेरी पुरानी आदतें आज भी उभर आती हैं लेकिन मैं उन्हें  अवेयरनेस की वजह से पहचान लेता हूं कि यह मेरा अतीत है जो पलट कर मुझे क़ाबू करने की कोशिश कर रहा है। अवेयरनेस आपकी ताक़त है, जो आपको आपकी बुरी आदतों पर विजय दिलाती है और उनके हमलों से बचाती है। यह एक सतत संघर्ष है, जो आपके अंदर चलता रहता है। इसमें दोनों तरफ आप ही लड़ रहे होते हैं। एक तरफ आपकी नेगेटिव पर्सनैलिटी होती है, जो अतीत में दूसरे लोगों ने बना दी थी और दूसरी तरफ़ पॉज़िटिव पर्सनैलिटी है, जिसे आप 'अब' अपने माइंड में एक कांसेप्ट के रूप में जन्म दे रहे हैं। अपने सबसे बड़े दुश्मन आप ख़ुद ही हैं और ख़ुद पर विजय पाने वाले विजेता भी आप ही हैं। आपको एक नई और पाक ज़िन्दगी गुज़ारनी है तो आपको अपनी पुरानी पर्सनैलिटी को अपने अंदर ख़ुद ही क़ुर्बान करना होगा।
मेरे कुछ स्टूडेंट्स पर 2 साल बाद पुराना नेगेटिव एटीट्यूड फिर हावी हो गया और वे पहले जैसे नाशुक्रे हो गए। इससे आपको सावधान रहना होगा।
2. किसी को अपनी नफ़रत और दुश्मनी की वजह से अपनी मानसिक शक्ति से हरगिज़ नुक़सान न पहुंचाएं वर्ना वही ऊर्जा आपकी तरफ़ पलट कर आएगी और आपको ही हलाक कर देगी।
3. किसी वेलनेस कोच या गुरु की निगरानी में अपने आपको साधना शुरू करें। इससे आपको बहुत आसानी होगी। इससे आपको कामयाबी मिलना ज्यादा यक़ीनी हो जाएगा। वह आपकी सफलता और बाधा के बारे में आपको बताता रहेगा। जो लोग मन के नियम न जानते हों, उन्हें गुरू बनाना ऐसा ही है, जैसे किसी अनाड़ी डॉक्टर से दिल का ऑपरेशन करवाना।
4. अगर आप जल्दी कामयाबी चाहते हैं तो यह तरीक़ा आपके लिए नहीं है। यह तरीक़ा सिर्फ उन लोगों के लिए है, जो बहुत ज्यादा सब्र कर सकते हैं।
5. आप सूरह अलफ़ातिहा अरबी में पढ़ें या उसका अनुवाद पढ़ें। आपको जैसा आसान लगे, वैसा करें। दोनों तरह आपका मक़सद पूरा होगा, इन् शा अल्लाह!
6. जब आप एक्सपर्ट हो जाएं तो आप कोई काम करते हुए बिना आँखें बन्द किए भी अपनी मुराद पर ध्यान जमाकर पूरे इख़्लास और पूरे यक़ीन के साथ सूरह अलफ़ातिहा पढ़ते हुए अपने सबकॉन्शियस माइंड में सोच के नए साँचे बना सकते हैं।
7. आप अपने बच्चों को इस परम गुप्त दिव्य आत्ममिक ज्ञान की शिक्षा देकर कष्ट उठाने और नष्ट होने से बचा सकते हैं। आप उन्हें भरपूर प्रेम दें। आप उन्हें प्रेम, शाँति और परोपकार करना सिखाएं। आप उन्हें कार्टून, सीरियल्स, वीडियो गेम्स और नेगेटिव लोगों के विचारों से बचाएं। उनके जीवन में सुख-शाँति और समृद्धि ख़ुद आएगी। जैसा वे अंदर महसूस करेंगे और जैसा वे दूसरों के साथ करेंगे, क़ुदरती क़ानून के अनुसार उनके साथ वैसा ख़ुद होगा। वे जैसा बोएंगे, वैसा ज़रूर काटेंगे। इसलिए अपने बच्चों को अपने दिल में बाग़ लगाना सिखाएं, आग लगाना न सिखाएं। बाग़ को अरबी में जन्नत कहते हैं। जो आदमी अपने दिल में बाग़ लगाता है, मानो वह जीते जी जन्नत में रहता है क्योंकि जो कुछ उसके दिल में है, वह उसका सुख और आनंद ख़ुद ही भोगता है।

Wednesday, March 27, 2019

दूसरे आपसे संतुष्ट न हों तो आप क्या करें? Dr. Anwer Jamal

हल: दूसरों को संतुष्ट करने के लिए कुछ न करें
एक बहुत दिलचस्प वाक़या है। एक बुजुर्ग थे गुनाह ए कबीरा से बचे हुए, गुनाहे सग़ीरा से बचे हुए, दीन के अरकान के पाबंद, वाजिबात के पाबंद, सुन्नतों के पाबंद और बहुत तक़्वा वाले। वह अक्सर रोज़े रखते थे और रातों को इबादत करते थे। वह लोगों की ख़िदमत करते थे और उन्हें दीन की तालीम देते थे। एक अच्छे दीनदार इंसान में जो भी ख़ूबियां हो सकती हैं, वे सब उनमें थीं। वह शादीशुदा थे और वह अपने घर वालों का पूरा ध्यान भी रखते थे। इस सबके बावुजूद उनकी बीवी उनसे संतुष्ट न थी। उनकी बीवी उन्हें रोज़ दीनदार बुजुर्गों के क़िस्से सुनाती। वह उनकी करामात के क़िस्से सुनाती और फिर उन्हें ताना देती कि देखो, एक यह बुजुर्ग हुए हैं और एक आप हैं कि आपसे हमने आज तक कभी एक भी करामत होते हुए न देखी।
जब उनकी बीवी ने उनसे रोज़ बार बार और बहुत ज़्यादा ऐसा कहा तो एक दिन उन्होंने सोचा कि ठीक है आज मैं अपनी बीवी को अपनी रियाज़त का करिश्मा और करामत दिखा ही देता हूं। वह अपने घर से बाहर निकले और पास के मैदान में खड़े होकर उन्होंने उड़ना शुरू किया। पहले वह ज़मीन से ऊपर उठे और फिर ऊपर उठने के बाद उड़ते हुए अपने घर के ऊपर से गुज़रे। उन्होंने देखा कि उनकी बीवी उन्हें देख रही है। थोड़ा आगे जाकर वह नीचे ज़मीन पर उतरे और चलते हुए घर आए। जैसे ही वह अपने घर में दाख़िल हुए, उनकी बीवी ने उनसे खुशी से ज़िक्र करना शुरू किया कि कैसे अल्लाह के एक बहुत बड़े वली अभी थोड़ी देर पहले उनके घर के ऊपर से उड़ते हुए गुज़रे हैं। वह उन्हें  बताने लगी कि देखो वह कितने बड़े बुजुर्ग थे और उन्होंने कितनी बड़ी करामत दिखाई है और एक आप हैं कि आपसे आज तक हमने कोई करामत होते हुए न देखी। 
वह बुजुर्ग कुछ बताने की कोशिश करते थे तो उनकी बीवी उनकी बात ही न सुनती थी। वह बस अपनी ही बात कही जा रही थी। फिर कुछ देर के बाद मौका पाकर उन बुजुर्ग ने अपनी बीवी से कहा की बेगम इस घर के ऊपर से उड़कर जाने वाला शख़्स आपका शौहर ही था। 
अपने शौहर की बात सुनते ही वह औरत अचानक ऐतराज़ करते हुए बोली कि अच्छा, वह आप थे। तभी आप टेढ़े टेढ़े उड़ रहे थे। आपसे तो उड़ना भी नहीं आता।
इस दिलचस्प क़िस्से के ज़रिए यह तालीम दी गई है कि आप चाहे जितनी खूबियों के मालिक हों, आप किसी फ़न में कितने भी माहिर क्यों न हों लेकिन बीवी बच्चों, रिश्तेदारों और दोस्तों की नज़र में उनकी ज़्यादा वैल्यू नहीं होती। वे आपको आपकी कमियों के पहलुओं से देखते हैं। वे आप से संतुष्ट न होंगे। इसलिए आप उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश न करें। आप अपने मक़सद पर ध्यान दें और अपना काम अच्छी तरह करें, बस।
मुझे याद है कि यह कहानी उर्दू की किताब मख़्ज़ने अख़लाक़ में दर्ज है। मेरे एक दोस्त मुफ़्ती इलियास क़ासमी साहब ने मुझे बरसों पहले यह किताब पढ़ने की सलाह दी थी वह आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी साहब रहमतुल्लाहि अलैह के शागिर्द हैं। वह आजकल गोंडा के एक मदरसे के जिम्मेदार हैं। पहले वह देवबंद में इदारा इल्मो हिकमत के नाम से उनका एक कुतुबख़ाना था। मख़्ज़ने अख़लाक़ में अख़्लाक़ी नसीहत देने वाली कहानियाँ और मिसालें हैं।
आप इस कहानी से दावत और तब्लीग़ के मैदान में नसीहत हासिल कर सकते हैं। चाहे आपने दीन सीखने और तबलीग़ करने में अपनी उम्र गुज़ार दी हो। आप नेकियाँ करने में आगे बढ़ते हों और गुनाहों से पीछे हटते हों। आप लोगों की मदद और ख़िदमत करते हों, आप अपनी तरफ से कितना भी अच्छा क्यों न करते हों लेकिन तब भी आपके क़रीबी लोग आपके आमाल को तोल कर आपको ज़ीरो क़रार दे सकते हैं। वे जजमेंटल होते हैं।
ज़्यादातर लोग दूसरों को अपने जैसा या अपने आयडियल जैसा देखना चाहते हैं। जब वे दूसरों को वैसा नहीं पाते तो वे उन पर ''बेकार' का ठप्पा लगा देते हैं। उन्हें समाज में सब लोग बेकार दिखते हैं। अपने रवैये की वजह से वे ग़मज़दा और मायूस रहने लगते हैं। फिर वे उसी मायूसी को अपनी क़ौम में फैलाते हैं। ये मोमिनों का दिल तोड़ते हैं और बाक़ी का दिल जीतते हैं। ये उलमा ए इस्लाम को मुशरिक और मुशरिकों को अल्लाह की चुनिंदा  क़ौम बताते हैं। इनकी बातें उलमा ए इस्लाम के मुरीदों और आम दीनदार लोगों की समझ में नहीं आतीं तो इनमें से कोई यह तक कह देता है कि मुस्लिम उम्मत इस्लाह क़ुबूल करने का माद्दा खो चुकी है। इस्लाह से मुराद इनकी थ्योरी और दावत है। ये मुस्लिम उम्मत की हलाकत और बर्बादी की भविष्यवाणियां करते हुए मिलते हैं।
दीन में ऐसी बातों को 'नफ़्स का शर और हवा (नफ़्सानी ख़्वाहिश) कहा गया है। दीन के मुबल्लिग़ों और आलिमों में भी ऐसे लोग मौजूद हैं।
आपको दावत और तब्लीग़ के मक़सद पर जमे रहना है और अपना काम करते रहना है तो इन लोगों की बातों से अपने आप को तय न करें। उनकी बातों से उनका पता चलता है, आपका नहीं। अपने मक़सद, अपनी ख़ूबियों और अपनी हदों को आप ख़ुद जानते हैं, दूसरे नहीं। आप जितना कर सकते हैं, महज़ अपने रब की रज़ा के लिए सबकी फ़लाह की नीयत से दावत और तब्लीग़ करें।

Sunday, March 24, 2019

परमेश्वर का नियम, सुख-शाँति और समृद्धि के लिए Dr. Anwer Jamal

इस कल्याणकारी किताब के फ़ायदों का परिचय
अब आप अपने जीवन को पूरी तरह बदल सकते हैं। आप इन आयतों को अपने साथ या जहाँ रखेंगे, वहाँ बहुत ज़्यादा बरकत होगी क्योंकि पवित्र क़ुरआन बरकत वाली किताब है।
आप पवित्र क़ुरआन की आयतों के इस संकलन को बहुत आसानी से पढ़ सकते हैं। जो लोग अपने जीवन में तरक़्क़ी करना चाहते हैं वे अब तरक़्क़ी के नियम जान सकते हैं। जो लोग अपने जीवन में परमेश्वर की कृपा के प्रवाह में कोई रुकावट महसूस कर रहे हैं। वे अब उस रुकावट को दूर कर सकते हैं। अब आप अपने जीवन में धन, मान, सुख-शांति और हर तरह की समृद्धि पा सकते हैं। अब आप इन आयतों के माध्यम से परमेश्वर का सही परिचय पा सकते हैं। आप ज़िंदगी और मौत के राज़ को समझ सकते हैं। आप इन आयतों के ज़रिए जिंदगी और मौत के मक़सद को जान सकते हैं।
हिन्दी साहित्य में यह पहली और अनोखी किताब है। इस किताब में पवित्र आयतों और वेलनेस साईंस के नियमों को पहली बार आसान भाषा में संकलित किया जा रहा है। यह सब सिर्फ़ इसलिए हुआ क्योंकि आप अपनी समस्याओं से मुक्ति का चमत्कारी उपाय तलाश रहे थे। पवित्र क़ुरआन रब का मौज्ज़ा और चमत्कार है। यह कई तरह से चमत्कार है। यह किताब आपको क़ुरआन की चमत्कारी शक्ति का अपने दैनिक जीवन में उपयोग करना सिखाती है। यह किताब सैकड़ों साल के तजुर्बात बहुत कम शब्दों में बयान करती है। मैंने ख़ुद 30 साल से ज़्यादा इन नियमों को समझने और आसान करने में लगाए हैं। मैंने भी अपने जीवन में चमत्कार देखे हैं, उनमें से कुछ आप इस किताब में पढ़ेंगे। इस किताब को समझने के लिए आप इसे बार बार पढ़ें।
                                                    डाक्टर अनवर जमाल
वेलनेस कोच
Email: allahpathy@gmail.com
Part 1
पवित्र क़ुरआन की आयतें

सूरह इख़्लास (112)
बिस्मिल्लाहिर्-रहमानिर्-रहीम
कहो, "वह अल्लाह एक है, (1) अल्लाह निरपेक्ष (और सर्वाधार) है, (2) न वह किसी से जन्मा है और न उसने किसी को जन्म दिया है (3) और न कोई उसका समकक्ष है।" (4)

सूरह अलबक़रह (2:255)
अल्लाह कि जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, वह ज़िन्दा है, सबको सँभालने और क़ायम रखनेवाला है। उसे न ऊँघ लगती है और न नींद। उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है। कौन है जो उसके यहाँ उसकी अनुमति के बिना सिफ़ारिश कर सके? वह जानता है जो कुछ उन लोगों के आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और वे उसके ज्ञान में से किसी चीज़ पर हावी नहीं हो सकते, सिवाय उसके जो वह चाहे। उसकी कुर्सी (प्रभुता) आसमानों और धरती को व्याप्त है और उनकी सुरक्षा उसके लिए तनिक भी भारी नहीं और वह ऊँचा, महान है (255)

सूरह अल-बुरूज (85:13-16)
वही आरम्भ करता है और वही दोबारा करता है,(13) वह बड़ा क्षमाशील, बहुत प्रेम करनेवाला है, (14) सिंहासन का स्वामी है, बड़ा गौरवशाली, (15) जो चाहे उसे कर डालनेवाला (16)

सूरह यासीन (36:82-83)
उसका मामला तो बस यह है कि जब वह किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करता है तो उससे कहता है, "हो जा!" और वह हो जाती है(82) अतः महिमा है उसकी, जिसके हाथ में हर चीज़ का पूरा अधिकार है। और उसी की ओर तुम लौटकर जाओगे (83)

सूरह अल-हदीद (57:1-6)
अल्लाह की तसबीह की हर उस चीज़ ने जो आसमानों और ज़मीन में है। वही प्रभुत्वशाली, हिकमत वाला है (1) आसमानों और ज़मीन की बादशाही उसी की है। वही जीवन प्रदान करता है और मृत्यु देता है, और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है (2) वही आदि है और अन्त भी और वही व्यक्त है और अव्यक्त भी। और वह हर चीज़ को जानता है (3) वही है जिसने आसमानों और ज़मीन को छह दिनों में पैदा किया; फिर सिंहासन पर विराजमान हुआ। वह जानता है जो कुछ ज़मीन में प्रवेश करता है और जो कुछ उससे निकलता है और जो कुछ आसमान से उतरता है और जो कुछ उसमें चढ़ता है। और तुम जहाँ कहीं भी हो, वह तुम्हारे साथ है। और अल्लाह देखता है जो कुछ तुम करते हो (4) आसमानों और ज़मीन की बादशाही उसी की है और अल्लाह ही की है ओर सारे मामले पलटते हैं (5) वह रात को दिन में प्रविष्ट कराता है और दिन को रात में प्रविष्ट कराता है। वह सीनों में छिपी बात तक को जानता है (6)

सूरह अल-हश्र (59:22-24)
वही अल्लाह है जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, ग़ैब और प्रत्यक्ष को जानता है। वह बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है (22) वही अल्लाह है जिसके सिवा कोई पूज्य नहीं। बादशाह है अत्यन्त पवित्र, सर्वथा सलामती, निश्चिन्तता प्रदान करनेवाला, संरक्षक, प्रभुत्वशाली, प्रभावशाली (टूटे हुए को जोड़नेवाला), अपनी बड़ाई प्रकट करनेवाला। महान और ऊँचा है अल्लाह उस शिर्क से जो वे करते हैं (23) वही अल्लाह है जो संरचना का प्रारूपक है, अस्तित्व प्रदान करनेवाला, रूप देनेवाला है। उसी के लिए अच्छे नाम हैं। जो चीज़ भी आसमानों और ज़मीन में है, उसी की तसबीह कर रही है। और वह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है। (24)

अलफ़ातिहा
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और सदा दयावान है।(1) सारा शुक्र और सारी तारीफ़ सिर्फ़ अल्लाह के लिए है (2) बहुत ज़्यादा रहम वाला, हमेशा रहम करने वाला है (3) बदला दिए जाने के दिन का मालिक है (4) हम तेरी  ही बन्दगी करते हैं और तुझी से मदद माँगते हैं (5) हमें सीधे मार्ग पर चला (6) उन लोगों के मार्ग पर जो तेरे कृपापात्र हुए, जो न प्रकोप के भागी हुए और न पथभ्रष्ट। (7)

सूरह अल-इसरा
बिस्मिल्लाहिर्-रहमानिर्-रहीम
क्या ही महिमावान है वह जो रातों-रात अपने बन्दे (मुहम्मद) को प्रतिष्ठित मस्जिद (काबा) से दूरवर्ती मस्जिद (अक़्सा) तक ले गया, जिसके चारों तरफ़ हमने बरकत दी, ताकि हम उसे अपनी कुछ निशानियाँ दिखाएं। निस्संदेह वही सब कुछ सुनता, देखता है (1) हमने मूसा को किताब दी थी और उसे इसराईल की सन्तान के लिए मार्गदर्शन बनाया था कि "हमारे सिवा किसी को कार्य-साधक न ठहराना।" (2) ऐ उनकी सन्तान, जिन्हें हमने नूह के साथ (नौका में) सवार किया था! निश्चय ही वह एक शुक्रगुज़ार बन्दा था (3) और हमने किताब में इसराईल की सन्तान को इस फ़ैसले की ख़बर दे दी थी, "तुम धरती में अवश्य दो बार बड़ा फ़साद मचाओगे और बड़ी सरकशी दिखाओगे।" (4) फिर जब उन दोनों में से पहले वादे का मौक़ा आ गया तो हमने तुम्हारे मुक़ाबले में अपने ऐसे बन्दों को उठाया जो युद्ध में बड़े बलशाली थे। तो वे बस्तियों में घुसकर हर ओर फैल गए और यह वादा पूरा होना ही था। (5) फिर हमने तुम्हारी बारी उनपर लौटाई कि उनपर प्रभावी हो सको। और धनों और पुत्रों से तुम्हारी सहायता की और तुम्हें बहुसंख्यक लोगों का एक जत्था बनाया (6) "यदि तुमने भलाई की तो अपने ही लिए भलाई की और यदि तुमने बुराई की तो अपने ही लिए की।" फिर जब दूसरे वादे का मौक़ा आ गया (तो हमने तुम्हारे मुक़ाबले में ऐसे प्रबल को उठाया) कि वे तुम्हारे चेहरे बिगाड़ दें और मस्जिद (बैतुलमक़दिस) में उसी तरह घुस जाएं जैसे पहली बार दुश्मन घुसे थे और ताकि जिस चीज़ पर भी उनका ज़ोर चले उसे नष्ट कर डालें (7) हो सकता है तुम्हारा रब तुमपर दया करे, किन्तु यदि तुम फिर उसी पूर्व नीति की ओर पलटे तो हम भी पलटेंगे, और हमने जहन्नम को इनकार करनेवालों के लिए कारागार बना रखा है। (8) वास्तव में यह क़ुरआन वह मार्ग दिखाता है जो सबसे सीधा है और उन मोमिमों को, जो अच्छे कर्म करते हैं, शूभ सूचना देता है कि उनके लिए बड़ा बदला है (9) और यह कि जो आख़िरत को नहीं मानते उनके लिए हमने दुखद यातना तैयार कर रखी है (10) मनुष्य उस प्रकार बुराई माँगता है जिस प्रकार उसकी प्रार्थना भलाई के लिए होनी चाहिए। मनुष्य है ही बड़ा उतावला! (11) हमने रात और दिन को दो निशानियाँ बनाई हैं। फिर रात की निशानी को हमने मिटी हुई (प्रकाशहीन) बनाया और दिन की निशानी को हमने प्रकाशमान बनाया, ताकि तुम अपने रब का अनुग्रह (रोज़ी) ढूँढो और ताकि तुम वर्षो की गणना और हिसाब मालूम कर सको, और हर चीज़ को हमने अलग-अलग स्पष्ट कर रखा है। (12) हमने प्रत्येक मनुष्य का शकुन-अपशकुन उसकी अपनी गरदन से बाँध दिया है और क़ियामत के दिन हम उसके लिए एक किताब निकालेंगे, जिसको वह खुला हुआ पाएगा। (13) "पढ़ ले अपनी किताब (कर्मपत्र)! आज तू स्वयं ही अपना हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।" (14) जो कोई सीधा मार्ग अपनाए तो उसने अपने ही लिए सीधा मार्ग अपनाया और जो पथभ्रष्ट हुआ, तो वह अपने ही बुरे के लिए भटका। और कोई भी बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। और हम लोगों को यातना नहीं देते जब तक कोई रसूल न भेज दें (15) और जब हम किसी बस्ती को नष्ट करने का इरादा कर लेते हैं तो उसके सुखभोगी लोगों को आदेश देते हैं तो (आदेश मानने के बजाए) वे वहाँ अवज्ञा करने लग जाते हैं, तब उनपर बात पूरी हो जाती है, फिर हम उन्हें बिलकुल उखाड़ फेंकते हैं (16) हमने नूह के पश्चात कितनी ही नस्लों को नष्ट कर दिया। तुम्हारा रब अपने बन्दों के गुनाहों की ख़बर रखने, देखने के लिए काफ़ी है (17) जो कोई शीघ्र प्राप्त, होनेवाली को चाहता है उसके लिए हम उसी में जो कुछ किसी के लिए चाहते हैं शीघ्र प्रदान कर देते हैं। फिर उसके लिए हमने जहन्नम तैयार कर रखी है जिसमें वह निन्दित और ठुकराया हुआ प्रवेश करेगा (18) और जो आख़िरत चाहता हो और उसके लिए ऐसा प्रयास भी करे जैसा कि उसके लिए प्रयास करना चाहिए और वह हो मोमिन, तो ऐसे ही लोग हैं जिनके प्रयास की क़द्र की जाएगी (19) इन्हें भी और उन्हें भी, प्रत्येक को हम तुम्हारे रब की देन में से सहायता पहुँचाए जा रहे हैं, और तुम्हारे रब की देन बन्द नहीं है (20) देखो, कैसे हमने उनके कुछ लोगों को कुछ के मुक़ाबले में आगे रखा है! और आख़िरत दर्जों की दृष्टि से सबसे बढ़कर है और श्रेष्ठ़ता की दृष्टि से भी वह सबसे बढ़-चढ़कर है (21) अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न बनाओ अन्यथा निन्दित और असहाय होकर बैठे रह जाओगे (22) तुम्हारे रब ने फ़ैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच जाएँ तो उन्हें 'उँह' तक न कहो और न उन्हें झिझको, बल्कि उनसे शिष्टतापूर्वक बात करो (23) और उनके आगे दयालुता से नम्रता की भुजाएँ बिछाए रखो और कहो, "मेरे रब! जिस प्रकार उन्होंने बचपन में मुझे पाला है, तू भी उनपर दया कर।" (24) जो कुछ तुम्हारे जी में है उसे तुम्हारा रब भली-भाँति जानता है। यदि तुम सुयोग्य और अच्छे हुए तो निश्चय ही वह भी ऐसे रुजू करनेवालों के लिए बड़ा क्षमाशील है (25) और नातेदार को उसका हक़ दो मुहताज और मुसाफ़िर को भी - और फुज़ूलख़र्ची न करो (26) निश्चय ही फ़ु़ज़ूलख़र्ची करनेवाले शैतान के भाई है और शैतान अपने रब का बड़ा ही नाशुक्रा है। - (27) किन्तु यदि तुम्हें अपने रब की दयालुता की खोज में, जिसकी तुम आशा रखते हो, उनसे कतराना भी पड़े, तो इस दशा में तुम उनसें नर्म बात करो (28) और अपना हाथ न तो अपनी गरदन से बाँधे रखो और न उसे बिलकुल खुला छोड़ दो कि निन्दित और असहाय होकर बैठ जाओ (29) तुम्हारा रब जिसको चाहता है प्रचुर और फैली हुई रोज़ी प्रदान करता है और इसी प्रकार नपी-तुली भी। निस्संदेह वह अपने बन्दों की ख़बर और उनपर नज़र रखता है (30) और निर्धनता के भय से अपनी सन्तान की हत्या न करो, हम उन्हें भी रोज़ी देंगे और तुम्हें भी। वास्तव में उनकी हत्या बहुत ही बड़ा अपराध है (31) और व्यभिचार के निकट न जाओ। वह एक अश्लील कर्म और बुरा मार्ग है (32) किसी जीव की हत्या न करो, जिसे (मारना) अल्लाह ने हराम ठहराया है। यह और बात है कि हक़ (न्याय) का तक़ाज़ा यही हो। और जिसकी अन्यायपूर्वक हत्या की गई हो, उसके उत्तराधिकारी को हमने अधिकार दिया है (कि वह हत्यारे से क़ानून के मुताबिक़ बदला ले सकता है), किन्तु वह हत्या के विषय में सीमा का उल्लंघन न करे। निश्चय ही उसकी सहायता की जाएगी (33) और अनाथ के माल को हाथ न लगाओ सिवाय उत्तम रीति के, यहाँ तक कि वह अपनी युवा अवस्था को पहुँच जाए, और प्रतिज्ञा पूरी करो। प्रतिज्ञा के विषय में अवश्य पूछा जाएगा (34) और जब नापकर दो तो, नाप पूरी रखो। और ठीक तराज़ू से तौलो, यही उत्तम और परिणाम की दृष्टि से भी अधिक अच्छा है (35) और जिस चीज़ का तुम्हें ज्ञान न हो उसके पीछे न लगो। निस्संदेह कान और आँख और दिल इनमें से प्रत्येक के विषय में पूछा जाएगा (36) और धरती में अकड़कर न चलो, न तो तुम धरती को फाड़ सकते हो और न लम्बे होकर पहाड़ों को पहुँच सकते हो (37) इनमें से प्रत्येक की बुराई तुम्हारे रब की नज़र में अप्रिय ही है (38) ये तत्वदर्शिता की वे बातें है, जिनकी प्रकाशना तुम्हारे रब ने तुम्हारी ओर की है। और देखो, अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न घड़ना, अन्यथा जहन्नम में डाल दिए जाओगे निन्दित, ठुकराए हुए! (39) क्या तुम्हारे रब ने तुम्हें तो बेटों के लिए ख़ास किया और स्वयं अपने लिए फ़रिश्तों को बेटियाँ बनाया? बहुत भारी बात है जो तुम कह रहे हो! (40) हमने इस क़ुरआन में विभिन्न ढंग से बात का स्पष्टीकरण किया कि वे चेतें, किन्तु इसमें उनकी नफ़रत ही बढ़ती है (41) कह दो, "यदि उसके साथ अन्य भी पूज्य-प्रभु होते, जैसा कि ये कहते हैं, तब तो वे सिंहासनवाले (के पद) तक पहुँचने का कोई मार्ग अवश्य तलाश करते" (42) महिमावान है वह! और बहुत उच्च है उन बातों से जो वे कहते है! (43) सातों आकाश और धरती और जो कोई भी उनमें है सब उसकी तसबीह (महिमागान) करते है और ऐसी कोई चीज़ नहीं जो उसका गुणगान न करती हो। किन्तु तुम उनकी तसबीह को समझते नहीं। निश्चय ही वह अत्यन्त सहनशील, क्षमावान है (44) जब तुम क़ुरआन पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के बीच, जो आख़िरत को नहीं मानते एक अदृश्य पर्दे की आड़ कर देते हैं (45) और उनके दिलों पर भी परदे डाल देते हैं कि वे समझ न सकें। और उनके कानों में बोझ (कि वे सुन न सकें)। और जब तुम क़ुरआन के माध्यम से अपने रब का वर्णन उसे अकेला बताते हुए करते हो तो वे नफ़रत से अपनी पीठ फेरकर चल देते हैं। (46) जब वे तुम्हारी ओर कान लगाते हैं तो हम भली-भाँति जानते हैं कि उनके कान लगाने का प्रयोजन क्या है और उसे भी जब वे आपस में कानाफूसियाँ करते हैं, जब वे ज़ालिम कहते हैं, "तुम लोग तो बस उस आदमी के पीछे चलते हो जो पक्का जादूगर है।" (47) देखो, वे कैसी मिसालें तुमपर चिपकाते हैं! वे तो भटक गए हैं, अब कोई मार्ग नहीं पा सकते! (48) वे कहते हैं, "क्या जब हम हड्डियाँ और चूर्ण-विचूर्ण होकर रह जाएँगे, तो क्या हम फिर नए बनकर उठेंगे?" (49) कह दो, "तुम पत्थर या लोहा हो जाओ, (50) या कोई और चीज़ जो तुम्हारे जी में अत्यन्त विकट हो।" तब वे कहेंगे, "कौन हमें पलटाकर लाएगा?" कह दो, "वही जिसने तुम्हें पहली बार पैदा किया।" तब वे तुम्हारे आगे अपने सिरों को हिला-हिलाकर कहेंगे, "अच्छा तो वह कब होगा?" कह दो, "कदाचित कि वह निकट ही हो।" (51) जिस दिन वह तुम्हें पुकारेगा, तो तुम उसकी प्रशंसा करते हुए उसकी आज्ञा को स्वीकार करोगे और समझोगे कि तुम बस थोड़ी ही देर ठहरे रहे हो (52) मेरे बन्दों से कह दो कि "बात वही कहें जो उत्तम हो। शैतान तो उनके बीच उकसाकर फ़साद डालता रहता है। निस्संदेह शैतान मनुष्य का खुला दुश्मन है।" (53) तुम्हारा रब तुमसे भली-भाँति परिचित है। वह चाहे तो तुमपर दया करे या चाहे तो तुम्हें यातना दे। हमने तुम्हें उनकी ज़िम्मेदारी लेनेवाला आदमी  बनाकर नहीं भेजा है (कि उन्हें अनिवार्यतः सीधे रास्ते पर ला ही दो) (54) तुम्हारा रब उससे भी भली-भाँति परिचित है जो कोई आकाशों और धरती में है, और हमने कुछ नबियों को कुछ की अपेक्षा श्रेष्ठता दी और हमने ही दाऊद को ज़बूर प्रदान की थी (55) कह दो, "तुम उससे इतर जिनको भी पूज्य-प्रभु समझते हो उन्हें पुकार कर देखो। वे न तुमसे कोई कष्ट दूर करने का अधिकार रखते है और न उसे बदलने का।" (56) जिनको ये लोग पुकारते हैं वे तो स्वयं अपने रब का सामीप्य ढूँढते हैं कि कौन उनमें से सबसे अधिक निकटता प्राप्त कर ले। और वे उसकी दयालुता की आशा रखते हैं और उसकी यातना से डरते रहते हैं। तुम्हारे रब की यातना तो है ही डरने की चीज़! (57) कोई भी (अवज्ञाकारी) बस्ती ऐसी नहीं जिसे हम क़ियामत के दिन से पहले विनष्ट न कर दें या उसे कठोर यातना न दें। यह बात किताब में लिखी जा चुकी है (58) हमें निशानियाँ (देकर नबी को) भेजने से इसके सिवा किसी चीज़ ने नहीं रोका कि पहले के लोग उनको झुठला चुके हैं। और (उदाहरणार्थ) हमने समूद को स्पष्ट प्रमाण के रूप में ऊँटनी दी, किन्तु उन्होंने ग़लत नीति अपनाकर स्वयं ही अपनी जानों पर ज़ुल्म किया। हम निशानियाँ तो डराने ही के लिए भेजते हैं (59) जब हमने तुमसे कहा, "तुम्हारे रब ने लोगों को अपने घेरे में ले रखा है और जो अलौकिक दर्शन हमने तुम्हें कराया उसे तो हमने लोगों के लिए केवल एक आज़माइश बना दिया और उस वृक्ष को भी जिसे क़ुरआन में तिरस्कृत ठहराया गया है। हम उन्हें डराते हैं, किन्तु यह चीज़ उनकी बढ़ी हुई सरकशी ही को बढ़ा रही है।" (60) याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा, "आदम को सजदा करो तो इबलीस को छोड़कर सबने सजदा किया।" उसने कहा, "क्या मैं उसे सजदा करूँ, जिसे तूने मिट्टी से बनाया है?" (61) कहने लगा, "देख तो सही, उसे जिसको तूने मेरे मुक़ाबले में श्रेष्ठता प्रदान की है, यदि तूने मुझे क़ियामत के दिन तक मुहलत दे दी, तो मैं अवश्य ही उसकी सन्तान को वश में करके उसका उन्मूलन कर डालूँगा। केवल थोड़े ही लोग बच सकेंगे।" (62) कहा, "जा, उनमें से जो भी तेरा अनुसरण करेगा, तो तुझ सहित ऐसे सभी लोगों का भरपूर बदला जहन्नम है (63) उनमें से जिस किसी पर तेरा बस चले उसके क़दम अपनी आवाज़ से उखाड़ दे। और उनपर अपने सवार और अपने प्यादे (पैदल सेना) चढ़ा ला। और माल और सन्तान में भी उनके साथ साझा लगा। और उनसे वादे कर!" - किन्तु शैतान उनसे जो वादे करता है वे धोखे के सिवा और कुछ भी नहीं होते- (64) "निश्चय ही जो मेरे (सच्चे) बन्दे है उनपर तेरा कुछ भी ज़ोर नहीं चल सकता।" तुम्हारा रब इसके लिए काफ़ी है कि अपना मामला उसी को सौंप दिया जाए (65) तुम्हारा रब तो वह है जो तुम्हारे लिए समुद्र में नौका चलाता है, ताकि तुम उसका अनुग्रह (आजीविका) तलाश करो। वह तुम्हारे हाल पर अत्यन्त दयावान है (66) जब समुद्र में तुम पर कोई मुसीबत आती है तो उसके सिवा वे सब जिन्हें तुम पुकारते हो, गुम होकर रह जाते है, किन्तु फिर जब वह तुम्हें बचाकर थल पर पहुँचा देता है तो तुम उससे मुँह मोड़ जाते हो। मानव बड़ा ही अकृतज्ञ है (67) क्या तुम इससे निश्चिन्त हो कि वह कभी थल की ओर ले जाकर तुम्हें धँसा दे या तुमपर पथराव करनेवाली आँधी भेज दे; फिर अपना कोई कार्यसाधक न पाओ? (68) या तुम इससे निश्चिन्त हो कि वह फिर तुम्हें उसमें दोबारा ले जाए और तुमपर प्रचंड तूफ़ानी हवा भेज दे और तुम्हें तुम्हारे इनकार के बदले में डूबो दे। फिर तुम किसी को ऐसा न पाओ जो तुम्हारे लिए इसपर हमारा पीछा करनेवाला हो? (69) हमने आदम की सन्तान को श्रेष्ठता प्रदान की और उन्हें थल और जल में सवारी दी और अच्छी-पाक चीज़ों की उन्हें रोज़ी दी और अपने पैदा किए हुए बहुत-से प्राणियों की अपेक्षा उन्हें श्रेष्ठता प्रदान की (70) (उस दिन से डरो) जिस दिन हम मानव के प्रत्येक गिरोह को उसके अपने नायक के साथ बुलाएँगे। फिर जिसे उसका कर्मपत्र उसके दाहिने हाथ में दिया गया, तो ऐसे लोग अपना कर्मपत्र पढ़ेंगे और उनके साथ तनिक भी अन्याय न होगा (71) और जो यहाँ अंधा होकर रहा वह आख़िरत में भी अंधा ही रहेगा, बल्कि वह मार्ग से और भी अधिक दूर पड़ा होगा (72) और वे लगते थे कि तुम्हें फ़िले में डालकर उस चीज़ से हटा देने को है जिसकी प्रकाशना हमने तुम्हारी ओर की है, ताकि तुम उससे भिन्न चीज़ घड़कर हमपर थोपो, और तब वे तुम्हें अपना घनिष्ठ मित्र बना लेते (73) यदि हम तुम्हें जमाव प्रदान न करते तो तुम उनकी ओर थोड़ा झुकने के निकट जा पहुँचते (74) उस समय हम तुम्हें जीवन में भी दोहरा मज़ा चखाते और मृत्यु के पश्चात भी दोहरा मज़ा चखाते। फिर तुम हमारे मुक़ाबले में अपना कोई सहायक न पाते (75) और निश्चय ही उन्होंने चाल चली कि इस भूभाग से तुम्हारे क़दम उखाड़ दें, ताकि तुम्हें यहाँ से निकालकर ही रहें। और ऐसा हुआ तो तुम्हारे पीछे ये भी रह थोड़े ही पाएँगे (76) यही कार्य-प्रणाली हमारे उन रसूलों के विषय में भी रही है, जिन्हें हमने तुमसे पहले भेजा था और तुम हमारी कार्य-प्रणाली में कोई अन्तर न पाओगे (77) नमाज़ क़ायम करो सूर्य के ढलने से लेकर रात के छा जाने तक और फ़ज्र (प्रभात) के क़ुरआन (अर्थात फ़ज्र की नमाज़) के पाबन्द रहो। निश्चय ही फ़ज्र का क़ुरआन पढ़ना हुज़ूरी की चीज़ है (78) और रात के कुछ हिस्से में उस (क़ुरआन) के द्वारा जागरण किया करो, यह तुम्हारे लिए तद्अधिक (नफ़्ल) है। आशा है कि तुम्हारा रब तुम्हें उठाए ऐसा उठाना जो प्रशंसित हो (79) और कहो, "मेरे रब! तू मुझे ख़ूबी के साथ दाख़िल कर और ख़ूबी के साथ निकाल, और अपनी ओर से मुझे सहायक शक्ति प्रदान कर।"(80) कह दो, "सत्य आ गया और असत्य मिट गया; असत्य तो मिट जानेवाला ही होता है।" (81) हम क़ुरआन में से जो उतारते हैं वह मोमिनों के लिए शिफ़ा (आरोग्य) और दयालुता है, किन्तु ज़ालिमों के लिए तो वह बस घाटे ही में अभिवृद्धि करता है (82) मानव पर जब हम सुखद कृपा करते है तो वह मुँह फेरता और अपना पहलू बचाता है। किन्तु जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है, तो वह निराश होने लगता है (83) कह दो, "हर एक अपने ढब पर काम कर रहा है, तो अब तुम्हारा रब ही भली-भाँति जानता है कि कौन अधिक सीधे मार्ग पर है।" (84) वे तुमसे रूह के विषय में पूछते है। कह दो, "रूह का संबंध तो मेरे रब के आदेश से है, किन्तु ज्ञान तुम्हें थोड़ा ही मिला है।" (85) यदि हम चाहें तो वह सब छीन लें जो हमने तुम्हारी ओर प्रकाशना की है, फिर इसके लिए हमारे मुक़ाबले में अपना कोई समर्थक न पाओगे (86) यह तो बस तुम्हारे रब की दयालुता है। वास्तविकता यह है कि उसका तुमपर बड़ा अनुग्रह है (87) कह दो, "यदि मनुष्य और जिन्न इसके लिए इकट्ठे हो जाएँ कि क़ुरआन जैसी कोई चीज़ लाएँ, तो वे इस जैसी कोई चीज़ न ला सकेंगे, चाहे वे आपस में एक-दूसरे के सहायक ही क्यों न हों।" (88) हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए प्रत्येक तत्वदर्शिता की बात फेर-फेरकर बयान की, फिर भी अधिकतर लोगों के लिए इनकार के सिवा हर चीज़ अस्वीकार्य ही रही (89) और उन्होंने कहा, "हम तुम्हारी बात नहीं मानेंगे, जब तक कि तुम हमारे लिए धरती से एक स्रोत प्रवाहित न कर दो, (90) या फिर तुम्हारे लिए खजूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो और तुम उसके बीच बहती नहरें निकाल दो, (91) या आकाश को टुकड़े-टुकड़े करके हम पर गिरा दो जैसा कि तुम्हारा दावा है, या अल्लाह और फ़रिश्तों ही को हमारे समझ ले आओ, (92) या तुम्हारे लिए स्वर्ण-निर्मित एक घर हो जाए या तुम आकाश में चढ़ जाओ, और हम तुम्हारे चढ़ने को भी कदापि न मानेंगे, जब तक कि तुम हम पर एक किताब न उतार लाओ, जिसे हम पढ़ सकें।" कह दो, "महिमावान है मेरा रब! क्या मैं एक संदेश लानेवाले मनुष्य के सिवा कुछ और भी हूँ?" (93)लोगों को जबकि उनके पास मार्गदर्शन आया तो उनको ईमान लाने से केवल यही चीज़ रुकावट बनी कि वे कहने लगे, "क्या अल्लाह ने एक मनुष्य को रसूल बनाकर भेज दिया?" (94)कह दो, "यदि धरती में फ़रिश्ते आबाद होकर चलते-फिरते होते तो हम उनके लिए अवश्य आकाश से किसी फ़रिश्ते ही को रसूल बनाकर भेजते।" (95) कह दो, "मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह ही एक गवाह काफ़ी है। निश्चय ही वह अपने बन्दों की पूरी ख़बर रखनेवाला, देखनेवाला है।" (96) जिसे अल्लाह ही मार्ग दिखाए वही मार्ग पानेवाला है और वह जिसे पथभ्रष्ट होने दे, तो ऐसे लोगों के लिए उसके सिवा तुम सहायक न पाओगे। क़ियामत के दिन हम उन्हें औंधे मुँह इस दशा में इकट्ठा करेंगे कि वे अंधे गूँगे और बहरे होंगे। उनका ठिकाना जहन्नम है। जब भी उसकी आग धीमी पड़ने लगेगी तो हम उसे उनके लिए भड़का देंगे (97) यही उनका बदला है, इसलिए कि उन्होंने हमारी आयतों का इनकार किया और कहा, "क्या जब हम केवल हड्डियाँ और चूर्ण-विचूर्ण होकर रह जाएँगे, तो क्या हमें नए सिरे से पैदा करके उठा खड़ा किया जाएगा?" (98) क्या उन्हें यह न सूझा कि जिस अल्लाह ने आकाशों और धरती को पैदा किया है उसे उन जैसों को भी पैदा करने की सामर्थ्य प्राप्त है? उसने तो उनके लिए एक समय निर्धारित कर रखा है, जिसमें कोई सन्देह नहीं है। फिर भी ज़ालिमों के लिए इनकार के सिवा हर चीज़ अस्वीकार्य ही रही (99) कहो, "यदि कहीं मेरे रब की दयालुता के ख़ज़ाने तुम्हारे अधिकार में होते हो ख़र्च हो जाने के भय से तुम रोके ही रखते। वास्तव में इनसान तो दिल का बड़ा ही तंग है(100) हमने मूसा को नौ खुली निशानियाँ प्रदान की थी। अब इसराईल की सन्तान से पूछ लो कि जब वह उनके पास आया और फ़िरऔन ने उससे कहा, "ऐ मूसा! मैं तो तुम्हें बड़ा जादूगर समझता हूँ।" (101) उसने कहा, "तू भली-भाँति जानता हैं कि आकाशों और धऱती के रब के सिवा किसी और ने इन (निशानियों) को स्पष्ट प्रमाण बनाकर नहीं उतारा है। और ऐ फ़िरऔन! मैं तो समझता हूँ कि तू विनष्ट होने को है।"(102) अन्ततः उसने चाहा कि उनको उस भूभाग से उखाड़ फेंके, किन्तु हमने उसे और जो उसके साथ थे सभी को डूबो दिया (103) और हमने उसके बाद इसराईल की सन्तान से कहा, "तुम इस भूभाग में बसो। फिर जब आख़िरत का वादा आ पूरा होगा, तो हम तुम सबको इकट्ठा ला उपस्थित करेंगे।"(104) सत्य के साथ हमने उसे अवतरित किया और सत्य के साथ वह अवतरित भी हुआ। और तुम्हें तो हमने केवल शुभ सूचना देनेवाला और सावधान करनेवाला बनाकर भेजा है (105) और क़ुरआन को हमने थोड़ा-थोड़ा करके इसलिए अवतरित किया, ताकि तुम ठहर-ठहरकर उसे लोगों को सुनाओ, और हमने उसे उत्तम रीति से क्रमशः उतारा है (106) कह दो, "तुम उसे मानो या न मानो, जिन लोगों को इससे पहले ज्ञान दिया गया है, उन्हें जब वह पढ़कर सुनाया जाता है, तो वे ठोड़ियों के बल सजदे में गिर पड़ते हैं (107) और कहते हैं, "महान और उच्च है हमारा रब! हमारे रब का वादा तो पूरा होकर ही रहता है।" (108) और वे रोते हुए ठोड़ियों के बल गिर जाते हैं और वह (क़ुरआन) उनकी विनम्रता को और बढ़ा देता है (109) कह दो, "तुम अल्लाह को पुकारो या रहमान को पुकारो या जिस नाम से भी पुकारो, उसके लिए सब अच्छे ही नाम है।" और अपनी नमाज़ न बहुत ऊँची आवाज़ से पढ़ो और न उसे बहुत चुपके से पढ़ो, बल्कि इन दोनों के बीच मध्य मार्ग अपनाओ (110) और कहो, "प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने न तो अपना कोई बेटा बनाया और न बादशाही में उसका कोई सहभागी है और न ऐसा ही है कि वह दीन-हीन हो जिसके कारण बचाव के लिए उसका कोई सहायक मित्र हो।" और बड़ाई बयान करो उसकी, पूर्ण बड़ाई (111)

सूरह अल-कौसर
بسم الله الرحمن الرحيم
निश्चय ही हमने तुम्हें कौसर प्रदान किया, (1) अतः तुम अपने रब ही के लिए नमाज़ पढ़ो और (उसी के दिन) क़़ुरबानी करो(2) निस्संदेह तुम्हारा जो वैरी है वही जड़कटा है (3)

Saturday, March 16, 2019

दीन की दावत देना एक नेचुरल काम है अगर आप यह जान लें कि ... Dr. Anwer Jamal

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
दावते दीन का काम बहुत आसान है। इसे हर इंसान कर सकता है चाहे उसका इल्म कितना ही कम हो।
इल्म कम हो तो भी चलेगा लेकिन जिन गुणों की ज़रूरत सबसे ज्यादा पड़ती है, वे हैं हिम्मत और कॉन्फिडेंस। आप दावते दीन की पूरी प्रोसेस को समझ लेंगे तो आप इस राह के रेज़िस्टेन्स को अच्छी तरह पहचान लेंगे।
कोई इंसान एक आयत का इल्म रखता है तो वह उसे दूसरे तक पहुंचा दे। इस पहुंचाने का नाम तब्लीग़ है। उस आयत में जो बात बताई गई है उस बात की तरफ़ लोगों को बुलाने का नाम अरबी में दावत है।
हम सब अपने दुनिया के कामों को करने के लिए कुछ जानकारी दूसरों को देते रहते हैं। हम सब अपने कामों में मदद के लिए दूसरों को बुलाते हैं एक काम में हम सब सीधे या दूसरे तरीकों से शामिल रहते हैं। अगर एक इंसान कोई बस चला रहा है तो वह उसमें बैठने के लिए लोगों को बुलाता है। कोई शख्स कुछ सामान बेचता है तो उसे खरीदने के लिए लोगों को बुलाता है। कोई किसान खेती करता है तो वह बीज बोने के लिए और फसल काटने के लिए लोगों को बुलाता है। कोई औरत खाना पकाती है तो वह अपने शौहर और अपने बच्चों को खाने के लिए बुलाती है ये सब अपनी और दूसरों की भलाई के काम हैं। भलाई के कामों के लिए हम सब दिन रात दूसरों को बुलाते हैं। हम सब बुलाने में माहिर हैं। इस बुलाने को अरबी में दावत कहते हैं। इसे हिंदी में आह्वान बोलते हैं। किसी का दीन या धर्म कुछ भी हो लेकिन दावत और आह्वान सिर्फ कल्याणकारी कामों के लिए ही किया जा सकता है जिनसे सबकी फ़लाह (wellness) होती है।
कुछ लोग नाहक़ बातों की तरफ बुलाते हैं। वे चोरी, नशा मारपीट जैसे कामों के लिए अपने दोस्तों को बुलाते हैं। इन सब कामों को करने के लिए बुलाना क्राइम है। यह बुलाना दीन-धर्म में गुनाह और पाप हैइन कामों से बचना ज़रूरी है
जब हम बुराई से बचते हैं और भलाई के काम करते हैं और भलाई की तरफ लोगों को बुलाते हैं तो हम दीन का काम करते हैं। हर धर्म और हर दीन के लोग भलाई का काम करते हैं। हर धर्म और हरेक दीन के लोग आह्वान और दावत का काम करते हैं।
जब आप एक दीन की तरफ़ दावत का काम शुरू करते हैं तो आपको जो लोग बुरा कहेंगे आप उन्हें 3 क़िस्मों में बांट सकते हैं-
1. दीन और इंसानियत के दुश्मन
2. मज़हबी रिवायतों के मुहाफ़िज़ उलमा और उनके मुरीद
3. आपके अपने मुबल्लिग़ दोस्त
आपको पता होना चाहिए कि दीन के विरोधियों से अपनी आलोचना ज़रूर सुननी पड़ेगी। वे आपकी मज़ाक़ उड़ाते हैं, आपकी बात को ग़लत कहते हैं, आपकी नीयत पर शक करते हैं। कोई कहता है कि आप शोहरत के लिए यह सब कर रहे हैं। कोई कहता है कि आपको कहीं से फ़न्ड मिल रहा है और कोई कहता है कि आप इस काम से धन कमाना चाहते हैं। इसी तरह के कई आरोप विरोधी लगाते हैं उनकी झूठी और कड़वी बातें को सहने के लिए हिम्मत चाहिए। जो बात आप उनके सामने पेश कर रहे हैं, उसे बार-बार सबके सामने रखने के लिए कॉन्फिडेंस चाहिए। आपका उस दीन में मजबूत यक़ीन ज़रूरी है। आपको इस यक़ीन की ज़रूरत है कि यह दीन ज़मीनो आसमान में क़ायम है और कोई इंसान इसे माने या न माने यह दीन हक़ है। जो इसे मानेगा, वह अपना भला करेगा और जो नहीं मानेगा, वह अपना नुक़्सान करेगा।
इससे भी ज़्यादा हिम्मत और कॉन्फिडेंस की ज़रूरत तब पड़ती है, जब आपको आपके दीन के आलिम नसीहत करते हैं कि
आप ग़लत काम कर रहे हैं,
आपका नज़रिया ग़लत है,
आप का तरीक़ा ग़लत है।
ऐसा काम करके आप अल्लाह को नाराज़ कर रहे हैं।
इसके नतीजे में वह आपको दुनिया में भी सज़ा देगा और वह आपको आख़िरत में जहन्नम में डाल देगा। इसलिए आप इसे छोड़ दीजिए।
ये आलिम आपके मसलक के भी हो सकते हैं और दूसरे मसलकों के आलिम तो ज़रूर यह सब कहेंगे। वे आप पर कुफ़्र और गुमराही के फ़तवे लगा सकते हैं। इससे आप लड़खड़ा सकते हैं। आपको अपने काम पर और अपने तरीक़े पर शक हो सकता है। आप इस काम को छोड़ सकते हैं। इसलिए आप काम शुरू करने से पहले पूरी तहक़ीक़ और पूरी रिसर्च कर लें कि जो बात आप दूसरों को पहुंचा रहे हैं, वह बात हक़ है और जब कोई दूसरा आदमी आपको ग़लत बताए तब आप एक बार फिर से चेक कर लें कि जो बात आप कह रहे हैं, वह बात सही है, उसमें कोई ग़लती नहीं है। आप जिस तरीक़े से दीन की बात कह रहे हैं, वह दीन में जायज़ है या नहीं और जब आप उसे हक़ और जायज़ पाएं तो आप उस पर डटे रहें। आप उसमें कोई ग़लती पाएं तो उसे सही कर लें।

हेल्दी आलोचना का हमेशा स्वागत करें। नेक नीयती के साथ आपकी कमी बताने वाले आप पर ज़ाती हमला नहीं करेंगे। वे सबके बीच में आपकी कमियाँ बताकर आपको शर्मिन्दा नहीं करेंगे। उनके अमल से आप उन्हें पहचान लेंगे।
आप अकेले ही दीन की तब्लीग़ और दावत का काम शुरू करेंगे तो भी आपके साथ कुछ लोग जरूर जुड़ेंगे और अगर आप किसी जमात में शामिल होकर काम करेंगे तो आपको ज़्यादा साथी मिलेंगे। इन सब साथियों का सोचने का अंदाज और बर्ताव आपसे मुख़्तलिफ होगा। कुछ साथी जल्दी ही दूसरे कामों की तरफ मुड़ जाएंगे और वे दावत के काम को ख़ुद ही छोड़ देंगे। कुछ साथी देर तक डटे रहेंगे, जिनके साथ आपका ज़्यादा वक़्त गुजरेगा। आपको उनके साथ दुनिया के कुछ कामों में लेन देन करना होगा।
मशहूर सायकोलॉजिस्ट Haleh Banani का कहना है कि एक इंसान 1 मिनट में 500 अल्फ़ाज़ सोचता है और उनमें 85% नेगेटिव होते हैं। ऐसे नेगेटिव माइंड और एटीट्यूड के लोग आपके साथ काम करते हैं। वे आपके बारे में नेगेटिव बातें बोलेंगे ख़ुद आपके साथी आप पर इल्ज़ाम लगाएंगे। वे आपके बढ़ते हुए असर से जलन महसूस कर सकते हैं या कोई और वजह हो सकती है। वे आप पर इल्ज़ाम रखेंगे कि आप दीन की दावत का काम अल्लाह की रज़ा के लिए नहीं करते बल्कि अपनी नामवरी के लिए करते हैं। आप तब्लीग़ का काम अपनी सलाहियतों का डंका पीटने के लिए करते हैं। वे आपको डराएंगे कि आपके काम के नतीजे में आपको आख़िरत में अल्लाह से कुछ मिलने वाला नहीं है। रिवर्टेड मुस्लिम से लेकर पुराने ख़ानदानी सैयद तक आपको डराएंगे। आप सब्र और शुक्र से काम लेंगे तो ये लोग आपके साथ लगातार बने रहेंगे। आपकी हिम्मत और आपके कॉन्फिडेंस को बढ़ाने में सबसे ज़्यादा मदद यही लोग करेंगे, अल्हमदुलिल्लाह।

ये लोग ख़ुद कन्फ़्यूज़्ड हैं और दूसरों को भी कन्फ़्यूज़्ड करते हैं। जब मुस्लिम समाज के आम लोग ख़ुद को गुनाहगार और कम इल्म देखकर दावत का काम नहीं करते तो ये उन्हें जा जाकर प्रेरणा देते हैं कि 
'आप हल्के हों या भारी हों लेकिन दावत के लिए ज़रूर निकलें'।
और जब इन्हें दूसरी जगह कोई इनकी प्रेरणा के बिना दावत का काम करते हुए मिलता है तो ये दूसरों को बताते हैं कि उसका इल्म कम है और उसमें कई कमियाँ हैं।
इसका मक़सद कुछ जगह यह हो सकता है कि नए लोग इनकी प्रेरणा से इनसे जुड़कर इनके तरीक़े से काम करें और बाक़ी लोगों के इल्म को कम और उनके काम को ग़ैर मक़बूल और मशकूक (Doubtful) समझें। यह एकाधिकारवादी मानसिकता है। पहले यह सिर्फ़ आलिमों में फ़िक़ही मसलक की हद तक देखी जाती थी क्योंकि मदरसों में दावते हक़ का शोअबा मौजूद न था। अब यह मानसिकता दावते दीन के फ़ील्ड में भी दिखाई देती है। यह एकाधिकारवादी मानसिकता सिर्फ़ रिवायती आलिमों में ही नहीं है बल्कि यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए दानिशवरों में भी है, जो कि दावतो तब्लीग़ का काम कर रहे हैं। मानसिकता और अधिनायकवाद वही है सिर्फ़ कुर्ते पाजामे और सूट बूट का फ़र्क़ है।
आप क़ुरआन और हदीस की रौशनी में अपने विरोधियों को देखेंगे, जो आपको बुरा कहते हैं, आप अपने दीन के आलिमों को देखेंगे, जो आपको झूठा कहते हैं, आप अपने साथियों को देखेंगे जो आपके हल्क़े में आपके बारे में निगेटिव प्रचार करते हैं और आपके बारे में बुरा गुमान रखते हैं तो आपको इस बात से ग़म न होगा बल्कि ख़ुशी होगी कि आपका रब आपको इनके ज़रिए दुनिया में ही पाक कर रहा है और वह आपको दुनिया से पाक करके उठाएगा। ये लोग आपकी माफ़ी का ज़रिया बनेंगे और यही लोग आपको आपके रब से ऐसा अज्र दिलाने का ज़रिया बनेंगे जो कभी ख़त्म न होगा अल्हम्दुलिल्लाह।

मैंने दावते दीन के फ़ील्ड में पिछले 30-35 साल जो काम किया है। उस काम के दौरान जो मुझे जो तजुर्बात हुए हैं, उनकी बुनियाद पर मैंने यह लेख नए पुराने दाईयों की तसल्ली और हिदायत (guidence) के लिए लिखा है ताकि वे अपना इल्म कम देखकर मायूस न हों, वे दीन के दुश्मनों और अपने दोस्तों के इल्ज़ामों से मायूस हों
सब लोग ईसा मसीह, मूसा अलैहिस्सलाम और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुत्मइन न हुए। मुस्लिमों में अबू बक्र, उमर, उस्मान, अली और हज़रत आयशा रज़ियल्लाहुम अज्मईन तक पर इल्ज़ाम धरने वाले भी मिल जाते हैं। समाज के लोग ऐसे ही होते हैं। इमाम हसन और इमाम हुसैन रज़ि. को क़रीबी रिश्तेदारों और मुस्लिमों ने क़त्ल तक किया। वे आप पर भी इल्ज़ाम लगाएं तो जान लें कि यह होना ज़रूरी था। यह रेज़िस्टेन्स ज़रूर आता है।
समाज में सौ तरह के लोग हैं। हर आदमी के पास सोच का एक सांचा है। जिसमें वह आपको ढालना चाहता है। वह आपसे तभी राज़ी होगा, जब आप उसकी सोच के सांचे में ढल जाएंगे। ज़ाहिर है कि आप सौ अलग अलग लोगों की सोच के सौ अलग अलग सांचों में नहीं ढल सकते। इसलिए आप समाज के सभी आदमियों को राज़ी भी नहीं कर सकते और न ही रब की तरफ़ से आप पर यह फर्ज़ है कि आप समाज के सब लोगों को राज़ी करें।
आप पर यह फर्ज़ है कि आप अल्लाह की तौहीद को पहचानें। शिर्क की जितनी भी क़िस्में हैं, उन्हें पहचानें और उनसे बचें। आप पर यह लाज़िम है कि जो लोग आपको दुख तकलीफ़ पहुंचाएं, आप उन्हें इस उम्मीद में माफ़ करते रहें कि आपका रब आप को माफ़ करेगा। आप ज़मीन वालों पर रहम करें, आसमान वाला आप पर रहम करेगा। जिस पैमाने से आप दूसरों को नापते हैं, उसी पैमाने से आपको नापा जाता है।

आप लोगों को उनकी ख़ूबियों के पहलुओं से देखें। रब ने जो नेमतें और जो ज़िंदगी आपको दी हैं, उनके लिए रब के शुक्रगुज़ार बनें। आप लोगों के शुक्रगुजार बनें। शुक्र से अज़ाब दूर रहता है। शुक्र से नेमत बढ़ती है। जो लोग आपके पास बैठेंगे, वे आपसे शुक्र का तरीक़ा सीखेंगे। शुक्र का तरीक़ा नबियों का तरीक़ा है। शुक्र से आपके दोस्त बरकत पाएंगे। अल्लाह त'आला आपके दोस्तों में भी बरकत देगा। आपके दोस्त भी बढ़ेंगे। आपको अच्छे और मददगार दोस्त भी मिलेंगे। जैसे आप ख़ुद होंगे, वैसे ही लोग आपको ज़रूर मिलेंगे।
आपका विरोध आपकी शक्ति को बढ़ाएगा। इसलिए आप अपने विरोध और आलोचना से मायूस होकर दावत का काम बंद न करें। कभी कहना पड़े तो अपने विरोधियों और आलोचकों से वही कह दें, जिसका हुक्म अल्लाह ने अपने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दिया है-
कह दो, "यही मेरा मार्ग है। मैं अल्लाह की ओर बुलाता हूँ। मैं स्वयं भी पूर्ण प्रकाश में हूँ और मेरे अनुयायी भी - महिमावान है अल्लाह! - और मैं हरगिज़ मुशरिक नहीं हूँ।"
पवित्र क़ुरआन 12:108

जब आप दीनी दावती की पूरी प्रोसेस को समझ लेंगे तो आप मनोवैज्ञानिक रूप से पूरी तरह तैयार हो जाएंगे तब आपको दीन की दावत का काम बहुत आसान लगेगा। आपको जो भी रेजिस्टेंस पेश आएगा, वह आपको नेचुरल लगेगा क्योंकि आप पहले से जानते हैं कि दीन की दावत में यह मरहला ज़रूर आता है। इसी के साथ आपको तरह तरह से
मदद और फ़तह भी मिलेगी। मुश्किल के साथ आसानी भी है।
नोट: इस लेख का ज़्यादा हिस्सा गूगल की बोर्ड ऐप के ज़रिए बोल बोल कर लिखा गया है। यह एक अच्छा टूल है अल्लाह का शुक्र है जिसने हमें दावत के काम के लिए हर तरह से आसानियाँ बख़्शी हैं।

Monday, March 4, 2019

मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह का सबसे बड़ा काम यह है कि ...Dr. Anwer Jamal

परमतत्ववेत्ता आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह 'ग़ज़्वा ए हिन्द' का हिन्दी में भावार्थ 'महाभारत' करते थे। वह कहते थे कि महाभारत माज़ी के सीग़े (past tense) में मुस्तक़बिल ( भविष्य) की ख़बर है।
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह का सबसे बड़ा काम यह है कि उन्होंने सब धर्मों के मानने वालों के सामने एकता और एकत्व का सबसे मज़बूत आधार रख दिया है। वह कहते थे कि पैग़म्बर मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुस्लिम आत्म-ज्ञानी परमात्मा (प्रथम आत्मा) के रूप में पहचानते हैं। सभी धर्म-दर्शनों की परंपराओं में इस सत्य को अपने अपने ढंग से समझा और समझाया गया है।
जैसे जैसे मैंने सभी धर्मों के ग्रंथों को पढ़ा, वैसे वैसे उनकी बात ज़्यादा क्लियर होती गई।

देवासुर संग्राम भारत का एक पुराना कांसेप्ट है। बाद में इसे 'महाभारत' के रूप में काव्य का रूप दिया गया। इसी का एक अंश गीता है।
सत्य असत्य के इस युद्ध को हदीस में अरबी शैली में 'ग़ज़्वा ए हिन्द' बताया गया है। ग़ज़्वा वह युद्ध होता है, जिसके सत्य पक्ष का निर्देशन शाँति और न्याय की स्थापना के लिए मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम 'ख़ुद' करते हैं।
आत्मा के रहस्य को न समझने के कारण (आत्मज्ञान से) जाहिल लोग ग़ज़्वा ए हिन्द को केवल भौतिक सामग्री से होने वाले युद्ध के रूप में लेकर अर्थ का अनर्थ कर रहे हैं। इसीलिए वे यह नहीं बता सकते कि इस युद्ध में नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अब कैसे शामिल हो सकते हैं?

गायत्री परिवार के संस्थापक श्री राम शर्मा आचार्य जी ने और ब्रह्माकुमारी मिशन के संस्थापक दादा लेखराज जी ने और बहुत से हिन्दू विद्वानों ने सूक्ष्म जगत और भौतिक जगत के आपसी संबंध के बारे में और भारी तबाही के बाद निकट भविष्य में शाँति स्थापित होने के बारे में लिखा है।
बाईबिल में हम पाते हैं कि रचयिता ने मूसा अलैहिस्सलाम को अपना नाम 'अहम्' (I AM) बताया है।
देखें: Exodus 3:15

पशु स्तर की चेतना वाली आम जनता इस सूक्ष्म परम गोपनीय ज्ञान को समझ नहीं सकती। ज्ञानी लोग तक इसमें ग़लती करते हैं। बहुत लोग परमेश्वर, परमात्मा और आत्मा का भेद और संबंध नहीं जानते। वे हमेशा तीन को एक या एक को तीन कर देते हैं या फिर वे उसे पत्थर मारने लगते हैं, जो उन्हें आत्मा (मैं) का ज्ञान देता है। ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के साथ उनकी क़ौम ने यही किया। देखें, ईसा मसीह ने कहा-
मैं तुमसे सच सच कहता हूँ, कि पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ । तब उन्होंने यीशु को मारने के लिए पत्थर उठा लिए। मगर वह छिप गया और मंदिर से बाहर निकल गया। -यूहन्ना 8:58-59

मैं और आप परमात्मा के एक अंश हैं। इस अंश को आत्मा और अहम् बोलते हैं। यह 'अहम्' शब्द प्रभु का एक गुप्त नाम है। जिसका ज़िक्र वेद में भी है, 'वेद अहमेतं पुरूष महानतम्' और 'अहमिद्धि पितुष्परि' में 'अहम्' का महत्व बताया गया है।
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।
तमेव विदित्वातिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय।।
यजुर्वेद 31/18
अहमिद्धि पितुष्परि मेधामृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि । ऋग्वेद 8/6/10
गीता के दसवें अध्याय में 'अहम्' की प्रधानता बहुत सुन्दर उपमा और अलंकारों के साथ गीताकार ने बताई है।

हरेक शरीरधारी, हरेक जीव के ह्रदय में, कण कण में यह 'अहम्' तत्व मौजूद है। सब इसी एक नूर से उपजे हैं। यही वह ज्योति है जो अखण्ड है। इसी चेतन ज्योति के कारण हरेक चीज़ सहज तरीक़े से उस काम को अंजाम देती है, जिसके लिए वह मौजूद हैं।
पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बताया है कि मेरा नाम अहमद है। इस नाम में 'अहम्' पोशीदा है।

ग़ज़वा ए हिन्द को समझने के लिए आपको यह समझना ज़रूरी है कि जब जब इस दुनिया में इतना भारी उत्पात मचता है जिसे रोकना लौकिक मनुष्यों के बस का नहीं होता तब आत्मा अपने आपको सृजता है।
'तदात्मानं सृजाम्यहम्' (गीता)
जब आत्मा ख़ुद को ख़ुद में नये रूप में मैनेज करता है तब उसकाअसर भौतिक जगत पर पड़ता है और यहां नये लोग खड़े होते हैं, जो यहाँ शाँति स्थापित करते हैं। यह सब परमात्मा (अहमद) अर्थात Holy Spirit के निर्देशन में होता है।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है कि
'हम बदलेंगे, युग बदलेगा।'
ब्रह्माकुमारी का ध्यान और मंत्र यही है:
I am Peace.
I am pure.
I am Love.

जो लोग अपने आपको शाँत, शुद्ध और प्रेम के रूप में पहचानते हैं, वे अपनी नकारात्मकता पर विजय पा लेते हैं। ऐसे सब लोग परमात्मा के निर्देशन में अपने अंदर एक मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ रहे हैं। अपने नफ़्स से लड़ने को हदीस में जिहादे अकबर कहा गया है। यही लोग प्रत्यक्ष जगत में भी सबको न्याय और शाँति का उपदेश देते हैं। सभी लोग एक दूसरे से अच्छी बातें सीखते हुए सबकी भलाई के काम करें तो  वे ग़लतियाँ कम होती जाएंगी, जो आत्म-तत्व (ख़ुदी) को समझने में लोग कर रहे हैं।
स्थायी और बहु आयामी परिवर्तन के लिए हमें अपनी आत्मा में ख़ुद को विराट, शाँत और समृद्ध रूप में सिरजने की ज़रूरत है। यह छाया (साया reflection) जगत है। अंदर का रूप ख़ुद बाहर प्रकट होता है। बाहर की हालत ख़ुद बदलती है। इसी सिद्धांत पर सेल्फ़ हेल्प लिट्रेचर सबको हरेक समस्या का समाधान देता है।
मेरा सबसे यही आग्रह है कि हम सब भाषाई और धार्मिक संकीर्णता से ऊपर उठकर सब धर्मों के ग्रंथों से 'आत्म तत्व' को पहचानें ताकि हमारा कल्याण (फ़लाह) हो। आत्म ज्ञान से आत्म कल्याण होता है।
हम सब एक ही तत्व से बने हैं। हम सब एक हैं। हर समस्या का हल भी एक ही जगह, हमारी 'ख़ुदी' में है।