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Sunday, July 26, 2020

Qurbani हिंदुओं की अर्थ व्यवस्था को कैसे सपोर्ट करती है?

बक़रईद से पहले कुछ हिंदुत्ववादी क़ुरबानी का विरोध करने लगते हैं। यह हर साल का काम बन चुका है। ये ख़ुद को जीवों की रक्षा करने वाला कहते हैं जबकि इन्हें जीव रक्षा से कोई वास्ता नहीं है। मैंने इन लोगों से हमेशा कहा है कि
आप मछली और सुअर को बचाने के लिए भी आंदोलन करो। वे भी जीव हैं लेकिन ये लोग ऐसा नहीं करते और न ही ये कभी ऐसा करेंगे क्योंकि
वास्तव में ये अपनी नज़र में मुस्लिम समाज से एक जंग लड़ रहे हैं और ये लोग यह जंग भी मुस्लिमों के तरीक़े पर माँस खाते हुए लड़ रहे हैं। ये भारत को बीफ़ निर्यात में चोटी के दो चार देशों में पहुंचा चुके हैं। इनके फ़्रिज में मछली और मुर्ग़ा भरा रहता है। दक्षिण भारत, महाराष्ट्र, आसाम, उड़ीसा, बंगाल और गढ़वाल में आम हिन्दुओं के दैनिक भोजन में मछली शामिल है। हिंदुत्ववादियों को इनके जीव मारने और मांस खाने पर आपत्ति नहीं है। 
हक़ीक़त यह है कि हिंदूवादी संघ को सत्ता पाने और फिर उसे क़ायम रखने के लिए 738 जातियों को अपनी छत्री के नीचे एक रखने की ज़रूरत है और इसके लिए उसे एक दुश्मन की ज़रूरत है, जिससे वह सब जातियों को डरा सके और सबको उससे लड़ा सके। उसने उस दुश्मन के रूप में मुस्लिम का चुनाव किया है। उसी ने इन्हें मुस्लिम विरोध का टास्क दिया है। यही विरोध इन्हें संघ की छत्री में एक रखता है।
इसीलिए बक़रईद पर हिंदुत्ववादी क़ुर्बानी का विरोध करते हैं।
बक़रईद पर क़ुर्बानी के विरोध के पीछे राजनैतिक उद्देश्य होते हैं। यह अब साफ़ है।
आपको इस विरोध के जवाब में लिखते हुए यह समझाना ज़रूरी है कि
बक़रईद के मौक़े पर जो पशु मुस्लिम ख़रीदते हैं,
उन्हें पालने और बेचने वाले राजस्थान और पहाड़ी इलाक़ों की हिन्दू जातियों के लोग (वास्तव में पिछड़े, दलित और आदिवासी) होते हैं और उन पशुओं का हड्डी, चमड़ा व अन्य अवशेष टैनरियों, फ़ैक्ट्रियों और फ़ार्मेसियों को जाता है। जिनके मालिक भी हिन्दू (वास्तव में सवर्ण जाति वाले) होते हैं। इस्लामी क़ुर्बानी से खरबों रूपए का रोज़गार पैदा होता है और यक़ीनन यह खरबों रूपया भारत के (हिन्दू/सवर्ण) राजनेताओं से लेकर किसान मज़दूर, सबके हाथों में ज़रूर पहुंचता है। राजनेता उस रूपए को अपनी सरकार मज़बूत बनाने में लगाते हैं और आम हिंदू उस रूपए से अपनी बेटियाँ ब्याहते हैं। जिससे हिंदुओं के घरों में लाखों बच्चे पैदा होते हैं। ये वे हिंदू हित हैं, जिन्हें इस्लामी क़ुर्बानी सपोर्ट करती है। हिंदुत्ववादी होने के नाते हिंदुत्ववादियों को हिन्दू हितों को सपोर्ट करना चाहिए, न कि उनके विरोध में खड़ा होना चाहिए।
क्या क़ुरबानी को रोकने का सीधा अर्थ हिंदुओं की अर्थ व्यवस्था को ध्वस्त करना नहीं है?

Monday, July 20, 2020

मन्न और सल्वा के कांसेप्ट को आम करें ताकि रब से रोज़ी सबको मुफ़्त मिले

अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने में अपने बंदों को मन्न और सलवा खिलाया। एक रिसर्च के मुताबिक़ मन्न दो झाड़ियों Tamarix mannifera (झाऊ), Alhagi maurorum (Persian Mannaplant जवांसा) से मिलता था और सलवा एक परिंदा था। रब ने उन्हें बस्तियों से दूर नेचर से यह फ़ूड दिया था। उन्हें यह फ़ूड मुफ़्त और बिला मशक़्क़त मिलता था और इस फ़ूड से उन्हें सभी ज़रूरी पोषक तत्व मिल जाते थे। बाईबिल (exodus 16:31) और क़ुरआन (2:57) दोनों में रब की इस नेमत का ज़िक्र है। जब हम अल्लाह की इस निशानी पर ग़ौर करते हैं तो हमें पता चलता है कि रब रज़्ज़ाक़ है और नेचर में सबका रिज़्क़ भरपूर मौजूद है, अल्हम्दुलिल्लाह!
जो लोग अल्लाह की निशानियों में ग़ौरो फ़िक्र करते हैं, उन्हें हर जगह कुछ ऐसी चीज़ें मिल जाएंगी, जो खाई जा सकती हैं और उनसे ज़रूरत के सभी तत्व मिल जाते हैं। जैसे कि हज़रत साबिर साहब कलियरी रहमतुल्लाहि अलैह गूलर खाया करते थे और गूलर से भोजन की ज़रूरत पूरी हो जाती है, अल्हम्दुलिल्लाह!
सहजन भी एक ऐसा ही पेड़ है। इसे इस सेंचुरी की डिस्कवरी क़रार दिया गया है। यह ग़रीबों की बस्तियों में और ख़ास तौर से बिहारियों की बस्तियों में आम पाया जाता है। इसके एक मुठ्ठी पत्ते खाने से प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, विटामिन सी और दूसरे न्यूट्रिएंट्स मिलते हैं। सभी ग़रीब लोग बरसात में इस पेड़ को अपने घर में या सड़क के किनारे सरकारी ज़मीन पर लगाकर मन्न व सल्वा की तरह मुफ़्त में बिला मशक़क़्त रब की क़ुदरत से उम्दा और पाक फ़ूड पा सकते हैं।
आप लोग इस बरसात में गूलर और सहजन के साथ अंजीर भी लगा दें। आप लोग अमीर या मिडिल क्लास हैं और आप सोच सकते हैं कि आपको गूलर, सहजन और अंजीर की ज़रूरत नहीं है तो यह आपका अज्ञान है।
आप इन तीन पेड़ों के बारे में यूट्यूब पर वीडियो देखें। इसके बाद आपको पता चलेगा कि पेट व लिवर रोगों को और फ़ेल हो चुके गुर्दों को ये ठीक करते हैं। जिन औरतों के बाल झड़ रहे हैं और जिनके चेहरे पर झुर्रियां पड़ चुकी हैं। उन्हें ये तीनों पेड़ बूढ़े से जवान बनाते हैं।
जो लोग अमीर हैं। उन्हें जवान, हसीन और ताक़तवर बने रहने के लिए गूलर, सहजन और अंजीर खाना ज़रूरी है। जब अल्लाह के नेक हकीम बंदों की छोड़ी हुई किताबें पढ़ेंगे तो आपको वहाँ ऐसे दर्जनों पेड़ पौधे और भी मिलेंगे, जो जंगल में ख़ुद पैदा हो जाते हैं या उन्हें घर में, गमलों में बहुत आसानी से उगाया जा सकता है और उनसे साल भर मुफ़्त में रोज़ी मिलती है।
कोविड19 की वजह से यह ख़ुद को ज़िंदा रखने का साल है।
इसलिए मन्न और सल्वा के कांसेप्ट को आम करने की ज़रूरत है। जंगल में झाऊ और जवांसा भी बहुत मिलता है।
अल्हम्दुलिल्लाह!

Thursday, July 16, 2020

क्या हमारे देश में कुछ मस्जिदों को मंदिर बनाया गया है? ●

क्या यह सच है कि हमारे देश में कुछ मस्जिदों को मंदिर बना दिया है?
● जामा मस्जिद फर्रुख़नगर हरियाणा
● ख़िलजी जामा मस्जिद दौलताबाद औरंगाबाद महाराष्ट्र
● दाना शीर मस्जिद हिसार हरियाणा
● जामा मस्जिद सोनीपत हरियाणा
ताज़ा मामला अयोध्या की बाबरी मस्जिद का है जिसे शहीद करके राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है!
इसके अलावा लाल मस्जिद डालगंज मार्केट, लुधियाना को गुरुद्वारे में बदला जा चुका है!
जो बेशर्म कुर्दोग़लू तुर्की की #हाया_सोफ़िया मस्जिद पर ज्ञान पेल रहे हैं, वे इन पर भी न्याय की माँग करते तो वे सच्चे और मुन्सिफ़ माने जाते।

Wednesday, July 15, 2020

क्या इस्लामी नियम मानने के कारण हिंदू एक तरह के मुस्लिम बन चुके हैं?

समा चुका है इस्लाम हिंदुओं के दैनिक जीवन में
मैं इस्लाम की मज़ाक़ उड़ाने वाले आर्य समाजियों और हिंदुत्ववादियों को हमेशा एक छिपे हुए मिश्रित मुस्लिम के रूप में देखता हूँ।
ये पगलैट और हठधर्म होने का दिखावा करते हैं वर्ना हक़ीक़त यह है कि ये लोग चुपके चुपके इस्लामी सभ्यता और रहन सहन सीखते हैं और इस्लाम को उसका क्रेडिट नहीं देते कि अब हम वर्ण व्यवस्था पर नहीं बल्कि इस्लाम पर चलते हैं।
आप देख सकते हैं, अब ये लोग छूतछात नहीं मानते। कोविड19 से बचाव के लिए सरकार सोशल डिस्टेंस को कह रही है कि एक दूसरे से दूर रहो लेकिन
ये लोग मुस्लिमों की तरह सब एक दूसरे को छू रहे हैं। जिसके कारण हिंदू भाईयों से जुर्माने के रूप में करोड़ों रूपया वसूला जा चुका है।मुस्लिमों के आने से पहले भारतीय हिंदू जातियों की यह हालत न थी।
अब ये अपना घर यानी अपना वर्ण धर्म छोड़कर इस्लाम में शरण लिए हुए हैं।
इस्लामम् शरणम् गच्छामि।

इस सामाजिक सत्य को सब पहचानें।
मैं हिंदू भाईयों से यह नहीं कहता कि आप इस्लाम क़ुबूल कर लें क्योंकि यह काम काफ़ी कुछ वे पहले ही कर चुके हैं।
जिस पर मैं उन्हें बस मुबारकबाद देता हूँ कि
मुबारक हो, अब आप इस्लामी नियम मानने के कारण एक तरह के मुस्लिम हैं, अल्हम्दुलिल्लाह!
क्या आप मेरे नज़रिए से भारतीय समाज को देख सकते हैं?
इमेज नीचे अवेलेबल है:

Monday, July 13, 2020

क्या वैदिक धर्मी तुर्की को शर्मिन्दा करने के लिए जैनियों के क़ब्ज़ाए हुए मंदिर लौटा सकते हैं?


क्या अब वैदिक धर्मी जैनियों के क़ब्ज़ाए हुए मंदिर लौटा देंगे?
तुर्की देश में हाजिया सफ़िया म्यूज़ियम को मस्जिद बनाने का विरोध करने वाले भारतीय वैदिक और आर्य समाजी भाईयों से मुझमें अचानक यह आशा जागी है कि चाहे तुर्की के लोग न्याय न करें परन्तु वैदिक धर्म प्रचारक अवश्य न्याय करेंगे और जैनियों के क़ब्ज़ाए हुए मंदिर जैनियों को वापस कर देंगे या कम से कम उन्हें वापस करने के लिए लेख अवश्य लिखेंगे। स्वामी दयानन्द जी स्वीकार करते हैं:
'शंकराचार्य्य के सर्वत्र आर्यावर्त्त देश में घूमने का प्रबन्ध सुधन्वादि राजाओं ने कर दिया और उन की रक्षा के लिये साथ में नौकर चाकर भी रख दिये। उसी समय से सब के यज्ञोपवीत होने लगे और वेदों का पठन-पाठन भी चला। दस वर्ष के भीतर सर्वत्र आर्यावर्त्त देश में घूम कर जैनियों का खण्डन और वेदों का मण्डन किया। परन्तु शंकराचार्य्य के समय में जैन विध्वंस अर्थात् जितनी मूर्त्तियां जैनियों की निकलती हैं। वे शंकराचार्य्य के समय में टूटी थीं और जो विना टूटी निकलती हैं वे जैनियों ने भूमि में गाड़ दी थीं कि तोड़ी न जायें। वे अब तक कहीं भूमि में से निकलती हैं। शंकराचार्य्य के पूर्व शैवमत भी थोड़ा सा प्रचरित था; उस का भी खण्डन किया। वाममार्ग का खण्डन किया। उस समय इस देश में धन बहुत था और स्वदेशभक्ति भी थी। जैनियों के मन्दिर शंकराचार्य्य और सुधन्वा राजा ने नहीं तुड़वाये थे क्योंकि उन में वेदादि की पाठशाला करने की इच्छा थी।'

-सत्यार्थ प्रकाश, 11वाँ समुल्लास

यदि वैदिक धर्मी जैनियों के क़ब्ज़ाए हुए मंदिर लौटाने के बाद हाजिया सफ़िया मस्जिद का विरोध करें तो तुर्की लोग भी न्याय करने पर मजबूर हो जाएंगे वर्ना वे भी भारतीय इतिहास पढ़कर हिंदुत्ववादियों को न्याय करने के लिए कहेंगे।
हमें वैदिक धर्म और हिन्दुत्व का सिर शर्मिंदगी से झुकने से बचाना होगा और क़ब्जाए हुए जैन मंदिर जैनियों को सादर लौटाने होंगे।

आपकी सुविधा के लिए नीचे इमेज भी अवेलेबल है:

Thursday, July 9, 2020

किस बात से आर्य समाजी की बोलती बंद हो जाती है?

आप किसी बहस करने वाले आर्य समाजी को ग़मज़दा और डिप्रेस्ड करना चाहते हैं तो आप उससे केवल यह कह दें कि अगर आप दुनिया के सब धर्मों को ग़लत और वैदिक धर्म को सत्य मानते हैं तो आप वैदिक धर्म के चार वर्ण, चार आश्रम और विवाह व गर्भाधान आदि सोलह संस्कारों का पालन ठीक वैसे ही करें जैसे कि स्वामी दयानंद जी सिखाकर गए हैं। आप उनके उपदेश के अनुसार सुबह और शाम दोनों टाईम हवन किया करें।
यह सुनते ही आर्य समाजी फ़ौरन ग़मज़दा और डिप्रेस्ड हो जाएगा क्योंकि वह वैदिक धर्म की वर्णाश्रम व्यवस्था और उसके सोलह संस्कारों का पालन नहीं कर सकता।
वह बस दूसरे धर्म वालों से बहस कर सकता है कि दूसरों के धर्म ग़लत हैं लेकिन ख़ुद अपने धर्म के बुनियादी अनिवार्य नियमों पर नहीं चल सकता, जिन्हें वह सत्य मानता है।
वह आपसे अपने धर्म के इस दोष या गुण को छिपाता है कि वैदिक धर्म के नियमों का पालन असम्भव है। ब्रह्मचर्य आश्रम असम्भव है।
इसलिए जब एक आर्य समाजी आपसे बहस करे तो आप उसे उसके धर्म के अनुसार कर्म करने के लिए कहें। वह इसके लिए कभी तैयार नहीं होगा और इस तरह आप उसे यह रियलाईज़ करा देंगे कि वह एक ऐसे धर्म की ओर से बहस कर रहा है कि अगर वह उसे सत्य सिद्ध भी कर दे, तब भी वह उस पर चल नहीं सकता और परमेश्वर का धर्म ऐसा कभी नहीं हो सकता कि जो उसे सत्य माने, वह उस पर चल न सके।
इसलिए सभी धर्मों के नेक लोगों को मेरी यह सलाह है कि आर्य समाजियों से बेकार बहस न करें। उनसे कहें कि आप अपने धर्म पर चलकर दिखाओ। यह काम वह न कर पाएगा और फिर वह आपसे बेकार बहस भी न करेगा।
हाँ, वह अपनी पोल खुलने पर ग़ुस्से में आकर गाली गलौच कर सकता है या फिर अपनी ख़राब आदत के मुताबिक़ आपके धर्म की मज़ाक़ उड़ा सकता। जिसके लिए आर्य समाजी पहचाने जाते हैं लेकिन वह अपने धर्म पर नहीं चल सकता क्योंकि अधिकतर आर्य समाजियों के लिए वैदिक धर्म पर चलना सम्भव नहीं है।
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Tuesday, July 7, 2020

DR. ANWER JAMAL से उत्तर की आशा रखने वाले आर्य समाजी प्रश्नकर्ता में कौन कौन सी योग्यता होना आवश्यक है?

हमसे उत्तर लेने के लिए किसी आर्य समाजी लेखक में तीन बातें होनी आवश्यक हैं।
पहला ज्ञान, दूसरी हैसियत और तीसरी सभ्यता।

1. यदि वह हमारे पहले से लम्बित प्रश्नों के उत्तर दे देता है जो कि 'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा क्या पाया?' नामक पुस्तक में उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं तो हम जान लेंगे कि यह ज्ञान रखता है।
हमारे प्रश्नों का उत्तर दे दो और हमसे उत्तर ले लो। यह पुस्तक इंटरनेट पर मुफ़्त अवेलेबल है-

2. दूसरी बात यह है कि जो आदमी हमसे प्रश्न करे वह हमारे बराबर की हैसियत का हो यानि जैसे मैं अपने दीन के अनिवार्य नियमों का पालन करता हूं वैसे ही वह आर्य समाज के अनुसार वैदिक धर्म के अनिवार्य संस्कारों का पालन करता हो,
उनके विपरीत न चलता हो।

जो हमारे बराबर की हैसियत का हो,
वही हमसे प्रश्न करने का अधिकारी है।
जब ऐसा व्यक्ति प्रश्न करेगा,
हम उसे उत्तर देंगे।

जो दो समय हवन न करता हो, जो वैदिक गर्भाधान संस्कार के बजाय इस्लामी संस्कार से पैदा हुआ हो,
वह तो पहले ही आर्य समाज/वैदिक धर्म से बाहर है। उसे हमसे प्रश्न का अधिकार ही नहीं है और
अधिकतर आर्य समाजी ऐसे ही पतित और भ्रष्ट हैं।
स्वामी दयानंद जी ने चतुर्थ समुल्लास में ऐसे लोगों को बाहर निकालने की व्यवस्था दी है।
¤ हवन न करने वाले शूद्र्वत् हैं
स्वामी जी कहते हैं कि
‘इसलिए दिन और रात्रि के सन्धि में अर्थात् सूर्योदय और अस्त समय में परमेश्वर का ध्यान और अग्निहोत्र अवश्य करना चाहिए।।3।। और जो ये दोनों काम सायं और प्रातःकाल में न करे उसको सज्जन लोग सब द्विजों के कर्मों से बाहर निकाल देवें अर्थात् उसे शूद्रवत् समझें।।4।।
(सत्यार्थ प्रकाश, चतुर्थसमुल्लास, पृष्ठ सं. 65)


3. तीसरी बात, उसमें सभ्यता होनी चाहिए। वह असंसदीय भाषा का इस्तेमाल न करता हो, वह गालियाँ न बकता हो। उसे सम्मानित लोगों से यानि हमसे बात करने की तमीज़ होनी ज़रूरी है। बदतमीज़ आदमियों से समाज के सम्मानित लोग बात नहीं करते।

Monday, July 6, 2020

आर्य समाजी दूसरे धर्मों के महापुरुषों की मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं?

कारण
क्योंकि वास्तव में दूसरे धर्मों की मज़ाक़ उड़ाने वाले आर्य समाजी मूर्ख अर्थात् शूद्र होते हैं। वे अपने वैदिक धर्म पर चल नहीं सकते। वे दो टाईम डेली हवन तक नहीं करते। इसीलिए वे सदा कुंठित और निराश रहते हैं।
जब जब मैंने सोचा कि आर्य समाजी दूसरे धर्म के महापुरुषों की मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं और वे धर्म चर्चा के बीच में दूसरों को ग़ुस्सा दिलाने के लिए गंदी गालियाँ क्यों बकते हैं?
तब तब मेरी अन्तरात्मा ने मुझसे कहा: कुंठित और निराश आर्य समाजी इसलिए ऐसा करते हैं क्योंकि स्वामी दयानंद जी ने उन्हें बीच में टाँग दिया है।
देखिए कैसे?
स्वामी दयानंद जी ने उन्हें चार वैदिक आश्रमों के पालन का उपदेश दिया:
1. ब्रह्मचर्य आश्रम 2. गृहस्थ आश्रम 3. वानप्रस्थ आश्रम 4. सन्यास आश्रम
आर्य समाजी दो आश्रम ब्रह्मचर्य और सन्यास नहीं करते हैं। आर्य समाजी युवाओं को उनके पिता गुरूकुल के बजाय कान्वेंट स्कूल में लड़कियों के साथ पढवाते हैं। जहाँ उनका ब्रह्मचर्य सब नष्ट हो जाता है। दयानंद एंग्लो वैदिक कालिज (DAV College) में भी लड़के लड़कियां साथ साथ पढ़ते हैं। जोकि दयानंद जी की शिक्षा के विपरीत है। 
आर्य समाजियों से वानप्रस्थ आश्रम भी नहीं होता। गृहस्थ आश्रम उनका यूं सफल नहीं है क्योंकि आर्य समाजी दयानंद जी की बताई जटिल रीति के अनुसार चार पंडितों से गर्भाधान संस्कार के मंत्र पढ़वाए बिना, उनसे और सब वृद्धों से आशीर्वाद लिए बिना मुस्लिमों की तरह ही पत्नी को गर्भवती करते हैं। क्योंकि आसान और प्रैक्टिकल तरीक़ा यही है।
आर्य समाजी अपने धर्म के चार आश्रमों 1. ब्रह्मचर्य आश्रम 2. गृहस्थ आश्रम 3. वानप्रस्थ आश्रम 4. सन्यास आश्रम; पर नहीं चल पाते। जिसके कारण वे कुंठित और निराशा से हर समय खीझते और चिढ़ते रहते हैं। जब वे मुस्लिमों को ज़कात (दान) देते हुए और नमाज़ पढ़ते हुए या सिखों को अरदास करते हुए देखते हैं और दूसरे धर्म वालों को अपने धर्म पर चलते हुए देखते है तो उन्हें अपनी दुर्दशा पर बहुत क्रोध आता है। इसीलिए वे दूसरों के अच्छे कामों की सराहना नहीं करते बल्कि उन पर क्रोधित होकर उनका मज़ाक़ उड़ाते रहते हैं। ख़ुद को आर्य समाजी दिखाने के लिए उनके पास बस अब यही एक काम बचा है कि दूसरे धर्मों की और उनके महापुरुषों की मज़ाक़ उड़ाते रहें। वे यह भी न करें तो वे आर्य समाजी न दिखें।
इसकी असल वजह यही है कि न तो वे अपने वैदिक धर्म के चारों आश्रमों पर चलते हैं और न ही चल सकते हैं। अब वे न वैदिक धर्म पर चल सकते हैं और न उसे अव्यवहारिक कहकर छोड़ सकते हैं। आज आर्य समाजी बीच में टंगे हुए हैं।
वास्तव में अधिकतर आर्य समाजी 'आर्य' (श्रेष्ठ) ही नहीं होते बल्कि वे अनार्य और शूद्र अर्थात मूर्ख होते हैं क्योंकि जो लोग अपने धर्म पर न चलकर दूसरे धर्म के महापुरुषों को गालियाँ देते हैं, वे अपनी मूर्खता ही प्रर्दशित करते हैं।
हमारा चैलेंज
अगर वास्तव में वैदिक धर्म का पालन सम्भव है तो आर्य समाजी अपने चारों वैदिक आश्रमों और सोलह संस्कारों का पालन करके दिखाएं।

Friday, July 3, 2020

स्वामी दयानंद जी के लेखन को सत्य माना जाए तो क्या नए स्मारक नई आय का साधन बन सकते हैं?

स्वामी दयानंद जी की प्रसिद्ध पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश भारत की आर्थिक स्थिति सुधारने में बहुत बड़ी सहायता कर सकती है।
आप सब जानते हैं कि पश्चिमी देशों के लोग प्रेम और सैक्स की घटनाओं के स्मारकों को देखने के लिए टूर करते हैं। जैसे कि वे ताजमहल और अजन्ता व ऐलोरा देखने आते हैं। जिससे देश को अरबों रूपये का व्यापार और टैक्स लाभ होता है।
यदि हम ऐसे और अधिक स्मारक बनाएं तो भारत सरकार को और अधिक व्यापार व टैक्स प्राप्त होगा।

विदेशी टूरिस्टों को आकर्षित करने के लिए
हमें घोड़े के लिंग से मर चुकी और जल चुकी नारियों के प्रति विशेष आदर प्रदर्शित करने की आवश्यकता है।
ऐसी नारियों के राष्ट्रीय स्मारक बनें और उन पर डाक टिकट जारी हो।
यदि ऐसे स्मारक बनें तो पूरी दुनिया से करोड़ों लोग ऐसी वीर भारतीय नारियों के स्मारक पर नमन करने आएंगे।
जिनसे टूरिज़्म बढ़ेगा और सरकार को जीएसटी व अन्य टैक्स ताजमहल से अधिक मिल सकता है।

ऐसी एक घटना का वर्णन स्वामी दयानंद जी ने किया है:
'सुनते हैं कि एक इसी देश में गोरखपुर का राजा था। उस से पोपों ने यज्ञ कराया। उस की प्रिय राणी का समागम घोड़े के साथ कराने से उसके मर जाने पर पश्चात् वैराग्यवान् होकर अपने पुत्र को राज्य दे, साधु हो, पोपों की पोल निकालने लगा।'
-सत्यार्थ प्रकाश 11वाँ समुल्लास
ऐसी सभी बलिदानी वीर आर्य रानियों के नाम और उनके गौरवशाली इतिहास को विश्व के सामने लाना भारत की आर्थिक दशा सुधारने की दृष्टि से आवश्यक है। इससे उनका बलिदान भी सबके सामने आ सकेगा।

नए स्मारक नई आय का साधन बनेंगे।
मैं स्वामी दयानंद जी के इस रहस्योद्घाटन को राष्ट्र हित में आप जैसे विद्वानों को विचार हेतु समर्पित करता हूं।
हम सबको सांप्रदायिक संकीर्णता से ऊपर उठकर राष्ट्र हित में इस पर विचार करने की आवश्यकता है।