सवालः क्या आपको यक़ीन है कि मरने के बाद आप जन्नत में जाएंगे?
हिन्दू भाई आवागमन को मानते हैं और ईसाई भाई मूल पाप को मानते हैं। इसलिए वे हरेक आदमी को पापी मानते हैं।
मुस्लिम आवागमन और मूल पाप के सिद्धान्त को नहीं मानते लेकिन वे भी लोगों को यही बताते हैं कि तुम गुनाहगार हो।
मान्यताओं के अन्तर के बावुजूद हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई प्रचारक लोगों को सैकड़ों साल से यह एक बात ज़रूर बताते हैं कि ‘तुम पापी हो. तुम ईश्वर अल्लाह यहोवा के भयानक दण्ड के भागी हो।’
सैकड़ों और हज़ारों साल से ये सबको लाखों बार यह बता चुके हैं और इन पर विश्वास रखने वालों को इस बात का पक्का यक़ीन आ चुका है कि ‘हम सब पापी हैं. हम सब अपने पापों के कारण दण्ड के भागी हैं।’
हर नगर, हर गली और हर घर में पापी ही पापी।
यह एक एवरग्रीन बात है। इसे आज कह दें तो सच और दो हज़ार पहले किसी ने कहा तो तब सच और अगर पाँच हज़ार साल पहले किसी ने कहा तो तब भी सच। मक्का के लोगों से कह दो तो सच, काशी में कह दो तो सच और वेटिकन में कह दो तो सच।
इस पाप से मुक्ति कैसे मिले?
इसे बताने वाले एक्सपर्ट भी हर गली में हैं। मार्गदर्शन और सलाहें बहुत हैं।
आप यूं कर लें और आप वूं कर लें। इससे आपका रब आपसे राज़ी हो जाएगा। अगर आपने ऐसा न किया तो अल्लाह आपको आग में जलाएगा और दुनिया में भी सख़्त अज़ाब देगा। देखो यह बात इस किताब में यहाँ लिखी है।
मैं इन सब प्रचारकों की बहुत इज़्ज़त करता हूं लेकिन किसी की इज़्ज़त का तक़ाज़ा यह नहीं है कि मैं अपने अन्जाम के बारे में सोचना बंद कर दूं और सब कुछ ‘शायद’ के हवाले कर दूँ।
मैंने ऐसे ज्ञानियों से पूछा कि आपसे रब राज़ी हो गया है?
बस वे ख़ामोश रह जाते हैं। कहते हैं कि यह तो मरकर ही पता चलेगा।
मरकर पता चला कि रब राज़ी न था तो वहां से वापस तो आ नहीं सकते।
क्या मैं इतना बड़ा ख़तरा मोल ले सकता हूँ कि अपने अन्जाम को उस दिन पता करूँ, जिस दिन अल्लाह वाहिदुल क़ह्हार के सामने उसकी इजाज़त के बिना कोई बोल न सकेगा। जिस जगह से कोई वापस न आ सकेगा कि वह अपने कर्म को बदल सके ताकि अन्जाम बदल जाए। हमारे पास ‘आज और अब’ है, जो भी हमें करना है, हमें वह आज और अब में ही करना है।
मौत एक सच है। जिससे हरेक धर्म-मत के इंसान को गुज़रना ही पड़ता है।
मौत के बाद सबके साथ जो कुछ होना है, उसे सबके धर्म ग्रन्थों ने ख़ूब खोलकर बता दिया है।
जो भी आपको रब के बारे में ज़्यादा जानकारी देता हुआ मिले, आप उससे बस यही एक सवाल पूछें कि अपने धर्म ग्रन्थों से कोई ऐसी बात बता दें कि मुझे दुनिया में ही इस बात का यक़ीन हासिल हो जाए कि मेरा रब मुझ पर मरने के बाद रहम करेगा और वह मुझे माफ़ कर देगा!
आपको इसका सही जवाब वही देगा, जो रब की और उसके कलाम की मारिफ़त रखता है। बाक़ी लोग सिर्फ़ टामक टुइंय्या मारते रहते हैं। ये टामक टुइंय्या मारने वाले दावते दीन का काम कर रहे हैं। ये लोग अल्लाह की, उसकी ज़ात (अस्तित्व) और सिफ़ात की मारिफ़त नहीं रखते क्योंकि ये उसके तक्वीनी (नेचुरल लाॅ) और तशरीई (शरई) क़ानून को नहीं जानते। ये अनाड़ी मुबल्लिग़ रब के नाम के नाम से लोगों में रोज़ ब रोज़ रहमत के बजाय दहशत ज़्यादा फैला रहे हैं।
हिन्द की फ़ौज के हारने में एक बड़ी वजह यह बताई जाती है कि फ़ौज के हाथी दुश्मनों पर हमला करने के बजाय पलटकर भागते थे और अपने ही फ़ौजियों को कुचलकर दुश्मन की फ़तह को आसान बना देते थे।
ये मुबल्लिग़ इंसानी समाज के लिए, ख़ास तौर से मुस्लिम समाज के लिए फ़ौज के ऐसे हाथी ही साबित हो रहे हैं। पिछले दिनों मशरूम की तरह बहुत से दावती मर्कज़ वुजूद में आए हैं। उनमें से कोई तो साल तक बता देता है कि मुस्लिम इस साल में नष्ट हो जाएंगे। जबकि उस साल में वे डूबेंगे, जो हज़रत नूह (जल प्लावन वाले मनु) के विरोधी सरदारों की तरह अमल करते हैं।
हिकमत से हटकर अल्लाह के अज़ाब से डराना ओवरडोज़ हो चुका है। डरते डरते लोगों का हाल यह हो गया है कि अब उन्हें डराओ तो वे डरते नहीं। उनका दुआओं में रोना भी एक रस्म बनकर रह गया है। दुआ ख़त्म होते ही रोने वाला बिल्कुल नाॅर्मल हो जाता है।
उनकी दुआ इसी बात से शुरू होती है कि
‘हम गुनाहगार हैं, सियाहकार हैं। हम गुनाहों के समन्दर में ग़र्क़ हैं। हम बदबख़्त हैं। हम मोहताज हैं।’
ये तौबा करके इन सबसे निकल क्यों नहीं आते?
ताकि अपने रब के शुक्र से दुआ शुरू करें, जैसा कि सूरह फ़ातिहा में रब ने ख़ुद सिखाया है।
लोग कहेंगे कि हमने अपने बड़ों को ऐसे ही दुआ करते सुना है।
ठीक है। मैं उन सब बड़ों की इज़्ज़त करता हूँ और कहता हूँ कि जब कोई गुनाह हो जाए या दिल में ऐसा कहने की प्रेरणा उठे तो आप ऐसा ज़रूर कहें। ऐसा क़ुरआन में और मस्नून दुआओं में आया है लेकिन इसका रट्टा हर दुआ में न मारें।
आप रब के शुक्र से अपनी दुआ शुरू करके देखें। आपको कुछ अलग रूहानी कैफ़ियत महसूस होगी। आपको अपने रब की ज़्यादा मारिफ़त नसीब होगी। आप अपने रब के कलाम में तदब्बुर (सोच विचार) करते रहे तो आप जान लेंगे कि रब ने इसमें हिदायत और मग़फ़िरत से जुड़े क़ानून को खोलकर बयान किया है, जो कि अटल है।
आप ख़ुद माफ़ी के यक़ीन तक आ सके तो आप दूसरों को भी रब से माफ़ी पाने का यक़ीनी क़ानून बता सकते हैं, जिसमें कोई अगर मगर नहीं है। इसी बात को बताने का नाम दीन की दावत ओ तब्लीग़ करना है।
यही बात आप हिन्दू भाईयों को वेद और गीता से और ईसाईयों को बाइबिल में बताए गए शाश्वत नियमों की दलील के साथ बता सकते हैं। वे यक़ीन करेंगे क्योंकि आपकी दलील मज़बूत है और किताब उनकी अपनी है।
वे शाश्वत नियम क्या हैं, जो वेद, बाइबिल और क़ुरआन तीनों में हैं, जिनसे इन्सान को जीते जी ही माफ़ी का यक़ीन हासिल होता है?
मैं इन्हें बहुत साल तलाश करता रहा। मुझे उम्मीद है कि आप भी इन्हें ज़रूर तलाश करना चाहेंगे।
मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मैं आपसे दुआ की इल्तिजा करता हूँ।
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