Friday, September 14, 2018

Qur'an और Sunnat से अमीर बनने के सच्चे क़िस्से Dr. Anwer Jamal

सवाल: जनाब इसे क्या कहेंगे कि किसी ग़रीब मुसलमान को सामने से गुज़रते  देखकर यह तसव्वुर किया जाता है कि देश में सारी समस्याओं की जड़ यह मुस्लिम है। चाहे वह मुस्लिम कितना ही शुक्र करता हो। -मुश्ताक़, दिल्ली

जवाब: जो लोग ऐसा करते हैं, उनके दिलों में नफ़रत का रोग है। वे राजनैतिक कारणों से ऐसा करते हैं। हम मुसलमानों की ग़रीबी के लिए भी उन्हें और नेताओं को दोष दे सकते हैं लेकिन यह भी हक़ीक़त है कि ऐसा करने से मुस्लिम का हाल नहीं बदलेगा और न ही उनका ख़याल बदलेगा। दूसरों ख़्याल बदलने के लिए मुस्लिम को अपना हाल बदलना होगा।
पवित्र क़ुरआन के नियमों पर चलकर मुस्लिम अपना हाल बदल सकता है। पवित्र क़ुरआन अमीरी और बरकत के नियम सिखाता है। जिनमें एक नियम 'शुक्र करना' है।
*शुक्र* करने वाला आदमी ईसाई या हिन्दू भी होगा तो वह ग़रीब नहीं रह सकता और वह ज़रूरत की चीज़ों से महरूम नहीं रह सकता।
तब शुक्र करने वाला मुस्लिम कैसे ग़रीब रह जाएगा।
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जो लोग ग़रीब हैं और मुस्लिम भी हैं और ज़ुबान से शुक्र करते हैं;
आप उनसे पूछना।
वे आपको ग़रीब, मुस्लिम और शुक्र; इन तीन अल्फ़ाज़ का मतलब भी न बता पाएंगे।
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दीन में इस का नाम जहालत है।
मुस्लिम अपनी इसी जहालत की वजह से ग़रीब है।
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आज दुनिया में वेलनेस कोच हैं, जो ग़रीब को अमीर बनना सिखाते हैं। वे फ़ीस के रूप लाखों रूपए लेते हैं। उन्हें यह फ़ीस उनसे मदद लेने वाली सरकारें और संस्थाएं देती हैं।
मैं एक वेलनेस कोच हूँ। मैं ग़रीबों बिल्कुल मुफ़्त में अमीरी के नियम सिखाता हूँ। इन नियमों पर चलकर मैंने काफ़ी दौलत कमाई है। अल्हम्दुलिल्लाह!!!
मैं कई ग़रीबों को शुक्र करना सिखाकर अमीर बना चुका हूं।
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*शुक्र का मतलब* है क़द्र करना!
अल्लाह की क़द्र करना
अल्लाह के ज्ञान 'पवित्र क़ुरआन' और उससे पहले आ चुके ज्ञान की क़द्र करना, जो कल्याणकारी है।
अल्लाह के क़ानून की क़द्र करना
अल्लाह की जो मदद हमें हर वक़्त मिली हुई है, उसकी क़द्र करना
अल्लाह ने हमें जो दिल, दिमाग़, आँख, नाक, कान, हाथ, पैर और दूसरे organs दिए हैं, जो ज़िन्दगी और वक़्त दिया है; उसकी क़द्र करना।
हमें जिस शहर या बस्ती में, जिन लोगों के बीच और जिन रिश्तों के साथ पैदा किया है; उनकी क़द्र करना।
जो वसाएल means दिए हैं, उनकी क़द्र करना।
इन सब पर तवज्जो देना, इनसे अपनी और सबकी भलाई में बेहतरीन काम लेना।
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कुछ साल पहले  मेरे पास एदल सिंह ग़रीबी और भारी क़र्ज़ की शिकायत लेकर आया। वह एक मज़दूर और सरकारी चौकीदार था। उसने दो बेटों की शादी क़र्ज़ लेकर की थी। वे दोनों अलग हो गए थे। बाक़ी छ: बच्चे और थे। मैं ज़ुहर की नमाज़ पढ़कर बाहर निकला तो वह आकर मेरे पैरों में बैठ गया था।
एदल सिंह ने मुझसे अपनी ग़रीबी और क़र्ज़दारी की शिकायत की।
मैंने उसे कहा कि अल्लाह ने अपने नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भेजकर दुनिया की हर समस्या को खत्म कर दिया है। अल्लाह ने ग़रीबी को भी तभी ख़त्म कर दिया था। अब दुनिया में वही ग़रीब रहेगा जो पैग़म्बर साहिब की बात पर ध्यान न देगा।
पैग़म्बर साहिब ने बताया है कि
अल्लाह ने दुनिया में दस हिस्से बरकत उतारी है और उस बरकत के नौ हिस्से तिजारत (व्यापार) में रखे हैं। 
(भावार्थ हदीस)
मैंने उसे अपने गांव में अपने घर के बाहर सब्ज़ी बेचने के लिए कहा।
इससे वह मज़दूर से व्यापारी में बदल रहा था। जिससे वह तंगी से निकलकर उस बड़े मैदान में जा रहा था, जिसमें 90% बरकत है।
उसने मेरी सलाह मानकर सब्ज़ी बेचना शुरू कर दी।
6 महीने में उसके चेहरे पर प्रोटीन की परतें भर गईं। वह ख़ुशहाल नज़र आने लगा।
जब मैंने उसका हाल बदला हुआ देखा तो उससे पूछा कि
एदल सिंह! अब क्या हाल है?
उसने अपनी पिंडलियों पर हाथ रखकर ख़ुशी के साथ बताया कि 'गुरू जी, मैं यहां तक तिर गया हूं।' यह गांव की एक कहावत है, जो खेत में पिंडलियों तक पानी भरने पर बोलते हैं और इसका मतलब काम पूरा अंजाम पाना होता है।
उसने यह भी कहा कि मैं पहले की तरह मज़दूरी कर रहा हूं और मेरे घर के बच्चे सब्ज़ी बेच रहे हैं।

पहले जो बच्चे सिर्फ़ ख़र्च कर रहे थे, वे अब कमाने वालों में बदल चुके थे। गाँव में उसके परिवार की इज़्ज़त भी बढ़ गई थी। कई ज़मीदार किसानों पर अब उसका क़र्ज़ चढ़ गया था। जो ज़मींदार पहले उसे समस्या मानते थे, वे अब उसे समाधान मानने लगे थे।
एदल सिंह के पास सब कुछ पहले से मौजूद था। हमने सिर्फ़ उसका नज़रिया बदला था। उसे अपना और लोगों का और मौकों का ज़्यादा अच्छा इस्तेमाल करना सिखाया। हमने उसे ज़ुबानी और हक़ीक़ी शुक्र सिखाया था, जो सब नबियों और सत्पुरूषों की तालीम है।
उसने ज़्यादा क़द्र की, उसने ज़्यादा शुक्र किया। रब ने उसे बरकत दी। उसका क़र्ज़ उतर गया और उसकी ग़रीबी ख़त्म हो गई। अब वह अमीरी में तरक़्क़ी कर रहा है।
ऐसे ही हर आदमी अपनी ग़रीबी रब का शुक्र करके यानि उसके नियम का पालन करके दूर कर सकता है।
हरेक आदमी अपने घर के हरेक मेम्बर को कुछ चीज़ बेचना सिखाए ताकि रब उसे बरकत दे। जब उसे रब की बरकत मिलेगी तो उसकी ग़रीबी दूर होनी तय है।
इंटरनेट के दौर में व्यापार बहुत आसान हो चुका है। आज आप बिना पूँजी और बिना दुकान के भी अच्छा व्यापार कर सकते हैं। इसके लिए कई कोर्स भी अवेलेबल हैं। जिन्हें आप कर सकते हैं।
पैग़म्बर मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अनाथ थे। जब वह जवान हुए तो वह पार्टनरशिप में व्यापार करने लगे। पैग़म्बर मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनकी पत्नी ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा दोनों इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट करते थे। दोनों के पास बहुत दौलत थी। दोनों ने यह सारी दौलत भूखे, नंगे, बीमारों, ग़ुलामों और हर धर्म के ज़रूरतमंदों पर ख़र्च कर दी थी। एक बयान के मुताबिक़ पैग़म्बर साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास दूसरे माल के अलावा 25,000 दीनार थे। जो कि लगभग 55 किलो सोना बैठता है। यह सब तिजारत और शुक्र की बरकत है। जिसकी शिक्षा पैग़म्बर मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सबको देते हैं।

अभी हमने सिर्फ़ व्यक्तिगत लेवल पर काम करने‌ की बरकत बताई है।
दौलत पर शुक्र करने में यह भी शामिल हैं कि आप अपनी जायज़ तरीक़े से कमाई दौलत का एक हिस्सा ज़रूरतमंदों और ग़रीबों की भलाई में ख़र्च करें। आपका रब उसे कुछ वक़्त बाद दस गुना बढ़ाकर लौटाएगा।
 مَن جَاءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ عَشْرُ أَمْثَالِهَا
जो कोई नेकी लेकर आएगा, उसे उसका दस गुना बदला मिलेगा. -पवित्र क़ुरआन 6:160

जब आप अपनी दौलत को ज़रूरतमंदों और ग़रीबों को देंगे तो यह दौलत कई तरह से बढ़ने लगेगी। आपका इलाज और झगड़ों और हादसों में लगने वाला माल भी बचेगा। जब पूरा समाज मिलकर यह मुबारक अमल करता है तो बहुत ज़्यादा बरकत होती है।
पैग़म्बर साहिब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथियों ने ऐसा किया और उन सबकी दौलत बहुत ज़्यादा बढ़ गई। यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है।

इंडिया के बोहरा मुस्लिम समाज की आर्थिक मज़बूती की वजह उनकी तिजारत और ज़कात ही है। जिसे आप आज भी देख और सीख सकते हैं। मुझे एक दोस्त ने बताया है कि 

दाऊदी बोहरा समाज की सबसे बड़ी कामयाबी का कारण उनकी आर्थिक मजबूती है ।। और यह आर्थिक मजबूती इस लिए है क्योकि इनके यहां ज़कात का सिस्टम है ।। और हर दाऊदी बोहरे के लिए अनिवार्य है कि वह अपनी ज़कात अपनी संस्था को ही देगा ।।। 

इस्लाम में ज़कात उन लोगो पर लागू होती है जिनके पास 7.5 तोला सोना से अधिक संपत्ति है। उन्हें अपनी कुल संपत्ति में से 2.5 फीसद ज़कात ग़रीबों को देना अनिवार्य है  ।।

उसके बाद दाऊदी बोहरा में ज़कात बांटने का सिस्टम, distribution of wealth का सिस्टम भी इतना बढ़िया है कि कोई भी मजबूर या लाचार दाऊदी बोहरा उनके सेंटर पर जाएगा तो उसकी उचित मदद पूरी तरह से की जाती है । जिससे कि उनके समाज का हर तबक़े का आदमी अपने पैरों पर खड़ा होता है । 

एक इंटरनेट की रिपोर्ट के मुताबिक़ अगर दुनिया के सिर्फ़ top most 400  अमीर अपनी कुल संपत्ति से वार्षिक सिर्फ़ 2.5 फीसद माल दुनिया के दूसरे लोगों को दे दें तो 1. food 2. medical 3. house, 4. education 5. water की समस्या को तक़रीबन खत्म किया जा सकता है। जिससे समाज का हर व्यक्ति वैसे ही ख़ुशहाल रहेगा जैसे कि आप मुस्लिम बोहरा समाज को देखते हो । 

पैग़म्बर मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने के बाद हज़रत उमर की ख़िलाफत में एक भी शहरी ऐसा न बचा था जो 7.5 तोले से कम संपत्ति रखता हो। इसकी वजह इस्लाम में 7.5 तोले से अधिक संपत्ति रखने वालों से ज़कात लेकर उसे ज़रूरतमंदों और ग़रीबों में distribute करना है।

हजरत मुआज़ र. को जब यमन का गवर्नर बनाकर भेजा गया तो उनके गवर्नेंस में मात्र 3 साल में सारे शहरी 50 तोला से अधिक संपत्ति वाले बन गए ।  जब उनसे पूछा गया कि यह कैसे हुआ ? तो उन्होंने बताया कि मैंने पहले साल सभी की basic need जैसे रोटी कपड़ा मकान को पूरा करने के बाद जो money बची उससे लोगो मेंसे जिन लोगों का जो हुनर था, उन्हें उसी तरह के उत्पादन करने का सामान मुहैय्या करवाया और इसी तरह 3 साल लगातार करता गया ।। जिससे लोग manufacturer बन गए जिससे वे खुद ही business man बन गए और वे इतना उत्पादन करने वाले बन गए कि export करने लगे। जिससे उनको बेहतर से बेहतर आमदनी हुई  और सिर्फ़ 3 साल में हर शहरी अमीर था कोई कम और कोई ज़्यादा।

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