Tuesday, January 8, 2019

Tibbe Nabawi par Aitraz aur unke jawab Dr. Anwer Jamal

हमारे इस लेख को बहुत सराहा गया , अल्हम्दुलिल्लाह
इसी के साथ इस पर कुछ सवाल भी आये हैं।  अब्दहु साहिब ने यह लिखा है
 محترم بھائی! آپکی دعوتی کاوشوں اور تجربات کی ہماری نظر میں بڑی قدر و منزلت ہے.
 با ایں ہمہ، "طب نبوی" پر آپ کا اصرار محل نظر ہے... یہ اصطلاح خود مختلف فیہ ہے.. بقول شخصے..... 
*"طب نبوی کی اصطلاح نبوت مصطفوی کے خلاف سازش ہے، آپ طبیب نہیں، نبی تھے. اگر آپ کی طرف منسوب کوئی علاج سائنسی طور پر غلط ثابت ہو جائے تو طب نبوی قرار دینے سے نبوت مشکوک ہو جائے گی"* 
جسمانی امراض کے تعیین و تشخیص اور ان کے علاج کی وضاحت قرآن و حدیث نبوی کے بنیادی و اساسی مقاصد میں شامل نہیں..

سب سے پہلے یہ بات ذہن میں رہے کہ نبی اکرم صل اللہ علیہ و سلم کو بطور ہادی مبعوث کیا گیا تھا بطور طبیب اور ڈاکٹر نہیں. صحت کے حوالے سے جن امور کی بہت اہمیت تھی آپ نے انہیں بطور شریعت متعارف کروا دیا مثلاً اعضاء وضو کا دھونا یاغسل کرنا. دیگر امور میں آپ اپنے دور کے تجربات کو زیر استعمال لاتے تھے... آپ نے کسی بیماری میں کوئی علاج کیا یا کسی دوسرے کو بھی بتایا ہوگا تو متداول علاج کے طور پر نہ کہ پیغمبرانہ حیثیت سے. تجربی سائنس کے بارے میں آپ کا ارشاد 
*انتم اعلم بأمور دنیا کم*      تم اپنے دنیوی امور مجھ سے بہتر جانتے ہو.... 

اس عمل کا افسوس ناک پہلو یہ ہے کہ ہم نے رسول اللہ صل اللہ علیہ و سلم سے منسوب ہر ہر شے کو جنس بازار بنا دیا ہے. نیز جب اس دور کے کچھ معالجات کو طب نبوی کے طور پر مقدس قرار دے کر جزو ایمان بنالیا گیا اور میڈیکل سائنس نے اسےغلط قرار دے دیا تو کیا آپ کے دور کے طبی معمولات کو درست ماننا ایمان کا تقاضا ہوگا؟ ، اس طرح ہم ایک ہادی اور شارع کو طبیب کی معمولی سطح پر لا کر توہین کے مرتکب نہیں ہونگے.؟ 
کیا معیار ایمان کی نئ تعبیر نہیں کرنا پڑے گی.؟

*مولانا وحید الدین خاں صاحب* نے بھی ایک جگہ  لکھا ہے----  
- ابن خلدون اور شاہ ولی اللہ دہلوی کا کہنا ہے کہ طبی روایات کی شرعی حیثیت نہیں - یہ اس زمانہ کے حکماءحارث بن کلدہ وغیرہ کے تجرہے ہیں جن کو رسول اللہ صلی اللہ
علیہ وسلم نے عرب عادت کے تحت بیان فرمایا ۔.. 
 *حقیقت یہ ہے کہ طب نبوی عربی ہے , نہ کہ الہامی معنوں میں طب نبوی* ۔

अब हम इन ऐतराज़  जवाब  देते  हैं 
محترم بھائی! آپکی دعوتی کاوشوں اور تجربات کی ہماری نظر میں بڑی قدر و منزلت ہے.
जवाब: शुक्रिया, अल्लाह आपको इस क़द्रदानी का बदला ज़रूर देगा।
با ایں ہمہ، "طب نبوی" پر آپ کا اصرار محل نظر ہے... یہ اصطلاح خود مختلف فیہ ہے.. بقول شخصے.....
*"طب نبوی کی اصطلاح نبوت مصطفوی کے خلاف سازش ہے، آپ طبیب نہیں، نبی تھے. اگر آپ کی طرف منسوب کوئی علاج سائنسی طور پر غلط ثابت ہو جائے تو طب نبوی قرار دینے سے نبوت مشکوک ہو جائے گی"*
शख़्से से मुराद नामालूम शख़्स है, जिसकी मारिफ़ते दीन और तिब्बी उलूम की समझ ख़ुद क़ाबिले ग़ौर है।
ऐसे लोगों के शुकूक वसवसों की हैसियत से ज़्यादा कुछ नहीं होते।
उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार किया है और सुबूत में अल्लाह और उसके रसूल के क़ौल से कोई दलील नहीं दी है। अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं कियाऔर ख़ुद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी अपने तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं किया 
इसलिए उसका क़ौल क़ाबिले रद्द है।
उस नामालूम आदमी का 'अगर' लगाकर एक अंदेशा ज़ाहिर करना भी उसके तिब्बे नबवी में साईंसी नज़र से कोई कमी तलाशने में आजिज़ और बेबस रह जाने की दलील है। अगर उसे कोई कमी मालूम होती तो वह उसे दलील के तौर पर पेश करता।
फिर भी अगर किसी हदीस में इलाज के तौर पर बताया गया कोई तरीक़ा ग़लत साबित हो जाए तो उस हदीस के साथ वही मामला किया जाएगा जो कि ऐसी हदीसों के साथ उलमा करते हैं जिनके मतन में ग़लती साबित हो जाती है।
जब क़ानूने शरीअत और तमद्दुन (सभ्यता) के सब्जेक्ट पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अथारिटी माना जाता है और उस सब्जेक्ट पर कही गई किसी हदीस के मतन में ग़लती पाए जाने पर उस हदीस की तहक़ीक़ और तावील की जाती है और नबी स. की नुबूव्वत में कोई शक नहीं आता तो फिर इलाज के सब्जेक्ट पर आई किसी हदीस के मतन में ग़लती को सुनने और नक़्ल करने वाले की ग़लती माना जाएगा, न कि नबी स. की।
جسمانی امراض کے تعیین و تشخیص اور ان کے علاج کی وضاحت قرآن و حدیث نبوی کے بنیادی و اساسی مقاصد میں شامل نہیں..
इस ऐतराज़ में सिर्फ़ जिस्मानी बीमारियों को क़ुरआन और हदीसे नबवी के बुनियादी मक़सद से बाहर माना गया है। यानि ऐतराज़ करने वाला ख़ुद क़ल्बी और नफ़्सियाती और नज़रयाती बीमारियों को क़ुरआन और हदीसे नबवी के बुनियादी मक़सद में शामिल मानता है और अल्लाह ने इसी मक़सद के लिए क़ुरआन नाज़िल किया है। अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन को 'शिफ़ा' क़रार दिया 
يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءَتْكُم مَّوْعِظَةٌ مِّن رَّبِّكُمْ وَشِفَاءٌ لِّمَا فِي الصُّدُورِ وَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِينَ ﴿٥٧
ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से उपदेश औऱ जो कुछ सीनों में (रोग) है, उसके लिए शिफ़ा (रोगमुक्ति) और मोमिनों के लिए मार्गदर्शन और दयालुता आ चुकी है
Holy Qur'an 10:57
इससे तो ऐतराज़ करने वाला इक़रार करेगा कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने पवित्र क़ुरआन नाज़िल किया और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अरब के लोगों का और अपने ताल्लुक़ में आने वाली दूसरी कौमों के लोगों के दिल के और नज़रिये के भयानकतम रोगों का कामयाब इलाज किया। जिस नबी ने ये कामयाब इलाज किए, उसे मनोचिकित्सक तो मानना ही पड़ेगा। मनोचिकित्सक भी तबीब और चिकित्सक ही माना जाता है। इससे भी साबित होता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक माहिर तबीब थे और उन्होंने पवित्र क़ुरआन से लोगों का इलाज किया जो कि अरब लोगों की आम आदत न थी बल्कि अरब लोग तो पवित्र क़ुरआन से अपना इलाज कराने को तैयार ही न थे।
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पवित्र क़ुरआन को 'दवा' फ़रमाया है:
'ख़ैरुद्-दवाइल्-क़ुरआन (हदीस, तिब्बे नबवी लेखक: इब्ने क़य्यिम रह
जब क़ुरआन 'दवा' है तो नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चिकित्सक (तबीब, डाक्टर) हैं ही।
سب سے پہلے یہ بات ذہن میں رہے کہ نبی اکرم صل اللہ علیہ و سلم کو بطور ہادی مبعوث کیا گیا تھا بطور طبیب اور ڈاکٹر نہیں. صحت کے حوالہ سے جن امور کی بہت اہمیت تھی آپ نے انہیں بطور شریعت متعارف کروا دیا مثلاً اعضاء وضو کا دھونا یاغسل کرنا. دیگر امور میں آپ اپنے دور کے تجربات کو زیر استعمال لاتے تھے... آپ نے کسی بیماری میں کوئی علاج کیا یا کسی دوسرے کو بھی بتایا ہوگا تو متداول علاج کے طور پر نہ کہ پیغمبرانہ حیثیت سے. تجربی سائنس کے بارے میں آپ کا ارشاد
*انتم اعلم بأمور دنیا کم*      تم اپنے دنیوی امور مجھ سے بہتر جانتے ہو....
जिस्मानी सेहत पर वुज़ू, ग़ुस्ल, रोज़ा, नमाज़, ज़िक्र, तिलावत, जल्दी सोने, सूरज निकलने से पहले जागने, पाक चीज़ें खाने और नशे जैसी हराम चीज़ों से बचने का असर पड़ता है। ये सब दीन हैं। यह दीन अरबों की आम आदत न थी। इन सब कामों को अरबों की आदत बना देना कभी कोई अरब चिकित्सक न कर सका। ये सब काम नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पैग़म्बर की हैसियत से ही किए।
اس عمل کا افسوس ناک پہلو یہ ہے کہ ہم نے رسول اللہ صل اللہ علیہ و سلم سے منسوب ہر ہر شے کو جنس بازار بنا دیا ہے. نیز جب اس دور کے کچھ معالجات کو طب نبوی کے طور پر مقدس قرار دے کر جزو ایمان بنالیا گیا اور میڈیکل سائنس نے اسےغلط قرار دے دیا تو کیا آپ کے دور کے طبی معمولات کو درست ماننا ایمان کا تقاضا ہوگا؟ ، اس طرح ہم ایک ہادی اور شارع کو طبیب کی معمولی سطح پر لا کر توہین کے مرتکب نہیں ہونگے.؟
کیا معیار ایمان کی نئ تعبیر نہیں کرنا پڑے گی.؟
चिकित्सक की हैसियत को मामूली मानना ही एक ग़लत बात है। जबकि अल्लाह ने क़ुरआन में इंसानी जान बचाने को बड़ी नेकी क़रार दिया है और चिकित्सक का काम इंसानी जान बचाना ही है। चिकित्सक की हैसियत क्या होती है, यह बात आप किसी मनोरोगी के घरवालों से पूछें। इतनी अज़ीम हैसियत एक हादी में न होती तो ताज्जुब होता।
तबीब होना एक मामूली सिफ़त कैसे समझी जा सकती है जबकि एक हदीस में अल्लाह को तबीब बताया गया है।
अन्तर्-रफ़ीक़ वल्लाहु तबीब (हदीस
आप रफ़ीक़ हैं और अल्लाह तबीब (चिकित्सक) है।

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को शारैअ यानि शरीअत बनाने वाला कहा जा सकता है, जैसा कि ऐतराज़ करने वाला कह रहा है? इस पर आलिमों की राय अलग अलग है।
तिब्बे नबवी दीन का जुज़ है तो उसे मुक़द्दस मानने में क्यों ऐतराज़ है
किस किस चीज़ को जिन्से बाज़ार बनाया गया और इलाजे नबवी में क्या ग़लत निकला
यह बताया ही नहीं गया है।
*مولانا وحید الدین خاں صاحب* نے بھی ایک جگہ  لکھا ہے---- 
- ابن خلدون اور شاہ ولی اللہ دہلوی کا کہنا ہے کہ طبی روایات کی شرعی حیثیت نہیں - یہ اس زمانہ کے حکماءحارث بن کلدہ وغیرہ کے تجرہے ہیں جن کو رسول اللہ صلی اللہ
علیہ وسلم نے عرب عادت کے تحت بیان فرمایا ۔..
*حقیقت یہ ہے کہ طب نبوی عربی ہے , نہ کہ الہامی معنوں میں طب نبوی* ۔
इब्ने ख़ल्दून और शाह वलीउल्लाह रहमतुल्लाहि अलैह ने कहीं नहीं लिखा है कि तिब्बी रिवायतों की शरई  हैसियत नहीं है। उनकी तरफ़ से यह बात कहना ग़लत है।
इब्ने ख़ल्दून और शाह वलीउल्लाह रहमतुल्लाहि अलैह के लिखे हुए को नक़्ल करें ताकि हम उसे सबके सामने क्लियर करें। हकीमों की हिक्मत और उनके मुफ़ीद तजुर्बात को आगे बयान करके नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इल्म की क़द्र की है और हमें भी इल्म की क़द्र करना सिखाया है।
दूसरे लोगों की मुफ़ीद हिकमत को इख़्तियार करना नबियों की शान के ऐन मुताबिक़ है, ख़िलाफ़ नहीं है। दुनिया में सभी चिकित्सक ऐसा करते हैं। नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसा किया है तो उनका ऐसा करना चिकित्सकीय परंपरा के मुताबिक़ ही है।
-ज़्यादा जानकारी के लिए यह किताब पढ़ें
तिब्बे नबवी को भुलाने के नुक़्सान
आज उलमा ए उम्मत जिस एक बात पर मुत्तफ़िक़ हैं, वह यह है कि यह दौर दीन के फ़हम के ज़वाल (पतन) का दौर है। आज दीनी इल्म के नाम पर मदरसों तक में महदूद इल्म दिया जाता है जोकि दीन की ज़ाहिरी इबादतों और रस्मों से मुताल्लिक़ होता है। इल्म की बातिनी कैफ़ियत ‘ख़ौफ़े ख़ुदा’ का उसमें होना ज़रूरी नहीं माना जाता। उसमें इख़्लास, यक़ीन और तक़वा जैसी सिफ़तों के बिना भी उसे मदरसों से आलिम की सनद दे दी जाती है। यह इल्मी ज़वाल की निशानी है। इल्मी ज़वाल के दौर में तिब्बे नबवी का मुक़द्दस और इल्हामी इल्म भी लोगों की लापरवाही का शिकार हो गया है।
अब यही लोग आलिम हैं और यही इमाम हैं। ये लोग ईरानी और मुग़लई खाने खाकर और अंग्रज़ी कोल्ड ड्रिंक्स पीकर बीमार पड़ते रहते हैं। ख़ून में तेज़ाब ज़्यादा होने से कैल्शियम कम हो गया है। अब मस्जिदों में कुर्सी पर बैठकर नमाज़ पढ़ने वाले भी पहले से ज़्यादा नज़र आने लगे हैं, जबकि नमाज़ और क़ुरआन में शिफ़ा है। लेकिन ये लगातार बरसों नमाज़ और क़ुरआन पढ़ते रहते हैं और इन्हें शिफ़ा नसीब नहीं होती।
इन आलिमों को कोर्स में तिब्बे नबवी पढ़ाई गई होती तो ये बहुत कम बीमार पड़ते और जब कभी बीमार पड़ते तो अपना इलाज नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरह ख़ुद कर लिया करते या फिर अपने से बड़े किसी दूसरे आलिम से करा लिया करते। 
तिब्बे नबवी को ग़ैर ज़रूरी समझने का बुरा अन्जाम मैंने देवबन्द में यह देखा है कि मौलवी साहिबान तरह तरह की बीमारियों के शिकार होकर डा. अग्रवाल और डा. जैन से इलाज कराते हैं। जबकि होना इसका उल्टा चाहिए था और होता भी है। जो उलमा ए इस्लाम इख़लास, यक़ीन, तक़वा और ख़ौफ़े ख़ुदा की सिफ़त रखते हैं और तिब्बे नबवी का इल्म रखते हैं, उनके पास डाक्टर अपना इलाज कराने आते हैं। जिस मर्ज़ का इलाज ऐलोपैथी में नहीं होता, वे उस मर्ज़ से उनके पास आकर शिफ़ा पाते हैं।
मैंने मौलाना क़ारी अब्दुर्रहमान साहिब के मतब में देसी दवाओं के ज़रिए कैंसर जैसे भयानक मर्ज़ दूर होते हुए देखे हैं। ऐसे आलिम कम हैं लेकिन रब का शुक्र है कि तिब्बे नबवी के जानकार मुत्तक़ी आलिम हमारे बीच मौजूद हैं। मेरा मक़सद आलिमों में कमी बताना नहीं है बल्कि आलिमों और मुबल्लिग़ों को तिब्बे नबवी की तरफ़ तवज्जो दिलाना है। सभी आलिमों को इस बात पर सोचना होगा कि जिस नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वे वारिस हैं, उनका और उनके अहले बैत का फ़ैमिली डाक्टर कौन था़?
जो लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जिस्मानी मर्ज़ का चिकित्सक (तबीब) नहीं मानते, वे बताएं कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चिकित्सक नहीं थे तो उनकी और उनके घर वालों की चिकित्सा कौन करता था?
ऐतराज़ करने वाले किसी दूसरे चिकित्सक का नाम नहीं ले पाएंगे।
तिब्बे नबवी की बरकतें
हक़ीक़त यह है कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिस दीन की तालीम देते थे, उसके अंदर शिफ़ा के उसूल हैं। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का लाईफ़ स्टाईल हेल्दी था। उनके अहले बैत का लाईफ़ स्टाईल दीन के मुताबिक़ होने की वजह से हेल्दी था। वे बहुत कम बीमार पड़ते थे। शहद, सना, अंगूर और लौकी उनकी डाइट का हिस्सा थे, जो क़ब्ज़ नहीं होने देते और बदन को न्यूट्रिशन देने के साथ ही टाॅक्सिन्स को जिस्म से बाहर निकालते रहते हैं, जो कि ज़्यादातर बीमारियों की वजह बनते हैं। नमाज़ और पवित्र क़ुरआन उनके दिल को सुकून देते थे। पैदल चलना, घुड़सवारी करना और अपने काम अपने हाथों से करना उन्हें हेल्दी रखने में एक्सरसाईज़ से ज़्यादा फ़ायदा देते थे। वे हलाल खाते थे। वे भूख लगने पर खाते थे और पेट भरने से ज़रा पहले खाना छोड़ देते थे। वे महीने में कुछ दिन रोज़ा रखकर पेट और लिवर को आराम भी देते थे। जो कोई आज भी यह करेगा, वह आज भी  कम बीमार पइ़ेगा और अगर वह तिब्बे नबवी की जानकारी रखता है तो वह अपना इलाज ख़ुद ही कर लेगा। इसकी मिसाल मैं ख़ुद हूँ, अल्हम्दुलिल्लाह! मैंने आखि़री बार ऐलोपैथी की दवा कितने साल पहले खाई थी, मैं  बताना चाहूं तो मुझे याद करना पड़ेगा। दूसरों की तरह मुझे भी बुख़ार आते रहते हैं। दूसरे लोग पैथोलोजी और डाक्टरों के चक्कर लगाते रहते हैं तो मुझे आज तक बुख़ार आने पर ख़ून टेस्ट करवाने और ख़ून चढ़वाने की नौबत नहीं आई। मुझे आज तक ग्लूकोस चढ़ाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ी, अल्हम्दुलिल्लाह! ये सब तिब्बे नबवी की बरकतें हैं।
उलूम और नबियों का आपसी रिश्ता
मेरी दादी अम्मी मुझसे भी कम इल्म रखती थीं लेकिन वह 114 साल की उम्र पाकर इस दुनिया से रूख़्सत हुईं और आखि़र तक वह अपने जिस्म से काम लेती रहीं। उनकी याददाश्त थोड़ी सी मुतास्सिर हो गई थी, बाक़ी सब ठीक था। उनकी सेहत का राज़ यह था कि वह मौसम के हिसाब से सर्द और गर्म देखकर ही चीज़ों का इस्तेमाल करती थीं। हमने अपनी वालिदा ज़िन्दगी में शायद ही कभी किसी हकीम या डाक्टर के पास जाते देखा होगा। वह भी सर्द और गर्म तासीर देखकर मौसम के मुताबिक़ चीज़ों को इस्तेमाल करती हैं। हमारे घर में तिब्बी जानकारी आम होने की वजह से सर्द और गर्म, ख़ुश्क और तर की जानकारी औरतों और मर्दों को रहती ही है। पहले यह जानकारी ज़्यादातर समझदार बुज़ुर्गों को होती ही थी। आप इसे हमारे घर का या हिन्द का आम दस्तूर कह सकते हैं लेकिन आम दस्तूर में इस क़ीमती और नतीजाबख़्श इल्म का सोर्स सिर्फ़ एक रब ही है और रब से बन्दों तक यह इल्म नबियों के वास्ते पहुंचता है या फिर उन लोगों के ज़रिए से जो कि नबियों की तालीम के मुताबिक़ ज़मीन और आसमानों की चीज़ों में ग़ौरो-फ़िक्र करते रहते हैं। उनका इल्म आम होता है तो आम दस्तूर बन जाता है। आम दस्तूर में पाई जाने वाली अच्छी बातों का ताल्लुक़ सीधे या वास्तों से नबियों से ही होता है। अगर कोई नास्तिक है और उसने कोई चीज़ डिस्कवर की है तो वह ऐसा तभी कर पाया, जब उसने ज़मीन और आसमानों की चीज़ों में न्यूट्रल होकर ग़ौरो फ़िक्र किया। जो कि नबियों की तालीम है। कोई नास्तिक भी तभी कुछ पाता है जब वह नबियों की तालीम पर अमल करता है, हालाँकि वह इस बात से अन्जान होता है कि वह नबियों की तालीम पर चल रहा है।

बीमारियों की वजह और उनसे शिफ़ा
आज नई नस्ल को चीज़ों की सर्द और गर्म तासीर की यह जानकारी नहीं है। उन्हें अपने दिल और ज़ुबान पर क़ाबू नहीं है। माॅडर्न लाईफ़ स्टाईल ने उनके मन को तनाव से भर दिया है। नई नस्ल का लाईफ़ स्टाईल हेल्दी नहीं है। आज एलोपैथिक डाक्टर ख़ुद बीमार हैं। जैसे जैसे डाक्टरों और अस्पतालों की तादाद बढ़ रही है वैसे वैसे बीमारियों और बीमारों की तादाद भी बढ़ रही है।
डाॅक्टरों के मुताबिक़ कैंसर, डायबिटीज़, थायराईड, मोटापा, लिवर और किडनी का फ़ेल होना, हाई ब्लड प्रेशर और दमा जैसी बीमारियाँ माॅडर्न लाईफ़ स्टाईल की देन हैं। इन बीमारियों की शिफ़ा नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हेल्दी लाईफ़ स्टाईल में है। जिस नबी स. का लाईफ़ स्टाईल डाक्टरों के दौर की सैकड़ों बीमारियों की दवा हो, डाक्टरों की बीमारियों की दवा हो, उससे बड़ा चिकित्सक (तबीब) भला और कौन होगा?
इस्लामी शरीअत में किसी पैथी के डाक्टर से सलाह और दवा लेना मना नहीं है लेकिन यह याद रखना ज़रूरी है कि इस्लामी शरीअत ख़ुद बहुत सी बीमारियों से बचाव और शिफ़ा का ज़रिया है। इसी के साथ तिब्बे नबवी की शक्ल में एक इल्हामी तरीक़ा ए इलाज भी है, जिससे सब नबियों ने नफ़्सियाती, जिस्मानी, अख़्लाक़ी और रूहानी इलाज किए हैं।
तिब्बे नबवी की जानकारी रखने वाले नमाज़ी खड़े होकर ज़्याद अच्छे तरीक़े से नमाज़ पढ़ते हैं। जो कोई रग-पठ्ठों और जोड़ों के दर्द की वजह से बैठकर नमाज़ पढ़ रहा हो और खड़े होकर सेहतमंद लोगों की तरह नमाज़ पढ़ना चाहता हो, वह हमसे Email: allahpathy@gmail.com  पर संपर्क करे। इन् शा अल्लाह, वह बहुत जल्दी अपने पैरों पर खड़ा होकर नमाज़ पढ़ेगा। ऐसे ही किसी को दमा है तो उसका दमा तीन महीने में ख़त्म हो जाएगा, इन् शा अल्लाह!
तिब्बे नबवी हमें दीनी फ़राएज़ ज़्यादा अच्छे तरीक़े से अदा करने में भी मदद देती है क्योंकि हरेक फ़र्ज़ की अदायगी में सेहत ज़रूरी है। दावतो तब्लीग़ में भी सेहत और ताक़त की ज़रूरत है। इसीलिए हम तिब्बे नबवी पर सब दाईयों को तवज्जों दिलाते रहते हैं। नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सेहतबख़्श उसूलों को ख़ुद भी अपनाएं और दूसरे धर्म वालों को भी उनके चमत्कारी फ़ायदों की जानकारी दें।

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