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Tuesday, April 2, 2019

सूरह कौसर: बरकत का अनन्त ख़ज़ाना
सूरह कौसर पवित्र क़ुरआन की सबसे छोटी सूरह है इसमें छोटे-छोटे सिर्फ 3 वाक्य हैं। इसमें पहले और तीसरे वाक्य में ईश्वर अल्लाह ने दो भविष्यवाणियां की है और वह दोनों भविष्यवाणियां पूरी हुईं। यह पवित्र सूरह ईश्वर अल्लाह का एक बहुत बड़ा चमत्कार है। कोई भी इंसान आज तक इस छोटी सूरह जैसी सूरह  बनाकर पेश नहीं कर सका कि वह तीन छोटे-छोटे वाक्य बोल दे। जिनमें दो भविष्यवाणियां हों और वे दोनों भविष्यवाणियां ज्यों की त्यों पूरी हो जाएं। पहले वाक्य में ईश्वर अल्लाह ने अपने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उनकी नस्ल में और सारी ख़ैर और खूबियों में ज़्यादती (Abundance) देने की भविष्यवाणी की है और तीसरे वाक्य में यह कहा है कि जो लोग आपके बेटों के मरने पर खुश हो रहे हैं और आपको जड़कटा कह रहे हैं, वास्तव में उनका बोल उन पर ही पूरा होगा और वही जड़कटे हो जाएंगे। समय आने पर लोगों ने देखा कि यह दोनों भविष्यवाणियां पूरी हुईं। नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेटी हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु  अन्हा से औलादें हुईं और उनसे उनका नाम और पैग़ाम बहुत ज़्यादा फैला और उनके दुश्मनों का नाम मिट गया। आज कोई ख़ुद को उन दुश्मनों की औलाद नहीं बताता। आज दुनिया में सबसे ज़्यादा नाम मुहम्मद रखा जाता है।
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ईश्वर अल्लाह का स्वभाव कल्याण करने का स्वभाव है। यह पूरा यूनिवर्स कल्याण पर सेट है। ज़र्रे से लेकर सूरज तक और सूरज से लेकर गैलेक्सी तक हर चीज़ इस तरह घूमती है कि उससे ज़मीन पर लाइफ़ को सपोर्ट मिलती है और सब का भला होता है। जो भी आदमी अपने और सबके कल्याण के लिए काम करता है, वह ईश्वर के स्वभाव पर काम करता है। वह इस यूनिवर्स की हारमोनी में काम करता है। ऐसे आदमी  को ईश्वर अल्लाह सपोर्ट करता है और यह पूरा यूनिवर्स भी सपोर्ट करता है। जो कल्याण करता है, उसका कल्याण ज़रूर होता है। जो सब के कल्याण के लिए काम करता है, उसके विरूद्ध अगर सारी दुनिया भी एक हो जाए और उसके नाम को और उसके पैग़ाम को मिटाने की कोशिश करे तो सारी दुनिया कामयाब नहीं हो सकती क्योंकि  वह ईश्वर अल्लाह के स्वभाव के अनुकूल काम कर रहा है और उसे ईश्वर अल्लाह का समर्थन प्राप्त है। 
ऐसे आदमी से जो भी जलन और दुश्मनी रखता है और उसे मिटाने की कोशिश करता है, वह अपनी कोशिशों में कामयाब नहीं हो सकता क्योंकि वह ईश्वर के स्वभाव और प्रकृति के नियम को बदलने की कोशिश कर रहा है, जोकि पॉसिबल नहीं है। ऐसे में उसने जो कुछ बुरा सोचा है, बुरा बोला है और दुश्मनी में जो बुरे काम किये हैं, उसने एनर्जी को कुछ घातक रूप दे दिए हैं, जो उसी की तरफ़ हालात के रूप में पलट कर आते हैं और उसी दुश्मन को तबाह और बर्बाद कर देते हैं। यही वजह है कि दूसरों से जलन और दुश्मनी रखने वाले इस यूनिवर्स में फलते फूलते नहीं हैं बल्कि वे कष्ट भोगकर नष्ट हो जाते हैं। सदियों से लोग यह सब देखते आ रहे हैं और यह कहावत बन चुकी है कि जो आदमी दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वह ख़ुद खाई में गिरता है। यह प्रकृति का एक नियम है।
यह पवित्र सूरह नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से और उनके कल्याणकारी मिशन से दुश्मनी रखने वालों के लिए एक चेतावनी और उपदेश है कि वे दुश्मनी और झूठे प्रचार से कल्याण नहीं पाएंगे। एक बार उन्हें शांत चित्त से आपने जीवन के कष्टों के बारे में सोचना चाहिए कि कहीं इन कष्टों का कारण उनके विचारों में तो नहीं है जो वे पैग़म्बर मुहम्मद साहब के प्रति रखते हैं। वे अपना और अपनी संतान का भला चाहते हैं तो वे भी अपने दिल को बुरे विचारों से शुद्ध करें और सब के कल्याण के लिए काम करें।
ईश्वर अल्लाह ने अपनी पवित्र वाणी में सृष्टि का यह शाश्वत नियम बताया है कि जो चीज़ कल्याणकारी होती है, उसे वह ज़मीन में जमा देता है।
...और जो कुछ लोगों को लाभ पहुँचाने वाला होता है, वह धरती में ठहर जाता है।
-पवित्र क़ुरआन 13:17

अनाथों की समस्याओं का समाधान करने वाला पैटर्न
पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बचपन में ही अनाथ हो गए थे। जैसे-जैसे वे बड़े हुए, वह अपनी सच्चाई, अमानतदारी और परोपकार के लिए अपने समाज में पहचाने जाने लगे। लगभग 25 साल की उम्र में उन्होंने पार्टनरशिप में व्यापार शुरू किया और 40 साल की उम्र तक उन्होंने व्यापार से बहुत लाभ कमाया। आप भाई क्यू . एस. ख़ान ( Q. S. Khan) की बुक  कानूने तरक़्क़ी (Qanoone Taraqqi) ऑनलाइन फ़्री डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं और बहुत तरक़्क़ी कर सकते हैं। इस बुक में उन्होंने लिखा है कि पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास 40 साल की उम्र में लगभग 25000 दीनार थे, जो आज लगभग 55 किलो सोना बैठता है। उस समय दीनार सोने का एक सिक्का होता था। इसी के साथ उनके पास चांदी, घोड़ा, ऊंट, भेड़-बकरियों व दूसरे रूप में भी काफ़ी दौलत थी। उनके पास यह सब दौलत इसलिए आई थी क्योंकि वह बचपन से ही सब धर्मों के लोगों के कल्याण पर अपना माल, अपना वक़्त और अपनी योग्यताएं खर्च करते आ रहे थे और फिर उन्होंने यह सारा सोना, चांदी, घोड़े और भेड़ बकरियाँ भी सब धर्मों के लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए क़ुर्बान कर दिए। उनकी पत्नी ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास उनसे ज़्यादा सोना, चाँदी और दौलत थी। उन्होंने भी उनके तरीक़े पर चलते हुए सभी धर्मों के बेघर अनाथों को संरक्षण और भोजन देने के लिए, ग़रीबों और क़र्ज़दारों को कर्ज़ से मुक्ति दिलाने के लिए अपना सारा माल ख़र्च कर दिया। हज़रत फ़ातिमा उन्हीं की बेटी हैं। उन्होंने भी ज़िन्दगी भर यही किया। कोोई भूखा उनके घर आकर माँग लेता था तो वह अपना और अपने बच्चों का भोजन अपने सामने से उठाकर उस माँगने वाले को दे देती थीं, चाहे उसका धर्म कुछ भी होता था। ऐसे लोग समाज में सदा सम्मान पाते हैं और उनकी सन्तान भी सम्मान पाती है। ऐसे लोगों की सन्तान और सम्पत्ति और अधिकार निरन्तर बढ़ते रहते हैं।
इमाम  हसन और इमाम हुसैन हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के बेटे हैं। आज भी सारी दुनिया के सब धर्मों के लोग उन्हें सम्मान देते हैं और बरकत के लिए अपने बच्चों के नाम के साथ उनका नाम लगाते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में कुछ पंडित अपने आपको हुसैनी पंडित कहलाकर गौरवान्वित होते हैं।

सात सौ गुना बरकत पाने का क़ुदरती क़ानून
ईश्वर अल्लाह ने बरकत और सैकड़ों गुना वृद्धि का यह नियम अपनी पवित्र वाणी क़ुरआन में बताया है:
जो लोग अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते है, उनकी मिसाल ऐसी है, जैसे एक दाना हो, जिससे सात बालें निकलें और प्रत्येक बाल में सौ दाने हो। अल्लाह जिसे चाहता है बढ़ोतरी प्रदान करता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, जाननेवाला है।
-पवित्र क़ुरआन 2:261
आप इस आयत को पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जीवन में साकार होते हुए देख सकते हैं और आप खुद भी इस प्राकृतिक नियम से काम लेकर अपनी संतान और संपत्ति को सैकड़ों गुना बढ़ा सकते हैं। सच्चाई और अमानतदारी के साथ ईश्वर अल्लाह के लिए ज़रूरतमंदों को दान देने वाले और परोपकार करने वाले बरकत पाते हैं, यह बात हर एक धर्म की किताबों में लिखी है। यह प्रकृति का एक शाश्वत नियम है, जो सबके लिए काम करता है। जो दूसरों को देता है, उसके अंदर भरपूर और खुशहाल होने और देखने की भावना (Abundant Mentality) होती है। जैसी उसकी भावना होती है उसकी जिंदगी उसकी भावना के अनुरूप वैसी ही ज़्यादा भरपूर और खुशहाल होती चली जाती है।

कम और ज़्यादा के विश्वास का ज़िन्दगी पर असर 
ज़्यादा और भरपूर को अरबी में कौसर बोलते हैं। कौसर को अंग्रेज़ी भाषा में अबन्डेन्स (Abundance) बोलते हैं। कमी के विश्वास से जीवन में कम धन और साधन मिलते हैं और भरपूर और ज़्यादा के विश्वास से ज़्यादा धन और साधन मिलते हैं। जो लोग सूरह कौसर में विश्वास रखते हैं और उसे समझ कर बार-बार पढ़ते हैं, भरपूर और ज़्यादा होने का विश्वास उनका कोर बिलीफ़ बन जाता है। जो एक बीज की तरह उनके सबकॉन्शियस माइंड में पड़ा रहता है और अपने ठीक समय पर उस आदमी के जीवन में भरपूर और ज़्यादा धन साधन खींचकर हाज़िर करता रहता है। आपका सबकॉन्शियस माइंड आपके विश्वास के मुताबिक़ मौक़े, साधन और लोग आकर्षित करता रहता है।
आप 'सूरह कौसर और बरकत' (Surah Kausar aur Barkat) लिखकर यूट्यूब पर या इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो आपको सूरह कौसर के चमत्कारों की सैकड़ों सच्ची घटनाएं मिलेंगी। आपको क़र्ज़दारों के क़र्ज़ उतरने के और माल की कमी के शिकार लोगों के पास भरपूर माल व दौलत आने के सच्चे क़िस्से मिलेंगे। सूरह कौसर में विश्वास रखने और उसे बरकत की नीयत से बार बार पढ़ने से जीवन में नेचुरली धन का प्रवाह बढ़ता है। कई बार ऐसी जगहों से धन मिलता है जहां से मिलने का इंसान गुमान भी नहीं कर सकता।
कुछ लोग कर्ज़ की वजह से आत्महत्या कर लेते हैं। कुछ लोग रुपए की कमी और दहेज के डर के कारण अपनी बेटियों की हत्या कर देते हैं। कुछ लोग दहेज के लालच में अपनी बहुओं को जला देते हैं। ये सब हादसे दौलत के बारे में गलत नज़रिए का नतीजा हैं।

सूरह कौसर घातक कोर बिलीफ़ से मुक्ति देती है
जो लोग महंगाई की ज़्यादती और धन की कमी की शिकायतें करते हैं, उनका कोर बिलीफ़ 'महंगाई की ज़्यादती और धन की कमी' है जोकि उनके सबकॉन्शियस माइंड का एक पैटर्न है और दिल की एक बीमारी है। आज काफ़ी लोग इस बीमारी के शिकार हैं। जब तक यह उनका कोर बिलीफ़ रहेगा, उनके हालात ऐसे ही रहेंगे जैसे कि हैं। ग़रीबी की मानसिकता से ग़रीबी जन्म लेती है। धन की कमी के हालात से मुक्ति के लिए धन की कमी के कोर बिलीफ़ से मुक्ति पाने की ज़रूरत है। पवित्र क़ुरआन की सूरह अलकौसर हरेक तरह की कमी के बिलीफ़ से मुक्ति देती है। अगर आप ग़रीब हैं तो अब आप  अपने आपको ग़रीबी से मुक्ति कर सकते हैं।

बेरोज़गारी और ग़रीबी का आसान इलाज, पवित्र क़ुरआन से
मैं आप सबकी प्रेरणा के लिए अपना एक व्यक्तिगत अनुभव शेयर कर रहा हूँ। जब मैं बी. एससी. कर रहा था। तब मुझे अपने भाई-बहनों की सपोर्ट के लिए कुछ रक़म की ज़रूरत महसूस हुई। मैंने कोई बिज़नेस करने की नीयत की। मेरे पास अपनी पूंजी नहीं थी। मुझे बिज़नेस का कोई अनुभव नहीं था। मैं बिल्कुल अनाड़ी था। इसलिए मेरे घर वाले मुझे धन देकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे। मैंने सिर्फ़ अल्लाह के भरोसे पर अपनी मां से 2700 रूपये उधार लेकर एक बिज़नेस शुरू किया। तब मैं एक किशोर था। । मुझे यह बात पता थी कि सूरह कौसर बरकत की नीयत से पढ़ी जाए तो बरकत होती है। मैं अपनी दुकान पर बैठकर सूरह कौसर पढ़कर अपने रुपयों पर और अपनी दुकान के सामान पर फूंकता रहता था और अपने रब से मदद की दुआ करता था।
मैंने पवित्र क़ुरआन और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी की रौशनी में सेल के 4 नियम निश्चित किए थे।
1. माल को मार्केट रेट से थोड़ा कम रेट पर सेल करना। 
2. नक़द बेचना।
3. बिना मिलावट के असली और उम्दा क्वालिटी का माल बेचना।
4. हरेक धर्म के बेरोज़गारों और ग़रीब मज़दूरों को खाने पीने का सामान उधार देना। चाहे वे उधार न लौटाएं, तब भी उन्हें उधार देना ताकि वे भूखे न रहें।
मैं इस पॉलिसी की वजह से ईमानदारी और अमानतदारी के साथ अपना और सब का भला करते हुए व्यापार करता रहा। मेरा माल 10 गुना, 100 गुना और 700 गुना होता चला गया। मेरी दुकान माल से भर गई। मैं नियमपूर्वक सूरह कौसर बरकत की नीयत से पढ़ता रहा और अपनी दौलत और अपने बिक्री के सामान पर उसे फूंकता रहा। मेरे पास दूसरे मोहल्लों से और दूर के गांवों तक से ग्राहक आने लगे। अब मैं लोकल मार्केट से माल ख़रीदने के बजाय दूसरे शहरों की बड़ी आढ़त से माल मंगवाने लगा। जिससे मुझे ज़्यादा लाभ मिलने लगा। मैं अपने अनाड़ीपन की वजह से कोई सामान महंगा ले आता था तो ख़ुद ही उस चीज का रेट बढ़ जाता था और इस तरह मैं नुक़्सान से बच जाता था। आसपास के स्थापित कारोबारी प्रतिद्वंदी मेरी दुश्मनी में कोई चाल चलते थे तो वे उसमें नाकाम रहते थे। मेरी दुकान पर एक नौकर रहता था। कई मज़दूर माल ढोते थे। पहले मैं बेरोज़गार था और अब मैं दूसरों को रोज़गार दे रहा था। 
मेरी दुकान में माल रखने की जगह न बची तो मुझे अपने घर पर माल उतरवाना पड़ता था। घर में भी बरामदा और आँगन माल से भर गया। यहां तक कि बेडरूम में भी माल की बोरियों का इतना ऊँचा ढेर लग गया कि हमें सोने लिए उन बोरियों पर से कूद कूद कर डबल बेड पर जाना पड़ता था। उसके बाद मुझे एक गोदाम लेना पड़ा। मैं लगातार सूरह कौसर पढ़ता रहा। वह गोदाम भी माल से भर गया। यह सब ईमानदारी, अमानतदारी और सदक़ा व दान देने का फल था, जिसका हुक्म रब ने पवित्र क़ुरआन में दिया है। फिर वह दुकान मैंने अपने छोटे भाई को दे दी और फिर उन्होंने भी उसे एक और भाई को दे दी। रब का शुक्र है कि वह दुकान 28 साल बाद आज भी भरी हुई है। यह सब सूरह अलकौसर की बरकत है। आज लोग बेरोज़गारी की शिकायतें करते हैं क्योंकि उनके दिमाग़ में दूसरों ने रोज़गार के नाम पर 'नौकरी का विचार' जमा दिया है। इस वजह से वे बिज़नेस के अनगिनत मौक़े नहीं देख पाते। जैसे मैंने ख़ुद को रोज़गार पर लगाया और ख़ूब माल कमाया। ऐसे ही हरेक सेल्फ़ एम्प्लायमेंट करके कमा सकता है। हर तरफ़ लोग बहुत सी चीज़ें ख़रीद रहे हैं। आप भी शहद, ऐलोवेरा जूस और मसालों से लेकर बच्चों के सूट तक बहुत कुछ अपने घर से ही बेच सकते हैं।

सूरह कौसर की बरकत वाली थैली: एक सच्चा वाक़या
अलीगढ़ में मोहल्ला दोहर्रा में डॉक्टर एहसानुल्लाह ख़ाँ का सना होम्यो क्लीनिक है। यह क्लीनिक किडनी और बाँझपन के इलाज के लिए मशहूर है।  जोड़ों के दर्द और गठिया का भी यहाँ अच्छा इलाज होता है। दिलचस्प बात यह है कि डॉक्टर एहसानुल्लाह ख़ाँ भूत-प्रेत दिखने और मनोरोगों का भी अच्छा इलाज करते हैं। वह ग़रीबों का इलाज केवल दवाई के मामूली ख़र्च पर करते हैं। मैं जब उनसे मिला तो यह देखकर ख़ुशी हुई कि वह हर धर्म के ग़रीबों का इलाज लगभग मुफ़्त करते हैं।
मैंने अपने एक आदरणीय मित्र वशिष्ठ जी के 80 वर्षीय ससुर श्री राम कुमार जी को डॉक्टर एहसानुल्लाह ख़ाँ साहब के पास इलाज के लिए भेजा। उनका डायलिसिस चल रहा था और हर महीने ₹80000 का ख़र्च उनकी दवा और इलाज पर आ रहा था। सना होमियो क्लीनिक के ट्रीटमेंट से राम कुमार जी की किडनी एक महीने में ही फिर से नेचुरली सही काम करने लगीं और उनका डायलिसिस बंद हो गया। डॉक्टर साहब ने मुझसे वैलनेस सलाह चाही। उन्होंने मुझे बताया कि अलीगढ़ में वह किराए के मकान पर रहते हैं और उनके पास अपना मकान नहीं है। मैंने उनका मुआयना किया तो पाया कि वह अपनी मेहनत की जायज़ फ़ीस बताने और लेने से डरते हैं। मैंने उनसे कहा कि आपको अपना एटीट्यूड बदलना होगा आप दीन के मुताबिक़ अपनी मेहनत की जायज़ फ़ीस ले सकते हैं। उन्हें अपना एटीट्यूड बदलने में 6 महीने से ज़्यादा लग गए।
मैंने उनसे बातचीत के दौरान पता लगाया कि उनके सबकॉन्शियस माइंड में दौलत के बारे में लिमिटिंग बिलीफ़ मौजूद हैं। एक दिन बातचीत के दौरान डाक्टर साहब बोले-
कनक कनक ते सौ गुना मादकता अधिकाय।
वा खाय बौराय जग, वा पाय बौराय।।
अर्थात् सोने में धतूरे से 100 गुना अधिक नशा होता है धतूरा खाकर नशा होता है जबकि सोना पाने मात्र से ही नशा हो जाता है।
यह एक संत की वाणी है जो अन्याय से धन कमाने वालों और ग़रीबों पर ख़र्च न करने वालों के बारे में कही गई थी लेकिन जब लोग इसे जायज़ तरीक़े से दौलत कमाने वालों पर भी फ़िट कर देते हैं तो यह विचार उनके सबकॉन्शियस माइंड में दौलत की पहचान नुक़्सान पहुंचाने वाली चीज़ के रूप में जमा देता है। ईश्वर अल्लाह ने सबकॉन्शियस माइंड को कल्याण पर सेट किया है। इसलिए सबकॉन्शियस माइंड नुकसान पहुंचाने वाली चीज़ों को लोगों से दूर रखता है। जब सबकॉन्शियस माइंड में दौलत एक नुकसान पहुंचाने वाली चीज के रूप में दर्ज होती है तो वह आपके विश्वास के कारण दौलत को भी दूसरी नुक़्सान देने वाली चीजों की तरह आप से दूर रखता है। मैंने डॉक्टर साहब से कहा कि यह एक तंग नज़रिया (Limiting Belief) है और आप इसे दौलत के बारे में अच्छा नज़रिया अपना कर बदलें। इसके लिए आप पवित्र क़ुरआन की उन आयतों को पढ़ें, जिनमें दौलत को ख़ैर और अल्लाह का फज़्ल कहा गया है।
तीसरी बात मैंने उन्हें और उनकी पत्नी को भी यह बताई कि आप एक थैली बना लें। आप जो कुछ कमाएं उसे उस थैली में डाल दें। आप उसे बरकत वाली थैली का नाम दे दें। बार बार 'बरकत वाली थैली' बोलने से यह आपके सबकॉन्शियस माइंड का कोर बिलीफ़ बन जायेगा कि आपके पास बरकत वाली थैली है, जो हमेशा रुपयों से ठसाठस भरी रहती है। यह बाहर की थैली है। एक थैली कॉन्सेप्ट और कल्पना के रूप में है, जो आपके अंदर है। बाहर वाली थैली अलग है और अंदर वाली थैली अलग है। बाहर वाली थैली में आपके रुपये कम हो सकते हैं। आपकी बाहर वाली थैली ढीली हो सकती है लेकिन आपके अंदर जो थैली है, आप उसे अपनी कल्पना में नोटों से ठसाठस देख सकते हैं। जब आप अपने अंदर अपनी थैली को हर देश की करेंसी से भरा हुआ देख सकते हैं तो आप ऐसा ही करें। सुबह और रात को अपनी बाहर वाली थैली अपने सामने रख लें। आप वुज़ू करके पाक साफ़ होकर अपने अंदर नोटों से भरी हुई थैली देखते हुए 129 बार सूरह कौसर पढ़ें। आपको दुरूद शरीफ़ याद हो तो उसके शुरू और बाद में सात-सात बार दुरूद शरीफ भी पढ़ें। फिर बाहर की थैली का मुंह खोलकर उसमें बरकत की नीयत से फूंक मार दें। दिन में जब भी आप उसमें रूपये रखें या उसमें से रूपये निकाल कर ख़र्च करें, तब भी एक बार सूरह कौसर पढ़ कर उसमें बरकत की नीयत से फूंक मार दें। डॉक्टर साहब ने सलाह पर अमल किया और अल्लाह ने उन्हें बहुत ज़्यादा बरकत से नवाज़ा। उनके पास दूसरे देशों के मरीज़ और टूरिस्ट भी सलाह के लिए आने लगे। मैंने उनकी पत्नी को भी जायज़ तरीक़े से कमाने के लिए कहा। उनकी पत्नी भी वेलनेस कोच बन गईं। काफ़ी लोग उन्हें भी सलाह के बदले फ़ीस देने लगे। इस तरह दूसरे देशों की करेंसी भी उनकी बरकत वाली थैैैली में आने लगी, जो कि पहले सिर्फ़ एक कल्पना थी।
डेढ़ साल में ही उनके पास इतनी दौलत आई कि उन्होंने अपनी पत्नी सहित हज किया और एक नई और शानदार कॉलोनी में एक फ़्लैट और उसके नीचे दो दुकानें बुक कर लीं। रब का बहुत बहुत शुक्र है। डॉक्टर साहब ने मुझे यह भी बताया है कि सूरह कौसर पढ़ने के बाद से उनका रूपया परिवार की दवा और इलाज पर लगना कम हो गया है।
मेरी एक वेलनेस स्टूडेंट के घर पर आठ साल से एक नौकर काम करता था। वह घरेलू नौकर एक आदमी था। मेरी स्टूडेंट ने उसे सूरह कौसर की बरकत वाली थैली बनाने का तरीक़ा सिखाया। लगभग एक महीने बाद अचानक ऐसे हालात ख़ुद बने कि वह किसी अरब देश में नौकरी करने चला गया। वह स्टूडेंट मुझे बताने लगीं कि वह घरेलू नौकर बहुत वफ़ादार और हर काम में माहिर था। मैंने उसे सूरह कौसर पढ़ने की तालीम क्या दी, वह हमें छोड़कर ही चला गया। मैंने हंसते हुए कहा कि आगे से आप सिर्फ़ उसी नौकर को सूरह कौसर से बरकत पाना सिखाएं, जिसे आपको अपने घर से हटाना हो।

हकीम सऊद अनवर ख़ान साहब (मोबाईल नंबर 09358713376) देवबंद में हिमालयन बेरी (Seabuck thorn) जैसी ताक़तवर और अनोखी जड़ी बूटी बेचने के लिए मशहूर हैं। मैंने उनके पास ताक़त और दर्द की अनोखी जड़ी बूटियाँ देखी हैं। पहली बार उन्होंने ही मुझे सी बक थार्न (Sea Buck Thorn) के करिश्मों की जानकारी दी थी। जिसके बारे में यह कहा जाता है कि अगर सारी दुनिया के सब रोगों का इलाज करने के लिए कोई एक पेड़ चुना जाए तो वह पेड़ सी बक थार्न है। यह किताब वेलनेस के विषय पर है। इसलिए हमने यहाँ रब की इस नेमत का थोड़ा सा चर्चा कर दिया है ताकि आप यूट्यूब पर इसके वीडियोज़ देखकर ताक़तवर और हेल्दी बनें।
हकीम साहब ने मुझे बताया कि वह बीमारों और ग़रीबों को दवा के साथ अपनी सोच के साँचे बदलना भी सिखाते हैं। वह और उनके सभी ग्राहक रब से बरकत पा रहे हैं। कमज़ोर ताक़वर हो रहे हैं, मरीज़ चंगे हो रहे हैं और ग़रीब ख़ुशहाल हो रहे हैं। हरेक धर्म के लोग सूरह कौसर से और इन क़ुदरती क़ानूनों से बरकतें पा रहे हैं।

मेरे एक परिचित उमेश जी ने कुछ भैंसे पालकर दूध की डेयरी का काम शुरू किया। उन्होंने मुझसे बरकत की दुआ के लिए कहा। मैंने देखा कि वह सूरह कौसर पूरी नहीं पढ़ सकते तो मैंने उनसे कहा कि जब आप दूध निकालें, उस वक़्त आप अपनी दूध की बाल्टी को दूध से भरा हुआ देखें और अपनी कल्पना में इतना ज़्यादा दूध देखें जैसे कि वह बाल्टी दूध का सागर ही बन गई हो और आप केवल 'अलकौसर अलकौसर' पढ़ते रहें और ज्यादा दूध की कल्पना करते रहें। उनके लिए यह एक शब्द और एक कल्पना ही काफ़ी हो गई। उनको भी रब ने उनके व्यापार में बहुत नफ़ा दिया।
ऐसी अनगिनत सच्ची कहानियाँ हैं। मैंने जितने लोगों को यक़ीन और इख़्लास के साथ बरकत की नीयत से सूरह कौसर पढ़ने की सलाह दी, रब ने उन सबको बहुत ज़्यादा बरकत दी है। आप भी यह बरकत पाने वाले बन सकते हैं।

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