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Sunday, September 20, 2020

वेद और उपनिषद में भी है सबके इलाह अल्लाह का नाम

अल्लाह नाम भी हिन्दुओं के लिए अजनबी नहीं है। अल्लोपनिषद में अल्लाह नाम आया है। अल्लोपनिषद को सनातनी मानते हैं।

सनातनियों के विपरीत चलने वाले जो थोड़े आर्य से समाजी अल्लोपनिषद को नहीं मानते। वे इस नाम में समाहित ‘इलाह‘ को थोड़े अंतर के साथ वेद में भी देख सकते हैं लेकिन वहां भी इसका अर्थ पूज्य ही है।

ऋग्वेद में ईश्वर के लिए जिन नामों को प्रयोग हुआ है, उनमें से एक नाम ‘इला‘ है जिसका मूल तत्व ‘इल‘ या ‘ईल‘ है और जिसका अर्थ है पूजा करना, स्तुति करना। ‘ईल्य‘ का धात्वर्थ है ‘पूजनीय‘। ऋग्वेद के बिल्कुल शुरू में ही यह शब्द प्रयुक्त हुआ है जिसका स्पष्ट अर्थ है कि ‘हे अग्नि ! तू पूर्व और नूतन, छोटे और बड़े सभी के लिए पूजनीय है। तुझे केवल विद्वान ही समझ सकते हैं।‘ (ऋ. 1:1:1 ) 

यह नाम इतना पुरातन है कि लगभग 6 हज़ार साल पहले सुमेरिया की भाषा में ‘ईल‘ शब्द परमेश्वर के लिए बोला जाता था। सुमेरियन नगर ‘बाबिलोन‘ शब्द दरअस्ल ‘बाबेईल‘ था अर्थात ईश्वर का द्वार, हरिद्वार । यही वह शब्द है जो किसी न किसी रूप में इब्रानी, सुरयानी तथा कलदानी भाषाओं में ईश्वर के अस्तित्व के लिए इस्तेमाल होता आया है। जिस वुजूद के लिए यह नाम हमेशा से इस्तेमाल होता आया है वह सबका मालिक है। सबका मालिक एक है। वही एक सबका इलाह (पूज्य और वंदनीय) है।

अधिक जानकारी के लिए देखें:

http://vedquran.blogspot.com/2010/11/allah-in-indian-scriptures-anwer-jamal.html

वेदों में इब्राहीम अलैहिस्सलाम के नगर 'उर' का वर्णन है

वेद का सबसे पहला छंद गायत्री ऋषि विश्वामित्र को ब्रह्मा जी के निर्देशन में साधना करने पर मिला था।

वेद के BARAHAMA जी अर्थात् #ABRAHAM
के शहर 'उर' का नाम वेद में मौजूद है। नाम के अक्षरों में भी समानता है। एक अक्षर A को आगे पीछे करने से एक  नाम के दो नाम बन जाते हैं।
इराक़ के उर नगर में सांप के विष की चिकित्सा करने वाले वैद्य को
उर्गुला
और उर नगर की सुंदर स्त्री को
उर्वशी
कहते थे।
बाद में उर्वशी नाम दूसरे देशों में भी चला गया तो भारत में भी वेद आ गए और इस तरह भारत में उर्वशी नाम भी आ गया।

ब्रह्मा जी वैदिक देवता हैं। ब्रह्मा जी अर्थात् अब्राहम की संतान अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते कश्मीर में आकर आबाद हुई थी। जिन्हें वैदिक लोग देवता कहते थे। इसीलिए कश्मीर को पुराणों में स्वर्ग कहा गया है। अब्राहम के वंशज फ़िलिस्तीन से अपने साथ ज़ैतून लाए थे। वे आज भी कश्मीर में ज़ैतून की खेती करते हैं।
🌿🌿🌿
वे सब देवता आज मुस्लिम हैं।
स्वर्ग में इस्लाम है।
ईरान का अर्थ आर्यों का स्थान है।
ईरान में इस्लाम है।
आज आर्य इस्लाम के रक्षक हैं।
देवता मुस्लिम, आर्य मुस्लिम।
🍇🍇🍇🌿🌿🌿🌿

Friday, September 11, 2020

ओंकार का सही प्राकृतिक उच्चारण क्या है?

वैदिक धर्म में ऊँ का इतना अधिक महत्व है कि हरेक शुभ कार्य में सबसे पहले इसका उच्चारण करते हैं। इसकी महिमा और इसकी शक्ति बताते हुए कहा गया है कि

हां, यह शब्दांश ब्रह्म है,
यह सबसे ऊंचा शब्द है
वह जो इस उच्चारण को जानता है,
वह चाहे जो चाहे, उसका है।
– कठो उपनिषद, 1.2.15-1.2.16
एक आदमी, जो ऊँ का सही उच्चारण जानता है। वह जो चीज़ चाहे, वह चीज़ उसकी है। अब एक आदमी स्वयं चेक करके देख सकता है। वह अपनी ज़रूरत की किसी चीज़ को चाहे और ऊँ का उच्चारण करे। यदि वह चीज़ उसे मिल जाए तो उसका उच्चारण सही है। यदि सबको उनकी इच्छित वस्तु मिल जाया करती तो आज भारत में अभाव का रोना इतने अधिक लोग न रोते। ऊँ का जाप करने वाले अरबों अभावग्रस्त लोग इस तथ्य का प्रमाण हैं कि वे ऊँ का सही उच्चारण नहीं जानते। वैदिक पंडित ऊँ का संस्कृत उच्चारण करते हैं प्राकृतिक नहीं है, जोकि प्रकृति में है। ऋषि प्रकृति में ऊँ की ध्वनि बैल और बादल की ध्वनि में सुनते थे। जिसका वर्णन वेद में आया है।

श्रीमद्भगवद्गीता में ओंकार को एकाक्षर ब्रह्म कहा है। प्राकृतिक उच्चारण वह है जिसमें केवल एक अक्षर का उच्चारण किया जाए जैसे कि बैल और गाय करते हैं। यदि बैल और गाय की तरह ऊँ का उच्चारण किया जाए तो ऊँ का सही प्राकृतिक उच्चारण किया जा सकता है। एक अक्षर को जब तीन अक्षर मानकर उच्चारण किया जाएगा तो वह प्राकृतिक उच्चारण न रहेगा और पूरा फल न देगा।

योग वशिष्ठ के अनुसार ऊँ का सही उच्चारण उस बच्चे के रोने के स्वर के समान है, जो ऊँ, ऊँ करके रोता है।
गाय और बैल जब रंभाते हैं तो 'ओं' 'ओं' शब्द निकालते हैं। जिसे पशुपालक आर्य शुभ और समृद्धि का प्रतीक मानते थे। जिस आर्य के घर के बाहर जितने अधिक गाय बैल होते थे, वह समाज में उतना अधिक समृद्ध और शक्तिशाली होता था। समृद्ध और शक्तिशाली आर्य हर ओर से 'ओं' की ध्वनि सुनते थे। वे स्वयं भी हर शुभ कार्य से पहले 'ओं' शब्द बोलने लगे। बाद में जब आर्यों ने लिपि में लिखना सीखा तो वे 'ओं' शब्द को 'ओम्' और 'ओउम्' लिखने लगे। ओम् का सही उच्चारण वह है, जो गाय और बैल बोलते हैं। बाद में जब वैदिक विद्वान प्रकृति के बजाय अपनी बनाई व्याकरण पर आश्रित होते गए तो अधिकतर पंडित ओम् का उच्चारण गाय और बैल से भिन्न करने लगे जैसा कि आजकल प्रचलित है।

वैदिक विद्वानों ने किसी समय 'ओं' को सृष्टिकर्ता परमेश्वर का नाम और किसी विद्वान ने तो निज नाम तक घोषित कर दिया। जबकि चारों वेदों में रचयिता परमेश्वर का कोई ऐसा नाम नहीं है, जो वेदों में केवल परमेश्वर के लिए प्रयुक्त हुआ हो और उसे ऋषियों ने किसी अन्य सृष्टि के लिए न बोला हो। अब ओंकार को परमेश्वर का नाम माना जाता है।
गाय बैल 'ओं' बोलते हैं। इससे 'ओं' शब्द का महत्व कम नहीं होता क्योंकि रचयिता परमेश्वर क़ुरआन में कहता है कि बादल, पहाड़, पशु-पक्षी और ज़मीन व आसमान की हर चीज़ रब की तस्बीह (गुणगान) करती है:
1.बादल की गरज उसका गुणगान करती है।
-सूरह अर्-रअद 13
2.“सातों आकाशों और धरती और जो कोई उनके बीच है सब उसकी तस्बीह करते हैं, और कोई चीज़ नहीं जो उसकी प्रशंसा के साथ तस्बीह न करती हो; परन्तु तुम उसकी तस्बीह को समझते नहीं !
-सूरह इसरा 44
3.और हमने दाऊद को अपनी तरफ से बड़ी नेमत दी थी ; (और हमने हुक्म दिया): हे पहाड़ों ! पक्षियों समेत उसके साथ (रुजू की) ‘तस्बीह’ में गुंजित हो !
-सूरह सबा 10
हम पवित्र क़ुरआन के आलोक में गाय बैल के शब्द 'ओं' को समझें तो वह रचयिता परमेश्वर का गुणगान (तस्बीह) है। अत: ऊँ रब की तस्बीह है।

Monday, September 7, 2020

Bhag Jhuthe Bhag: Click Bait Title Exposed

यह पोस्ट एक झूठे दावे की वीडियो के खण्डन में लिखी गई है। सबसे पहले पेश है वह वीडियो:

https://youtu.be/uwJZxjmvAPE


मेरा जवाब:

इंसान को पैदा करने वाले रब ने पवित्र क़ुरआन के रूप में एक ऐसी किताब दी है जिसमें इंसान के व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में फ़लाह और कल्याण पाने का क़ानून बयान किया गया है। वह किताब भविष्यवाणियां भी करती है। वह ऐसे बहुत से गुणों से भरपूर है। अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में फ़रमाया है कि पवित्र क़ुरआन जैसी किताब लिखना इंसानों के बस का काम नहीं है।
पैग़म्बर मुहम्मद साहब ने सब लोगों को पवित्र क़ुरआन सुनाया। उनकी बीवियों, बेटियों,  दामादों और नवासों ने पवित्र क़ुरआन को रब का संदेश माना। उसे उनके दोस्तों ने माना। पवित्र क़ुरआन वह किताब है जिसे पैग़म्बर मुहम्मद साहब के दुश्मनों ने भी उनका दोस्त बनकर माना। यहां तक कि जो लोग मुहम्मद साहब से लड़े और पवित्र क़ुरआन का जीवन भर विरोध करते हुए मर गए, वे दुश्मन भी हमेशा मोहम्मद साहब को सच्चा इंसान मानते रहे। उनके दुश्मन भी अपनी दौलत अमानत के रूप में उनके पास उनकी सच्चाई के कारण रखवाते रहे।
पैग़म्बर मुहम्मद साहब की सच्चाई की वजह से ही रब का सच्चा कलाम उनके दिल पर उतरा और उनकी सच्चाई की वजह से ही लोगों ने पवित्र क़ुरआन को माना और उन्होंने अपने माल और अपनी जानों की कुर्बानियां दीं। पैग़म्बर मोहम्मद साहब ने क़ुरआन को फैलाया। आज क़ुरआन हर देश के क़ानून का हिस्सा है। अमेरिका हो या भारत हो या कोई अन्य देश हो सब देशों ने पवित्र क़ुरआन के कई कानूनों को कल्याणकारी देखकर न्याय और शाँति व्यवस्था के लिए अपने देश का क़ानून बनाया है। आज पूरी दुनिया में इस्लाम को एक अरब 53 करोड़ मुस्लिम मानते हैं और मुस्लिम के अलावा भी अन्य धर्मों के करोड़ों लोग क़ुरआन की शिक्षाओं को अपनी भलाई के लिए मानते हैं। आज सब देशों के लोग पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं को अपने देश के संविधान के रूप में मानते हैं। चाहे लोगों को पता हो या पता न हो लेकिन आज पवित्र क़ुरआन लोगों की रोज़ाना की ज़िंदगी में किसी न किसी रूप में शामिल है। पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं में अपनी भलाई देखकर आज हर देश‌ की हर भाषा में लोग इसे पढ़ रहे हैं। आज हर हर शहर में पवित्र क़ुरआन मौजूद है। दुनिया की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली किताब पवित्र क़ुरआन है। पवित्र क़ुरआन की यह ख़ासियत है कि इसे लाखों लोगों ने पूरा याद किया है। दूसरी किसी किताब के इतने हाफ़िज़ और कंठस्थी नहीं हैं।
पवित्र क़ुरआन का विरोध करने वाले दुश्मनों ने पवित्र कुरआन जैसी किताब लिखने की कोशिश की लेकिन वे क़ुरआन जैसी किताब न लिख सके। जिस पर वे खुद चले हों या जिस पर उनकी बीवियां, बेटियां, दामाद, ससुर, दोस्त और उनके मानने वाले चले हों। पैग़म्बर मुहम्मद साहब के दुश्मन बहुत बड़े सियासी लीडर थे और वे अपने कबीलों के लिए क़ानून बनाते रहते थे। तब भी वे कोई ऐसी किताब न लिख सके जिसे वे क़ुरआन जैसी किताब बता देते‌। उनकी लिखी किसी किताब को पढ़कर उनके दुश्मन उनके दोस्त नहीं बने।  उनकी लिखी कोई किताब दुनिया के हर देश और हर शहर में आज मौजूद नहीं है जैसे कि पवित्र क़ुरआन मौजूद है। आज पैग़म्बर मुहम्मद साहब के दुश्मनों का नाम केवल इसलिए जाना जाता है कि वे पवित्र क़ुरआन का विरोध करते थे क्योंकि पवित्र क़ुरआन लोगों को चौधरियों की पूजा से, मूर्तिपूजा से रोकता है। पवित्र क़ुरआन सरदार चौधरियों को कमज़ोरों पर ज़ुल्म करने से मना करता है और वह अमीर लोगों के माल में बेघर, अनाथों और ग़रीबों का हक़ ठहराता है। जिसे मक्का के सरदार मानना नहीं चाहते थे। वे दूसरों को अपने बराबर खड़े होने देना नहीं चाहते थे। वे मूर्ति पूजा के चढ़ावे से वंचित होना नहीं चाहते थे। वे कमज़ोरों को दबाकर उनका माल हड़प लेते थे। वे बेघर, अनाथों और ग़रीबों को अपने माल में हिस्सा नहीं देना चाहते थे। वे ज़ालिम सरदार आज अपने साहित्य या अपने रचनात्मक कामों के लिए याद नहीं किए जाते। ऐसे सख़्त दुश्मनों ने भी कभी यह दावा न किया कि उन्होंने पवित्र क़ुरआन जैसी कोई किताब बनाई है।
आज मैंने एक मित्र के कहने पर एक वीडियो देखी। जिसमें एक लौंडा अपनी पहचान छिपाकर यह दावा कर रहा है कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विरोधियों ने पवित्र क़ुरआन जैसी किताब उनके सामने ही बना ली थी। यह एक बिल्कुल झूठा दावा है। इसे झूठा साबित करने की ज़रूरत भी नहीं है। बस इतना कह देना काफ़ी है कि
'अच्छा, अगर नबी मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विरोधियों ने पवित्र क़ुरआन जैसी कोई किताब लिखी थी तो लाओ उस किताब को हमें दिखाओ। 
उस किताब के लेखकों का नाम बताओ।
उस किताब की शिक्षाएं और कानून बताओ। वह किताब कमज़ोरों और गरीबों का भला करने के लिए क्या शिक्षा देती है?, उसके बारे में बताओ। उस किताब के लेखक का, उसके परिवार का, उसके दोस्तों का और उस किताब को सच्चा मानने वालों का जीवन दिखाओ ताकि हम देख सकें कि क्या वाक़ई वह किताब पवित्र क़ुरआन की तरह लोगों के दिलों में याद और नक़्श हो जाती है?
क्या वाक़ई वह किताब भी क़ुरआन की तरह लोगों का नज़रिया बदलकर उनका जीवन बदलती है?
क्या वह किताब भी भविष्यवाणी करती है और वह बाद में सच साबित होती है?, जैसे कि अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के द्वारा मक्का फ़तह होने की भविष्यवाणी है और बाद में वह भविष्यवाणी पूरी हुई।
क्या नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विरोधियों के द्वारा भी अपनी किताब में अपने द्वारा मदीना का विजेता बनने की भविष्यवाणी की गई थी जैसा कि वे कहते थे और क्या उस किताब की भविष्यवाणी पवित्र क़ुरआन की भविष्यवाणी की तरह पूरी हुई?'
बस यह सुनते ही झूठे दावेदार भाग खड़े होंगे और वे अपने दिल में ख़ुद से कहेंगे: 'भाग झूठे भाग'
क्योंकि न तो नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विरोधियों ने पवित्र क़ुरआन जैसी किताब लिखी थी और न वे उस किताब को आज दिखा सकते हैं। उनके पास ऐसी कोई किताब नहीं है जिसे वे अपने दावे के सुबूत में दिखा सकें। वे झूठे लोग ख़ुद क़ुरआन जैसी किताब लिखने में नाकाम होने के बाद यह दावा कर रहे हैं कि पवित्र क़ुरआन जैसी किताब नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विरोधियों ने तभी लिख दी थी। अगर लिख दी थी तो पवित्र क़ुरआन आज भी बाक़ी है और वह किताब तभी क्यों मिट गई?
जो किताब ख़ुद को क़ुरआन की तरह बाक़ी न रख सकी तो वह किताब पवित्र क़ुरआन जैसी तो न हुई!
ये झूठे धोखेबाज़ लोग आम भोले शरीफ़ मुस्लिमों के ईमान में ख़लल और फ़साद डालने के लिए बिना सुबूत के सिर्फ़ झूठे दावे करते हैं। वे कहते हैं कि हम इस्लाम छोड़ चुके हैं। जबकि हक़ीक़त में ये दूसरे धर्म के बेरोज़गार लोग हैं, जिनसे दुकान, खेत और कारख़ाने में मेहनत करके पिज़्ज़ा पेप्सी नहीं खाया जाता। सो ये चैनल खोल कर बकर बकर कुछ भी बोल देते हैं और लाईक कमेंट बटोरने के चक्कर में बहुत बदतमीज़ी करते हैं। जिससे इनकी सोच और इनकी गिरावट का पता चलता है।  मैं इनके लिए वैसे शब्द नहीं बोल रहा हूँ जैसे ये अपनी वीडियो में अल्लाह और उसके रसूल के बारे में टीआरपी बढ़ाने के लिए बोलते हैं। 
बहरहाल इनके ज़रिए इस्लाम का नकारात्मक प्रचार होता है। जिससे लोग इस्लाम का ओपिनियन जानने के लिए उत्सुक हो जाते हैं और जब उनके सामने इस्लाम के प्रचारक इस्लाम का कांसेप्ट रखते हैं तो वे इस्लाम क़ुबूल कर लेते हैं। हमें उम्मीद है कि नक़ाब पहनकर इस्लाम को कोसने वाले दूसरे धर्म के ये लौंडे भी एक दिन इस्लाम क़ुबूल कर लेंगे जैसे कि 
आमीन।

Sunday, September 6, 2020

ख़ुदा ने इतने सारे धर्म मत क्यों बनने दिए?

 


मैंने सत्यानंद महाराज सत्य जी की पोस्ट पर जवाब में यह कमेंट किया:

ख़ुदा ठोस नहीं है तो उसके बारे में कोई जवाब ठोस कैसे हो सकता है?
क्या कभी आपने पूूूरी मानव जाति को #अल्बोनियम मैटल के बारे में  सोचते हुए सुना है?
नहीं!
क्यों?
क्योंकि अल्बोनियम मैटल का कोई वुजूद नहीं है। पूरी मानव जाति किसी ऐसी चीज़ के बारे में नहीं सोच सकती जिसका वुजूद न हो।

दो चार लोग ज़रूर ऐसी चीज़ के बारे में सोच सकते हैं, जो न हो लेकिन पूरी धरती के अरबों आस्तिक और नास्तिक सब ख़ुदा परमेश्वर के बारे में सोचते हैं तो यह सोच ख़ुदा के होने का सुबूत है।
जितने लोगों ने ख़ुुुदा परमेश्वर के बारे में सोचा, उनकी सोच को जब लोगों ने लिखा तो उतने ही धर्म मत बन गए।
उन सबमें से एक दीन ख़ुदा का भेजा हुआ है।
वह दीन कौन सा है?
यह तय करना इंसान का काम है।
रब को इंसान की अक़्ल का इम्तेहान लेना है कि कौन सा इंसान सही दीन तक पहुंचता है।
इसीलिए उसने इतने सारे धर्म और दीन बनने दिए हैं।

जल छलका एक से दूजे में जाकर बना इंसान

जो न विचारे ख़ुद को कैसे पहचानेगा भगवान

-डा० अनवर जमाल

Tuesday, August 11, 2020

हाथ से कमाने के कुछ आसान तरीक़े

मेरी तब्लीग़ में दीन की तालीम, रोज़गार की तालीम, कम्पैरेटिव स्टडी और अल्लाह की निशानियों में ग़ौर करना एक साथ चलता है। मिसाल के तौर पर आप मेरा यह लेख देखें:

बेहतरीन कमाई हाथ की कमाई है

بہترین کسب معاش ہاتھ کی کمائی ہے

ہاتھ کی کمائی رزق حلال حاصل کرنے کا سب سے اعلیٰ اور بلند ذریعہ ہے اور اس کے متعلق نبی اکرم ﷺ نے بہت تاکید فرمائی ہے۔ حضرت مقدام بن معدی کربؓ سے روایت ہے کہ رسول اﷲ ﷺ نے فرمایا : ’’ کسی نے اس سے بہتر کھانا نہیں کھایا جو اپنے ہاتھ کی کمائی سے کھائے اور بے شک اﷲ کے نبی حضرت داؤدؑ اپنے ہاتھوں کی کمائی کھایا کرتے تھے۔‘‘ (بخاری )


حضرت رافع بن خدیجؓ کا بیان ہے کہ آپؐ سے دریافت کیا گیا، یا رسول اﷲ ! (ﷺ) کون سا ذریعۂ معاش پاکیزہ ہے ؟ آپؐ نے فرما یا: آدمی کا اپنے ہاتھ سے کمانا 

اور ہر جائز تجارت۔‘‘ (مسند احمد)

इन हदीसों में अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जायज़ तरीक़े से जिस्मानी मेहनत करके अपने 'हाथ से' कमाकर खाने की फ़ज़ीलत बताई है। जिसमें, तिजारत, दस्तकारी, खेती और मज़दूरी सब काम आ गए हैं।

एक्यूप्रेशर की #reflexolology और #sujoke सीखकर भी आप हाथ से कमा सकते हैं और इस तरीक़े में मरीज़ के हाथ पर प्रेशर देकर मर्ज़ को कम किया जाता है। मेरा ज़ाती तजुर्बा है कि यह बहुत इफ़ेक्टिव है, ख़ासकर नस के दर्द में, सिर दर्द में, दिल के दर्द या अटैक में और पेट रोगों में। मैंने इससे पोलियो के पुराने मरीज़ ठीक होते हुए देखें हैं लेकिन पोलियो के मरीज़ को एक साल एक्यूप्रेशर कराना पड़ता है।

जो नौजवान छोटी तिजारत करने में शर्म महसूस करते हैं और बड़ी तिजारत करने के लिए रूपया और साधन नहीं हैं और दूसरों के मातहत काम करने का मिज़ाज नहीं है। ऐसे लोग यू ट्यूब और व्हाट्स एप पर एक्यूप्रेशर का कोर्स कर लें। कुछ हफ़्ते अपने शहर के किसी एक्सपर्ट के साथ रहकर अमली तजुर्बा हासिल कर लें।

इन् शा अल्लाह, तीन माह में आप कमाने के लायक़ हो जाएंगे।

मैं यहाँ 'हाथ' की अहमियत समझाने के लिए यह भी बता दूं कि हिब्रू भाषा में परमेश्वर ने अपना नाम 'यहुवा' बताया था। जिसका पहला अक्षर 'यद' है और हिब्रू और अरबी में यद का अर्थ 'हाथ' होता है। 

अगर आप ध्यान दें तो आपको अपने हाथ में 'अल्लाह' नाम दिख सकता है।

जब आप अपने हाथ से कमाते हैं, हक़ीक़त में तब आप रब के नाम से कमाते हैं। जब आप ऐसा मानकर कमाएंगे तो आपकी कमाई में बरकत होगी क्योंकि

'बड़ी बरकत वाला है तुम्हारे रब का नाम जो अज़मत और बुज़ुर्गी वाला' -पवित्र क़ुर'आन 55:78

अगर आप एक औरत हैं तो आप भी यह कला सीखकर कमा सकती हैं।

जो औरतें एक्यूप्रेशर नहीं सीख सकतीं, वे अपने घर से हाथ की सजावट का सामान मेंहदी और चूड़ी बेचकर कमा सकती हैं।

मैंने इस पोस्ट में हाथ से हाथ पर काम करके कमाने की जानकारी दी है क्योंकि

मेरा मिशन है रब के नाम से #Mauj_Ley



Sunday, August 9, 2020

सृ‌ष्टा राम और सृष्टि राम को पहचानिए, एक क्रिएटर गॉड और दूसरा महापुरुष है।

5 अगस्त 2020 को मैंने अपने दिल को चैक किया कि क्या मुझे अब भी राम नाम से प्यार है?

मैंने देखा कि वह राम नाम से प्रेम पहले की तरह ज्यों का त्यों है क्योंकि वह प्रेम राजनीति से प्रेरित नहीं है बल्कि ज्ञान पर आधारित है।

मैंने बहुत पहले अपने एक व्हाट्स एप ग्रुप में एक पोस्ट ख़ुद लिखकर शेयर की थी, जिसमें सब मुस्लिम थे और उसे सबने सराहा था। मैंने सोचा कि मैं आज उस पोस्ट को यहां अपने सब धर्म के पाठकों के सामने पेश करूँ ताकि एक रहस्य जिसे कम लोग जानते हैं, आज उसे ज़्यादा लोग जान लें।

*राम और राम की पहचान*

*बनाएगी मेरा भारत महान*

Dr. Anwer Jamal

💚🌹💚

मैंने अपने बड़ों को देखा है कि वे सृष्टा राम और दशरथ पुत्र राम को ख़ूब पहचानते हैं, जबकि सनातनी ही इनके अंतर को भूलकर इन्हें गडमड कर देते हैं। इस गडमड करने से ही आम मुस्लिम और आलिम कन्फ़्यूज़्ड हैं।

ख़ुद मुझे राम के विषय में यह जानने में 30 साल से ज़्यादा लग गए कि सनातनी हिन्दू एक से ज़्यादा पर्सनैलिटीज़ के लिए राम नाम बोलते हैं।

वे परमेश्वर को भी राम कहते हैं और एक महान राजा को भी राम कहते हैं, जो मनुष्य की तरह खाते पीते थे, जिनके पत्नी और बच्चे थे, जो पैदा हुए और फिर एक ब्राह्मण दुर्वासा के कारण उन्हें सरयू में समाकर अपने जीवन का अंत करना पड़ा। इसके अलावा भी दो राम और हैं। 

एक राम दशरथ घर डोले, एक राम घट घट में बोले

एक राम का सकल पसारा, एक राम दुनिया से न्यारा

सनातन परंपरा में चार अस्तित्व के लिए राम शब्द आया है। और कमाल की बात यह है कि 'जय श्री राम' का नारा लगाने वालों ने या श्री रामचंद्र जी में श्रद्धा रखने वालों ने मुझे या दूसरे मुसलमानों को यह रहस्य समझाने के लिए कोई पुस्तक या ऑडियो वीडियो भेंट नहीं की। इसमें से ज़्यादातर ज्ञान मुझे मौलाना साहिबान और सूफ़ियों ने और मुस्लिम स्कॉलर्स ने दिया है। कुछ ज्ञान मैंने अपने शौक़ से खुद शोध करके पता लगाया है।

मैं यह अंतर और रहस्य जानने के बाद समझ चुका हूँ कि हर मस्जिद राम मंदिर है और मैं एक रामभक्त हूँ।

इसके बावुजूद मैं ख़ुद सनातनियों से यह नहीं कहता कि मैं रामभक्त हूँ क्योंकि मैं कहूंगा सृष्टा राम के विषय में और वे समझेंगे सृष्टि राम के विषय में।

मेरा प्रेमपूर्ण सुझाव यह है कि मंदिर निमार्ण में अरबों रूपये लगाने के साथ कुछ लाख रूपये का लिट्रेचर राम नाम के पूरे परिचय और विवेचन के साथ प्रकाशित किया जाए और सृष्टा राम और सृष्टि राम का अंतर भी रेखांकित कर दिया जाए कि एक ने पैदा किया है और दूसरा पैदा हुआ है।

हिन्दू धर्म के प्रचारक चैनलों पर यह बात आम कर दी जाए कि सृष्टा राम प्रार्थना स्वीकार करता है और दशरथ पुत्र राम नित्य प्रार्थना करता था।

इससे भ्रम दूर हो जाएगा और हरेक मुस्लिम समझ लेगा कि सनातनी एक नाम 'राम' दोनों के लिए बोल रहे हैं।

फिर मुस्लिम यह समझ लेंगे कि एक राम क्रिएटर गॉड है और दूसरा एक महापुरुष और मर्यादा पुरुषोत्तम है।

क्रिएटर गॉड को मुस्लिम अल्लाह कहते हैं और उसी की वंदना करते हैं और उसी से प्रार्थना करते हैं, उसी के सामने झुकते हैं। इस तरह मुस्लिम समझ लेंगे कि जिसे हिंदू राम कहते हैं उसी को हम अल्लाह कहते हैं। और हम उसी क्रिएटर गॉड अल्लाह की वंदना उपासना और भक्ति करते हैं। जब यह भ्रम दूर हो जाएगा, तब मुस्लिम राम शब्द भी क्रिएटर के लिए आसानी से ऐसे ही बोल देगा जैसे कि वह ईरान की फ़ारसी भाषा का शब्द ख़ुदा बोलता है। जैसे वह अपने लिए ख़ुदा का बंदा बोलता है, वैसे ही वह तब ख़ुद को रामभक्त बोल सकेगा।

दशरथ पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम सृष्टि राम जी के गुणों की तारीफ़ अल्लामा इक़बाल ने अपनी कविता 'राम' में बहुत सुंदर शब्दों में की है। उसे भी मुस्लिम पढ़ते और रामचंद्र जी को एक महापुरुष के तौर पर आदर देते हैं। इन बातों से सनातनी लोग ही ग़ाफ़िल और अज्ञ हैं। आप इंटरनेट पर 'Ram by Allama Iqbal' लिखकर गूगल सर्च करके पढ़ सकते हैं।

अब जो चाहे सृष्टा राम की भक्ति कर ले और जो चाहे सृष्टि राम की भक्ति कर ले। भारतीय संविधान और वेद पुराण इसकी पूरी इजाज़त देते हैं कि हर एक जैसे चाहे वैसे अपने उपास्य राम की भक्ति कर ले।

सारा झगड़ा अज्ञान का है।

अज्ञान के कारण ही सनातनी तनातनी कर रहे हैं।

जब वे ज्ञान के आलोक में देखेंगे तो उन्हें स्पष्ट ज्ञात हो जाएगा कि जगत का सृष्टा राम, दशरथ पुत्र श्री राम से बड़ा है और मुस्लिम बड़े राम की भक्ति करने के कारण सनातनियों से ज़्यादा बड़े रामभक्त हैं।

मुस्लिम आम और खास लोगों के बारे में आप कोई राय बनाने से पहले अपने पूर्वाग्रह और द्वेष को दूर कर लें। मैं आपको बता दूं कि ख़ुद राम भक्ति का दावा करने वाले सनातनियों को नहीं पता कि राम तारक मंत्र क्या होता है?

इसका परीक्षण करने के लिए आप रेंडमली 'जय श्री राम' बोलने वाले 10 लोगों को चुनें और उनसे पूछें कि कृपया आप मुझे राम तारक मंत्र सुना दें जो कष्टों को दूर करता है और 10 के 10 लोग आपको राम तारक मंत्र नहीं सुना सकेंगे। यही कारण है कि मुझे किसी रामभक्त ने आज तक राम तारक मंत्र का ज्ञान नहीं दिया। मुझे राम तारक मंत्र का ज्ञान अपने गुरु जी आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी साहिब रहमतुल्लाहि अलैह ने दिया।

'राम रामाय नमः'

अर्थात् राम के राम के लिए नमन है।

इसमें स्पष्ट रूप से दो राम का वर्णन है।

क्या बड़े और सृष्टा राम की भक्ति करना रामभक्ति करना नहीं है, जो जगत को समस्त कष्टों से तारता है?

आप को राम भक्ति सीखनी है तो ऐसे मुस्लिम विद्वानों से मिलें, जिन्होंने पवित्र क़ुरआन के साथ वेद पुराण भी पढ़ा हो। वे आपको वास्तविक राम भक्ति सिखाएंगे। 

Note: मेरी पोस्ट से तंग नज़र लोग दूर रहें और पाठक आपस में ऐतराज़ का जवाब न दें। यह काम मेरा है और मैं ऐतराज़ का जवाब न दूं तो यह मेरा चुनाव है क्योंकि जिस बहस से कुछ हासिल न हो, उसे न करना बेहतर है।

सन्तोष पाण्डेय: अनवर साहब जहां तक मंत्र दान का प्रश्न है तो मैं इसका समर्थन नहीं करता (चूंकि मैं खुद ब्राह्मण हूं तो मुझे इससे नुक़्सान कम या कुछ नहीं लेकिन लाभ की सम्भावना अधिक है) मंत्रदान में कुलगुरू अपना और याचक का सर धोती से ढक देते हैं उधर पुरोहित जी शंख फूंकते हैं उसी बीच कान में तीन बार गुरूजी मंत्र बोलते और हिदायत देते हैं कि यह मंत्र किसी को बताना नहीं है सुबह शाम इसका जाप करना है (याद रहे सुबह शाम जाप करना है किसी मंदिर मस्जिद या मूर्ति के सामने नहीं स्वस्थान पर) लेकिन मुझे आज तक ये समझ में नहीं आया जो कल्याणकारी है उसमे इतनी गोपनीयता क्यों? उसे तो सार्वजनिक होना चाहिए सबका भला हो।

अब दूसरी बात राम तारक मंत्र की तो अधिकतर लोग शैव मंत्र ग्रहण करते हैं आधुनिक समय में क्योंकि राम तारक मंत्र में मांसाहार निषेध है (मान्यता अनुसार) और घर के बुजुर्गों का मानना होता है कि आजकल के बच्चे हैं कही मांस खा लिया तो पाप का भागी होगा इसलिए शैव मंत्र ही अपनाने पर ज़ोर देते हैं

रामायण में एक प्रसंग है जब समुद्र पार कर लंका जाने का समय हुआ तो समस्या आई तो राम सेना में दो लोग थे, नल नील, जिन्हें श्राप था वे जो कुछ भी पानी में फेंकेंगे वह तैरने लगेगा तो वे पथ्थरों पर राम राम लिखते और समुद्र में फेंक देते इस तरह पुल का निर्माण होने लगा एक पथ्थर भगवान राम ने भी फेंका वह डूब गया तो उन्होंने पूछा मेरा नाम लिखकर पत्थर डालने से नहीं डूबता लेकिन जब मैं स्वयं पत्थर डाल रहा हूं तो वह क्यों नहीं तैरता तब जामवन्त ने जबाब दिया प्रभु शक्ति आपमें नहीं आपके नाममें है, यह एक प्रसंग है आप समझदार हैं बेहतर समझ सकते हैं मैं इससे आगे जाउंगा तो तत्काल विधर्मी घोषित किया जाऊंगा।

हमारे यहां तो जेल में बंद रामपाल को भी ईश्वर का अवतार नास्त्रेदमस का सायरन न जाने क्या क्या घोषित करके मोटी मोटी किताबें बांटी जा रही हैं

फिर वो तो राम हैं ,विष्णु के अवतार लेकिन कहीं किसी ग्रंथ में ब्रम्हा विष्णु महेश को ईश्वर नहीं बताया गया उन्हे देवता देवाधिपति या महादेव ही कहा गया है यानि उनका भी कोई संचालक है जो सर्वोच्च है वही ईश्वर(अल्लाह) है।

Dr. Anwer Jamal का जवाब यानी मेरा जवाब: सन्तोष पाण्डेय भाई, मन्त्र का एक पहलू तो उसका भाव और अर्थ है कि जो उसे समझ ले तो उसका मन तर जाए दुविधा के सागर से और उसका मन अपेक्षाकृत स्थिर हो जाए। इसके लिए उपदेश में जन समूह को मंत्र सुनाए जाते हैं। जिन्हें कोई भी सुन सकता है और लाभ उठा सकता है।

मंत्र का दूसरा पहलू शक्ति का है जो साधना और अभ्यास से आती है। एक ही शब्द की जब बार बार आवृत्ति की जाती है तो सूक्ष्म स्तर पर ऊर्जा की तरंगें पैदा होती हैं और वे साधक के मन, शरीर और जीवन पर ही नहीं बल्कि उससे जुड़े लोगों फर, देश, दुनिया और ब्रह्मांड पर थोड़ा या ज़्यादा असर डालती हैं, जिसे साधक ख़ुद नहीं समझ सकता। कई बार साधक अपने होश खो देता है और परमहंस या मजज़ूब बन जाता है। अगर गुरू में शक्ति नहीं होती तो वह लंबे समय के लिए या हमेशा के लिए भी वैसा ही रह जाता है और अगर गुरू में मानसिक (रूहानी) शक्ति होती है तौ वह उसका उचित उपाय करके उसे नार्मल कर देता है। शक्ति और साधना को हमेशा गुप्त रखा जाता है ताकि लोग उस पर विपरीत विचार देकर साधक के मन में शंका न उत्पन्न कर दें।

सनातनी दशरथ पुत्र श्री राम को साकार परमेश्वर मानते हैं तो यह उनका अपना 'दर्शन' है परंतु दशरथ ने ऐसा नहीं कहा और न श्रृंगी ऋषि ने ऐसा कहा है, जिनके आशीर्वाद से श्री राम पैदा हुए और न श्री राम ने ऐसा कहा और न दुर्वासा ऋषि ने श्री राम को कभी परमेश्वर माना और न कान्यकुब्ज ब्राह्मणों ने उनके जीवन काल में उन्हें परमेश्वर माना बल्कि जब श्री राम ने कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से रावण वध के बाद शाप मुक्ति यज्ञ करने को कहा तो उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया था।

बाद में लोग जोश में आकर किसी के बारे में जो भी मानने लगें वह उनकी मान्यता है। बाल्मीकि रामायण में रामचंद्र जी के हाथ का पत्थर डूब जाने और छाया सीता की कथा नहीं है। बाद में लोग कुछ भी लिखते रहे हैं।

जैसे कि मोदी ने कभी नहीं कहा कि मैं परमेश्वर का अवतार हूँ लेकिन कुछ लोग जोश में ऐसा कह रहे हैं।

बाल्मीकि रामायण में शिकार और मांसाहार के कई प्रसंग हैं।

जब भरत जी सेना सहित भारद्वाज ऋषि के आश्रम में जाते हैं, तब भारद्वाज क्या खिलाते हैं?

आप पढ़ सकते हैं।

कश्मीरी, गढ़वाली, बंगाली, उड़िया और नेपाली ब्राह्मण माँस खाते हैं तो क्या वे  सब शैव मंत्र पढ़ते हैं?

यह सब गुरूओं की बाद की व्यवस्था है जो हर प्रान्त में अलग है बल्कि हरिद्वार के हर अखाड़े के विचार मंत्र और भोजन के विषय में अलग हैं।

भोजन का चयन मंत्र की प्रकृति को ध्यान में रखकर किया जाता है कि यह उग्र है या सौम्य?

गर्म मिज़ाज के मंत्र पढ़ो और घी दूध न खाओ तो अंदर से ख़ून रिसकर पाख़ाने पेशाब के साथ आने लगता है।

ऐसे ही कई बार गोश्त वग़ैरह से रोका जाता है तो उसकी कुछ वजह होती है।

एक वजह यौनेच्छा को कम करना भी होती है ताकि इसका ध्यान विपरीत लिंग की तरफ़ न जाए और एकाग्र चित्त होकर अपना अभ्यास करता रहे।

भारत में जिन इलाकों में बौद्ध जैन विचारधारा का प्रभाव बढ़ गया था। वहां वहां ब्राह्मणों ने यज्ञ बंद किए और माँसाहार को त्यागकर जनता का समर्थन जुटाया और फिर बौद्ध जैन विचारधारा का प्रभाव कम किया और अपना राजनैतिक क़ब्ज़ा वापस लिया।

राजनैतिक वर्चस्व को वापस पाने के चक्कर में कुछ इलाकों के ब्राह्मणों का भोजन बदल गया जबकि बाक़ी इलाक़ो में लोग वैदिक काल की तरह पूर्ववत मांसाहार करते रहे।

जो शक्तिशाली लोग या इंद्र आदि राजा हुए हैं या अश्विनी कुमार आदि वैद्य हुए हैं, उन्हें देवता कहा जाता है। अग्नि और सूर्य आदि प्राकृतिक चीज़ों को भी देवता कहा गया है। जो जनता को देता है, वैदिक जन उसे देवता कहते हैं। देवताओं का आदि और अंत है। परमेश्वर अनंत है। उसी अनंत परमेश्वर को मुस्लिम अल्लाह कहते हैं।

इस पोस्ट को फ़ेसबुक पर देखें:

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Friday, August 7, 2020

Jinke bol aur amal achche honge unka bhala zuroor hoga

 #Rhonda_Byrne की मूवी की वजह से #Law_of_Attraction अचानक ही अरबों लोगों की नालिज में आ गया। फिर उसने #The_Secret के नाम से एक किताब भी लिखी।

#रहोन्डा_बर्न की सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि उसने एक यूनिवर्सल ला को इस तरह बयान किया कि उसकी मूवी और उसकी बुक्स पूरी दुनिया में हर देश में मशहूर हो गईं। जिससे उसे शोहरत के साथ काफ़ी दौलत भी मिली लेकिन उसकी मूवी और उसकी बुक्स की सबसे बड़ी कमी यह है कि उसने सभी #Universal_Laws नहीं बताए। जिनके साथ मिलकर ला आफ़ अट्रैक्शन काम करता है।

इस्लाम के रूख़ से देखें तो रहोन्डा ने क्रिएटर और क्रिएशन, God, Spirit & Universe में कोई फ़र्क़ नहीं किया है। सबको गड मड्ड कर दिया है और ला आफ़ अट्रैक्शन के कोच आम तौर पर ऐसा करते हैं। इसीलिए मैं रहोन्डा की बुक पढ़ने की सलाह देने से बचता हूँ।

मैंने एक बुक में ये कमियाँ नहीं पाईं। मैंने उसकी इमेज को फ़ेसबुक पर डीपी बना लिया है ताकि लोगों को ला आफ़ अट्रैक्शन पर एक अच्छी किताब पढ़ने को मिल सके।

इसके बावुजूद आप यह जान लें कि इसके चाँस कम हैं कि आप सिर्फ़ किताब पढ़कर कोई चीज़ हासिल कर लेंगे क्योंकि

आपके #core_beliefs हमेशा आपके आड़े आएंगे और आप यह कहेंगे कि

ला आफ़ अट्रैक्शन काम नहीं करता जबकि वह उस वक़्त भी काम कर रहा है, जब आप उसके काम न करने का यक़ीन कर रहे हैं।

ला आफ़ अट्रैक्शन केवल आपकी कल्पना पर नहीं बल्कि आपके कोर बिलीफ़्स के कुल योग से बने नक़्शे पर #paradigm पर काम करता है। ओशो रजनीश इसे 'चेतना की अन्तर्संरचना' कहते हैं। ओशो ने जो दौलत, शोहरत और सफलता पाई, उसके पीछे उनकी 'चेतना की अंतर्संरचना की गहरी समझ' थी।

मैंने एक दिन मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह से ओशो के बारे में पूछा तो मौलाना ने कहा कि 'वह बड़ी अक़्ल वाला आदमी है।'

मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह की ख़ूबी यह थी कि वह हर इंसान को उसकी ख़ूबियों के पहलू से देखते थे और उसकी ख़ूबियों को एप्रिशिएट करते थे।

आम मुस्लिमों में यह ख़ूबी कम है या कहें कि वे इसके ख़िलाफ़ करते हैं। उनके माईंड को इसी तरह प्रोग्राम किया गया है। उन्हें नई चीज़ें सिखाओ तो वे निगेटिव कमेंट करने लगते हैं। तब मैं उनसे वही लैंग्वेज बोलता हूँ, जो उनके माईंड में रन हो रही है।

क्योंकि मुझे पता है कि एक मुस्लिम का माईंड जिस तरह प्रोग्राम्ड है;

जब तक मैं उसी के मुताबिक़ न बोलूं, उसका माईंड मेरी तालीम को क़ुबूल न करेगा!

मैं उनसे कहता हूँ कि

अल्हम्दुलिल्लाह, हमारी कामयाबी ईमान में है। दुनिया फ़ानी (मिटने वाली) है और आख़िरत बाक़ी रहेगी। इसलिए आख़िरत में जो काम फ़ायदा दे, बस वही काम करो। सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा की नीयत से अच्छे काम करो। अल्लाह का हुक्म मानो और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत पर चलो।

अल्लाह कहता है कि मुझ पर ईमान लाओ, मुझसे अच्छे गुमान करो। अच्छे कामों की नीयत करो। अपना दिल शक और वसवसों से पाक करो। जो भी मज़दूरी या तिजारत तुम कर सको। उसे करो। मैं तुम्हें इज़्ज़त की रोज़ी दूंगा। मेरा शुक्र करो। मैं तुम्हें बरकत दूंगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ।

तुम अपने दुश्मन से न डरो और बस मुझ से ही डरो और मुझ पर तवक्कुल करो। तुम सब्र करो‌। मैं अपनी ताक़त से ज़ालिम दुश्मन को पस्त कर दूंगा।

तुम दूसरों के साथ भलाई करो, तुम्हारा भला होगा। तुम जो भी नेकी करोगे, उसमें तुम्हारा अपना भला है। 

सच्चे लोगों के साथ हो जाओ। यतीमों और बेघर लोगों को धक्के न दो। उनसे मुहब्बत करो, माफ़ी और नर्मी से काम लो। रहम करो। सलाम करो। खाना खिलाओ। ज़रूरतमंदों के काम आओ। हमारे नबी ने अच्छे अख़्लाक़ की तालीम दी है। हमें अच्छे अख़्लाक़ से रहना है। अहले बैत, सहाबा, वली और सब आलिमों की तालीम यही है।

मैं भी यही बताता हूँ और मैं इसे रब का क़ानून ए क़ुदरत कहता हूं कि जिस आदमी ने भी इन कामों से अपने सुधार की शुरूआत की, उसका दुनिया और आख़िरत में भला हुआ और आपका भला भी ज़रूर होगा।

ज़्यादातर मुस्लिम इसे क़ुबूल करते हैं क्योंकि ये बातें उनकी चेतना की अंतर्संरचना ( #mindset/  #paradigm ) से मेल खाती हैं।

उन्हें महसूस नहीं होता कि मैंने इसमें #आकर्षण_का_नियम ही बयान किया है।

जब कोई मेरी बात को क़ुबूल नहीं करता तो उसमें उसकी ग़लती कम और मेरी ग़लती ज़्यादा होती है।

ज़्यादातर मामलों में मेरी ग़लती यह होती है कि मेरी लैंग्वेज उसके माईंडसेट से अलग होती है।

फिर मुस्लिमों में भी शिया, सुन्नी, वहाबी, अहले हदीस, बरेलवी, देवबंदी, जमाअत ए इस्लामी, तब्लीग़ी जमात, जमीयतुल उलमा ए हिंद, मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब की जमाअत और सूफ़ी की सोच के फ़्लेवर थोड़े थोड़े अलग हैं। जैसे कि शिया से पहली बार बात करते वक़्त मौला अली और इमाम हुसैन का ज़्यादा ज़िक्र किया जाए तो वह आपको 'ठीक आदमी' मान लेगा और इन अज़ीम बुजुर्गों का चर्चा बाइसे बरकत ही है।

ऐसे ही सुन्नी से बात करते हुए हज़रत अबू बक्र, उमर और हज़रत आयशा र० का, वहाबी से बात करते हुए तौहीद और शिर्क से मुताल्लिक़ आयतों का, अहले हदीस से बात करते हुए तीन तलाक़ से जुड़ी सूरह तलाक़ का, बरेलवी से बात करते हुए आला हज़रत के इल्मी मरतबे की बुलंदी का, देवबंदियों से बात करते हुए मौलाना अशरफ़ अली थानवी र० और दूसरे उलमा ए देवबंद की क़ुर्बानियों का, जमाअत ए इस्लामी के लोगों से बात करते हुए दीन के कामिल तसव्वुर और इक़ामते दीन का, तब्लीग़ी जमाअत के लोगों से मौलाना इलियास रहमतुल्लाहि अलैह के इख़्लास का और दाढ़ी, लिबास और मिस्वाक की सुन्नतों का, जमीयतुल उलमा के उलमा से मिलने पर तहरीक रेशमी रूमाल का, मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब की जमाअत के लोगों से सुलह हुदैबिया और पाज़िटिविटी का और सूफ़ी से मिलने पर ख़्वाहिशाते नफ़्स पर क़ाबू पाने और हर वक़्त अल्लाह का ज़िक्र करने का बयान किया जाए तो हरेक को आपकी बातों में उनकी अपनी पसंद का फ़्लेवर मिलेगा और वे आपकी बातें सुनकर आपको अपने दिल में 'ठीक आदमी' समझेंगे।

ऐसे ही सैयद, पठान, मुग़ल, शेख़, अंसारी, शम्सी, क़ुरैशी, सैफ़ी और गाड़ों की सोच के भी अलग अलग फ़्लेवर हैं। आप सबके पास बैठकर उनकी बातें बहुत ध्यान से सुनें। आपको पता चल जाएगा कि एक बिरादरी की नज़र में क्या बात ख़ास अहमियत रखती है और दूसरी बिरादरी की नज़र में क्या?

जब आप अंसारी दोस्त के साथ बैठें तो आप ज़्यादातर सैयद, शैख़, पठान और मुग़ल के घमंडी होने का ज़िक्र करके एक दो आयतें पढ़ें कि अल्लाह तकब्बुर को पसंद नहीं करता और देखो, अंसारी कितने सादा मिज़ाज और कितने मेहनती होते हैं, सहाबा की तरह। अब अंसारी आपको 'ठीक आदमी' मान लेगा और वह आपको भरपूर मुहब्बत और इज़्ज़त देगा।

और आप यह बात पूरी ईमानदारी सच्चाई से कहें। इसमें कोई छल कपट न करें। ईमानदार बनें और लोगों के माईंडसेट को पहचानें। फिर अपने एक ही मुहब्बत और भलाई के मैसेज को उनके माईंडसेट के एंगल से पेश करें ताकि  वे उसे क़ुबूल करें।

ऐसे ही हिंदू का माईंडसेट मुस्लिम से अलग होता है और दलित का माईंडसेट बनिए से अलग होता है। ठाकुर का माईंडसेट ब्राह्मण से अलग होता है। पुजारी का माईंड सेट भक्त से अलग होता है। हिंदुत्ववादी नेता का माईंडसेट उसके अपने वोटर से अलग होता है। हिंदू बहन का माईंड सेट भाई से, पत्नी का पति से और बाबा का माईंड सेट दानी से अलग होता है।

सबके फ़्लेवर के हिसाब से बात की जाय तो वह ज़्यादा असरदार है लेकिन जो बात मैंने ऊपर मुस्लिमों से कही है, अगर आप उसी को संस्कृतनिष्ठ कठोर हिंदी में अनुवाद करके कह दें तो हर फ़्लेवर का हिंदू उसे एक्सेप्ट करेगा क्योंकि वह उन बातों को बचपन से सुनता आ रहा है:

हे दिव्य आत्माओ, हमारा कल्याण केवल स्थिर आस्तिकता में निहित है। जगत मिथ्या है केवल ब्रह्म सत्य है। माया के मोह से बचो और परोपकार करो। परहित सरिस धरम नाहि। शुभ संकल्प करो और निर्लिप्त भाव से सत्कर्म करो। ऋषियों के मार्ग पर चलो। सनातन परम्परा का पालन करो। योग का अभ्यास करो। कुविचारों को मन से हटाते रहो। अपनी कल्पना में भी चुनो तो सदा शुभ चुनो। अपने संकल्प को और अपने वचन को शुभ बनाओ। अपने चित्त को कभी द्वंद और दुविधा में न डालो। सेवा या व्यापार, जिससे कमाते हो, धर्मानुसार कमाओ। तुम्हें धन और मान मिलेगा। तुम कृतज्ञ बनोगे तो परमेश्वर तुम्हें और अधिक बढ़ाएगा। उसकी ज्योति सदा तुममें है। वास्तव में उसी का प्रतिबिंब तुम्हारी आत्मा है। तुम अपने शत्रु से न डरो। अपनी आत्मा की दिव्य शक्ति को पहचानो। विश्वास करो कि तुम्हारी आत्मा तुम्हारे शत्रु को परास्त करने में सक्षम है। तुम्हारी आत्मा तुम्हारे अडिग विश्वास को फलित और घटित कर देगी।

तुम दूसरों का कल्याण करो, तुम्हारा कल्याण स्वयं होगा।

सदा सत्य पक्ष के लोगों के साथ रहो। अनाथ और बेसहारा लोगों को न धिक्कारो। धर्म का सार यह है कि सबसे दया, प्रेम, क्षमा, मधुरता और धैर्य आदि उत्तम गुणों के साथ व्वहार करो।

याचकों के काम आओ। हमारे ऋषियों ने सर्वश्रेषठ आचरण की शिक्षा दी है। हमारे अच्छे आचरण से ही हमारा कल्याण होता है। ऋषि, मुनि, मनस्वी, तपस्वी, यति और सिद्ध सबकी शिक्षा यही है। यही वेद मार्ग है।

यही सृष्टि नियम है। जिस मनुष्य का लोक परलोक में कल्याण हुआ सृष्टि नियम से ही हुआ है। अत: इस रहस्य को ह्रदयंगम कर लो।

ऐसे ही बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई, लिंगायत, ब्रह्माकुमारी मिशन, कबीर पंथ और दूसरे पंथों के लोगों का माईंड सेट एक दूसरे से थोड़ा थोड़ा अलग होता है।

जब उनमें से कोई आपकी बात क़ुबूल नहीं करता तो ज़्यादातर आपकी ग़लती होती है और वह ग़लती यह होती है कि आपने हिकमत के बग़ैर इल्म पेश कर दिया।

बात चल रही थी 'ला आफ़ अट्रैक्शन' की।

मुख़्तसर बात यह है कि अल्हम्दुलिल्लाह, मैं हर धर्म और हर पंथ के लोगों के सामने उनके धर्मग्रंथ से ला आफ़ अट्रैक्शन की शिक्षा दे सकता हूँ।

वे वही बातें हैं, जो वे रोज़ सुनते हैं जैसे कि

'हर पंछी अपने जैसे पंछी के साथ ही उड़ता है। कबूतर कबूतर के साथ और बाज़ बाज़ के साथ उड़ता है।'

या यह कहें कि 'बबूल बोने से बबूल ही मिलता है, आम नहीं।'

'जैसा बोना, वैसा काटना।'

क्या कोई इस क़ानूने क़ुदरत का इन्कार करेगा?

नहीं।

आज न्यू एज थिंकर्स इसे Law_of_Attraction कहते हैं।

आपको इस नाम से चिढ़ है तो आप कोई दूसरा नाम रख लें।

आप ला आफ़ अट्रैक्शन को साईंस नहीं मानते, तो मुझे क्या? मैं यह नहीं कहूंगा कि आप इसे साईंस मानें।

हमारे घरों में आर्ट और फ़लसफ़ों की तकनीकों से भी काम लिया जाता है। आप इसे आर्ट और फ़लसफ़ा तो ज़रूर मानेंगे!

आप मानते हैं कि न्यू एज थिंकर्स की किताबों में कमियां है तो मैं भी यह बात मानता हूं।

अब आप एक किताब ऐसी लिख दें जिसमें कोई कमी न हो और जिससे सब धर्मों के लोग फ़ायदा उठाएं।

मैं आपका स्वागत करता हूँ।

हम सब मिलकर पूरी मानव जाति को मुहब्बत और तिजारत का सबक़ दें तो सबके दिल और पेट भरेंगे।

चारों तरफ़ फैली हुई बेरोज़गारी और भूख को देखो और हर धर्म के लोगों को ऐसी बातें सिखाओ, जिससे वे पलें और वे अपने पालनहार को पहचानें।


मेरी इस बात में कोई कमी हो तो आप उस कमी को छोड़ दें और इस काम को और ज़्यादा उम्दा तरीक़े से करें।

मैं आपको एप्रिशिएट करूंगा।

Monday, August 3, 2020

सख़्ती के बजाय नर्मी से कहें सच बात

आज मैंने एक कमेंट पढ़ा। जिसमें आलिमों के ख़िलाफ़ बहुत सख़्त ज़ुबान इस्तेमाल की है। देखिए-
मुस्लिमों ने ही अपने जाहिल मौलवियों के कहने में आकर अल्पसंख्यक वैदिक हिंदुओं को बहुसंख्यक माना है जबकि हिंदू केवल 15% हैं।
आदिवासी सरना धरम को मानते हैं। लिंगायत, बौद्ध, जैन, सिख, दलित और वेदों के विरोधियों के पंथों को अलग कर दें तो वैदिक हिंदू भारत में अल्पसंख्यक हैं। मुस्लिम यह राज़ समझकर कोई प्रोग्राम न बना लें; वैदिक हिंदू इस बात से डरे हुए हैं।
जब मुस्लिम इस बात को समझ लेंगे तो वे यहां बहुसंख्यक बन जाएंगे क्योंकि वे 18% से ज़्यादा है।
संघ और कांग्रेस ने मौलवियों को झांसा दिया है और नेता बने हुए मौलवियों की अक़्ल घास चरने गई हुई थी जो वे पहले कांग्रेस के और अब संघ के क़ौल पर ईमान लाए कि हिंदू बहुसंख्यक हैं।
जिन्हें राम मंदिर में कमाने का मौक़ा मिला है, उनकी जातियाँ देखो। बस वही जाति वर्ण हिंदू हैं। बाक़ी जबरन बनाए गए दास और सेवक हैं।

समीक्षा:
दावा सायकोलॉजी आपको नर्मी और हिकमत की तालीम देती है। जब आप कमेंट करें तो आलिमों के ख़िलाफ़ सख़्त ज़ुबान इस्तेमाल न करें वर्ना उनके मुरीद भड़क जाएंगे। मुरीद कभी नहीं मान सकते कि उनके पीर साहब के फ़ैसले ग़लत थे।
कांग्रेस और आरएसएस से भी अच्छी बातें सीखें कि वे कैसे नाकुछ से कुछ और भी राजनीति में सब कुछ हो गए।
अल्लाह ने हर चीज़ में हमारे लिए शिक्षा रखी है। वही शिक्षा लेना और देना हमारा काम है।

इबादत और इस्तआनत यानी ग़ुलामी और मदद के आपसी रिशते को समझकर अपनी इबादत सही करें

आपको पता हो या पता न हो लेकिन इस दुनिया की हर चीज़ एनर्जी से बनी है। एनर्जी एक लहर, wave है और यह wave, thought wave है। यह पूरा यूनिवर्स हक़ीक़त में विचार समुद्र है।
इसमें आपकी नैया डोल रही है तो आपको अपने विचार का चुनाव ठीक करना होगा।

आप किसी विचार को पैदा नहीं कर सकते।
हर विचार आपके पैदा होने से पहले कहीं मौजूद है।
विचार बस आपके मन में आते हैं।
आप केवल उनका चुनाव और मैनेजमेंट कर सकते हैं।
आपकी जीत हार और आपकी ग़रीबी अमीरी सब हालात हैं और ये हालात आपके #thought_management के नतीजे हैं।
आपकी जान माल आबरू पर बनी हुई है। आपके दिल का चैन ग़ारत है। आपको हर दम यह आशंका रहती है कि न जाने मंगोल या चीनी या कोई और दुश्मन किधर से हमला कर दे ...लेकिन
मौलवी साहब इसे अल्लाह का अज़ाब या नाराज़गी बता रहे हैं।
वे यह क़ुबूल नहीं कर रहे हैं कि
हमारे तख़मीने फ़ेल हो गए।
तुम हमारे मरवाए हुए हो क्योंकि हमारे पास हिफ़ाज़त का कोई विज़न नहीं था और हमने तुम्हें मस्जिदों में thought management सिखाया नहीं।

एक मौलवी साहब ने और फिर बहुत सारे मौलवी साहिबान ने यह वजह बताई कि मुस्लिमों ने दावते दीन का काम छोड़ दिया है। अगर मुस्लिम दावते दीन का काम करते और सबको मुस्लिम कर लेते तो आज मंगोल आदि के हमलों का डर न होता।
अगर ऐसा होता तो पाकिस्तान चैन से होता क्योंकि वहाँ अब तक़रीबन सब मुस्लिम ही हैं। उनका भी चैन ग़ारत है। वहां ग़रीबी है जबकि दुबई के शैख़ ने रेगिस्तान में फूल खिला दिए और वहाँ चैन भी है और वहाँ हर किसी के दावते दीन का काम करने पर भी पाबंदी है।
आप कहेंगे कि पाकिस्तान को अच्छे लीडर नहीं मिले।
अगर कोई पाकिस्तान के नागरिकों से पूछे कि बुरे लीडर कहाँ से आते हैं?
तो वे कहेंगे कि हममें से आते हैं और हमारे 'चुनाव' से आते हैं।

इस बात आकर हम पर और हमारे चुनाव टिकती है।
और 'चुनाव' बिना विचार के मुमकिन नहीं है।
बुरे लीडर की जगह अच्छा लीडर लाना भी विचार का चुनाव बदले बिना मुमकिन नहीं है।
यह तय है।
आपकी बाहर की हर समस्या का हल जाकर आपके अंदर के विचार पर टिकता है।
जब इंसानी सोसायटी पर कोई आफ़त मुसीबत या ग़ुलामी पड़ती थी तो नबियों आकर यही सिखाया कि अपने विचार बदलो। अपने दिल से बुरे विचार निकालो और अच्छे विचार जमाओ।

आपके अंदर हर वक़्त विचार आते हैं। आपके विचार आपकी शक्ति हैं। अब वक़्त है अपनी शक्ति पहचानने का।
आपको राजनैतिक लीडर और पेशवा-पुरोहित आपकी शक्ति की पहचान नहीं कराते ताकि आप अपनी मर्ज़ी से उसका इस्तेमाल न करने लगें। वे आपको ग़ुलाम बनाए हुए हैं और उनके बाप दादा ने आपके बाप दादा से ख़ुद को मनवाया और अब वे ख़ुद को आपसे मनवाते रहते हैं।
ये अपने नज़रिए में 'इलाहुल अर्ज़' यानी भूदेव बन चुके हैं और आपसे अपनी ग़ुलामी करवा रहे हैं। ग़ुलामी को ही अरबी में इबादत कहते हैं।

ये बातिल माबूद आप पर तभी तक मुसल्लत हैं, जब तक आप विचार नहीं करते। पवित्र क़ुरआन आपको विचार करने को कहता है और ये आपको दीन की बातों पर विचार करने से रोकते हैं।
विचार करना दीन का काम है। आप इस समय किस वक़्त की नमाज़ पढ़ेंगे?
आप यह बात अक़्ल और विचार से तय करते हैं। दीन की हर बात में अक़्लमंदी है और बातिल माबूद आपसे कहते हैं कि
दीन में अक़्ल को दख़ल नहीं है। हमारा दीन नक़्ल पर है।

आप जानते हैं कि नक़्ल करना बंदर का काम है।
हर धर्म के बातिल माबूदों ने अपने मानने वालो को बंदर बनाकर छोड़ दिया है और ऐसे बंदरों के लिए अल्लाह ने ज़िल्लत यानी पस्ती मुक़र्रर की है:
कहो, "क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि अल्लाह के यहाँ परिणाम की दृष्टि से इससे भी बुरी नीति क्या है? कौन गिरोह है जिसपर अल्लाह की फिटकार पड़ी और जिसपर अल्लाह का प्रकोप हुआ और जिसमें से उसने बन्दर और सूअर बनाए और जिसने बढ़े हुए फ़सादी (ताग़ूत) की बन्दगी की, वे लोग (तुमसे भी) निकृष्ट दर्जे के थे। और वे (तुमसे भी अधिक) सीधे मार्ग से भटके हुए थे।" -पवित्र क़ुर'आन 5:60

अफ़सोस की बात यह है कि फ़ितरत मस्ख़ (विकृत) हो चुकी है, जिसकी भविष्यवाणी हदीस में की गई है:
عبداللہ بن مسعود رضي اللہ تعالی عنہما بیان کرتے ہیں کہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا :

( قیامت سے قبل مسخ اورزمین میں دھنسنا پتھروں کی بارش ہوگی ) سنن ابن ماجہ حدیث نمبر ( 4059 ) اور صحیح ابن ماجہ ( 3280 ) ۔
अब आप इस बात से ज़रूर सहमत होंगे कि आपका असल मसला अल्लाह के ग़ैर की इबादत करना है।
इबादत और इस्तआनत (मदद) आपस में जुड़े हुए हैं। आप #creator_of_nature अल्लाह की इबादत करेंगे तो अल्लाह अपनी नेचर से आपकी मदद करता है और उससे मदद मांगने पर और ज़्यादा मदद करेगा।
जब आपने पेशवा पुरोहितों की ग़ुलामी (इबादत) की है तो उन्होंने मुसीबत में आपकी मदद नहीं की बल्कि उन्होंने ताग़ूत के सामने समर्पण करके ख़ुद को बचाया और लिंचिंग में छोड़ दिया और आपको अल्लाह की नेचर ने भी सपोर्ट न किया।

अगर आप विचार करेंगे तभी आप इस राज़ को समझ सकते हैं कि
आपकी मुसीबत की जड़ बुरे मौलवी साहब यानी उलमा ए सू हैं जो अपनी इबादत (ग़ुलामी) कराते हैं। जो आपके विज़न से औरतों की आबरू की हिफ़ाज़त जैसे अहम प्वाईंट को हटा चुके हैं। वे कभी इस पर न मस्जिद में तक़रीर करते हैं और न इस पर दो चार किताब लिखते हैं। वे इस अहम मौज़ू को छोड़कर दाढ़ी की लम्बाई पर किताब लिखते हैं।

यह यूनिवर्स एक समुद्र की तरह है, जिसमें हर चीज़ तैर रही है।
ۚ
وَكُلٌّ فِي فَلَكٍ يَسْبَحُونَ ﴿٤٠﴾

'और सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं।' -पवित्र क़ुर'आन 36:40
आप इस आयत में 'तैरना' शब्द देख सकते हैं।
अब वक़्त है कि आप जिस यूनिवर्स में रहते हैं, आप उसकी हक़ीक़त को और ख़ुद अपनी हक़ीक़त को समझें और Creator की इबादत करें ताकि यह नेचर आपको सपोर्ट करे। अगर आपको नेचर सपोर्ट करती है तो यह आपके दुश्मन को भी डुबा सकती है जैसे फ़िरऔन को डुबोया। आप हमेशा अच्छे विचार का चुनाव करें।
हमें उलमा ए हक़ से यह इल्म मुन्तक़िल हुआ है। उनसे अल्लाह राज़ी हो और अल्लाह से दुआ है कि वह उन पर और ज़्यादा रहमत नाज़िल करे।

कह दो, "यही मेरा मार्ग है। मैं अल्लाह की ओर बुलाता हूँ। मैं स्वयं भी पूर्ण प्रकाश में हूँ और मेरे अनुयायी भी - महिमावान है अल्लाह! - और मैं कदापि बहुदेववादी (भूदेववादी) नहीं हूँ।"
-पवित्र क़ुरआन 12:108


Sunday, July 26, 2020

Qurbani हिंदुओं की अर्थ व्यवस्था को कैसे सपोर्ट करती है?

बक़रईद से पहले कुछ हिंदुत्ववादी क़ुरबानी का विरोध करने लगते हैं। यह हर साल का काम बन चुका है। ये ख़ुद को जीवों की रक्षा करने वाला कहते हैं जबकि इन्हें जीव रक्षा से कोई वास्ता नहीं है। मैंने इन लोगों से हमेशा कहा है कि
आप मछली और सुअर को बचाने के लिए भी आंदोलन करो। वे भी जीव हैं लेकिन ये लोग ऐसा नहीं करते और न ही ये कभी ऐसा करेंगे क्योंकि
वास्तव में ये अपनी नज़र में मुस्लिम समाज से एक जंग लड़ रहे हैं और ये लोग यह जंग भी मुस्लिमों के तरीक़े पर माँस खाते हुए लड़ रहे हैं। ये भारत को बीफ़ निर्यात में चोटी के दो चार देशों में पहुंचा चुके हैं। इनके फ़्रिज में मछली और मुर्ग़ा भरा रहता है। दक्षिण भारत, महाराष्ट्र, आसाम, उड़ीसा, बंगाल और गढ़वाल में आम हिन्दुओं के दैनिक भोजन में मछली शामिल है। हिंदुत्ववादियों को इनके जीव मारने और मांस खाने पर आपत्ति नहीं है। 
हक़ीक़त यह है कि हिंदूवादी संघ को सत्ता पाने और फिर उसे क़ायम रखने के लिए 738 जातियों को अपनी छत्री के नीचे एक रखने की ज़रूरत है और इसके लिए उसे एक दुश्मन की ज़रूरत है, जिससे वह सब जातियों को डरा सके और सबको उससे लड़ा सके। उसने उस दुश्मन के रूप में मुस्लिम का चुनाव किया है। उसी ने इन्हें मुस्लिम विरोध का टास्क दिया है। यही विरोध इन्हें संघ की छत्री में एक रखता है।
इसीलिए बक़रईद पर हिंदुत्ववादी क़ुर्बानी का विरोध करते हैं।
बक़रईद पर क़ुर्बानी के विरोध के पीछे राजनैतिक उद्देश्य होते हैं। यह अब साफ़ है।
आपको इस विरोध के जवाब में लिखते हुए यह समझाना ज़रूरी है कि
बक़रईद के मौक़े पर जो पशु मुस्लिम ख़रीदते हैं,
उन्हें पालने और बेचने वाले राजस्थान और पहाड़ी इलाक़ों की हिन्दू जातियों के लोग (वास्तव में पिछड़े, दलित और आदिवासी) होते हैं और उन पशुओं का हड्डी, चमड़ा व अन्य अवशेष टैनरियों, फ़ैक्ट्रियों और फ़ार्मेसियों को जाता है। जिनके मालिक भी हिन्दू (वास्तव में सवर्ण जाति वाले) होते हैं। इस्लामी क़ुर्बानी से खरबों रूपए का रोज़गार पैदा होता है और यक़ीनन यह खरबों रूपया भारत के (हिन्दू/सवर्ण) राजनेताओं से लेकर किसान मज़दूर, सबके हाथों में ज़रूर पहुंचता है। राजनेता उस रूपए को अपनी सरकार मज़बूत बनाने में लगाते हैं और आम हिंदू उस रूपए से अपनी बेटियाँ ब्याहते हैं। जिससे हिंदुओं के घरों में लाखों बच्चे पैदा होते हैं। ये वे हिंदू हित हैं, जिन्हें इस्लामी क़ुर्बानी सपोर्ट करती है। हिंदुत्ववादी होने के नाते हिंदुत्ववादियों को हिन्दू हितों को सपोर्ट करना चाहिए, न कि उनके विरोध में खड़ा होना चाहिए।
क्या क़ुरबानी को रोकने का सीधा अर्थ हिंदुओं की अर्थ व्यवस्था को ध्वस्त करना नहीं है?

Monday, July 20, 2020

मन्न और सल्वा के कांसेप्ट को आम करें ताकि रब से रोज़ी सबको मुफ़्त मिले

अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने में अपने बंदों को मन्न और सलवा खिलाया। एक रिसर्च के मुताबिक़ मन्न दो झाड़ियों Tamarix mannifera (झाऊ), Alhagi maurorum (Persian Mannaplant जवांसा) से मिलता था और सलवा एक परिंदा था। रब ने उन्हें बस्तियों से दूर नेचर से यह फ़ूड दिया था। उन्हें यह फ़ूड मुफ़्त और बिला मशक़्क़त मिलता था और इस फ़ूड से उन्हें सभी ज़रूरी पोषक तत्व मिल जाते थे। बाईबिल (exodus 16:31) और क़ुरआन (2:57) दोनों में रब की इस नेमत का ज़िक्र है। जब हम अल्लाह की इस निशानी पर ग़ौर करते हैं तो हमें पता चलता है कि रब रज़्ज़ाक़ है और नेचर में सबका रिज़्क़ भरपूर मौजूद है, अल्हम्दुलिल्लाह!
जो लोग अल्लाह की निशानियों में ग़ौरो फ़िक्र करते हैं, उन्हें हर जगह कुछ ऐसी चीज़ें मिल जाएंगी, जो खाई जा सकती हैं और उनसे ज़रूरत के सभी तत्व मिल जाते हैं। जैसे कि हज़रत साबिर साहब कलियरी रहमतुल्लाहि अलैह गूलर खाया करते थे और गूलर से भोजन की ज़रूरत पूरी हो जाती है, अल्हम्दुलिल्लाह!
सहजन भी एक ऐसा ही पेड़ है। इसे इस सेंचुरी की डिस्कवरी क़रार दिया गया है। यह ग़रीबों की बस्तियों में और ख़ास तौर से बिहारियों की बस्तियों में आम पाया जाता है। इसके एक मुठ्ठी पत्ते खाने से प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, विटामिन सी और दूसरे न्यूट्रिएंट्स मिलते हैं। सभी ग़रीब लोग बरसात में इस पेड़ को अपने घर में या सड़क के किनारे सरकारी ज़मीन पर लगाकर मन्न व सल्वा की तरह मुफ़्त में बिला मशक़क़्त रब की क़ुदरत से उम्दा और पाक फ़ूड पा सकते हैं।
आप लोग इस बरसात में गूलर और सहजन के साथ अंजीर भी लगा दें। आप लोग अमीर या मिडिल क्लास हैं और आप सोच सकते हैं कि आपको गूलर, सहजन और अंजीर की ज़रूरत नहीं है तो यह आपका अज्ञान है।
आप इन तीन पेड़ों के बारे में यूट्यूब पर वीडियो देखें। इसके बाद आपको पता चलेगा कि पेट व लिवर रोगों को और फ़ेल हो चुके गुर्दों को ये ठीक करते हैं। जिन औरतों के बाल झड़ रहे हैं और जिनके चेहरे पर झुर्रियां पड़ चुकी हैं। उन्हें ये तीनों पेड़ बूढ़े से जवान बनाते हैं।
जो लोग अमीर हैं। उन्हें जवान, हसीन और ताक़तवर बने रहने के लिए गूलर, सहजन और अंजीर खाना ज़रूरी है। जब अल्लाह के नेक हकीम बंदों की छोड़ी हुई किताबें पढ़ेंगे तो आपको वहाँ ऐसे दर्जनों पेड़ पौधे और भी मिलेंगे, जो जंगल में ख़ुद पैदा हो जाते हैं या उन्हें घर में, गमलों में बहुत आसानी से उगाया जा सकता है और उनसे साल भर मुफ़्त में रोज़ी मिलती है।
कोविड19 की वजह से यह ख़ुद को ज़िंदा रखने का साल है।
इसलिए मन्न और सल्वा के कांसेप्ट को आम करने की ज़रूरत है। जंगल में झाऊ और जवांसा भी बहुत मिलता है।
अल्हम्दुलिल्लाह!

Thursday, July 16, 2020

क्या हमारे देश में कुछ मस्जिदों को मंदिर बनाया गया है? ●

क्या यह सच है कि हमारे देश में कुछ मस्जिदों को मंदिर बना दिया है?
● जामा मस्जिद फर्रुख़नगर हरियाणा
● ख़िलजी जामा मस्जिद दौलताबाद औरंगाबाद महाराष्ट्र
● दाना शीर मस्जिद हिसार हरियाणा
● जामा मस्जिद सोनीपत हरियाणा
ताज़ा मामला अयोध्या की बाबरी मस्जिद का है जिसे शहीद करके राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है!
इसके अलावा लाल मस्जिद डालगंज मार्केट, लुधियाना को गुरुद्वारे में बदला जा चुका है!
जो बेशर्म कुर्दोग़लू तुर्की की #हाया_सोफ़िया मस्जिद पर ज्ञान पेल रहे हैं, वे इन पर भी न्याय की माँग करते तो वे सच्चे और मुन्सिफ़ माने जाते।

Wednesday, July 15, 2020

क्या इस्लामी नियम मानने के कारण हिंदू एक तरह के मुस्लिम बन चुके हैं?

समा चुका है इस्लाम हिंदुओं के दैनिक जीवन में
मैं इस्लाम की मज़ाक़ उड़ाने वाले आर्य समाजियों और हिंदुत्ववादियों को हमेशा एक छिपे हुए मिश्रित मुस्लिम के रूप में देखता हूँ।
ये पगलैट और हठधर्म होने का दिखावा करते हैं वर्ना हक़ीक़त यह है कि ये लोग चुपके चुपके इस्लामी सभ्यता और रहन सहन सीखते हैं और इस्लाम को उसका क्रेडिट नहीं देते कि अब हम वर्ण व्यवस्था पर नहीं बल्कि इस्लाम पर चलते हैं।
आप देख सकते हैं, अब ये लोग छूतछात नहीं मानते। कोविड19 से बचाव के लिए सरकार सोशल डिस्टेंस को कह रही है कि एक दूसरे से दूर रहो लेकिन
ये लोग मुस्लिमों की तरह सब एक दूसरे को छू रहे हैं। जिसके कारण हिंदू भाईयों से जुर्माने के रूप में करोड़ों रूपया वसूला जा चुका है।मुस्लिमों के आने से पहले भारतीय हिंदू जातियों की यह हालत न थी।
अब ये अपना घर यानी अपना वर्ण धर्म छोड़कर इस्लाम में शरण लिए हुए हैं।
इस्लामम् शरणम् गच्छामि।

इस सामाजिक सत्य को सब पहचानें।
मैं हिंदू भाईयों से यह नहीं कहता कि आप इस्लाम क़ुबूल कर लें क्योंकि यह काम काफ़ी कुछ वे पहले ही कर चुके हैं।
जिस पर मैं उन्हें बस मुबारकबाद देता हूँ कि
मुबारक हो, अब आप इस्लामी नियम मानने के कारण एक तरह के मुस्लिम हैं, अल्हम्दुलिल्लाह!
क्या आप मेरे नज़रिए से भारतीय समाज को देख सकते हैं?
इमेज नीचे अवेलेबल है:

Monday, July 13, 2020

क्या वैदिक धर्मी तुर्की को शर्मिन्दा करने के लिए जैनियों के क़ब्ज़ाए हुए मंदिर लौटा सकते हैं?


क्या अब वैदिक धर्मी जैनियों के क़ब्ज़ाए हुए मंदिर लौटा देंगे?
तुर्की देश में हाजिया सफ़िया म्यूज़ियम को मस्जिद बनाने का विरोध करने वाले भारतीय वैदिक और आर्य समाजी भाईयों से मुझमें अचानक यह आशा जागी है कि चाहे तुर्की के लोग न्याय न करें परन्तु वैदिक धर्म प्रचारक अवश्य न्याय करेंगे और जैनियों के क़ब्ज़ाए हुए मंदिर जैनियों को वापस कर देंगे या कम से कम उन्हें वापस करने के लिए लेख अवश्य लिखेंगे। स्वामी दयानन्द जी स्वीकार करते हैं:
'शंकराचार्य्य के सर्वत्र आर्यावर्त्त देश में घूमने का प्रबन्ध सुधन्वादि राजाओं ने कर दिया और उन की रक्षा के लिये साथ में नौकर चाकर भी रख दिये। उसी समय से सब के यज्ञोपवीत होने लगे और वेदों का पठन-पाठन भी चला। दस वर्ष के भीतर सर्वत्र आर्यावर्त्त देश में घूम कर जैनियों का खण्डन और वेदों का मण्डन किया। परन्तु शंकराचार्य्य के समय में जैन विध्वंस अर्थात् जितनी मूर्त्तियां जैनियों की निकलती हैं। वे शंकराचार्य्य के समय में टूटी थीं और जो विना टूटी निकलती हैं वे जैनियों ने भूमि में गाड़ दी थीं कि तोड़ी न जायें। वे अब तक कहीं भूमि में से निकलती हैं। शंकराचार्य्य के पूर्व शैवमत भी थोड़ा सा प्रचरित था; उस का भी खण्डन किया। वाममार्ग का खण्डन किया। उस समय इस देश में धन बहुत था और स्वदेशभक्ति भी थी। जैनियों के मन्दिर शंकराचार्य्य और सुधन्वा राजा ने नहीं तुड़वाये थे क्योंकि उन में वेदादि की पाठशाला करने की इच्छा थी।'

-सत्यार्थ प्रकाश, 11वाँ समुल्लास

यदि वैदिक धर्मी जैनियों के क़ब्ज़ाए हुए मंदिर लौटाने के बाद हाजिया सफ़िया मस्जिद का विरोध करें तो तुर्की लोग भी न्याय करने पर मजबूर हो जाएंगे वर्ना वे भी भारतीय इतिहास पढ़कर हिंदुत्ववादियों को न्याय करने के लिए कहेंगे।
हमें वैदिक धर्म और हिन्दुत्व का सिर शर्मिंदगी से झुकने से बचाना होगा और क़ब्जाए हुए जैन मंदिर जैनियों को सादर लौटाने होंगे।

आपकी सुविधा के लिए नीचे इमेज भी अवेलेबल है:

Thursday, July 9, 2020

किस बात से आर्य समाजी की बोलती बंद हो जाती है?

आप किसी बहस करने वाले आर्य समाजी को ग़मज़दा और डिप्रेस्ड करना चाहते हैं तो आप उससे केवल यह कह दें कि अगर आप दुनिया के सब धर्मों को ग़लत और वैदिक धर्म को सत्य मानते हैं तो आप वैदिक धर्म के चार वर्ण, चार आश्रम और विवाह व गर्भाधान आदि सोलह संस्कारों का पालन ठीक वैसे ही करें जैसे कि स्वामी दयानंद जी सिखाकर गए हैं। आप उनके उपदेश के अनुसार सुबह और शाम दोनों टाईम हवन किया करें।
यह सुनते ही आर्य समाजी फ़ौरन ग़मज़दा और डिप्रेस्ड हो जाएगा क्योंकि वह वैदिक धर्म की वर्णाश्रम व्यवस्था और उसके सोलह संस्कारों का पालन नहीं कर सकता।
वह बस दूसरे धर्म वालों से बहस कर सकता है कि दूसरों के धर्म ग़लत हैं लेकिन ख़ुद अपने धर्म के बुनियादी अनिवार्य नियमों पर नहीं चल सकता, जिन्हें वह सत्य मानता है।
वह आपसे अपने धर्म के इस दोष या गुण को छिपाता है कि वैदिक धर्म के नियमों का पालन असम्भव है। ब्रह्मचर्य आश्रम असम्भव है।
इसलिए जब एक आर्य समाजी आपसे बहस करे तो आप उसे उसके धर्म के अनुसार कर्म करने के लिए कहें। वह इसके लिए कभी तैयार नहीं होगा और इस तरह आप उसे यह रियलाईज़ करा देंगे कि वह एक ऐसे धर्म की ओर से बहस कर रहा है कि अगर वह उसे सत्य सिद्ध भी कर दे, तब भी वह उस पर चल नहीं सकता और परमेश्वर का धर्म ऐसा कभी नहीं हो सकता कि जो उसे सत्य माने, वह उस पर चल न सके।
इसलिए सभी धर्मों के नेक लोगों को मेरी यह सलाह है कि आर्य समाजियों से बेकार बहस न करें। उनसे कहें कि आप अपने धर्म पर चलकर दिखाओ। यह काम वह न कर पाएगा और फिर वह आपसे बेकार बहस भी न करेगा।
हाँ, वह अपनी पोल खुलने पर ग़ुस्से में आकर गाली गलौच कर सकता है या फिर अपनी ख़राब आदत के मुताबिक़ आपके धर्म की मज़ाक़ उड़ा सकता। जिसके लिए आर्य समाजी पहचाने जाते हैं लेकिन वह अपने धर्म पर नहीं चल सकता क्योंकि अधिकतर आर्य समाजियों के लिए वैदिक धर्म पर चलना सम्भव नहीं है।
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Tuesday, July 7, 2020

DR. ANWER JAMAL से उत्तर की आशा रखने वाले आर्य समाजी प्रश्नकर्ता में कौन कौन सी योग्यता होना आवश्यक है?

हमसे उत्तर लेने के लिए किसी आर्य समाजी लेखक में तीन बातें होनी आवश्यक हैं।
पहला ज्ञान, दूसरी हैसियत और तीसरी सभ्यता।

1. यदि वह हमारे पहले से लम्बित प्रश्नों के उत्तर दे देता है जो कि 'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा क्या पाया?' नामक पुस्तक में उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं तो हम जान लेंगे कि यह ज्ञान रखता है।
हमारे प्रश्नों का उत्तर दे दो और हमसे उत्तर ले लो। यह पुस्तक इंटरनेट पर मुफ़्त अवेलेबल है-

2. दूसरी बात यह है कि जो आदमी हमसे प्रश्न करे वह हमारे बराबर की हैसियत का हो यानि जैसे मैं अपने दीन के अनिवार्य नियमों का पालन करता हूं वैसे ही वह आर्य समाज के अनुसार वैदिक धर्म के अनिवार्य संस्कारों का पालन करता हो,
उनके विपरीत न चलता हो।

जो हमारे बराबर की हैसियत का हो,
वही हमसे प्रश्न करने का अधिकारी है।
जब ऐसा व्यक्ति प्रश्न करेगा,
हम उसे उत्तर देंगे।

जो दो समय हवन न करता हो, जो वैदिक गर्भाधान संस्कार के बजाय इस्लामी संस्कार से पैदा हुआ हो,
वह तो पहले ही आर्य समाज/वैदिक धर्म से बाहर है। उसे हमसे प्रश्न का अधिकार ही नहीं है और
अधिकतर आर्य समाजी ऐसे ही पतित और भ्रष्ट हैं।
स्वामी दयानंद जी ने चतुर्थ समुल्लास में ऐसे लोगों को बाहर निकालने की व्यवस्था दी है।
¤ हवन न करने वाले शूद्र्वत् हैं
स्वामी जी कहते हैं कि
‘इसलिए दिन और रात्रि के सन्धि में अर्थात् सूर्योदय और अस्त समय में परमेश्वर का ध्यान और अग्निहोत्र अवश्य करना चाहिए।।3।। और जो ये दोनों काम सायं और प्रातःकाल में न करे उसको सज्जन लोग सब द्विजों के कर्मों से बाहर निकाल देवें अर्थात् उसे शूद्रवत् समझें।।4।।
(सत्यार्थ प्रकाश, चतुर्थसमुल्लास, पृष्ठ सं. 65)


3. तीसरी बात, उसमें सभ्यता होनी चाहिए। वह असंसदीय भाषा का इस्तेमाल न करता हो, वह गालियाँ न बकता हो। उसे सम्मानित लोगों से यानि हमसे बात करने की तमीज़ होनी ज़रूरी है। बदतमीज़ आदमियों से समाज के सम्मानित लोग बात नहीं करते।

Monday, July 6, 2020

आर्य समाजी दूसरे धर्मों के महापुरुषों की मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं?

कारण
क्योंकि वास्तव में दूसरे धर्मों की मज़ाक़ उड़ाने वाले आर्य समाजी मूर्ख अर्थात् शूद्र होते हैं। वे अपने वैदिक धर्म पर चल नहीं सकते। वे दो टाईम डेली हवन तक नहीं करते। इसीलिए वे सदा कुंठित और निराश रहते हैं।
जब जब मैंने सोचा कि आर्य समाजी दूसरे धर्म के महापुरुषों की मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं और वे धर्म चर्चा के बीच में दूसरों को ग़ुस्सा दिलाने के लिए गंदी गालियाँ क्यों बकते हैं?
तब तब मेरी अन्तरात्मा ने मुझसे कहा: कुंठित और निराश आर्य समाजी इसलिए ऐसा करते हैं क्योंकि स्वामी दयानंद जी ने उन्हें बीच में टाँग दिया है।
देखिए कैसे?
स्वामी दयानंद जी ने उन्हें चार वैदिक आश्रमों के पालन का उपदेश दिया:
1. ब्रह्मचर्य आश्रम 2. गृहस्थ आश्रम 3. वानप्रस्थ आश्रम 4. सन्यास आश्रम
आर्य समाजी दो आश्रम ब्रह्मचर्य और सन्यास नहीं करते हैं। आर्य समाजी युवाओं को उनके पिता गुरूकुल के बजाय कान्वेंट स्कूल में लड़कियों के साथ पढवाते हैं। जहाँ उनका ब्रह्मचर्य सब नष्ट हो जाता है। दयानंद एंग्लो वैदिक कालिज (DAV College) में भी लड़के लड़कियां साथ साथ पढ़ते हैं। जोकि दयानंद जी की शिक्षा के विपरीत है। 
आर्य समाजियों से वानप्रस्थ आश्रम भी नहीं होता। गृहस्थ आश्रम उनका यूं सफल नहीं है क्योंकि आर्य समाजी दयानंद जी की बताई जटिल रीति के अनुसार चार पंडितों से गर्भाधान संस्कार के मंत्र पढ़वाए बिना, उनसे और सब वृद्धों से आशीर्वाद लिए बिना मुस्लिमों की तरह ही पत्नी को गर्भवती करते हैं। क्योंकि आसान और प्रैक्टिकल तरीक़ा यही है।
आर्य समाजी अपने धर्म के चार आश्रमों 1. ब्रह्मचर्य आश्रम 2. गृहस्थ आश्रम 3. वानप्रस्थ आश्रम 4. सन्यास आश्रम; पर नहीं चल पाते। जिसके कारण वे कुंठित और निराशा से हर समय खीझते और चिढ़ते रहते हैं। जब वे मुस्लिमों को ज़कात (दान) देते हुए और नमाज़ पढ़ते हुए या सिखों को अरदास करते हुए देखते हैं और दूसरे धर्म वालों को अपने धर्म पर चलते हुए देखते है तो उन्हें अपनी दुर्दशा पर बहुत क्रोध आता है। इसीलिए वे दूसरों के अच्छे कामों की सराहना नहीं करते बल्कि उन पर क्रोधित होकर उनका मज़ाक़ उड़ाते रहते हैं। ख़ुद को आर्य समाजी दिखाने के लिए उनके पास बस अब यही एक काम बचा है कि दूसरे धर्मों की और उनके महापुरुषों की मज़ाक़ उड़ाते रहें। वे यह भी न करें तो वे आर्य समाजी न दिखें।
इसकी असल वजह यही है कि न तो वे अपने वैदिक धर्म के चारों आश्रमों पर चलते हैं और न ही चल सकते हैं। अब वे न वैदिक धर्म पर चल सकते हैं और न उसे अव्यवहारिक कहकर छोड़ सकते हैं। आज आर्य समाजी बीच में टंगे हुए हैं।
वास्तव में अधिकतर आर्य समाजी 'आर्य' (श्रेष्ठ) ही नहीं होते बल्कि वे अनार्य और शूद्र अर्थात मूर्ख होते हैं क्योंकि जो लोग अपने धर्म पर न चलकर दूसरे धर्म के महापुरुषों को गालियाँ देते हैं, वे अपनी मूर्खता ही प्रर्दशित करते हैं।
हमारा चैलेंज
अगर वास्तव में वैदिक धर्म का पालन सम्भव है तो आर्य समाजी अपने चारों वैदिक आश्रमों और सोलह संस्कारों का पालन करके दिखाएं।

Friday, July 3, 2020

स्वामी दयानंद जी के लेखन को सत्य माना जाए तो क्या नए स्मारक नई आय का साधन बन सकते हैं?

स्वामी दयानंद जी की प्रसिद्ध पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश भारत की आर्थिक स्थिति सुधारने में बहुत बड़ी सहायता कर सकती है।
आप सब जानते हैं कि पश्चिमी देशों के लोग प्रेम और सैक्स की घटनाओं के स्मारकों को देखने के लिए टूर करते हैं। जैसे कि वे ताजमहल और अजन्ता व ऐलोरा देखने आते हैं। जिससे देश को अरबों रूपये का व्यापार और टैक्स लाभ होता है।
यदि हम ऐसे और अधिक स्मारक बनाएं तो भारत सरकार को और अधिक व्यापार व टैक्स प्राप्त होगा।

विदेशी टूरिस्टों को आकर्षित करने के लिए
हमें घोड़े के लिंग से मर चुकी और जल चुकी नारियों के प्रति विशेष आदर प्रदर्शित करने की आवश्यकता है।
ऐसी नारियों के राष्ट्रीय स्मारक बनें और उन पर डाक टिकट जारी हो।
यदि ऐसे स्मारक बनें तो पूरी दुनिया से करोड़ों लोग ऐसी वीर भारतीय नारियों के स्मारक पर नमन करने आएंगे।
जिनसे टूरिज़्म बढ़ेगा और सरकार को जीएसटी व अन्य टैक्स ताजमहल से अधिक मिल सकता है।

ऐसी एक घटना का वर्णन स्वामी दयानंद जी ने किया है:
'सुनते हैं कि एक इसी देश में गोरखपुर का राजा था। उस से पोपों ने यज्ञ कराया। उस की प्रिय राणी का समागम घोड़े के साथ कराने से उसके मर जाने पर पश्चात् वैराग्यवान् होकर अपने पुत्र को राज्य दे, साधु हो, पोपों की पोल निकालने लगा।'
-सत्यार्थ प्रकाश 11वाँ समुल्लास
ऐसी सभी बलिदानी वीर आर्य रानियों के नाम और उनके गौरवशाली इतिहास को विश्व के सामने लाना भारत की आर्थिक दशा सुधारने की दृष्टि से आवश्यक है। इससे उनका बलिदान भी सबके सामने आ सकेगा।

नए स्मारक नई आय का साधन बनेंगे।
मैं स्वामी दयानंद जी के इस रहस्योद्घाटन को राष्ट्र हित में आप जैसे विद्वानों को विचार हेतु समर्पित करता हूं।
हम सबको सांप्रदायिक संकीर्णता से ऊपर उठकर राष्ट्र हित में इस पर विचार करने की आवश्यकता है।

Sunday, May 17, 2020

यदि दयानंद जी ने अपना जन्म स्थान सही सही बताया था तो वह उनके किसी चेले को मिला क्यों नहीं?

कृपया अधिक से अधिक शेयर करें
दयानंद जी ने अपना जन्म स्थान सही सही बताया था तो वह उनके किसी चेले को मिला क्यों नहीं?
आपको सारे आर्य समाजी भाई बहन सनातनी पंडितों और दूसरे धर्म के ज्ञानियों को अज्ञानी बताते हुए और उन पर हंसते हुए मिल जाएंगे।
लेकिन ख़ुद उनके ज्ञान का हाल यह है कि वे बता नहीं पाएंगे अगर आप उनसे यह पूछ लें कि जिस बस्ती में दयानंद जी पैदा हुए थे, वहाँ कोई आर्य समाज मंदिर है या नहीं?
क्योंकि दयानंद जी की मौत के बाद से पंडित लेखराम आदि उनके चेले उनका जन्म स्थान तलाशने में लगे हुए हैं लेकिन गूगल मैप और जीपीएस आने के बावुजूद वे आज तक अपने गुरू का जन्म स्थान नहीं खोज पाए।
दयानंद जी अपना सही जन्म स्थान और कुल गोत्र आदि छिपा कर चले गए। सही किया। जातिवादी भारतीय समाज में सम्मान पाने के लिए सभी समझदार लोग ऐसा करते हैं।
उनका दूसरा समझदारी भरा निर्णय उनके द्वारा अंधे व्यक्ति को गुरू बनाना था क्योंकि अंधा आदमी जाँच परख करने में अक्षम होता है।
अब आर्य समाजियों का पूरे दिन दूसरे धर्म वालों से प्रश्न करने का का काम है और ख़ुद इस प्रश्न का जवाब नहीं देते कि
यदि दयानंद जी ने अपना जन्म स्थान सही सही बताया था तो वह उनके किसी चेले को मिला क्यों नहीं?

Aapki facilitiy ke liye yh image bhi ready hai.
Ise bhi Indian Society me shanti ki niyyat se share karen.

Sunday, May 3, 2020

रोज़े का मक़सद तक़वा है और तक़वा वालों की विजय निश्चित है, अल्हम्दुलिल्लाह! -DR. ANWER JAMAL

Faiz-Asslamalaikum hazrat. Bhai gair muslim intellectual ki taraf se ques hai ki .....fast me khana chodna to theek hai lekin pani kyu chudwa diya jata hai. Vo PhD hen seculer mijaz ke. Plz jawab zrur djiyega.

DR. ANWER JAMAL- अरबी ज़ुबान (भाषा) का सौम या स्याम लफ़्ज़ ही दरअसल फ़ारसी में रोज़ा है। सौम या स्याम का संस्कृत/हिन्दी में मतलब होगा 'संयम'। इस तरह अरबी़ जबान का सौम या स्याम ही हिन्दी/संस्कृत में संयम है। इस तरह रोज़े का मतलब हुआ सौम या स्याम यानी 'संयम।' यानी रोज़ा 'संयम' और 'सब्र' सिखाता है।

रोज़े का मक़सद यह है कि इंसान बुराई से बचने की शक्ति अर्जित कर ले और वह ऐसा तब कर पाएगा जब वह अपने मन और शरीर पर क़ाबू पा ले।
आम इंसान भूख, प्यास, नींद और और सैक्स की इच्छाओं के क़ाबू में होते हैं। जब उन्हें भूख, प्यास, नींद और और सैक्स में जिस काम की ज़रूरत महसूस होती है और मन और शरीर जिस काम के लिए उत्तेजित करते हैं, इंसान उसे उनके क़ाबू में होकर अपना विवेक इस्तेमाल किए बिना कर डालता है।
ऐसे ही लालच, डर, नफ़रत, ग़म, ग़ुस्सा और शक जैसी बहुत सी नकारात्मक भावनाएं हैं, जिनके क़ाबू में एक इंसान हमेशा रहता है और वह पूरी ज़िन्दगी अपनी नफ़्सियाती ख़्वाहिशात (मन की इच्छाओं और आवेगों) को 'इलाह और हाकिम' बनाए रखता है जबकि हक़ीक़त में ये 'इलाह और हाकिम' नहीं हैं, इंसान के दास हैं।
सौम अर्थात रोज़े का मकसद यही है कि इंसान हाकिम है तो अपने दासों का दास बनकर न रहे बल्कि उनका हाकिम बने और अपने दासों से अपनी सेवा ले और इसके लिए वह सबसे पहले अपने मन और शरीर में उठने वाली ख़्वाहिशात पर क़ाबू करे। अपनी भूख, प्यास, नींद, सैक्स, लालच, डर, नफ़रत, गुस्से, शक और वसवसों पर क़ाबू पाए।
जब एक इंसान रोज़ा रखता है तो उसके शरीर में भूख, प्यास, नींद और सैक्स की क़ुदरती डिमांड पैदा होती है लेकिन वह उन्हें रोक देता है और शरीर एक दास की तरह उसके फ़ैसले के सामने समर्पण कर देता है कि ठीक है, आपको यह नहीं करना है तो मैं यह नहीं करूंगा।
ऐसे ही उसके मन में नाजायज़ लालच, डर, नफ़रत, गुस्से, शक और वसवसों की तरंगें उठती हैं लेकिन वह अपनी ज्ञानदृष्टि से देखता है कि यह ग़लत है और मैं यह न करूंगा तो वह नहीं करता और वह अपनी नकारात्मक भावनाओं से ऊपर उठकर उन्हें क़ाबू करना सीख लेता है।
अधिकतर गुनाह और जुर्म ज्ञान की कमी और नकारात्मक भावना की अधिकता के कारण होते हैं और पूरा शहर वास्तव में मनोरोगियों का जमावड़ा मात्र है, जिसमें कोई एक दूसरे से सुरक्षित नहीं है कि न जाने दूसरा आदमी किसी औरत, बच्ची या सेठ के साथ कब क्या कर दे? कोई बाहुबली किसी ग़रीब के साथ क्या कर दे?
पूरे समाज के मनोवैज्ञानिक इलाज के लिए जितने मनोचिकित्सक चाहिएं, उतने न पहले थे और न आज ही किसी देश में हैं।
उनके मनोरोगों के इलाज के लिए अल्लाह ने रमज़ान के महीने में क़ुरआन उतारा और सबके लिए रमज़ान के रोज़े शिफ़ा (आरोग्य) के लिए रख दिए। रोज़े से शारीरिक रोग भी दूर होते हैं। जिनके दूर होने के बारे में मैं इस छोटे से कमेंट में नहीं लिख सकता। यह पूरी एक बुक का सब्जेक्ट है।
मैं यहाँ सिर्फ़ यह बताऊँगा कि रोज़े का मक़सद यह है कि इंसान अपने मन, शरीर और कर्म से बुराई से बचने की आदत डाल ले। एक काम को बार बार दोहराया जाए तो उसकी आदत पड़ जाती है। आदत सब्कान्शियस माईंड का पैटर्न है। आदत पड़ने के बाद वह काम आसान हो जाता है। एक महीने तक जागरूकता के साथ रोज़े रखने से तक़वा इंसान की आदत बन जाती है। बुराई से बचने को तक़्वा और संयम कहते हैं। व्यक्ति, परिवार और समाज में अच्छाई बढ़ाने के लिए तक़्वा और संयम ज़रूरी है।
सैनिकों को भी कठिन हालात के लिए तैयार करने के लिए भूख, प्यास, नींद और शारीरिक कष्ट बर्दाश्त करने की प्रैक्टिस कराई जाती है। हरेक नागरिक में भी ये गुण होना ज़रूरी है क्योंकि हर नागरिक भी अपनी जगह एक सिपाही है और उसे अपने समाज के बुरे लोगों को चुनौती देनी पड़ती है। जिसके बाद उसे कठिन हालात पेश आते हैं।  वह उनसे घबराकर बदमाशों के सामने समर्पण न करे बल्कि उन पर अपने मनोबल से विजय पा ले, रोज़े से यह बल मिलता है।
तक़्वा और विजय आपस में जुड़े हुए हैं। तक़्वा होगा तो विजय ज़रूर होगी।
दूसरों पर विजय पाने से पहले इंसान को ख़ुद पर विजय पानी होगी। इंसान पानी से पैदा हुआ है। उसे हर थोड़ी देर में पानी की ज़रूरत पड़ती है। इसलिए उसे अपनी ज़रूरत पर विजय पानी है तो उसे पानी की ज़रूरत पर भी विजय पानी होगी।
'अतः धैर्य से काम लो। निस्संदेह अन्तिम परिणाम तक़्वा (संयम रखने) वालों के पक्ष में है।'
-पवित्र क़ुरआन 11:49
तक़्वा एक ऐसा गुण है, जो बहुत से ऐसे गुणों को ख़ुद डेवलप करता है। जिनसे इंसान का भला होता है। यही इंसान का मक़सद है। जब इंसान रब के हुक्म पर चलता है तो उसका भला होता है। जिससे इंसान को ख़ुशी मिलती है। इंसान को भलाई और ख़ुशी मिलती देखकर उससे रब ख़ुश होता है।
रोज़े में पानी न पीने की वजह समझनी है तो रोज़े के मक़सद और उसके असर को समझना ज़रूरी है, जो व्यक्ति, परिवार और समाज पर पड़ते हैं।
शुक्रिया।

Sunday, April 26, 2020

वेदमंत्र 'न तस्य प्रतिमा अस्ति' का देवता 'आत्मा' है, परमेश्वर नहीं है। अत: यह तौहीद का प्रमाण नहीं है।

Faiz Khan-सर् मैं आपसे किताब लिखने के लिए इसलिए कह रहा था क्योंकि मैं समझता हूँ कि दोनों तरह के नैरेटिव लोगों के सामने होने चाहिए जिसको जो सही लगे क़ुबूल कर ले मैं यह भी नहीं कह रहा हूँ कि आप सही कह रहे हैं और न आपको ग़लत कह रहा हूँ क्योंकि मैं संस्कृत नहीं जानता और न ही वेदों के बारे में कुछ जनता हूँ सिवाय कुछ मन्त्रो के अलावा जहाँ तक WORK के दाइयों की बात है तो उसमें दोनों तरह के लोग हैं। कुछ muqallid हैं तो बहुत सारी इल्मी और अख़लाक़ी शख्सियत भी है। बहुत सारे पढ़े लिखे लोग भी वर्क में शामिल हुए हैं जो लोग वर्क मैं इख़्तेलाफ़ के आदाब नहीं जानते। असल में तारिक़ सर् की फिक्र पर नहीं हैं।तारिक़ सर् को सुनने समझने से पहले मैं भी बहुत कट्टर था उनसे हुस्ने इख़्तेलाफ़ सीखने की इब्तेदा हुई बहरहाल कोई भी दावती ग्रुप लोगों से बनता है जैसे ghamidi साहब को अल्लाह ने बड़ी इल्मी और आला shaksiyaaat की टीम दी है जिसमे से कितने लोग ऐसे हैं जो खुद किसी तंज़ीम को लीड करने की सलाहियत रखते हैं इन् शा अल्लाह तारिक़  सर को भी ऐसे लोग मिलते रहेंगे इसी तरह की जमातों के साथ अल्लाह की मदद होती है ।। अल्हम्दुलिल्लाह.
Tauheed Bhai-भाई अस्सलामु अलैकुम, अनवर भाई वेद मे तौहीद नही है ये तो पता चल गया। लेकिन कुछ मंत्र जो है जैसे कि 'न तस्य प्रतिमा अस्ति' और भी इस तरह के मंत्र है जिसमे बताया गया है के वो एक है उसका कोई शरीर नही है, तो भाई इन मंत्रो में किसके बारे मे बताया गया है, भाई मदद करिये जब से आप ने बताया है वेद में तौहीद नही है तो बस ये वाले मंत्र सोच सोच कर दिमाग मे अजीब हलचल मची है।
Rihan Khan-Sir isi wajah se to dr. Anwar sahab hmare ustad e mohtram se hmne request ki h ki book likhe or usme ye sare mazameen naqal kre jaise abhi hmare bhai ne puchhenge hai "na tasya partima asti" wagera mantr pr roshni dale or unki shi tashreeh kre taki hmare ilm me izafa ho or mantro ko shi samjh sake.

Dr. Anwer Jamal- आप सभी भाईयों का इतना ज़्यादा तक़ाज़़ा  है तो मैं इस सब्जेक्ट पर जरूर एक किताब लिखूंगा, इन् शा अल्लाह; और उससे आपके सामने मेरा नज़रिया आ जाएगा लेकिन उसमें कुछ वक्त लगेगा और जैसाा कि तौहीद भाई  लिखा है कि 'भाई मदद करिये जब से आप ने बताया है कि वेद में तौहीद नही है तो बस ये वाले मंत्र सोच सोच कर दिमाग में अजीब हलचल मची है।'
आप सब लोग उस हलचल से मेरी किताब आने से पहले एक खास तकनीक का इस्तेमाल करके इत्मीनान और सुकून हासिल कर सकते हैं। मैं इस तकनीक को सेकेंड ओपिनियन तकनीक कहता हूं। हम इस तकनीक का इस्तेमाल मरीज़ की सही हालत जानने के बारे में करते हैं।
आप जानते हैं कि सब लोग किसी विशेषज्ञ डॉक्टर जितना नहीं जानते। जब एक डॉक्टर किसी गर्भवती औरत के बारे में यह सलाह देता है कि गर्भवती औरत की या उसके गर्भ के शिशु की जान को खतरा है और तुरंत उसका ऑपरेशन होना जरूरी है तो सब लोग बहुत चिंतित हो जाते हैं और गर्भवती औरत के परिवार वाले मेडिकल जानकारी के अभाव में खुद अपने ज्ञान और अपने अनुभव से यह तय नहीं कर पाते कि वे डॉक्टर का कहना मान कर ऑपरेशन कराएं या न कराएं। हम सबके सामने ऐसे कई केस आ चुके हैं जिनमें डॉक्टर ने बिना ज़रूरत ही गर्भवती औरत का ऑपरेशन कर दिया जिससे वह ग़ैर ज़रूरी तौर से आर्थिक क़र्ज़ में फंस गई और उसकी सेहत भी पहले जैसी न रही। कुछ केस ऐसे भी सामने आए हैं जिनमें एक आदमी पेट दर्द के लिए अस्पताल में दाखिल हुआ और डॉक्टर ने उसे ऑपरेशन की जरूरत बताकर ऑपरेशन कर दिया। कुछ महीने बाद किसी और वजह से जब उसने अपने पेट का अल्ट्रासाउंड टेस्ट कराया तो उसे पता चला कि डॉक्टर ने उसकी एक किडनी निकाल ली है। इन सब केसेज़ को देख कर अब यह होने लगा है कि जब एक डॉक्टर किसी पेशेंट को ऑपरेशन की ज़रूरत बताता है और उसके परिवार के जागरूक लोग खुद अपने ज्ञान और अनुभव की बुनियाद पर कोई फैसला नहीं कर पाते कि उस  उस डॉक्टर की सलाह के मुताबिक ऑपरेशन कराया जाए या न कराया जाए तब वे सेकंड ओपिनियन के लिए दूसरे डॉक्टर के पास जाते हैं। अगर सचमुच ऑपरेशन की जरूरत होती है तब दूसरा डॉक्टर भी मरीज़ की रिपोर्ट्स देखकर वही बात कहता है जो पहले डॉक्टर ने कही थी जब कि उसे नहीं पता होता कि पहले डॉक्टर ने क्या कहा है। दोनों जगह एक ही बात सामने आने से बात के सच होने का यक़ीन हो जाता है।
यूरोप में, अमेरिका में और अफ़्री़क़ा में बहुत लोग पवित्र क़ुरआन का अनुवाद पढ़ कर तौहीद को अपना लेते हैं हालांकि वे लोग क़ुरआन की मूल भाषा नहीं जानते। उन्हें किसी आयत के अनुवाद में शक होता है तो वे दूसरे संप्रदाय का अनुवाद देख लेते हैं और जब वे देखते हैं कि दोनों अनुवाद में एक ही सेंस है तो वे मुत्मईन हो जाते हैं। मिसाल के तौर पर सऊदी अरब में इस्लामी तीर्थ और प्रचार केंद्र है, जहाँ सब मुस्लिम हज करने जाते हैं और वहाँ के आलिम हर भाषा में पवित्र क़ुरआन का ऑथेंटिक अनुवाद डिस्ट्रीब्यूट करते हैं और सऊदी अरब ईरान का विरोध करता है। ईरान के मुस्लिम आलिम भी पवित्र क़ुरआन का अनुवाद करते हैं। अब आप देख सकते हैं कि जिन आयतों में अरब के सुन्नी आलिम तौहीद बता रहे हैं, उनका आनुवाद उसके विरोधी शिया आलिम भी तौहीद वाला करते हैं। जिन आयतों में एक अल्लाह की इबादत का हुक्म है, वे उनमें आत्मा, आग या सूरज की इबादत नहीं बताते।
इसी तरह आप ईसाई धर्म के तीर्थ स्थान वेटिकन सिटी से प्रकाशित रोमन कैथोलिक संप्रदाय के बाइबल के अनुवाद को देख सकते हैं और उसे उसके विरोधी प्रोटेस्टेंट संप्रदाय के अनुवाद से मिला कर देख सकते हैं। एक संप्रदाय के अनुवाद में जिन आयतों में क्रिएटर की तौहीद का बयान है, उन आयतों में उसके विरोधी संप्रदाय के अनुवाद में भी तौहीद का बयान ही मौजूद मिलता है।
इसी तरह आप हरिद्वार जैसे हिन्दू तीर्थों और आश्रमों और शंकराचार्यों द्वारा मान्यताप्राप्त सायण का वेदभाष्य देख लें और दूसरा ओपिनियन उसका विरोध करने वाले स्वामी दयानन्द जी का वेदभाष्य देख लें। दोनों संप्रदाय जिन वेद मंत्रों में तौहीद बता दें। आप समझ लें कि वह अनुवाद ठीक है और ऐसा मिलना बहुत मुश्किल है। सनातनी जिस मंत्र के अनुवाद में एक सूर्य की इबादत बताते हैं, स्वामी दयानन्द जी उसी में एक परमेश्वर की भक्ति बता रहे हैं। जब एक शिर्क और दूसरा तौहीद बताए तो आप समझ लें कि इस मंत्र के अनुवाद में दोनों एक मत नहीं हैं, दोनों में कोई एक ग़लत अनुवाद कर रहा है।
जैसे कि तौहीद भाई ने एक वेदमंत्र 'न तस्य प्रतिमा अस्ति' यजुर्वेद 32:3
के बारे में पूछा है कि वह परमेश्वर के बारे में है या नहीं? तो आप यह बात ख़ुद भी बहुत आसानी से जान सकते हैं। उसका तरीक़ा यह है कि आप सनातनी और आर्य समाजी भाष्य लेकर दोनों का अनुवाद मिला लें। आपके सामने सच्चाई आ जाएगी। वेद के विषय में एक सकारात्मक बात यह और है कि उसमें हरेक वेदमंत्र का देवता लिखा रहता है। जिससे आप यह जान सकते हैं कि इस वेदमन्त्र में किसकी बात हो रही है?
जब आप यजुर्वेद 32:3 का देवता देखते हैं तो आपको वहाँ इस मंत्र का देवता 'आत्मा' लिखा हुआ मिलेगा और इस तरह आप जान लेंगे कि यह बात आत्मा के विषय में कही जा रही है कि आत्मा की प्रतिमा नहीं है। यह बात सच है। यह मंत्र परमेश्वर के विषय में नहीं है।
मेरा मक़सद यह नहीं है कि मैं आपको कुछ बता दूँ और आप उसे मान लें। मेरा मक़सद है कि मैं आपको जागरूक कर दूँ कि आप ख़ुद चेक करके देखें कि
1. जिन वेद मंत्रों में तौहीद बताई जाती है क्या सचमुच वैदिक धर्म के दोनों संप्रदाय उसमें तौहीद बताते हैं?
2. क्या सचमुच वेद का एक सूक्त भी एक परमेश्वर की उपासना पर आधारित है?
3. आप स्वयं जागरूक बनें ताकि कोई आपको मुशरिक न बना सके। आपकी सबसे बड़ी दौलत 'तौहीद' है। इसमें कोई समझौता न करें, इसमें किसी की शख़्सियत से मरऊब न हों। आप ख़ुद चेक करें कि दावते दीन के नाम पर शिर्क का घालमेल तो नहीं चल रहा है?
अल्लाह का शुक्र है कि WORK में बहुत सारे लोग इल्म और अच्छे अख़्लाक़ वाले हैं और वे इख़्तिलाफ़ के आदाब जानते हैं। मुझे उनसे भी ख़ैर की उम्मीद है, अल्हम्दुलिल्लाह!