वैदिक धर्म में ऊँ का इतना अधिक महत्व है कि हरेक शुभ कार्य में सबसे पहले इसका उच्चारण करते हैं। इसकी महिमा और इसकी शक्ति बताते हुए कहा गया है कि
हां, यह शब्दांश ब्रह्म है,
यह सबसे ऊंचा शब्द है
वह जो इस उच्चारण को जानता है,
वह चाहे जो चाहे, उसका है।
– कठो उपनिषद, 1.2.15-1.2.16
एक आदमी, जो ऊँ का सही उच्चारण जानता है। वह जो चीज़ चाहे, वह चीज़ उसकी है। अब एक आदमी स्वयं चेक करके देख सकता है। वह अपनी ज़रूरत की किसी चीज़ को चाहे और ऊँ का उच्चारण करे। यदि वह चीज़ उसे मिल जाए तो उसका उच्चारण सही है। यदि सबको उनकी इच्छित वस्तु मिल जाया करती तो आज भारत में अभाव का रोना इतने अधिक लोग न रोते। ऊँ का जाप करने वाले अरबों अभावग्रस्त लोग इस तथ्य का प्रमाण हैं कि वे ऊँ का सही उच्चारण नहीं जानते। वैदिक पंडित ऊँ का संस्कृत उच्चारण करते हैं प्राकृतिक नहीं है, जोकि प्रकृति में है। ऋषि प्रकृति में ऊँ की ध्वनि बैल और बादल की ध्वनि में सुनते थे। जिसका वर्णन वेद में आया है।
श्रीमद्भगवद्गीता में ओंकार को एकाक्षर ब्रह्म कहा है। प्राकृतिक उच्चारण वह है जिसमें केवल एक अक्षर का उच्चारण किया जाए जैसे कि बैल और गाय करते हैं। यदि बैल और गाय की तरह ऊँ का उच्चारण किया जाए तो ऊँ का सही प्राकृतिक उच्चारण किया जा सकता है। एक अक्षर को जब तीन अक्षर मानकर उच्चारण किया जाएगा तो वह प्राकृतिक उच्चारण न रहेगा और पूरा फल न देगा।
योग वशिष्ठ के अनुसार ऊँ का सही उच्चारण उस बच्चे के रोने के स्वर के समान है, जो ऊँ, ऊँ करके रोता है।
गाय और बैल जब रंभाते हैं तो 'ओं' 'ओं' शब्द निकालते हैं। जिसे पशुपालक आर्य शुभ और समृद्धि का प्रतीक मानते थे। जिस आर्य के घर के बाहर जितने अधिक गाय बैल होते थे, वह समाज में उतना अधिक समृद्ध और शक्तिशाली होता था। समृद्ध और शक्तिशाली आर्य हर ओर से 'ओं' की ध्वनि सुनते थे। वे स्वयं भी हर शुभ कार्य से पहले 'ओं' शब्द बोलने लगे। बाद में जब आर्यों ने लिपि में लिखना सीखा तो वे 'ओं' शब्द को 'ओम्' और 'ओउम्' लिखने लगे। ओम् का सही उच्चारण वह है, जो गाय और बैल बोलते हैं। बाद में जब वैदिक विद्वान प्रकृति के बजाय अपनी बनाई व्याकरण पर आश्रित होते गए तो अधिकतर पंडित ओम् का उच्चारण गाय और बैल से भिन्न करने लगे जैसा कि आजकल प्रचलित है।
वैदिक विद्वानों ने किसी समय 'ओं' को सृष्टिकर्ता परमेश्वर का नाम और किसी विद्वान ने तो निज नाम तक घोषित कर दिया। जबकि चारों वेदों में रचयिता परमेश्वर का कोई ऐसा नाम नहीं है, जो वेदों में केवल परमेश्वर के लिए प्रयुक्त हुआ हो और उसे ऋषियों ने किसी अन्य सृष्टि के लिए न बोला हो। अब ओंकार को परमेश्वर का नाम माना जाता है।
गाय बैल 'ओं' बोलते हैं। इससे 'ओं' शब्द का महत्व कम नहीं होता क्योंकि रचयिता परमेश्वर क़ुरआन में कहता है कि बादल, पहाड़, पशु-पक्षी और ज़मीन व आसमान की हर चीज़ रब की तस्बीह (गुणगान) करती है:
1.बादल की गरज उसका गुणगान करती है।
-सूरह अर्-रअद 13
2.“सातों आकाशों और धरती और जो कोई उनके बीच है सब उसकी तस्बीह करते हैं, और कोई चीज़ नहीं जो उसकी प्रशंसा के साथ तस्बीह न करती हो; परन्तु तुम उसकी तस्बीह को समझते नहीं !
-सूरह इसरा 44
3.और हमने दाऊद को अपनी तरफ से बड़ी नेमत दी थी ; (और हमने हुक्म दिया): हे पहाड़ों ! पक्षियों समेत उसके साथ (रुजू की) ‘तस्बीह’ में गुंजित हो !
-सूरह सबा 10
हम पवित्र क़ुरआन के आलोक में गाय बैल के शब्द 'ओं' को समझें तो वह रचयिता परमेश्वर का गुणगान (तस्बीह) है। अत: ऊँ रब की तस्बीह है।
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