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Thursday, January 10, 2019

जानिए और सबको बताईये कि My Creator is My Doctor Dr. Anwer Jamal

अहमद फ़व्वाद भाई से तिब्बे नबवी पर बातचीत का पहला हिस्सा इस लिंक पर पढ़ें:

Tibbe Nabawi par Aitraz aur unke jawab Dr. Anwer Jamal

उसी सिलसिले में हमारे जवाब पर मोहतरम भाई जनाब अहमद फ़व्वाद ने जो लिखा है, आप उसे और उस पर हमारा जवाब नीचे पढ़ें।

*शख़्से से मुराद नामालूम शख़्स है, जिसकी मारिफ़ते दीन और तिब्बी उलूम की समझ ख़ुद क़ाबिले ग़ौर है।*........ 
मोहतरम भाई, नामालूम शख्स नहीं, बल्कि मारिफ़ते दीन और तिब्बी उलूम के माहिर पाकिस्तान के हकीम सैय्यद महमूद अहमद "सरव सहारनपुरी" का कौल है जिसे देवबंदी फिक्र के बड़े आलिम डॉ0 तुफैल हाशमी साहब के हवाले से नक़ल किया गया है। हकीम साहब से सम्बन्धित "नवा ए वक़्त" में छपा मज़मून पढ़ें-
https://www.nawaiwaqt.com.pk/12-Dec-2012/153708

*उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार किया है और सुबूत में अल्लाह और उसके रसूल के क़ौल से कोई दलील नहीं दी है। अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं कियाऔर ख़ुद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी अपने तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं किया*.......

 मोहतरम भाई, यह तो "मनतक़ी मुग़ालता" है।  सवाल इस तरह से भी तो पूछा जा सकता है कि क्या अल्लाह ने नबी का या नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना *चिकित्सक* की हैसियत से परिचय कराया। आप का दावा है कि *नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक माहिर तबीब थे* तो जनाब *बारे सबूत* भी आप पर है कि कुरआन व सुन्नत से आप दलील पेश फरमायें। 

मोहतरम भाई, मेरा उद्देश्य बहस करना नहीं है, मेरा ऐतराज़ "तिब्बे नबवी" पर नहीं, आपके *"तिब्बे नबवी पर इसरार"* से सम्बन्धित है। आपने एक जगह अपनी पोस्ट में लिखा, 

*दीन के दाई सब धर्म के लोगों के दर्द में काम आने वाले तभी बन सकते हैं, जब उन्हें नबियों की तरह जड़ी बूटियों और फलों से इलाज करना आता होगा। सो सभी मुबल्लिग़ तिब्बे नबवी ज़रूर पढ़ें।*

मेरे दृष्टिकोण से आपका उक्त कथन संतुलित नहीं है, पुनर्विचार प्रार्थनीय है। क्या सारे ही नबी तबीब भी थे। 

दूसरी उसूली बात मेरी दृष्टि में है, कि तिब्बे नबवी दीन का जुज़ नहीं है और न ही तिब्बी रवायात की कोई शरअई हैसियत है।

यही बात इब्ने ख़लदून ने अपने मशहूर ज़माना "मुकद्दमें" में कही है - 
وللبادية من أهل العمران طب يبنونه في غالب الأمر على تجربة قاصره علئ بعض
الأشخاص, ويتداولونه متوارثاً عن مشايخ الحي وعجائزه, وربما يصح منه البعض, إلا أنه ليس على قانون طبيعي, ولا عن موافقة المزاج. وكان عند العرب من هذا الطب كثير, وكان فيهم أطباء معروفون: كالحرث بن كلدة وغيره. والطب المنقول في الشرعيات من هذا القبيل, وليس من الوحي في شىءوإنما هوأمر
كان عادياً للعرب. ووقع في ذكر أحوال النبي صلئ الله عليه وسلم, من نوع ذكرأحواله التي هي عادة وجبلة, لا من جهة أن ذلك مشروع على ذلك النحو من العمل. فإنه صلى الله عليه وسلم إنما بعث ليعلمنا الشرائع, ولم يبعث لتعريف الطب ولا غيره من العاديات. وقد وقع له في شأن تلقيح النخل ما وقع,؛ فقال:
"أنتم أعلم بأموردنياكم . فلا ينبغي أن يحمل شيء من الذي وقع من الطب الذي
وقع في الأحاديث الصحيحة المنقولة على أنه مشروع, فليس هناك ما يدل عليه.... 
देहाती और बदवी समाज में भी तिब्ब पायी जाती है जो आम तौर पर कुछ व्यक्तियों के अनुभवों पर आधारित होती है और परिवार के बड़े बूढ़ों से परंपरागत रुप में नक़ल होती आती है। इन में से कभी कुछ चीजें सही भी होती है, लेकिन यह चिकित्सा सिद्धांत के प्रतिष्ठित नियमों एवं स्वभाव आदि के अनुरूप नहीं होती। अरब में भी इसी तरह की चिकित्सा प्रणाली प्रचलित थी और उनमें भी हारिस बिन कलदाह  वगैराह जैसे *चिकित्सक* प्रसिध्द थे। शरियत में जो तिब्ब आयी है वो *इसी क़बील* की है, यह नहीं कि वह *वहय* पर आधारित है बल्कि अरबों में इस तरह की तिब्ब प्रचलित थी और वो उसके आदी थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जीवन वर्णन में आपके स्वभाव और आदतों का भी बयान होता है, यह बातें आदत व स्वभाव की होती है न कि नबी करीम ने उनको अमल के लिए मसनून क़रार दिया हो, क्योंकि आप हमें शरियत सिखाने के लिए *मबऊस* किये गये थे न कि तिब्ब और आदत की बातें। खजूरो के वृक्षों में परागण से सम्बन्धित हदीस में आप का प्रसंग आता है, आप ने इससे मना किया तो फल नहीं आये, सहाबा ने कहा तो आप ने फरमाया, *तुम दुनिया के मामले मुझ से बेहतर जानते हो*
अत: अहादीस में जो तिब्ब नक़ल हुई है, उसे मसनून नहीं कह सकते, इस पर कोई दलील नहीं है। ( मुकद्दमा इब्ने ख़लदून, फसल 24 तबिअय्यात)

इसी तरह शाह वली उल्लाह साहब ने *हुज्जतुल्लाहिल बालिग़ाह* में फरमाया - - 
 و ثانيهما ما ليس من باب تبليغ الرسالة و فىه قوله صلى الله عليه وسلم : إنما أنا بشر إذا امرتكم بشىئ من رأى فإنما انا بشر...و قوله صلى الله عليه وسلم في قصة تعبير النخل: فإني إنما ظننت ظنا ولا تؤاخذوني بالظن ولكن إذا حدثتكم عن الله شيأ فخذوا به فإني لم اكذب علي الله... فمنه الطب.... 
वो मामलात जो कि *तबलीग़ ए रिसालत* के बाब में से नहीं, उसी के बारे में नबी का कथन है, : मैं एक इंसान हूं, जब मैं तुम्हें तुम्हारे दीन से सम्बन्धित कोई आदेश दूं, तो उस पर क़ायम हो जाओ और जब मैं तुम्हें अपनी राय से किसी चीज़ का हुक़्म दूं तो मैं भी एक इंसान हूं। खजूरो के वृक्षों में परागण ( Pollination) के सम्बन्ध में आपने फरमाया, मैनें एक गुमान किया था, और मेरे सिर्फ गुमान पर अमल न करो, मगर जब मैं तुम्हें अल्लाह की तरफ से कुछ बताऊं तो उस का अनुपालन करो, क्योंकि मैंने अल्लाह पर कभी झूठ नहीं बोला। इन्हीं मामलात में से एक तिब्ब भी है। 
आगे चलकर शाह साहब लिखते हैं, इन्हीं मामलात में वो बातें भी शामिल हैं जो आपने इबादत के बजाए आदत के तौर पर किये हैं और उन्हें आपने *कसदन नहीं इत्तेफाकन* किया है।  (बाब-उलूमे नबवी की अक़साम)

 बाक़ी अहादीस में तिब्ब  से सम्बन्धित जो रवायात आयी हैं, उसके विश्लेषण से पता चलता है कि तिब्ब से सम्बन्धित आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दृष्टिकोण समग्रता लिए हुए है (Holistic Approach) जिसमें, Health, Hygiene, Prevention & Treatment सबको समाहित किया गया है, यह नबवी दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है और हमेशा रहेगा अलबत्ता Treatment के सम्बन्ध में आप से मनक़ूल इलाज को उसके सही Perspective में लेना आवश्यक है, उसे दीन का जुज़, शरियत का हिस्सा न बनायें। मुस्लिम की रिवायत जो हज़रत अबु हुरैरा से नकल की गयी है जिसमें कलौंजी को मौत के सिवा हर बीमारी की दवा बताया है। हमें यह देखना होगा कि इस हदीस का सही मफहूम क्या है, क्या इसका इतलाक़ सब भौगोलिक क्षेत्रों एवं जलवायु में रहने वाले लोगों पर समान रूप से होगा, या यह अरब में रहने वालों के लिए ही सीमित है, क्या कलौंजी की शिफा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौर में और ख़ित्तें में पायी जाने वाली बीमारियों से ही सम्बंधित है या आज एचआईवी एड्स, कैंसर तथा अन्य अनुवांशिक बीमारियों  (Genetic Disorder) का भी इलाज कलौंजी से किया जा सकता है? दूसरी हदीस में cupping हिजामा के ताल्लुक से भी यही शिफा की बात आयी है। जब कलौंजी में हर बिमारी का इलाज है तो हिजामा की ज़रूरत नहीं। मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसी सभी अहादीस और उनके पारस्परिक सम्बन्ध का, उनके सही अर्थ का वर्णन आवश्यक है, नहीं तो अनर्थ हो जाता है। आज जगह जगह हिजामा सेन्टर खुले हैं, जिनके संचालकों की विशेषज्ञता ही संदिग्ध है। क्या यह *जिन्से बाज़ार* नहीं?

व्यक्तिगत तौर पर मैं Herbal Medicine, Homeopathy, Acupuncture आदि Alternative therapy की उपयोगिता का समर्थन करता हूं, परन्तु उसे दीन की हैसियत नहीं देता। मैं यह भी मानता हूं कि अक़ीदत, आस्था का इलाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 

मोहतरम भाई, आप दावत का बड़ा काम कर रहे हैं, मेरी बातों से यदि आप असहमत हैं तो कोई बात नहीं। मेरी तरफ से इस विषय पर अब विराम।
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Ahmad Fawwad Bhai!
Aapke diye link par Dekha to Hakeem saharanpuri sahib Ka aisa koi Qaul Nahi Mila.
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https://www.nawaiwaqt.com.pk/12-Dec-2012/153708
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तिब्बे नबवी, तिब्बे इलाही है
हमने कोई मन्तक़ी मुग़ालता नहीं दिया है। हमने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीस पेश की है जिसमें उन्होंने अल्लाह को तबीब (चिकित्सक) फ़रमाया है।
अन्तर्-रफ़ीक़ु वल्लाहु तबीब
आप रफ़ीक़ (तसल्ली देने वाले) हैं और अल्लाह तबीब (चिकित्सक) है। -हदीस

अल्लाह किस दवाई से चिकित्सा करता है?
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस दवा का नाम भी बताया है:
ख़ैरूद्-दवाइल्-क़ुरआन
क़ुरआन सबसे अच्छी दवा है। (हदीस)
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह के चिकित्सक और पवित्र क़ुरआन के दवा होने का दावा किया है। ये दोनों हदीसें आप पढ़ चुके हैं।
एक और हदीसे नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में अल्लाह का नाम 'अश्-शाफ़ी' (शिफ़ा देने वाला) आया है।
اللهم رب الناس أذهب البأس اشف انت الشافي لا شفاء الا شفاؤك شفاءا لا يغادر سقما
“Allahumma Rabban-Nas, Adh-hibil Ba’s, Ishfi antash-Shafi, la shifa’a illa shifa’uk, shifa’an la yughadiru saqama”

O Allah! the Rubb of mankind! Take away this disease and cure (him or her). You are the Curer. There is no cure except through You. Cure (him or her), a cure that leaves no disease."
[Al-Bukhari].
इस हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह पहचान कराई है कि अल्लाह ही शिफ़ा देने वाला है और उसके सिवा कोई दूसरा शिफ़ा नहीं दे सकता।
इनके बाद आप और किस तरह का दावा चाहते हैं?
इस दावे की तस्दीक़ क़ुरआन से भी होती है:
 وَإِذَا مَرِضْتُ فَهُوَ يَشْفِينِ ﴿٨٠
और जब मैं बीमार होता हूँ, तो वही मुझे शिफ़ा देता (अच्छा करता) है.
पवित्र क़ुरआन 42:80
तिब्बे नबवी, इल्हामी तिब्ब है
अल्लाह तबीब (चिकित्सक) है और शाफ़ी (शिफ़ा देने वाला) है तो वह इलाज ज़रूर करेगा और दवा बताएगा।
1. पहला सुबूत: मौजूदा तौरात में अल्लाह के इल्हाम के ज़रिए मूसा अलैहिस्सलाम को एक पेड़ के बारे में बताने और उसके ज़रिए लोगों के लिए पानी को पीने लायक़ बनाने (water treatment) का वाक़या लिखा हुआ मिलता है और उसके बाद अल्लाह का यह दावा भी मिलता है कि 'मैं यहोवा तुम्हें स्वस्थ करता हूँ।'
   फिर मूसा ने यहोवा को पुकारा और यहोवा ने उसे एक छोटा पेड़ दिखाया। मूसा ने जब वह पेड़ उठाकर पानी में फेंका तो पानी मीठा हो गया।

वहाँ परमेश्‍वर ने लोगों को एक नियम और न्याय-सिद्धांत दिया और उन्हें परखा।  उसने कहा, “तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा की बात सख्ती से मानना और वही करना जो उसकी नज़रों में सही है, उसकी आज्ञाओं पर ध्यान देना और उसके सभी नियमों का पालन करना। अगर तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम पर ऐसी कोई बीमारी नहीं लाऊँगा जो मैं मिस्रियों पर लाया था। मैं यहोवा तुम्हें स्वस्थ करता हूँ।
-बाइबिल, निर्गमन 15:25-26

2. दूसरा सुबूत: ऐसे ही बच्चे को जन्म देने के बाद अल्लाह ने मरियम अलैहस्सलाम को 'खजूर खाने का इल्हाम' (दिव्य प्रेरणा) किया:
तू खजूर के उस वृक्ष के तने को पकड़कर अपनी ओर हिला। तेरे ऊपर ताज़ा पकी-पकी खजूरें टपक पड़ेगा।  अतः तू उसे खा और पी और आँखें ठंडी कर। 
पवित्र क़ुरआन 19:25-26
क्या यह अल्लाह का इल्हाम के ज़रिए दवा और फ़ूड बताना नहीं है? चिकित्सा के आधुनिक सिद्धांतों पर परख कर कोई बताए तो सही कि एक ज़च्चा (प्रसवा) के लिए खजूर खाने की इस इल्हामी तज्वीज़ (prescription) में कौन सी कमी है?

3. तीसरा सुबूत: 
हमारे बन्दे अय्यूब को भी याद करो, जब उसने अपने रब को पुकारा कि "शैतान ने मुझे दुख और पीड़ा पहुँचा रखी है।" "अपना पाँव (धरती पर) मार, यह है ठंडा (पानी) नहाने को और पीने को।"
पवित्र क़ुरआन  38:41-42

अल्लाह की पहचान कराना नबी के पद की बुनियादी
ज़िम्मेदारी  है
अल्लाह तबीब (चिकित्सक) और शाफ़ी (बीमारी से चंगा करने वाले) है। ये दोनों सिफ़तें (गुण) नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ुद बताई हैं ताकि सब लोग अल्लाह की इन सिफ़तों से फ़ायदा उठाएं। क्या अल्लाह की सिफ़तों का परिचय (Introduction) देना और उनसे फ़ायदा उठाने का तरीक़ा बताना नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तब्लीग़ की बुनियादी ज़िम्मेदारी नहीं है?

दीनी और दुनियावी कामों की कोई लिस्ट मौजूद नहीं है
हज़रत शाह वलीउल्लाह साहिब रह. ने ऊपर  दी हुई तहरीर में सिर्फ़ अपना मत दिया है और उसके हक़ में कोई दलील नहीं दी है कि वह तिब्ब को 'दुनियावी कामों' में क्यों शामिल मानते हैं? और उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की  नुबूव्वत के बुनियादी मक़सद में शामिल क्यों नहीं मानते?
क़िताल (जंग) भी दुनियावी काम है। अरब क़िताल के भी माहिरीन थे और नबी स. ने नुबूव्वत से पहले कभी जंग नहीं की थी और पूरी ज़िन्दगी में भी कभी चार आदमी ख़ुद क़त्ल न किए तब भी वह इस ख़ालिस दुनियावी काम के इमाम बनते थे और सबसे आगे खड़े होते थे।
क्या नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी किसी और जंगी एक्सपर्ट को अपने से ज़्यादा जानकार और माहिर मानकर उसकी कमांड पर जंग लड़ी?
क्या अरब का कोई शख़्स उनसे बड़ा फ़ातेह सैनिक साबित हुआ जबकि नबी स. ने किसी बड़े कमांडर से तलवार चलाना और फ़ौजों की सफ़ें बनाना भी न सीखा था।
आज तक किसी दीनी किताब में दीनी और दुनियावी कामों की कोई लिस्ट मौजूद नहीं है। आप एक बार 'दुनियावी कामों की लिस्ट' बनाएं ताकि पता चले कि आख़िर किन कामों में कोई उम्मती नबी स. से ज़्यादा माहिर हो सकता है।
🌿🌟🌿
नबी स. ने तिब्ब में कुछ काम यक़ीनन वे किए हैं जो अरबों में राएज थे। उनमें शहद और सना का इस्तेमाल और हिजामा राएज था लेकिन नबी स. ने क़ुरआन से भी इलाज किया है और यह अरबों में राएज न था।
नबी स. ने नमाज़ में शिफ़ा बताई है और यह बात उन्हें अरब नहीं बता सकते थे।
नमाज़ के बारे में यह बात उन्हें रब के सिवा कोई नहीं बता सकता।
जब बिना किसी चिकित्सक से पढ़े बिना एक आदमी नमाज़ और क़ुरआन से व्यक्ति और समाज का कामयाब इलाज कर रहा है तो यक़ीनन वह इलाज करना जानता है और इलाज उसके मन्सब (पद) की ज़िम्मेदारियों में है। उसे इलाज का यह ख़ास तरीक़ा उसी रब ने सिखाया है, जिसे वह तबीब (चिकित्सक) मानता है।
हदीसों में नबी स. के द्वारा जिस्मानी, नफ़्सियाती और अख़्लाक़ी, हर तरह की बीमारियों के कामयाब इलाज के वाक़िआत हैं और एक भी ऐसा वाक़िआ नहीं है जिसमें नबी स. ने इलाज शुरू तो किया हो और फिर उसमें नाकाम रहकर अरब के किसी हकीम के सुपुर्द किया हो। अल्लाह के नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जिसका इलाज शुरू किया, उसे अंजाम तक भी पहुंचाया और रब ने उनके इलाज से बहुत लोगों को शिफ़ा दी।
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी किसी से अपने जिस्मानी मर्ज़ का इलाज कराया हो, ऐसा सुबूत नहीं मिलता।
हमने आपसे इस बारे में सवाल किया तो आपने भी कोई जवाब न दिया।
उनके द्वारा दूसरों के इलाज करने के वाक़िआत ज़रूर मिलते हैं। इत्तेफ़ाक़न किए जाने वाले वाक़िआत इक्का दुक्का होते हैं जबकि नबी स. द्वारा बार बार अलग अलग लोगों को तिब्बी सलाह देना साबित है। जिससे पता चलता है कि वह क़स्दन (Intentionally) इलाज करते थे, इत्तेफ़ाक़न नहीं। वह चिकित्सकों को भी सलाह देते थे।
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नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा को इलाज करना सिखाया
इसी के साथ नबी स. सहाबा को इलाज करना सिखाते भी थे।
सहाबा क़ुरआन से जादू और नज़र का इलाज करना न जानते थे।
यह इलाज नबी स. ने ही उन्हें सिखाया। जो बाद में सहाबा में और उलमा में मशहूर हुआ।
नज़र और जादू को आधुनिक चिकित्सा के स्थापित सिद्धांत बीमारी की वजह ही नहीं मानते। इसलिए वे इन वजहों से होने वाली बीमारियों की जड़ को अभी नहीं समझ सकते। जिन बीमारियों के मूल कारणों को आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति नहीं समझ सकती, उनका इलाज भी नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम किया करते थे।
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मैं इस बात पर इसरार करता हूं कि
मोमिन क़ुरआन और नमाज़ की हीलिंग पावर को समझें और मैं यह भी तक़ाज़ा करता हूँ कि
दीन के सब दाई उन जड़ी बूटियों फलों और शहद व पानी जैसी चीज़ों की तासीर ज़रूर जानें,
जिन्हें इस्तेमाल करने का हुक्म रब ने उन चीज़ों का नाम लेकर तौरात, ज़बूर, इंजील और क़ुरआन में दिया और नबियों ने उन्हें इस्तेमाल करके शिफ़ा पाई और नफ़ा हासिल किया है। जैसे कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने रब के हुक्म से एक पेड़ कड़वे पानी में डाला। फिर वह पीने के लायक़ हुआ। जिससे उनकी क़ौम सलामत रही।
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मैं इस बात पर भी इसरार करता हूं कि अल्लाह लोगों को ज़मीनों और आसमानों की चीज़ों में ग़ौरो फ़िक्र को कहता है तो दाई इस काम को ज़रूर करें।
इससे मुझे फ़ायदा हुआ है और सबको होगा। यह तय है।
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'कलौंजी में हर बीमारी का इलाज है' ऐसा कहने से दूसरी चीज़ों में शिफ़ा की नफ़ी नहीं हो जाती और न ही यह मानना सही है कि हिजामा नहीं कराना चाहिए।
यह अल्लाह की बड़ी रहमत है कि उसने बहुत सी चीज़ों और बहुत से तरीकों में अपने बंदों के लिए शिफ़ा रखी है।
इलाज के मुख़्तलिफ़ तरीकों की तरफ़ तवज्जो दिलाने के लिए नबी स. ने हिजामा की भी तारीफ़ की और रब का शुक्र है कि
आज दुनिया भर में हिजामा राएज है।
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जगह जगह तो हिजामा की तरह दावती सेंटर भी खुले हुए हैं। जिन्हें चलाने वालों की फ़हमे दीन ही ग़लत और मश्कूक है।
जगह जगह निकाह भी हो रहे हैं, बाद में पता चलता है कि लड़के में मर्दानगी ही नहीं थी। उनमें झगड़े और तलाक़ होते हैं।
हर घर में ऐसी औरतें मां बन रही हैं, जिन्हें ज़िन्दगी भर बच्चे की तरबियत करना नहीं आता। वे उसे नमाज़ और क़ुरआन तक नहीं पढ़ातीं। सोते वक़्त बच्चों ने दांत साफ़ किए या नहीं, वे यह तक चेक नहीं करती। आदर्श हालत किसी फ़ील्ड में नहीं है, इसलिए हिजामा और तिब्बे नबवी में भी सब लोग आदर्श नहीं हैं।
जब बेशुऊरी दुनिया का आम रिवाज है तो उन्हीं लोगों के हाथ हिजामा लग गया है।
वे इसे अपने लेवल से ही यूज़ करेंगे लेकिन इससे हिजामा का शिफ़ा होना अपनी जगह हक़ रहता है।
जो शख़्स अपनी खाल में हिजामा का ब्लेड लगवाए, उसके ज़िम्मे है मुआलिज की क़ाबिलियत और उसका तजुर्बा चेक करना।
मैंने हिजामा कराया तो पहले यह सब देखा और मुझे श्याटिक दर्द में 10-20 मिनट में ही बहुत ज़्यादा आराम मिला।
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तिजारत करना एक ज़रूरत है
बाज़ार से बचना मुमकिन नहीं है और दीन में मतलूब भी नहीं है। आज मुस्लिम को बाज़ार में अपनी जगह बनानी होगी क्योंकि
*Control the purse Control the policy* एक हक़ीक़त है।
अपनी फ़िक्री आज़ादी की हिफ़ाज़त तभी मुमकिन है जब आप फ़ाईनेंशियली मज़बूत हों।
इसके लिए जिन्से बाज़ार को जायज़ तरीक़े से बेचना सीखना होगा, जैसे कि सहाबा र. बेचा करते थे।
ऐसा करके अक्सर मुबल्लिग़ ग़रीबी और ज़हनी ग़ुलामी से निकल आएंगे,
इन् शा अल्लाह।
तिजारत बेरोज़गारी और ग़रीबी का हल है। आज जब हर चीज़ को बाज़ार में बिकने वाली चीज़ बनाया जा रहा है तो आप उसे जायज़ तरीक़े से बेचें। दीन इससे मना नहीं करता कि कोई अपना सर्विस चार्ज ले।
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तिब्बे नबवी एक अलग पैथी है
हरेक पैथी के अपने कुछ ख़ास उसूल होते हैं। एक पैथी दूसरी पैथी के उसूलों पर पूरी नहीं उतरती। एलोपैथी डा. हैनीमैन के उसूलों पर पूरी नहीं उतरी और होम्योपैथी एलोपैथी के उसूलों पर पूरी नहीं उतरती। ऐसे ही तिब्बे नबवी के लिए एलोपैथी के उसूलों पर पूरा उतरना ज़रूरी नहीं है।
तिब्बे नबवी को होम्योपैथी और यूनानी तरीक़ा ए इलाज की तरह की एक अरब पैथी समझना ग़लत है और यह ग़लती तिब्बे नबवी में शहद, सना और कलौंजी जैसी हर्ब्स के यूज़ को देखकर होता है जो अरबों में आम तौर पर यूज़ होती थीं।
आप इब्ने क़ययिम रह. की बुक तिब्बे नबवी पढ़ेंगे तो आपको मालूम हो जाएगा कि तिब्बे नबवी के अपने अलग और इल्हामी उसूल हैं।
उन उसूलों को भुलाकर शहद, सना और कलौंजी खाया जाए तो वह अरब आदत है या हारिस बिन कल्दाह जैसे अरब तबीबों का तरीक़ा है लेकिन जब उन्हीं चीज़ों को तिब्बे नबवी के उसूलों की रिआयत के साथ खाया जाएगा तो वह एक ऐसा तरीक़ा है, जिससे हारिस बिन कल्दाह और अरब के मुशरिक वाक़िफ़ न थे।
इस बात पर भी ग़ौर करना ज़रूरी है कि अरबों में राएज तरीक़ा ए इलाज हारिस बिन कल्दह जैसे चिकित्सकों की खोज से वुजूद में नहीं आया था। यह तरीक़ा नबियों की तालीम से नस्ल दर नस्ल गुज़रते हुए उन तक पहुंचा है और उसी तिब्बी इल्म में उन चिकित्सकों ने अपने तजुर्बात से और ज़्यादा इज़ाफ़ा कर लिया। इससे पता चलता है कि हारिस बिन कल्दाह जैसे अरब चिकित्सक ख़ुद तिब्बे नबवी से इलाज करते थे। यह बात समझने के लिए इस बात को याद रखें कि तिब्बे नबवी से मुराद 'नबियों की तिब्ब' है जोकि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले भी मौजूद थी जैसे कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाईश से पहले भी इस्लाम का वुजूद था।

आधुनिक चिकित्सा पद्धति कैसे वुजूद में आईं?
पुराने चिकित्सकों के तिब्बी इल्म की बुनियाद पर और ज़्यादा तजुर्बात किए गए तो आधुनिक चिकित्सा शास्त्र वुजूद में आ गया है। फिर इसमें और ज़्यादा तजुर्बात किए गए तो बहुत सी शाखाएं (Branches) वुजूद में आ गईं। आप ध्यान से आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की स्टडी करेंगे तो आपको सब आधुनिक डाक्टर बीच के बहुत से वास्तों के ज़रिए अल्लाह के तिब्बी इल्म से ही फ़ायदा उठाते हुए नज़र आएंगे। सच यही है कि जिसे भी जो ख़ैर और ख़ूबी मिली है और मिल रही है, सिर्फ़ एक अल्लाह से ही मिली है और मिल रही है। मैं आधुनिक चिकित्सा पद्धति को भी तिब्बे नबवी की एक तरक़्क़ीयाफ़्ता (Developed) और बदली हुई पैथी के रूप में देखता हूं। मैं ज़रूरत पड़ने पर आधुनिक चिकित्सा पद्धति से और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों से भी फ़ायदा उठाया हूँ। हिकमत जहाँ भी है, मैं उसे मोमिन की मीरास मानता हूँ।

कलाम में शिफ़ा की तासीर है
इस सब के बावुजूद तिब्बे नबवी अपने आप में आज भी एक अलग और मुकम्मल तिब्बी तरीक़ा है। जिसमें दवा के साथ अक़ीदों के सही करने, दुआ करने और अपनी आदतों को सुधारने पर भी ज़ोर दिया जाता है।
हक़ीक़त यह है कि तिब्बे नबवी अपने वक़्त से बहुत आगे की पैथी है। यह आज भी अपने वक़्त से बहुत आगे की पैथी है।आप तिब्बे नबवी में पवित्र क़ुरआन से इलाज होते देखेंगे तो आप इसकी Quantum Healing और Vibrational Healing को समझ सकेंगे। ख़याल और कलाम भी दवा होते हैं क्योंकि इनमें शिफ़ा की तासीर होती है। रब का कलाम मरीज़ को क्वांटम लेवल पर बदलता है और उसे उसके यक़ीन के मुताबिक़ शिफ़ा मिलनी शुरू हो जाती है।
अहमद भाई! आप मेरे द्वारा सुझाई गई इब्ने क़ययिम की बुक तिब्बे नबवी पढ़कर जवाब लिखते तो ज़्यादा अच्छा रहता।
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सभी नबी दवा और इलाज के बारे में जानते थे
वे संकट में मदद के लिए यहोवा को पुकारते,
वह उन्हें बदहाली से छुड़ाता।
वह अपने वचन के ज़रिए उनकी बीमारी दूर करता,
उन्हें उन गड्ढों से बाहर निकालता जहाँ वे फँस गए थे।
ज़बूर (Psalm) 107:19-20

हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम भी यह बात जानते थे कि अल्लाह तबीब है। अल्लाह ने उन्हें इलाज बताया। उन्होंने उसे किया और उन्हें सेहत मिली। अल्लाह ने ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के ज़रिए इतने ज़्यादा लोगों का इलाज किया कि उनका मौज्ज़ा ही बीमारों को शिफ़ा देना माना गया है। आप बाईबिल में इब्राहीम अलैहिस्सलाम की नस्ल में आए नबियों के बारे में पढ़ेंगे तो आपको उनके द्वारा इलाज करने के क़िस्से भी मिलेंगे।
हर नबी इलाज करना जानता था। यही वजह है कि मुख़्तलिफ़ ज़मानों में रब ने नबियों को खाने पीने की और बरतने की अलग अलग चीज़ें बताईं, जिनमें शिफ़ा थी।

'दिल का खुश रहना बढ़िया दवा है,
मगर मन की उदासी सारी ताकत चूस लेती है।'
बाईबिल, नीतिवचन 17:22
लोगों का दुनियावी कल्याण (Wellness) भी नबी के मक़सद में शामिल होता है
जो लोग नबी स. की बेअसत का मक़सद लोगों तक सिर्फ़ कुछ अक़ाएद और क़ानून की  जानकारी देना समझते हैं,
उनकी नज़र में तिब्ब, तिजारत, सियासत और बाज़ार में घूमना दुनियावी काम हैं।
पहले मुशरिकीन ए अरब नबी स. के इन आमाल को पवित्रता और महानता के ख़िलाफ़ मानकर ऐतराज़ करते थे।
अब अक्सर मुस्लिमों ने भी इन्हें दीन से बाहर समझ लिया है।
कुछ लोगों ने दीन इस्लाम को Socio, politico Economic system के रूप में  तो पहचान लिया है लेकिन मेंटल और फ़िज़िकल हेल्थ और दुनिया में wellness अब भी उनकी तफ़हीमे दीन के दायरे से बाहर है।
💚🍏💚
हक़ीक़त यह है कि तिब्बे नबवी इस्लाम का हिस्सा है और इसलिए है कि इस्लाम की एप्रोच holistic है।
अल्लाह इंसान को नेकी बदी की तमीज़ तो देता लेकिन उसे सेहत और सलामती का तरीक़ा न बताता तो ऐसा दीन ही अधूरा होता।
जब हम यह कहते हैं कि
रब का शुक्र है उसने हमें ज़िन्दगी के हर पहलू में हिदायत दी तो हम ख़ुद इक़रार करते हैं कि
रब ने हमें बीमारी और सेहत के पहलू में भी हिदायत बख़्शी है।
💚🌿💚
किसी से इल्मी बातचीत से हम नहीं थकते।
हरेक इंसान का ज़हनी शाकिलह (paradigm) अलग है और हरेक अपने ज़हनी शाकिलह के मुताबिक़ ही चीज़ों को समझता है।
इसी से इख़्तिलाफ़ वुजूद में आता है और यही इख़्तिलाफ़ एक को दूसरे से अलग करती है और यह अच्छा है।
इल्मी इख़्तिलाफ़ अच्छा है। इसी से एक आदमी दूसरे से सीखता है। इसी से रब की सिफ़त 'अल्-अलीम' तजल्ली करता है
🌿🌟🌿
तिब्बे नबवी मुबल्लिग़ मोमिन को कल्याणकारी बनाती है
मैं ने एक एक आदमी से एक ही सब्जेक्ट पर साल साल और दो दो दो साल बात की है और
उनसे सीखा है।
... मैं ने यह भी सीखा है कि अक्सर लोग सत्य देखकर नहीं बल्कि हित देखकर बात मानते हैं।
पहले मैं बिना तिब्बे नबवी के मुशरिकों को दीने हक़ बताया करता था, तब कोई बिरला मानता था,
अब मैं उसे हक़ बात बताता हूं और रब के कलाम से और नबियों की ज़िन्दगी से उसके जायज़ हित को भी सपोर्ट करने वाली नालिज भी दे हूं तो हरेक आदमी बात मानता है।
आज हरेक इंसान के लिए आज सेहत, रोज़ी, सलामती, घर बनाना और निकाह-शादी करना बहुत जटिल मसले हैं।
तिब्बे नबवी इन सबको हल करती है। तिब्बे नबवी की ख़ास बात यह है कि यह फ़ाइनेंशियल बीमारियों ग़रीबी और क़र्ज़ को भी दूर करती है।
अल्हम्दुलिल्लाह!

दूसरे तरीक़ा ए इलाज सिर्फ़ बीमारी का इलाज करते हैं, जबकि तिब्बे नबवी इंसान का इलाज करती है, उसके हरेक पहलू के हालात का इलाज करती है। सब लोगों तक यह जानकारी पहुंचाना भी तब्लीग़ और दावत का हिस्सा है। बीमारियों के इस दौर में मानव जाति का कल्याण करने के लिए ऐसा करना आज पहले से ज़्यादा ज़रूरी है।

The most beloved to Allah are the most beneficial to the people

Ibn Umar reported: The Prophet, peace and blessings be upon him, said,
“The most beloved people to Allah are those who are most beneficial to the people. The most beloved deed to Allah is to make a Muslim happy, or to remove one of his troubles, or to forgive his debt, or to feed his hunger. That I walk with a brother regarding a need is more beloved to me than that I seclude myself in this mosque in Medina for a month. Whoever swallows his anger, then Allah will conceal his faults. Whoever suppresses his rage, even though he could fulfill his anger if he wished, then Allah will secure his heart on the Day of Resurrection. Whoever walks with his brother regarding a need until he secures it for him, then Allah the Exalted will make his footing firm across the bridge on the day when the footings are shaken.” (Tabarani)

Tuesday, January 8, 2019

Tibbe Nabawi par Aitraz aur unke jawab Dr. Anwer Jamal

हमारे इस लेख को बहुत सराहा गया , अल्हम्दुलिल्लाह
इसी के साथ इस पर कुछ सवाल भी आये हैं।  अब्दहु साहिब ने यह लिखा है
 محترم بھائی! آپکی دعوتی کاوشوں اور تجربات کی ہماری نظر میں بڑی قدر و منزلت ہے.
 با ایں ہمہ، "طب نبوی" پر آپ کا اصرار محل نظر ہے... یہ اصطلاح خود مختلف فیہ ہے.. بقول شخصے..... 
*"طب نبوی کی اصطلاح نبوت مصطفوی کے خلاف سازش ہے، آپ طبیب نہیں، نبی تھے. اگر آپ کی طرف منسوب کوئی علاج سائنسی طور پر غلط ثابت ہو جائے تو طب نبوی قرار دینے سے نبوت مشکوک ہو جائے گی"* 
جسمانی امراض کے تعیین و تشخیص اور ان کے علاج کی وضاحت قرآن و حدیث نبوی کے بنیادی و اساسی مقاصد میں شامل نہیں..

سب سے پہلے یہ بات ذہن میں رہے کہ نبی اکرم صل اللہ علیہ و سلم کو بطور ہادی مبعوث کیا گیا تھا بطور طبیب اور ڈاکٹر نہیں. صحت کے حوالے سے جن امور کی بہت اہمیت تھی آپ نے انہیں بطور شریعت متعارف کروا دیا مثلاً اعضاء وضو کا دھونا یاغسل کرنا. دیگر امور میں آپ اپنے دور کے تجربات کو زیر استعمال لاتے تھے... آپ نے کسی بیماری میں کوئی علاج کیا یا کسی دوسرے کو بھی بتایا ہوگا تو متداول علاج کے طور پر نہ کہ پیغمبرانہ حیثیت سے. تجربی سائنس کے بارے میں آپ کا ارشاد 
*انتم اعلم بأمور دنیا کم*      تم اپنے دنیوی امور مجھ سے بہتر جانتے ہو.... 

اس عمل کا افسوس ناک پہلو یہ ہے کہ ہم نے رسول اللہ صل اللہ علیہ و سلم سے منسوب ہر ہر شے کو جنس بازار بنا دیا ہے. نیز جب اس دور کے کچھ معالجات کو طب نبوی کے طور پر مقدس قرار دے کر جزو ایمان بنالیا گیا اور میڈیکل سائنس نے اسےغلط قرار دے دیا تو کیا آپ کے دور کے طبی معمولات کو درست ماننا ایمان کا تقاضا ہوگا؟ ، اس طرح ہم ایک ہادی اور شارع کو طبیب کی معمولی سطح پر لا کر توہین کے مرتکب نہیں ہونگے.؟ 
کیا معیار ایمان کی نئ تعبیر نہیں کرنا پڑے گی.؟

*مولانا وحید الدین خاں صاحب* نے بھی ایک جگہ  لکھا ہے----  
- ابن خلدون اور شاہ ولی اللہ دہلوی کا کہنا ہے کہ طبی روایات کی شرعی حیثیت نہیں - یہ اس زمانہ کے حکماءحارث بن کلدہ وغیرہ کے تجرہے ہیں جن کو رسول اللہ صلی اللہ
علیہ وسلم نے عرب عادت کے تحت بیان فرمایا ۔.. 
 *حقیقت یہ ہے کہ طب نبوی عربی ہے , نہ کہ الہامی معنوں میں طب نبوی* ۔

अब हम इन ऐतराज़  जवाब  देते  हैं 
محترم بھائی! آپکی دعوتی کاوشوں اور تجربات کی ہماری نظر میں بڑی قدر و منزلت ہے.
जवाब: शुक्रिया, अल्लाह आपको इस क़द्रदानी का बदला ज़रूर देगा।
با ایں ہمہ، "طب نبوی" پر آپ کا اصرار محل نظر ہے... یہ اصطلاح خود مختلف فیہ ہے.. بقول شخصے.....
*"طب نبوی کی اصطلاح نبوت مصطفوی کے خلاف سازش ہے، آپ طبیب نہیں، نبی تھے. اگر آپ کی طرف منسوب کوئی علاج سائنسی طور پر غلط ثابت ہو جائے تو طب نبوی قرار دینے سے نبوت مشکوک ہو جائے گی"*
शख़्से से मुराद नामालूम शख़्स है, जिसकी मारिफ़ते दीन और तिब्बी उलूम की समझ ख़ुद क़ाबिले ग़ौर है।
ऐसे लोगों के शुकूक वसवसों की हैसियत से ज़्यादा कुछ नहीं होते।
उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार किया है और सुबूत में अल्लाह और उसके रसूल के क़ौल से कोई दलील नहीं दी है। अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं कियाऔर ख़ुद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी अपने तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं किया 
इसलिए उसका क़ौल क़ाबिले रद्द है।
उस नामालूम आदमी का 'अगर' लगाकर एक अंदेशा ज़ाहिर करना भी उसके तिब्बे नबवी में साईंसी नज़र से कोई कमी तलाशने में आजिज़ और बेबस रह जाने की दलील है। अगर उसे कोई कमी मालूम होती तो वह उसे दलील के तौर पर पेश करता।
फिर भी अगर किसी हदीस में इलाज के तौर पर बताया गया कोई तरीक़ा ग़लत साबित हो जाए तो उस हदीस के साथ वही मामला किया जाएगा जो कि ऐसी हदीसों के साथ उलमा करते हैं जिनके मतन में ग़लती साबित हो जाती है।
जब क़ानूने शरीअत और तमद्दुन (सभ्यता) के सब्जेक्ट पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अथारिटी माना जाता है और उस सब्जेक्ट पर कही गई किसी हदीस के मतन में ग़लती पाए जाने पर उस हदीस की तहक़ीक़ और तावील की जाती है और नबी स. की नुबूव्वत में कोई शक नहीं आता तो फिर इलाज के सब्जेक्ट पर आई किसी हदीस के मतन में ग़लती को सुनने और नक़्ल करने वाले की ग़लती माना जाएगा, न कि नबी स. की।
جسمانی امراض کے تعیین و تشخیص اور ان کے علاج کی وضاحت قرآن و حدیث نبوی کے بنیادی و اساسی مقاصد میں شامل نہیں..
इस ऐतराज़ में सिर्फ़ जिस्मानी बीमारियों को क़ुरआन और हदीसे नबवी के बुनियादी मक़सद से बाहर माना गया है। यानि ऐतराज़ करने वाला ख़ुद क़ल्बी और नफ़्सियाती और नज़रयाती बीमारियों को क़ुरआन और हदीसे नबवी के बुनियादी मक़सद में शामिल मानता है और अल्लाह ने इसी मक़सद के लिए क़ुरआन नाज़िल किया है। अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन को 'शिफ़ा' क़रार दिया 
يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءَتْكُم مَّوْعِظَةٌ مِّن رَّبِّكُمْ وَشِفَاءٌ لِّمَا فِي الصُّدُورِ وَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِينَ ﴿٥٧
ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से उपदेश औऱ जो कुछ सीनों में (रोग) है, उसके लिए शिफ़ा (रोगमुक्ति) और मोमिनों के लिए मार्गदर्शन और दयालुता आ चुकी है
Holy Qur'an 10:57
इससे तो ऐतराज़ करने वाला इक़रार करेगा कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने पवित्र क़ुरआन नाज़िल किया और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अरब के लोगों का और अपने ताल्लुक़ में आने वाली दूसरी कौमों के लोगों के दिल के और नज़रिये के भयानकतम रोगों का कामयाब इलाज किया। जिस नबी ने ये कामयाब इलाज किए, उसे मनोचिकित्सक तो मानना ही पड़ेगा। मनोचिकित्सक भी तबीब और चिकित्सक ही माना जाता है। इससे भी साबित होता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक माहिर तबीब थे और उन्होंने पवित्र क़ुरआन से लोगों का इलाज किया जो कि अरब लोगों की आम आदत न थी बल्कि अरब लोग तो पवित्र क़ुरआन से अपना इलाज कराने को तैयार ही न थे।
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पवित्र क़ुरआन को 'दवा' फ़रमाया है:
'ख़ैरुद्-दवाइल्-क़ुरआन (हदीस, तिब्बे नबवी लेखक: इब्ने क़य्यिम रह
जब क़ुरआन 'दवा' है तो नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चिकित्सक (तबीब, डाक्टर) हैं ही।
سب سے پہلے یہ بات ذہن میں رہے کہ نبی اکرم صل اللہ علیہ و سلم کو بطور ہادی مبعوث کیا گیا تھا بطور طبیب اور ڈاکٹر نہیں. صحت کے حوالہ سے جن امور کی بہت اہمیت تھی آپ نے انہیں بطور شریعت متعارف کروا دیا مثلاً اعضاء وضو کا دھونا یاغسل کرنا. دیگر امور میں آپ اپنے دور کے تجربات کو زیر استعمال لاتے تھے... آپ نے کسی بیماری میں کوئی علاج کیا یا کسی دوسرے کو بھی بتایا ہوگا تو متداول علاج کے طور پر نہ کہ پیغمبرانہ حیثیت سے. تجربی سائنس کے بارے میں آپ کا ارشاد
*انتم اعلم بأمور دنیا کم*      تم اپنے دنیوی امور مجھ سے بہتر جانتے ہو....
जिस्मानी सेहत पर वुज़ू, ग़ुस्ल, रोज़ा, नमाज़, ज़िक्र, तिलावत, जल्दी सोने, सूरज निकलने से पहले जागने, पाक चीज़ें खाने और नशे जैसी हराम चीज़ों से बचने का असर पड़ता है। ये सब दीन हैं। यह दीन अरबों की आम आदत न थी। इन सब कामों को अरबों की आदत बना देना कभी कोई अरब चिकित्सक न कर सका। ये सब काम नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पैग़म्बर की हैसियत से ही किए।
اس عمل کا افسوس ناک پہلو یہ ہے کہ ہم نے رسول اللہ صل اللہ علیہ و سلم سے منسوب ہر ہر شے کو جنس بازار بنا دیا ہے. نیز جب اس دور کے کچھ معالجات کو طب نبوی کے طور پر مقدس قرار دے کر جزو ایمان بنالیا گیا اور میڈیکل سائنس نے اسےغلط قرار دے دیا تو کیا آپ کے دور کے طبی معمولات کو درست ماننا ایمان کا تقاضا ہوگا؟ ، اس طرح ہم ایک ہادی اور شارع کو طبیب کی معمولی سطح پر لا کر توہین کے مرتکب نہیں ہونگے.؟
کیا معیار ایمان کی نئ تعبیر نہیں کرنا پڑے گی.؟
चिकित्सक की हैसियत को मामूली मानना ही एक ग़लत बात है। जबकि अल्लाह ने क़ुरआन में इंसानी जान बचाने को बड़ी नेकी क़रार दिया है और चिकित्सक का काम इंसानी जान बचाना ही है। चिकित्सक की हैसियत क्या होती है, यह बात आप किसी मनोरोगी के घरवालों से पूछें। इतनी अज़ीम हैसियत एक हादी में न होती तो ताज्जुब होता।
तबीब होना एक मामूली सिफ़त कैसे समझी जा सकती है जबकि एक हदीस में अल्लाह को तबीब बताया गया है।
अन्तर्-रफ़ीक़ वल्लाहु तबीब (हदीस
आप रफ़ीक़ हैं और अल्लाह तबीब (चिकित्सक) है।

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को शारैअ यानि शरीअत बनाने वाला कहा जा सकता है, जैसा कि ऐतराज़ करने वाला कह रहा है? इस पर आलिमों की राय अलग अलग है।
तिब्बे नबवी दीन का जुज़ है तो उसे मुक़द्दस मानने में क्यों ऐतराज़ है
किस किस चीज़ को जिन्से बाज़ार बनाया गया और इलाजे नबवी में क्या ग़लत निकला
यह बताया ही नहीं गया है।
*مولانا وحید الدین خاں صاحب* نے بھی ایک جگہ  لکھا ہے---- 
- ابن خلدون اور شاہ ولی اللہ دہلوی کا کہنا ہے کہ طبی روایات کی شرعی حیثیت نہیں - یہ اس زمانہ کے حکماءحارث بن کلدہ وغیرہ کے تجرہے ہیں جن کو رسول اللہ صلی اللہ
علیہ وسلم نے عرب عادت کے تحت بیان فرمایا ۔..
*حقیقت یہ ہے کہ طب نبوی عربی ہے , نہ کہ الہامی معنوں میں طب نبوی* ۔
इब्ने ख़ल्दून और शाह वलीउल्लाह रहमतुल्लाहि अलैह ने कहीं नहीं लिखा है कि तिब्बी रिवायतों की शरई  हैसियत नहीं है। उनकी तरफ़ से यह बात कहना ग़लत है।
इब्ने ख़ल्दून और शाह वलीउल्लाह रहमतुल्लाहि अलैह के लिखे हुए को नक़्ल करें ताकि हम उसे सबके सामने क्लियर करें। हकीमों की हिक्मत और उनके मुफ़ीद तजुर्बात को आगे बयान करके नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इल्म की क़द्र की है और हमें भी इल्म की क़द्र करना सिखाया है।
दूसरे लोगों की मुफ़ीद हिकमत को इख़्तियार करना नबियों की शान के ऐन मुताबिक़ है, ख़िलाफ़ नहीं है। दुनिया में सभी चिकित्सक ऐसा करते हैं। नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसा किया है तो उनका ऐसा करना चिकित्सकीय परंपरा के मुताबिक़ ही है।
-ज़्यादा जानकारी के लिए यह किताब पढ़ें
तिब्बे नबवी को भुलाने के नुक़्सान
आज उलमा ए उम्मत जिस एक बात पर मुत्तफ़िक़ हैं, वह यह है कि यह दौर दीन के फ़हम के ज़वाल (पतन) का दौर है। आज दीनी इल्म के नाम पर मदरसों तक में महदूद इल्म दिया जाता है जोकि दीन की ज़ाहिरी इबादतों और रस्मों से मुताल्लिक़ होता है। इल्म की बातिनी कैफ़ियत ‘ख़ौफ़े ख़ुदा’ का उसमें होना ज़रूरी नहीं माना जाता। उसमें इख़्लास, यक़ीन और तक़वा जैसी सिफ़तों के बिना भी उसे मदरसों से आलिम की सनद दे दी जाती है। यह इल्मी ज़वाल की निशानी है। इल्मी ज़वाल के दौर में तिब्बे नबवी का मुक़द्दस और इल्हामी इल्म भी लोगों की लापरवाही का शिकार हो गया है।
अब यही लोग आलिम हैं और यही इमाम हैं। ये लोग ईरानी और मुग़लई खाने खाकर और अंग्रज़ी कोल्ड ड्रिंक्स पीकर बीमार पड़ते रहते हैं। ख़ून में तेज़ाब ज़्यादा होने से कैल्शियम कम हो गया है। अब मस्जिदों में कुर्सी पर बैठकर नमाज़ पढ़ने वाले भी पहले से ज़्यादा नज़र आने लगे हैं, जबकि नमाज़ और क़ुरआन में शिफ़ा है। लेकिन ये लगातार बरसों नमाज़ और क़ुरआन पढ़ते रहते हैं और इन्हें शिफ़ा नसीब नहीं होती।
इन आलिमों को कोर्स में तिब्बे नबवी पढ़ाई गई होती तो ये बहुत कम बीमार पड़ते और जब कभी बीमार पड़ते तो अपना इलाज नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरह ख़ुद कर लिया करते या फिर अपने से बड़े किसी दूसरे आलिम से करा लिया करते। 
तिब्बे नबवी को ग़ैर ज़रूरी समझने का बुरा अन्जाम मैंने देवबन्द में यह देखा है कि मौलवी साहिबान तरह तरह की बीमारियों के शिकार होकर डा. अग्रवाल और डा. जैन से इलाज कराते हैं। जबकि होना इसका उल्टा चाहिए था और होता भी है। जो उलमा ए इस्लाम इख़लास, यक़ीन, तक़वा और ख़ौफ़े ख़ुदा की सिफ़त रखते हैं और तिब्बे नबवी का इल्म रखते हैं, उनके पास डाक्टर अपना इलाज कराने आते हैं। जिस मर्ज़ का इलाज ऐलोपैथी में नहीं होता, वे उस मर्ज़ से उनके पास आकर शिफ़ा पाते हैं।
मैंने मौलाना क़ारी अब्दुर्रहमान साहिब के मतब में देसी दवाओं के ज़रिए कैंसर जैसे भयानक मर्ज़ दूर होते हुए देखे हैं। ऐसे आलिम कम हैं लेकिन रब का शुक्र है कि तिब्बे नबवी के जानकार मुत्तक़ी आलिम हमारे बीच मौजूद हैं। मेरा मक़सद आलिमों में कमी बताना नहीं है बल्कि आलिमों और मुबल्लिग़ों को तिब्बे नबवी की तरफ़ तवज्जो दिलाना है। सभी आलिमों को इस बात पर सोचना होगा कि जिस नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वे वारिस हैं, उनका और उनके अहले बैत का फ़ैमिली डाक्टर कौन था़?
जो लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जिस्मानी मर्ज़ का चिकित्सक (तबीब) नहीं मानते, वे बताएं कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चिकित्सक नहीं थे तो उनकी और उनके घर वालों की चिकित्सा कौन करता था?
ऐतराज़ करने वाले किसी दूसरे चिकित्सक का नाम नहीं ले पाएंगे।
तिब्बे नबवी की बरकतें
हक़ीक़त यह है कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिस दीन की तालीम देते थे, उसके अंदर शिफ़ा के उसूल हैं। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का लाईफ़ स्टाईल हेल्दी था। उनके अहले बैत का लाईफ़ स्टाईल दीन के मुताबिक़ होने की वजह से हेल्दी था। वे बहुत कम बीमार पड़ते थे। शहद, सना, अंगूर और लौकी उनकी डाइट का हिस्सा थे, जो क़ब्ज़ नहीं होने देते और बदन को न्यूट्रिशन देने के साथ ही टाॅक्सिन्स को जिस्म से बाहर निकालते रहते हैं, जो कि ज़्यादातर बीमारियों की वजह बनते हैं। नमाज़ और पवित्र क़ुरआन उनके दिल को सुकून देते थे। पैदल चलना, घुड़सवारी करना और अपने काम अपने हाथों से करना उन्हें हेल्दी रखने में एक्सरसाईज़ से ज़्यादा फ़ायदा देते थे। वे हलाल खाते थे। वे भूख लगने पर खाते थे और पेट भरने से ज़रा पहले खाना छोड़ देते थे। वे महीने में कुछ दिन रोज़ा रखकर पेट और लिवर को आराम भी देते थे। जो कोई आज भी यह करेगा, वह आज भी  कम बीमार पइ़ेगा और अगर वह तिब्बे नबवी की जानकारी रखता है तो वह अपना इलाज ख़ुद ही कर लेगा। इसकी मिसाल मैं ख़ुद हूँ, अल्हम्दुलिल्लाह! मैंने आखि़री बार ऐलोपैथी की दवा कितने साल पहले खाई थी, मैं  बताना चाहूं तो मुझे याद करना पड़ेगा। दूसरों की तरह मुझे भी बुख़ार आते रहते हैं। दूसरे लोग पैथोलोजी और डाक्टरों के चक्कर लगाते रहते हैं तो मुझे आज तक बुख़ार आने पर ख़ून टेस्ट करवाने और ख़ून चढ़वाने की नौबत नहीं आई। मुझे आज तक ग्लूकोस चढ़ाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ी, अल्हम्दुलिल्लाह! ये सब तिब्बे नबवी की बरकतें हैं।
उलूम और नबियों का आपसी रिश्ता
मेरी दादी अम्मी मुझसे भी कम इल्म रखती थीं लेकिन वह 114 साल की उम्र पाकर इस दुनिया से रूख़्सत हुईं और आखि़र तक वह अपने जिस्म से काम लेती रहीं। उनकी याददाश्त थोड़ी सी मुतास्सिर हो गई थी, बाक़ी सब ठीक था। उनकी सेहत का राज़ यह था कि वह मौसम के हिसाब से सर्द और गर्म देखकर ही चीज़ों का इस्तेमाल करती थीं। हमने अपनी वालिदा ज़िन्दगी में शायद ही कभी किसी हकीम या डाक्टर के पास जाते देखा होगा। वह भी सर्द और गर्म तासीर देखकर मौसम के मुताबिक़ चीज़ों को इस्तेमाल करती हैं। हमारे घर में तिब्बी जानकारी आम होने की वजह से सर्द और गर्म, ख़ुश्क और तर की जानकारी औरतों और मर्दों को रहती ही है। पहले यह जानकारी ज़्यादातर समझदार बुज़ुर्गों को होती ही थी। आप इसे हमारे घर का या हिन्द का आम दस्तूर कह सकते हैं लेकिन आम दस्तूर में इस क़ीमती और नतीजाबख़्श इल्म का सोर्स सिर्फ़ एक रब ही है और रब से बन्दों तक यह इल्म नबियों के वास्ते पहुंचता है या फिर उन लोगों के ज़रिए से जो कि नबियों की तालीम के मुताबिक़ ज़मीन और आसमानों की चीज़ों में ग़ौरो-फ़िक्र करते रहते हैं। उनका इल्म आम होता है तो आम दस्तूर बन जाता है। आम दस्तूर में पाई जाने वाली अच्छी बातों का ताल्लुक़ सीधे या वास्तों से नबियों से ही होता है। अगर कोई नास्तिक है और उसने कोई चीज़ डिस्कवर की है तो वह ऐसा तभी कर पाया, जब उसने ज़मीन और आसमानों की चीज़ों में न्यूट्रल होकर ग़ौरो फ़िक्र किया। जो कि नबियों की तालीम है। कोई नास्तिक भी तभी कुछ पाता है जब वह नबियों की तालीम पर अमल करता है, हालाँकि वह इस बात से अन्जान होता है कि वह नबियों की तालीम पर चल रहा है।

बीमारियों की वजह और उनसे शिफ़ा
आज नई नस्ल को चीज़ों की सर्द और गर्म तासीर की यह जानकारी नहीं है। उन्हें अपने दिल और ज़ुबान पर क़ाबू नहीं है। माॅडर्न लाईफ़ स्टाईल ने उनके मन को तनाव से भर दिया है। नई नस्ल का लाईफ़ स्टाईल हेल्दी नहीं है। आज एलोपैथिक डाक्टर ख़ुद बीमार हैं। जैसे जैसे डाक्टरों और अस्पतालों की तादाद बढ़ रही है वैसे वैसे बीमारियों और बीमारों की तादाद भी बढ़ रही है।
डाॅक्टरों के मुताबिक़ कैंसर, डायबिटीज़, थायराईड, मोटापा, लिवर और किडनी का फ़ेल होना, हाई ब्लड प्रेशर और दमा जैसी बीमारियाँ माॅडर्न लाईफ़ स्टाईल की देन हैं। इन बीमारियों की शिफ़ा नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हेल्दी लाईफ़ स्टाईल में है। जिस नबी स. का लाईफ़ स्टाईल डाक्टरों के दौर की सैकड़ों बीमारियों की दवा हो, डाक्टरों की बीमारियों की दवा हो, उससे बड़ा चिकित्सक (तबीब) भला और कौन होगा?
इस्लामी शरीअत में किसी पैथी के डाक्टर से सलाह और दवा लेना मना नहीं है लेकिन यह याद रखना ज़रूरी है कि इस्लामी शरीअत ख़ुद बहुत सी बीमारियों से बचाव और शिफ़ा का ज़रिया है। इसी के साथ तिब्बे नबवी की शक्ल में एक इल्हामी तरीक़ा ए इलाज भी है, जिससे सब नबियों ने नफ़्सियाती, जिस्मानी, अख़्लाक़ी और रूहानी इलाज किए हैं।
तिब्बे नबवी की जानकारी रखने वाले नमाज़ी खड़े होकर ज़्याद अच्छे तरीक़े से नमाज़ पढ़ते हैं। जो कोई रग-पठ्ठों और जोड़ों के दर्द की वजह से बैठकर नमाज़ पढ़ रहा हो और खड़े होकर सेहतमंद लोगों की तरह नमाज़ पढ़ना चाहता हो, वह हमसे Email: allahpathy@gmail.com  पर संपर्क करे। इन् शा अल्लाह, वह बहुत जल्दी अपने पैरों पर खड़ा होकर नमाज़ पढ़ेगा। ऐसे ही किसी को दमा है तो उसका दमा तीन महीने में ख़त्म हो जाएगा, इन् शा अल्लाह!
तिब्बे नबवी हमें दीनी फ़राएज़ ज़्यादा अच्छे तरीक़े से अदा करने में भी मदद देती है क्योंकि हरेक फ़र्ज़ की अदायगी में सेहत ज़रूरी है। दावतो तब्लीग़ में भी सेहत और ताक़त की ज़रूरत है। इसीलिए हम तिब्बे नबवी पर सब दाईयों को तवज्जों दिलाते रहते हैं। नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सेहतबख़्श उसूलों को ख़ुद भी अपनाएं और दूसरे धर्म वालों को भी उनके चमत्कारी फ़ायदों की जानकारी दें।

Monday, January 7, 2019

अच्छी तब्लीग़ क्या है? How To Survive Easily? Dr. Anwer Jamal

'How To Survive Easily?' 
इस सब्जेक्ट पर #Tibbe_Nabawi के एक्सपर्ट्स सारे स्कूलों, मदरसों और मुहल्लों में क्लास लें तो हिन्द का हरेक औरत मर्द सेहतमंद और कमाऊ हो जाएगा।
#wellness_series 12
💖😊💖
Nastrademus और अलग अलग धार्मिक ग्रंथों की भविष्यवाणियों के आधार पर कुछ लोग निकट भविष्य में जंग और बुरे हालात होने का ज़िक्र सिनेमा, न्यूज़ और सोशल मीडिया में करते रहते हैं। #Hollywood में
End of the days पर फ़िल्में बनती रहती हैं।
अब दीन के मुबल्लिग़ भी लोगों को डरा रहे हैं कि आगे भयानक हालात आने वाले हैं। जिससे आम लोगों में दहशत फैल रही है।
जब फ़ौजें जंग करती हैं तो आम लोगों को सबसे ज़्यादा मुश्किल खाना और दवा पाने में होती है।
💖😊💖
मैं Solution पर बात करता हूं। आप भी Solution ज़रूर दें वर्ना बिना हल दिए भविष्य के कठिन हालात का ज़िक्र करने से लोग डिप्रेशन के मरीज़ हो जाएंगे।
🌹💐🍇
Tibbe Nabawi कहती है कि समस्या का समाधान भी बताओ।
इसलिए मैं रब के नाम से सब धर्म के अमीर ग़रीब लोगों को ऐसी जानकारी देता रहता हूँ,
जो आम दिनों में बीमारी दूर करने और दूर रखने के काम आती है और Emergency में जान बचाने के।
मैं ऐसे पेड़ पौधों की जानकारी देता रहता हूं जिन्हें आप अपने घर में बो सकते हैं। जैसे कि लौकी, कद्दू, अंगूर, ऐलोवेरा और तुलसी आदि। ये खाना और दवा दोनों हैं।
🍎🍏🍎
कुछ इलाकों में curfew लगता रहता है और कुछ इलाकों में लोग बेरोज़गार हैं। बुंदेलखंड में आम दिनों में भी सबको भोजन नहीं मिलता।
सबके पास खेती की ज़मीन नहीं है और बहुत लोग ग़रीब हैं, जो कर्फ़्यू में महंगे दामों पर फ़ूड नहीं ख़रीद पाते क्योंकि उनकी मज़दूरी ही बंद हो जाती है।
इसका असर औरतों और बच्चों पर पड़ता है। वे भूख और कुपोषण से मरते हैं या ज़िन्दा रह जाते हैं तो उनका ठीक से विकास नहीं होता।
नतीजा यह होता है कि प्यारा देश हिन्द सारी दुनिया में बदनाम होता है।
🌹🌷🌹
अपने प्यारे देश का हर नागरिक ख़ुद को सेहतमंद और विकसित करने के लिए Tibbe Nabawi सीख ले तो हिन्द का नाम रौशन होगा।
सबको अपने घर में किचेन गार्डन की आदत डालनी है, जिसमें लौकी, कद्दू, ऐलोवेरा, खजूर और तुलसी जैसे पेड़ पौधे लगाने हैं ताकि कर्फ़्यू और जंग के हालात में भी घर के बच्चों को पौष्टिक आहार मिलता रहे। उन्हें घर में ही ज़रूरी दवाएं मिलती रहें।
इससे रब का यह नियम पूरा होता है कि
जहाँ मैं बोता हूँ, वहाँ काटता हूँ।
देखें इन्जील मत्ती 25:26
🌹🍎🌹
मुझे ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के इस दृष्टांत से हिन्द के ग़रीब और अमीर लोगों की समस्या का सबसे अच्छा समाधान मिला है,
जिसमें कहा गया है:
मैं जहाँ नहीं बोता वहाँ भी कटाई करता हूँ '
मत्ती 25:26
यह एक अद्भुत आयत है।
इन्जील की इस आयत में ऐसी फ़सल का ज़िक्र है जिसे बिना बोए भी काटा जा सकता है। मैंने इस कांसेप्ट विचार किया तो देखा कि
ऐसे बहुत से पेड़ पौधे सड़कों के किनारे खड़े रहते हैं जिन्हें खाया जा सकता है लेकिन जानकारी की कमी में
बहुत कम लोग इन्हें खाने में  यूज़ करते हैं। 
इनमें कुछ अद्भुत और अनमोल पेड़ भी हैं जैसे कि Tree of life, जिसे हिन्दी में सहजन, सोंजना और अंग्रेज़ी में Moringa  भी कहते हैं। इसकी ORAC Value सब पेड़ पोधों से ज़्यादा है। इसलिए यह oxidative damage को सबसे ज़्यादा रोकता है। इसी वजह से Moringa अमीरों के फ़ूड में भी सुपर फ़ूड के रूप में शामिल है।
Moringa की पत्तियों को सुखाकर भी रखा जा सकता है। इसके सूखे पत्ते भी फ़ूड और मेडिसिन के रूप में काम आते हैं।
बाइबिल में सहजन के पेड़ का ज़िक्र और उसके फ़ायदे
Moringa is the ancient and Biblical “Tree of Life” described in the Bible Book of Exodus 15:20-25. Its seeds are still used around the World to purify water as Moses did at Mt. Sinai.

मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम को प्यासा मरने से कैसे बचाया?
मूसा इस्राएल के लोगों को लाल सागर से दूर ले जाता रहा, लोग शूर मरुभूमि में पहुँचे। वे तीन दिन तक मरुभूमि में यात्रा करते रहे। लोग तनिक भी पानी न पा सके।  तीन दिन के बाद लोगों ने मारा की यात्रा की। मारा में पानी था, किन्तु पानी इतना कड़वा था कि लोग पी नहीं सकते थे। (यही कारण था कि इस स्थान का नाम मारा पड़ा।)
 लोगों ने मूसा से शिकायत शुरु की। लोगों ने कहा, “अब हम लोग क्या पीएं?”
 मूसा ने यहोवा को पुकारा। इसलिए यहोवा ने उसे एक पेड़ दिखाया। मूसा ने पेड़ को पानी में डाला। जब उसने ऐसा किया, पानी अच्छा पीने योग्य हो गया। उस स्थान पर यहोवा ने लोगों की परीक्षा ली और उन्हें एक नियम दिया।
यहोवा ने लोगों के विश्वास की जाँच की। यहोवा ने कहा, “तुम लोगों को अपने परमेश्वर यहोवा का आदेश अवश्य मानना चाहिए। तुम लोगों को वह करना चाहिए जिसे वह ठीक कहता है। यदि तुम लोग यहोवा के आदेशों और नियमों का पालन करोगे तो तुम लोग मिस्रियों की तरह बीमार नहीं होगे। मैं तुम्हारा यहोवा तुम लोगों को कोई ऐसी बीमारी नहीं दूँगा जैसी मैंने मिस्रियों को दी। मैं यहोवा हूँ। मैं ही वह हूँ जो तुम्हें स्वस्थ बनाता है।”
निर्गमन 15:22-26

तिब्बे नबवी के फ़ायदे
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़रिए अल्लाह ने हमें एक कुदरती वाटर प्योरिफ़ायर बख़्शा है। बाद में रिसर्चर्स ने पता लगाया तो वह सहजन का पेड़ था।
According to researchers:
The power of the Biblical Miracle Tree is confirmed by modern science. For example, Dr. Oz said Moringa Tea: “The leaves of the Moringa Oleifera tree are extremely nutrient-dense. They contain three times more iron than spinach and are loaded with tons of other vitamins including vitamin C, vitamin A, calcium, and potassium, as well as powerful antioxidants.
Moringa helps you to balance your food intake, maximize your energies and detox. You will also discover the overall well-being benefits of Moringa Oleifera. To purify water. To cook tasty meals. And more pointers to manage your weight and maximize your happiness and well-being in life!'
जो लोग बेरोज़गार हैं, वे लोग Moringa Leaves देश विदेश में बेचकर काफ़ी माल कमा सकते हैं।
यह पेड़ कम पानी वाली जगहों पर भी आसानी से पैदा हो जाता है।

रोज़गार के अनंत मौक़े
अल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल्-आलमीन
शुक्र और हम्द तमाम आलमों को पालने वाले अल्लाह के लिए ही ख़ास है। 
-पवित्र क़ुरआन 1:1
पवित्र क़ुरआन की सबसे पहली आयत इंसान के रोज़ी और परवरिश के ग़लत नज़रिए को सही करती है। आप नबियों की शिक्षा पर और उनकी ज़िन्दगी से सीखें तो आप इस ग़लत नज़रिए से आज़ाद हो जाएंगे कि हम पढ़े लिखे हैं तो सरकार हमें नौकरी दे, सरकार हमें बेरोज़गारी भत्ता दे, सरकार हमें क़र्ज़ दे।
हक़ीक़त यह है कि आपकी रोज़ी आपके रब के ज़िम्मे है। वह जैसे आपको आसमान से अनंत पाक साफ़ पानी देता है, जिसे आप पीते हैं, वैसे ही वह आपको ज़मीन से अनंत पेड़ पौधे भी देता है, जिनमें से ज़्यादातर को आप जानते तक नहीं। इसी वजह से आप उनसे फ़ायदा नहीं उठा पाते।
आपके ज़िम्मे रोज़ी के मौक़ों को पहचानना है और उनसे हिकमत से काम लेना है।
आपकी रोज़ी आपके रब के ज़िम्मे है। पहले ऐलोवेरा एक जंगली पौधा समझा जाता था लेकिन आज इसकी खेती की जा रही है और करोड़ों डालर का बिज़नेस हो रहा है।
आज भी अड़ूसा, चिरचिटा, भंगरा, सत्यानाशी, बबूल, नीम, पीपल, जामुन, बेरी, काकजंघा, शंखपुष्पी, ब्रह्मी, जलकुंभी, पलाश, ऊंट कटारा (Milk Thistle), डंडेलियन (Dandelion), छोटी दूधी और बड़ी दूधी जैसे सैकड़ों पौधे सड़क और नहर के किनारे और जंगलों और बीहड़ों में सब जगह खड़े रहते हैं और वे सूखकर बेकार और बर्बाद हो रहे हैं।
इन सब पौधों को देसी दवाओं में डाला जाता है। यहां तक कि दूब घास (Cynadon Dactylon) से भी दवाएं बनती है। यह भी एक हर्बल मेडिसिन है। इन सबको काटकर तरीक़े से सुखा कर और साफ़ करके बाज़ार में और दवा कंपनियों को बेचा जाता है। कोई भी नौजवान और बूढ़ा यह काम कर सकता है। रब की इस रोज़ी के अनंत मौक़ों पहचानना उसके बंदों की ज़िम्मेदारी है। सब लोग अपनी ज़िम्मेदारी को समझें तो कोई भी बेरोज़गार नहीं रह सकता।
पवित्र क़ुरआन और नबियों की शिक्षाओं को सिर्फ़ दूसरों से बहस करने के लिए ही इस्तेमाल न करें बल्कि अपने और दूसरों के रोटी और बीमारी के मसलों को हल करने के लिए भी पढ़ना सीखें। आप ऐसा तभी कर पाएंगे जब आप तिब्बे नबवी को जानते और समझते होंगे।
तिब्बे नबवी को जानना एक मुबल्लिग़ की दीनी ज़िम्मेदारी है। जो आदमी अपने बुख़ार की तपिश को कम करना तक नहीं जानता, वह लोगों को बताएं कि मैं आपको ऐसी बात बताता हूँ जिससे मरने के बाद आप जहन्नम की आग से बच जाओगे तो आम लोग उसकी बात पर कम ध्यान देंगे।
आप देखेंगे कि सभी नबी हीलिंग का तरीक़ा जानते थे। दुनिया में जितने भी किसी दीन के बड़े मुबल्लिग़ हीलिंग आर्ट ज़रूर जानते थे।
अच्छी तब्लीग़ क्या है?
अच्छी तब्लीग़ वही है, जो दूसरों को मरने से पहले और मरने के बाद, दोनों जहान में फ़लाह दे, उनका पूरा कल्याण करे। इस्लाम में आधे-अधूरे कल्याण का तसव्वुर नहीं है। पूरे कल्याण में दुनिया में रोटी, कपड़ा, मकान, इलाज, सेहत, शिक्षा, शादी, बच्चे, परवरिश, विकास और ख़ुशी सब आता है।
रब यह सब देता है। हर पल देता है। सबको देता है। पाता वही है, जो तलाश करता है।
ईसा मसीह अलैहिस्सलाम कहते हैं: 
'जो ढूँढ़ता है, वह पाता है'
-मत्ती 7:8
हरेक अच्छा मुबल्लिग़ हमेशा यह बात याद रखता है कि अक़ीदों और मन के विश्वासों को और कर्मों को सिर्फ़ इसीलिए सुधारा जाता है कि दोनों जहान में फ़लाह और कल्याण हो। नबियों ने लोगों का इस दुनिया में जो कल्याण किया है, उसे सामने रखकर आप भी लोगों का कल्याण (भला) करें।

Wednesday, January 2, 2019

Har Dard ki dawa, Natural Herbal Medicines for Pain -Dr. Anwer Jamal

दीन की दावत देने वाले को कुछ ऐसे नुस्ख़ों के बारे में जानना ज़रूरी है, जो दर्द दूर करते हैं ताकि अपने जिस्म में दर्द हो तो उसे दूर कर ले और अगर सुनने वाला दर्द से कराह रहा है तो उसका दर्द दूर कर दे। वर्ना दर्द में न तो दीनदार कहीं जा सकेगा और न दूसरा अपने दर्द की वजह से उसकी बात सुन सकेगा।
इसके अलावा बहुत से लोग कम आमदनी या ग़रीबी की वजह से एलोपैथिक दवाएं नहीं लेते। कुछ अमीर लोग ये दवाएं लेने के बाद भी आराम महसूस नहीं करते।
आज ऐसे सब लोगों के लिए असरदार और सस्ती दवाओं की जानकारी दे रहे हैं। इनके अलावा भी बहुत सी और दवाएं हैं। जिन्हें हम बताते रहेंगे, इन् शा अल्लाह!
दीन के दाई सब धर्म के लोगों के दर्द में काम आने वाले तभी बन सकते हैं, जब उन्हें नबियों की तरह जड़ी बूटियों और फलों से इलाज करना आता होगा। सो सभी मुबल्लिग़ तिब्बे नबवी ज़रूर पढ़ें।
फ़िलहाल हम कुछ ऐसे नुस्ख़े लिख रहे हैं, जो जड़ी बूटियों से बनते हैं लेकिन ये बाज़ार में तैयार मिलते हैं।
1. गठिया (Gout) का ख़ात्मा
डा. हसीबुर्-रहमान साहिब (ज़िला अस्पताल के सामने तुलसी क्लिनिक चलाते हैं) उनसे Bulandshahr U.P. में मुलाक़ात हुई। उन्होंने यूनानी मेडिसिन का एक कीमती गुप्त राज़ बताया कि गठिया आधा ग्राम सुरंजान मीठा (Suranjan Sheerin 500 mg.) बारीक पीसकर सुबह शाम दो बार कुछ माह खाने से पूरी तरह ख़त्म हो जाती है लेकिन आधा ग्राम की dose ज़रूरी है। उन्होंने बार बार 'आधा ग्राम' पर ज़ोर दिया। बाज़ार में तैयार माजून ए सुरंजान से यह dose नहीं मिल पाती।
गठिया के मरीज़ इस नुस्ख़े से फ़ायदा उठाएं। गठिया के जिस मरीज़ को डायबिटीज़ हो, वह भी सुरंजान शीरीं का सकता है।
Majun Suranjan is beneficial in rheumatoid arthritis, osteoarthritis, and gout.


2. कमर दर्द, जोड़ों और मसल्स के दर्द (Musculoskeletal Pain)
से परेशान मरीज़ देवबन्द उत्तर प्रदेश के हकीमों के इस सदाबहार नुस्ख़े से फ़ायदा उठाएं। देवबन्द के अलहकीम दवाख़ाना पर ख़िदमत अंजाम देने वाले हकीम यूनुस ख़ान हर तरह के दर्द के इलाज के स्पेशलिस्ट हैं और मोबाईल नंबर 09548518879 पर दिन में मरीजों को घर बैठे सलाह देते हैं। उनके एक नुस्ख़े से बहुत लोगों को दर्द से नजात मिली है, वह यह है:
1. माजूने सुरंजान  Majun Suranjan 120 gm.
2. माजून ए फ़लासफ़ा Majun Falasfa 120 gm.
3. माजून ए अज़ाराक़ी Majun Azaraqi 60 gm.
इन तीनों हर्बल यूनानी दवाओं को मिक्स करके एक डिब्बे में रख लें। सुबह शाम 7-7 ग्राम दो बार यह दवा खाना खाने के एक घंटा बाद हल्के गर्म पानी से लें।
नोट: गर्भवती औरतें इस नुस्ख़े को न लें।

ये तीनों दवाएं आपके बदन से दर्द को दूर करेंगी। दर्द दूर होने के बाद भी आप माजून ए फ़लासफ़ा रोज़ इस्तेमाल करते रहें तो आपकी जवानी बरक़रार रहेगी।
Majun Falasfa is a popular Unani medication used in the management of several disorders affecting the urinary system, nervous system, and the male reproductive system. It strengthens these organs and increases the overall health and stamina of a person. Majun Falasfa can improve the fertility rate by stimulating the healthy sperm count and density of the semen. It contains the aphrodisiac properties which helps in enhancing the vigor and reduce the impotence chances in men.
इसके अलावा उनके कुछ ख़ास नुस्ख़े हैं, जिन्हें वह अलग अलग कैफ़ियत वाले मरीजों को उनके दर्द की हालत देखकर देते हैं। जिसकी वजह से बहुत ज़्यादा मरीजों को आराम मिलता है।

3. घीक्वार का हलवा बनाने का तरीका -
आपको एलोवेरा जेल, आटा, घी, छोटी इलायची का पाउडर गुड़बंदी बादाम, बारीक कटा हुआ नारियल और पिस्ता जैसे पसंद के अन्य मेवे की जरुरज़ होगी। सबसे पहले घी में आटे को भून लें। फिर उसमें एलोवेरा जेल और बाक़ी चीज़ें मिला लें। साथ ही इसमें ज़ायक़े के मुताबिक़ चीनी भी मिला लें। अब इसको लड्डू का आकार दें। आपके एलोवेरा के लड्डू तैयार हैं। ये लड्डू जल्दी खराब हो जाते हैं इसलिए जितना इस्तेमाल में आ सकें उतने लड्डू ही बनाएं। एयरटाइट कंटेनर में रखें।
यह लड्डू बुजुर्गों और जिम करने वाले नौजवानों और दूध पिलाने वाली मांओं के लिए काफ़ी फायदेमंद है क्योंकि यह हड्डियों को मजबूत बनाकर रखता है। जोड़ों के दर्द से राहत देने का भी काम भी करता है यह लड्डू।
एलोवेरा का लड्डू महिलाओं के लिए बहुत ही फायदेमंद है। ये महिलाओं की हर तरह की कमज़ोरी को दूर करता है। प्रसव के बाद की कमजोरी को दूर करने के लिए इस लड्डू को सुबह शाम दूध के साथ लेने से फायदा होगा।
ये लिवर के लिए टॉनिक का काम भी करता है और आपकी पाचन क्षमता को मजबूत बनाता है। इसके साथ ही ये आपके खून को साफ करता है और शरीर में खून की कमी को दूर करता है।
ये शरीर के हर तरह की सूजन को दूर करता है। साथ ही अगर आप अपने वज़न को नियंत्रित करना चाहते हैं तो भी इस लड्डू का सेवन करने से आप वज़न में फर्क देख सकेंगे।

4.सिर दर्द का ख़ात्मा Headache
शिर:शूलादि वज्र रस (Shir Shluadi Vajra Ras) 11 तरह के दर्द दूर करता है। खाना खाने के आधा घंटा बाद 1-2 गोली पीसकर गाय, बकरी के दूध या पानी से लें।
ये सभी नुस्ख़े किसी हकीम या वैद्य की निगरानी में लें।

5. दर्द दूर करने वाले चमत्कारी तेल (Herbal Oils for Pain)
हर जटिल बीमारी का आसान और सस्ता इलाज
कोई आदमी ग़रीब  हो और किसी भी बीमारी से दुखी हो और वह बीमारी एलोपैथी में चाहे लाईलाज हो जैसे कि गुर्दा फ़ेल हो जाना तो वह अलीगढ़ में, मौहल्ला दोहर्रा में जाए और दुनिया में मशहूर होम्योपैथ डा. एहसानुल्लाह ख़ान साहिब से बहुत कम ख़र्च में इलाज करा ले। रब ने चाहा तो उसके गुर्दे फिर से ठीक हो जाएंगे। बहुत लोगों के गुर्दे, कैंसर और जटिल रोग ठीक हो चुके हैं। उनका मोबाईल नंबर है: +91-9760291236
मैं ने 80 साल के बूढ़े प्रधान रामकुमार शर्मा जी को डाक्टर साहिब के पास भेजा। सिर्फ़ 15 दिन में ही उनके फ़ेल हो चुके गुर्दे फिर से ठीक हो गए और उनका डायलिसिस बन्द हो गया।
आपको इस पोस्ट में बहुत ज़्यादा जानकारी दी गई है। अब आप इससे फ़ायदा उठाएं।
अगर आपके पास भी ऐसा कोई असरदार नुस्ख़ा है या आप कोई और काम की बात जानते हैं तो कमेंट में लिखे सकते हैं।

Sunday, December 30, 2018

Holy Anointing Oil पवित्र अभिषेक तेल توراۃ اور انجیل میں مسح کا تیل

*Dawah Psychology*
Har group me share Karen.
هُوَ الَّذِي يُنَزِّلُ عَلَىٰ عَبْدِهِ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ لِّيُخْرِجَكُم مِّنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ ۚوَإِنَّ اللَّـهَ بِكُمْ لَرَءُوفٌ رَّحِيمٌ ﴿٩﴾
वही तो है जो अपने बन्दे पर साफ़ और रौशन आयतें नाज़िल करता है ताकि तुम लोगों को (अज्ञान के) अंधेरों से निकाल कर (ज्ञान के) प्रकाश में ले जाए और यक़ीनन अल्लाह तुम पर बड़ी मेहरबानी और हमेशा रहम करने वाला है.
Holy Qur'an 57:9
अल्लाह की आयतों की तरफ़
दावत का मक़सद लोगों को अज्ञान के अंधेरों से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में लाना है ताकि लोगों को पता चले कि अल्लाह हम पर मेहरबानी और रहमत करता है।
इसलिए मैं मुस्लिमों से और दूसरे तरीकों के मानने वालों से अल्लाह की आयतों की बात करते वक़्त यह ध्यान रखना ज़रूरी समझता हूँ कि
1. उन्हें ज्ञान के प्रकाश में लाया जाए। उन्हें कोई ऐसी बात बताई जाए, जिसे वे नहीं जानते या वे भूल गए हैं।
2. उन्हें ऐसा ज्ञान दिया जाए जिससे उनका कोई दुख दूर होता हो और उन्हें कोई भलाई नसीब होती हो ताकि उन्हें अल्लाह की मेहरबानी और रहमत का एहसास हो, जो उन पर अल्लाह करता है।
🌳🌿🌳🕋🌳🌿🌳
Tibbe Nabawi का ज्ञान एक ऐसा ही ज्ञान है। तिब्बे नबवी की जानकारी की वजह से मुझे हर धर्म के लोगों को ज्ञान के प्रकाश में लाने में मदद मिलती है और वे रियलाईज़ करते हैं कि 
हम पर रब की बड़ी मेहरबानी और रहमत सदा से है।
मैंने क़ुरआन के साथ बाईबिल, गीता और वेद में भी इलाज के तरीकों पर 30 साल रिसर्च की है,
अल्हम्दुलिल्लाह!!!
🌟🌟🌟
एक ताज़ा बातचीत आपकी ख़िदमत में पेश है।
'The Secret of Holy Anointing Oil'
Pasture Sanjeet साहिब से ख़ुर्जा में प्रोग्राम के बाद बात हुई तो हमने उन्हें इस तरफ़ ध्यान दिलाया जो इन्जील (Gospel) आदि में लिखा है कि अगर बीमार आदमी तौबा करे और उस पर तेल मलकर उसके लिए दुआ की जाए तो उसकी बीमारी दूर हो जाती है।
💚💖💚
chunāṅche shāgird wahāṅ se nikal kar munādī karne lage ki log taubā kareṅ. unhoṅ ne bahut sī badrūheṅ nikāl dīṅ aur bahut se marīzoṅ par zaitūn kā tel mal kar unheṅ shifā dī.
Marqus 6:13 (Roman Urdu Bible)
🌹💖🌹
Is aayat me Zaitoon ke Tel Ka zikr hai,
Jise laga Kar Dua Karne se Bimaro ko Shifa milti thi.
Yh hukm bhi milta hai:
kyā āp meṅ se koī bīmār hai? wuh jamā'at ke buzurgoṅ ko bulāe tāki wuh āa kar us ke lie duā kareṅ aur ḳhudāwand ke nām meṅ us par tel maleṅ. phir īmān se kī gaī duā marīz ko bachāegī aur ḳhudāwand use uṭhā khaṛā karegā. aur agar us ne gunāh kiyā ho to use muāf kiyā jāegā.
Yaqoob 5:14-15 (Roman Urdu Bible)
🌳🌱🌳
जब तौबा और दुआ के साथ तेल भी मलने के लिए कहा गया है तो फिर आप मरीज़ पर तेल क्यों नहीं मलते?
पास्चर संजीत इस बात पर सोच में पड़ गए।
💞💗💞
फिर मैंने ने उन्हें Holy Anointing Oil के बारे में बताया, जिसे बनाने और मलने का आर्डर रब ने मूसा अलैहिस्सलाम को दिया था।

*Holy Anointing Oil*

Masah Ka Tel
rab ne mūsā se kahā, “masah ke tel ke lie umdā qism ke masāle istemāl karnā. 6 kilogrām āb-e-mur, 3 kilogrām ḳhushbūdār dārchīnī, 3 kilogrām ḳhushbūdār bed aur 6 kilogrām tejpāt. yih chīzeṅ maqdis ke bāṭoṅ ke hisāb se tol kar chār liṭar zaitūn ke tel meṅ ḍālnā. sab kuchh milā kar ḳhushbūdār tel tayyār karnā. wuh muqaddas hai aur sirf us waqt istemāl kiyā jāe jab koī chīz yā shaḳhs mere lie maḳhsūs-o-muqaddas kiyā jāe.
Exodus 30:22-25 (Roman Urdu Bible)
📚
Jo log Wellness Ka kaam karte Hain,
Unhe is Tel ke banane aur isse Bimaro ko fayda pahunchane par dhyan dena Chahiye
Kyonki yh koi mamuli Tel nhi hai.
🌿
Is Tel ko Nabiyon par mala Gaya hai.
🌟
Mere Apne ilm ke mutabiq India me apne Christians doston aur Muslim Dayion me maine Kisi ko is Tel ke baare me likhte ya Bolte hue nhi Dekha hai.
🕋🍒🕋
आजकल लोग कई तरह की बीमारियों से दुखी हैं। बहुत लोग बीमारी का दर्द झेल नहीं पाते और आत्महत्या कर लेते हैं।
आपमें से जो भी रब के नाम और कलाम की शक्ति को जानता है, वह बीमारों को उनकी बीमारी से मुक्ति दिला सकता है।
ज़रूरी यह कि 
1. जुर्म से तौबा सच्ची हो।
2. दुआ विश्वास के साथ हो।
3. तेल का नुस्ख़ा सही हो और उसमें सभी मसाले असली हों।
🌹🍇🌹
पास्चर संजीत ने बाईबिल खोलकर सभी हवाले चेक किए और वह हैरान रह गए कि बाईबिल में रब ने एक पवित्र तेल का नुस्ख़ा दे रखा है और इंडिया में पादरी साहिब और मसीही बहन भाई उसे भूले हुए हैं।
उन्हें इस बात ने भी हैरत में डाल दिया कि जो बात पादरी नहीं जानते, उसे एक मुस्लिम उन्हें बता रहा है।
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Main Rab Ka shukrguzar Hun ki
Usne mujh par badi  rahmat ki.
Usne mujhe is Tel Ka nuskha Diya
Aur phir ab woh
Mere zariye ab aapko bhi de Raha hai.
🌹🍇🌹
Zyada jankari ke liye Email Karen:
allahpathy@gmail.com

🌹🍇🌹
aur is link par dekhen: