Translate

Saturday, October 12, 2019

मौलवियों के शर से बचने के लिए उनकी बात में Falah Factor चेक कर लें

शुरू में जब अल्लाह ने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अहकाम नाज़िल करने शुरू किए और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाना शुरू किया तो इसका मक़सद था कल्याण, फ़लाह, वैलनेस। अब यह मक़सद आम और ख़ास की नज़र से हट चुका है।
समाज में जो लोग इलाह (विधाता) बने हुए थे और लोगों के लिए क़ानून बनाते थे और उनकी जान-माल और इज़्ज़त को जब चाहे तब ख़त्म कर देते थे। उन्होंने इसका विरोध किया कि सबको इज्ज़त, बराबरी और विकास के अवसर न मिलें। वे अपनी नस्ल की बुनियाद पर अपनी चौधराहट बाक़ी रखना चाहते थे।
फिर नबी, अहले बैत और सहाबा रज़ि. के लगातार मेहनत और क़ुर्बानियों के बाद सारे नक़ली खुदा ख़त्म हो गए। सारे चौधरियों की चौधराहट खत्म हो गई। अल्लाह का क़ानून समाज का क़ानून बन गया। ग़रीबों, कमज़ोरों, अनाथों, बेघरों, सताए हुए दबाए हुए वंचितों और औरतों को जीने का, इज्ज़त का, विरासत का, तालीम का और तरक़्क़ी का हक़ मिला। इसमें अहले बैत में और सहाबा में आपस में कुछ मतभेद और तकरार भी हुई जो कि एक समाज में रहने वाले लोगों में आम बात है। हज़रत अब्बास और हजरत अली रज़ि. के बीच हुई बातचीत की यह रिवायत सही है तो यह बात एक परिवार के सदस्यों के बीच हुई तकरार के रूप में पेश आई थी। 
इस रिवायत से यह मौलवी ख़ालिद ग़ाज़ीपुरी क्या साबित करना चाहते हैं?, इस छोटी सी क्लिप से यह स्पष्ट नहीं हुआ। अब उनके माफी मांगने की बात सुनाई दे रही है तो यह उनकी समझदारी की बात है। हिंद की जमीन अहले बैत की शान में गुस्ताख़ी करने वाले मौलवियों को क़ुबूल नहीं करती।
अब ज़्यादातर मौलवियों की बातें इसी तरह की unproductive हैं, जिनसे फ़साद और इन्तिशार फैलता है।
मैं इन बातों को मौलवियों के लिए छोड़ देता हूं और मैं ख़ुद अल्लाह के 'क़ानून ए फ़लाह' की जानकारी देता हूं, जिनसे मुस्लिमों का और हर धर्म के इंसानों का भला होता है। उन्हें आख़िरत से पहले इस दुनिया में भी फ़लाह, कल्याण, वैलनेस नसीब होती है।
🕋
फ़साद फैलाने वाले मौलवियों के शर से आम मुस्लिम सिर्फ तभी बच सकते हैं जब वे उसके बोलने को फ़लाह की तराज़ू पर तोल कर देखें कि इससे मुस्लिम समाज की और दूसरे इंसानों की कितनी भलाई हुई?
जिस बात से भलाई न हो और बुराई फैले, उस बात को कहने वाले मौलवियों को मलामत करें। इससे वे तुरंत सीधे हो जाते हैं जैसे यह मौलवी ख़ालिद गाज़ीपुरी नदवी साहब सीधे हो गए हैं, अल्हम्दुलिल्लाह।
यक़ीनन आम आदमी आलिमों की तरह क़ुरआन का तर्जुमा नहीं जानता, वह हदीस की रिवायतों का सही, कमज़ोर और मौज़ू (गढ़ा हुआ) होना नहीं जानता। तब भी रब ने हर एक इंसान की फ़ितरत में यह जानकारी रख दी है की मेरी और सबकी भलाई इस बात में है या नहीं?
जिस बात में व्यक्ति और समाज की भलाई नहीं है, वह बात दीन की बात नहीं है।
हर इंसान इस कसौटी पर अपने मौलवियों की और हर एक धर्म के ज्ञानियों की बात को परख कर देख सकता है और बुरी बातों के शर से बच सकता है।
फ़लाह के लिए काम करने वाले आलिमों की हिमायत करना दीनी काम है। अच्छे आलिमों का साथ दें।
📚
फ़ेसबुक  की जिस पोस्ट में मौलवी ख़ालिद गाज़ीपुरी नदवी साहब की मशहूर आडियो क्लिप पेश की गई। उसका लिंक यह है; हमने उसी पोस्ट पर तह कमेंट दिया है।

Friday, October 4, 2019

सही दीन धर्म को पहचानने का तरीक़ा -Dr. Anwer Jamal

Dr. Arif Kamal: Anwer Jamal Khan साहब धर्म क्या है ? इसकी परिभाषा क्या है? अगर परिभाषा सही है तो धार्मिक आदमी सही हो सकता है। पर अफ़सोस, किसी भी धर्म की परिभाषा ही अभी तक सही नहीं है।
Dr. Anwer Jamal Khan: Arif Kamal bhai, दीन का मतलब तरीक़ा और क़ानून है। आदमी आस्तिक हो नास्तिक, हरेक को तरीक़े और क़ानून की ज़रूरत होती है। इसीलिए व्यक्ति और देश, आस्तिक हो नास्तिक, सबके पास तरीक़ा और क़ानून ज़रूर है।
अब आप यह देख लें कि जिस दीन यानि तरीक़ा और क़ानून से जन्म और मृत्यु के मक़सद के बारे में उठने वाले सवाल हल होते हों 
जिससे व्यक्ति और समाज का भला होता हो,
वह सही दीन है।
जिससे समाज के ग़रीबों और कमज़ोरों को शांति, सुरक्षा और आवश्यक वस्तुएं मिलती हों, वह दीन सही है।
यूनिवर्स में कुछ क़ानून काम कर रहे हैं जैसे कि
The law of cause and effect
The law of polarity
The law of gestation आदि
जो दीन इन प्राकृतिक नियमों के अनुकूल हो, वह सत्य है।

Sunday, September 1, 2019

आपकी बात कम लोगों को क्यों अट्रैक्ट करती है? Dr. Anwer Jamal

अगर आप एक मुबल्लिग़ हैं और आप लोगों को अल्लाह के अज़ाब से डराकर नेक रास्ते पर लाने की कोशिश कर रहे हैं तो आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन यह
समझ लें कि बहुत कम लोग अल्लाह के अज़ाब से डरते हैं।
📚
आप पवित्र क़ुरआन में सब नबियों का क़िस्सा पढ़ें कि नबियों ने लोगों को अज़ाब से डराया लेकिन ज्यादातर लोग अल्लाह के अज़ाब से नहीं डरे। उन्होंने उनकी मज़ाक़ उड़ाई।
इस एप्रोच से आप बहुत कम लोगों को प्रभावित और आकर्षित कर पाएंगे।
अल्लाह के आख़िरी नबी मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने अपनी क़ौम को एक अल्लाह की शुक्रगुज़ारी और फरमांबरदारी की तरफ़ बुलाया और अल्लाह के अज़ाब से डराया लेकिन उनकी क़ौम ने उनकी बात पर ध्यान देने के बजाय उन्हें जान से मारने की कोशिश की। लोगों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक्का छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।
उसी मक्का के लोगों ने जब फ़तह के बाद उन से दुनियावी फ़ायदा होते हुए देखा तो उनकी हर बात को क़ुबूल कर लिया।
दुनियादारी इंसानों को आकर्षित करने वाली चीज दुनिया का फायदा है और हमारे दीन में दुनिया का फ़ायदा पहुंचाने की बहुत ज़्यादा ताकीद है।
अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में दोनों काम करने के लिए कहा है कि अल्लाह पर ईमान लाने के लिए कहो, नाफ़रमानी पर उसके अज़ाब से डराओ और लोगों का भला करो। आप से आम दुनियादार लोगों को दुनिया में रोज़ी, सेहत, माल, तालीम और दवा का फ़ायदा होगा तो वे आपकी बात को मानेंगे। जिसे भी दावत के मैदान में ज्यादा लोगों को आकर्षित करना हो, उसे लोगों के लिए नफ़ाबख़्श बनकर दावत और तब्लीग़ का काम करना होगा।
याद रखें, ज़्यादातर लोग अपना हित (wellness) देखकर अपना विचार बदल लेते हैं।
फिर जो झाग है वह तो सूखकर नष्ट हो जाता है और जो कुछ लोगों को लाभ पहुँचानेवाला होता है, वह धरती में ठहर जाता है। इसी प्रकार अल्लाह दृष्टांत प्रस्तुत करता है  पवित्र क़ुरआन 13:17
अब आप तय करें कि आप कम लोगों को अट्रैक्ट करना चाहते हैं या ज़्यादा लोगों को?

Saturday, August 31, 2019

Peace and Wellness Center खोलना क्यों ज़रूरी है? Dr. Anwer Jamal

फ़ैज़ ख़ान भाई ने रामपुर से सवाल किया है: Sir तारिक़ साहब ने बोला है कि अगले पार्लियामेंट सेशन मैं तब्दीली ए मज़हब के ख़िलाफ़ भी क़ानून बन सकता है। फिर तो उन आलिमों और उनके शागिर्दों को भी रोका जायेगा जो डायरेक्ट इस्लाम पेश करते हैं।
जवाब: आपने सही कहा बिल्कुल रोका जाएगा। कानून बनने से पहले ही एक बहुत बड़े मुबल्लिग़ को रोका जा चुका है।
💚🌹💚
दीन का मक़सद
शांति व्यवस्था और कल्याण है।
यही दावा हरेक देश के संविधान का है।
आप शांति व्यवस्था और कल्याण के उनवान से काम करें।
🌹
तौहीद का अक़ीदा अब सब धर्मों का साझा है और अगर आप इस अक़ीदे से शुरू करके अपनी हुकूमत क़ायम नहीं करना चाहते तो फिर किसी को तौहीद पर और आपकी तब्लीग़ पर आपि नहीं है।
हर दौर की ख़ास ज़रूरत होती है। जो दीन उसे पूरी करता है, लोग उसकी तरफ़ दौड़ते हैं।
🍅
इस वक़्त बेरोज़गारी, बीमारी, असुरक्षा, जुर्म, आतंकवाद, ग़रीबी और ग्लोबल वार्मिंग आम है।
ये समस्याएं हर धर्म के लोगों के सामने हैं।
🌹💚🌹
अगर तौहीद से दुनिया की रोज़ी, सेहत और सलामती मिलती है तो हरेक इसे शौक़ से सीखता है। हरेक देश की सरकार चाहती है कि उसके देश से ये समस्याएं कम हों।
🌹
रब पवित्र क़ुरआन में इनका हल अपने नाम से और शुक्रगुज़ारी से करना सिखाता है।
🍏
आप समाज में शांति, रिचनेस, सेफ़्टी, सद्भावना और पेड़ लगाने का काम करेंगे,
आप लोगों को रब का और इंसानों का, अपने हाकिमों का शुक्रगुज़ार होना सिखाएंगे तो
आपको तब्लीग़ के लिए हरेक इन्वाईट करेगा।
🌹
क्योंकि आप किसी का धर्म परिवर्तन नहीं कर रहे हैं बल्कि सबको भूला हुआ धर्म याद दिला रहे हैं।
शुक्रगुज़ारी और कल्याण
सबका धर्म है।
🍐
नये दौर में प्रेज़ेंटेशन को रिवायती दावती ट्रेंड से थोड़ा चेंज करना होगा। दावत के मक़सद पीस और वेलनेस पर काम करना होगा। इसके लिए तौहीद और यूनिवर्स में काम करने वाले क़ानून सिखाने होंगे। हर देश में हर धर्म के लोग इस पर काम कर रहे हैं। आप एक सेंटर का बोर्ड इमेज में देख सकते हैं।
🌹🍇💚
तौहीद, अद्ल और हुस्ने अख़़लाक़ से दावत शुरू होगी।
जन्म और मृत्यु का रहस्य बताना होगा।
दिल और जिस्म के रोगों की शिफ़ा के तरीक़े बताने होंगे। तिब्बे नबवी बेस्ड हर शहर में वेलनेस सेंटर खोलना आज के दौर की ज़रूरत है।
💚
आप नफ़ाबख़्श होंगे तो अहले ज़मीन आपको अपने बीच जगह देंगे।
🌹🍇💚

Friday, August 30, 2019

इंडियन मुस्लिम क्या करें? Dr. Anwer Jamal

आज मुस्लिम पूछते हैं कि हम क्या करें?
जवाब बहुत आसान है कि जो ब्राह्मण कर रहे हैं, वही तुम करो। वे बुद्धि से काम ले रहे हैं, तुम भी बुद्धि से काम लो। ब्राह्मण अपनी बेस्ट परफॉर्मेंस दे रहे हैं, तुम भी दो।
आपको पता होना चाहिए कि ब्राह्मणों का रिश्ता ब्रह्मा जी से है। उन्हें यहूदी ईसाई अब्राहम और मुस्लिम इब्राहीम के नाम से जानते हैं। जैसे अब्राहम और इब्राहीम नाम के कई लोग हुए हैं क्योंकि मशहूर हस्ती का नाम उनके बाद बहुत लोग रख लेते हैं। ऐसे ही ब्रह्मा नाम के ऋषि भी बहुत हुए हैं। बाद में यह एक पद बन गया था। जो चारों वेदों को जानता था, उसे ब्रह्मा कह देते थे। जो शुरू के ब्रह्मा थे, वह इबराहीम (अलैहिस्सलाम) थे। ब्राह्मणों में कुछ उनकी नस्ल से हैं और कुछ उनकी शिक्षा के स्नातक होने के कारण ब्राह्मण कहलाए।
यह बात सामने रहे तो ब्राह्मण अपने लगेंगे और ग़ैरियत की दीवार गिर जाएगी।
अब यह बात भी आसानी से समझ में आ जाएगी कि इतने दौर गुज़रने के बावुजूद भारतीय समाज की सभी जातियों पर ब्राह्मणों की पकड़ आज भी पहले जैसी है। यह सब उस बुद्धि की वजह से है, जो ब्रह्मा जी से उन्हें मिली है। यह उनकी बुद्धि और हिकमत का कमाल है। उन्होंने सैकड़ों सालों में दुनिया की बहुत सी संस्कृतियों से सीखा है। जिसमें ब्रह्मा जी (इब्राहीम) की असल शिक्षा दब गई है।
आज वे गली गली लोगों को उनकी समस्या का उपाय बता रहे हैं और लोग उनकी बात मान रहे हैं।
वे किसी को तीर्थ यात्रा बता रहे हैं, किसी को हवन बता रहे हैं, किसी को योगासन बता रहे हैं, किसी को ग्रह पूजा और मोती मूंगा पहनना बता रहे हैं। वे किसी को दुकान पर नींबू और मिर्च लटकाना बता रहे हैं। वे अपने तरीक़े से उपाय बता रहे हैं, आप अपने तरीक़े से उपाय बता दो।
  
भाई, सबसे पहले अपने जज़्बात क़ाबू करो और चैलेंज की भाषा बोलनी बंद करो। पिछली नस्लें यही बोलती रहीं। इमाम बुख़ारी से लेकर  बाबरी मस्जिद आंदोलन के नेता तक, सब चैलेंज की भाषा बोलते रहे। नतीजा नुक़्सान के सिवा कुछ न हुआ। प्रतिक्रया की मानसिकता और बदले की भावना से निकलो। 
अपना गोल सैट करो।
आप ख़ुद को, अपनी क़ौम को, देश और दुनिया को भविष्य में जैसा देखना चाहते हो, वैसा अपनी 'आत्मा' में देखो। इससे आप पर आपका विज़न क्लियर होगा। 
अब अपने विज़न पर चुपचाप काम करो, बस।
कम लिखे को ज़्यादा समझो।

आपको कुछ करना है तो सबसे पहले आप ब्राह्मणों की तरह भारत में बसी हुई जातियों की गिनती, उनके नाम और उनका इतिहास पढ़ो। उनकी मानसिकता को समझो।
उनसे काम लेना है तो यह देखो कि ब्राह्मण उनसे किस 'उपाय' से काम लेता है?
आप जानेंगे कि वह उन्हें 'उपाय बताने' के उपाय से वश में करता है।
आप भी उपाय बताएं।
अब आप गुरू बन गये। हर शहर में गली गली ऐसे गुरू हों, जो लोगों को सूरह फ़ातिहा से शुक्रगुज़ार बनने और अपने कामों में रब से मदद पाना सिखाएं।
ऐसे एक लाख गुरू हों।
लाख न हों तो दस हज़ार भी चलेंगे।
दस हज़ार उपाय बताने वाले गुरू चाहिएं।
अब आप 'बुद्धि' वाले बन चुके हैं।
भारत में काम जज़्बाती तक़रीरों से नहीं, ज्ञान और बुद्धि से चलेगा।
अब आप लोगों की सेवा करें और उन्हें जज़्बात क़ाबू में रखना सिखाएं। नफ़रत के बजाय मुहब्बत करना सिखाएं। उन्हें सफलता मिलेगी।
वे फ़ायदा देखकर आपकी बात मानेंगे। आपकी बात ब्राह्मण भी मानेंगे। आप उन्हें याद दिलाएं कि ब्रह्मा जी की शिक्षा वास्तव में यह है: 'हस्बुल्लाहु व नेमल वकील' अर्थात् हमें परमेश्वर काफ़ी है और वह अच्छा कार्यसाधक है। इस एक विश्वास से हर मुसीबत पलती है और हर मनोकामना पूरी होती है।
मुझे ऐसे ब्राह्मण गुरू मिलते हैं, जो अपने और अपने शिष्यों के काम बनाने के लिए पवित्र क़ुरआन की दुआओं से काम लेते हैं।
पवित्र क़ुरआन में हर समस्या का उपाय है तो भाई आप वे उपाय सबको बताओ।
सच यह है कि भारत की जनता उपाय बताने वाले 'गुरूओं' के पीछे चलती है।
आप यह मानसिकता पहचानो। आप कल्याण गुरू बनो। आप ब्राह्मणों से ज़्यादा कल्याण करो। आप ब्राह्मणों का भी कल्याण करो।
आप कल्याण के बीज बोओ। भविष्य में आप कल्याण की फ़सल काटोगे। यह तय है।
////
Danish Human भाई ने सवाल किया है: 
अस्सलामु अलैकुम। कैसे हैं आप? एक बात कहनी है। 
Aapki posts mein aksar ब्रह्मा का मतलब इब्राहीम(अ.) लिखा होता है।
Sir मैंने जो पढ़ा है उसके हिसाब से ब्रह्मा का मतलाब Creatoर(ख़ालिक़) होता है और इस हिसाब से यह अल्लाह का सिफ़ाती नाम हुआ तो ब्रह्मा को इब्राहीम(अ) से कैसे मुशाबेहत दी सकती है????
अगर लफ्ज़ ब्रह्मा वेदों या पुराणों में कहीं किसी इंसान 
के लियें भी आया है तो मुझे बताइएगा...इन शा अल्लाह।

जवाब: W alaykum assalam
Main achcha hun, Alhamdulillah!
इसे समझने के लिए आप अली नाम को ले लें। अली नाम क्रिएटर अल्लाह का है या एक इंसान का है या दोनों का है?
अगर अली नाम क्रिएटर और एक इंसान का हो सकता है तो ऐसे ही ब्रह्मा नाम भी क्रिएटर और इंसान दोनों का हो सकता है।
आप वेद पढ़ें। वेद के हर एक सूक्त के शुरू में उस सूक्त की रचना करने वाले ऋषि का नाम लिखा रहता है। कुछ सूक्तों के शुरू में आपको ब्रह्मा ऋषि का नाम लिखा हुआ मिलेगा। यह ब्रह्मा हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से अलग ऋषि है। यह एक पद नाम वाला ब्रह्मा ऋषि है।

Danish Human: JazakAllah...reply ke liyein.
जवाब: 🌹😊🌹

गीता का परम गुप्त सहज योग क्या है? Dr. Anwer Jamal

मैंने नरेश शर्मा जी की पोस्ट पर राजेश शर्मा जी का कमेंट पढ़ा। मैंने उन्हें जवाब में गीता का सहज योग समझाया। यह डायलाग आपके लिए फायदेमंद है। इसलिए मैं नरेश शर्मा जी की पोस्ट और दोनों कमेंट यहां पेश कर रहा हूँ।
Rajesh Sharma ji, 'मैं' एक दिव्य नाम है। इसके साथ जो भी गुण लगा दो और उसे रिपीट करके बोलते रहो तो वह एक समय बाद सूक्ष्म भाव जगत से स्थूल होकर जीवन में सहज साकार हो जाता है। यही सहज योग है।
गीता के दसवें अध्याय में श्री कृष्ण जी ने ख़ुद को पीपल, कुबेर और राजा आदि के रूप में पहचानने का उपदेश दिया है ताकि आपके जीवन में महानता और ऐश्वर्य आए।
लेकिन अज्ञानियों ने 'मैं' नाम के साथ वैसे ही खेल किया जैसे अज्ञानवश पांच भारतीय फ़ौजियों ने अपने ही हेलीकॉप्टर को गिरा लिया था और अब दोषी पाकर दण्ड पा रहे हैं।
मैं चौकीदार हूँ, एक दो बार कहने में कोई हरज नहीं है लेकिन इस वाक्य का रिपीटेशन चौकीदार ही बना देगा।
सारे मंत्र इसी मानसिक नियम के अनुसार फल देते हैं।
इसीलिए अपने मन में हर समय अपराध बोध लिए घूमना ठीक नहीं है क्योंकि 'मैं पापी हूँ' का विश्वास उसके जीवन में दण्ड के हालात लाता रहता है।
उसी के लिए संयम, पवित्राचरण और प्रायश्चित है ताकि मन निर्मल रहे और वह अंदर के सूक्ष्म भाव बाहर स्थूल होकर प्रकट हों तो जीवन में पवित्रता आए।
छल कपट करके कोई भी दूसरों को नहीं ख़ुद को धोखा देता है। मलिन आत्मा और अपराध बोध उसके अंदर से आनंद को ख़त्म कर देता और मरकर तो वह दुख पाता ही रहेगा।
आदमी अपनी आत्मा को कहां छोड़कर भागेगा?
बहरहाल 'हम पापी हैं' यह हमारी सामूहिक धारणा है। इसे भी बदलने की ज़रूरत है।
हमारा भौतिक जीवन हमारी मानसिक धारणाओं का प्रतिबिंब मात्र है।
'मैं प्रेम हूँ।'
'मैं शुद्ध हूँ।'
'मैं शांत हूँ।'
'मैं rich हूँ।'
'मैं सफल हूँ।'
'मैं शुक्रगुज़ार हूँ।'
ये अच्छे विश्वास हैं। इन्हें नियमित दोहराने की ज़रूरत है। आज मन के नियमों को समझने की बहुत ज़रूरत है।
Masood Ali Khan इन नियमों को सिखाते हैं।

Wednesday, August 28, 2019

मुफ़्त के माल से लाखों रूपये कमाने का सफल आयडिया Dr. Anwer Jamal


*बिज़नेस आयडिया*
हमारे शहर में एक आदमी मुफ़्त के चारे पर बकरे पालता है और ऊँची क़ीमत पर बेचता है।
🍏🍎🍏
*मुफ़्त का चारा*
जो लोग फलों का जूस बेचते हैं उनके पास उस जूस का वेस्टेज खट्टा हो जाता है उस वेस्टेज में भी काफी हिस्सा दूसरा होता है और वह वेस्टेज पौष्टिक होता है जिसे बकरों के खाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
🍏🍎🍏
आप अपने घर पर जूस के बचे हुए पल्प से अपने लिए कई चीज़ें तैयार कर सकते हैं। नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:

9 Ways to Make the Best of Your Juice Pulp

एक अक्लमंद आदमी ने कुछ जूस वालों से बात कर ली कि मेरा आदमी आकर आपसे यह वेस्टेज ले जाएगा। तैयार हो गए। उसका आदमी उन सब से फलों की वेस्टेज इकट्ठे करके ले जाता है जिसे  बकरों को चारे के रूप में दिया जाता।
🍏
फ़्री के चारे पर बकरे पलकर क़ीमत में बिकते हैं और वह आदमी काफ़ी दौलत कमा रहा है।
Goat Farming एक बहुत सफल बिज़नेस है। अल्हम्दुलिल्लाह! अर्थात् अल्लाह का शुक्र है।
🍇
क़स्बों की सब्ज़ी मंडी में सुबह को ऐसा ही बहुत चारा मिल जाता है, जो यहा़ं वहां बिखरा पड़ा रहता है। वहां से उसे लाने के लिए किसी लड़के को मुक़र्रर किया जा सकता है।
🍏
दिल्ली की आज़ादपुर सब्ज़ी म़डी में गिरी पड़ी सब्ज़ी और पत्तों को बिहार के कुछ लोग जमा कर लेते हैं और फिर उन्हें छांटकर अलग करके उन ढाबों पर बेच देते हैं जो स्लम एरिया में ग़रीब लोगों के लिए सस्ता खाना तैयार करके बेचते हैं।
🌿🌿🌿

चमत्कार या मार्गदर्शन: कैसे होती है मुराद पूरी? Dr. Anwer Jamal

साजिद ख़ान भाई ने गुजरात से यह सवाल किया है:
इसमें कोई गलती हो तो सुधारे 
यह सच में बात हुई थी।
💫💥 *Chamtkaar ya margdarshn* ✒📖

*time nikalke jarur padhna*

  *book fair me ek teacher se baat hue islam pe , teacher surat ki badi school me principal he , baat lmbi thi yaha sirf ek hi point rkhta hu*

💥 *teacher* : *yah mera beta muje "haji ali dargah ki mannat se mila he (unhe dargah pe kafi bharosha)*

📌 *me : teacher agar aapki ek ungli kut jaaye to kya aap duniya ki kisi bhi dargah ya chamtkari mandir (koibhi dharmik jagah) se mannat maan ke vapis la sakti ho ?*

*teacher : nahi , aisa thodi ho sakta he* ❓

📌 *me : agar mannat se ek beta mil sakta he to ek kati hue ungli kyu nahi ?* 

*teacher : !!!!???* ❗❓

💫 *me : teacher,  yah acid test he !!!*
*aisa kabhi nahi ho sakta !!*
*dargah jis bujurg ki he voh hame*
*way of life, do & don't sikhane aaye the*

📖✒ *islam ne apni satyta manvane ke liye rivayati chamtkar ko kabhi base nahi banaya* 
*Islam ne baudhik nishaniya di he taaki inshan uspe chintan manan karke saty ko pehchan ne ki koshis kare*

📌 *teacher : to fir Allah kati hue ungli kaise dega ?* ❓

*me : Allah hame guide karta he ki ungli ka ilaj karavo aur dhiraj rakho* ✅

📣 *Allah chahta to sabko iman vaala bana deta* 

📖 *lekin voh to dekhna chahta he ki saty samaj me aane ke baad kon truth pe chalta he aur kaun false pe*

*bahut interesting discussion thi yaha bas itna hi*

🌿🍂☘🌸🍁🍀🌹🌿

जवाब: आपकी इस बात में कोई ग़लती नहीं है।
लेकिन आपको यह बात जाननी है कि भारत की जनता आशीर्वाद और चमत्कार में विश्वास रखती है। भारत का हिंदू विश्वास रखता है, भारत का मुसलमान भी विश्वास रखता है।
हिंदू अपनी मुराद के लिए मंदिर में जाता है। मुसलमान बाबा या मज़ार के पास जाता है  या वह तावीज़ लेने के लिए जाता है। आप समझा कर तर्क से एक दो या 10-20 या 100 लोगों को रोक सकते हैं, भारत के सब लोगों को नहीं रोक सकते।
भारत के सब लोगों को शिर्क से रोकने के लिए आपको उन्हें बताना होगा कि जो भी मंदिर, पेड़ या मज़ार पर अपनी मुराद पाने के लिए जाता है और उसकी मुराद पूरी होती है तो उसकी मुराद रब के क़ानून के तहत पूरी होती है और वह क़ानून है यक़ीन का कानून।
जो भी इंसान कोई मक़सद रखता है और उसे उसके पूरा होने का यक़ीन है और फिर वह उसके लिए कोई अमल कर सकता है तो वह भी करता है और अगर वह जिस्म से अमल नहीं कर सकता, मजबूर है तो कोई बात नहीं लेकिन अगर वह विश्वास रखता है तो उसके जीवन में उसके विश्वास के कारण वह मुराद अपने आप किसी समय पर किसी न किसी रूप में ज़रूर पूरी हो जाती है।
अब कोई आदमी पेड़ पर, मूर्ति पर, मज़ार पर या तावीज़ पर यक़ीन रखता है तो वह पेड़, मूर्ति, मज़ार या तावीज़ उस मुराद को पूरी नहीं करता बल्कि उसका यक़ीन उस मुराद की शक्ल में पूरा होता है क्योंकि रब का क़ानून यही है।
इसीलिए इस्लाम में इख़्लास और यक़ीन दुआ के रुक्न हैं। 
इन्हीं के होने से दुआ, दुआ है। ये रुक्न न हों तो दुआ, दुआ नहीं होती। हलाल माल खाना, हलाल माल से पहनना और हलाल माल से अपनी ज़रूरतें पूरी करना दुआ क़ुबूल होने की शर्त है।
मुस्लिम सूफ़ी पूरी ज़िन्दगी सब लोगों को दुआ के रुक्न और शर्तें सिखाते रहे और खुद दुआ करके दिखाते भी रहे यानि वे लोगों को दुआ की थ्योरी सिखाते रहे और प्रैक्टिकल करके दिखाते रहे लेकिन लोगों ने न उनसे थ्योरी सीखी और न उनके प्रैक्टिकल को देखकर ऐसी दुआ करना सीखा कि उनकी दुआ अपना असर ज़ाहिर करे।
🍇
सबसे बड़ी दुआ अल-फ़ातिहा है। इसमें शुक्र की तालीम है। रब का नाम है। उसकी रहमत का और उसकी अनंत क़ुदरत का और उसकी मदद का बयान है। सूरह फ़ातिहा की चौथी आयत में रब से मदद मांगने की दुआ है।
शुक्रगुज़ार बनकर उसकी रहमत पर नज़र करके जिस काम में भी इख़्लास और यक़ीन के साथ मदद की दुआ की जाती है और फिर उसके पूरा होने तक सब्र और मुनासिब अमल किया जाता है, वह दुआ अपने ठीक वक़्त पर किसी न किसी रूप में अपने आप ज़रूर पूरी हो जाती है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
🍏🍎🍏
इस तरह जो लोग ज्ञान के अभाव में ग़लत विकल्प चुनकर शिर्क कर रहे थे। वे ज्ञान मिलने पर सही तरीक़े से दुआ करेंगे और जब उनकी दुआ अपना असर ज़ाहिर करेगी तो फिर वे क्यों बाहर की चीज़ों से मदद मांगेंगे?
🍏🍇🍏
हमें लोगों को मुराद पाने का सही तरीका सिखाना होगा। तब सब लोग शिर्क छोड़ेंगे।
शुक्रिया!

Tuesday, August 27, 2019

Vertical Gardening: मंदी के दिनों में बिना पैसे के बिना जॉब के खाएं अंडे दूध और सब्ज़ियाँ


Altaf Tetra bhai का  सवाल और हमारा जवाब
👇🏻🍇🍇🍇

*रोज़ी के बारे में*

🍏🍎🍏
सवाल: पर मारा तो गरीब ही जाएगा ये याद रखना     फैक्ट्रियां बंद हो रही है मज़दूर कहां जाएंगे दो रोटी के पैसे कमाने???

जवाब: आज ग़रीब मज़दूर को सर्वाइव करना है तो उसे
रोटी के परंपरागत कांसेप्ट से मुक्त होना होगा कि उसे किसी दूसरे का काम करके ही पैसा मिलेगा और फिर उसे पैसे से रोटी मिलेगी।
बिना पैसे के भी रोटी मिली है और मिल सकती है।
रब ने रोज़ी का वादा किया है रोटी का नहीं।
वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को फर्श और आकाश को छत बनाया, और आकाश से पानी उतारा, फिर उसके द्वारा हर प्रकार की पैदावार की और फल तुम्हारी रोजी के लिए पैदा किए, अतः जब तुम जानते हो तो अल्लाह के समकक्ष न ठहराओ।
पवित्र क़ुरआन 2:12

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी में ग़रीब मज़दूर के लिए उम्दा नमूना है।
हर ग़रीब आदमी अपने घर पर मुर्ग़ी, बत्तख़, भेड़, बकरी और ख़रगोश पाले। ये सब लगभग मुफ़्त में सड़क किनारे चारा चुगकर पल जाते हैं। मुर्ग़ी बकरियां रोज़ दूध अंडे देती हैं। घर के ख़ाली आंगन में या छत पर कई लेयर में गमले रखकर कम जगह में ज़्यादा लौकी, कद्दू, टमाटर, मूली, बैंगन, धनिया, मिर्च, पालक और पपीता आदि उगाए जा सकते हैं।
हमारे वालिद साहब शौक़िया आंगन में बाग़बानी करते थे। इतनी ज़्यादा सब्ज़ियां हो जाती थीं कि मौहल्ले वाले और दोस्त मांगकर ले जाते थे क्योंकि बिना खाद के आर्गेनिक सब्ज़ियों का ज़ायक़ा बिल्कुल अलग और लाजवाब होता है। Vertical Gardening से दीवारों पर बेकार बोतलों में भी सब्ज़ियां उगाई जाती हैं। यूट्यूब पर देखें वीडियोज़।


सरकारी ज़मीन में लगे गूलर, पीपल, बरगद, अंजीर के फल और सहजन के पत्ते तोड़ कर क़ायदे से पकाकर भी खाए जा सकते हैं। इन्हें बिना पकाए भी खाया जा सकता है। ये पौष्टिक होते हैं। 

Tuesday, April 2, 2019

सूरह कौसर: बरकत का अनन्त ख़ज़ाना
सूरह कौसर पवित्र क़ुरआन की सबसे छोटी सूरह है इसमें छोटे-छोटे सिर्फ 3 वाक्य हैं। इसमें पहले और तीसरे वाक्य में ईश्वर अल्लाह ने दो भविष्यवाणियां की है और वह दोनों भविष्यवाणियां पूरी हुईं। यह पवित्र सूरह ईश्वर अल्लाह का एक बहुत बड़ा चमत्कार है। कोई भी इंसान आज तक इस छोटी सूरह जैसी सूरह  बनाकर पेश नहीं कर सका कि वह तीन छोटे-छोटे वाक्य बोल दे। जिनमें दो भविष्यवाणियां हों और वे दोनों भविष्यवाणियां ज्यों की त्यों पूरी हो जाएं। पहले वाक्य में ईश्वर अल्लाह ने अपने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उनकी नस्ल में और सारी ख़ैर और खूबियों में ज़्यादती (Abundance) देने की भविष्यवाणी की है और तीसरे वाक्य में यह कहा है कि जो लोग आपके बेटों के मरने पर खुश हो रहे हैं और आपको जड़कटा कह रहे हैं, वास्तव में उनका बोल उन पर ही पूरा होगा और वही जड़कटे हो जाएंगे। समय आने पर लोगों ने देखा कि यह दोनों भविष्यवाणियां पूरी हुईं। नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेटी हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु  अन्हा से औलादें हुईं और उनसे उनका नाम और पैग़ाम बहुत ज़्यादा फैला और उनके दुश्मनों का नाम मिट गया। आज कोई ख़ुद को उन दुश्मनों की औलाद नहीं बताता। आज दुनिया में सबसे ज़्यादा नाम मुहम्मद रखा जाता है।
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ईश्वर अल्लाह का स्वभाव कल्याण करने का स्वभाव है। यह पूरा यूनिवर्स कल्याण पर सेट है। ज़र्रे से लेकर सूरज तक और सूरज से लेकर गैलेक्सी तक हर चीज़ इस तरह घूमती है कि उससे ज़मीन पर लाइफ़ को सपोर्ट मिलती है और सब का भला होता है। जो भी आदमी अपने और सबके कल्याण के लिए काम करता है, वह ईश्वर के स्वभाव पर काम करता है। वह इस यूनिवर्स की हारमोनी में काम करता है। ऐसे आदमी  को ईश्वर अल्लाह सपोर्ट करता है और यह पूरा यूनिवर्स भी सपोर्ट करता है। जो कल्याण करता है, उसका कल्याण ज़रूर होता है। जो सब के कल्याण के लिए काम करता है, उसके विरूद्ध अगर सारी दुनिया भी एक हो जाए और उसके नाम को और उसके पैग़ाम को मिटाने की कोशिश करे तो सारी दुनिया कामयाब नहीं हो सकती क्योंकि  वह ईश्वर अल्लाह के स्वभाव के अनुकूल काम कर रहा है और उसे ईश्वर अल्लाह का समर्थन प्राप्त है। 
ऐसे आदमी से जो भी जलन और दुश्मनी रखता है और उसे मिटाने की कोशिश करता है, वह अपनी कोशिशों में कामयाब नहीं हो सकता क्योंकि वह ईश्वर के स्वभाव और प्रकृति के नियम को बदलने की कोशिश कर रहा है, जोकि पॉसिबल नहीं है। ऐसे में उसने जो कुछ बुरा सोचा है, बुरा बोला है और दुश्मनी में जो बुरे काम किये हैं, उसने एनर्जी को कुछ घातक रूप दे दिए हैं, जो उसी की तरफ़ हालात के रूप में पलट कर आते हैं और उसी दुश्मन को तबाह और बर्बाद कर देते हैं। यही वजह है कि दूसरों से जलन और दुश्मनी रखने वाले इस यूनिवर्स में फलते फूलते नहीं हैं बल्कि वे कष्ट भोगकर नष्ट हो जाते हैं। सदियों से लोग यह सब देखते आ रहे हैं और यह कहावत बन चुकी है कि जो आदमी दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वह ख़ुद खाई में गिरता है। यह प्रकृति का एक नियम है।
यह पवित्र सूरह नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से और उनके कल्याणकारी मिशन से दुश्मनी रखने वालों के लिए एक चेतावनी और उपदेश है कि वे दुश्मनी और झूठे प्रचार से कल्याण नहीं पाएंगे। एक बार उन्हें शांत चित्त से आपने जीवन के कष्टों के बारे में सोचना चाहिए कि कहीं इन कष्टों का कारण उनके विचारों में तो नहीं है जो वे पैग़म्बर मुहम्मद साहब के प्रति रखते हैं। वे अपना और अपनी संतान का भला चाहते हैं तो वे भी अपने दिल को बुरे विचारों से शुद्ध करें और सब के कल्याण के लिए काम करें।
ईश्वर अल्लाह ने अपनी पवित्र वाणी में सृष्टि का यह शाश्वत नियम बताया है कि जो चीज़ कल्याणकारी होती है, उसे वह ज़मीन में जमा देता है।
...और जो कुछ लोगों को लाभ पहुँचाने वाला होता है, वह धरती में ठहर जाता है।
-पवित्र क़ुरआन 13:17

अनाथों की समस्याओं का समाधान करने वाला पैटर्न
पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बचपन में ही अनाथ हो गए थे। जैसे-जैसे वे बड़े हुए, वह अपनी सच्चाई, अमानतदारी और परोपकार के लिए अपने समाज में पहचाने जाने लगे। लगभग 25 साल की उम्र में उन्होंने पार्टनरशिप में व्यापार शुरू किया और 40 साल की उम्र तक उन्होंने व्यापार से बहुत लाभ कमाया। आप भाई क्यू . एस. ख़ान ( Q. S. Khan) की बुक  कानूने तरक़्क़ी (Qanoone Taraqqi) ऑनलाइन फ़्री डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं और बहुत तरक़्क़ी कर सकते हैं। इस बुक में उन्होंने लिखा है कि पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास 40 साल की उम्र में लगभग 25000 दीनार थे, जो आज लगभग 55 किलो सोना बैठता है। उस समय दीनार सोने का एक सिक्का होता था। इसी के साथ उनके पास चांदी, घोड़ा, ऊंट, भेड़-बकरियों व दूसरे रूप में भी काफ़ी दौलत थी। उनके पास यह सब दौलत इसलिए आई थी क्योंकि वह बचपन से ही सब धर्मों के लोगों के कल्याण पर अपना माल, अपना वक़्त और अपनी योग्यताएं खर्च करते आ रहे थे और फिर उन्होंने यह सारा सोना, चांदी, घोड़े और भेड़ बकरियाँ भी सब धर्मों के लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए क़ुर्बान कर दिए। उनकी पत्नी ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास उनसे ज़्यादा सोना, चाँदी और दौलत थी। उन्होंने भी उनके तरीक़े पर चलते हुए सभी धर्मों के बेघर अनाथों को संरक्षण और भोजन देने के लिए, ग़रीबों और क़र्ज़दारों को कर्ज़ से मुक्ति दिलाने के लिए अपना सारा माल ख़र्च कर दिया। हज़रत फ़ातिमा उन्हीं की बेटी हैं। उन्होंने भी ज़िन्दगी भर यही किया। कोोई भूखा उनके घर आकर माँग लेता था तो वह अपना और अपने बच्चों का भोजन अपने सामने से उठाकर उस माँगने वाले को दे देती थीं, चाहे उसका धर्म कुछ भी होता था। ऐसे लोग समाज में सदा सम्मान पाते हैं और उनकी सन्तान भी सम्मान पाती है। ऐसे लोगों की सन्तान और सम्पत्ति और अधिकार निरन्तर बढ़ते रहते हैं।
इमाम  हसन और इमाम हुसैन हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के बेटे हैं। आज भी सारी दुनिया के सब धर्मों के लोग उन्हें सम्मान देते हैं और बरकत के लिए अपने बच्चों के नाम के साथ उनका नाम लगाते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में कुछ पंडित अपने आपको हुसैनी पंडित कहलाकर गौरवान्वित होते हैं।

सात सौ गुना बरकत पाने का क़ुदरती क़ानून
ईश्वर अल्लाह ने बरकत और सैकड़ों गुना वृद्धि का यह नियम अपनी पवित्र वाणी क़ुरआन में बताया है:
जो लोग अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते है, उनकी मिसाल ऐसी है, जैसे एक दाना हो, जिससे सात बालें निकलें और प्रत्येक बाल में सौ दाने हो। अल्लाह जिसे चाहता है बढ़ोतरी प्रदान करता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, जाननेवाला है।
-पवित्र क़ुरआन 2:261
आप इस आयत को पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जीवन में साकार होते हुए देख सकते हैं और आप खुद भी इस प्राकृतिक नियम से काम लेकर अपनी संतान और संपत्ति को सैकड़ों गुना बढ़ा सकते हैं। सच्चाई और अमानतदारी के साथ ईश्वर अल्लाह के लिए ज़रूरतमंदों को दान देने वाले और परोपकार करने वाले बरकत पाते हैं, यह बात हर एक धर्म की किताबों में लिखी है। यह प्रकृति का एक शाश्वत नियम है, जो सबके लिए काम करता है। जो दूसरों को देता है, उसके अंदर भरपूर और खुशहाल होने और देखने की भावना (Abundant Mentality) होती है। जैसी उसकी भावना होती है उसकी जिंदगी उसकी भावना के अनुरूप वैसी ही ज़्यादा भरपूर और खुशहाल होती चली जाती है।

कम और ज़्यादा के विश्वास का ज़िन्दगी पर असर 
ज़्यादा और भरपूर को अरबी में कौसर बोलते हैं। कौसर को अंग्रेज़ी भाषा में अबन्डेन्स (Abundance) बोलते हैं। कमी के विश्वास से जीवन में कम धन और साधन मिलते हैं और भरपूर और ज़्यादा के विश्वास से ज़्यादा धन और साधन मिलते हैं। जो लोग सूरह कौसर में विश्वास रखते हैं और उसे समझ कर बार-बार पढ़ते हैं, भरपूर और ज़्यादा होने का विश्वास उनका कोर बिलीफ़ बन जाता है। जो एक बीज की तरह उनके सबकॉन्शियस माइंड में पड़ा रहता है और अपने ठीक समय पर उस आदमी के जीवन में भरपूर और ज़्यादा धन साधन खींचकर हाज़िर करता रहता है। आपका सबकॉन्शियस माइंड आपके विश्वास के मुताबिक़ मौक़े, साधन और लोग आकर्षित करता रहता है।
आप 'सूरह कौसर और बरकत' (Surah Kausar aur Barkat) लिखकर यूट्यूब पर या इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो आपको सूरह कौसर के चमत्कारों की सैकड़ों सच्ची घटनाएं मिलेंगी। आपको क़र्ज़दारों के क़र्ज़ उतरने के और माल की कमी के शिकार लोगों के पास भरपूर माल व दौलत आने के सच्चे क़िस्से मिलेंगे। सूरह कौसर में विश्वास रखने और उसे बरकत की नीयत से बार बार पढ़ने से जीवन में नेचुरली धन का प्रवाह बढ़ता है। कई बार ऐसी जगहों से धन मिलता है जहां से मिलने का इंसान गुमान भी नहीं कर सकता।
कुछ लोग कर्ज़ की वजह से आत्महत्या कर लेते हैं। कुछ लोग रुपए की कमी और दहेज के डर के कारण अपनी बेटियों की हत्या कर देते हैं। कुछ लोग दहेज के लालच में अपनी बहुओं को जला देते हैं। ये सब हादसे दौलत के बारे में गलत नज़रिए का नतीजा हैं।

सूरह कौसर घातक कोर बिलीफ़ से मुक्ति देती है
जो लोग महंगाई की ज़्यादती और धन की कमी की शिकायतें करते हैं, उनका कोर बिलीफ़ 'महंगाई की ज़्यादती और धन की कमी' है जोकि उनके सबकॉन्शियस माइंड का एक पैटर्न है और दिल की एक बीमारी है। आज काफ़ी लोग इस बीमारी के शिकार हैं। जब तक यह उनका कोर बिलीफ़ रहेगा, उनके हालात ऐसे ही रहेंगे जैसे कि हैं। ग़रीबी की मानसिकता से ग़रीबी जन्म लेती है। धन की कमी के हालात से मुक्ति के लिए धन की कमी के कोर बिलीफ़ से मुक्ति पाने की ज़रूरत है। पवित्र क़ुरआन की सूरह अलकौसर हरेक तरह की कमी के बिलीफ़ से मुक्ति देती है। अगर आप ग़रीब हैं तो अब आप  अपने आपको ग़रीबी से मुक्ति कर सकते हैं।

बेरोज़गारी और ग़रीबी का आसान इलाज, पवित्र क़ुरआन से
मैं आप सबकी प्रेरणा के लिए अपना एक व्यक्तिगत अनुभव शेयर कर रहा हूँ। जब मैं बी. एससी. कर रहा था। तब मुझे अपने भाई-बहनों की सपोर्ट के लिए कुछ रक़म की ज़रूरत महसूस हुई। मैंने कोई बिज़नेस करने की नीयत की। मेरे पास अपनी पूंजी नहीं थी। मुझे बिज़नेस का कोई अनुभव नहीं था। मैं बिल्कुल अनाड़ी था। इसलिए मेरे घर वाले मुझे धन देकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे। मैंने सिर्फ़ अल्लाह के भरोसे पर अपनी मां से 2700 रूपये उधार लेकर एक बिज़नेस शुरू किया। तब मैं एक किशोर था। । मुझे यह बात पता थी कि सूरह कौसर बरकत की नीयत से पढ़ी जाए तो बरकत होती है। मैं अपनी दुकान पर बैठकर सूरह कौसर पढ़कर अपने रुपयों पर और अपनी दुकान के सामान पर फूंकता रहता था और अपने रब से मदद की दुआ करता था।
मैंने पवित्र क़ुरआन और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी की रौशनी में सेल के 4 नियम निश्चित किए थे।
1. माल को मार्केट रेट से थोड़ा कम रेट पर सेल करना। 
2. नक़द बेचना।
3. बिना मिलावट के असली और उम्दा क्वालिटी का माल बेचना।
4. हरेक धर्म के बेरोज़गारों और ग़रीब मज़दूरों को खाने पीने का सामान उधार देना। चाहे वे उधार न लौटाएं, तब भी उन्हें उधार देना ताकि वे भूखे न रहें।
मैं इस पॉलिसी की वजह से ईमानदारी और अमानतदारी के साथ अपना और सब का भला करते हुए व्यापार करता रहा। मेरा माल 10 गुना, 100 गुना और 700 गुना होता चला गया। मेरी दुकान माल से भर गई। मैं नियमपूर्वक सूरह कौसर बरकत की नीयत से पढ़ता रहा और अपनी दौलत और अपने बिक्री के सामान पर उसे फूंकता रहा। मेरे पास दूसरे मोहल्लों से और दूर के गांवों तक से ग्राहक आने लगे। अब मैं लोकल मार्केट से माल ख़रीदने के बजाय दूसरे शहरों की बड़ी आढ़त से माल मंगवाने लगा। जिससे मुझे ज़्यादा लाभ मिलने लगा। मैं अपने अनाड़ीपन की वजह से कोई सामान महंगा ले आता था तो ख़ुद ही उस चीज का रेट बढ़ जाता था और इस तरह मैं नुक़्सान से बच जाता था। आसपास के स्थापित कारोबारी प्रतिद्वंदी मेरी दुश्मनी में कोई चाल चलते थे तो वे उसमें नाकाम रहते थे। मेरी दुकान पर एक नौकर रहता था। कई मज़दूर माल ढोते थे। पहले मैं बेरोज़गार था और अब मैं दूसरों को रोज़गार दे रहा था। 
मेरी दुकान में माल रखने की जगह न बची तो मुझे अपने घर पर माल उतरवाना पड़ता था। घर में भी बरामदा और आँगन माल से भर गया। यहां तक कि बेडरूम में भी माल की बोरियों का इतना ऊँचा ढेर लग गया कि हमें सोने लिए उन बोरियों पर से कूद कूद कर डबल बेड पर जाना पड़ता था। उसके बाद मुझे एक गोदाम लेना पड़ा। मैं लगातार सूरह कौसर पढ़ता रहा। वह गोदाम भी माल से भर गया। यह सब ईमानदारी, अमानतदारी और सदक़ा व दान देने का फल था, जिसका हुक्म रब ने पवित्र क़ुरआन में दिया है। फिर वह दुकान मैंने अपने छोटे भाई को दे दी और फिर उन्होंने भी उसे एक और भाई को दे दी। रब का शुक्र है कि वह दुकान 28 साल बाद आज भी भरी हुई है। यह सब सूरह अलकौसर की बरकत है। आज लोग बेरोज़गारी की शिकायतें करते हैं क्योंकि उनके दिमाग़ में दूसरों ने रोज़गार के नाम पर 'नौकरी का विचार' जमा दिया है। इस वजह से वे बिज़नेस के अनगिनत मौक़े नहीं देख पाते। जैसे मैंने ख़ुद को रोज़गार पर लगाया और ख़ूब माल कमाया। ऐसे ही हरेक सेल्फ़ एम्प्लायमेंट करके कमा सकता है। हर तरफ़ लोग बहुत सी चीज़ें ख़रीद रहे हैं। आप भी शहद, ऐलोवेरा जूस और मसालों से लेकर बच्चों के सूट तक बहुत कुछ अपने घर से ही बेच सकते हैं।

सूरह कौसर की बरकत वाली थैली: एक सच्चा वाक़या
अलीगढ़ में मोहल्ला दोहर्रा में डॉक्टर एहसानुल्लाह ख़ाँ का सना होम्यो क्लीनिक है। यह क्लीनिक किडनी और बाँझपन के इलाज के लिए मशहूर है।  जोड़ों के दर्द और गठिया का भी यहाँ अच्छा इलाज होता है। दिलचस्प बात यह है कि डॉक्टर एहसानुल्लाह ख़ाँ भूत-प्रेत दिखने और मनोरोगों का भी अच्छा इलाज करते हैं। वह ग़रीबों का इलाज केवल दवाई के मामूली ख़र्च पर करते हैं। मैं जब उनसे मिला तो यह देखकर ख़ुशी हुई कि वह हर धर्म के ग़रीबों का इलाज लगभग मुफ़्त करते हैं।
मैंने अपने एक आदरणीय मित्र वशिष्ठ जी के 80 वर्षीय ससुर श्री राम कुमार जी को डॉक्टर एहसानुल्लाह ख़ाँ साहब के पास इलाज के लिए भेजा। उनका डायलिसिस चल रहा था और हर महीने ₹80000 का ख़र्च उनकी दवा और इलाज पर आ रहा था। सना होमियो क्लीनिक के ट्रीटमेंट से राम कुमार जी की किडनी एक महीने में ही फिर से नेचुरली सही काम करने लगीं और उनका डायलिसिस बंद हो गया। डॉक्टर साहब ने मुझसे वैलनेस सलाह चाही। उन्होंने मुझे बताया कि अलीगढ़ में वह किराए के मकान पर रहते हैं और उनके पास अपना मकान नहीं है। मैंने उनका मुआयना किया तो पाया कि वह अपनी मेहनत की जायज़ फ़ीस बताने और लेने से डरते हैं। मैंने उनसे कहा कि आपको अपना एटीट्यूड बदलना होगा आप दीन के मुताबिक़ अपनी मेहनत की जायज़ फ़ीस ले सकते हैं। उन्हें अपना एटीट्यूड बदलने में 6 महीने से ज़्यादा लग गए।
मैंने उनसे बातचीत के दौरान पता लगाया कि उनके सबकॉन्शियस माइंड में दौलत के बारे में लिमिटिंग बिलीफ़ मौजूद हैं। एक दिन बातचीत के दौरान डाक्टर साहब बोले-
कनक कनक ते सौ गुना मादकता अधिकाय।
वा खाय बौराय जग, वा पाय बौराय।।
अर्थात् सोने में धतूरे से 100 गुना अधिक नशा होता है धतूरा खाकर नशा होता है जबकि सोना पाने मात्र से ही नशा हो जाता है।
यह एक संत की वाणी है जो अन्याय से धन कमाने वालों और ग़रीबों पर ख़र्च न करने वालों के बारे में कही गई थी लेकिन जब लोग इसे जायज़ तरीक़े से दौलत कमाने वालों पर भी फ़िट कर देते हैं तो यह विचार उनके सबकॉन्शियस माइंड में दौलत की पहचान नुक़्सान पहुंचाने वाली चीज़ के रूप में जमा देता है। ईश्वर अल्लाह ने सबकॉन्शियस माइंड को कल्याण पर सेट किया है। इसलिए सबकॉन्शियस माइंड नुकसान पहुंचाने वाली चीज़ों को लोगों से दूर रखता है। जब सबकॉन्शियस माइंड में दौलत एक नुकसान पहुंचाने वाली चीज के रूप में दर्ज होती है तो वह आपके विश्वास के कारण दौलत को भी दूसरी नुक़्सान देने वाली चीजों की तरह आप से दूर रखता है। मैंने डॉक्टर साहब से कहा कि यह एक तंग नज़रिया (Limiting Belief) है और आप इसे दौलत के बारे में अच्छा नज़रिया अपना कर बदलें। इसके लिए आप पवित्र क़ुरआन की उन आयतों को पढ़ें, जिनमें दौलत को ख़ैर और अल्लाह का फज़्ल कहा गया है।
तीसरी बात मैंने उन्हें और उनकी पत्नी को भी यह बताई कि आप एक थैली बना लें। आप जो कुछ कमाएं उसे उस थैली में डाल दें। आप उसे बरकत वाली थैली का नाम दे दें। बार बार 'बरकत वाली थैली' बोलने से यह आपके सबकॉन्शियस माइंड का कोर बिलीफ़ बन जायेगा कि आपके पास बरकत वाली थैली है, जो हमेशा रुपयों से ठसाठस भरी रहती है। यह बाहर की थैली है। एक थैली कॉन्सेप्ट और कल्पना के रूप में है, जो आपके अंदर है। बाहर वाली थैली अलग है और अंदर वाली थैली अलग है। बाहर वाली थैली में आपके रुपये कम हो सकते हैं। आपकी बाहर वाली थैली ढीली हो सकती है लेकिन आपके अंदर जो थैली है, आप उसे अपनी कल्पना में नोटों से ठसाठस देख सकते हैं। जब आप अपने अंदर अपनी थैली को हर देश की करेंसी से भरा हुआ देख सकते हैं तो आप ऐसा ही करें। सुबह और रात को अपनी बाहर वाली थैली अपने सामने रख लें। आप वुज़ू करके पाक साफ़ होकर अपने अंदर नोटों से भरी हुई थैली देखते हुए 129 बार सूरह कौसर पढ़ें। आपको दुरूद शरीफ़ याद हो तो उसके शुरू और बाद में सात-सात बार दुरूद शरीफ भी पढ़ें। फिर बाहर की थैली का मुंह खोलकर उसमें बरकत की नीयत से फूंक मार दें। दिन में जब भी आप उसमें रूपये रखें या उसमें से रूपये निकाल कर ख़र्च करें, तब भी एक बार सूरह कौसर पढ़ कर उसमें बरकत की नीयत से फूंक मार दें। डॉक्टर साहब ने सलाह पर अमल किया और अल्लाह ने उन्हें बहुत ज़्यादा बरकत से नवाज़ा। उनके पास दूसरे देशों के मरीज़ और टूरिस्ट भी सलाह के लिए आने लगे। मैंने उनकी पत्नी को भी जायज़ तरीक़े से कमाने के लिए कहा। उनकी पत्नी भी वेलनेस कोच बन गईं। काफ़ी लोग उन्हें भी सलाह के बदले फ़ीस देने लगे। इस तरह दूसरे देशों की करेंसी भी उनकी बरकत वाली थैैैली में आने लगी, जो कि पहले सिर्फ़ एक कल्पना थी।
डेढ़ साल में ही उनके पास इतनी दौलत आई कि उन्होंने अपनी पत्नी सहित हज किया और एक नई और शानदार कॉलोनी में एक फ़्लैट और उसके नीचे दो दुकानें बुक कर लीं। रब का बहुत बहुत शुक्र है। डॉक्टर साहब ने मुझे यह भी बताया है कि सूरह कौसर पढ़ने के बाद से उनका रूपया परिवार की दवा और इलाज पर लगना कम हो गया है।
मेरी एक वेलनेस स्टूडेंट के घर पर आठ साल से एक नौकर काम करता था। वह घरेलू नौकर एक आदमी था। मेरी स्टूडेंट ने उसे सूरह कौसर की बरकत वाली थैली बनाने का तरीक़ा सिखाया। लगभग एक महीने बाद अचानक ऐसे हालात ख़ुद बने कि वह किसी अरब देश में नौकरी करने चला गया। वह स्टूडेंट मुझे बताने लगीं कि वह घरेलू नौकर बहुत वफ़ादार और हर काम में माहिर था। मैंने उसे सूरह कौसर पढ़ने की तालीम क्या दी, वह हमें छोड़कर ही चला गया। मैंने हंसते हुए कहा कि आगे से आप सिर्फ़ उसी नौकर को सूरह कौसर से बरकत पाना सिखाएं, जिसे आपको अपने घर से हटाना हो।

हकीम सऊद अनवर ख़ान साहब (मोबाईल नंबर 09358713376) देवबंद में हिमालयन बेरी (Seabuck thorn) जैसी ताक़तवर और अनोखी जड़ी बूटी बेचने के लिए मशहूर हैं। मैंने उनके पास ताक़त और दर्द की अनोखी जड़ी बूटियाँ देखी हैं। पहली बार उन्होंने ही मुझे सी बक थार्न (Sea Buck Thorn) के करिश्मों की जानकारी दी थी। जिसके बारे में यह कहा जाता है कि अगर सारी दुनिया के सब रोगों का इलाज करने के लिए कोई एक पेड़ चुना जाए तो वह पेड़ सी बक थार्न है। यह किताब वेलनेस के विषय पर है। इसलिए हमने यहाँ रब की इस नेमत का थोड़ा सा चर्चा कर दिया है ताकि आप यूट्यूब पर इसके वीडियोज़ देखकर ताक़तवर और हेल्दी बनें।
हकीम साहब ने मुझे बताया कि वह बीमारों और ग़रीबों को दवा के साथ अपनी सोच के साँचे बदलना भी सिखाते हैं। वह और उनके सभी ग्राहक रब से बरकत पा रहे हैं। कमज़ोर ताक़वर हो रहे हैं, मरीज़ चंगे हो रहे हैं और ग़रीब ख़ुशहाल हो रहे हैं। हरेक धर्म के लोग सूरह कौसर से और इन क़ुदरती क़ानूनों से बरकतें पा रहे हैं।

मेरे एक परिचित उमेश जी ने कुछ भैंसे पालकर दूध की डेयरी का काम शुरू किया। उन्होंने मुझसे बरकत की दुआ के लिए कहा। मैंने देखा कि वह सूरह कौसर पूरी नहीं पढ़ सकते तो मैंने उनसे कहा कि जब आप दूध निकालें, उस वक़्त आप अपनी दूध की बाल्टी को दूध से भरा हुआ देखें और अपनी कल्पना में इतना ज़्यादा दूध देखें जैसे कि वह बाल्टी दूध का सागर ही बन गई हो और आप केवल 'अलकौसर अलकौसर' पढ़ते रहें और ज्यादा दूध की कल्पना करते रहें। उनके लिए यह एक शब्द और एक कल्पना ही काफ़ी हो गई। उनको भी रब ने उनके व्यापार में बहुत नफ़ा दिया।
ऐसी अनगिनत सच्ची कहानियाँ हैं। मैंने जितने लोगों को यक़ीन और इख़्लास के साथ बरकत की नीयत से सूरह कौसर पढ़ने की सलाह दी, रब ने उन सबको बहुत ज़्यादा बरकत दी है। आप भी यह बरकत पाने वाले बन सकते हैं।