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Saturday, February 16, 2019

How to do most attractive dawah work? Dr. Anwer Jamal

आज हम *Dawah Psychology* में
1. Personal Attraction Point
2. Common Attraction Point और
3. Subconscious Mind के काम करने के तरीक़े की जानकारी देंगे।
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मेरी स्टडी और 30 साल के तब्लीग़ी फ़लाही अमल का ज़़ाती तजुर्बा यह है कि
हम लोगों से आमने सामने बातचीत करके, सोशल वेबसाइट्स पर पोस्ट और कमेंट करके अपने नज़रिए को दूसरे के दिल में नक़्श करते हैं/कर सकते हैं। इसके लिए हमें यह जानना ज़रूरी है कि इंसान का दिल (subconscious mind) कैसे काम करता है?
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इंसान के सामने जो बात बार बार रिपीट होती है, वह उसके दिल में नक़्श हो जाती है,
चाहे वह ग़लत हो या सही।
इंसान के दिल में ग़लत और बुरी बात जमेगी तो वह भ्रम का शिकार रहेगा और लोगों से लड़ता रहेगा। जो लोग उसके काम आ सकते हैं, वह उन्हें अपने ख़िलाफ़ कर लेगा और वह नुक़्सान उठाएगा। उसके दिल में सच्ची और अच्छी बात जमेगी तो उसका मन शाँत रहेगा। वह लोगों से दोस्ती का बर्ताव करेगा और इससे उसका भला होगा।
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जब कोई बात किसी इंसान के सामने माँ बाप गुरू और लीडर जैसी उसकी मौतबर शख़्सितें बार बार और बहुत ज़्यादा दोहराती हैं तो वह उसे सच मान लेता है और
फिर वह बात उसका विश्वास और नज़रिया बन जाता है।
वह नज़रिया उसके subconscious mind का पैटर्न होता है। उस नज़रिए से उसकी सीमाएं (limitations) तय हो जाती हैं। अब उसके जीवन में उस नज़रिए के मुताबिक़ हालात ख़ुद जन्म लेते हैं और वह समझता है कि वह अपने हालात के सामने बेबस है।
इस तरह वह उस नज़रिए के तिलिस्म (Matrix) में क़ैद हो जाता है, जो दूसरों ने बार बार उसके सामने रिपीट करके उसके दिल में जमा दिया है।
वह इससे unconscious होता है कि वह दूसरों के नज़रिए का ग़ुलाम है और अगर वह अपने नज़रिए का ग़ुलाम न रहे बल्कि उसका मालिक बन जाए यानि अपने नज़रिए को सच्चा और अच्छा बना ले तो उसके हालात भी बदल जाएंगे।
💛💚💛
जब एक बच्चे के सामने बार बार किसी क़ौम के लिए नफ़रत, दुश्मनी और बदले की बात बचपन से दोहराई जाए तो यह  बात उसकी धारणा (core belief) बन जाती है
और उसका दिल (subconscious mind) ख़ुद नेचुरली उस क़ौम के लिए उसकी धारणा (अक़ीदे) के मुताबिक़ उसके अंदर विचार, भावना, कर्म और अंजाम पैदा करता है। वह बात (कलिमा) नेचुरल तरीक़े से हालात के रूप में अपने ठीक वक़्त पर साकार हो जाती है।
एक आदमी दूसरे आदमी से, एक क़ौम दूसरी क़ौम से और एक देश दूसरे देश से लड़ने लगता है। इसीलिए आज लड़ाई जारी है और लोग मर रहे हैं। जिसका फ़ायदा थोड़े से धनपति, धर्म गुरू और राजनेता उठा रहे हैं। जब वे आपके दिल पर क़ब्ज़ा कर सकते हैं तो आप ख़ुद अपने दिल के पर काबू क्यों नहीं कर सकते?
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जब कोई इंसान अपने दिल की निगरानी नहीं करता तो दूसरे लोग उस पर क़ब्ज़ा जमा लेते हैं। वे उसमें अपने हित के अनुसार बातें जमा देते हैं। वे उसे अपने फ़ायदे के लिए लड़ने के लिए और अपना धन और अपनी जान देने के लिए तैयार कर लेते हैं। यह ज़हनी ग़ुलामी है।
यही ग़ुलामी इंसान के लिए बर्बादी (ویل) है। नाशुक्रे मुजरिम पापी के लिए यह नक़द जहन्नम (नर्क) है लेकिन ज़्यादातर लोग इसे पहचानते नहीं।
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मुबल्लिग़ दाई का काम इंसान को उसकी मौजूदा बर्बादी की वजह बताना और उसे बर्बादी से फ़लाह की तरफ़ बढ़ने की सीधी राह दिखाना है।
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सोशल मीडिया पर पोस्ट और कमेन्ट के ज़रिए एक दाई मुबल्लिग़ को यही काम अंजाम देना होता है।
💞
आप जितना ज़्यादा अपने पाठकों के मनोविज्ञान को समझेंगे,
उतना ज़्यादा आप उन्हें समझा पाएंगे कि उन्हें कैसे बुरे हालात में क़ैद किया गया है। तभी आप उन्हें क़ायल कर पाएंगे।वे अपना फ़ायदा देखकर आपकी बात मानेंगे।
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पौराणिक, आर्य समाजी, हिन्दुत्ववादी, ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया, दलित, वामपंथी, कबीर पंथी, बच्चा, किशोर, जवान, बूढ़ा, क़ैदी, कुंवारी लड़की, शादीशुदा औरत, विधवा, तलाक़शुदा, नौकरीपेशा, गृहस्थन, अनपढ़, शिक्षित, मज़दूर, व्यापारी, किसान, फ़ौजी, अफ़सर, शायर, नेता, डाक्टर, रोगी
हिन्दी, पंजाबी, दक्षिण भारतीय और कान्वेंट एजुकेटिड,
इनमें से हरेक का मनोविज्ञान दूसरों से कुछ अलग है। हरेक को अलग बात में Attraction महसूस होता है।
और कुछ बातें सबके लिए बराबर attraction रखती हैं।
💓⭐💓
हम इन्हें
1. Personal Attraction Points और
2. Common Attraction Points कह सकते हैं।
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जब हम इन दोनों बातों को नज़र अंदाज़ करके एक लगे बंधे ढर्रे से सबको मैसेज देते हैं तो यह भी अपने अंदर एक अच्छी बात होती है लेकिन उसकी तरफ़ लोग कम आकर्षित होते हैं
और लोगों पर उनका पुराना नज़रिया ग़ालिब रहता है।
जब हम इन दोनों बातों को सामने रखकर लोगों को मैसेज देते हैं तो फिर उनका ख़ुद पर क़ाबू नहीं रहता और 
वे माँ बाप गुरू और लीडर, हरेक की बात को पीछे डालकर आपकी बात को सच मान लेते हैं क्योंकि उन्हें उससे अपनी फ़लाह (कल्याण) का यक़ीन आ जाता है।
'मुझे कैसे नफ़ा होगा?' यह बात हरेक को अट्रैक्ट करती है। जो आदमी लोगों को नफ़े की बात बताता है, लोग उसे अपना गुरू बना लेते हैं। इस तरह वह रब के कुदरती क़ानून के तहत ज़मीन में जम जाता है। उसकी दावत भी लोगों के दिलों में जम जाती है।
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मैं Common Attraction Points में ऐसी बातें रखता हूँ, जो सबको आकर्षित करती हैं, जैसे कि
1. मैं कौन हूँ?
2. मैं क्यों पैदा हो गया?
3. मरने के बाद इंसान का क्या होता है?
4. ईश्वर अल्लाह कौन है और वह हमारे लिए क्या करता है?
5. मेरी भलाई किस काम में है और किन कामों से मुझे नुक़्सान पहुंच सकता है?
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मैं Personal Attraction Points में वे बातें रखता हूँ, जिनकी तरफ़ एक आदमी अट्रैक्ट होता है और दूसरे नहीं होते। जैसे कि एक जवान और कुँवारी लड़की के दिल में यह सवाल होता है कि मुझे अच्छा पति कैसे मिलेगा?
जिन लड़कियों की शादी में दहेज या क़द और ख़ूबसूरती कम होने की वजह से देर हो रही है, उनके दिल में सवाल होता है कि मेरी शादी जल्दी कैसे हो?
जब आप उन्हें इसका जवाब देंगे तो वे अट्रैक्ट होंगी लेकिन एक बच्चे या एक बूढ़े को यह जवाब अट्रैक्ट नहीं कर सकता।
एक बच्चे को उसकी पसंद के खिलौनै या सायकिल पर बात करना अट्रैक्ट करेगा जबकि एक अफ़सर इस बात से अट्रैक्ट न होगा।
एक अफ़सर इस बात से अट्रैक्ट होगा कि वह अपनी पसंद की सीट कैसे पाए या अपने आला अफसरान को ख़ुद पर कैसे मेहरबान रखे।
ऐसे ही किसी ब्राह्मण को वेदों में अग्नि विषय पर और पौराणिक कथाओं पर बात करना, अल्लामा इक़बाल की मशहूर नज़्म 'इमामे हिन्द' सुनाकर उनके गुण गाना तुरंत अट्रैक्ट करेगा लेकिन यही बात दलित और वामपंथी लेखक को आपसे दूर कर देगी।
दलित और वामपंथी लेखकों को सामाजिक न्याय और आर्थिक सुरक्षा से जुड़ी बात अट्रैक्ट करेगी।
एक किसान को फ़सल में बरकत और एक व्यापारी को ज़्यादा सेल और ज़्यादा नफ़ा कैसे हो?, यह बात अट्रैक्ट करेगी।
ऐसे ही हरेक इंसान को कोई अलग बात अट्रैक्ट करती है।
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जब हम एक मुबल्लिग़ के रूप में बात करें तो अपने सामने वाले को Common Attraction Points के साथ उसके Personal Attraction Point पर जानकारी ज़रूर दें, जो सच हो और तुरंत भौतिक लाभ देती हो।
आप ध्यान देंगे तो आपको अल्लाह और उसके नबियों की दावत में ये दोनों बातें मौजूद मिलेंगी। देखें:
"और मैंने कहा, अपने रब से क्षमा की प्रार्थना करो। निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील है, वह बादल भेजेगा तुमपर ख़ूब बरसनेवाला, और वह माल और बेटों से तुम्हें बढ़ोतरी प्रदान करेगा, और तुम्हारे लिए बाग़ पैदा करेगा और तुम्हारे लिए नहरें प्रवाहित करेगा।"
---पवित्र क़ुरआन 71:11-13
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एक बुनियादी उसूल
जो बात सच हो
तुरंत भौतिक लाभ देती हो
बार बार दोहराई जाती हो
और उस तरीक़े से कामयाबी पाने वालों के वाक़यात भी सामने हों तो सुनने वाला उसे ज़रूर मानता है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
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हम पोस्ट और कमेन्ट में इन बातों का ध्यान रखें तो हम अपनी बात अपने पाठकों के दिल में नक़्श कर सकते हैं।
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यह एक बुनियादी रहनुमा उसूल है।
इसके अलावा कुछ ख़ास उसूल भी होते हैं,
जैसे कि
कोई नर्म और मददगार इंसान हो तो 
उसके अच्छे कामों की तस्दीक़ और तारीफ़ से काम लिया जाएगा और फिर बात की जाएगी।
इल्मी तकब्बुर (ज्ञान-अहंकार) वाले किसी आर्य समाजी विचारक पर यह तरीक़ा काम न देगा, जो अल्लाह, क़ुरआन और सब धर्मों की मज़ाक़ उड़ाता हो। अपनी नज़र में सबसे बड़ा ज्ञानी वह ख़ुद है। जब तक आप उसके तकब्बुर को पहले चूरा और फिर पाउडर न बना दें, वह आपको अपने से नीच और मूर्ख समझता रहेगा।
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किसी और को दूसरी तरह झिंझोंड़ डालना भी आपके मैसेज पर अट्रैक्ट कर सकता है ताकि वह हर वक़्त अपने मन में आपसे लड़ता रहे।
इससे आप उसके मन में समा जाते हैं और वह हर वक़्त आपकी फ़िक्र पर तवज्जो जमाए रखता है।
...और वह चीज़ उसके वुजूद में बढ़ने लगती है,
जिस पर वह ज़्यादा ध्यान देता है।
💓
वह बार बार FB Wall पर या Blog पर आकर आपके लेख पढ़ता है ताकि आपकी कमी पकड़ कर आपको हराए।
या
वह दूसरी जगह से इस्लाम के बारे में पढ़ता है ताकि आपसे बहस कर सके।
इस तरह इस्लाम के बारे में वह लगातार अंधेरे से उजाले की तरफ़ सफ़र करता है।
अल्हम्दुलिल्लाह।
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इन सब लोगों से सोशल वेबसाइट्स पर बात करते हुए मैं अपने और दूसरे के कुछ लिंक्स ज़रूर छोड़ता हूँ क्योंकि वह उन्हें जाँचने की नीयत से ज़रूर पढ़ेगा। उसके अलावा उस पोस्ट पर आने वाले दूसरे बहुत से लोग भी उन्हें पढ़ते हैं।
हर आदमी के दिल कुछ नया देखने और छिपे हुए को देखने का जज़्बा होता है।
मुहब्बत का चश्मा कैसे पहनाएं?
जो लोग आज सोशल वेबसाइट्स पर इस्लाम के ख़िलाफ़ नफ़रत फैला रहे हैं या ऐतराज़ कर रहे हैं, वे नफ़्सियाती मर्ज़ (psychosocial disorders) के शिकार हैं। उन पर कोई लाजिकल जवाब असर नहीं करेगा क्योंकि उनका दिल (subconscious mind) नफ़रत और दुश्मनी की वजह से उसे क़ुबूल नहीं करता। उनके दिल में बचपन से जमे हुए नफ़रत और दुश्मनी के अक़ीदों को बदलकर मुहब्बत और दोस्ती के विचारों को जमाना ज़रूरी है। तब वे उन सवालों को छोड़ देंगे, जिनका सोर्स नफ़रत थी।
ज़्यादातर मुबल्लिग़ सवालों का लाजिकल जवाब देते रहते हैं लेकिन वे उसके सोर्स को ज्यों का त्यों छोड़ देते हैं। जिससे उनके दिलों में वैसे सवाल लगातार उठते रहते हैं।
जब आप ऐसे किसी मनोरोगी को 
किसी मुसीबत का हल बताते हैं या
कोई दुनियावी फ़ायदा उठाने या
मन की मुराद पाने का तरीक़ा बताते हैं तो वह थोड़ी देर के लिए सारी नफ़रत और दुश्मनी को एक तरफ़ कर देता है और आपकी बात सुनता है। जब वह बार बार ऐसा करता है तो उसकी नफ़रत और दुश्मनी कमज़ोर पड़ने लगती है। उसके दिल में आपकी मुहब्बत बढ़ने लगती है।
जब आप उसे दिल (subconscious mind) के काम करने का तरीक़ा बताते हैं तो वह पूरी तरह समझ जाता है कि उसके दिल में क्या ख़राबी थी और वह कैसे आ गई थी?
अब वह नफ़रत और दुश्मनी की क़ैद से रिहा हो सकता है। अब वह अपना दिल और अपना नज़रिया बदल सकता है। अब वह आपको और इस्लाम को मुहब्बत के चश्मे से देख सकता है। मुहब्बत का नज़रिया मुहब्बत का चश्मा है। इस्लाम का मुबल्लिग़ वहीं है जो दुश्मनों को मुहब्बत का चश्मा पहना सके।
तब्लीग़े दीन का काम नफ़्सियाती इलाज (Psychological treatment) करने जैसा नहीं है बल्कि 
नफ़्सियाती इलाज करना ही है।
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ज़्यादातर लोग दिल (अक़ीदे और नज़रिए) के मरीज़ हैं।
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दिल (के नज़रिए) को बदलना मक़सूद (Goal) है।
क़ल्बे सलीम मक़सूद (Goal) है।
इसी से फ़लाह और कल्याण है।
🍎🍏🍎
इसके लिए हमें सच्ची और अच्छी बातों को, रब की अनंत क़ुदरत को और उसके क़ुदरती नियमों को बार बार रिपीट करते रहना है ताकि वे हमारे दिल में जम जाएं और जो हमसे सुनें, उनके दिल में भी नक़्श हो जाएं।
जैसा नक़्शा (blueprint) होगा, आपकी ज़िन्दगी वैसी ही होगी।
इसलिए आपके अंदर एक रब की जो पहचान दर्ज हैं उस पर फ़ोकस करें, उसमें मुहब्बत, माफ़ी, मदद और शुक्र जैसे अच्छे गुणों को डेवलप करें। आपका नक़्श अच्छा बनेगा।
आपके अपने अंदर एक किताब पोशीदा है, जिसे किताबे मक्नून कहेंगे। आप उस किताब को अच्छा लिखें। आप आज भी उसे पढ़ सकते हैं, जिसे आप कल पढ़ेंगे।
وَكُلَّ إِنسَانٍ أَلْزَمْنَاهُ طَائِرَهُ فِي عُنُقِهِ ۖ وَنُخْرِجُ لَهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ كِتَابًا يَلْقَاهُ مَنشُورًا ﴿١٣اقْرَأْ كِتَابَكَ كَفَىٰ بِنَفْسِكَ الْيَوْمَ عَلَيْكَ حَسِيبًا ﴿١٤
हमने प्रत्येक मनुष्य का शकुन-अपशकुन उसकी अपनी गरदन से बाँध दिया है और क़ियामत के दिन हम उसके लिए एक किताब निकालेंगे, जिसको वह खुला हुआ पाएगा। पढ़ ले अपनी किताब (कर्मपत्र)! आज तू स्वयं ही अपना हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।"
-पवित्र क़ुरआन 17:13-14

Tuesday, February 5, 2019

सद्-गुण अपनाएं, ज़्यादा धन कमाएं Dr. Anwer Jamal's Powerful Technique

50,000 रूपये महीना कमाने का तरीक़ा, आज़माया हुआ
मैं आपको यह ख़ास तरीक़ा एक सच्चे वाक़ये के ज़रिए सिखाऊंगा।
क्या आप तैयार हैं?
ओके, आप तैयार हैं तो ठीक है।
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यह तरीक़ा 'शुक्र' करने और शिकायत से बचने पर based है।
दो साल  पहले यू. पी. में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान मुझे कई लोगों ने मुझसे पूछे बिना राजनैतिक ग्रुप्स में जोड़ लिया। ये वे लोग थे, जो मेरे साथ किसी ग्रुप में थे या उनके पास मेरा नंबर था। मैं राजनैतिक ग्रुप में नहीं रहता। उस पर यह कि हर ग्रुप में तीन सौ मैसेज रोज़ आते थे।
मैंने उनसे शिकायत नहीं की बल्कि मैंने उनकी मेहनत सराहना की और उसमें बना रहा।
🌹🍏🌹
मैं सोचने लगा कि मैं इस opportunity का कैसे फ़ायदा उठा सकता हूँ?
मुझे एक नौजवान लड़के का ध्यान आया। जिसकी job छूट गई थी और उस पर अपने परिवार की ज़िम्मेदारियां थीं। वह एक कंपनी के कुछ प्रोडक्ट्स बेच रहा था लेकिन सेल बहुत कम थी। चार पाँच हज़ार रूपये महीने की सेल थी। यह उसके गुज़ारे के लिए काफ़ी न थी।
🌹🍏🌹
एक दिन मैंने उन सभी राजनैतिक ग्रुप्स के सभी  एडमिन को छोड़कर बाक़ी सब लोगों के नंबर सेव कर लिए और फिर रात में तीन चार बजे बैठकर चार व्हाट्स एप ग्रुप बना दिए। हरेक ग्रुप में 256 मेंबर्स थे।
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मैंने उस नौजवान व्यापारी को उन सभी ग्रुप का एडमिन बना दिया और मैंने वे सभी राजनैतिक ग्रुप छोड़ दिए। मैंने अपने बनाए वे ग्रुप भी छोड़ दिए। वह नौजवान उन ग्रूप्स में अपना माल सेल करने लगा। उसे कुछ आर्डर मिले। उसे कुछ दूसरे ग्रुप वालों ने भी जोड़ लिया। उसके पास सौ से ज़्यादा ग्रुप हो गए। फिर उसने फ़ेसबुक पर पेज बनाकर अपना माल बेचना शुरू कर दिया।
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सब्र के साथ एक साल की मेहनत के बाद वह व्हाट्स एप और फ़ेसबुक के ज़रिए सेल करके 50,000/- रूपये महीना कमाने लगा और यह इन्कम लगातार बढ़ रही है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
सब्र और शुक्र से आप अपने मक़सद में कामयाबी पा सकते हैं। अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में सब्र और शुक्र से कामयाबी और फ़लाह पाने का पूरा तरीक़ा बताया है। सो पवित्र क़ुरआन के तरीक़े पर जो भी चलेगा, बेरोज़गार और ग़रीब न रहेगा। वह सफल और अमीर बनेगा।
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ख़ास बात:
1. शुक्र का मतलब है क़द्र करना। अब तक आम लोग इसे दीनी बात समझकर रस्मी तौर पर अल्हम्दुलिल्लाह और अल्लाह का शुक्र है, कहते हैं। वे अल्लाह की तरफ़ से मिले हुए लोगों, मौक़ों और साधनों की क़द्र नहीं करते। आप इन्हें पहचानें और इनकी क़द्र करें।
2. सब्र का मतलब है डटे रहना। जब आप एक नया काम शुरू करते हैं तो उसकी आदत नहीं होती, उसका तजुर्बा नहीं होता और जिस काम की आदत नहीं होती, उसमें मुश्किलें बहुत आती हैं। हरेक काम के शुरू में यही होता है। इसकी वजह से बहुत लोग वह काम छोड़ देते हैं। इस तरीक़े से कामयाबी नहीं मिलती। जो लोग लगातार डटे रहते हैं। उन्हें उस काम की आदत पड़ जाती है। उन्हें कुछ तजुर्बा भी हो जाता है। इसके बाद उन्हें वह काम आसान लगने लगता है।
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जो भी आदमी दुनिया में कहीं अपनी मेहनत का सुफल पा रहा है, सब्र और शुक्र की वजह से ही पा रहा है। चाहे उसे पता न हो लेकिन वह इस्लाम पर चल रहा होता है। सब्र और शुक्र सफलता का क़ुदरती क़ानून है। लोगों ने इसे सिर्फ़ दीन और मज़हब तक सीमित समझ लिया है। हक़ीक़त में यह क़ुदरती क़ानून ज़िन्दगी को जीने लायक़ बनाता है।
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अब फिर लोकसभा चुनाव 2019 आ रहे हैं।
मैंने सोचा कि मैं यह कामयाब तजुर्बा इस मुल्क के सब धर्म के सारे नौजवानों को बता दूँ ताकि आप भी सोचें कि आप इस शुभ अवसर से शुभ लाभ कैसे उठा सकते हैं?

Saturday, February 2, 2019

Peer Pressure: सबसे बड़ी जेल से मुक्ति का तरीक़ा क्या है? Dr. Anwer Jamal


कह दो, "हर एक अपने ढब पर काम कर रहा है, तो अब तुम्हारा रब ही भली-भाँति जानता है कि कौन अधिक सीधे मार्ग पर है।"
पवित्र क़ुरआन 17:84

सोसायटी सराहना (स्तुति) और मज़म्मत (निंदा) के ज़रिए लोगों के नज़रिए को कन्ट्रोल करती है।
मेरे साथ हिन्दु, मुस्लिम, आर्य समाजी और नास्तिक लोग इंटरनेट पर लिखित रूप में बद्तमीज़ी कर चुके हैं। यहां तक कि कुछ दावती साथी भी लेकिन मैं उनकी निंदा, स्तुति और मान्यता की परवाह किए बिना वही कहता रहा, जिसे मैंने अपनी तहक़ीक़ में और प्रैक्टिकल लाईफ़ में हक़ और फ़लाहबख़्श पाया।
इस्लाम के मुबल्लिग़ दाई के लिए सबसे ज़रूरी गुण यह  है कि
'उसकी नज़र में सराहना (स्तुति) और मज़म्मत (निंदा) बराबर हो जाए।'
इसी के बाद वह अपने साथियों के और अपनी  सोसायटी के दबाव से आज़ाद होकर उस बात का प्रचार कर सकता है, जिसे वह दिल से सच मानता है।
मुझे यह तालीम इस्लामी शरीअत के पाबंद सूफियों से पहुंची है। मैंने इसकी प्रैक्टिस की तो मुझे इससे फ़ायदा हुआ। मुझे यह पता चला कि हमारे साथी और हमारे समाज के लोग Peer Pressure से लोगों को ग़ुलाम बनाए रखते हैं।
आप उनकी पसंद की बात करते हैं तो वे आपकी तारीफ़ करते हैं। इससे आप उनकी पसंद की बातें और ज़्यादा करते और आप उन्हें वे बातें नहीं बताते, जो उन्हें नापसंद हैं।
जब आप उनकी पसंद के ख़िलाफ़ बोलते हैं तो वे आपकी निंदा करते हैं, आपको बहका हुआ और पागल कहने लगते हैं। वे आपकी मज़ाक़ उड़ाते हैं। वे समाज में आपकी छवि बिगाड़ते हैं और आपकी इज़्ज़त पर हमले करते हैं ताकि आप डर जाएं और अपनी बात कहना बंद कर दें।
जो लोग अपने साथियों से और अपने समाज में अपनी सराहना चाहते हैं और उनके बीच अपनी मान्यता बनाए रखना चाहते हैं, वे लोगों के बुरे बर्ताव से डर कर ऐसी बातें नहीं कहते, जिन्हें वे अपनी आत्मा में सच मानते हैं। नतीजा यह होता है कि
वे समाज में प्रचलित नज़रियों और रस्मों के ग़ुलाम बदस्तूर बने रहते हैं और इसी हाल में वे मर जाते हैं।
आप ज़हनी (मानसिक) गुलामी से तभी मुक्त हो सकते हैं जबकि आपकी नज़र में सराहना (स्तुति) और मज़म्मत (निंदा) बराबर हो जाए।
जो नौजवान लड़के नए नए बैनर तले दावती काम कर रहे हैं, वे दूसरों को दिल खोलकर अपने मैसेज पर ग़ौर करने और साथ मिलकर काम करने की दावत देते हैं लेकिन दूसरे मुस्लिमों के बारे में ख़ुद उनकी अपनी राय यही होती है कि हम बढ़िया तरीक़े पर हैं। अल्लाह हमें ईनाम देगा और बाक़ी मुस्लिम, जो दावते दीन का काम नहीं करते, अल्लाह इन्हें मार देगा या सख़्त अज़ाब देगा। ऐसे लोगों को सच्चे सूफियों की दावती तरबियती हिकमत और उनके अच्छे अख़्लाक़ को ज़रूर देखना चाहिए।
आज नई नस्ल के लिए सच्चा सूफ़ी देखना इतना मुश्किल है, जितना उनके बिना मिलावट का असली दूध पीना।  जिन लोगों ने सच्चे सूफ़ी की कल्याणकारी सोहबत नहीं पाई, वे तसव्वुफ़ का मतलब आम तौर से क़ब्र परस्ती, क़व्वाली और तावीज़ गंडे करना समझते हैं। और वे तसव्वुफ़ के नाम से ही बिदकते हैं।
ऐसे लोग, ग़म, डर, लालच और शक से आज़ाद नहीं हो पाते। वे ज़िन्दगी भर नहीं जान पाते कि
उनके साथी, उनके पेशवा और ख़ुद उनका अपना नफ़्स उनका 'इलाह' बना हुआ है और वे उसके बंदे और ग़ुलाम बने हुए हैं।
मुझे यह तालीम सूफियों से पहुंची है कि 'ला इलाहा इल्-लल्लाह' के ज़िक्र से इन बातिल माबूदों की नफ़ी (इन्कार) भी मतलूब है, जो हमारे साथियों और हमारे समाज के पेशवाओं के रूप में हमें घेरे रहते हैं और वे हमें सच कहने से रोकते हैं।
हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की हिकमत और उनके रूहानी रहस्यों को हम तक पहुंचाने में सूफियों का बड़ा और बुनियादी रोल है। सूफ़ी आलिमों ने अपने दिल में आने वाले वसवसों और जज़्बों को बहुत बारीकी से पहचानने में अनोखी महारत हासिल की है।
इल्म रखने वाले लोग यह बात जानते हैं कि हर फ़न (आर्ट) की तरह तसव्वुफ़ में भी नाक़िस और कम फ़हम के लोग शामिल हुए, उनमें से जिनकी की इस्लाह हो गई, वे कामिल हो गए और कुछ रास्ते में ही रह गए।
इनमें से कुछ लोगों का मक़सद रब पाने से ज़्यादा रोटी और इज़्ज़त पाना था। कुछ दूसरे लोगों की चाहतें कुछ और थीं। वे मुज्तहिद इमाम सूफियों से अलग रास्ते पर चल पड़े।
तसव्वुफ़ एक फ़न है, जिसकी प्रैक्टिस इस्लामी शरीअत के साथ की जा सकती है।
इस्लामी अक़ीदों और मान्यताओं के प्रचार में भी तसव्वुफ़ से मदद मिलती है।
एक बड़ी तादाद ऐसी है, जो ख़ुद को इमाम अबू हनीफा र., शाह वलीउल्लाह र., मौलाना थानवी र., आला हज़रत र., और हुसैन अहमद मदनी र. जैसे सूफ़ी आलिमों का फ़ोलोवर ज़ाहिर करते और फिर भी वे अपने मस्लक से अलग राय रखने वालों की मज़ाक उड़ाते हैं और उनसे बद-अख़्लाक़ी से पेश आते हैं। वे यह नहीं देख पाते कि ऐसा करके उनकी निस्बत इन बुज़र्गों से तो क्या क़ायम होगी, नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से भी बाक़ी बचेगी या नहीं?
حضور نبی اکرم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم نے بزرگوں کی عزت و تکریم کی تلقین فرمائی اور بزرگوں کا یہ حق قرار دیا کہ کم عمر اپنے سے بڑی عمر کے لوگوں کا احترام کریں اور ان کے مرتبے کا خیال رکھیں۔ آپ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم نے فرمایا :

ليس منا من لم يرحم صغيرنا ويؤقر کبيرنا.
’’وہ ہم میں سے نہیں جو ہمارے چھوٹوں پر رحم نہ کرے اور ہمارے بڑوں کی عزت نہ کرے۔‘‘
1. ترمذي، السنن، کتاب البر والصلة، باب ما جاء في رحمة الصبيان، 4 : 321، 322، رقم : 1919، 1921 2. ابويعلي، المسند، 7 : 238، رقم : 4242 3. ربيع، المسند، 1 : 231، رقم : 582
Peer Pressure का बेहतरीन इलाज
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तरीक़ा पीयर प्रेशर का बेहतरीन इलाज है। सीरते नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक बहुत मशहूर वाक़िआ है कि जब हज़रत मुहम्मद का कल्याणकारी सन्देश तेज़ी से फैलने लगा तो उनके विरोधी पुरोहित और लोगों को अपना ग़ुलाम बनाने वाले सरदार दमन और हिंसा करने लगे। पैग़म्बर मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तब भी अपने कल्याणकारी काम करते रहे।  उनके विरोधी खिन्न हो कर उनके चाचा हज़रत अबू तालिब के पास पहुंचे और औरत, दौलत और बादशाही का का लालच देते हुए डराया कि या तो वे हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने दीन के प्रचार से रोकें या फिर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को संरक्षण देना बंद कर दें वर्ना सबको बुरा अंजाम भुगतना होगा। हज़रत अबू तालिब ने नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने हालात समझाने की कोशिश की लेकिन नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे साफ़ साफ़ कह दिया कि
“अगर मेरे एक हाथ में चाँद और दूसरे हाथ में सूरज भी रख दिया जाए तो भी में अल्लाह के सन्देश को फैलाने से खुद को रोक नहीं सकता. अल्लाह इस काम को पूरा करवायेगा या मैं खुद इस पर निसार (क़ुर्बान) हो जाऊँगा.”
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ऐसे बहुत से वाक़िआत सीरत की किताबों में भरे हुए हैं। इन सबको बार बार पढ़ने से आपको वह हिदायत और हिम्मत मिलती है, जो आपको समाज के झूठे ख़ुदाओं और बातिल माबूदों से मुक्त करती है।
यह लेख मैंने मुस्लिमों को peer pressure के बारे में बताने के लिए लिखा है लेकिन इससे दूसरे धर्म के लोग भी फ़ायदा उठा सकते हैं। वे भी देख सकते हैं कि उनके संप्रदाय के पुरोहित और सामाजिक संगठनों के मुखिया कैसे उनकी सोच के पहरेदार और ठेकेदार बने हुए हैं!
आप अपना कल्याण चाहते हैं तो उनकी निंदा, स्तुति और मान्यता की परवाह न करें। आप उनके दबाव में न आएं। आप लालच और डर से निकलें।
आप वही बात मानें, जो सच हो और आपके लिए इस ज़िन्दगी में और परलोक में कल्याणकारी हो।
आप सबसे वही बात कहें जो आपके ज्ञान और तजुर्बे में सच हो और सबके लिए कल्याणकारी हो क्योंकि यही सच्चे दीन धर्म की बात है।
जो लोग अपने आकाओं के हुक्म पर ग़ुन्डई करते हैं और लोगों को सच्ची और कल्याकारी बात कहने से रोकते हैं, वे भी बार बार आपकी बात सुनेंगे तो उनमें भी जागरूकता आती चली जाएगी कि उनके आक़ा उन्हें कैसे अपना मानसिक दास बनाए हुए हैं?


Thursday, January 31, 2019

Self Talk: क्या आप हर सवाल का जवाब पाने का आत्मिक-वैज्ञानिक तरीक़ा जानते हैं? Dr. Anwer Jamal

क्या ईश्वर है?
फ़ेसबुक पर प्रशान्त कुमार फ़्रेन्ड बन गए। वह यह सवाल पूछते थे कि 'क्या ईश्वर है?'
'हमने उन्हें मैसेंजर में अपनी एक ब्लाग पोस्ट का यह हिस्सा भेज दिया:
ईश्वर अल्लाह के वुजूद का सुबूत इंसान की चेतना है।
इंसान ख़ुद से ग़ाफ़िल है।
वह ख़ुद में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
वह ज़मीन आसमान की चीज़ों में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
पवित्र क़ुरआन जगह जगह अपने आप में और ज़मीनो आसमान में ग़ौरो फ़िक्र की हिदायत करता है।
हरेक नास्तिक अपनी चेतना पर ध्यान दे और बताए कि यह क्या है?
जब वह अपनी चेतना के बारे में बताना शुरू करेगा तो वह ख़ुद ईश्वर और आस्तिकता की तरफ़ क़दम बढ़ाना शुरू कर देगा।
ख़ुशी की बात यह है कि क्वांटम फिजिक्स के साइंटिस्ट्स अब चेतना (Consciousness) पर रिसर्च करके जान रहे हैं कि यह कैसे काम करती है?
जब चेतना है तो कोई उस चेतना का स्रोत (Source) भी है। जब नास्तिक लोग चेतना को मानते हैं तो उसके सोर्स के बारे में बताएं और चेतना का इन्कार वे कर नहीं सकते।
क्या इंसान अपनी चेतना का, अपने वुजूद का इन्कार कर सकता है?
जब इंसान अपने वुजूद को मानता है तो अपने सोर्स को तलाश करे। जब इंसान है तो उसका सोर्स भी है। कोई इंसान उस सोर्स को जान और समझ न पाए, यह मुमकिन है। तब वह आदमी अपनी बेबसी और आजिज़ी का इक़रार करें कि मैं अपने वुजूद के सोर्स को जान और समझ नहीं पाया। सब नास्तिक कहलाने वालों को यही करना चाहिए।'
पूरी पोस्ट इस लिंक पर पढ़ें:
https://dawahpsychology.blogspot.com/2019/01/india-dr-anwer-jamal.html?m=1

बहस करने वाले ज़िद्दी लोगों के माइन्ड में बदलाव की शुरुआत कैसे करें?
Prashant Kumar मुझसे मैसेंजर में बात कर रहे थे और यह चाहते थे कि मैं उन्हें ईश्वर के होने के सुबूत दूं।
💓😊💓
वह सुबूत मैंने दिए नहीं।
⭐🌹⭐
मैं ऐसा मौक़ा नहीं देता कि मेरा विरोधी मेरा वक़्त बेकार करे।
मुझे मालूम है कि मैं जो भी दलील दूंगा, वह उसका इन्कार करता रहेगा और मेरा वक़्त बेकार करेगा क्योंकि उसके पास पहले से एक नज़रिया है, जिससे वह दलीलों को जज करता है। उसका माइन्ड प्रोग्राम्ड है। 
मुझे मालूम है कि वह पहले भी मुस्लिमों से इस विषय पर डिबेट कर चुका होगा और वह इस विषय में एक दर्जे में एक्सपर्ट हो चुका होगा।
💞💕💞
सोशल वेबसाइट्स पर बहस करने वाले जब कोई सवाल करते हैं तो अक्सर वे लोग कुछ जानने की इच्छा नहीं रखते बल्कि वे मुस्लिम मुबल्लिग़ को हराने की नीयत रखते हैं।
वे अपनी नज़र में एक वैचारिक युद्ध लड़ रहे हैं।
जब ऐसा कोई योद्धा मुझसे पहले लड़ने आता था तो मैं नया था। मैं उसकी नीयत को नहीं पहचानता था। मैं उसे आख़िरत में जहन्नम की आग से बचाने के लिए तड़पकर सोचता और लिखता था।
मैं उसे प्यार और दलील से समझाते हुए एक दो साल लगा देता था और कुछ लोगों के साथ सात साल भी लग गए। कुछ के नज़रिए में बदलाव आया और कुछ आज भी पहले दिन जैसे ही विरोधी और हठी बने हुए हैं।
🌿⭐🌿
वक़्त और तजुर्बात ने मुझे यह सिखाया है कि जो ज्ञान चाहे, उसे तुरंत ज्ञान दो और और जो वैचारिक युद्ध करने आए सबसे पहले उसके कवच, कुंडल और हथियार रखवा लो। अब मैं उसे नि:शस्त्र करना ज़रूरी समझता हूं।
इसके लिए मैं उसे ऐसे mental field में ले जाता हूं, जिसे वह नहीं जानता। इंसान ख़ुद को और अपने मन की शक्तियों को नहीं जानता।
अब वह एक नौसिखिया हो जाता है। उसके पास दलील देने के लिए कुछ बाक़ी नहीं रहता। अब वह सिर्फ़ सुनता है और वह एक नए ज्ञान के लालच में मुझे छोड़कर भाग भी नहीं पाता।
वह मेरे दिए सब्जेक्ट को मुझसे छिपकर इन्टरनेट पर चोरी चोरी पढ़ता है
और यहीं से उसके नज़रिए में एक बदलाव की शुरुआत हो जाती है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
🧠
मैंने प्रशान्त कुमार जी से कहा कि मैं उन्हें ईश्वर के होने के बारे में कुछ सिद्ध नहीं करूंगा बल्कि उन्हें एक तरीक़ा बताऊंगा, जिससे जवाब उसके अंदर से ख़ुद आएगा।
💓💞💓
मैंने उन्हें दो बुक्स पढ़ने के लिए कहा कि आप पहले ये पढ़ लें और फिर मैं आपको वह तरीक़ा बता दूंगा।
जिससे आपका दिल आपको ख़ुद बता देगा कि ईश्वर है या नहीं!
दोनों बुक्स westerners की लिखी हुई हैं और ईश्वर के होने न होने की दलीलें उसमें नहीं हैं। उनमें अपने मन से अपने सवालों के जवाब लेने के तरीक़े लिखे हुए हैं।
📗📗
आप प्रशान्त कुमार जी से हुई मैसेंजर चैट देखेंगे तो आप उन दोनों किताबों के नाम देख सकते हैं।
😊😊😊














हर सवाल का जवाब पाने का आत्मिक-वैज्ञानिक तरीक़ा:
यह तरीक़ा बहुत आसान और बहुत मुश्किल है। यह आसान इसलिए है कि इसमें आपको कुछ करना नहीं पड़ता और यह मुश्किल इसलिए है कि आपको जिस विषय में सवाल का जवाब अपने अंदर से लेना है तो पहले आपको उस विषय में अपनी पहले से बनी हुई मान्यता को न्यूट्रल करना होगा, पक्षपात से बचना होगा वर्ना अंदर से असली जवाब नहीं आएगा बल्कि रट्टू तोते की तरह मन को बाहर से जो याद कराया गया है, वही दोहरा देगा। हर वक़्त मन के विचारों और उसमें उठने वाली भावनाओं पर नज़र रखनी है और पहले से बनी मान्यताओं के असर से अपने मन में उठने वाले विचारों और भावनाओं को हटाते रहना है। बस यही काम सबसे मुश्किल काम है।
किसी नास्तिक को को पूछना है कि ईश्वर है या नहीं तो वह अपने मन में यह जान सकता है क्योंकि मन उसके भी पास है।
रोज़ाना रात को सोते वक़्त बिल्कुल आख़िर में वह अपने मन में यह नीयत कर ले कि जो बात सत्य है, वही मेरे मन में जम आए। अगर ईश्वर है तो यह बात मेरे मन में जम जाए और मैं ख़ुद ही ईश्वर के सबसे सीधे रास्ते पर आ जाऊँ। अगर ईश्वर नहीं है तो यही बात मेरे मन में जम जाए। इसी विचार को लेकर सोना है। सुबह को इसी विचार को लेकर जागना है। इसके पक्ष या विपक्ष, समर्थन या विरोध में तर्क से कुछ नहीं सोचना है। पक्ष या विपक्ष में जो भी तर्क आए, वह उसे हटाता जाए और ख़ुद को केवल निष्पक्ष रखें, न इधर और न उधर।
दूसरा मुश्किल काम सब्र करना है। हर आदमी चाहता है कि मुझे जल्दी से पता चल जाए कि ईश्वर है या ईश्वर नहीं है। अगर आपको जल्दी है तो यह तरीक़ा आपके लिए नहीं है। आपके लिए पहले से बहुत जवाब तैयार हैं। आप उनमें से मनचाहा जवाब चुन सकते हैं लेकिन आप यहां भी अपने मन का ही इस्तेमाल करते हैं।
Self Talk के तरीक़े में आपको जवाब आने तक सब्र करना होगा। हरेक को जवाब आने में अलग वक़्त लगता है।
किसी को कम और किसी को ज़्यादा। हाँ, आपके सवाल का जवाब ज़रूर आता है।
जब आप सत्य के लिए ख़ुद को खोलते हैं और जो भी सत्य है, उसे क़ुबूल करने के लिए ख़ुद को तैयार करते हैं तो जब भी आप पूरी तरह तैयार हो जाते हैं तो सत्य आपके अंदर से ही आप पर ज़ाहिर हो जाता है। आपको तैयार होने में जितना समय लगेगा, आपको जवाब मिलने मिलने में उतना ही वक़्त लगेगा।
और यह जवाब बाहर से तर्क और शब्द में नहीं आएगा बल्कि आपका अवचेतन मन आपकी डिमांड के मुताबिक़ आपको उसी हाल में ढाल देगा। आपका मन आपको ईश्वर के सबसे सीधे रास्ते पर ख़ुद खड़ा कर देगा।
जब आप वही बन चुके होंगे जोकि सत्य को पा लेने वाला बन जाता है तब आप ख़ुद जान लेंगे कि यह मेरे सवाल का जवाब है।
इस तरीक़े से आप हरेक सवाल का जवाब जान सकते हैं। वैज्ञानिक भी अपने सवालों के जवाब खोजने में इस तरीक़े से काम लेते हैं।

Wednesday, January 23, 2019

जानिए India में नास्तिक कैसे करते हैं धार्मिक क़ानून का पालन? Dr. Anwer Jamal

*Dawah Dialogue*
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'सत्यार्थ प्रकाश:समीक्षा की समीक्षा', यह किताब दावती दुनिया की बहुत मशहूर किताब है। सतीश चन्द गुप्ता जी इसके लेखक हैं। उनकी इस किताब को बहुत लोग इंटरनेट पर इस लिंक पर पढ़ते हैं:
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Satish Gupta जी ने यह लेख फ़ेसबुक पर लिखा है:
🙏चिंतन और चिंता🙏
जीवन का बड़ा सवाल यह है कि हम क्यों है ? हमें क्यों होना पड़ा है ? हमारे होने का कौन सा प्रयोजन है ? कौन सा अर्थ है ?
अगर हमें यह भी पता न चल पाए कि कौन सा प्रयोजन है, कौन सा अर्थ है, तो हम जीएंगे तो जरूर, लेकिन जीवन एक बोझ होगा। घटनाएं घटेंगी और समय व्यतीत हो जाएगा, जन्म से लेकर मृत्यु तक हम यात्रा पूरी कर लेंगे। लेकिन किसी सार्थकता को, किसी कृतार्थता को, किसी धन्यता को अनुभव नहीं कर पाएंगे।
हम करीब-करीब जीवन से अनजान और अपरिचित ही जीवन जीते हैं। निश्चित ही ऐसा जीवन कोई आनंद, कोई शांति, कोई सुख न दे पाए तो अस्वाभाविक नहीं होगा। 
यही स्वाभाविक होगा कि जीवन एक दुख और चिंता, परेशानी और पीड़ा बन जाए। वैसा ही हमारा जीवन है।
बहुत थोड़े से लोग ही जीवन की सार्थकता को जान पाते हैं। हरेक मनुष्य के लिए जीवन को जानने के लिए सर्वप्रथम आवश्यक होगा कि उनके भीतर कोई प्यास हो, कोई तलब हो, कोई तलाश हो।
......✍🌏
हमने इस लेख पर जवाब देते हुए यह कमेंट किया है:
'हम क्यों हैं?'
यह जीवन क्यों हैं?
हम कैसे हैं?
यह जीवन कैसे है?
एक प्रयोजन तो प्रकृति में बिल्कुल स्पष्ट है।
वह यह है कि सारे जीव एक दूसरे को खाकर जीवित हैं और खाने के लिए जीवित है।
आप दही के सूक्ष्म बैक्टीरिया खा जाएं। दूसरी तरह के सूक्ष्म बैक्टीरिया आपको खा जाएंगे। आपको, खरबों सूक्ष्म बैक्टीरिया इस समय भी आपके शरीर के अंदर घुस कर खा रहे हैं।
हर एक जीव दूसरे जीव को खा रहा है। इस खाने के अमल को कोई भी रोक नहीं सकता और न बच सकता है। यह प्राकृतिक है।
आप देखेंगे कि यह दुनिया ज़मीन से आसमान तक एक विशाल भोजशाला (Dining Hall) है और सब खा रहे हैं।
यह एक तथ्य है।
दूसरी बात यह है कि
इंसान घोड़ा पालता है कि जब मेरी लड़ाई हो तो वह मेरे काम आए। घोड़े की वफ़ादारी की बात यह है कि वह अपने पालने वाले के लिए लड़ाई में जाता है और अपनी जान दे देता है। दूसरे की लड़ाई में ख़ुद मर जाता है।
इंसान को भी उसका पालने वाला इसीलिए पालता है कि वह उसके लिए लड़े और अपनी जान उसके लिए दे।
इंसान ऐसा करता है तो उसके जीवन का उद्देश्य पूरा हो जाता है।
खाओ और लड़ो।
जब तक बच सको, बचो।
जंगल और शहर, हर जगह जीवन ऐसे ही चल रहा है। हर जगह लड़ाई चल रही है।
लड़ने के लिए बाहर कोई न हो तो अपने नफ़्स से ही लड़ो। उसकी बुरी ख़्वाहिशों को पहचान कर उन्हें ख़त्म करते रहो। यह काम हर साँस करते रहो।
दुनिया के सब धर्म ग्रंथों में यह एक बात ज़रूर लिखी है कि
खाओ और अपना विकास करो।
अपनी सुरक्षा करनी है तो लड़ो।
एक वक़्त आएगा कि कोई दूसरा आपको बाहर से या अंदर से पूरा खा जाएगा। तब आपने जितना आत्म विकास कर लिया होगा, वह आपका अचीवमेंट है।
वह आपके साथ जाएगा।
यह जीवन आत्म विकास के लिए है। हरेक जीव का कुछ न कुछ विकास ज़रूर हो रहा है।
इंसान को अमरता की खोज है। कुछ लोग आत्म विकास के इस चक्र से ही मुक्ति चाहते हैं।
अमरता और मुक्ति दोनों उस 'चेतन तत्व' में हैं, जिससे हरेक जीव का शरीर साँस लेता है और विकास करता है। मनुष्य अपनी 'चेतना' Consciousness पर ध्यान दे तो उसे उसका मक़सद हासिल हो सकता है।
*Master Key 'ख़ुदी' है।*
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यहाँ अपने ब्लाग पर मैं यह और बताना ज़रूरी समझता हूँ कि ख़ुदी यानि चेतना को 'मैं' नाम से ज़ाहिर किया जाता है। ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने बहुत अच्छी तरह समझाया है।
'यीशु ने उन से कहा, जीवन की रोटी 'मैं हूं''
यूहन्ना 6:35
⭐💚🌟
ईश्वर अल्लाह के वुजूद का सुबूत इंसान की चेतना है
इंसान ख़ुद से ग़ाफ़िल है।
वह ख़ुद में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
वह ज़मीन आसमान की चीज़ों में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
पवित्र क़ुरआन जगह जगह अपने आप में और ज़मीनो आसमान में ग़ौरो फ़िक्र की हिदायत करता है।
हरेक नास्तिक अपनी चेतना पर ध्यान दे और बताए कि यह क्या है?
जब वह अपनी चेतना के बारे में बताना शुरू करेगा तो वह ख़ुद ईश्वर और आस्तिकता की तरफ़ क़दम बढ़ाना शुरू कर देगा।
ख़ुशी की बात यह है कि क्वांटम फिजिक्स के साइंटिस्ट्स अब चेतना (Consciousness) पर रिसर्च करके जान रहे हैं कि यह कैसे काम करती है?
जब चेतना है तो कोई उस चेतना का स्रोत (Source) भी है। जब नास्तिक लोग चेतना को मानते हैं तो उसके सोर्स के बारे में बताएं और चेतना का इन्कार वे कर नहीं सकते।
क्या इंसान अपनी चेतना का, अपने वुजूद का इन्कार कर सकता है?
जब इंसान अपने वुजूद को मानता है तो अपने सोर्स को तलाश करे। जब इंसान है तो उसका सोर्स भी है। कोई इंसान उस सोर्स को जान और समझ न पाए, यह मुमकिन है। तब वह आदमी अपनी बेबसी और आजिज़ी का इक़रार करें कि मैं अपने वुजूद के सोर्स को जान और समझ नहीं पाया। सब नास्तिक कहलाने वालों को यही करना चाहिए।
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सतीश गुप्ता जी का फ़ेसबुक लिंक यह है: 
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Suhail Narashans Bhai, Rampur ने हमारे कमेंट को अपनी FB Wall पर एक पोस्ट के रूप में पब्लिश कर दिया। उस पर कुछ नास्तिक आ गए। हमने उनसे एक ऐसी बात कह दी जो उन्होंने पहले कभी न सुनी थी।
Prem Kumar ji, मैं फ़ुरसत में आपके भ्रम को दूर करूंगा कि आप नास्तिक हैं।
हमने अपनी अनोखी बात के हक़ में एक अनोखी दलील दी, जिसे उनके सामने एक इमेज की शक्ल में पेश किया। आप उस इमेज को देखें:
हमारे कमेंट पर 100 से ज़्यादा कमेंट्स हो गए हैं और बहस अभी जारी है।
सुहैल नराशंस भाई की पोस्ट पर नास्तिकों से इल्मी बहस को आप इस लिंक पर देख सकते हैं:

Sunday, January 20, 2019

कैसे करें Dawah Work in Cyber World? Dr. Anwer Jamal

*Dawah Work in Cyber World*
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इस काम में जनाब उमर कैरानवी साहिब एक उम्दा नज़ीर हैं।
जो लोग इंटरनेट पर दावती काम करते हैं, उन्हें उमर साहिब से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा,
जैसा कि हमें उनसे सीखने को मिला है।
देखिए इस सब्जेक्ट पर fb पर हमारी ताज़ा पोस्ट:
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'कॉमेंट ऐसा करें, जो पढ़ने वालों को सोचने पर मजबूर कर दे।'
हिन्दी ब्लागिंग के महानतम गुरूओं में से एक मोहतरम जनाब Muhammad-Umar Kairanvi sb ने हिन्दी ब्लागिंग को यह अनोखा विचार दिया है। मुझे इस विचार से 'कल्याणकारी शिक्षा' के प्रचार में बहुत मदद मिली।
मैं Editor Ayaz Ahmad भाई का शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होंने हमें हिन्दी में इस्लामी ब्लागिंग के जनक (Father) से मिलवाया।
दरहक़ीक़त आपका कॉमेंट भी एक विचार है और आप उसे किसी पोस्ट पर ऐसे सजा सकते हैं कि कुछ लोग उसका समर्थन करें और कुछ लोग उसके विरोध में खड़े हो जाएं।
कुछ को वह मोहक लगे और कुछ को वह बुरा लगे। पक्ष में या चाहे विपक्ष में, लेकिन जब हरेक आपके विचार पर रेस्पान्स देता है तब आपका कॉमेंट देने का मक़सद पूरा हो जाता है। जो लोग आपके कमेंट पर उत्तेजित होते हैं, आप उनमें से एक दो लोगों को कमेंट में मेंशन कर सकते हैं। ऐसे लोगों की पोस्ट पर कमेंट कर सकते हैं।
वे आपके कॉमेंट पर उत्तेजित होकर आपको ग़लत शब्द कह सकते हैं लेकिन उनकी प्रतिक्रिया पर आपकी प्रतिक्रिया हमेशा सधी हुई और सकारात्मक होनी चाहिए। उनका अपने मन पर क़ाबू नहीं है। आपका अपने मन पर काबू होना ज़रूरी है।
जब आप ऐसा कर लेते हैं, तब आप तय करते हैं कि दूसरे क्या सोचेंगे?
अपने कॉमेंट के ज़रिए आप दूसरों को अपनी पसंद के सब्जेक्ट पर सोचने के लिए आमादा कर सकते.
#islahefacebook
आप लोगों को शान्ति और कल्याण के विषय पर सोचने के लिए बाध्य कर सकते हैं।
जो आपसे सहमत है, वह आपका विचार ग्रहण कर चुका है और जो आपसे लड़ रहा है, वह भी आप जैसा ही बन जाएगा क्योंकि
यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है कि इंसान जिससे लड़ता है, उसी जैसा बन जाता है।
मुझे अच्छा लगता है, जब कुछ मेहरबान विद्वान मुझसे सहमत होते हैं और मुझे तब भी अच्छा लगता है जब कुछ भाई मुझसे लड़ते हैं।
आज यह रहस्य जनहित में इसलिए जारी किया है ताकि हमारे दोस्त जनाब कैरानवी साहिब के Blogs से और उनके कमेंट्स से फ़ायदा उठाएं और जो लोग आज असहमत हैं, उनकी ध्यान ऊर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल करना सीखें।
अपने विरोधियों से भी शान्ति के मिशन में काम लें।
यह लिंक आपको उमर साहिब के ब्लाग की राह दिखाएगा।

सच्चे धर्म को कैसे पहचानें? Dr. Anwer Jamal

आप सच्चे धर्म को पहचानना चाहते हैं तो आप उसे नाम से नहीं पहचान सकते। आप सच्चे धर्म को इस बात से पहचान सकते हैं कि उसके मानने से ग़रीबों और कमज़ोरों का क्या भला हुआ है?
धर्म दो तरह का होता है। एक अपने फ़ायदे के लिए इंसान बनाता है और दूसरा सबके फ़ायदे के लिए सबका रचयिता (Creator) बनाता है।
एक धर्म जो इंसान बनाता है। वह उसमें ग़रीबों को ग़ुलाम और अछूत बनाता है और उन्हें शिक्षा, व्यापार और इबादतगाह से दूर रखा जाता है। यह असल में अधर्म होता है।
दूसरा धर्म जो इंसान के रचयिता का है, वह उसमें सबको आवाज़ देकर इबादतगाह में बुलाता है और सब जातियों के ग़रीबों और ग़ुलामों को नवाबों और ज्ञानियों के आगे और उनकी बग़ल में तुरंत खड़ा कर देता है। रचयिता का धर्म उन्हें मुफ़्त शिक्षा देता है और व्यापार करने के अवसर देता है। उनका आत्मिक, भौतिक और सामाजिक, हर तरह पूरा कल्याण करता है।
रचयिता के धर्म में ग़ुलाम को अमीर लोग अपना धन देकर उसे आज़ाद करना इबादत समझते हैं।
एक धर्म का आधार शोषण है तो दूसरे का न्याय!
एक का आधार ऊंच-नीच है तो दूसरे का बराबरी।


Thursday, January 10, 2019

जानिए और सबको बताईये कि My Creator is My Doctor Dr. Anwer Jamal

अहमद फ़व्वाद भाई से तिब्बे नबवी पर बातचीत का पहला हिस्सा इस लिंक पर पढ़ें:

Tibbe Nabawi par Aitraz aur unke jawab Dr. Anwer Jamal

उसी सिलसिले में हमारे जवाब पर मोहतरम भाई जनाब अहमद फ़व्वाद ने जो लिखा है, आप उसे और उस पर हमारा जवाब नीचे पढ़ें।

*शख़्से से मुराद नामालूम शख़्स है, जिसकी मारिफ़ते दीन और तिब्बी उलूम की समझ ख़ुद क़ाबिले ग़ौर है।*........ 
मोहतरम भाई, नामालूम शख्स नहीं, बल्कि मारिफ़ते दीन और तिब्बी उलूम के माहिर पाकिस्तान के हकीम सैय्यद महमूद अहमद "सरव सहारनपुरी" का कौल है जिसे देवबंदी फिक्र के बड़े आलिम डॉ0 तुफैल हाशमी साहब के हवाले से नक़ल किया गया है। हकीम साहब से सम्बन्धित "नवा ए वक़्त" में छपा मज़मून पढ़ें-
https://www.nawaiwaqt.com.pk/12-Dec-2012/153708

*उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार किया है और सुबूत में अल्लाह और उसके रसूल के क़ौल से कोई दलील नहीं दी है। अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं कियाऔर ख़ुद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी अपने तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं किया*.......

 मोहतरम भाई, यह तो "मनतक़ी मुग़ालता" है।  सवाल इस तरह से भी तो पूछा जा सकता है कि क्या अल्लाह ने नबी का या नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना *चिकित्सक* की हैसियत से परिचय कराया। आप का दावा है कि *नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक माहिर तबीब थे* तो जनाब *बारे सबूत* भी आप पर है कि कुरआन व सुन्नत से आप दलील पेश फरमायें। 

मोहतरम भाई, मेरा उद्देश्य बहस करना नहीं है, मेरा ऐतराज़ "तिब्बे नबवी" पर नहीं, आपके *"तिब्बे नबवी पर इसरार"* से सम्बन्धित है। आपने एक जगह अपनी पोस्ट में लिखा, 

*दीन के दाई सब धर्म के लोगों के दर्द में काम आने वाले तभी बन सकते हैं, जब उन्हें नबियों की तरह जड़ी बूटियों और फलों से इलाज करना आता होगा। सो सभी मुबल्लिग़ तिब्बे नबवी ज़रूर पढ़ें।*

मेरे दृष्टिकोण से आपका उक्त कथन संतुलित नहीं है, पुनर्विचार प्रार्थनीय है। क्या सारे ही नबी तबीब भी थे। 

दूसरी उसूली बात मेरी दृष्टि में है, कि तिब्बे नबवी दीन का जुज़ नहीं है और न ही तिब्बी रवायात की कोई शरअई हैसियत है।

यही बात इब्ने ख़लदून ने अपने मशहूर ज़माना "मुकद्दमें" में कही है - 
وللبادية من أهل العمران طب يبنونه في غالب الأمر على تجربة قاصره علئ بعض
الأشخاص, ويتداولونه متوارثاً عن مشايخ الحي وعجائزه, وربما يصح منه البعض, إلا أنه ليس على قانون طبيعي, ولا عن موافقة المزاج. وكان عند العرب من هذا الطب كثير, وكان فيهم أطباء معروفون: كالحرث بن كلدة وغيره. والطب المنقول في الشرعيات من هذا القبيل, وليس من الوحي في شىءوإنما هوأمر
كان عادياً للعرب. ووقع في ذكر أحوال النبي صلئ الله عليه وسلم, من نوع ذكرأحواله التي هي عادة وجبلة, لا من جهة أن ذلك مشروع على ذلك النحو من العمل. فإنه صلى الله عليه وسلم إنما بعث ليعلمنا الشرائع, ولم يبعث لتعريف الطب ولا غيره من العاديات. وقد وقع له في شأن تلقيح النخل ما وقع,؛ فقال:
"أنتم أعلم بأموردنياكم . فلا ينبغي أن يحمل شيء من الذي وقع من الطب الذي
وقع في الأحاديث الصحيحة المنقولة على أنه مشروع, فليس هناك ما يدل عليه.... 
देहाती और बदवी समाज में भी तिब्ब पायी जाती है जो आम तौर पर कुछ व्यक्तियों के अनुभवों पर आधारित होती है और परिवार के बड़े बूढ़ों से परंपरागत रुप में नक़ल होती आती है। इन में से कभी कुछ चीजें सही भी होती है, लेकिन यह चिकित्सा सिद्धांत के प्रतिष्ठित नियमों एवं स्वभाव आदि के अनुरूप नहीं होती। अरब में भी इसी तरह की चिकित्सा प्रणाली प्रचलित थी और उनमें भी हारिस बिन कलदाह  वगैराह जैसे *चिकित्सक* प्रसिध्द थे। शरियत में जो तिब्ब आयी है वो *इसी क़बील* की है, यह नहीं कि वह *वहय* पर आधारित है बल्कि अरबों में इस तरह की तिब्ब प्रचलित थी और वो उसके आदी थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जीवन वर्णन में आपके स्वभाव और आदतों का भी बयान होता है, यह बातें आदत व स्वभाव की होती है न कि नबी करीम ने उनको अमल के लिए मसनून क़रार दिया हो, क्योंकि आप हमें शरियत सिखाने के लिए *मबऊस* किये गये थे न कि तिब्ब और आदत की बातें। खजूरो के वृक्षों में परागण से सम्बन्धित हदीस में आप का प्रसंग आता है, आप ने इससे मना किया तो फल नहीं आये, सहाबा ने कहा तो आप ने फरमाया, *तुम दुनिया के मामले मुझ से बेहतर जानते हो*
अत: अहादीस में जो तिब्ब नक़ल हुई है, उसे मसनून नहीं कह सकते, इस पर कोई दलील नहीं है। ( मुकद्दमा इब्ने ख़लदून, फसल 24 तबिअय्यात)

इसी तरह शाह वली उल्लाह साहब ने *हुज्जतुल्लाहिल बालिग़ाह* में फरमाया - - 
 و ثانيهما ما ليس من باب تبليغ الرسالة و فىه قوله صلى الله عليه وسلم : إنما أنا بشر إذا امرتكم بشىئ من رأى فإنما انا بشر...و قوله صلى الله عليه وسلم في قصة تعبير النخل: فإني إنما ظننت ظنا ولا تؤاخذوني بالظن ولكن إذا حدثتكم عن الله شيأ فخذوا به فإني لم اكذب علي الله... فمنه الطب.... 
वो मामलात जो कि *तबलीग़ ए रिसालत* के बाब में से नहीं, उसी के बारे में नबी का कथन है, : मैं एक इंसान हूं, जब मैं तुम्हें तुम्हारे दीन से सम्बन्धित कोई आदेश दूं, तो उस पर क़ायम हो जाओ और जब मैं तुम्हें अपनी राय से किसी चीज़ का हुक़्म दूं तो मैं भी एक इंसान हूं। खजूरो के वृक्षों में परागण ( Pollination) के सम्बन्ध में आपने फरमाया, मैनें एक गुमान किया था, और मेरे सिर्फ गुमान पर अमल न करो, मगर जब मैं तुम्हें अल्लाह की तरफ से कुछ बताऊं तो उस का अनुपालन करो, क्योंकि मैंने अल्लाह पर कभी झूठ नहीं बोला। इन्हीं मामलात में से एक तिब्ब भी है। 
आगे चलकर शाह साहब लिखते हैं, इन्हीं मामलात में वो बातें भी शामिल हैं जो आपने इबादत के बजाए आदत के तौर पर किये हैं और उन्हें आपने *कसदन नहीं इत्तेफाकन* किया है।  (बाब-उलूमे नबवी की अक़साम)

 बाक़ी अहादीस में तिब्ब  से सम्बन्धित जो रवायात आयी हैं, उसके विश्लेषण से पता चलता है कि तिब्ब से सम्बन्धित आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दृष्टिकोण समग्रता लिए हुए है (Holistic Approach) जिसमें, Health, Hygiene, Prevention & Treatment सबको समाहित किया गया है, यह नबवी दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है और हमेशा रहेगा अलबत्ता Treatment के सम्बन्ध में आप से मनक़ूल इलाज को उसके सही Perspective में लेना आवश्यक है, उसे दीन का जुज़, शरियत का हिस्सा न बनायें। मुस्लिम की रिवायत जो हज़रत अबु हुरैरा से नकल की गयी है जिसमें कलौंजी को मौत के सिवा हर बीमारी की दवा बताया है। हमें यह देखना होगा कि इस हदीस का सही मफहूम क्या है, क्या इसका इतलाक़ सब भौगोलिक क्षेत्रों एवं जलवायु में रहने वाले लोगों पर समान रूप से होगा, या यह अरब में रहने वालों के लिए ही सीमित है, क्या कलौंजी की शिफा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौर में और ख़ित्तें में पायी जाने वाली बीमारियों से ही सम्बंधित है या आज एचआईवी एड्स, कैंसर तथा अन्य अनुवांशिक बीमारियों  (Genetic Disorder) का भी इलाज कलौंजी से किया जा सकता है? दूसरी हदीस में cupping हिजामा के ताल्लुक से भी यही शिफा की बात आयी है। जब कलौंजी में हर बिमारी का इलाज है तो हिजामा की ज़रूरत नहीं। मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसी सभी अहादीस और उनके पारस्परिक सम्बन्ध का, उनके सही अर्थ का वर्णन आवश्यक है, नहीं तो अनर्थ हो जाता है। आज जगह जगह हिजामा सेन्टर खुले हैं, जिनके संचालकों की विशेषज्ञता ही संदिग्ध है। क्या यह *जिन्से बाज़ार* नहीं?

व्यक्तिगत तौर पर मैं Herbal Medicine, Homeopathy, Acupuncture आदि Alternative therapy की उपयोगिता का समर्थन करता हूं, परन्तु उसे दीन की हैसियत नहीं देता। मैं यह भी मानता हूं कि अक़ीदत, आस्था का इलाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 

मोहतरम भाई, आप दावत का बड़ा काम कर रहे हैं, मेरी बातों से यदि आप असहमत हैं तो कोई बात नहीं। मेरी तरफ से इस विषय पर अब विराम।
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Ahmad Fawwad Bhai!
Aapke diye link par Dekha to Hakeem saharanpuri sahib Ka aisa koi Qaul Nahi Mila.
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https://www.nawaiwaqt.com.pk/12-Dec-2012/153708
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तिब्बे नबवी, तिब्बे इलाही है
हमने कोई मन्तक़ी मुग़ालता नहीं दिया है। हमने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीस पेश की है जिसमें उन्होंने अल्लाह को तबीब (चिकित्सक) फ़रमाया है।
अन्तर्-रफ़ीक़ु वल्लाहु तबीब
आप रफ़ीक़ (तसल्ली देने वाले) हैं और अल्लाह तबीब (चिकित्सक) है। -हदीस

अल्लाह किस दवाई से चिकित्सा करता है?
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस दवा का नाम भी बताया है:
ख़ैरूद्-दवाइल्-क़ुरआन
क़ुरआन सबसे अच्छी दवा है। (हदीस)
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह के चिकित्सक और पवित्र क़ुरआन के दवा होने का दावा किया है। ये दोनों हदीसें आप पढ़ चुके हैं।
एक और हदीसे नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में अल्लाह का नाम 'अश्-शाफ़ी' (शिफ़ा देने वाला) आया है।
اللهم رب الناس أذهب البأس اشف انت الشافي لا شفاء الا شفاؤك شفاءا لا يغادر سقما
“Allahumma Rabban-Nas, Adh-hibil Ba’s, Ishfi antash-Shafi, la shifa’a illa shifa’uk, shifa’an la yughadiru saqama”

O Allah! the Rubb of mankind! Take away this disease and cure (him or her). You are the Curer. There is no cure except through You. Cure (him or her), a cure that leaves no disease."
[Al-Bukhari].
इस हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह पहचान कराई है कि अल्लाह ही शिफ़ा देने वाला है और उसके सिवा कोई दूसरा शिफ़ा नहीं दे सकता।
इनके बाद आप और किस तरह का दावा चाहते हैं?
इस दावे की तस्दीक़ क़ुरआन से भी होती है:
 وَإِذَا مَرِضْتُ فَهُوَ يَشْفِينِ ﴿٨٠
और जब मैं बीमार होता हूँ, तो वही मुझे शिफ़ा देता (अच्छा करता) है.
पवित्र क़ुरआन 42:80
तिब्बे नबवी, इल्हामी तिब्ब है
अल्लाह तबीब (चिकित्सक) है और शाफ़ी (शिफ़ा देने वाला) है तो वह इलाज ज़रूर करेगा और दवा बताएगा।
1. पहला सुबूत: मौजूदा तौरात में अल्लाह के इल्हाम के ज़रिए मूसा अलैहिस्सलाम को एक पेड़ के बारे में बताने और उसके ज़रिए लोगों के लिए पानी को पीने लायक़ बनाने (water treatment) का वाक़या लिखा हुआ मिलता है और उसके बाद अल्लाह का यह दावा भी मिलता है कि 'मैं यहोवा तुम्हें स्वस्थ करता हूँ।'
   फिर मूसा ने यहोवा को पुकारा और यहोवा ने उसे एक छोटा पेड़ दिखाया। मूसा ने जब वह पेड़ उठाकर पानी में फेंका तो पानी मीठा हो गया।

वहाँ परमेश्‍वर ने लोगों को एक नियम और न्याय-सिद्धांत दिया और उन्हें परखा।  उसने कहा, “तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा की बात सख्ती से मानना और वही करना जो उसकी नज़रों में सही है, उसकी आज्ञाओं पर ध्यान देना और उसके सभी नियमों का पालन करना। अगर तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम पर ऐसी कोई बीमारी नहीं लाऊँगा जो मैं मिस्रियों पर लाया था। मैं यहोवा तुम्हें स्वस्थ करता हूँ।
-बाइबिल, निर्गमन 15:25-26

2. दूसरा सुबूत: ऐसे ही बच्चे को जन्म देने के बाद अल्लाह ने मरियम अलैहस्सलाम को 'खजूर खाने का इल्हाम' (दिव्य प्रेरणा) किया:
तू खजूर के उस वृक्ष के तने को पकड़कर अपनी ओर हिला। तेरे ऊपर ताज़ा पकी-पकी खजूरें टपक पड़ेगा।  अतः तू उसे खा और पी और आँखें ठंडी कर। 
पवित्र क़ुरआन 19:25-26
क्या यह अल्लाह का इल्हाम के ज़रिए दवा और फ़ूड बताना नहीं है? चिकित्सा के आधुनिक सिद्धांतों पर परख कर कोई बताए तो सही कि एक ज़च्चा (प्रसवा) के लिए खजूर खाने की इस इल्हामी तज्वीज़ (prescription) में कौन सी कमी है?

3. तीसरा सुबूत: 
हमारे बन्दे अय्यूब को भी याद करो, जब उसने अपने रब को पुकारा कि "शैतान ने मुझे दुख और पीड़ा पहुँचा रखी है।" "अपना पाँव (धरती पर) मार, यह है ठंडा (पानी) नहाने को और पीने को।"
पवित्र क़ुरआन  38:41-42

अल्लाह की पहचान कराना नबी के पद की बुनियादी
ज़िम्मेदारी  है
अल्लाह तबीब (चिकित्सक) और शाफ़ी (बीमारी से चंगा करने वाले) है। ये दोनों सिफ़तें (गुण) नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ुद बताई हैं ताकि सब लोग अल्लाह की इन सिफ़तों से फ़ायदा उठाएं। क्या अल्लाह की सिफ़तों का परिचय (Introduction) देना और उनसे फ़ायदा उठाने का तरीक़ा बताना नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तब्लीग़ की बुनियादी ज़िम्मेदारी नहीं है?

दीनी और दुनियावी कामों की कोई लिस्ट मौजूद नहीं है
हज़रत शाह वलीउल्लाह साहिब रह. ने ऊपर  दी हुई तहरीर में सिर्फ़ अपना मत दिया है और उसके हक़ में कोई दलील नहीं दी है कि वह तिब्ब को 'दुनियावी कामों' में क्यों शामिल मानते हैं? और उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की  नुबूव्वत के बुनियादी मक़सद में शामिल क्यों नहीं मानते?
क़िताल (जंग) भी दुनियावी काम है। अरब क़िताल के भी माहिरीन थे और नबी स. ने नुबूव्वत से पहले कभी जंग नहीं की थी और पूरी ज़िन्दगी में भी कभी चार आदमी ख़ुद क़त्ल न किए तब भी वह इस ख़ालिस दुनियावी काम के इमाम बनते थे और सबसे आगे खड़े होते थे।
क्या नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी किसी और जंगी एक्सपर्ट को अपने से ज़्यादा जानकार और माहिर मानकर उसकी कमांड पर जंग लड़ी?
क्या अरब का कोई शख़्स उनसे बड़ा फ़ातेह सैनिक साबित हुआ जबकि नबी स. ने किसी बड़े कमांडर से तलवार चलाना और फ़ौजों की सफ़ें बनाना भी न सीखा था।
आज तक किसी दीनी किताब में दीनी और दुनियावी कामों की कोई लिस्ट मौजूद नहीं है। आप एक बार 'दुनियावी कामों की लिस्ट' बनाएं ताकि पता चले कि आख़िर किन कामों में कोई उम्मती नबी स. से ज़्यादा माहिर हो सकता है।
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नबी स. ने तिब्ब में कुछ काम यक़ीनन वे किए हैं जो अरबों में राएज थे। उनमें शहद और सना का इस्तेमाल और हिजामा राएज था लेकिन नबी स. ने क़ुरआन से भी इलाज किया है और यह अरबों में राएज न था।
नबी स. ने नमाज़ में शिफ़ा बताई है और यह बात उन्हें अरब नहीं बता सकते थे।
नमाज़ के बारे में यह बात उन्हें रब के सिवा कोई नहीं बता सकता।
जब बिना किसी चिकित्सक से पढ़े बिना एक आदमी नमाज़ और क़ुरआन से व्यक्ति और समाज का कामयाब इलाज कर रहा है तो यक़ीनन वह इलाज करना जानता है और इलाज उसके मन्सब (पद) की ज़िम्मेदारियों में है। उसे इलाज का यह ख़ास तरीक़ा उसी रब ने सिखाया है, जिसे वह तबीब (चिकित्सक) मानता है।
हदीसों में नबी स. के द्वारा जिस्मानी, नफ़्सियाती और अख़्लाक़ी, हर तरह की बीमारियों के कामयाब इलाज के वाक़िआत हैं और एक भी ऐसा वाक़िआ नहीं है जिसमें नबी स. ने इलाज शुरू तो किया हो और फिर उसमें नाकाम रहकर अरब के किसी हकीम के सुपुर्द किया हो। अल्लाह के नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जिसका इलाज शुरू किया, उसे अंजाम तक भी पहुंचाया और रब ने उनके इलाज से बहुत लोगों को शिफ़ा दी।
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी किसी से अपने जिस्मानी मर्ज़ का इलाज कराया हो, ऐसा सुबूत नहीं मिलता।
हमने आपसे इस बारे में सवाल किया तो आपने भी कोई जवाब न दिया।
उनके द्वारा दूसरों के इलाज करने के वाक़िआत ज़रूर मिलते हैं। इत्तेफ़ाक़न किए जाने वाले वाक़िआत इक्का दुक्का होते हैं जबकि नबी स. द्वारा बार बार अलग अलग लोगों को तिब्बी सलाह देना साबित है। जिससे पता चलता है कि वह क़स्दन (Intentionally) इलाज करते थे, इत्तेफ़ाक़न नहीं। वह चिकित्सकों को भी सलाह देते थे।
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नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा को इलाज करना सिखाया
इसी के साथ नबी स. सहाबा को इलाज करना सिखाते भी थे।
सहाबा क़ुरआन से जादू और नज़र का इलाज करना न जानते थे।
यह इलाज नबी स. ने ही उन्हें सिखाया। जो बाद में सहाबा में और उलमा में मशहूर हुआ।
नज़र और जादू को आधुनिक चिकित्सा के स्थापित सिद्धांत बीमारी की वजह ही नहीं मानते। इसलिए वे इन वजहों से होने वाली बीमारियों की जड़ को अभी नहीं समझ सकते। जिन बीमारियों के मूल कारणों को आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति नहीं समझ सकती, उनका इलाज भी नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम किया करते थे।
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मैं इस बात पर इसरार करता हूं कि
मोमिन क़ुरआन और नमाज़ की हीलिंग पावर को समझें और मैं यह भी तक़ाज़ा करता हूँ कि
दीन के सब दाई उन जड़ी बूटियों फलों और शहद व पानी जैसी चीज़ों की तासीर ज़रूर जानें,
जिन्हें इस्तेमाल करने का हुक्म रब ने उन चीज़ों का नाम लेकर तौरात, ज़बूर, इंजील और क़ुरआन में दिया और नबियों ने उन्हें इस्तेमाल करके शिफ़ा पाई और नफ़ा हासिल किया है। जैसे कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने रब के हुक्म से एक पेड़ कड़वे पानी में डाला। फिर वह पीने के लायक़ हुआ। जिससे उनकी क़ौम सलामत रही।
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मैं इस बात पर भी इसरार करता हूं कि अल्लाह लोगों को ज़मीनों और आसमानों की चीज़ों में ग़ौरो फ़िक्र को कहता है तो दाई इस काम को ज़रूर करें।
इससे मुझे फ़ायदा हुआ है और सबको होगा। यह तय है।
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'कलौंजी में हर बीमारी का इलाज है' ऐसा कहने से दूसरी चीज़ों में शिफ़ा की नफ़ी नहीं हो जाती और न ही यह मानना सही है कि हिजामा नहीं कराना चाहिए।
यह अल्लाह की बड़ी रहमत है कि उसने बहुत सी चीज़ों और बहुत से तरीकों में अपने बंदों के लिए शिफ़ा रखी है।
इलाज के मुख़्तलिफ़ तरीकों की तरफ़ तवज्जो दिलाने के लिए नबी स. ने हिजामा की भी तारीफ़ की और रब का शुक्र है कि
आज दुनिया भर में हिजामा राएज है।
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जगह जगह तो हिजामा की तरह दावती सेंटर भी खुले हुए हैं। जिन्हें चलाने वालों की फ़हमे दीन ही ग़लत और मश्कूक है।
जगह जगह निकाह भी हो रहे हैं, बाद में पता चलता है कि लड़के में मर्दानगी ही नहीं थी। उनमें झगड़े और तलाक़ होते हैं।
हर घर में ऐसी औरतें मां बन रही हैं, जिन्हें ज़िन्दगी भर बच्चे की तरबियत करना नहीं आता। वे उसे नमाज़ और क़ुरआन तक नहीं पढ़ातीं। सोते वक़्त बच्चों ने दांत साफ़ किए या नहीं, वे यह तक चेक नहीं करती। आदर्श हालत किसी फ़ील्ड में नहीं है, इसलिए हिजामा और तिब्बे नबवी में भी सब लोग आदर्श नहीं हैं।
जब बेशुऊरी दुनिया का आम रिवाज है तो उन्हीं लोगों के हाथ हिजामा लग गया है।
वे इसे अपने लेवल से ही यूज़ करेंगे लेकिन इससे हिजामा का शिफ़ा होना अपनी जगह हक़ रहता है।
जो शख़्स अपनी खाल में हिजामा का ब्लेड लगवाए, उसके ज़िम्मे है मुआलिज की क़ाबिलियत और उसका तजुर्बा चेक करना।
मैंने हिजामा कराया तो पहले यह सब देखा और मुझे श्याटिक दर्द में 10-20 मिनट में ही बहुत ज़्यादा आराम मिला।
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तिजारत करना एक ज़रूरत है
बाज़ार से बचना मुमकिन नहीं है और दीन में मतलूब भी नहीं है। आज मुस्लिम को बाज़ार में अपनी जगह बनानी होगी क्योंकि
*Control the purse Control the policy* एक हक़ीक़त है।
अपनी फ़िक्री आज़ादी की हिफ़ाज़त तभी मुमकिन है जब आप फ़ाईनेंशियली मज़बूत हों।
इसके लिए जिन्से बाज़ार को जायज़ तरीक़े से बेचना सीखना होगा, जैसे कि सहाबा र. बेचा करते थे।
ऐसा करके अक्सर मुबल्लिग़ ग़रीबी और ज़हनी ग़ुलामी से निकल आएंगे,
इन् शा अल्लाह।
तिजारत बेरोज़गारी और ग़रीबी का हल है। आज जब हर चीज़ को बाज़ार में बिकने वाली चीज़ बनाया जा रहा है तो आप उसे जायज़ तरीक़े से बेचें। दीन इससे मना नहीं करता कि कोई अपना सर्विस चार्ज ले।
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तिब्बे नबवी एक अलग पैथी है
हरेक पैथी के अपने कुछ ख़ास उसूल होते हैं। एक पैथी दूसरी पैथी के उसूलों पर पूरी नहीं उतरती। एलोपैथी डा. हैनीमैन के उसूलों पर पूरी नहीं उतरी और होम्योपैथी एलोपैथी के उसूलों पर पूरी नहीं उतरती। ऐसे ही तिब्बे नबवी के लिए एलोपैथी के उसूलों पर पूरा उतरना ज़रूरी नहीं है।
तिब्बे नबवी को होम्योपैथी और यूनानी तरीक़ा ए इलाज की तरह की एक अरब पैथी समझना ग़लत है और यह ग़लती तिब्बे नबवी में शहद, सना और कलौंजी जैसी हर्ब्स के यूज़ को देखकर होता है जो अरबों में आम तौर पर यूज़ होती थीं।
आप इब्ने क़ययिम रह. की बुक तिब्बे नबवी पढ़ेंगे तो आपको मालूम हो जाएगा कि तिब्बे नबवी के अपने अलग और इल्हामी उसूल हैं।
उन उसूलों को भुलाकर शहद, सना और कलौंजी खाया जाए तो वह अरब आदत है या हारिस बिन कल्दाह जैसे अरब तबीबों का तरीक़ा है लेकिन जब उन्हीं चीज़ों को तिब्बे नबवी के उसूलों की रिआयत के साथ खाया जाएगा तो वह एक ऐसा तरीक़ा है, जिससे हारिस बिन कल्दाह और अरब के मुशरिक वाक़िफ़ न थे।
इस बात पर भी ग़ौर करना ज़रूरी है कि अरबों में राएज तरीक़ा ए इलाज हारिस बिन कल्दह जैसे चिकित्सकों की खोज से वुजूद में नहीं आया था। यह तरीक़ा नबियों की तालीम से नस्ल दर नस्ल गुज़रते हुए उन तक पहुंचा है और उसी तिब्बी इल्म में उन चिकित्सकों ने अपने तजुर्बात से और ज़्यादा इज़ाफ़ा कर लिया। इससे पता चलता है कि हारिस बिन कल्दाह जैसे अरब चिकित्सक ख़ुद तिब्बे नबवी से इलाज करते थे। यह बात समझने के लिए इस बात को याद रखें कि तिब्बे नबवी से मुराद 'नबियों की तिब्ब' है जोकि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले भी मौजूद थी जैसे कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाईश से पहले भी इस्लाम का वुजूद था।

आधुनिक चिकित्सा पद्धति कैसे वुजूद में आईं?
पुराने चिकित्सकों के तिब्बी इल्म की बुनियाद पर और ज़्यादा तजुर्बात किए गए तो आधुनिक चिकित्सा शास्त्र वुजूद में आ गया है। फिर इसमें और ज़्यादा तजुर्बात किए गए तो बहुत सी शाखाएं (Branches) वुजूद में आ गईं। आप ध्यान से आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की स्टडी करेंगे तो आपको सब आधुनिक डाक्टर बीच के बहुत से वास्तों के ज़रिए अल्लाह के तिब्बी इल्म से ही फ़ायदा उठाते हुए नज़र आएंगे। सच यही है कि जिसे भी जो ख़ैर और ख़ूबी मिली है और मिल रही है, सिर्फ़ एक अल्लाह से ही मिली है और मिल रही है। मैं आधुनिक चिकित्सा पद्धति को भी तिब्बे नबवी की एक तरक़्क़ीयाफ़्ता (Developed) और बदली हुई पैथी के रूप में देखता हूं। मैं ज़रूरत पड़ने पर आधुनिक चिकित्सा पद्धति से और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों से भी फ़ायदा उठाया हूँ। हिकमत जहाँ भी है, मैं उसे मोमिन की मीरास मानता हूँ।

कलाम में शिफ़ा की तासीर है
इस सब के बावुजूद तिब्बे नबवी अपने आप में आज भी एक अलग और मुकम्मल तिब्बी तरीक़ा है। जिसमें दवा के साथ अक़ीदों के सही करने, दुआ करने और अपनी आदतों को सुधारने पर भी ज़ोर दिया जाता है।
हक़ीक़त यह है कि तिब्बे नबवी अपने वक़्त से बहुत आगे की पैथी है। यह आज भी अपने वक़्त से बहुत आगे की पैथी है।आप तिब्बे नबवी में पवित्र क़ुरआन से इलाज होते देखेंगे तो आप इसकी Quantum Healing और Vibrational Healing को समझ सकेंगे। ख़याल और कलाम भी दवा होते हैं क्योंकि इनमें शिफ़ा की तासीर होती है। रब का कलाम मरीज़ को क्वांटम लेवल पर बदलता है और उसे उसके यक़ीन के मुताबिक़ शिफ़ा मिलनी शुरू हो जाती है।
अहमद भाई! आप मेरे द्वारा सुझाई गई इब्ने क़ययिम की बुक तिब्बे नबवी पढ़कर जवाब लिखते तो ज़्यादा अच्छा रहता।
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सभी नबी दवा और इलाज के बारे में जानते थे
वे संकट में मदद के लिए यहोवा को पुकारते,
वह उन्हें बदहाली से छुड़ाता।
वह अपने वचन के ज़रिए उनकी बीमारी दूर करता,
उन्हें उन गड्ढों से बाहर निकालता जहाँ वे फँस गए थे।
ज़बूर (Psalm) 107:19-20

हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम भी यह बात जानते थे कि अल्लाह तबीब है। अल्लाह ने उन्हें इलाज बताया। उन्होंने उसे किया और उन्हें सेहत मिली। अल्लाह ने ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के ज़रिए इतने ज़्यादा लोगों का इलाज किया कि उनका मौज्ज़ा ही बीमारों को शिफ़ा देना माना गया है। आप बाईबिल में इब्राहीम अलैहिस्सलाम की नस्ल में आए नबियों के बारे में पढ़ेंगे तो आपको उनके द्वारा इलाज करने के क़िस्से भी मिलेंगे।
हर नबी इलाज करना जानता था। यही वजह है कि मुख़्तलिफ़ ज़मानों में रब ने नबियों को खाने पीने की और बरतने की अलग अलग चीज़ें बताईं, जिनमें शिफ़ा थी।

'दिल का खुश रहना बढ़िया दवा है,
मगर मन की उदासी सारी ताकत चूस लेती है।'
बाईबिल, नीतिवचन 17:22
लोगों का दुनियावी कल्याण (Wellness) भी नबी के मक़सद में शामिल होता है
जो लोग नबी स. की बेअसत का मक़सद लोगों तक सिर्फ़ कुछ अक़ाएद और क़ानून की  जानकारी देना समझते हैं,
उनकी नज़र में तिब्ब, तिजारत, सियासत और बाज़ार में घूमना दुनियावी काम हैं।
पहले मुशरिकीन ए अरब नबी स. के इन आमाल को पवित्रता और महानता के ख़िलाफ़ मानकर ऐतराज़ करते थे।
अब अक्सर मुस्लिमों ने भी इन्हें दीन से बाहर समझ लिया है।
कुछ लोगों ने दीन इस्लाम को Socio, politico Economic system के रूप में  तो पहचान लिया है लेकिन मेंटल और फ़िज़िकल हेल्थ और दुनिया में wellness अब भी उनकी तफ़हीमे दीन के दायरे से बाहर है।
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हक़ीक़त यह है कि तिब्बे नबवी इस्लाम का हिस्सा है और इसलिए है कि इस्लाम की एप्रोच holistic है।
अल्लाह इंसान को नेकी बदी की तमीज़ तो देता लेकिन उसे सेहत और सलामती का तरीक़ा न बताता तो ऐसा दीन ही अधूरा होता।
जब हम यह कहते हैं कि
रब का शुक्र है उसने हमें ज़िन्दगी के हर पहलू में हिदायत दी तो हम ख़ुद इक़रार करते हैं कि
रब ने हमें बीमारी और सेहत के पहलू में भी हिदायत बख़्शी है।
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किसी से इल्मी बातचीत से हम नहीं थकते।
हरेक इंसान का ज़हनी शाकिलह (paradigm) अलग है और हरेक अपने ज़हनी शाकिलह के मुताबिक़ ही चीज़ों को समझता है।
इसी से इख़्तिलाफ़ वुजूद में आता है और यही इख़्तिलाफ़ एक को दूसरे से अलग करती है और यह अच्छा है।
इल्मी इख़्तिलाफ़ अच्छा है। इसी से एक आदमी दूसरे से सीखता है। इसी से रब की सिफ़त 'अल्-अलीम' तजल्ली करता है
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तिब्बे नबवी मुबल्लिग़ मोमिन को कल्याणकारी बनाती है
मैं ने एक एक आदमी से एक ही सब्जेक्ट पर साल साल और दो दो दो साल बात की है और
उनसे सीखा है।
... मैं ने यह भी सीखा है कि अक्सर लोग सत्य देखकर नहीं बल्कि हित देखकर बात मानते हैं।
पहले मैं बिना तिब्बे नबवी के मुशरिकों को दीने हक़ बताया करता था, तब कोई बिरला मानता था,
अब मैं उसे हक़ बात बताता हूं और रब के कलाम से और नबियों की ज़िन्दगी से उसके जायज़ हित को भी सपोर्ट करने वाली नालिज भी दे हूं तो हरेक आदमी बात मानता है।
आज हरेक इंसान के लिए आज सेहत, रोज़ी, सलामती, घर बनाना और निकाह-शादी करना बहुत जटिल मसले हैं।
तिब्बे नबवी इन सबको हल करती है। तिब्बे नबवी की ख़ास बात यह है कि यह फ़ाइनेंशियल बीमारियों ग़रीबी और क़र्ज़ को भी दूर करती है।
अल्हम्दुलिल्लाह!

दूसरे तरीक़ा ए इलाज सिर्फ़ बीमारी का इलाज करते हैं, जबकि तिब्बे नबवी इंसान का इलाज करती है, उसके हरेक पहलू के हालात का इलाज करती है। सब लोगों तक यह जानकारी पहुंचाना भी तब्लीग़ और दावत का हिस्सा है। बीमारियों के इस दौर में मानव जाति का कल्याण करने के लिए ऐसा करना आज पहले से ज़्यादा ज़रूरी है।

The most beloved to Allah are the most beneficial to the people

Ibn Umar reported: The Prophet, peace and blessings be upon him, said,
“The most beloved people to Allah are those who are most beneficial to the people. The most beloved deed to Allah is to make a Muslim happy, or to remove one of his troubles, or to forgive his debt, or to feed his hunger. That I walk with a brother regarding a need is more beloved to me than that I seclude myself in this mosque in Medina for a month. Whoever swallows his anger, then Allah will conceal his faults. Whoever suppresses his rage, even though he could fulfill his anger if he wished, then Allah will secure his heart on the Day of Resurrection. Whoever walks with his brother regarding a need until he secures it for him, then Allah the Exalted will make his footing firm across the bridge on the day when the footings are shaken.” (Tabarani)