*फ़लाह की सलाह*
Dr. Anwer Jamal
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“शुक्र और तारीफ़” का तरीक़ा फ़लाह और कल्याण पाने का “बिलकुल सीधा” तरीक़ा है.
ईश्वर अल्लाह ने सूरह फ़ातिहा के ज़रिए सारे जिन्न व इन्सानों की नाशुक्री की इस सबसे बड़ी नफ़सियाती बीमारी (psychological Disorder)
का इलाज किया है.
नाशुक्री से ही आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक और सारे पहलुओं में ख़राबी आकर 'अज़ाब' यानी कष्ट होता है.
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यह रब का क़ानून ए क़ुदरत है.
यह हमेशा से है और यह हमेशा क़ायम रहता है.
कोई भी नाशुक्री करके अजाब से बच नहीं सकता और जो शुक्र करता है वह फ़लाह यानि कल्याण ज़रूर पाता है.
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पवित्र क़ुरआन शुक्र की तालीम से भरा हुआ है.
ईश्वर अल्लाह ने बन्दों को अपनी नेमतों पर ध्यान देने और शुक्र करने के लिए बार बार कहा है.
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Allama ibne Qayyim ने शुक्र और सब्र पर एक पूरी किताब लिखी है.
यह इंटरनेट पर फ़्री मिलती है.
शुक्र दिल की एक कैफ़ियत है, एक mental attitude है.
जब इंसान का फ़ोकस “मेरे पास रब की नेमतें हैं” पर होता है तो वह शुक्र की कैफ़ियत में होता है और जब उसका फोकस “नहीं है” पर होता है तो वह अपने दिल में नाशुक्री करता है.
फिर यही उसका attitude बन जाता है.
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है कि
‘इसलिये ध्यान से सुनो क्योंकि जिसके पास 'है' उसे और भी दिया जायेगा और जिसके पास 'नहीं है', उससे जो उसके पास दिखाई देता है, वह भी ले लिया जायेगा।”
(लूका की इंजील 8:18)
सब धर्मों के लोगों को कष्टों से मुक्ति के लिए शुक्र की तालीम देनी ज़रूरी है.
शुक्र से ही फ़लाह (wellness) होती है.
यही वेलनेस एजुकेशन है.
इसी की तालीम देने के लिए सारे नबी आए और ज्ञान आया. सबसे आख़िर में पवित्र क़ुरआन उतरा.
पवित्र क़ुरआन सुनने के लिए और फ़ातिहा पढ़ने के लिए सबको पाँच बार रब पुकारता है-
हय्या अलल फ़लाह
आओ कल्याण पाओ
मस्जिदें सिर्फ़ मुस्लिमों के कल्याण के लिए नहीं बल्कि सबके कल्याण के लिए बनाई गयी थीं.
मस्जिदें मानव जाति के लिए कल्याण केंद्र हैं, जहाँ सबको wellness education दी जाती थी और दी जानी चाहिए.
पहला सबक़ सबको शुक्र का दिया जाए ताकि
सबके कष्ट दूर हों.
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जो लोग मस्जिद तक नहीं आते, उनके पास जाकर उन्हें मुहब्बत के साथ 'फ़लाह की सलाह' देने का नाम दावत और तब्लीग़ है।
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इस अमल से ख़ुद हमारी ख़ुदी बुलन्द होती है और ख़ुद हमें भी फ़लाह नसीब होती है।
क्योंकि *Universal Law* यह है कि हम जैसा बोते हैं, वैसा काटते हैं.
हम जिस नीयत से जो काम दूसरों के साथ मन, वचन और शरीर से करते हैं, वह अपने ठीक वक़्त पर ख़ुद हमारी ज़िन्दगी में वाक़ै (घटित) हो जाता है।
दुनिया की कोई भी ताक़त ऐसा होने से रोक नहीं सकती.
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आप अपनी ज़िन्दगी में अच्छी चीज़ें पाना चाहते हैं तो आप दूसरों को अच्छी चीज़ें दें।
दूसरों को अच्छी सलाह दें.
दूसरों की अच्छे कामों में मदद करें.
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