Saturday, February 29, 2020

वेदों में अग्नि का अर्थ आग और अरणी का अर्थ आग जलाने वाली लकड़ी है

पवित्र क़ुरआन में अल्लाह का नाम अग्नि, आग (यानि अरबी में 'नार' ) नहीं है। किसी भी ईश्वरीय ग्रंथ में रब का नाम आग नहीं है। स्वामी दयानन्द जी मानते हैं कि वेदों में परमेश्वर का नाम अग्नि है।
वेदों में अग्नि का अर्थ आग और अरणी का अर्थ आग जलाने वाली लकड़ी है। जिससे वेद मंत्र का अर्थ बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है। स्वामी दयानंद जी ने वेदों का अर्थ बदलने के लिए इन नामों के साथ खिलवाड़ किया है।
इसी तरह 'पुत्र' नाम भी परमेश्वर का सिद्ध किया जा सकता है कि 'पु' नाम नरक का और 'त्र' का अर्थ तारने वाला अर्थात् नरक से तारने वाला। नरक से तारने वाला केवल परमेश्वर है। अत: 'पुत्र' नाम परमेश्वर का है लेकिन क्या वास्तव में पुत्र नाम परमेश्वर का है यह विचारणीय है। हर धर्म के लोग जानते हैं कि पुत्र नाम परमेश्वर का नहीं है। 
ऐसे ही हर धर्म के लोग जानते हैं कि भाई, दादा, परदादा, अग्नि और सूर्य नाम परमेश्वर के नहीं हैं। हमारे लिए पवित्र क़ुरआन कसौटी है। पवित्र क़ुरआन के अनुसार भाई, दादा, परदादा, अग्नि और सूर्य नाम परमेश्वर के नहीं हैं।
अगर दयानंद जी की अत्याचारपूर्ण कुटिल व्याख्या के अनुसार भाई, दादा, परदादा, आग, सूरज, राहु, केतु और देवी को परमेश्वर के नाम न  जान माना जाए तो वेदों में परमेश्वर का नाम तक स्पष्ट नहीं है। जोकि परमेश्वर की वाणी में होना आवश्यक है। उसी नाम के साथ भक्त उससे हम्द के साथ सहायता की प्रार्थना करते हैं।
वेदों का ईश्वरीय होना उसके अंदर के प्रमाण से सिद्ध नहीं है और न ही वेदों में ऐसा कोई दावा मौजूद है। 
मानने वाले हिंदू तो विष्णु पुराण, भागवत और गीता को भी परमेश्वर की वाणी मानते हैं लेकिन हिंदुओं के मानने से वेदों को ईश्वरीय मानने वाले मुस्लिम मुबल्लिग़ भी उन्हें ईश्वरीय नहीं मानते और मानना भी नहीं चाहिए, जब तक कि ग्रंथ का कंटेंट ख़ुद  सिद्ध न करे कि वह ईश्वरीय है।
ज़ुबुरिल अव्वलीन के शाब्दिक अर्थ के दायरे में उपनिषद और पुराण आदि वे सब ग्रंथ आते हैं, जिन्हें पहले के लोग ईश्वरीय मानते हैं, न कि सिर्फ़ वेद।
वेदों से ज़्यादा क्लियर तौहीद उपनिषदों में है। हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के वाक़ये का बयान वेदों से ज़्यादा साफ़ पुराणों में है। सो वे भी ज़ुबुरिल अव्वलीन में हैं।
कोई भी शिलापट्ट ऐसा नहीं मिला जो अशोक के काल तक का हो। इसलिए संस्कृत भाषा दो-ढाई हज़ार वर्ष से अधिक पुरानी नहीं है। इसलिए  हम यक़ीन करते हैं कि संस्कृत भाषा हज़रत नूह के बाद वुजूद में आई है और हज़रत नूह पर उतरे सहीफ़े वेद नहीं हो सकते। हाँ, वेद में हज़रत नूह और दूसरे नबियों की तालीम की यादगार हो सकती है। जिसे पंडितों ने किसी से सुनकर कविताबद्ध कर दिया हो, जैसे कि उन्होंने उपनिषद रचे।
वेद और उपनिषद काव्य हैं‌। इनकी रचना अनगिनत कवियों ने की है। जिस कवि ने जिस विषय पर जो कविता लिखी है, उस कवि और उस विषय का नाम वेदों में सूक्त से पहले लिखा रहता है।
जब वेद के किसी मंत्र को समझना हो तो केवल उस एक मंत्र को ही न लिया जाए बल्कि उसे उस सूक्त के सारे मंत्रो के साथ जोड़कर देखा जाए और उस मंत्र में जिस विषय की चर्चा है, उस विषय को वेदों के दूसरे सुक्तों के साथ भी जोड़कर देखा जाए, जिन सूक्तों में  उस विषय की चर्चा है। तब वेद का अर्थ स्पष्ट समझ में आता है। वेद का कोई एक मंत्र या मंत्र का एक टुकड़ा ले लेने से वेद का अर्थ स्पष्ट नहीं होता और एकेश्वरवाद का प्रमाण देते समय दयानंदी यकारभाष् यही कुटिलता पूर्ण चतुराई करते हैं कि बस वेद का एक शब्द 'अकायम्'  लिख देंगे और बाक़ी व्याख्या मनमाने तौर से खुद करते हैं।
यह ठीक तरीक़ा नहीं है।
जब वेद का शाब्दिक अनुवाद स्पष्ट अर्थ दे रहा हो और वह परंपरा से भी पुष्ट हो तो वहाँ अलंकार मानने की कोई आवश्यकता नहीं है।
अरणी मंथन से आग जलाना और फिर आग को दूत बनाना और उसमें खाने पीने की चीज़े जलाकर उन चीजों को देवताओं तक पहुंचाने की प्रार्थना करने वाले मंत्रों का शाब्दिक अनुवाद स्पष्ट अर्थ देता है और यह वैदिक लोगों की परंपरा भी है और स्वयं स्वामी दयानन्द जी ने भी यह माना है कि हवन में डाली गई हवि देवताओं को पहुंचती है तो अग्नि परमेश्वर का नाम नहीं, अरणी मंथन से जलने वाली आग सिद्ध होती है।

Saturday, February 22, 2020

आश्चर्यजनक किंतू सत्य: नफ़रत करने वालों ने मुझे नज़रिए का आप्रेशन करने वाला डाक्टर बना दिया -Dr. Anwer Jamal

मैं हिंदुओं में से ऐतराज़ करने वाले भाईयों को 25 साल तक यह सोचकर इस्लाम पर उनके प्रश्नों का उत्तर देता रहा कि ये जानते नहीं हैं।
बाद में 'अनुभव' हुआ कि ये इस्लाम को जानना भी नहीं चाहते।
आर्य समाज और आर एस एस मुस्लिमों की विचारधारा पर हमले करके वैचारिक युद्ध लड़ रहे हैं और उन्होंने अपने सदस्यों के अंदर नफ़रत के विचार फ़ीड किए हैं कि
1. मुस्लिम शासकों ने हमारे मंदिर तोड़े।
2. हमारे पंडितों को क़त्ल किया।
3. हमें ग़ुलाम बनाया।
4. हमरी औरतों को उठाकर ले गये।
5. हमारे पूर्वजों को डराकर मुसलमान बनाया और जो नहीं बना, उसे मार डाला।
6. हमारे देश को लूट लिया।
जब एक हिंदू ने बचपन से इन विचारों को माँ-बाप, टीचर और धर्म गुरुओं के मुंह से बार बार यह सब सुना तो उसे इन बातों के सच होने का यक़ीन आ गया और उसके दिल में मुस्लिम और इस्लाम से नफ़रत बैठ गई। जब वह बड़ा होकर आर्य समाज और आर एस एस से जुड़ा तो उसे इससे भी भयानक बातें सुनाई गईं। जिन्हें सुनकर वह नफ़रत से पूरा भर गया और उसे सच दिखाई देना बंद हो गया।
जब तक उसके दिल से नफ़रत की पट्टी नहीं हटेगी, तब तक उसे कुछ दिखाई न देगा।
आँख बाहर की केवल छवियाँ देखती है। उसमें अर्थ देखने की शक्ति दिल में होती है। 
इस रियलाईज़ेशन के बाद मैंने उन्हें सवालों के जवाब देने कम कर दिए और मैं उनके दिल की नफ़रत का इलाज करने लगा।
नफ़रत दिल का एक बहुत भयानक रोग है। मैं रब की बख़्शी हुई हिकमत से नफ़रत और नज़रिए का इलाज करते करते डाक्टर बन गया।
अब लोग मुझसे वैचारिक योद्धा इस्लाम में कमी बताकर सवाल करते हैं तो मैं उन्हें जवाब देते वक़्त सिर्फ़ तथ्यात्मक जवाब नहीं देता क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह तथ्य नहीं देखेगा। वह कोई नया ऐतराज़ करेगा। अब मैं जवाब कम और उनकी नफ़रत का इलाज ज़्यादा करता हूँ।
उनकी नफ़रत कम होने लगती है तो उन्हें सच दिखने लगता है कि जब इस्लाम भारत में आया तो यहाँ वर्णाश्रम धर्म आम था। जिसके कारण नियोग, सती प्रथा, ऊँचनीच और छूतछात आम थी। इनके कारण  हिंदुओं ने ही करोड़ों हिंदुओं को जलाकर या अन्य तरीक़ों से मार डाला। जैसे आज भी कई राज्यों में लड़की को पैदा होते ही या कोख में ही मार दिया जाता है। इसीलिए हिंदुओं में लड़के और लड़कियों के अनुपात में असंतुलन है जबकि भारतीय मुस्लिमों में लिंगानुपात सही है।
मुस्लिम शासनकाल से पहले छोटे छोटे हिंदू राजा एक दूसरे पर चढ़ाई करके हिंदुओं को ही मार डालते थे। डा० सुरेन्द्र कुमार शर्मा अज्ञात के अनुसार महाभारत के युद्ध में 1 अरब 66 करोड़ हिंदू मरे। इन्हें किसने मारा?
जवाब है कि हिन्दु राजाओं और हिन्दू सैनिकों ने।
राम रावण युद्ध में करोड़ों हिंदू मरे।
ऐसे ऐसे युद्ध बहुत हुए हैं।
क्या राम जी और सीता जी को कष्ट किसी मुस्लिम ने दिया या हिंदुओं ने?
रावण और धोबी, जिसने भी कष्ट दिया, वह हिंदू ही था।
रामायण के अनुसार शंबूक की गर्दन राम जी ने काटी तो शंबूक को भी किसी मुस्लिम से कष्ट न पहुंचा। तब शूद्रों को ज्ञान ध्यान की अनुमति नहीं थी और शूद्र भी हिंदू ही थे।
श्रीकृष्ण जी को तीर मार कर हिंदू ने घायल किया और वह उसी ज़ख़्म के कारण मर गये।
परशुराम जी ने इतने क्षत्रिय मारे कि इक्कीस बार धरती से क्षत्रिय मिटा दिये। ये क्षत्रिय भी हिंदू थे। परशुराम के कारण ही प्रजापालक राजा अग्रसेन को क्षत्रिय से वैश्य बनना पड़ा। आज तक वर्ण व्यवस्था में उनकी औलाद का एक दर्जा कम चला आ रहा है।
आदि शंकराचार्य को ज़हर हिंदुओं ने दिया।
दयानंद को कई बार ज़हर दिया गया और उन्हें जितनी बार ज़हर दिया, हिंदुओं ने दिया, मुस्लिमों ने नहीं।
गांधी को हिंदू ने ही क़त्ल किया। यह सब जानते ही हैं।
भीष्म पितामह कुछ लड़कियों का अपहरण कर लाए थे। क्या वह लड़कियाँ हिन्दू नहीं थीं?
मुस्लिम आलिमों ने कभी इन बातों का प्रचार नहीं किया ताकि हिंदू समाज में आपस में नफ़रत न फैले।
जब हिंदुओं को, अवतारों और ऋषियों को मारने वाले हिंदुओं से हिंदू प्रेम करते हैं तो अगर वही काम मुस्लिमों ने कर दिए तो मुस्लिमों से नफ़रत क्यों?
एक से प्रेम और वही काम दूसरा करे तो तो नफ़रत?
इसी को पक्षपात और अन्याय करना कहते हैं और जो भी ऐसा करता है
वह धर्म और परमेश्वर का प्रिय कभी नहीं बन सकता। उसका ठिकाना नर्क है।
यह बात समझाने से काफ़ी लोग नफ़रत, पक्षपात और अन्याय से निकल आए हैं।
और जब वे नफ़रत से निकल आते हैं तो वे इस्लाम में कमियां बताने के बुरे फंदे से भी निकल आते हैं, जिसमें सत्ता के लोभियों ने अपने हित साधन के लिए उन्हें फंसा रखा था। 
ज्ञान से बड़ा होता है अनुभव। अपना अनुभव आपको बताने का मक़सद यह है कि आप ऐतराज़ के जवाब देने से पहले उन्हें नफ़रत से निकालें। अगर वे नफ़रत से निकल आए तो वे आपके दिए तथ्य निष्पक्ष होकर देखेंगे।
तब आप उन्हें बताएं कि
मुस्लिम और इस्लाम के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार के पीछे राजनैतिक स्वार्थ की सिद्धि मक़सद है। इसमें लाभ लीडर को होता है और युवाओं की बलि चढ़ जाती है। नफ़रत से उपजे आंदोलनों में मारे गए युवाओं की विधवाएं और बूढ़े मां-बाप आज भी अपनी ज़रूरतों के लिए भटक रहे हैं। कोई लीडर उनके आँसू नहीं पोंछता।
नफ़रत कैंसर से भयानक है।
सो नफ़रत से बचो। अपने और सबके हित में केवल शुभ और कल्याणकारी बात करें। अपने नज़रिए में नफ़रत के बजाय मुहब्बत को जगह दें। आपा तुरंत कल्याण होगा। आपको तुरन्त ख़ुशी मिलेगी। आपको अपने अंदर हल्कापन महसूस होगा।

Thursday, February 20, 2020

आवागमन: कौन सा कर्म गाय और कुत्ता बनने का कारण है? AWAGAMAN में विश्वास रखने वाले बताएं

पीरियड में खाना पकाने वाली औरतों को लेकर धर्मगुरु के विवादित बयान पर बवाल

अहमदाबाद, एजेंसी,Last Modified: Tue, Feb 18 2020. 20:08 IST



गुजरात के एक धार्मिक नेता ने कहा है कि मासिक धर्म (पीरियड) के समय पतियों के लिए भोजन पकाने वाली महिलाएं अगले जीवन में जानवर के रूप में जन्म लेंगी, जबकि उनके हाथ का बना भोजन खाने वाले पुरुष बैल के रूप में पैदा होंगे।स्वामीनारायण मंदिर से जुड़े स्वामी कृष्णस्वरूप दासजी ने कथित तौर पर यह टिप्पणी की है। इस बयान के सामने आने के बाद बवाल शुरू हो गया है।
यह स्वामीनारायण मंदिर भुज स्थित श्री सहजानंद गर्ल्स इंस्टिट्यूट (एसएसजीआई) नाम के उस कॉलेज को चलाता है जिसकी प्रधानाचार्य और अन्य महिला स्टाफ ने यह देखने के लिए 60 से अधिक लड़कियों को कथित तौर पर अंत:वस्त्र उतारने को विवश किया कि कहीं उन्हें माहवारी तो नहीं हो रही। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि लड़कियों ने कथित तौर पर हॉस्टल का वह नियम तोड़ा था जिसमें मासिक धर्म के समय लड़कियों के अन्य लोगों के साथ खाना खाने की मनाही है।
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मैंने इस ख़बर को पढ़कर फ़ेसबुक पर आवागमन की एक पोस्ट पर यह कमेंट किया है:
मेरे घर के बाहर एक कुतिया ने कुछ बच्चों को जन्म दिया। मैंने उनकी देखभाल की।
अब एक स्वामी जी से पता चला है कि वह कुतिया पिछले जन्म में वैदिक नारी थी लेकिन मासिक धर्म में रसोई में खाना बनाने के कारण वह कुतिया बन गई है। उस कुतिया को भी यह बात पता नहीं थी। मैंने उसे सूचित कर दिया है। वह पूछ रही है कि मर्दों को मासिक धर्म नहीं होता। फिर कुत्ता कौन बनता है और क्यों?
मैं उस कुतिया को संतुष्ट नहीं कर पाया।
मासिक धर्म वाली स्त्री के हाथ से खाना स्वीकार करके खाने वाला पुरुष बैल बन जाता है। यह बात भी एक स्वामी जी ने बताई है। मैंने एक बैल को यह बात बताई कि भाई आप सतर्क रहते तो बैल न बनते। वह बैल पूछ रहा है कि फिर गाय क्या खाकर गाय बनी है?
मैं बैल और कुतिया, दोनों के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाया। किसी भाई को पता हो तो कृपया उत्तर दें। कुतिया और बैल दोनों अपने प्रश्नों के उत्तर की प्रतीक्षा में हैं।

Sunday, February 16, 2020

वे पाँच बुनियादी सवाल क्या हैं, जिनका जवाब आलिम जानते हैं लेकिन उनके शागिर्द आम मुस्लिम नहीं जानते? -DR. ANWER JAMAL

आज मैंने फेसबुक पर अपने एक दोस्त की पोस्ट पढ़ी। उसे पढ़कर मैंने एक कमेंट किया। मैं उनकी वह पोस्ट और उस पर अपना कमेंट, दोनों  यहां दर्ज कर रहा हूं। आप भी इन दोनों को पढ़कर कमेंट करें और अपनी राय दें:
Abu Shariq: क्या इस्लाम धर्म का मक़सद सिर्फ ग़ैर मुस्लिमों को कलमा पढ़ा कर मुसलमानों के समूह में शामिल करके मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ाना है? अगर आप यह समझते हैं तो शायद आप को इस्लाम का ज्ञान नहीं है । क़ुरआन तमाम इंसानों को प्रकृति पर चिंतन करते हुए उसको उसके रचयिता और पालनहार को पहचानने की तरफ़ प्रेरित करता है। जिस सृष्टि के निर्माता ने इस पूरे संसार को चलाने के लिए प्राकृतिक नियम बनाए हैं, उसी ने तमाम इंसानों के लिए यूनिवर्सल प्राकृतिक नियमों को बनाया है। जो कोई भी उन प्राकृतिक नियमों को अपनाएगा उसका विकास होगा और जो उनको नहीं अपनाएगा उसका विकास संभव नहीं है, चाहे वह मुसलमान ही क्यों न हो। आज पूरी दुनिया में मुसलमान पिछड़ेपन का शिकार है चूंकि उन्होंने ख़ुदा के बनाए हुए प्राकृतिक नियमों को समझ कर उनका
पालन नहीं किया जबकि ग़ैर मुस्लिम क़ौमों ने अपने दिमागों का इस्तेमाल करते हुए उन प्राकृतिक नियमों को समझ कर उनका पालन किया। जिसके नतीजे में वे तरक्की कर रहे हैं. 

मेरा कमेंट:
इस्लाम का मक़सद यह है कि हरेक इंसान को सलामती और फ़लाह नसीब हो और जीवन के हर पहलू में सलामती और फ़लाह नसीब हो।
हर इंसान की जान, माल और आबरू सलामत रहे।
और फ़लाह यह है कि हर इंसान को रोटी, कपड़ा, मकान, निकाह, एजुकेशन, अमन, ख़ुशी और रोज़गार के मौक़े समान रूप से मौजूद हों।
इस्लाम का बुनियादी मक़सद है कि यतीम, बेघर, ग़ुलाम, औरत और कमज़ोर वर्गों का हाल दुनिया में अच्छा हो और पूंजीपति भी अच्छे हाल में सलामत रहें।
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का में हर धर्म के लोगों की मदद की। यह इतना बुनियादी और इतना लाज़िम काम है कि उन्होंने ऐलाने नुबूव्वत से पहले और बाद में; दोनों हाल में हर धर्म के लोगों की फ़लाह और सलामती के लिए बहुत काम किए। जब मदीना में  इस्लामी हुकूमत क़ायम हुई, तब नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन सब पहलुओं पर इतने काम किए, जिन्हें गिनने के लिए दस बीस किताबें भी काफ़ी नहीं हैं। आज भी जहां जहां इस्लाम के उसूलों पर हुक़ूमत काम करती है, चाहे उसके इस्लामी होने में कुछ कमी भी है, तब भी वे  अमीर, ग़रीब और दरम्याने तबक़ों की सलामती और फ़लाह के लिए काम करती हैं।
यह एक ट्रैजेडी है कि हमारे मौलवी साहब के विज़न में सबकी सलामती और फ़लाह नहीं है। न वे इसके लिए काम करते हैं। वे अपने मस्लक के मस्जिद और मदरसों की हिफ़ाज़त के लिए काम करते हैं। जिससे उनकी चौधराहट और रोज़ी का सिलसिला क़ायम है। गद्दी पर क़ब्ज़े की जंग में बड़े बड़े बहुत से फ़िर्क़े बन गए हैं और फिर उनमें भी छोटे छोटे ऐंठू अकड़ू ग्रुप बन गए हैं, जिनके मुक़दमे अदालतों में चल रहे हैं। जो पहले दुनिया के झगड़ों में फ़ैसला देते थे, अब वे आलिम मुश्रिकों से अपने झगड़ों के फ़ैसले कराने की अर्ज़ियाँ उम्मत के चंदे से टाईप कराते हैं।
वे आलिम अवाम से कहते हैं कि अपने झगड़ों का फ़ैसला शरई अदालतों में कराओ लेकिन वे ख़ुद अपने झगड़ों का फ़ैसला किसी मुफ़्ती या क़ाज़ी से नहीं कराते। वे आलिम कहते हैं कि दो मुस्लिम भी हों तो वे किसी एक को अपना अमीर बना लें लेकिन ख़ुद हज़ारों हैं और वे सब किसी एक आलिम को अपना अमीर और हकम नहीं बनाते।
ऐसे आलिमों का दावा है कि हम दीन फैला रहे हैं। जबकि हक़ीक़त यह है कि वे इल्म कम और जहालत और तास्सुब ज़्यादा फैला रहे हैं। इसे आप आसानी से चेक कर सकते हैं। 
जब मैं उनके पीछे नमाज़ पढ़ने और उन्हें चंदा देने वाले पढ़े लिखे लोगों से पूछता हूँ कि
1. अल्लाह के नाम का मतलब क्या है?
2. दुआ के रूक्न और शर्तें क्या हैं?
3. शिर्क और तौहीद की क़िस्में क्या हैं?
4. पवित्र क़ुरआन में कुल कितनी आयतें हैं?
5. पवित्र क़ुरआन की सबसे छोटी सूरह का मतलब क्या है?
तो आज तक एक आदमी ने भी इन सवालों का जवाब नहीं दिया। जिससे पता चलता है कि किसी हाजी नमाज़ी को अपने दीन के बारे में बुनियादी और मोटी मोटी बातों का भी पता नहीं है। अगर किसी को शिर्क की किस्मों का पता नहीं है तो वह उनसे कैसे बचेगा? जो शिर्क से ही नहीं बच रहा है, वह आख़िरत में फ़लाह और सलामती कैसे पाएगा?
ऐसे में उसे रब के क़ानूने क़ुदरत का कैसे पता हो सकता है, जिन पर यह कायनात और इंसानी ज़िंदगी चल रही है। 
जब हम यह बात कहते हैं तो कुछ लोग यह कहते हैं कि आप आलिमों को बुरा न कहो। ठीक है भाई, हम आलिमों को बुरा नहीं कहेंगे लेकिन आलिम भी आलिमों को बुरा कहना छोड़ दें। आलिमों ने आलिमों को काफ़िर, मरदूद और जहन्नमी बताने के लिए सैकड़ों किताबें लिखी हैं और पब्लिक में हज़ारों जलसे करके बताया है कि कौन सा आलिम क्यों बुरा है?, यह सब क्या है? जब तक वे किताबें बिकती रहेंगी, आलिमों के कहने पर आम लोग आलिमों को बुरा कहते रहेंगे। आलिम अपने तबक़े के ख़िलाफ़ ऐसी किताबें लिखना और उनकी कमाई खाना बंद करें।
सच यह है कि हम आलिमों को बुरा नहीं कहते। हम आलिमों को बुरा कहना ग़लत समझते हैं। हम ख़ुद आलिमों की नस्ल हैं और हमारे घरों में आलिम, हाफ़िज़, मुफ़्ती मौजूद हैं, अल्हम्दुलिल्लाह! हमारे दादा अब्दुल मुनीफ़ ख़ाँ के दादा हज़रत मौलाना अब्दुल अज़ीज़ ख़ाँ अंग्रेजों के ख़िलाफ़ रेशमी रूमाल आंदोलन चलाने वाले मौलाना महमूदुल हसन साहब के साथियों में थे। वह दारूल उलूम के एक बड़े उस्ताद थे और मौलाना हुसैन अहमद मदनी रहमतुल्लाहि अलैह उनके शागिर्दों में से थे। हज़रत मौलाना अब्दुल अज़ीज़ ख़ाँ साहब रहमतुल्लाहि अलैह एक बड़े ज़मींदार भी थे। वह दारूल उलूम देवबंद की, उसके उस्तादों और तलबा की मदद अपने माल से भी करते थे। उन्होंने दीन की हिफ़ाज़त में और आज़ादी की लड़ाई में अपना बहुत कुछ क़ुर्बान किया है। यह बात सामने रखकर हमारा लेख पढ़ें ताकि आपके माईंड में यह बात रहे कि हम जो बात कह रहे हैं, उसका ताल्लुक़ दीन की हिफ़ाज़त और अपनी उस आज़ादी की हिफ़ाज़त से है, जिसके लिए हमारे बड़ों ने, हमारे आलिमों ने क़ुर्बानियाँ दी हैं।
अगर नमाज़ में आलिम इमाम क़ुरआन से पढ़ते पढ़ते कुछ भूल जाए या ग़लत पढ़ दे तो क्या उसके पीछे ख़ड़ा नमाज़ी उसे सही आयत पढ़कर लुक़मा नहीं दिलाता। क्या आलिम को ग़लती पर तवज्जो दिलाना उसे बुरा कहना माना जाता है?
जब आलिम उम्मत की रहनुमाई में ग़लती करता है जैसे कि सबकी 'दुनिया में भी' सलामती और फ़लाह उसके विज़न और नीयत में नहीं होता और वह उसके लिए रोडमैप नहीं बनाता तो उम्मत की हालत ख़राब होने लगती है। औरतों की आबरू और मर्दों की जान जाने लगती है। ऐसे में भी आलिम अपनी फ़िरक़ाबंदी छोड़कर मुत्तहिद नहीं होते। जब आलिमों को ग़लती पर तवज्जो दिलाने पर वे उसे बुरा कहना मानते हैं और तवज्जो दिलाने वालों पर ही गुमराह और फ़ासिक़ का फ़तवा लगाने लगते हैं तो वे आम और पढ़े लिखे मुस्लिमों को अपने से निराश कर देते हैं। अब अवाम में उन्हें बुरा कहने वाले वुजूद में आते हैं।
आलिम हज़रात को आम मुस्लिम बुरा कहते हैं तो इसके पीछे ख़ुद उनका रोल कितना है? वे आज इस पर ग़ौर करें।
...और यह भी ध्यान रखें कि आम लोगों की शिकायत या उनके बुरा कहने के पीछे भी उलमा से एक उम्मीद है कि शायद ये अपनी रविश बदल लें; जोकि उनके उलमा से ताल्लुक़ की निशानी है। इससे यह  समझना ग़लत है कि वे उलमा के दुश्मन हैं। 
मैंने बचपन से अपने बच्चों को पवित्र क़ुरआन पढ़ाया हाफिज और आलिम बच्चों को क़ुरआन पढ़ाने के लिए घर पर आते हैं। मेरा एक बेटा 19 साल का हो चुका है। मेरी एक बेटी 16 साल की है। छोटे-छोटे 6 बच्चे और हैं। जिनमें दो 2-2 साल का फ़र्क़ है। उन्हें क़ुरआन मजीद पढ़ाने वाले किसी आलिम ने दस पाँच आयतों का भी मतलब आज तक नहीं बताया। क्या नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऐसे ही सहाबा ए किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम अज्मईन को क़ुरआन मजीद पढ़ाते थे?
अल्लाह की तरफ़ से मदद और फ़तह मिलने के उसूल क़ुरआन मजीद में हैं और एक तो यह कि सब मुस्लिम उसे पढ़ नहीं सकते और जो पढ़ सकते हैं, उन्हें पता नहीं है कि क़ुरआन मजीद की सबसे छोटी सूरह कौसर का अर्थ क्या है?, तो लाज़िमी बात है कि उन्हें अल्लाह की तरफ़ से मदद और फ़तह नहीं मिलेगी और वे अपने दुश्मनों के हाथों बर्बाद कर दिए जाएंगे। यही आज हो रहा है। इसीलिए मुझे मजबूरन आलिमों की ग़लती बतानी पड़ रही है क्योंकि आलिमों की इल्मी ग़लती की पर्दापोशी दीन में गुनाह है और इसका अज़ाब हम दुनिया में नक़द पा रहे हैं। इस अज़ाब से निकलने के लिए उस ग़लती की इस्लाह बहुत ज़रूरी है, जो उम्मत के वे रहबर कर रहे हैं, जो ख़ुद को नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का वारिस बताते हैं और अल्लाह के नाम का मतलब और दुआ के रूक्न तक उम्मत को नहीं बताते। जब अल्लाह का नाम और दुआ के रूक्न ही पता नहीं हैं तो दुआ का वुजूद ही नहीं है। फिर वह क़ुबूल कैसे होती?
इल्म न होने की वजह से हमारी दुआएं भी रंग नहीं ला रही हैं और इस सिलसिले में जो ग़लती हो रही है, उसे बताना मुझे ज़रूरी लगा, सो बता रहा हूँ।
मेरा मक़सद सिर्फ़ यह है कि सूरत बदलनी चाहिए, बस!
यह सूरत बदल सकती है, अगर हम अपने रब के क़ानूने क़ुदरत को समझ लें और इनमें सबसे पहले शुक्र को समझ लें।
हमें दीन की बुनियादी बातों की जानकारी के बाद यह पता होना ज़रूरी है कि इंसान की फ़लाह और सलामती के लिए शुक्र फ़र्ज़ है यानि ज़रूरी है। शुक्र नेमतें बढ़ती हैं और दुश्मन पस्त होता है। जब भी कोई नाशुक्रा आदमी किसी शु्क्रगुज़ार मददगार मोमिन का दुश्मन बनेगा और वह उसे मिटाना चाहेगा तो अल्लाह मोमिन की मदद करेगा और उसके दुश्मन  की जड़ काट देगा। आप सूरह कौसर में इसे देख सकते हैं।
जब आप सूरह कौसर को समझकर पढ़ते हैं। जब आप इसे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरत से जोड़कर पढ़ते हैं तो आप देखते हैं कि उनके दुश्मनों की जड़ कट गई। आज कोई भी आदमी ख़ुद को नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दुश्मनों की नस्ल से नहीं बताता। नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी में आपके  लिए नमूना और आदर्श है। इसमें इंसानियत के दुश्मनों की जड़ काटने का तरीक़ा भी मौजूद है।
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सूरह कौसर: बरकत का अनन्त ख़ज़ाना

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का और हर नबी का तरीक़ा शुक्र का तरीक़ा है।
مَّا يَفْعَلُ اللَّـهُ بِعَذَابِكُمْ إِن شَكَرْتُمْ وَآمَنتُمْ ۚ وَكَانَ اللَّـهُ شَاكِرًا عَلِيمًا ﴿١٤٧
अगर तुम अल्लाह का शुक्र करो और उसपर ईमान रखो तो अल्लाह तुम पर अज़ाब (कष्ट) देकर क्या करेगा बल्कि अल्लाह क़द्रदाँ और इल्म वाला है। -पवित्र क़ुरआन 4:147

आख़िर में हम उन सब आलिमों के शुक्रगुज़ार हैं, जिनके ज़रिए हमें इल्म और शूऊर हासिल हुआ और हम यह लेख लिखने के लायक़ हुए। हम अपने रब के शुक्रगुज़ार हैं कि हक़ जानने और बताने वाले आलिम हमारे दरमियान अब भी मौजूद हैं। 

Friday, February 14, 2020

अपनी दावते दीन को सुन्नत और सायकोलॉजी के मुताबिक़ करने के लिए करने होंगे ये दो काम -DR. ANWER JAMAL

अगर आप लोगों को अल्लाह के अज़ाब से डराकर नेक रास्ते पर लाने की कोशिश कर रहे हैं तो आप समझ लें कि बहुत कम लोग अल्लाह के अज़ाब से डरते हैं।
आप पवित्र क़ुरआन में सब नबियों के क़िस्से पढ़ें कि नबियों ने लोगों को अल्लाह के अज़ाब से डराया लेकिन ज़्यादातर लोग अल्लाह के अज़ाब से नहीं डरे।
इस एप्रोच से आप बहुत कम लोगों को प्रभावित और आकर्षित कर पाएंगे।
अल्लाह के आखिरी नबी मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने अपनी क़ौम को फ़लाह का सीधा रास्ता दिखाया। जिसमें आख़िरत से पहले दुनिया की फ़लाह भी शामिल है। अल्लाह के आखिरी नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बताया कि एक रब, अल्लाह की शुक्रगुज़ारी और फरमांबरदारी ही दुनिया की फ़लाह और आख़िरत की फ़लाह का सीधा रास्ता है। जो इस रास्ते पर नहीं चलते, उन्हें अल्लाह के अज़ाब से डरने की ज़रूरत है लेकिन उनकी क़ौम ने उनकी बात पर ध्यान देने के बजाय उन्हें जान से मारने की कोशिश की। लोगों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक्का छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।
उसी मक्का के लोगों ने जब फ़तह के बाद उन से दुनियावी फ़ायदा होते हुए देखा, उनके हाथ से माल मिलते हुए देखा तो उन्होंने उनकी हर बात को क़ुबूल कर लिया। अपनी क़ौम को नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पीछे जाते देखकर मक्का के सरदार भी मजबूरन ईमान ले आए।
आम और ख़ास दुनियादार इंसानों को आकर्षित करने वाली चीज़ दुनिया का फ़ायदा है और हमारे दीन में दुनिया का फ़ायदा पहुंचाना दीनी काम और अल्लाह की इबादत है।
अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में दोनों काम करने के लिए कहा है कि
1. लोगों से अल्लाह पर ईमान लाने के लिए कहो, उसकी नाफ़रमानी पर उसके अज़ाब से डराओ और लोगों का भला करो। अपनी बात के हक़ में दलील दो और बताओ कि आप अपना भला चाहते हैं तो अपना नज़रिया और अपना अमल सही कर लें।
2. इसी के साथ आप आम दुनियादार लोगों को दुनिया में रोज़ी, सेहत, माल, तालीम, दुआ और दवा का फ़ायदा पहुँचाओ। आप ऐसा करेंगे वे आपकी बात को मानेंगे। अगर वे फ़ौरन आपकी हिमायत में न भी खड़े हों, तब भी उनके दिलों में आपके भला इंसान होने की बात जम जाएगी। जो आपको के काम में सपोर्ट करेगी। जिसे भी दावत के मैदान में ज्यादा लोगों को आकर्षित करना हो, उसे लोगों के लिए नफ़ाबख़्श बनकर दावत और तब्लीग़ का काम करना होगा। 
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मक़बूल सहाबा ए किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम अज्मईन ये दोनों काम करते थे। आज दावती मुबल्लिग़ पहले काम को अंजाम दे रहे हैं लेकिन वे लोगों को दुख से निकाल कर उन्हें सुख पहुंचाना अपनी दावती ज़िम्मेदारियों में नहीं समझते, लेकिन कुछ मुबारक लोग ऐसा करते हैं।
अल्लाह नफ़ा पहुंचाने वाले कल्याणकारी इन्सान को ज़मीन में जमा देता है और उसके दुश्मनों की जड़ काटकर उन्हें अब्तर कर देता है।
किसी आदमी का धर्म, जाति और भाषा या देश कुछ भी हो, हरेक अपना भला चाहता है। उसका जो भी भला कर सकें, उसका भला करें और उसे दलील से सैटिस्फ़ाई करें कि इस्लाम के नज़रिए से उनका दुनिया में और मौत के वक़्त और मरने के बाद क्या क्या भला होता है?
इससे आपकी दावत में तासीर बहुत ज़्यादा हो जाएगी क्योंकि अब यह सुन्नत और सायकोलॉजी के मुताबिक़ होगी।

Sunday, February 9, 2020

आईये, अब अल्लाह के नामों के सम्बन्ध में कुटिलता ग्रहण करना छोड़ दें -DR. ANWER JAMAL

इस्लाम का एक मुबल्लिग़ अपने मदऊ लोगों से जो भी बात कहे, उन बातों में उसकी एक बुनियादी बात यह ज़रूर होती कि ऐ लोगो, अल्लाह की नाफ़रमानी न करो। जो अल्लाह की नाफ़रमानी करता है, उस पर अल्लाह का ग़ज़ब होता है।
उसकी तब्लीग़ के असर से कुछ लोग अल्लाह की नाफ़रमानी से बचने लगते हैं।
यह एक ट्रैजेडी कही जाएगी कि ख़ुद मुबल्लिग़ उस काम को करता रहे, जिससे अल्लाह ने रोका है और उस काम को अपनी तब्लीग़ में करता है तो बहुत बड़ी नाफ़रमानी है और जब ट्रेनिंग कैम्प लगाकर दूसरों को सिखाया जाए कि इस नाफ़रमानी को तुम भी करो तो फिर नाफ़रमानी की सूरते हाल एक ख़त्म न होने वाली चेन की सूरत में जारी हो जाती है, जिसका गुनाह हमेशा खाते में लिखा जाता रहेगा।
अल्लाह तआला ने अपने कलाम में बिल्कुल साफ़ हुक्म दिया है- 'अच्छे नाम अल्लाह ही के हैं। तो तुम उन्हीं के द्वारा उसे पुकारो और उन लोगों को छोड़ो जो उसके नामों के सम्बन्ध में कुटिलता ग्रहण करते हैं। जो कुछ वे करते है, उसका बदला वे पाकर रहेंगे.'
-पवित्र क़ुरआन 7:180
अल्लाह तआला मोमिनों को हुक्म दे रहा है कि 'उन लोगों को छोड़ो जो उसके नामों के सम्बन्ध में कुटिलता ग्रहण करते हैं।'
यह हुक्म इतना साफ़ है कि हरेक मोमिन इसे क़ुबूल करेगा कि हाँ, उन लोगों को छोड़ देना चाहिए जो अल्लाह के नामों के सम्बन्ध में कुटिलता ग्रहण करते हैं।
अल्लाह के नामों में कुटिलता करना क्या है?, यह एक पूरा सब्जेक्ट है लेकिन इसमें एक बात भी है कि अगर कोई कहे कि सूरज, चाँद, राहु, केतु, आग, पानी, आकाश, पृथिवी और वायु परमेश्वर के नाम हैं तो यह कहना अल्लाह के नामों में कुटिलता करना है। जो भी ऐसा करे, उसे छोड़ दो। उसकी इस मान्यता को छोड़ दो कि सूरज, चाँद, राहु, केतु, अग्नि, जल, आकाश, पृथिवी और वायु परमेश्वर के नाम हैं और उसकी किताबों से वे हवाले देना छोड़ दो, जिनमें सूरज, चाँद, राहु, केतु, अग्नि, जल, आकाश, पृथिवी और वायु को परमेश्वर के नाम बताए गए हैं।

आपको ताज्जुब हो सकता है कि ऐसा कौन है जो सूरज, चाँद, राहु, केतु, अग्नि, जल, आकाश, पृथिवी और वायु को परमेश्वर के नाम बताए। ये नाम परमेश्वर के नहीं हैं बल्कि ये नाम चीज़ों के हैं।
स्वामी दयानंद ऐसा आदमी है, जो अपनी किताब सत्यार्थ प्रकाश के पहले समुल्लास में सूरज, चाँद, राहु, केतु, अग्नि, जल, आकाश, पृथिवी और वायु को परमेश्वर के नाम बताता है। इसी मान्यता के आधार पर उसने वेदों में सूरज, चाँद, राहु, केतु, अग्नि, जल, आकाश, पृथिवी और वायु का अर्थ परमेश्वर करके वेद मंत्रों का मनचाहा अर्थ ऐसे तराशा है, जैसे दर्ज़ी अपनी पसंद से कपड़ा काटता है।
उन्हीं वेद मंत्रों का अर्थ दयानंद से पहले के विद्वान के भाष्य में देखा जाता है तो वह सूरज, चाँद, राहु, केतु, अग्नि, जल, आकाश, पृथिवी और वायु का अर्थ सूरज, चाँद, राहु, केतु, अग्नि, जल, आकाश, पृथिवी और वायु ही बताता है।
अब इसका फ़ैसला कैसे हो कि सूरज, चाँद, राहु, केतु, अग्नि, जल, आकाश, पृथिवी और वायु चीज़ों के नाम हैं या परमेश्वर के?
हम इसका फ़ैसला पवित्र क़ुरआन से करेंगे क्योंकि
'अगर अब भी ना जागे तो...' नाम की किताब में अध्याय 21 का शीर्षक है- 'कसौटी केवल क़ुरआन'
इस अध्याय में यह वेद का अनुवाद करने वाले पंडितों को यह सुझाव दिया गया है और बिल्कुल ठीक सुझाव दिया गया है कि यदि वेदों के अनुवादक क़ुरआन की रौशनी में वेदों का अध्ययन करें तो वे तमाम रहस्य और गुत्थियाँ सुलझ जाएंगी जो वेदों में आज तक उनके लिए वाग्जाल बनी हुई हैं...' पृष्ठ 183
अब आप ख़ुद पवित्र क़ुरआन की रौशनी में यह देख लें कि क्या अल्लाह ने क़ुरआन में सूरज, चाँद, राहु, केतु, अग्नि, जल, आकाश, पृथिवी और वायु को अपना नाम बताया है?
नहीं!
तो फिर जब 'कसौटी केवल क़ुरआन' है तो आप फ़ैसला करें कि आप सूरज, चाँद, राहु, केतु, अग्नि, जल, आकाश, पृथिवी और वायु को परमेश्वर अल्लाह का नाम मानकर अल्लाह के नामों में जो कुटिलता ग्रहण किए हुए थे, उसे छोड़ देंगे ताकि आप अल्लाह की नाफ़रमानी से बच जाएं और आपसे दूसरे लोगों में भी यह बात नहीं जानी चाहिए।
हक़ीक़त यह है कि इस्लाम में एकेश्वरवाद देखकर हिन्दू मुस्लिम बन रहे थे। स्वामी दयानन्द जी ने हिन्दुओं को इस्लाम से रोकने के लिए वेदों में एकेश्वरवाद दिखाना ज़रूरी समझा। इसके लिए उन्होंने सूरज, चाँद, राहु, केतु, अग्नि, जल, आकाश, पृथिवी और वायु को परमेश्वर का नाम बताकर अपनी पसंद का अर्थ जबरन सिद्ध कर दिया लेकिन रब का शुक्र है कि पवित्र क़ुरआन की रौशनी में देखने से यह कुटिल चाल पकड़ में आ गई।
इसलिए इस्लाम की तब्लीग़ करने वाले मोमिन भाई स्वामी दयानन्द की इस कुटिल चाल को पहचानें और उनके द्वारा किए गए वेदानुवाद को ख़ुद चेक करें कि जिस नाम को वह परमेश्वर का नाम बता रहे हैं, वह परमेश्वर का नाम है या किसी चीज़ का नाम है?
स्वामी दयानन्द ने बहुत जगह ऐसा किया है कि वेद में किसी ऐतिहासिक घटना का ज़िक्र आया है तो उन्होंने उस जगह अलंकार मानकर वेद मंत्रों का मनचाहा अनुवाद कर दिया है। परमेश्वर अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में मिसालें बयान करके यह बात भी ज़ाहिर कर दी है कि वह कैसी मिसालें देता है?
इससे यह तय करना आसान हो जाता है कि यह मिसाल परमेश्वर अल्लाह ने दी है या नहीं!
उन वेद मंत्रों को दूसरे संप्रदाय के पंडितों के अनुवाद में भी देख लें। इससे भी बात को समझना और अल्लाह की नाफ़रमानी को छोड़ना आसान हो जाता है।

Saturday, February 1, 2020

जानिए ख़तना के अनसुने चमत्कारी लाभ और पाईये सेहत, सलामती और ख़ुशी सदबहार -Dr. Anwer Jamal




ख़तना पर Anwarul Hassan भाई ने बहुत अच्छा लेख लिखा है। हम उनके शुक्रगुज़ार हैं। उनकी पोस्ट पर हमने कमेंट किया तो वह अपलोड न हुआ क्योंकि वह ज़्यादा बड़ा हो गया था और फिर वह कापी भी न हुआ। सो हमने अपने कमेंट के स्क्रीन शाट लेकर यहाँ आपके लिए सजा दिए हैं। आप अनवारूल हसन भाई का 'ख़तना' पर लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए फ़ेसबुक लिंक पर क्लिक करें:

How can you create love for yourself in the heart of haters? -Dr. Anwer Jamal

जो लोग आप से नफ़रत करते हैं आप उन्हें तर्क देकर अपने आप से मुहब्बत करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। बचपन से उन लोगों के मन में थोड़ी थोड़ी करके नफरत डाली गई है और राजनैतिक हितों के लिए कुछ लोगों ने उनके माईंड में नफ़रत की प्रोग्रामिंग कर दी है। जिससे उनका माइंड नफरत के लिए सेट हो चुका है। वे आप से नफ़रत करते हैं और अब उन्हें आप से नफ़रत करने के लिए किसी वजह की ज़रूरत भी नहीं है। आप चाहे किसी भी धर्म, संस्कृति, भाषा, देश और प्रदेश के हैं, कुछ लोग आपसे नफ़रत करते हैं। यह एक सामाजिक सत्य है। आज हम इसी सब्जेक्ट पर बात करेंगे कि किस तरीक़े से आप इन नफ़रत करने वालों का माइंडसेट चेंज कर सकते हैं?

आदमी अपना फ़ायदा देख कर अपना विचार बदल लेता है
मैं इस बात को आपके सामने एक छोटी सी कहानी के ज़रिए पेश कर रहा हूं। एक दिन एक टीचर ने अपनी क्लास के स्टूडेंट्स से यह सवाल किया कि मान लो आप स्कूल से घर के लिए जा रहे हैं और आपको रास्ते में मिट्टी की  दो मूर्तियां पड़ी हुई मिलती है, जिनमें से एक मूर्ति राम की है और दूसरी रावण की। अगर आपको एक मूर्ति घर ले जानी हो तो आप किस मूर्ति को उठाकर अपने घर ले जाएंगे?
सभी बच्चों ने जवाब दिया कि हम राम जी की मूर्ति उठाकर अपने घर ले जाएंगे।
उस टीचर ने फिर सवाल किया कि मान लो उसमें राम जी की मूर्ति मिट्टी की है और रावण की मूर्ति सोने की है तो फिर आप उनमें से कौन सी एक मूर्ति उठाकर अपने घर ले जाएंगे?
सभी बच्चों ने जवाब दिया कि हम रावण की सोने की मूर्ति उठाकर अपने घर ले जाएंगे।
इस कहानी के ज़रिए ह्यूमन साइकोलॉजी सामने आती है कि इंसान अपना फ़ायदा देख कर अपना ख़याल और अपना अमल बदल लेता है। आप किसी से डिबेट करके अपने आपको बढ़िया साबित कर भी दें तो भी आप अपने आप से नफरत करने वालों को मुहब्बत करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। उनका बिहेवियर वैसा ही रहेगा, जैसा उनका माईंडसेट है।
हाँ, अगर उन्हीं लोगों को आप से फ़ायदा पहुंचने लगे तो वे अपना फ़ायदा देखकर ज़रूर अपना ख़याल और अपना अमल बदल लेंगे और वे आपसे मोहब्बत करने लगेंगे। वे आपके पीछे चलने लगेंगे। वे आपकी बात मानने लगेंगे।
अब आप अपने आप से नफ़रत करने वालों को क्या फायदा पहुंचा सकते हैं यह सोचना आपका काम है। आजकल लाइव कोचिंग और वैलनेस कोचिंग का रिवाज आम है जिसके ज़रिए लोगों के जीवन की समस्याओं को दूर किया जाता है। आप यह कल्याणकारी ज्ञान हासिल करके लोगों को बहुत ज़्यादा फ़ायदा पहुंचा सकते हैं।
वैलनेस कोचिंग और लाइव कोचिंग के ज्ञान में यूनिवर्सल माइंड के काम करने के तरीके की जानकारी हासिल की जाती है इस जानकारी को हासिल करने के बाद हरेक यह आसानी से समझ सकता है कि जो लोग नफरत करते हैं, दरअसल वे हिप्नोटिज्म के शिकार हैं। नफरत के जादूगरो ने एक ही बात को बार-बार दोहरा कर उन्हें एक तिलिस्म (matrix) में कैद कर दिया है। आप सही दलीलों को बार-बार रिपीट करके और फ़ायदा पहुंचा कर नफ़रत के तिलिस्म में क़ैद लोगों को रिहा कर सकते हैं। 
आप जिस समाज में रहते हैं उस समाज के लोगों के प्रति आपकी जिम्मेदारी बनती है। नफरत दिल का एक भयानक रोग है। एक अच्छा समाज बनाने के लिए और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप नफरत के रोगियों का इलाज करें और उन्हें हेल्दी बनाएं।
  • मैं जब अपने संपर्क में आने वाले लोगों से बात करता हूं तो मैं उन्हें ऐसी बातें बताता हूं जिनसे उन्हें फायदा पहुंचता है। जैसे कि मैं उन्हें यह कानून कुदरत सिखाता हूं जो हर एक धर्म की किताब में लिखा हुआ है कि शुक्र करने से वह नेमत बढ़ने लगती है जिस नेमत पर शुक्र किया जाता है और यह कि शुक्र करने से अज़ाब और कष्ट दूर हो जाता है।
  • मैं हर धर्म के ग़रीब क़र्ज़दार मज़दूरों और बेरोज़गार लड़के लड़कियों को छोटी पूंजी से व्यापार करके आमदनी दस गुना करना सिखाता हूँ। अल्हमदुलिल्लाह इससे काफी लोगों को रोज़गार मिला है और बहुत लोगों की आमदनी दोगुना और दस गुना हुई है।
  • कहते हैं कि दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है। इसलिए मैं अपनी जेब में किशमिश और बादाम या ऐसी ही कोई चीज़ रखता हूं। जिन्हें मैं दूसरों के साथ शेयर करता हूं। इससे दूसरों को अच्छा फ़ील होता है। मेरी कोशिश होती है कि मेरे पास आने वाले मुझसे मिलकर अच्छा फ़ील करें। इस बहाने मैं लोगों को फ़ूड हैबिट्स और सेहत के आपसी रिश्ते के बारे में कुछ अच्छी बातें बताता हूँ। जिनमें से कुछ बातें वे पहली बार सुनते हैं। उन्हें मुझसे पहली बार पता चलता है कि मामरा बादाम (Mamra Badam) नाम का कोई बादाम होता है और यह दूसरे बादाम से कई गुना ज़्यादा पावरफ़ुल होता है।
  • इसके अलावा मेरी जानकारी में उनकी जो समस्या आती है, मैं उसे हल करने के लिए उनका साथ देता हूं। मैं उन्हें अपने ज्ञान से, अपने साधनों से और अपने धन से फ़ायदा पहुंचाने के काम करता हूं। इसका फ़ायदा यह होता है कि उन लोगों के दिलों में मेरे लिए मुहब्बत पैदा हो जाती है और वे भी मेरी भलाई में लग जाते हैं। मुझे अपने कामों में उनसे मदद मिलती है। वे रात और दिन, हर वक़्त मेरी मदद के लिए तैयार रहते हैं, अल्हम्दुलिल्लाह!
इससे एक ऐसा समाज वुजूद में आता है, जिसमें सब लोग एक दूसरे की भलाई में अपने धन और साधन से लगे हुए हैं।
मेरा मक़सद और मेरी चाहत यही है कि हम सब शुक्रगुज़ार हों और हम सब आपस में एक दूसरे के मददगार हों। इसी से हम सबका भला होगा।