हज़रत मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहम. देवबन्द के दीनदार आलिम घराने से ताल्लुक़ रखते थे। वह रामपुर के मदरसा ए आलिया में टीचर थे। उनकी दो किताबें बहुत मशहूर हैं-
1. क्या हम मुसलमान हैं?
2. अगर अब भी न जागे तो...
रिश्तेदारों से मिलने के लिए वह देवबन्द आते जाते रहते थे। मैं उनसे मिलने के लिए पहली बार उनके घर गया तो देखा कि उनका घर पुराने तजऱ् का बना हुआ था। उसमें कडि़या पड़ी हुई थीं। वह हमें ऊपर के कमरे में ले जा कर बिठाते थे। उस कमरे की कडि़या इतनी ज़्यादा पुरानी और कमज़ोर थीं कि तब्दीली ए क़ौम से पहले वे ख़ुद अपनी तब्दीली का तक़ाज़ा मौलाना से कर रही थीं।
मौलाना की आमदनी उस मकान की मरम्मत का तक़ाज़ा पूरा नहीं कर सकती थी। सो मौलाना का मकान उसी हालत में बदस्तूर क़ायम रहा, यहां तक कि उनके भतीजे मुराद ने अपनी फ़ाइनेन्शियल प्राॅब्लम को हल करने के लिए एक दिन उसे बेच दिया। मकान मुश्तरका था। उस मकान में दाखि़ले का एक ही दरवाज़ा था।
आज मैं आपको उनकी जि़न्दगी का एक ऐसा वाक़या बताता हूं कि अगर मैं न बताऊं तो फिर शायद कोई दूसरा तो इसे यहां दर्ज न करेगा और हज़रत मौलाना की ख़ूबी सामने आने से ही रह जाएगी।
मैं एक दिन मौलाना से मुलाक़ात के लिए पहुंचा तो देखा कि मौलाना बहुत दुखी हैं। उन्होंने बताया कि उनके भतीजे मुराद ने पूरा मकान ही बेच दिया है। मुराद भाई ने अपना हिस्सा भी बेच दिया था और उनसे इजाज़त लिए बिना ही उनका हिस्सा भी बेच दिया। इस तरह मौलाना दुनिया में अपने घर से बेघर हो गए थे।
मौलाना रहम. के इस वाक़ये से जो बात सीखने की है, वह यह है कि उन्होंने उसी दुख के हाल में भी अपने साथ बुरा करने वाले को माफ़ करना याद रखा।
हज़रत मौलाना ने फ़रमाया-‘लेकिन मैं मुराद से आखि़रत में इस पर कोई मुआखि़ज़ा नहीं करूंगा।’
हज़रत मौलाना रिश्तेदारों के साथ सिला रहमी और हुस्ने सुलूक से पेश आते थे। वह रिश्तों को इकतरफ़ा तौर पर निभाते थे। इसी ख़ूबी का आदमी दावत का काम कर सकता है।
जो अपना हक़ मारने वाले को माफ़ नहीं कर सकता, वह दावत का काम ज़्यादा देर तक नहीं कर सकता।
1. क्या हम मुसलमान हैं?
2. अगर अब भी न जागे तो...
रिश्तेदारों से मिलने के लिए वह देवबन्द आते जाते रहते थे। मैं उनसे मिलने के लिए पहली बार उनके घर गया तो देखा कि उनका घर पुराने तजऱ् का बना हुआ था। उसमें कडि़या पड़ी हुई थीं। वह हमें ऊपर के कमरे में ले जा कर बिठाते थे। उस कमरे की कडि़या इतनी ज़्यादा पुरानी और कमज़ोर थीं कि तब्दीली ए क़ौम से पहले वे ख़ुद अपनी तब्दीली का तक़ाज़ा मौलाना से कर रही थीं।
मौलाना की आमदनी उस मकान की मरम्मत का तक़ाज़ा पूरा नहीं कर सकती थी। सो मौलाना का मकान उसी हालत में बदस्तूर क़ायम रहा, यहां तक कि उनके भतीजे मुराद ने अपनी फ़ाइनेन्शियल प्राॅब्लम को हल करने के लिए एक दिन उसे बेच दिया। मकान मुश्तरका था। उस मकान में दाखि़ले का एक ही दरवाज़ा था।
आज मैं आपको उनकी जि़न्दगी का एक ऐसा वाक़या बताता हूं कि अगर मैं न बताऊं तो फिर शायद कोई दूसरा तो इसे यहां दर्ज न करेगा और हज़रत मौलाना की ख़ूबी सामने आने से ही रह जाएगी।
मैं एक दिन मौलाना से मुलाक़ात के लिए पहुंचा तो देखा कि मौलाना बहुत दुखी हैं। उन्होंने बताया कि उनके भतीजे मुराद ने पूरा मकान ही बेच दिया है। मुराद भाई ने अपना हिस्सा भी बेच दिया था और उनसे इजाज़त लिए बिना ही उनका हिस्सा भी बेच दिया। इस तरह मौलाना दुनिया में अपने घर से बेघर हो गए थे।
मौलाना रहम. के इस वाक़ये से जो बात सीखने की है, वह यह है कि उन्होंने उसी दुख के हाल में भी अपने साथ बुरा करने वाले को माफ़ करना याद रखा।
हज़रत मौलाना ने फ़रमाया-‘लेकिन मैं मुराद से आखि़रत में इस पर कोई मुआखि़ज़ा नहीं करूंगा।’
हज़रत मौलाना रिश्तेदारों के साथ सिला रहमी और हुस्ने सुलूक से पेश आते थे। वह रिश्तों को इकतरफ़ा तौर पर निभाते थे। इसी ख़ूबी का आदमी दावत का काम कर सकता है।
जो अपना हक़ मारने वाले को माफ़ नहीं कर सकता, वह दावत का काम ज़्यादा देर तक नहीं कर सकता।