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Thursday, January 31, 2019

Self Talk: क्या आप हर सवाल का जवाब पाने का आत्मिक-वैज्ञानिक तरीक़ा जानते हैं? Dr. Anwer Jamal

क्या ईश्वर है?
फ़ेसबुक पर प्रशान्त कुमार फ़्रेन्ड बन गए। वह यह सवाल पूछते थे कि 'क्या ईश्वर है?'
'हमने उन्हें मैसेंजर में अपनी एक ब्लाग पोस्ट का यह हिस्सा भेज दिया:
ईश्वर अल्लाह के वुजूद का सुबूत इंसान की चेतना है।
इंसान ख़ुद से ग़ाफ़िल है।
वह ख़ुद में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
वह ज़मीन आसमान की चीज़ों में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
पवित्र क़ुरआन जगह जगह अपने आप में और ज़मीनो आसमान में ग़ौरो फ़िक्र की हिदायत करता है।
हरेक नास्तिक अपनी चेतना पर ध्यान दे और बताए कि यह क्या है?
जब वह अपनी चेतना के बारे में बताना शुरू करेगा तो वह ख़ुद ईश्वर और आस्तिकता की तरफ़ क़दम बढ़ाना शुरू कर देगा।
ख़ुशी की बात यह है कि क्वांटम फिजिक्स के साइंटिस्ट्स अब चेतना (Consciousness) पर रिसर्च करके जान रहे हैं कि यह कैसे काम करती है?
जब चेतना है तो कोई उस चेतना का स्रोत (Source) भी है। जब नास्तिक लोग चेतना को मानते हैं तो उसके सोर्स के बारे में बताएं और चेतना का इन्कार वे कर नहीं सकते।
क्या इंसान अपनी चेतना का, अपने वुजूद का इन्कार कर सकता है?
जब इंसान अपने वुजूद को मानता है तो अपने सोर्स को तलाश करे। जब इंसान है तो उसका सोर्स भी है। कोई इंसान उस सोर्स को जान और समझ न पाए, यह मुमकिन है। तब वह आदमी अपनी बेबसी और आजिज़ी का इक़रार करें कि मैं अपने वुजूद के सोर्स को जान और समझ नहीं पाया। सब नास्तिक कहलाने वालों को यही करना चाहिए।'
पूरी पोस्ट इस लिंक पर पढ़ें:
https://dawahpsychology.blogspot.com/2019/01/india-dr-anwer-jamal.html?m=1

बहस करने वाले ज़िद्दी लोगों के माइन्ड में बदलाव की शुरुआत कैसे करें?
Prashant Kumar मुझसे मैसेंजर में बात कर रहे थे और यह चाहते थे कि मैं उन्हें ईश्वर के होने के सुबूत दूं।
💓😊💓
वह सुबूत मैंने दिए नहीं।
⭐🌹⭐
मैं ऐसा मौक़ा नहीं देता कि मेरा विरोधी मेरा वक़्त बेकार करे।
मुझे मालूम है कि मैं जो भी दलील दूंगा, वह उसका इन्कार करता रहेगा और मेरा वक़्त बेकार करेगा क्योंकि उसके पास पहले से एक नज़रिया है, जिससे वह दलीलों को जज करता है। उसका माइन्ड प्रोग्राम्ड है। 
मुझे मालूम है कि वह पहले भी मुस्लिमों से इस विषय पर डिबेट कर चुका होगा और वह इस विषय में एक दर्जे में एक्सपर्ट हो चुका होगा।
💞💕💞
सोशल वेबसाइट्स पर बहस करने वाले जब कोई सवाल करते हैं तो अक्सर वे लोग कुछ जानने की इच्छा नहीं रखते बल्कि वे मुस्लिम मुबल्लिग़ को हराने की नीयत रखते हैं।
वे अपनी नज़र में एक वैचारिक युद्ध लड़ रहे हैं।
जब ऐसा कोई योद्धा मुझसे पहले लड़ने आता था तो मैं नया था। मैं उसकी नीयत को नहीं पहचानता था। मैं उसे आख़िरत में जहन्नम की आग से बचाने के लिए तड़पकर सोचता और लिखता था।
मैं उसे प्यार और दलील से समझाते हुए एक दो साल लगा देता था और कुछ लोगों के साथ सात साल भी लग गए। कुछ के नज़रिए में बदलाव आया और कुछ आज भी पहले दिन जैसे ही विरोधी और हठी बने हुए हैं।
🌿⭐🌿
वक़्त और तजुर्बात ने मुझे यह सिखाया है कि जो ज्ञान चाहे, उसे तुरंत ज्ञान दो और और जो वैचारिक युद्ध करने आए सबसे पहले उसके कवच, कुंडल और हथियार रखवा लो। अब मैं उसे नि:शस्त्र करना ज़रूरी समझता हूं।
इसके लिए मैं उसे ऐसे mental field में ले जाता हूं, जिसे वह नहीं जानता। इंसान ख़ुद को और अपने मन की शक्तियों को नहीं जानता।
अब वह एक नौसिखिया हो जाता है। उसके पास दलील देने के लिए कुछ बाक़ी नहीं रहता। अब वह सिर्फ़ सुनता है और वह एक नए ज्ञान के लालच में मुझे छोड़कर भाग भी नहीं पाता।
वह मेरे दिए सब्जेक्ट को मुझसे छिपकर इन्टरनेट पर चोरी चोरी पढ़ता है
और यहीं से उसके नज़रिए में एक बदलाव की शुरुआत हो जाती है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
🧠
मैंने प्रशान्त कुमार जी से कहा कि मैं उन्हें ईश्वर के होने के बारे में कुछ सिद्ध नहीं करूंगा बल्कि उन्हें एक तरीक़ा बताऊंगा, जिससे जवाब उसके अंदर से ख़ुद आएगा।
💓💞💓
मैंने उन्हें दो बुक्स पढ़ने के लिए कहा कि आप पहले ये पढ़ लें और फिर मैं आपको वह तरीक़ा बता दूंगा।
जिससे आपका दिल आपको ख़ुद बता देगा कि ईश्वर है या नहीं!
दोनों बुक्स westerners की लिखी हुई हैं और ईश्वर के होने न होने की दलीलें उसमें नहीं हैं। उनमें अपने मन से अपने सवालों के जवाब लेने के तरीक़े लिखे हुए हैं।
📗📗
आप प्रशान्त कुमार जी से हुई मैसेंजर चैट देखेंगे तो आप उन दोनों किताबों के नाम देख सकते हैं।
😊😊😊














हर सवाल का जवाब पाने का आत्मिक-वैज्ञानिक तरीक़ा:
यह तरीक़ा बहुत आसान और बहुत मुश्किल है। यह आसान इसलिए है कि इसमें आपको कुछ करना नहीं पड़ता और यह मुश्किल इसलिए है कि आपको जिस विषय में सवाल का जवाब अपने अंदर से लेना है तो पहले आपको उस विषय में अपनी पहले से बनी हुई मान्यता को न्यूट्रल करना होगा, पक्षपात से बचना होगा वर्ना अंदर से असली जवाब नहीं आएगा बल्कि रट्टू तोते की तरह मन को बाहर से जो याद कराया गया है, वही दोहरा देगा। हर वक़्त मन के विचारों और उसमें उठने वाली भावनाओं पर नज़र रखनी है और पहले से बनी मान्यताओं के असर से अपने मन में उठने वाले विचारों और भावनाओं को हटाते रहना है। बस यही काम सबसे मुश्किल काम है।
किसी नास्तिक को को पूछना है कि ईश्वर है या नहीं तो वह अपने मन में यह जान सकता है क्योंकि मन उसके भी पास है।
रोज़ाना रात को सोते वक़्त बिल्कुल आख़िर में वह अपने मन में यह नीयत कर ले कि जो बात सत्य है, वही मेरे मन में जम आए। अगर ईश्वर है तो यह बात मेरे मन में जम जाए और मैं ख़ुद ही ईश्वर के सबसे सीधे रास्ते पर आ जाऊँ। अगर ईश्वर नहीं है तो यही बात मेरे मन में जम जाए। इसी विचार को लेकर सोना है। सुबह को इसी विचार को लेकर जागना है। इसके पक्ष या विपक्ष, समर्थन या विरोध में तर्क से कुछ नहीं सोचना है। पक्ष या विपक्ष में जो भी तर्क आए, वह उसे हटाता जाए और ख़ुद को केवल निष्पक्ष रखें, न इधर और न उधर।
दूसरा मुश्किल काम सब्र करना है। हर आदमी चाहता है कि मुझे जल्दी से पता चल जाए कि ईश्वर है या ईश्वर नहीं है। अगर आपको जल्दी है तो यह तरीक़ा आपके लिए नहीं है। आपके लिए पहले से बहुत जवाब तैयार हैं। आप उनमें से मनचाहा जवाब चुन सकते हैं लेकिन आप यहां भी अपने मन का ही इस्तेमाल करते हैं।
Self Talk के तरीक़े में आपको जवाब आने तक सब्र करना होगा। हरेक को जवाब आने में अलग वक़्त लगता है।
किसी को कम और किसी को ज़्यादा। हाँ, आपके सवाल का जवाब ज़रूर आता है।
जब आप सत्य के लिए ख़ुद को खोलते हैं और जो भी सत्य है, उसे क़ुबूल करने के लिए ख़ुद को तैयार करते हैं तो जब भी आप पूरी तरह तैयार हो जाते हैं तो सत्य आपके अंदर से ही आप पर ज़ाहिर हो जाता है। आपको तैयार होने में जितना समय लगेगा, आपको जवाब मिलने मिलने में उतना ही वक़्त लगेगा।
और यह जवाब बाहर से तर्क और शब्द में नहीं आएगा बल्कि आपका अवचेतन मन आपकी डिमांड के मुताबिक़ आपको उसी हाल में ढाल देगा। आपका मन आपको ईश्वर के सबसे सीधे रास्ते पर ख़ुद खड़ा कर देगा।
जब आप वही बन चुके होंगे जोकि सत्य को पा लेने वाला बन जाता है तब आप ख़ुद जान लेंगे कि यह मेरे सवाल का जवाब है।
इस तरीक़े से आप हरेक सवाल का जवाब जान सकते हैं। वैज्ञानिक भी अपने सवालों के जवाब खोजने में इस तरीक़े से काम लेते हैं।

Wednesday, January 23, 2019

जानिए India में नास्तिक कैसे करते हैं धार्मिक क़ानून का पालन? Dr. Anwer Jamal

*Dawah Dialogue*
⭐💚⭐
'सत्यार्थ प्रकाश:समीक्षा की समीक्षा', यह किताब दावती दुनिया की बहुत मशहूर किताब है। सतीश चन्द गुप्ता जी इसके लेखक हैं। उनकी इस किताब को बहुत लोग इंटरनेट पर इस लिंक पर पढ़ते हैं:
⭐💚⭐
Satish Gupta जी ने यह लेख फ़ेसबुक पर लिखा है:
🙏चिंतन और चिंता🙏
जीवन का बड़ा सवाल यह है कि हम क्यों है ? हमें क्यों होना पड़ा है ? हमारे होने का कौन सा प्रयोजन है ? कौन सा अर्थ है ?
अगर हमें यह भी पता न चल पाए कि कौन सा प्रयोजन है, कौन सा अर्थ है, तो हम जीएंगे तो जरूर, लेकिन जीवन एक बोझ होगा। घटनाएं घटेंगी और समय व्यतीत हो जाएगा, जन्म से लेकर मृत्यु तक हम यात्रा पूरी कर लेंगे। लेकिन किसी सार्थकता को, किसी कृतार्थता को, किसी धन्यता को अनुभव नहीं कर पाएंगे।
हम करीब-करीब जीवन से अनजान और अपरिचित ही जीवन जीते हैं। निश्चित ही ऐसा जीवन कोई आनंद, कोई शांति, कोई सुख न दे पाए तो अस्वाभाविक नहीं होगा। 
यही स्वाभाविक होगा कि जीवन एक दुख और चिंता, परेशानी और पीड़ा बन जाए। वैसा ही हमारा जीवन है।
बहुत थोड़े से लोग ही जीवन की सार्थकता को जान पाते हैं। हरेक मनुष्य के लिए जीवन को जानने के लिए सर्वप्रथम आवश्यक होगा कि उनके भीतर कोई प्यास हो, कोई तलब हो, कोई तलाश हो।
......✍🌏
हमने इस लेख पर जवाब देते हुए यह कमेंट किया है:
'हम क्यों हैं?'
यह जीवन क्यों हैं?
हम कैसे हैं?
यह जीवन कैसे है?
एक प्रयोजन तो प्रकृति में बिल्कुल स्पष्ट है।
वह यह है कि सारे जीव एक दूसरे को खाकर जीवित हैं और खाने के लिए जीवित है।
आप दही के सूक्ष्म बैक्टीरिया खा जाएं। दूसरी तरह के सूक्ष्म बैक्टीरिया आपको खा जाएंगे। आपको, खरबों सूक्ष्म बैक्टीरिया इस समय भी आपके शरीर के अंदर घुस कर खा रहे हैं।
हर एक जीव दूसरे जीव को खा रहा है। इस खाने के अमल को कोई भी रोक नहीं सकता और न बच सकता है। यह प्राकृतिक है।
आप देखेंगे कि यह दुनिया ज़मीन से आसमान तक एक विशाल भोजशाला (Dining Hall) है और सब खा रहे हैं।
यह एक तथ्य है।
दूसरी बात यह है कि
इंसान घोड़ा पालता है कि जब मेरी लड़ाई हो तो वह मेरे काम आए। घोड़े की वफ़ादारी की बात यह है कि वह अपने पालने वाले के लिए लड़ाई में जाता है और अपनी जान दे देता है। दूसरे की लड़ाई में ख़ुद मर जाता है।
इंसान को भी उसका पालने वाला इसीलिए पालता है कि वह उसके लिए लड़े और अपनी जान उसके लिए दे।
इंसान ऐसा करता है तो उसके जीवन का उद्देश्य पूरा हो जाता है।
खाओ और लड़ो।
जब तक बच सको, बचो।
जंगल और शहर, हर जगह जीवन ऐसे ही चल रहा है। हर जगह लड़ाई चल रही है।
लड़ने के लिए बाहर कोई न हो तो अपने नफ़्स से ही लड़ो। उसकी बुरी ख़्वाहिशों को पहचान कर उन्हें ख़त्म करते रहो। यह काम हर साँस करते रहो।
दुनिया के सब धर्म ग्रंथों में यह एक बात ज़रूर लिखी है कि
खाओ और अपना विकास करो।
अपनी सुरक्षा करनी है तो लड़ो।
एक वक़्त आएगा कि कोई दूसरा आपको बाहर से या अंदर से पूरा खा जाएगा। तब आपने जितना आत्म विकास कर लिया होगा, वह आपका अचीवमेंट है।
वह आपके साथ जाएगा।
यह जीवन आत्म विकास के लिए है। हरेक जीव का कुछ न कुछ विकास ज़रूर हो रहा है।
इंसान को अमरता की खोज है। कुछ लोग आत्म विकास के इस चक्र से ही मुक्ति चाहते हैं।
अमरता और मुक्ति दोनों उस 'चेतन तत्व' में हैं, जिससे हरेक जीव का शरीर साँस लेता है और विकास करता है। मनुष्य अपनी 'चेतना' Consciousness पर ध्यान दे तो उसे उसका मक़सद हासिल हो सकता है।
*Master Key 'ख़ुदी' है।*
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यहाँ अपने ब्लाग पर मैं यह और बताना ज़रूरी समझता हूँ कि ख़ुदी यानि चेतना को 'मैं' नाम से ज़ाहिर किया जाता है। ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने बहुत अच्छी तरह समझाया है।
'यीशु ने उन से कहा, जीवन की रोटी 'मैं हूं''
यूहन्ना 6:35
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ईश्वर अल्लाह के वुजूद का सुबूत इंसान की चेतना है
इंसान ख़ुद से ग़ाफ़िल है।
वह ख़ुद में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
वह ज़मीन आसमान की चीज़ों में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
पवित्र क़ुरआन जगह जगह अपने आप में और ज़मीनो आसमान में ग़ौरो फ़िक्र की हिदायत करता है।
हरेक नास्तिक अपनी चेतना पर ध्यान दे और बताए कि यह क्या है?
जब वह अपनी चेतना के बारे में बताना शुरू करेगा तो वह ख़ुद ईश्वर और आस्तिकता की तरफ़ क़दम बढ़ाना शुरू कर देगा।
ख़ुशी की बात यह है कि क्वांटम फिजिक्स के साइंटिस्ट्स अब चेतना (Consciousness) पर रिसर्च करके जान रहे हैं कि यह कैसे काम करती है?
जब चेतना है तो कोई उस चेतना का स्रोत (Source) भी है। जब नास्तिक लोग चेतना को मानते हैं तो उसके सोर्स के बारे में बताएं और चेतना का इन्कार वे कर नहीं सकते।
क्या इंसान अपनी चेतना का, अपने वुजूद का इन्कार कर सकता है?
जब इंसान अपने वुजूद को मानता है तो अपने सोर्स को तलाश करे। जब इंसान है तो उसका सोर्स भी है। कोई इंसान उस सोर्स को जान और समझ न पाए, यह मुमकिन है। तब वह आदमी अपनी बेबसी और आजिज़ी का इक़रार करें कि मैं अपने वुजूद के सोर्स को जान और समझ नहीं पाया। सब नास्तिक कहलाने वालों को यही करना चाहिए।
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सतीश गुप्ता जी का फ़ेसबुक लिंक यह है: 
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Suhail Narashans Bhai, Rampur ने हमारे कमेंट को अपनी FB Wall पर एक पोस्ट के रूप में पब्लिश कर दिया। उस पर कुछ नास्तिक आ गए। हमने उनसे एक ऐसी बात कह दी जो उन्होंने पहले कभी न सुनी थी।
Prem Kumar ji, मैं फ़ुरसत में आपके भ्रम को दूर करूंगा कि आप नास्तिक हैं।
हमने अपनी अनोखी बात के हक़ में एक अनोखी दलील दी, जिसे उनके सामने एक इमेज की शक्ल में पेश किया। आप उस इमेज को देखें:
हमारे कमेंट पर 100 से ज़्यादा कमेंट्स हो गए हैं और बहस अभी जारी है।
सुहैल नराशंस भाई की पोस्ट पर नास्तिकों से इल्मी बहस को आप इस लिंक पर देख सकते हैं:

Sunday, January 20, 2019

कैसे करें Dawah Work in Cyber World? Dr. Anwer Jamal

*Dawah Work in Cyber World*
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इस काम में जनाब उमर कैरानवी साहिब एक उम्दा नज़ीर हैं।
जो लोग इंटरनेट पर दावती काम करते हैं, उन्हें उमर साहिब से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा,
जैसा कि हमें उनसे सीखने को मिला है।
देखिए इस सब्जेक्ट पर fb पर हमारी ताज़ा पोस्ट:
⭐😊⭐
'कॉमेंट ऐसा करें, जो पढ़ने वालों को सोचने पर मजबूर कर दे।'
हिन्दी ब्लागिंग के महानतम गुरूओं में से एक मोहतरम जनाब Muhammad-Umar Kairanvi sb ने हिन्दी ब्लागिंग को यह अनोखा विचार दिया है। मुझे इस विचार से 'कल्याणकारी शिक्षा' के प्रचार में बहुत मदद मिली।
मैं Editor Ayaz Ahmad भाई का शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होंने हमें हिन्दी में इस्लामी ब्लागिंग के जनक (Father) से मिलवाया।
दरहक़ीक़त आपका कॉमेंट भी एक विचार है और आप उसे किसी पोस्ट पर ऐसे सजा सकते हैं कि कुछ लोग उसका समर्थन करें और कुछ लोग उसके विरोध में खड़े हो जाएं।
कुछ को वह मोहक लगे और कुछ को वह बुरा लगे। पक्ष में या चाहे विपक्ष में, लेकिन जब हरेक आपके विचार पर रेस्पान्स देता है तब आपका कॉमेंट देने का मक़सद पूरा हो जाता है। जो लोग आपके कमेंट पर उत्तेजित होते हैं, आप उनमें से एक दो लोगों को कमेंट में मेंशन कर सकते हैं। ऐसे लोगों की पोस्ट पर कमेंट कर सकते हैं।
वे आपके कॉमेंट पर उत्तेजित होकर आपको ग़लत शब्द कह सकते हैं लेकिन उनकी प्रतिक्रिया पर आपकी प्रतिक्रिया हमेशा सधी हुई और सकारात्मक होनी चाहिए। उनका अपने मन पर क़ाबू नहीं है। आपका अपने मन पर काबू होना ज़रूरी है।
जब आप ऐसा कर लेते हैं, तब आप तय करते हैं कि दूसरे क्या सोचेंगे?
अपने कॉमेंट के ज़रिए आप दूसरों को अपनी पसंद के सब्जेक्ट पर सोचने के लिए आमादा कर सकते.
#islahefacebook
आप लोगों को शान्ति और कल्याण के विषय पर सोचने के लिए बाध्य कर सकते हैं।
जो आपसे सहमत है, वह आपका विचार ग्रहण कर चुका है और जो आपसे लड़ रहा है, वह भी आप जैसा ही बन जाएगा क्योंकि
यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है कि इंसान जिससे लड़ता है, उसी जैसा बन जाता है।
मुझे अच्छा लगता है, जब कुछ मेहरबान विद्वान मुझसे सहमत होते हैं और मुझे तब भी अच्छा लगता है जब कुछ भाई मुझसे लड़ते हैं।
आज यह रहस्य जनहित में इसलिए जारी किया है ताकि हमारे दोस्त जनाब कैरानवी साहिब के Blogs से और उनके कमेंट्स से फ़ायदा उठाएं और जो लोग आज असहमत हैं, उनकी ध्यान ऊर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल करना सीखें।
अपने विरोधियों से भी शान्ति के मिशन में काम लें।
यह लिंक आपको उमर साहिब के ब्लाग की राह दिखाएगा।

सच्चे धर्म को कैसे पहचानें? Dr. Anwer Jamal

आप सच्चे धर्म को पहचानना चाहते हैं तो आप उसे नाम से नहीं पहचान सकते। आप सच्चे धर्म को इस बात से पहचान सकते हैं कि उसके मानने से ग़रीबों और कमज़ोरों का क्या भला हुआ है?
धर्म दो तरह का होता है। एक अपने फ़ायदे के लिए इंसान बनाता है और दूसरा सबके फ़ायदे के लिए सबका रचयिता (Creator) बनाता है।
एक धर्म जो इंसान बनाता है। वह उसमें ग़रीबों को ग़ुलाम और अछूत बनाता है और उन्हें शिक्षा, व्यापार और इबादतगाह से दूर रखा जाता है। यह असल में अधर्म होता है।
दूसरा धर्म जो इंसान के रचयिता का है, वह उसमें सबको आवाज़ देकर इबादतगाह में बुलाता है और सब जातियों के ग़रीबों और ग़ुलामों को नवाबों और ज्ञानियों के आगे और उनकी बग़ल में तुरंत खड़ा कर देता है। रचयिता का धर्म उन्हें मुफ़्त शिक्षा देता है और व्यापार करने के अवसर देता है। उनका आत्मिक, भौतिक और सामाजिक, हर तरह पूरा कल्याण करता है।
रचयिता के धर्म में ग़ुलाम को अमीर लोग अपना धन देकर उसे आज़ाद करना इबादत समझते हैं।
एक धर्म का आधार शोषण है तो दूसरे का न्याय!
एक का आधार ऊंच-नीच है तो दूसरे का बराबरी।


Thursday, January 10, 2019

जानिए और सबको बताईये कि My Creator is My Doctor Dr. Anwer Jamal

अहमद फ़व्वाद भाई से तिब्बे नबवी पर बातचीत का पहला हिस्सा इस लिंक पर पढ़ें:

Tibbe Nabawi par Aitraz aur unke jawab Dr. Anwer Jamal

उसी सिलसिले में हमारे जवाब पर मोहतरम भाई जनाब अहमद फ़व्वाद ने जो लिखा है, आप उसे और उस पर हमारा जवाब नीचे पढ़ें।

*शख़्से से मुराद नामालूम शख़्स है, जिसकी मारिफ़ते दीन और तिब्बी उलूम की समझ ख़ुद क़ाबिले ग़ौर है।*........ 
मोहतरम भाई, नामालूम शख्स नहीं, बल्कि मारिफ़ते दीन और तिब्बी उलूम के माहिर पाकिस्तान के हकीम सैय्यद महमूद अहमद "सरव सहारनपुरी" का कौल है जिसे देवबंदी फिक्र के बड़े आलिम डॉ0 तुफैल हाशमी साहब के हवाले से नक़ल किया गया है। हकीम साहब से सम्बन्धित "नवा ए वक़्त" में छपा मज़मून पढ़ें-
https://www.nawaiwaqt.com.pk/12-Dec-2012/153708

*उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार किया है और सुबूत में अल्लाह और उसके रसूल के क़ौल से कोई दलील नहीं दी है। अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं कियाऔर ख़ुद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी अपने तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं किया*.......

 मोहतरम भाई, यह तो "मनतक़ी मुग़ालता" है।  सवाल इस तरह से भी तो पूछा जा सकता है कि क्या अल्लाह ने नबी का या नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना *चिकित्सक* की हैसियत से परिचय कराया। आप का दावा है कि *नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक माहिर तबीब थे* तो जनाब *बारे सबूत* भी आप पर है कि कुरआन व सुन्नत से आप दलील पेश फरमायें। 

मोहतरम भाई, मेरा उद्देश्य बहस करना नहीं है, मेरा ऐतराज़ "तिब्बे नबवी" पर नहीं, आपके *"तिब्बे नबवी पर इसरार"* से सम्बन्धित है। आपने एक जगह अपनी पोस्ट में लिखा, 

*दीन के दाई सब धर्म के लोगों के दर्द में काम आने वाले तभी बन सकते हैं, जब उन्हें नबियों की तरह जड़ी बूटियों और फलों से इलाज करना आता होगा। सो सभी मुबल्लिग़ तिब्बे नबवी ज़रूर पढ़ें।*

मेरे दृष्टिकोण से आपका उक्त कथन संतुलित नहीं है, पुनर्विचार प्रार्थनीय है। क्या सारे ही नबी तबीब भी थे। 

दूसरी उसूली बात मेरी दृष्टि में है, कि तिब्बे नबवी दीन का जुज़ नहीं है और न ही तिब्बी रवायात की कोई शरअई हैसियत है।

यही बात इब्ने ख़लदून ने अपने मशहूर ज़माना "मुकद्दमें" में कही है - 
وللبادية من أهل العمران طب يبنونه في غالب الأمر على تجربة قاصره علئ بعض
الأشخاص, ويتداولونه متوارثاً عن مشايخ الحي وعجائزه, وربما يصح منه البعض, إلا أنه ليس على قانون طبيعي, ولا عن موافقة المزاج. وكان عند العرب من هذا الطب كثير, وكان فيهم أطباء معروفون: كالحرث بن كلدة وغيره. والطب المنقول في الشرعيات من هذا القبيل, وليس من الوحي في شىءوإنما هوأمر
كان عادياً للعرب. ووقع في ذكر أحوال النبي صلئ الله عليه وسلم, من نوع ذكرأحواله التي هي عادة وجبلة, لا من جهة أن ذلك مشروع على ذلك النحو من العمل. فإنه صلى الله عليه وسلم إنما بعث ليعلمنا الشرائع, ولم يبعث لتعريف الطب ولا غيره من العاديات. وقد وقع له في شأن تلقيح النخل ما وقع,؛ فقال:
"أنتم أعلم بأموردنياكم . فلا ينبغي أن يحمل شيء من الذي وقع من الطب الذي
وقع في الأحاديث الصحيحة المنقولة على أنه مشروع, فليس هناك ما يدل عليه.... 
देहाती और बदवी समाज में भी तिब्ब पायी जाती है जो आम तौर पर कुछ व्यक्तियों के अनुभवों पर आधारित होती है और परिवार के बड़े बूढ़ों से परंपरागत रुप में नक़ल होती आती है। इन में से कभी कुछ चीजें सही भी होती है, लेकिन यह चिकित्सा सिद्धांत के प्रतिष्ठित नियमों एवं स्वभाव आदि के अनुरूप नहीं होती। अरब में भी इसी तरह की चिकित्सा प्रणाली प्रचलित थी और उनमें भी हारिस बिन कलदाह  वगैराह जैसे *चिकित्सक* प्रसिध्द थे। शरियत में जो तिब्ब आयी है वो *इसी क़बील* की है, यह नहीं कि वह *वहय* पर आधारित है बल्कि अरबों में इस तरह की तिब्ब प्रचलित थी और वो उसके आदी थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जीवन वर्णन में आपके स्वभाव और आदतों का भी बयान होता है, यह बातें आदत व स्वभाव की होती है न कि नबी करीम ने उनको अमल के लिए मसनून क़रार दिया हो, क्योंकि आप हमें शरियत सिखाने के लिए *मबऊस* किये गये थे न कि तिब्ब और आदत की बातें। खजूरो के वृक्षों में परागण से सम्बन्धित हदीस में आप का प्रसंग आता है, आप ने इससे मना किया तो फल नहीं आये, सहाबा ने कहा तो आप ने फरमाया, *तुम दुनिया के मामले मुझ से बेहतर जानते हो*
अत: अहादीस में जो तिब्ब नक़ल हुई है, उसे मसनून नहीं कह सकते, इस पर कोई दलील नहीं है। ( मुकद्दमा इब्ने ख़लदून, फसल 24 तबिअय्यात)

इसी तरह शाह वली उल्लाह साहब ने *हुज्जतुल्लाहिल बालिग़ाह* में फरमाया - - 
 و ثانيهما ما ليس من باب تبليغ الرسالة و فىه قوله صلى الله عليه وسلم : إنما أنا بشر إذا امرتكم بشىئ من رأى فإنما انا بشر...و قوله صلى الله عليه وسلم في قصة تعبير النخل: فإني إنما ظننت ظنا ولا تؤاخذوني بالظن ولكن إذا حدثتكم عن الله شيأ فخذوا به فإني لم اكذب علي الله... فمنه الطب.... 
वो मामलात जो कि *तबलीग़ ए रिसालत* के बाब में से नहीं, उसी के बारे में नबी का कथन है, : मैं एक इंसान हूं, जब मैं तुम्हें तुम्हारे दीन से सम्बन्धित कोई आदेश दूं, तो उस पर क़ायम हो जाओ और जब मैं तुम्हें अपनी राय से किसी चीज़ का हुक़्म दूं तो मैं भी एक इंसान हूं। खजूरो के वृक्षों में परागण ( Pollination) के सम्बन्ध में आपने फरमाया, मैनें एक गुमान किया था, और मेरे सिर्फ गुमान पर अमल न करो, मगर जब मैं तुम्हें अल्लाह की तरफ से कुछ बताऊं तो उस का अनुपालन करो, क्योंकि मैंने अल्लाह पर कभी झूठ नहीं बोला। इन्हीं मामलात में से एक तिब्ब भी है। 
आगे चलकर शाह साहब लिखते हैं, इन्हीं मामलात में वो बातें भी शामिल हैं जो आपने इबादत के बजाए आदत के तौर पर किये हैं और उन्हें आपने *कसदन नहीं इत्तेफाकन* किया है।  (बाब-उलूमे नबवी की अक़साम)

 बाक़ी अहादीस में तिब्ब  से सम्बन्धित जो रवायात आयी हैं, उसके विश्लेषण से पता चलता है कि तिब्ब से सम्बन्धित आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दृष्टिकोण समग्रता लिए हुए है (Holistic Approach) जिसमें, Health, Hygiene, Prevention & Treatment सबको समाहित किया गया है, यह नबवी दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है और हमेशा रहेगा अलबत्ता Treatment के सम्बन्ध में आप से मनक़ूल इलाज को उसके सही Perspective में लेना आवश्यक है, उसे दीन का जुज़, शरियत का हिस्सा न बनायें। मुस्लिम की रिवायत जो हज़रत अबु हुरैरा से नकल की गयी है जिसमें कलौंजी को मौत के सिवा हर बीमारी की दवा बताया है। हमें यह देखना होगा कि इस हदीस का सही मफहूम क्या है, क्या इसका इतलाक़ सब भौगोलिक क्षेत्रों एवं जलवायु में रहने वाले लोगों पर समान रूप से होगा, या यह अरब में रहने वालों के लिए ही सीमित है, क्या कलौंजी की शिफा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौर में और ख़ित्तें में पायी जाने वाली बीमारियों से ही सम्बंधित है या आज एचआईवी एड्स, कैंसर तथा अन्य अनुवांशिक बीमारियों  (Genetic Disorder) का भी इलाज कलौंजी से किया जा सकता है? दूसरी हदीस में cupping हिजामा के ताल्लुक से भी यही शिफा की बात आयी है। जब कलौंजी में हर बिमारी का इलाज है तो हिजामा की ज़रूरत नहीं। मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसी सभी अहादीस और उनके पारस्परिक सम्बन्ध का, उनके सही अर्थ का वर्णन आवश्यक है, नहीं तो अनर्थ हो जाता है। आज जगह जगह हिजामा सेन्टर खुले हैं, जिनके संचालकों की विशेषज्ञता ही संदिग्ध है। क्या यह *जिन्से बाज़ार* नहीं?

व्यक्तिगत तौर पर मैं Herbal Medicine, Homeopathy, Acupuncture आदि Alternative therapy की उपयोगिता का समर्थन करता हूं, परन्तु उसे दीन की हैसियत नहीं देता। मैं यह भी मानता हूं कि अक़ीदत, आस्था का इलाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 

मोहतरम भाई, आप दावत का बड़ा काम कर रहे हैं, मेरी बातों से यदि आप असहमत हैं तो कोई बात नहीं। मेरी तरफ से इस विषय पर अब विराम।
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Ahmad Fawwad Bhai!
Aapke diye link par Dekha to Hakeem saharanpuri sahib Ka aisa koi Qaul Nahi Mila.
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https://www.nawaiwaqt.com.pk/12-Dec-2012/153708
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तिब्बे नबवी, तिब्बे इलाही है
हमने कोई मन्तक़ी मुग़ालता नहीं दिया है। हमने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीस पेश की है जिसमें उन्होंने अल्लाह को तबीब (चिकित्सक) फ़रमाया है।
अन्तर्-रफ़ीक़ु वल्लाहु तबीब
आप रफ़ीक़ (तसल्ली देने वाले) हैं और अल्लाह तबीब (चिकित्सक) है। -हदीस

अल्लाह किस दवाई से चिकित्सा करता है?
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस दवा का नाम भी बताया है:
ख़ैरूद्-दवाइल्-क़ुरआन
क़ुरआन सबसे अच्छी दवा है। (हदीस)
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह के चिकित्सक और पवित्र क़ुरआन के दवा होने का दावा किया है। ये दोनों हदीसें आप पढ़ चुके हैं।
एक और हदीसे नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में अल्लाह का नाम 'अश्-शाफ़ी' (शिफ़ा देने वाला) आया है।
اللهم رب الناس أذهب البأس اشف انت الشافي لا شفاء الا شفاؤك شفاءا لا يغادر سقما
“Allahumma Rabban-Nas, Adh-hibil Ba’s, Ishfi antash-Shafi, la shifa’a illa shifa’uk, shifa’an la yughadiru saqama”

O Allah! the Rubb of mankind! Take away this disease and cure (him or her). You are the Curer. There is no cure except through You. Cure (him or her), a cure that leaves no disease."
[Al-Bukhari].
इस हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह पहचान कराई है कि अल्लाह ही शिफ़ा देने वाला है और उसके सिवा कोई दूसरा शिफ़ा नहीं दे सकता।
इनके बाद आप और किस तरह का दावा चाहते हैं?
इस दावे की तस्दीक़ क़ुरआन से भी होती है:
 وَإِذَا مَرِضْتُ فَهُوَ يَشْفِينِ ﴿٨٠
और जब मैं बीमार होता हूँ, तो वही मुझे शिफ़ा देता (अच्छा करता) है.
पवित्र क़ुरआन 42:80
तिब्बे नबवी, इल्हामी तिब्ब है
अल्लाह तबीब (चिकित्सक) है और शाफ़ी (शिफ़ा देने वाला) है तो वह इलाज ज़रूर करेगा और दवा बताएगा।
1. पहला सुबूत: मौजूदा तौरात में अल्लाह के इल्हाम के ज़रिए मूसा अलैहिस्सलाम को एक पेड़ के बारे में बताने और उसके ज़रिए लोगों के लिए पानी को पीने लायक़ बनाने (water treatment) का वाक़या लिखा हुआ मिलता है और उसके बाद अल्लाह का यह दावा भी मिलता है कि 'मैं यहोवा तुम्हें स्वस्थ करता हूँ।'
   फिर मूसा ने यहोवा को पुकारा और यहोवा ने उसे एक छोटा पेड़ दिखाया। मूसा ने जब वह पेड़ उठाकर पानी में फेंका तो पानी मीठा हो गया।

वहाँ परमेश्‍वर ने लोगों को एक नियम और न्याय-सिद्धांत दिया और उन्हें परखा।  उसने कहा, “तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा की बात सख्ती से मानना और वही करना जो उसकी नज़रों में सही है, उसकी आज्ञाओं पर ध्यान देना और उसके सभी नियमों का पालन करना। अगर तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम पर ऐसी कोई बीमारी नहीं लाऊँगा जो मैं मिस्रियों पर लाया था। मैं यहोवा तुम्हें स्वस्थ करता हूँ।
-बाइबिल, निर्गमन 15:25-26

2. दूसरा सुबूत: ऐसे ही बच्चे को जन्म देने के बाद अल्लाह ने मरियम अलैहस्सलाम को 'खजूर खाने का इल्हाम' (दिव्य प्रेरणा) किया:
तू खजूर के उस वृक्ष के तने को पकड़कर अपनी ओर हिला। तेरे ऊपर ताज़ा पकी-पकी खजूरें टपक पड़ेगा।  अतः तू उसे खा और पी और आँखें ठंडी कर। 
पवित्र क़ुरआन 19:25-26
क्या यह अल्लाह का इल्हाम के ज़रिए दवा और फ़ूड बताना नहीं है? चिकित्सा के आधुनिक सिद्धांतों पर परख कर कोई बताए तो सही कि एक ज़च्चा (प्रसवा) के लिए खजूर खाने की इस इल्हामी तज्वीज़ (prescription) में कौन सी कमी है?

3. तीसरा सुबूत: 
हमारे बन्दे अय्यूब को भी याद करो, जब उसने अपने रब को पुकारा कि "शैतान ने मुझे दुख और पीड़ा पहुँचा रखी है।" "अपना पाँव (धरती पर) मार, यह है ठंडा (पानी) नहाने को और पीने को।"
पवित्र क़ुरआन  38:41-42

अल्लाह की पहचान कराना नबी के पद की बुनियादी
ज़िम्मेदारी  है
अल्लाह तबीब (चिकित्सक) और शाफ़ी (बीमारी से चंगा करने वाले) है। ये दोनों सिफ़तें (गुण) नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ुद बताई हैं ताकि सब लोग अल्लाह की इन सिफ़तों से फ़ायदा उठाएं। क्या अल्लाह की सिफ़तों का परिचय (Introduction) देना और उनसे फ़ायदा उठाने का तरीक़ा बताना नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तब्लीग़ की बुनियादी ज़िम्मेदारी नहीं है?

दीनी और दुनियावी कामों की कोई लिस्ट मौजूद नहीं है
हज़रत शाह वलीउल्लाह साहिब रह. ने ऊपर  दी हुई तहरीर में सिर्फ़ अपना मत दिया है और उसके हक़ में कोई दलील नहीं दी है कि वह तिब्ब को 'दुनियावी कामों' में क्यों शामिल मानते हैं? और उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की  नुबूव्वत के बुनियादी मक़सद में शामिल क्यों नहीं मानते?
क़िताल (जंग) भी दुनियावी काम है। अरब क़िताल के भी माहिरीन थे और नबी स. ने नुबूव्वत से पहले कभी जंग नहीं की थी और पूरी ज़िन्दगी में भी कभी चार आदमी ख़ुद क़त्ल न किए तब भी वह इस ख़ालिस दुनियावी काम के इमाम बनते थे और सबसे आगे खड़े होते थे।
क्या नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी किसी और जंगी एक्सपर्ट को अपने से ज़्यादा जानकार और माहिर मानकर उसकी कमांड पर जंग लड़ी?
क्या अरब का कोई शख़्स उनसे बड़ा फ़ातेह सैनिक साबित हुआ जबकि नबी स. ने किसी बड़े कमांडर से तलवार चलाना और फ़ौजों की सफ़ें बनाना भी न सीखा था।
आज तक किसी दीनी किताब में दीनी और दुनियावी कामों की कोई लिस्ट मौजूद नहीं है। आप एक बार 'दुनियावी कामों की लिस्ट' बनाएं ताकि पता चले कि आख़िर किन कामों में कोई उम्मती नबी स. से ज़्यादा माहिर हो सकता है।
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नबी स. ने तिब्ब में कुछ काम यक़ीनन वे किए हैं जो अरबों में राएज थे। उनमें शहद और सना का इस्तेमाल और हिजामा राएज था लेकिन नबी स. ने क़ुरआन से भी इलाज किया है और यह अरबों में राएज न था।
नबी स. ने नमाज़ में शिफ़ा बताई है और यह बात उन्हें अरब नहीं बता सकते थे।
नमाज़ के बारे में यह बात उन्हें रब के सिवा कोई नहीं बता सकता।
जब बिना किसी चिकित्सक से पढ़े बिना एक आदमी नमाज़ और क़ुरआन से व्यक्ति और समाज का कामयाब इलाज कर रहा है तो यक़ीनन वह इलाज करना जानता है और इलाज उसके मन्सब (पद) की ज़िम्मेदारियों में है। उसे इलाज का यह ख़ास तरीक़ा उसी रब ने सिखाया है, जिसे वह तबीब (चिकित्सक) मानता है।
हदीसों में नबी स. के द्वारा जिस्मानी, नफ़्सियाती और अख़्लाक़ी, हर तरह की बीमारियों के कामयाब इलाज के वाक़िआत हैं और एक भी ऐसा वाक़िआ नहीं है जिसमें नबी स. ने इलाज शुरू तो किया हो और फिर उसमें नाकाम रहकर अरब के किसी हकीम के सुपुर्द किया हो। अल्लाह के नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जिसका इलाज शुरू किया, उसे अंजाम तक भी पहुंचाया और रब ने उनके इलाज से बहुत लोगों को शिफ़ा दी।
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी किसी से अपने जिस्मानी मर्ज़ का इलाज कराया हो, ऐसा सुबूत नहीं मिलता।
हमने आपसे इस बारे में सवाल किया तो आपने भी कोई जवाब न दिया।
उनके द्वारा दूसरों के इलाज करने के वाक़िआत ज़रूर मिलते हैं। इत्तेफ़ाक़न किए जाने वाले वाक़िआत इक्का दुक्का होते हैं जबकि नबी स. द्वारा बार बार अलग अलग लोगों को तिब्बी सलाह देना साबित है। जिससे पता चलता है कि वह क़स्दन (Intentionally) इलाज करते थे, इत्तेफ़ाक़न नहीं। वह चिकित्सकों को भी सलाह देते थे।
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नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा को इलाज करना सिखाया
इसी के साथ नबी स. सहाबा को इलाज करना सिखाते भी थे।
सहाबा क़ुरआन से जादू और नज़र का इलाज करना न जानते थे।
यह इलाज नबी स. ने ही उन्हें सिखाया। जो बाद में सहाबा में और उलमा में मशहूर हुआ।
नज़र और जादू को आधुनिक चिकित्सा के स्थापित सिद्धांत बीमारी की वजह ही नहीं मानते। इसलिए वे इन वजहों से होने वाली बीमारियों की जड़ को अभी नहीं समझ सकते। जिन बीमारियों के मूल कारणों को आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति नहीं समझ सकती, उनका इलाज भी नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम किया करते थे।
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मैं इस बात पर इसरार करता हूं कि
मोमिन क़ुरआन और नमाज़ की हीलिंग पावर को समझें और मैं यह भी तक़ाज़ा करता हूँ कि
दीन के सब दाई उन जड़ी बूटियों फलों और शहद व पानी जैसी चीज़ों की तासीर ज़रूर जानें,
जिन्हें इस्तेमाल करने का हुक्म रब ने उन चीज़ों का नाम लेकर तौरात, ज़बूर, इंजील और क़ुरआन में दिया और नबियों ने उन्हें इस्तेमाल करके शिफ़ा पाई और नफ़ा हासिल किया है। जैसे कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने रब के हुक्म से एक पेड़ कड़वे पानी में डाला। फिर वह पीने के लायक़ हुआ। जिससे उनकी क़ौम सलामत रही।
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मैं इस बात पर भी इसरार करता हूं कि अल्लाह लोगों को ज़मीनों और आसमानों की चीज़ों में ग़ौरो फ़िक्र को कहता है तो दाई इस काम को ज़रूर करें।
इससे मुझे फ़ायदा हुआ है और सबको होगा। यह तय है।
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'कलौंजी में हर बीमारी का इलाज है' ऐसा कहने से दूसरी चीज़ों में शिफ़ा की नफ़ी नहीं हो जाती और न ही यह मानना सही है कि हिजामा नहीं कराना चाहिए।
यह अल्लाह की बड़ी रहमत है कि उसने बहुत सी चीज़ों और बहुत से तरीकों में अपने बंदों के लिए शिफ़ा रखी है।
इलाज के मुख़्तलिफ़ तरीकों की तरफ़ तवज्जो दिलाने के लिए नबी स. ने हिजामा की भी तारीफ़ की और रब का शुक्र है कि
आज दुनिया भर में हिजामा राएज है।
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जगह जगह तो हिजामा की तरह दावती सेंटर भी खुले हुए हैं। जिन्हें चलाने वालों की फ़हमे दीन ही ग़लत और मश्कूक है।
जगह जगह निकाह भी हो रहे हैं, बाद में पता चलता है कि लड़के में मर्दानगी ही नहीं थी। उनमें झगड़े और तलाक़ होते हैं।
हर घर में ऐसी औरतें मां बन रही हैं, जिन्हें ज़िन्दगी भर बच्चे की तरबियत करना नहीं आता। वे उसे नमाज़ और क़ुरआन तक नहीं पढ़ातीं। सोते वक़्त बच्चों ने दांत साफ़ किए या नहीं, वे यह तक चेक नहीं करती। आदर्श हालत किसी फ़ील्ड में नहीं है, इसलिए हिजामा और तिब्बे नबवी में भी सब लोग आदर्श नहीं हैं।
जब बेशुऊरी दुनिया का आम रिवाज है तो उन्हीं लोगों के हाथ हिजामा लग गया है।
वे इसे अपने लेवल से ही यूज़ करेंगे लेकिन इससे हिजामा का शिफ़ा होना अपनी जगह हक़ रहता है।
जो शख़्स अपनी खाल में हिजामा का ब्लेड लगवाए, उसके ज़िम्मे है मुआलिज की क़ाबिलियत और उसका तजुर्बा चेक करना।
मैंने हिजामा कराया तो पहले यह सब देखा और मुझे श्याटिक दर्द में 10-20 मिनट में ही बहुत ज़्यादा आराम मिला।
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तिजारत करना एक ज़रूरत है
बाज़ार से बचना मुमकिन नहीं है और दीन में मतलूब भी नहीं है। आज मुस्लिम को बाज़ार में अपनी जगह बनानी होगी क्योंकि
*Control the purse Control the policy* एक हक़ीक़त है।
अपनी फ़िक्री आज़ादी की हिफ़ाज़त तभी मुमकिन है जब आप फ़ाईनेंशियली मज़बूत हों।
इसके लिए जिन्से बाज़ार को जायज़ तरीक़े से बेचना सीखना होगा, जैसे कि सहाबा र. बेचा करते थे।
ऐसा करके अक्सर मुबल्लिग़ ग़रीबी और ज़हनी ग़ुलामी से निकल आएंगे,
इन् शा अल्लाह।
तिजारत बेरोज़गारी और ग़रीबी का हल है। आज जब हर चीज़ को बाज़ार में बिकने वाली चीज़ बनाया जा रहा है तो आप उसे जायज़ तरीक़े से बेचें। दीन इससे मना नहीं करता कि कोई अपना सर्विस चार्ज ले।
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तिब्बे नबवी एक अलग पैथी है
हरेक पैथी के अपने कुछ ख़ास उसूल होते हैं। एक पैथी दूसरी पैथी के उसूलों पर पूरी नहीं उतरती। एलोपैथी डा. हैनीमैन के उसूलों पर पूरी नहीं उतरी और होम्योपैथी एलोपैथी के उसूलों पर पूरी नहीं उतरती। ऐसे ही तिब्बे नबवी के लिए एलोपैथी के उसूलों पर पूरा उतरना ज़रूरी नहीं है।
तिब्बे नबवी को होम्योपैथी और यूनानी तरीक़ा ए इलाज की तरह की एक अरब पैथी समझना ग़लत है और यह ग़लती तिब्बे नबवी में शहद, सना और कलौंजी जैसी हर्ब्स के यूज़ को देखकर होता है जो अरबों में आम तौर पर यूज़ होती थीं।
आप इब्ने क़ययिम रह. की बुक तिब्बे नबवी पढ़ेंगे तो आपको मालूम हो जाएगा कि तिब्बे नबवी के अपने अलग और इल्हामी उसूल हैं।
उन उसूलों को भुलाकर शहद, सना और कलौंजी खाया जाए तो वह अरब आदत है या हारिस बिन कल्दाह जैसे अरब तबीबों का तरीक़ा है लेकिन जब उन्हीं चीज़ों को तिब्बे नबवी के उसूलों की रिआयत के साथ खाया जाएगा तो वह एक ऐसा तरीक़ा है, जिससे हारिस बिन कल्दाह और अरब के मुशरिक वाक़िफ़ न थे।
इस बात पर भी ग़ौर करना ज़रूरी है कि अरबों में राएज तरीक़ा ए इलाज हारिस बिन कल्दह जैसे चिकित्सकों की खोज से वुजूद में नहीं आया था। यह तरीक़ा नबियों की तालीम से नस्ल दर नस्ल गुज़रते हुए उन तक पहुंचा है और उसी तिब्बी इल्म में उन चिकित्सकों ने अपने तजुर्बात से और ज़्यादा इज़ाफ़ा कर लिया। इससे पता चलता है कि हारिस बिन कल्दाह जैसे अरब चिकित्सक ख़ुद तिब्बे नबवी से इलाज करते थे। यह बात समझने के लिए इस बात को याद रखें कि तिब्बे नबवी से मुराद 'नबियों की तिब्ब' है जोकि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले भी मौजूद थी जैसे कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाईश से पहले भी इस्लाम का वुजूद था।

आधुनिक चिकित्सा पद्धति कैसे वुजूद में आईं?
पुराने चिकित्सकों के तिब्बी इल्म की बुनियाद पर और ज़्यादा तजुर्बात किए गए तो आधुनिक चिकित्सा शास्त्र वुजूद में आ गया है। फिर इसमें और ज़्यादा तजुर्बात किए गए तो बहुत सी शाखाएं (Branches) वुजूद में आ गईं। आप ध्यान से आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की स्टडी करेंगे तो आपको सब आधुनिक डाक्टर बीच के बहुत से वास्तों के ज़रिए अल्लाह के तिब्बी इल्म से ही फ़ायदा उठाते हुए नज़र आएंगे। सच यही है कि जिसे भी जो ख़ैर और ख़ूबी मिली है और मिल रही है, सिर्फ़ एक अल्लाह से ही मिली है और मिल रही है। मैं आधुनिक चिकित्सा पद्धति को भी तिब्बे नबवी की एक तरक़्क़ीयाफ़्ता (Developed) और बदली हुई पैथी के रूप में देखता हूं। मैं ज़रूरत पड़ने पर आधुनिक चिकित्सा पद्धति से और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों से भी फ़ायदा उठाया हूँ। हिकमत जहाँ भी है, मैं उसे मोमिन की मीरास मानता हूँ।

कलाम में शिफ़ा की तासीर है
इस सब के बावुजूद तिब्बे नबवी अपने आप में आज भी एक अलग और मुकम्मल तिब्बी तरीक़ा है। जिसमें दवा के साथ अक़ीदों के सही करने, दुआ करने और अपनी आदतों को सुधारने पर भी ज़ोर दिया जाता है।
हक़ीक़त यह है कि तिब्बे नबवी अपने वक़्त से बहुत आगे की पैथी है। यह आज भी अपने वक़्त से बहुत आगे की पैथी है।आप तिब्बे नबवी में पवित्र क़ुरआन से इलाज होते देखेंगे तो आप इसकी Quantum Healing और Vibrational Healing को समझ सकेंगे। ख़याल और कलाम भी दवा होते हैं क्योंकि इनमें शिफ़ा की तासीर होती है। रब का कलाम मरीज़ को क्वांटम लेवल पर बदलता है और उसे उसके यक़ीन के मुताबिक़ शिफ़ा मिलनी शुरू हो जाती है।
अहमद भाई! आप मेरे द्वारा सुझाई गई इब्ने क़ययिम की बुक तिब्बे नबवी पढ़कर जवाब लिखते तो ज़्यादा अच्छा रहता।
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सभी नबी दवा और इलाज के बारे में जानते थे
वे संकट में मदद के लिए यहोवा को पुकारते,
वह उन्हें बदहाली से छुड़ाता।
वह अपने वचन के ज़रिए उनकी बीमारी दूर करता,
उन्हें उन गड्ढों से बाहर निकालता जहाँ वे फँस गए थे।
ज़बूर (Psalm) 107:19-20

हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम भी यह बात जानते थे कि अल्लाह तबीब है। अल्लाह ने उन्हें इलाज बताया। उन्होंने उसे किया और उन्हें सेहत मिली। अल्लाह ने ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के ज़रिए इतने ज़्यादा लोगों का इलाज किया कि उनका मौज्ज़ा ही बीमारों को शिफ़ा देना माना गया है। आप बाईबिल में इब्राहीम अलैहिस्सलाम की नस्ल में आए नबियों के बारे में पढ़ेंगे तो आपको उनके द्वारा इलाज करने के क़िस्से भी मिलेंगे।
हर नबी इलाज करना जानता था। यही वजह है कि मुख़्तलिफ़ ज़मानों में रब ने नबियों को खाने पीने की और बरतने की अलग अलग चीज़ें बताईं, जिनमें शिफ़ा थी।

'दिल का खुश रहना बढ़िया दवा है,
मगर मन की उदासी सारी ताकत चूस लेती है।'
बाईबिल, नीतिवचन 17:22
लोगों का दुनियावी कल्याण (Wellness) भी नबी के मक़सद में शामिल होता है
जो लोग नबी स. की बेअसत का मक़सद लोगों तक सिर्फ़ कुछ अक़ाएद और क़ानून की  जानकारी देना समझते हैं,
उनकी नज़र में तिब्ब, तिजारत, सियासत और बाज़ार में घूमना दुनियावी काम हैं।
पहले मुशरिकीन ए अरब नबी स. के इन आमाल को पवित्रता और महानता के ख़िलाफ़ मानकर ऐतराज़ करते थे।
अब अक्सर मुस्लिमों ने भी इन्हें दीन से बाहर समझ लिया है।
कुछ लोगों ने दीन इस्लाम को Socio, politico Economic system के रूप में  तो पहचान लिया है लेकिन मेंटल और फ़िज़िकल हेल्थ और दुनिया में wellness अब भी उनकी तफ़हीमे दीन के दायरे से बाहर है।
💚🍏💚
हक़ीक़त यह है कि तिब्बे नबवी इस्लाम का हिस्सा है और इसलिए है कि इस्लाम की एप्रोच holistic है।
अल्लाह इंसान को नेकी बदी की तमीज़ तो देता लेकिन उसे सेहत और सलामती का तरीक़ा न बताता तो ऐसा दीन ही अधूरा होता।
जब हम यह कहते हैं कि
रब का शुक्र है उसने हमें ज़िन्दगी के हर पहलू में हिदायत दी तो हम ख़ुद इक़रार करते हैं कि
रब ने हमें बीमारी और सेहत के पहलू में भी हिदायत बख़्शी है।
💚🌿💚
किसी से इल्मी बातचीत से हम नहीं थकते।
हरेक इंसान का ज़हनी शाकिलह (paradigm) अलग है और हरेक अपने ज़हनी शाकिलह के मुताबिक़ ही चीज़ों को समझता है।
इसी से इख़्तिलाफ़ वुजूद में आता है और यही इख़्तिलाफ़ एक को दूसरे से अलग करती है और यह अच्छा है।
इल्मी इख़्तिलाफ़ अच्छा है। इसी से एक आदमी दूसरे से सीखता है। इसी से रब की सिफ़त 'अल्-अलीम' तजल्ली करता है
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तिब्बे नबवी मुबल्लिग़ मोमिन को कल्याणकारी बनाती है
मैं ने एक एक आदमी से एक ही सब्जेक्ट पर साल साल और दो दो दो साल बात की है और
उनसे सीखा है।
... मैं ने यह भी सीखा है कि अक्सर लोग सत्य देखकर नहीं बल्कि हित देखकर बात मानते हैं।
पहले मैं बिना तिब्बे नबवी के मुशरिकों को दीने हक़ बताया करता था, तब कोई बिरला मानता था,
अब मैं उसे हक़ बात बताता हूं और रब के कलाम से और नबियों की ज़िन्दगी से उसके जायज़ हित को भी सपोर्ट करने वाली नालिज भी दे हूं तो हरेक आदमी बात मानता है।
आज हरेक इंसान के लिए आज सेहत, रोज़ी, सलामती, घर बनाना और निकाह-शादी करना बहुत जटिल मसले हैं।
तिब्बे नबवी इन सबको हल करती है। तिब्बे नबवी की ख़ास बात यह है कि यह फ़ाइनेंशियल बीमारियों ग़रीबी और क़र्ज़ को भी दूर करती है।
अल्हम्दुलिल्लाह!

दूसरे तरीक़ा ए इलाज सिर्फ़ बीमारी का इलाज करते हैं, जबकि तिब्बे नबवी इंसान का इलाज करती है, उसके हरेक पहलू के हालात का इलाज करती है। सब लोगों तक यह जानकारी पहुंचाना भी तब्लीग़ और दावत का हिस्सा है। बीमारियों के इस दौर में मानव जाति का कल्याण करने के लिए ऐसा करना आज पहले से ज़्यादा ज़रूरी है।

The most beloved to Allah are the most beneficial to the people

Ibn Umar reported: The Prophet, peace and blessings be upon him, said,
“The most beloved people to Allah are those who are most beneficial to the people. The most beloved deed to Allah is to make a Muslim happy, or to remove one of his troubles, or to forgive his debt, or to feed his hunger. That I walk with a brother regarding a need is more beloved to me than that I seclude myself in this mosque in Medina for a month. Whoever swallows his anger, then Allah will conceal his faults. Whoever suppresses his rage, even though he could fulfill his anger if he wished, then Allah will secure his heart on the Day of Resurrection. Whoever walks with his brother regarding a need until he secures it for him, then Allah the Exalted will make his footing firm across the bridge on the day when the footings are shaken.” (Tabarani)

Tuesday, January 8, 2019

Tibbe Nabawi par Aitraz aur unke jawab Dr. Anwer Jamal

हमारे इस लेख को बहुत सराहा गया , अल्हम्दुलिल्लाह
इसी के साथ इस पर कुछ सवाल भी आये हैं।  अब्दहु साहिब ने यह लिखा है
 محترم بھائی! آپکی دعوتی کاوشوں اور تجربات کی ہماری نظر میں بڑی قدر و منزلت ہے.
 با ایں ہمہ، "طب نبوی" پر آپ کا اصرار محل نظر ہے... یہ اصطلاح خود مختلف فیہ ہے.. بقول شخصے..... 
*"طب نبوی کی اصطلاح نبوت مصطفوی کے خلاف سازش ہے، آپ طبیب نہیں، نبی تھے. اگر آپ کی طرف منسوب کوئی علاج سائنسی طور پر غلط ثابت ہو جائے تو طب نبوی قرار دینے سے نبوت مشکوک ہو جائے گی"* 
جسمانی امراض کے تعیین و تشخیص اور ان کے علاج کی وضاحت قرآن و حدیث نبوی کے بنیادی و اساسی مقاصد میں شامل نہیں..

سب سے پہلے یہ بات ذہن میں رہے کہ نبی اکرم صل اللہ علیہ و سلم کو بطور ہادی مبعوث کیا گیا تھا بطور طبیب اور ڈاکٹر نہیں. صحت کے حوالے سے جن امور کی بہت اہمیت تھی آپ نے انہیں بطور شریعت متعارف کروا دیا مثلاً اعضاء وضو کا دھونا یاغسل کرنا. دیگر امور میں آپ اپنے دور کے تجربات کو زیر استعمال لاتے تھے... آپ نے کسی بیماری میں کوئی علاج کیا یا کسی دوسرے کو بھی بتایا ہوگا تو متداول علاج کے طور پر نہ کہ پیغمبرانہ حیثیت سے. تجربی سائنس کے بارے میں آپ کا ارشاد 
*انتم اعلم بأمور دنیا کم*      تم اپنے دنیوی امور مجھ سے بہتر جانتے ہو.... 

اس عمل کا افسوس ناک پہلو یہ ہے کہ ہم نے رسول اللہ صل اللہ علیہ و سلم سے منسوب ہر ہر شے کو جنس بازار بنا دیا ہے. نیز جب اس دور کے کچھ معالجات کو طب نبوی کے طور پر مقدس قرار دے کر جزو ایمان بنالیا گیا اور میڈیکل سائنس نے اسےغلط قرار دے دیا تو کیا آپ کے دور کے طبی معمولات کو درست ماننا ایمان کا تقاضا ہوگا؟ ، اس طرح ہم ایک ہادی اور شارع کو طبیب کی معمولی سطح پر لا کر توہین کے مرتکب نہیں ہونگے.؟ 
کیا معیار ایمان کی نئ تعبیر نہیں کرنا پڑے گی.؟

*مولانا وحید الدین خاں صاحب* نے بھی ایک جگہ  لکھا ہے----  
- ابن خلدون اور شاہ ولی اللہ دہلوی کا کہنا ہے کہ طبی روایات کی شرعی حیثیت نہیں - یہ اس زمانہ کے حکماءحارث بن کلدہ وغیرہ کے تجرہے ہیں جن کو رسول اللہ صلی اللہ
علیہ وسلم نے عرب عادت کے تحت بیان فرمایا ۔.. 
 *حقیقت یہ ہے کہ طب نبوی عربی ہے , نہ کہ الہامی معنوں میں طب نبوی* ۔

अब हम इन ऐतराज़  जवाब  देते  हैं 
محترم بھائی! آپکی دعوتی کاوشوں اور تجربات کی ہماری نظر میں بڑی قدر و منزلت ہے.
जवाब: शुक्रिया, अल्लाह आपको इस क़द्रदानी का बदला ज़रूर देगा।
با ایں ہمہ، "طب نبوی" پر آپ کا اصرار محل نظر ہے... یہ اصطلاح خود مختلف فیہ ہے.. بقول شخصے.....
*"طب نبوی کی اصطلاح نبوت مصطفوی کے خلاف سازش ہے، آپ طبیب نہیں، نبی تھے. اگر آپ کی طرف منسوب کوئی علاج سائنسی طور پر غلط ثابت ہو جائے تو طب نبوی قرار دینے سے نبوت مشکوک ہو جائے گی"*
शख़्से से मुराद नामालूम शख़्स है, जिसकी मारिफ़ते दीन और तिब्बी उलूम की समझ ख़ुद क़ाबिले ग़ौर है।
ऐसे लोगों के शुकूक वसवसों की हैसियत से ज़्यादा कुछ नहीं होते।
उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार किया है और सुबूत में अल्लाह और उसके रसूल के क़ौल से कोई दलील नहीं दी है। अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं कियाऔर ख़ुद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी अपने तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं किया 
इसलिए उसका क़ौल क़ाबिले रद्द है।
उस नामालूम आदमी का 'अगर' लगाकर एक अंदेशा ज़ाहिर करना भी उसके तिब्बे नबवी में साईंसी नज़र से कोई कमी तलाशने में आजिज़ और बेबस रह जाने की दलील है। अगर उसे कोई कमी मालूम होती तो वह उसे दलील के तौर पर पेश करता।
फिर भी अगर किसी हदीस में इलाज के तौर पर बताया गया कोई तरीक़ा ग़लत साबित हो जाए तो उस हदीस के साथ वही मामला किया जाएगा जो कि ऐसी हदीसों के साथ उलमा करते हैं जिनके मतन में ग़लती साबित हो जाती है।
जब क़ानूने शरीअत और तमद्दुन (सभ्यता) के सब्जेक्ट पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अथारिटी माना जाता है और उस सब्जेक्ट पर कही गई किसी हदीस के मतन में ग़लती पाए जाने पर उस हदीस की तहक़ीक़ और तावील की जाती है और नबी स. की नुबूव्वत में कोई शक नहीं आता तो फिर इलाज के सब्जेक्ट पर आई किसी हदीस के मतन में ग़लती को सुनने और नक़्ल करने वाले की ग़लती माना जाएगा, न कि नबी स. की।
جسمانی امراض کے تعیین و تشخیص اور ان کے علاج کی وضاحت قرآن و حدیث نبوی کے بنیادی و اساسی مقاصد میں شامل نہیں..
इस ऐतराज़ में सिर्फ़ जिस्मानी बीमारियों को क़ुरआन और हदीसे नबवी के बुनियादी मक़सद से बाहर माना गया है। यानि ऐतराज़ करने वाला ख़ुद क़ल्बी और नफ़्सियाती और नज़रयाती बीमारियों को क़ुरआन और हदीसे नबवी के बुनियादी मक़सद में शामिल मानता है और अल्लाह ने इसी मक़सद के लिए क़ुरआन नाज़िल किया है। अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन को 'शिफ़ा' क़रार दिया 
يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءَتْكُم مَّوْعِظَةٌ مِّن رَّبِّكُمْ وَشِفَاءٌ لِّمَا فِي الصُّدُورِ وَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِينَ ﴿٥٧
ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से उपदेश औऱ जो कुछ सीनों में (रोग) है, उसके लिए शिफ़ा (रोगमुक्ति) और मोमिनों के लिए मार्गदर्शन और दयालुता आ चुकी है
Holy Qur'an 10:57
इससे तो ऐतराज़ करने वाला इक़रार करेगा कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने पवित्र क़ुरआन नाज़िल किया और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अरब के लोगों का और अपने ताल्लुक़ में आने वाली दूसरी कौमों के लोगों के दिल के और नज़रिये के भयानकतम रोगों का कामयाब इलाज किया। जिस नबी ने ये कामयाब इलाज किए, उसे मनोचिकित्सक तो मानना ही पड़ेगा। मनोचिकित्सक भी तबीब और चिकित्सक ही माना जाता है। इससे भी साबित होता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक माहिर तबीब थे और उन्होंने पवित्र क़ुरआन से लोगों का इलाज किया जो कि अरब लोगों की आम आदत न थी बल्कि अरब लोग तो पवित्र क़ुरआन से अपना इलाज कराने को तैयार ही न थे।
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पवित्र क़ुरआन को 'दवा' फ़रमाया है:
'ख़ैरुद्-दवाइल्-क़ुरआन (हदीस, तिब्बे नबवी लेखक: इब्ने क़य्यिम रह
जब क़ुरआन 'दवा' है तो नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चिकित्सक (तबीब, डाक्टर) हैं ही।
سب سے پہلے یہ بات ذہن میں رہے کہ نبی اکرم صل اللہ علیہ و سلم کو بطور ہادی مبعوث کیا گیا تھا بطور طبیب اور ڈاکٹر نہیں. صحت کے حوالہ سے جن امور کی بہت اہمیت تھی آپ نے انہیں بطور شریعت متعارف کروا دیا مثلاً اعضاء وضو کا دھونا یاغسل کرنا. دیگر امور میں آپ اپنے دور کے تجربات کو زیر استعمال لاتے تھے... آپ نے کسی بیماری میں کوئی علاج کیا یا کسی دوسرے کو بھی بتایا ہوگا تو متداول علاج کے طور پر نہ کہ پیغمبرانہ حیثیت سے. تجربی سائنس کے بارے میں آپ کا ارشاد
*انتم اعلم بأمور دنیا کم*      تم اپنے دنیوی امور مجھ سے بہتر جانتے ہو....
जिस्मानी सेहत पर वुज़ू, ग़ुस्ल, रोज़ा, नमाज़, ज़िक्र, तिलावत, जल्दी सोने, सूरज निकलने से पहले जागने, पाक चीज़ें खाने और नशे जैसी हराम चीज़ों से बचने का असर पड़ता है। ये सब दीन हैं। यह दीन अरबों की आम आदत न थी। इन सब कामों को अरबों की आदत बना देना कभी कोई अरब चिकित्सक न कर सका। ये सब काम नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पैग़म्बर की हैसियत से ही किए।
اس عمل کا افسوس ناک پہلو یہ ہے کہ ہم نے رسول اللہ صل اللہ علیہ و سلم سے منسوب ہر ہر شے کو جنس بازار بنا دیا ہے. نیز جب اس دور کے کچھ معالجات کو طب نبوی کے طور پر مقدس قرار دے کر جزو ایمان بنالیا گیا اور میڈیکل سائنس نے اسےغلط قرار دے دیا تو کیا آپ کے دور کے طبی معمولات کو درست ماننا ایمان کا تقاضا ہوگا؟ ، اس طرح ہم ایک ہادی اور شارع کو طبیب کی معمولی سطح پر لا کر توہین کے مرتکب نہیں ہونگے.؟
کیا معیار ایمان کی نئ تعبیر نہیں کرنا پڑے گی.؟
चिकित्सक की हैसियत को मामूली मानना ही एक ग़लत बात है। जबकि अल्लाह ने क़ुरआन में इंसानी जान बचाने को बड़ी नेकी क़रार दिया है और चिकित्सक का काम इंसानी जान बचाना ही है। चिकित्सक की हैसियत क्या होती है, यह बात आप किसी मनोरोगी के घरवालों से पूछें। इतनी अज़ीम हैसियत एक हादी में न होती तो ताज्जुब होता।
तबीब होना एक मामूली सिफ़त कैसे समझी जा सकती है जबकि एक हदीस में अल्लाह को तबीब बताया गया है।
अन्तर्-रफ़ीक़ वल्लाहु तबीब (हदीस
आप रफ़ीक़ हैं और अल्लाह तबीब (चिकित्सक) है।

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को शारैअ यानि शरीअत बनाने वाला कहा जा सकता है, जैसा कि ऐतराज़ करने वाला कह रहा है? इस पर आलिमों की राय अलग अलग है।
तिब्बे नबवी दीन का जुज़ है तो उसे मुक़द्दस मानने में क्यों ऐतराज़ है
किस किस चीज़ को जिन्से बाज़ार बनाया गया और इलाजे नबवी में क्या ग़लत निकला
यह बताया ही नहीं गया है।
*مولانا وحید الدین خاں صاحب* نے بھی ایک جگہ  لکھا ہے---- 
- ابن خلدون اور شاہ ولی اللہ دہلوی کا کہنا ہے کہ طبی روایات کی شرعی حیثیت نہیں - یہ اس زمانہ کے حکماءحارث بن کلدہ وغیرہ کے تجرہے ہیں جن کو رسول اللہ صلی اللہ
علیہ وسلم نے عرب عادت کے تحت بیان فرمایا ۔..
*حقیقت یہ ہے کہ طب نبوی عربی ہے , نہ کہ الہامی معنوں میں طب نبوی* ۔
इब्ने ख़ल्दून और शाह वलीउल्लाह रहमतुल्लाहि अलैह ने कहीं नहीं लिखा है कि तिब्बी रिवायतों की शरई  हैसियत नहीं है। उनकी तरफ़ से यह बात कहना ग़लत है।
इब्ने ख़ल्दून और शाह वलीउल्लाह रहमतुल्लाहि अलैह के लिखे हुए को नक़्ल करें ताकि हम उसे सबके सामने क्लियर करें। हकीमों की हिक्मत और उनके मुफ़ीद तजुर्बात को आगे बयान करके नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इल्म की क़द्र की है और हमें भी इल्म की क़द्र करना सिखाया है।
दूसरे लोगों की मुफ़ीद हिकमत को इख़्तियार करना नबियों की शान के ऐन मुताबिक़ है, ख़िलाफ़ नहीं है। दुनिया में सभी चिकित्सक ऐसा करते हैं। नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसा किया है तो उनका ऐसा करना चिकित्सकीय परंपरा के मुताबिक़ ही है।
-ज़्यादा जानकारी के लिए यह किताब पढ़ें
तिब्बे नबवी को भुलाने के नुक़्सान
आज उलमा ए उम्मत जिस एक बात पर मुत्तफ़िक़ हैं, वह यह है कि यह दौर दीन के फ़हम के ज़वाल (पतन) का दौर है। आज दीनी इल्म के नाम पर मदरसों तक में महदूद इल्म दिया जाता है जोकि दीन की ज़ाहिरी इबादतों और रस्मों से मुताल्लिक़ होता है। इल्म की बातिनी कैफ़ियत ‘ख़ौफ़े ख़ुदा’ का उसमें होना ज़रूरी नहीं माना जाता। उसमें इख़्लास, यक़ीन और तक़वा जैसी सिफ़तों के बिना भी उसे मदरसों से आलिम की सनद दे दी जाती है। यह इल्मी ज़वाल की निशानी है। इल्मी ज़वाल के दौर में तिब्बे नबवी का मुक़द्दस और इल्हामी इल्म भी लोगों की लापरवाही का शिकार हो गया है।
अब यही लोग आलिम हैं और यही इमाम हैं। ये लोग ईरानी और मुग़लई खाने खाकर और अंग्रज़ी कोल्ड ड्रिंक्स पीकर बीमार पड़ते रहते हैं। ख़ून में तेज़ाब ज़्यादा होने से कैल्शियम कम हो गया है। अब मस्जिदों में कुर्सी पर बैठकर नमाज़ पढ़ने वाले भी पहले से ज़्यादा नज़र आने लगे हैं, जबकि नमाज़ और क़ुरआन में शिफ़ा है। लेकिन ये लगातार बरसों नमाज़ और क़ुरआन पढ़ते रहते हैं और इन्हें शिफ़ा नसीब नहीं होती।
इन आलिमों को कोर्स में तिब्बे नबवी पढ़ाई गई होती तो ये बहुत कम बीमार पड़ते और जब कभी बीमार पड़ते तो अपना इलाज नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरह ख़ुद कर लिया करते या फिर अपने से बड़े किसी दूसरे आलिम से करा लिया करते। 
तिब्बे नबवी को ग़ैर ज़रूरी समझने का बुरा अन्जाम मैंने देवबन्द में यह देखा है कि मौलवी साहिबान तरह तरह की बीमारियों के शिकार होकर डा. अग्रवाल और डा. जैन से इलाज कराते हैं। जबकि होना इसका उल्टा चाहिए था और होता भी है। जो उलमा ए इस्लाम इख़लास, यक़ीन, तक़वा और ख़ौफ़े ख़ुदा की सिफ़त रखते हैं और तिब्बे नबवी का इल्म रखते हैं, उनके पास डाक्टर अपना इलाज कराने आते हैं। जिस मर्ज़ का इलाज ऐलोपैथी में नहीं होता, वे उस मर्ज़ से उनके पास आकर शिफ़ा पाते हैं।
मैंने मौलाना क़ारी अब्दुर्रहमान साहिब के मतब में देसी दवाओं के ज़रिए कैंसर जैसे भयानक मर्ज़ दूर होते हुए देखे हैं। ऐसे आलिम कम हैं लेकिन रब का शुक्र है कि तिब्बे नबवी के जानकार मुत्तक़ी आलिम हमारे बीच मौजूद हैं। मेरा मक़सद आलिमों में कमी बताना नहीं है बल्कि आलिमों और मुबल्लिग़ों को तिब्बे नबवी की तरफ़ तवज्जो दिलाना है। सभी आलिमों को इस बात पर सोचना होगा कि जिस नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वे वारिस हैं, उनका और उनके अहले बैत का फ़ैमिली डाक्टर कौन था़?
जो लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जिस्मानी मर्ज़ का चिकित्सक (तबीब) नहीं मानते, वे बताएं कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चिकित्सक नहीं थे तो उनकी और उनके घर वालों की चिकित्सा कौन करता था?
ऐतराज़ करने वाले किसी दूसरे चिकित्सक का नाम नहीं ले पाएंगे।
तिब्बे नबवी की बरकतें
हक़ीक़त यह है कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिस दीन की तालीम देते थे, उसके अंदर शिफ़ा के उसूल हैं। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का लाईफ़ स्टाईल हेल्दी था। उनके अहले बैत का लाईफ़ स्टाईल दीन के मुताबिक़ होने की वजह से हेल्दी था। वे बहुत कम बीमार पड़ते थे। शहद, सना, अंगूर और लौकी उनकी डाइट का हिस्सा थे, जो क़ब्ज़ नहीं होने देते और बदन को न्यूट्रिशन देने के साथ ही टाॅक्सिन्स को जिस्म से बाहर निकालते रहते हैं, जो कि ज़्यादातर बीमारियों की वजह बनते हैं। नमाज़ और पवित्र क़ुरआन उनके दिल को सुकून देते थे। पैदल चलना, घुड़सवारी करना और अपने काम अपने हाथों से करना उन्हें हेल्दी रखने में एक्सरसाईज़ से ज़्यादा फ़ायदा देते थे। वे हलाल खाते थे। वे भूख लगने पर खाते थे और पेट भरने से ज़रा पहले खाना छोड़ देते थे। वे महीने में कुछ दिन रोज़ा रखकर पेट और लिवर को आराम भी देते थे। जो कोई आज भी यह करेगा, वह आज भी  कम बीमार पइ़ेगा और अगर वह तिब्बे नबवी की जानकारी रखता है तो वह अपना इलाज ख़ुद ही कर लेगा। इसकी मिसाल मैं ख़ुद हूँ, अल्हम्दुलिल्लाह! मैंने आखि़री बार ऐलोपैथी की दवा कितने साल पहले खाई थी, मैं  बताना चाहूं तो मुझे याद करना पड़ेगा। दूसरों की तरह मुझे भी बुख़ार आते रहते हैं। दूसरे लोग पैथोलोजी और डाक्टरों के चक्कर लगाते रहते हैं तो मुझे आज तक बुख़ार आने पर ख़ून टेस्ट करवाने और ख़ून चढ़वाने की नौबत नहीं आई। मुझे आज तक ग्लूकोस चढ़ाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ी, अल्हम्दुलिल्लाह! ये सब तिब्बे नबवी की बरकतें हैं।
उलूम और नबियों का आपसी रिश्ता
मेरी दादी अम्मी मुझसे भी कम इल्म रखती थीं लेकिन वह 114 साल की उम्र पाकर इस दुनिया से रूख़्सत हुईं और आखि़र तक वह अपने जिस्म से काम लेती रहीं। उनकी याददाश्त थोड़ी सी मुतास्सिर हो गई थी, बाक़ी सब ठीक था। उनकी सेहत का राज़ यह था कि वह मौसम के हिसाब से सर्द और गर्म देखकर ही चीज़ों का इस्तेमाल करती थीं। हमने अपनी वालिदा ज़िन्दगी में शायद ही कभी किसी हकीम या डाक्टर के पास जाते देखा होगा। वह भी सर्द और गर्म तासीर देखकर मौसम के मुताबिक़ चीज़ों को इस्तेमाल करती हैं। हमारे घर में तिब्बी जानकारी आम होने की वजह से सर्द और गर्म, ख़ुश्क और तर की जानकारी औरतों और मर्दों को रहती ही है। पहले यह जानकारी ज़्यादातर समझदार बुज़ुर्गों को होती ही थी। आप इसे हमारे घर का या हिन्द का आम दस्तूर कह सकते हैं लेकिन आम दस्तूर में इस क़ीमती और नतीजाबख़्श इल्म का सोर्स सिर्फ़ एक रब ही है और रब से बन्दों तक यह इल्म नबियों के वास्ते पहुंचता है या फिर उन लोगों के ज़रिए से जो कि नबियों की तालीम के मुताबिक़ ज़मीन और आसमानों की चीज़ों में ग़ौरो-फ़िक्र करते रहते हैं। उनका इल्म आम होता है तो आम दस्तूर बन जाता है। आम दस्तूर में पाई जाने वाली अच्छी बातों का ताल्लुक़ सीधे या वास्तों से नबियों से ही होता है। अगर कोई नास्तिक है और उसने कोई चीज़ डिस्कवर की है तो वह ऐसा तभी कर पाया, जब उसने ज़मीन और आसमानों की चीज़ों में न्यूट्रल होकर ग़ौरो फ़िक्र किया। जो कि नबियों की तालीम है। कोई नास्तिक भी तभी कुछ पाता है जब वह नबियों की तालीम पर अमल करता है, हालाँकि वह इस बात से अन्जान होता है कि वह नबियों की तालीम पर चल रहा है।

बीमारियों की वजह और उनसे शिफ़ा
आज नई नस्ल को चीज़ों की सर्द और गर्म तासीर की यह जानकारी नहीं है। उन्हें अपने दिल और ज़ुबान पर क़ाबू नहीं है। माॅडर्न लाईफ़ स्टाईल ने उनके मन को तनाव से भर दिया है। नई नस्ल का लाईफ़ स्टाईल हेल्दी नहीं है। आज एलोपैथिक डाक्टर ख़ुद बीमार हैं। जैसे जैसे डाक्टरों और अस्पतालों की तादाद बढ़ रही है वैसे वैसे बीमारियों और बीमारों की तादाद भी बढ़ रही है।
डाॅक्टरों के मुताबिक़ कैंसर, डायबिटीज़, थायराईड, मोटापा, लिवर और किडनी का फ़ेल होना, हाई ब्लड प्रेशर और दमा जैसी बीमारियाँ माॅडर्न लाईफ़ स्टाईल की देन हैं। इन बीमारियों की शिफ़ा नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हेल्दी लाईफ़ स्टाईल में है। जिस नबी स. का लाईफ़ स्टाईल डाक्टरों के दौर की सैकड़ों बीमारियों की दवा हो, डाक्टरों की बीमारियों की दवा हो, उससे बड़ा चिकित्सक (तबीब) भला और कौन होगा?
इस्लामी शरीअत में किसी पैथी के डाक्टर से सलाह और दवा लेना मना नहीं है लेकिन यह याद रखना ज़रूरी है कि इस्लामी शरीअत ख़ुद बहुत सी बीमारियों से बचाव और शिफ़ा का ज़रिया है। इसी के साथ तिब्बे नबवी की शक्ल में एक इल्हामी तरीक़ा ए इलाज भी है, जिससे सब नबियों ने नफ़्सियाती, जिस्मानी, अख़्लाक़ी और रूहानी इलाज किए हैं।
तिब्बे नबवी की जानकारी रखने वाले नमाज़ी खड़े होकर ज़्याद अच्छे तरीक़े से नमाज़ पढ़ते हैं। जो कोई रग-पठ्ठों और जोड़ों के दर्द की वजह से बैठकर नमाज़ पढ़ रहा हो और खड़े होकर सेहतमंद लोगों की तरह नमाज़ पढ़ना चाहता हो, वह हमसे Email: allahpathy@gmail.com  पर संपर्क करे। इन् शा अल्लाह, वह बहुत जल्दी अपने पैरों पर खड़ा होकर नमाज़ पढ़ेगा। ऐसे ही किसी को दमा है तो उसका दमा तीन महीने में ख़त्म हो जाएगा, इन् शा अल्लाह!
तिब्बे नबवी हमें दीनी फ़राएज़ ज़्यादा अच्छे तरीक़े से अदा करने में भी मदद देती है क्योंकि हरेक फ़र्ज़ की अदायगी में सेहत ज़रूरी है। दावतो तब्लीग़ में भी सेहत और ताक़त की ज़रूरत है। इसीलिए हम तिब्बे नबवी पर सब दाईयों को तवज्जों दिलाते रहते हैं। नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सेहतबख़्श उसूलों को ख़ुद भी अपनाएं और दूसरे धर्म वालों को भी उनके चमत्कारी फ़ायदों की जानकारी दें।