अहमद फ़व्वाद भाई से तिब्बे नबवी पर बातचीत का पहला हिस्सा इस लिंक पर पढ़ें:
उसी सिलसिले में हमारे जवाब पर मोहतरम भाई जनाब अहमद फ़व्वाद ने जो लिखा है, आप उसे और उस पर हमारा जवाब नीचे पढ़ें।
*शख़्से से मुराद नामालूम शख़्स है, जिसकी मारिफ़ते दीन और तिब्बी उलूम की समझ ख़ुद क़ाबिले ग़ौर है।*........
मोहतरम भाई, नामालूम शख्स नहीं, बल्कि मारिफ़ते दीन और तिब्बी उलूम के माहिर पाकिस्तान के हकीम सैय्यद महमूद अहमद "सरव सहारनपुरी" का कौल है जिसे देवबंदी फिक्र के बड़े आलिम डॉ0 तुफैल हाशमी साहब के हवाले से नक़ल किया गया है। हकीम साहब से सम्बन्धित "नवा ए वक़्त" में छपा मज़मून पढ़ें-
https://www.nawaiwaqt.com.pk/12-Dec-2012/153708
*उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार किया है और सुबूत में अल्लाह और उसके रसूल के क़ौल से कोई दलील नहीं दी है। अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं कियाऔर ख़ुद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी अपने तबीब (चिकित्सक) होने का इन्कार नहीं किया*.......
मोहतरम भाई, यह तो "मनतक़ी मुग़ालता" है। सवाल इस तरह से भी तो पूछा जा सकता है कि क्या अल्लाह ने नबी का या नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना *चिकित्सक* की हैसियत से परिचय कराया। आप का दावा है कि *नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक माहिर तबीब थे* तो जनाब *बारे सबूत* भी आप पर है कि कुरआन व सुन्नत से आप दलील पेश फरमायें।
मोहतरम भाई, मेरा उद्देश्य बहस करना नहीं है, मेरा ऐतराज़ "तिब्बे नबवी" पर नहीं, आपके *"तिब्बे नबवी पर इसरार"* से सम्बन्धित है। आपने एक जगह अपनी पोस्ट में लिखा,
*दीन के दाई सब धर्म के लोगों के दर्द में काम आने वाले तभी बन सकते हैं, जब उन्हें नबियों की तरह जड़ी बूटियों और फलों से इलाज करना आता होगा। सो सभी मुबल्लिग़ तिब्बे नबवी ज़रूर पढ़ें।*
मेरे दृष्टिकोण से आपका उक्त कथन संतुलित नहीं है, पुनर्विचार प्रार्थनीय है। क्या सारे ही नबी तबीब भी थे।
दूसरी उसूली बात मेरी दृष्टि में है, कि तिब्बे नबवी दीन का जुज़ नहीं है और न ही तिब्बी रवायात की कोई शरअई हैसियत है।
यही बात इब्ने ख़लदून ने अपने मशहूर ज़माना "मुकद्दमें" में कही है -
وللبادية من أهل العمران طب يبنونه في غالب الأمر على تجربة قاصره علئ بعض
الأشخاص, ويتداولونه متوارثاً عن مشايخ الحي وعجائزه, وربما يصح منه البعض, إلا أنه ليس على قانون طبيعي, ولا عن موافقة المزاج. وكان عند العرب من هذا الطب كثير, وكان فيهم أطباء معروفون: كالحرث بن كلدة وغيره. والطب المنقول في الشرعيات من هذا القبيل, وليس من الوحي في شىءوإنما هوأمر
كان عادياً للعرب. ووقع في ذكر أحوال النبي صلئ الله عليه وسلم, من نوع ذكرأحواله التي هي عادة وجبلة, لا من جهة أن ذلك مشروع على ذلك النحو من العمل. فإنه صلى الله عليه وسلم إنما بعث ليعلمنا الشرائع, ولم يبعث لتعريف الطب ولا غيره من العاديات. وقد وقع له في شأن تلقيح النخل ما وقع,؛ فقال:
"أنتم أعلم بأموردنياكم . فلا ينبغي أن يحمل شيء من الذي وقع من الطب الذي
وقع في الأحاديث الصحيحة المنقولة على أنه مشروع, فليس هناك ما يدل عليه....
देहाती और बदवी समाज में भी तिब्ब पायी जाती है जो आम तौर पर कुछ व्यक्तियों के अनुभवों पर आधारित होती है और परिवार के बड़े बूढ़ों से परंपरागत रुप में नक़ल होती आती है। इन में से कभी कुछ चीजें सही भी होती है, लेकिन यह चिकित्सा सिद्धांत के प्रतिष्ठित नियमों एवं स्वभाव आदि के अनुरूप नहीं होती। अरब में भी इसी तरह की चिकित्सा प्रणाली प्रचलित थी और उनमें भी हारिस बिन कलदाह वगैराह जैसे *चिकित्सक* प्रसिध्द थे। शरियत में जो तिब्ब आयी है वो *इसी क़बील* की है, यह नहीं कि वह *वहय* पर आधारित है बल्कि अरबों में इस तरह की तिब्ब प्रचलित थी और वो उसके आदी थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जीवन वर्णन में आपके स्वभाव और आदतों का भी बयान होता है, यह बातें आदत व स्वभाव की होती है न कि नबी करीम ने उनको अमल के लिए मसनून क़रार दिया हो, क्योंकि आप हमें शरियत सिखाने के लिए *मबऊस* किये गये थे न कि तिब्ब और आदत की बातें। खजूरो के वृक्षों में परागण से सम्बन्धित हदीस में आप का प्रसंग आता है, आप ने इससे मना किया तो फल नहीं आये, सहाबा ने कहा तो आप ने फरमाया, *तुम दुनिया के मामले मुझ से बेहतर जानते हो*
अत: अहादीस में जो तिब्ब नक़ल हुई है, उसे मसनून नहीं कह सकते, इस पर कोई दलील नहीं है। ( मुकद्दमा इब्ने ख़लदून, फसल 24 तबिअय्यात)
इसी तरह शाह वली उल्लाह साहब ने *हुज्जतुल्लाहिल बालिग़ाह* में फरमाया - -
و ثانيهما ما ليس من باب تبليغ الرسالة و فىه قوله صلى الله عليه وسلم : إنما أنا بشر إذا امرتكم بشىئ من رأى فإنما انا بشر...و قوله صلى الله عليه وسلم في قصة تعبير النخل: فإني إنما ظننت ظنا ولا تؤاخذوني بالظن ولكن إذا حدثتكم عن الله شيأ فخذوا به فإني لم اكذب علي الله... فمنه الطب....
वो मामलात जो कि *तबलीग़ ए रिसालत* के बाब में से नहीं, उसी के बारे में नबी का कथन है, : मैं एक इंसान हूं, जब मैं तुम्हें तुम्हारे दीन से सम्बन्धित कोई आदेश दूं, तो उस पर क़ायम हो जाओ और जब मैं तुम्हें अपनी राय से किसी चीज़ का हुक़्म दूं तो मैं भी एक इंसान हूं। खजूरो के वृक्षों में परागण ( Pollination) के सम्बन्ध में आपने फरमाया, मैनें एक गुमान किया था, और मेरे सिर्फ गुमान पर अमल न करो, मगर जब मैं तुम्हें अल्लाह की तरफ से कुछ बताऊं तो उस का अनुपालन करो, क्योंकि मैंने अल्लाह पर कभी झूठ नहीं बोला। इन्हीं मामलात में से एक तिब्ब भी है।
आगे चलकर शाह साहब लिखते हैं, इन्हीं मामलात में वो बातें भी शामिल हैं जो आपने इबादत के बजाए आदत के तौर पर किये हैं और उन्हें आपने *कसदन नहीं इत्तेफाकन* किया है। (बाब-उलूमे नबवी की अक़साम)
बाक़ी अहादीस में तिब्ब से सम्बन्धित जो रवायात आयी हैं, उसके विश्लेषण से पता चलता है कि तिब्ब से सम्बन्धित आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दृष्टिकोण समग्रता लिए हुए है (Holistic Approach) जिसमें, Health, Hygiene, Prevention & Treatment सबको समाहित किया गया है, यह नबवी दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है और हमेशा रहेगा अलबत्ता Treatment के सम्बन्ध में आप से मनक़ूल इलाज को उसके सही Perspective में लेना आवश्यक है, उसे दीन का जुज़, शरियत का हिस्सा न बनायें। मुस्लिम की रिवायत जो हज़रत अबु हुरैरा से नकल की गयी है जिसमें कलौंजी को मौत के सिवा हर बीमारी की दवा बताया है। हमें यह देखना होगा कि इस हदीस का सही मफहूम क्या है, क्या इसका इतलाक़ सब भौगोलिक क्षेत्रों एवं जलवायु में रहने वाले लोगों पर समान रूप से होगा, या यह अरब में रहने वालों के लिए ही सीमित है, क्या कलौंजी की शिफा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौर में और ख़ित्तें में पायी जाने वाली बीमारियों से ही सम्बंधित है या आज एचआईवी एड्स, कैंसर तथा अन्य अनुवांशिक बीमारियों (Genetic Disorder) का भी इलाज कलौंजी से किया जा सकता है? दूसरी हदीस में cupping हिजामा के ताल्लुक से भी यही शिफा की बात आयी है। जब कलौंजी में हर बिमारी का इलाज है तो हिजामा की ज़रूरत नहीं। मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसी सभी अहादीस और उनके पारस्परिक सम्बन्ध का, उनके सही अर्थ का वर्णन आवश्यक है, नहीं तो अनर्थ हो जाता है। आज जगह जगह हिजामा सेन्टर खुले हैं, जिनके संचालकों की विशेषज्ञता ही संदिग्ध है। क्या यह *जिन्से बाज़ार* नहीं?
व्यक्तिगत तौर पर मैं Herbal Medicine, Homeopathy, Acupuncture आदि Alternative therapy की उपयोगिता का समर्थन करता हूं, परन्तु उसे दीन की हैसियत नहीं देता। मैं यह भी मानता हूं कि अक़ीदत, आस्था का इलाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
मोहतरम भाई, आप दावत का बड़ा काम कर रहे हैं, मेरी बातों से यदि आप असहमत हैं तो कोई बात नहीं। मेरी तरफ से इस विषय पर अब विराम।
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Ahmad Fawwad Bhai!
Aapke diye link par Dekha to Hakeem saharanpuri sahib Ka aisa koi Qaul Nahi Mila.
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https://www.nawaiwaqt.com.pk/12-Dec-2012/153708
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तिब्बे नबवी, तिब्बे इलाही है
हमने कोई मन्तक़ी मुग़ालता नहीं दिया है। हमने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीस पेश की है जिसमें उन्होंने अल्लाह को तबीब (चिकित्सक) फ़रमाया है।
अन्तर्-रफ़ीक़ु वल्लाहु तबीब
आप रफ़ीक़ (तसल्ली देने वाले) हैं और अल्लाह तबीब (चिकित्सक) है। -हदीस
अल्लाह किस दवाई से चिकित्सा करता है?
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस दवा का नाम भी बताया है:
ख़ैरूद्-दवाइल्-क़ुरआन
क़ुरआन सबसे अच्छी दवा है। (हदीस)
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह के चिकित्सक और पवित्र क़ुरआन के दवा होने का दावा किया है। ये दोनों हदीसें आप पढ़ चुके हैं।
एक और हदीसे नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में अल्लाह का नाम 'अश्-शाफ़ी' (शिफ़ा देने वाला) आया है।
اللهم رب الناس أذهب البأس اشف انت الشافي لا شفاء الا شفاؤك شفاءا لا يغادر سقما
“Allahumma Rabban-Nas, Adh-hibil Ba’s, Ishfi antash-Shafi, la shifa’a illa shifa’uk, shifa’an la yughadiru saqama”
O Allah! the Rubb of mankind! Take away this disease and cure (him or her). You are the Curer. There is no cure except through You. Cure (him or her), a cure that leaves no disease."
[Al-Bukhari].
इस हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह पहचान कराई है कि अल्लाह ही शिफ़ा देने वाला है और उसके सिवा कोई दूसरा शिफ़ा नहीं दे सकता।
इनके बाद आप और किस तरह का दावा चाहते हैं?
इस दावे की तस्दीक़ क़ुरआन से भी होती है:
وَإِذَا مَرِضْتُ فَهُوَ يَشْفِينِ ﴿٨٠
और जब मैं बीमार होता हूँ, तो वही मुझे शिफ़ा देता (अच्छा करता) है.
पवित्र क़ुरआन 42:80
तिब्बे नबवी, इल्हामी तिब्ब है
अल्लाह तबीब (चिकित्सक) है और शाफ़ी (शिफ़ा देने वाला) है तो वह इलाज ज़रूर करेगा और दवा बताएगा।
1. पहला सुबूत: मौजूदा तौरात में अल्लाह के इल्हाम के ज़रिए मूसा अलैहिस्सलाम को एक पेड़ के बारे में बताने और उसके ज़रिए लोगों के लिए पानी को पीने लायक़ बनाने (water treatment) का वाक़या लिखा हुआ मिलता है और उसके बाद अल्लाह का यह दावा भी मिलता है कि 'मैं यहोवा तुम्हें स्वस्थ करता हूँ।'
फिर मूसा ने यहोवा को पुकारा और यहोवा ने उसे एक छोटा पेड़ दिखाया। मूसा ने जब वह पेड़ उठाकर पानी में फेंका तो पानी मीठा हो गया।
वहाँ परमेश्वर ने लोगों को एक नियम और न्याय-सिद्धांत दिया और उन्हें परखा। उसने कहा, “तुम अपने परमेश्वर यहोवा की बात सख्ती से मानना और वही करना जो उसकी नज़रों में सही है, उसकी आज्ञाओं पर ध्यान देना और उसके सभी नियमों का पालन करना। अगर तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम पर ऐसी कोई बीमारी नहीं लाऊँगा जो मैं मिस्रियों पर लाया था। मैं यहोवा तुम्हें स्वस्थ करता हूँ।”
-बाइबिल, निर्गमन 15:25-26
2. दूसरा सुबूत: ऐसे ही बच्चे को जन्म देने के बाद अल्लाह ने मरियम अलैहस्सलाम को 'खजूर खाने का इल्हाम' (दिव्य प्रेरणा) किया:
तू खजूर के उस वृक्ष के तने को पकड़कर अपनी ओर हिला। तेरे ऊपर ताज़ा पकी-पकी खजूरें टपक पड़ेगा। अतः तू उसे खा और पी और आँखें ठंडी कर।
पवित्र क़ुरआन 19:25-26
क्या यह अल्लाह का इल्हाम के ज़रिए दवा और फ़ूड बताना नहीं है? चिकित्सा के आधुनिक सिद्धांतों पर परख कर कोई बताए तो सही कि एक ज़च्चा (प्रसवा) के लिए खजूर खाने की इस इल्हामी तज्वीज़ (prescription) में कौन सी कमी है?
3. तीसरा सुबूत:
हमारे बन्दे अय्यूब को भी याद करो, जब उसने अपने रब को पुकारा कि "शैतान ने मुझे दुख और पीड़ा पहुँचा रखी है।" "अपना पाँव (धरती पर) मार, यह है ठंडा (पानी) नहाने को और पीने को।"
पवित्र क़ुरआन 38:41-42
अल्लाह की पहचान कराना नबी के पद की बुनियादी
ज़िम्मेदारी है
अल्लाह तबीब (चिकित्सक) और शाफ़ी (बीमारी से चंगा करने वाले) है। ये दोनों सिफ़तें (गुण) नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ुद बताई हैं ताकि सब लोग अल्लाह की इन सिफ़तों से फ़ायदा उठाएं। क्या अल्लाह की सिफ़तों का परिचय (Introduction) देना और उनसे फ़ायदा उठाने का तरीक़ा बताना नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तब्लीग़ की बुनियादी ज़िम्मेदारी नहीं है?
दीनी और दुनियावी कामों की कोई लिस्ट मौजूद नहीं है
हज़रत शाह वलीउल्लाह साहिब रह. ने ऊपर दी हुई तहरीर में सिर्फ़ अपना मत दिया है और उसके हक़ में कोई दलील नहीं दी है कि वह तिब्ब को 'दुनियावी कामों' में क्यों शामिल मानते हैं? और उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नुबूव्वत के बुनियादी मक़सद में शामिल क्यों नहीं मानते?
क़िताल (जंग) भी दुनियावी काम है। अरब क़िताल के भी माहिरीन थे और नबी स. ने नुबूव्वत से पहले कभी जंग नहीं की थी और पूरी ज़िन्दगी में भी कभी चार आदमी ख़ुद क़त्ल न किए तब भी वह इस ख़ालिस दुनियावी काम के इमाम बनते थे और सबसे आगे खड़े होते थे।
क्या नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी किसी और जंगी एक्सपर्ट को अपने से ज़्यादा जानकार और माहिर मानकर उसकी कमांड पर जंग लड़ी?
क्या अरब का कोई शख़्स उनसे बड़ा फ़ातेह सैनिक साबित हुआ जबकि नबी स. ने किसी बड़े कमांडर से तलवार चलाना और फ़ौजों की सफ़ें बनाना भी न सीखा था।
आज तक किसी दीनी किताब में दीनी और दुनियावी कामों की कोई लिस्ट मौजूद नहीं है। आप एक बार 'दुनियावी कामों की लिस्ट' बनाएं ताकि पता चले कि आख़िर किन कामों में कोई उम्मती नबी स. से ज़्यादा माहिर हो सकता है।
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नबी स. ने तिब्ब में कुछ काम यक़ीनन वे किए हैं जो अरबों में राएज थे। उनमें शहद और सना का इस्तेमाल और हिजामा राएज था लेकिन नबी स. ने क़ुरआन से भी इलाज किया है और यह अरबों में राएज न था।
नबी स. ने नमाज़ में शिफ़ा बताई है और यह बात उन्हें अरब नहीं बता सकते थे।
नमाज़ के बारे में यह बात उन्हें रब के सिवा कोई नहीं बता सकता।
जब बिना किसी चिकित्सक से पढ़े बिना एक आदमी नमाज़ और क़ुरआन से व्यक्ति और समाज का कामयाब इलाज कर रहा है तो यक़ीनन वह इलाज करना जानता है और इलाज उसके मन्सब (पद) की ज़िम्मेदारियों में है। उसे इलाज का यह ख़ास तरीक़ा उसी रब ने सिखाया है, जिसे वह तबीब (चिकित्सक) मानता है।
हदीसों में नबी स. के द्वारा जिस्मानी, नफ़्सियाती और अख़्लाक़ी, हर तरह की बीमारियों के कामयाब इलाज के वाक़िआत हैं और एक भी ऐसा वाक़िआ नहीं है जिसमें नबी स. ने इलाज शुरू तो किया हो और फिर उसमें नाकाम रहकर अरब के किसी हकीम के सुपुर्द किया हो। अल्लाह के नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जिसका इलाज शुरू किया, उसे अंजाम तक भी पहुंचाया और रब ने उनके इलाज से बहुत लोगों को शिफ़ा दी।
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी किसी से अपने जिस्मानी मर्ज़ का इलाज कराया हो, ऐसा सुबूत नहीं मिलता।
हमने आपसे इस बारे में सवाल किया तो आपने भी कोई जवाब न दिया।
उनके द्वारा दूसरों के इलाज करने के वाक़िआत ज़रूर मिलते हैं। इत्तेफ़ाक़न किए जाने वाले वाक़िआत इक्का दुक्का होते हैं जबकि नबी स. द्वारा बार बार अलग अलग लोगों को तिब्बी सलाह देना साबित है। जिससे पता चलता है कि वह क़स्दन (Intentionally) इलाज करते थे, इत्तेफ़ाक़न नहीं। वह चिकित्सकों को भी सलाह देते थे।
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नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा को इलाज करना सिखाया
इसी के साथ नबी स. सहाबा को इलाज करना सिखाते भी थे।
सहाबा क़ुरआन से जादू और नज़र का इलाज करना न जानते थे।
यह इलाज नबी स. ने ही उन्हें सिखाया। जो बाद में सहाबा में और उलमा में मशहूर हुआ।
नज़र और जादू को आधुनिक चिकित्सा के स्थापित सिद्धांत बीमारी की वजह ही नहीं मानते। इसलिए वे इन वजहों से होने वाली बीमारियों की जड़ को अभी नहीं समझ सकते। जिन बीमारियों के मूल कारणों को आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति नहीं समझ सकती, उनका इलाज भी नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम किया करते थे।
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मैं इस बात पर इसरार करता हूं कि
मोमिन क़ुरआन और नमाज़ की हीलिंग पावर को समझें और मैं यह भी तक़ाज़ा करता हूँ कि
दीन के सब दाई उन जड़ी बूटियों फलों और शहद व पानी जैसी चीज़ों की तासीर ज़रूर जानें,
जिन्हें इस्तेमाल करने का हुक्म रब ने उन चीज़ों का नाम लेकर तौरात, ज़बूर, इंजील और क़ुरआन में दिया और नबियों ने उन्हें इस्तेमाल करके शिफ़ा पाई और नफ़ा हासिल किया है। जैसे कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने रब के हुक्म से एक पेड़ कड़वे पानी में डाला। फिर वह पीने के लायक़ हुआ। जिससे उनकी क़ौम सलामत रही।
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मैं इस बात पर भी इसरार करता हूं कि अल्लाह लोगों को ज़मीनों और आसमानों की चीज़ों में ग़ौरो फ़िक्र को कहता है तो दाई इस काम को ज़रूर करें।
इससे मुझे फ़ायदा हुआ है और सबको होगा। यह तय है।
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'कलौंजी में हर बीमारी का इलाज है' ऐसा कहने से दूसरी चीज़ों में शिफ़ा की नफ़ी नहीं हो जाती और न ही यह मानना सही है कि हिजामा नहीं कराना चाहिए।
यह अल्लाह की बड़ी रहमत है कि उसने बहुत सी चीज़ों और बहुत से तरीकों में अपने बंदों के लिए शिफ़ा रखी है।
इलाज के मुख़्तलिफ़ तरीकों की तरफ़ तवज्जो दिलाने के लिए नबी स. ने हिजामा की भी तारीफ़ की और रब का शुक्र है कि
आज दुनिया भर में हिजामा राएज है।
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जगह जगह तो हिजामा की तरह दावती सेंटर भी खुले हुए हैं। जिन्हें चलाने वालों की फ़हमे दीन ही ग़लत और मश्कूक है।
जगह जगह निकाह भी हो रहे हैं, बाद में पता चलता है कि लड़के में मर्दानगी ही नहीं थी। उनमें झगड़े और तलाक़ होते हैं।
हर घर में ऐसी औरतें मां बन रही हैं, जिन्हें ज़िन्दगी भर बच्चे की तरबियत करना नहीं आता। वे उसे नमाज़ और क़ुरआन तक नहीं पढ़ातीं। सोते वक़्त बच्चों ने दांत साफ़ किए या नहीं, वे यह तक चेक नहीं करती। आदर्श हालत किसी फ़ील्ड में नहीं है, इसलिए हिजामा और तिब्बे नबवी में भी सब लोग आदर्श नहीं हैं।
जब बेशुऊरी दुनिया का आम रिवाज है तो उन्हीं लोगों के हाथ हिजामा लग गया है।
वे इसे अपने लेवल से ही यूज़ करेंगे लेकिन इससे हिजामा का शिफ़ा होना अपनी जगह हक़ रहता है।
जो शख़्स अपनी खाल में हिजामा का ब्लेड लगवाए, उसके ज़िम्मे है मुआलिज की क़ाबिलियत और उसका तजुर्बा चेक करना।
मैंने हिजामा कराया तो पहले यह सब देखा और मुझे श्याटिक दर्द में 10-20 मिनट में ही बहुत ज़्यादा आराम मिला।
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तिजारत करना एक ज़रूरत है
बाज़ार से बचना मुमकिन नहीं है और दीन में मतलूब भी नहीं है। आज मुस्लिम को बाज़ार में अपनी जगह बनानी होगी क्योंकि
*Control the purse Control the policy* एक हक़ीक़त है।
अपनी फ़िक्री आज़ादी की हिफ़ाज़त तभी मुमकिन है जब आप फ़ाईनेंशियली मज़बूत हों।
इसके लिए जिन्से बाज़ार को जायज़ तरीक़े से बेचना सीखना होगा, जैसे कि सहाबा र. बेचा करते थे।
ऐसा करके अक्सर मुबल्लिग़ ग़रीबी और ज़हनी ग़ुलामी से निकल आएंगे,
इन् शा अल्लाह।
तिजारत बेरोज़गारी और ग़रीबी का हल है। आज जब हर चीज़ को बाज़ार में बिकने वाली चीज़ बनाया जा रहा है तो आप उसे जायज़ तरीक़े से बेचें। दीन इससे मना नहीं करता कि कोई अपना सर्विस चार्ज ले।
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तिब्बे नबवी एक अलग पैथी है
हरेक पैथी के अपने कुछ ख़ास उसूल होते हैं। एक पैथी दूसरी पैथी के उसूलों पर पूरी नहीं उतरती। एलोपैथी डा. हैनीमैन के उसूलों पर पूरी नहीं उतरी और होम्योपैथी एलोपैथी के उसूलों पर पूरी नहीं उतरती। ऐसे ही तिब्बे नबवी के लिए एलोपैथी के उसूलों पर पूरा उतरना ज़रूरी नहीं है।
तिब्बे नबवी को होम्योपैथी और यूनानी तरीक़ा ए इलाज की तरह की एक अरब पैथी समझना ग़लत है और यह ग़लती तिब्बे नबवी में शहद, सना और कलौंजी जैसी हर्ब्स के यूज़ को देखकर होता है जो अरबों में आम तौर पर यूज़ होती थीं।
आप इब्ने क़ययिम रह. की बुक तिब्बे नबवी पढ़ेंगे तो आपको मालूम हो जाएगा कि तिब्बे नबवी के अपने अलग और इल्हामी उसूल हैं।
उन उसूलों को भुलाकर शहद, सना और कलौंजी खाया जाए तो वह अरब आदत है या हारिस बिन कल्दाह जैसे अरब तबीबों का तरीक़ा है लेकिन जब उन्हीं चीज़ों को तिब्बे नबवी के उसूलों की रिआयत के साथ खाया जाएगा तो वह एक ऐसा तरीक़ा है, जिससे हारिस बिन कल्दाह और अरब के मुशरिक वाक़िफ़ न थे।
इस बात पर भी ग़ौर करना ज़रूरी है कि अरबों में राएज तरीक़ा ए इलाज हारिस बिन कल्दह जैसे चिकित्सकों की खोज से वुजूद में नहीं आया था। यह तरीक़ा नबियों की तालीम से नस्ल दर नस्ल गुज़रते हुए उन तक पहुंचा है और उसी तिब्बी इल्म में उन चिकित्सकों ने अपने तजुर्बात से और ज़्यादा इज़ाफ़ा कर लिया। इससे पता चलता है कि हारिस बिन कल्दाह जैसे अरब चिकित्सक ख़ुद तिब्बे नबवी से इलाज करते थे। यह बात समझने के लिए इस बात को याद रखें कि तिब्बे नबवी से मुराद 'नबियों की तिब्ब' है जोकि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले भी मौजूद थी जैसे कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाईश से पहले भी इस्लाम का वुजूद था।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति कैसे वुजूद में आईं?
पुराने चिकित्सकों के तिब्बी इल्म की बुनियाद पर और ज़्यादा तजुर्बात किए गए तो आधुनिक चिकित्सा शास्त्र वुजूद में आ गया है। फिर इसमें और ज़्यादा तजुर्बात किए गए तो बहुत सी शाखाएं (Branches) वुजूद में आ गईं। आप ध्यान से आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की स्टडी करेंगे तो आपको सब आधुनिक डाक्टर बीच के बहुत से वास्तों के ज़रिए अल्लाह के तिब्बी इल्म से ही फ़ायदा उठाते हुए नज़र आएंगे। सच यही है कि जिसे भी जो ख़ैर और ख़ूबी मिली है और मिल रही है, सिर्फ़ एक अल्लाह से ही मिली है और मिल रही है। मैं आधुनिक चिकित्सा पद्धति को भी तिब्बे नबवी की एक तरक़्क़ीयाफ़्ता (Developed) और बदली हुई पैथी के रूप में देखता हूं। मैं ज़रूरत पड़ने पर आधुनिक चिकित्सा पद्धति से और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों से भी फ़ायदा उठाया हूँ। हिकमत जहाँ भी है, मैं उसे मोमिन की मीरास मानता हूँ।
कलाम में शिफ़ा की तासीर है
इस सब के बावुजूद तिब्बे नबवी अपने आप में आज भी एक अलग और मुकम्मल तिब्बी तरीक़ा है। जिसमें दवा के साथ अक़ीदों के सही करने, दुआ करने और अपनी आदतों को सुधारने पर भी ज़ोर दिया जाता है।
हक़ीक़त यह है कि तिब्बे नबवी अपने वक़्त से बहुत आगे की पैथी है। यह आज भी अपने वक़्त से बहुत आगे की पैथी है।आप तिब्बे नबवी में पवित्र क़ुरआन से इलाज होते देखेंगे तो आप इसकी Quantum Healing और Vibrational Healing को समझ सकेंगे। ख़याल और कलाम भी दवा होते हैं क्योंकि इनमें शिफ़ा की तासीर होती है। रब का कलाम मरीज़ को क्वांटम लेवल पर बदलता है और उसे उसके यक़ीन के मुताबिक़ शिफ़ा मिलनी शुरू हो जाती है।
अहमद भाई! आप मेरे द्वारा सुझाई गई इब्ने क़ययिम की बुक तिब्बे नबवी पढ़कर जवाब लिखते तो ज़्यादा अच्छा रहता।
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सभी नबी दवा और इलाज के बारे में जानते थे
वे संकट में मदद के लिए यहोवा को पुकारते,
वह उन्हें बदहाली से छुड़ाता।
वह अपने वचन के ज़रिए उनकी बीमारी दूर करता,
उन्हें उन गड्ढों से बाहर निकालता जहाँ वे फँस गए थे।
ज़बूर (Psalm) 107:19-20
हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम भी यह बात जानते थे कि अल्लाह तबीब है। अल्लाह ने उन्हें इलाज बताया। उन्होंने उसे किया और उन्हें सेहत मिली। अल्लाह ने ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के ज़रिए इतने ज़्यादा लोगों का इलाज किया कि उनका मौज्ज़ा ही बीमारों को शिफ़ा देना माना गया है। आप बाईबिल में इब्राहीम अलैहिस्सलाम की नस्ल में आए नबियों के बारे में पढ़ेंगे तो आपको उनके द्वारा इलाज करने के क़िस्से भी मिलेंगे।
हर नबी इलाज करना जानता था। यही वजह है कि मुख़्तलिफ़ ज़मानों में रब ने नबियों को खाने पीने की और बरतने की अलग अलग चीज़ें बताईं, जिनमें शिफ़ा थी।
'दिल का खुश रहना बढ़िया दवा है,
मगर मन की उदासी सारी ताकत चूस लेती है।'
बाईबिल, नीतिवचन 17:22
लोगों का दुनियावी कल्याण (Wellness) भी नबी के मक़सद में शामिल होता है
जो लोग नबी स. की बेअसत का मक़सद लोगों तक सिर्फ़ कुछ अक़ाएद और क़ानून की जानकारी देना समझते हैं,
उनकी नज़र में तिब्ब, तिजारत, सियासत और बाज़ार में घूमना दुनियावी काम हैं।
पहले मुशरिकीन ए अरब नबी स. के इन आमाल को पवित्रता और महानता के ख़िलाफ़ मानकर ऐतराज़ करते थे।
अब अक्सर मुस्लिमों ने भी इन्हें दीन से बाहर समझ लिया है।
कुछ लोगों ने दीन इस्लाम को Socio, politico Economic system के रूप में तो पहचान लिया है लेकिन मेंटल और फ़िज़िकल हेल्थ और दुनिया में wellness अब भी उनकी तफ़हीमे दीन के दायरे से बाहर है।
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हक़ीक़त यह है कि तिब्बे नबवी इस्लाम का हिस्सा है और इसलिए है कि इस्लाम की एप्रोच holistic है।
अल्लाह इंसान को नेकी बदी की तमीज़ तो देता लेकिन उसे सेहत और सलामती का तरीक़ा न बताता तो ऐसा दीन ही अधूरा होता।
जब हम यह कहते हैं कि
रब का शुक्र है उसने हमें ज़िन्दगी के हर पहलू में हिदायत दी तो हम ख़ुद इक़रार करते हैं कि
रब ने हमें बीमारी और सेहत के पहलू में भी हिदायत बख़्शी है।
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किसी से इल्मी बातचीत से हम नहीं थकते।
हरेक इंसान का ज़हनी शाकिलह (paradigm) अलग है और हरेक अपने ज़हनी शाकिलह के मुताबिक़ ही चीज़ों को समझता है।
इसी से इख़्तिलाफ़ वुजूद में आता है और यही इख़्तिलाफ़ एक को दूसरे से अलग करती है और यह अच्छा है।
इल्मी इख़्तिलाफ़ अच्छा है। इसी से एक आदमी दूसरे से सीखता है। इसी से रब की सिफ़त 'अल्-अलीम' तजल्ली करता है
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तिब्बे नबवी मुबल्लिग़ मोमिन को कल्याणकारी बनाती है
मैं ने एक एक आदमी से एक ही सब्जेक्ट पर साल साल और दो दो दो साल बात की है और
उनसे सीखा है।
... मैं ने यह भी सीखा है कि अक्सर लोग सत्य देखकर नहीं बल्कि हित देखकर बात मानते हैं।
पहले मैं बिना तिब्बे नबवी के मुशरिकों को दीने हक़ बताया करता था, तब कोई बिरला मानता था,
अब मैं उसे हक़ बात बताता हूं और रब के कलाम से और नबियों की ज़िन्दगी से उसके जायज़ हित को भी सपोर्ट करने वाली नालिज भी दे हूं तो हरेक आदमी बात मानता है।
आज हरेक इंसान के लिए आज सेहत, रोज़ी, सलामती, घर बनाना और निकाह-शादी करना बहुत जटिल मसले हैं।
तिब्बे नबवी इन सबको हल करती है। तिब्बे नबवी की ख़ास बात यह है कि यह फ़ाइनेंशियल बीमारियों ग़रीबी और क़र्ज़ को भी दूर करती है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
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दूसरे तरीक़ा ए इलाज सिर्फ़ बीमारी का इलाज करते हैं, जबकि तिब्बे नबवी इंसान का इलाज करती है, उसके हरेक पहलू के हालात का इलाज करती है। सब लोगों तक यह जानकारी पहुंचाना भी तब्लीग़ और दावत का हिस्सा है। बीमारियों के इस दौर में मानव जाति का कल्याण करने के लिए ऐसा करना आज पहले से ज़्यादा ज़रूरी है।
The most beloved to Allah are the most beneficial to the people
Ibn Umar reported: The Prophet, peace and blessings be upon him, said,
“The most beloved people to Allah are those who are most beneficial to the people. The most beloved deed to Allah is to make a Muslim happy, or to remove one of his troubles, or to forgive his debt, or to feed his hunger. That I walk with a brother regarding a need is more beloved to me than that I seclude myself in this mosque in Medina for a month. Whoever swallows his anger, then Allah will conceal his faults. Whoever suppresses his rage, even though he could fulfill his anger if he wished, then Allah will secure his heart on the Day of Resurrection. Whoever walks with his brother regarding a need until he secures it for him, then Allah the Exalted will make his footing firm across the bridge on the day when the footings are shaken.” (Tabarani)