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Sunday, December 30, 2018

Holy Anointing Oil पवित्र अभिषेक तेल توراۃ اور انجیل میں مسح کا تیل

*Dawah Psychology*
Har group me share Karen.
هُوَ الَّذِي يُنَزِّلُ عَلَىٰ عَبْدِهِ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ لِّيُخْرِجَكُم مِّنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ ۚوَإِنَّ اللَّـهَ بِكُمْ لَرَءُوفٌ رَّحِيمٌ ﴿٩﴾
वही तो है जो अपने बन्दे पर साफ़ और रौशन आयतें नाज़िल करता है ताकि तुम लोगों को (अज्ञान के) अंधेरों से निकाल कर (ज्ञान के) प्रकाश में ले जाए और यक़ीनन अल्लाह तुम पर बड़ी मेहरबानी और हमेशा रहम करने वाला है.
Holy Qur'an 57:9
अल्लाह की आयतों की तरफ़
दावत का मक़सद लोगों को अज्ञान के अंधेरों से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में लाना है ताकि लोगों को पता चले कि अल्लाह हम पर मेहरबानी और रहमत करता है।
इसलिए मैं मुस्लिमों से और दूसरे तरीकों के मानने वालों से अल्लाह की आयतों की बात करते वक़्त यह ध्यान रखना ज़रूरी समझता हूँ कि
1. उन्हें ज्ञान के प्रकाश में लाया जाए। उन्हें कोई ऐसी बात बताई जाए, जिसे वे नहीं जानते या वे भूल गए हैं।
2. उन्हें ऐसा ज्ञान दिया जाए जिससे उनका कोई दुख दूर होता हो और उन्हें कोई भलाई नसीब होती हो ताकि उन्हें अल्लाह की मेहरबानी और रहमत का एहसास हो, जो उन पर अल्लाह करता है।
🌳🌿🌳🕋🌳🌿🌳
Tibbe Nabawi का ज्ञान एक ऐसा ही ज्ञान है। तिब्बे नबवी की जानकारी की वजह से मुझे हर धर्म के लोगों को ज्ञान के प्रकाश में लाने में मदद मिलती है और वे रियलाईज़ करते हैं कि 
हम पर रब की बड़ी मेहरबानी और रहमत सदा से है।
मैंने क़ुरआन के साथ बाईबिल, गीता और वेद में भी इलाज के तरीकों पर 30 साल रिसर्च की है,
अल्हम्दुलिल्लाह!!!
🌟🌟🌟
एक ताज़ा बातचीत आपकी ख़िदमत में पेश है।
'The Secret of Holy Anointing Oil'
Pasture Sanjeet साहिब से ख़ुर्जा में प्रोग्राम के बाद बात हुई तो हमने उन्हें इस तरफ़ ध्यान दिलाया जो इन्जील (Gospel) आदि में लिखा है कि अगर बीमार आदमी तौबा करे और उस पर तेल मलकर उसके लिए दुआ की जाए तो उसकी बीमारी दूर हो जाती है।
💚💖💚
chunāṅche shāgird wahāṅ se nikal kar munādī karne lage ki log taubā kareṅ. unhoṅ ne bahut sī badrūheṅ nikāl dīṅ aur bahut se marīzoṅ par zaitūn kā tel mal kar unheṅ shifā dī.
Marqus 6:13 (Roman Urdu Bible)
🌹💖🌹
Is aayat me Zaitoon ke Tel Ka zikr hai,
Jise laga Kar Dua Karne se Bimaro ko Shifa milti thi.
Yh hukm bhi milta hai:
kyā āp meṅ se koī bīmār hai? wuh jamā'at ke buzurgoṅ ko bulāe tāki wuh āa kar us ke lie duā kareṅ aur ḳhudāwand ke nām meṅ us par tel maleṅ. phir īmān se kī gaī duā marīz ko bachāegī aur ḳhudāwand use uṭhā khaṛā karegā. aur agar us ne gunāh kiyā ho to use muāf kiyā jāegā.
Yaqoob 5:14-15 (Roman Urdu Bible)
🌳🌱🌳
जब तौबा और दुआ के साथ तेल भी मलने के लिए कहा गया है तो फिर आप मरीज़ पर तेल क्यों नहीं मलते?
पास्चर संजीत इस बात पर सोच में पड़ गए।
💞💗💞
फिर मैंने ने उन्हें Holy Anointing Oil के बारे में बताया, जिसे बनाने और मलने का आर्डर रब ने मूसा अलैहिस्सलाम को दिया था।

*Holy Anointing Oil*

Masah Ka Tel
rab ne mūsā se kahā, “masah ke tel ke lie umdā qism ke masāle istemāl karnā. 6 kilogrām āb-e-mur, 3 kilogrām ḳhushbūdār dārchīnī, 3 kilogrām ḳhushbūdār bed aur 6 kilogrām tejpāt. yih chīzeṅ maqdis ke bāṭoṅ ke hisāb se tol kar chār liṭar zaitūn ke tel meṅ ḍālnā. sab kuchh milā kar ḳhushbūdār tel tayyār karnā. wuh muqaddas hai aur sirf us waqt istemāl kiyā jāe jab koī chīz yā shaḳhs mere lie maḳhsūs-o-muqaddas kiyā jāe.
Exodus 30:22-25 (Roman Urdu Bible)
📚
Jo log Wellness Ka kaam karte Hain,
Unhe is Tel ke banane aur isse Bimaro ko fayda pahunchane par dhyan dena Chahiye
Kyonki yh koi mamuli Tel nhi hai.
🌿
Is Tel ko Nabiyon par mala Gaya hai.
🌟
Mere Apne ilm ke mutabiq India me apne Christians doston aur Muslim Dayion me maine Kisi ko is Tel ke baare me likhte ya Bolte hue nhi Dekha hai.
🕋🍒🕋
आजकल लोग कई तरह की बीमारियों से दुखी हैं। बहुत लोग बीमारी का दर्द झेल नहीं पाते और आत्महत्या कर लेते हैं।
आपमें से जो भी रब के नाम और कलाम की शक्ति को जानता है, वह बीमारों को उनकी बीमारी से मुक्ति दिला सकता है।
ज़रूरी यह कि 
1. जुर्म से तौबा सच्ची हो।
2. दुआ विश्वास के साथ हो।
3. तेल का नुस्ख़ा सही हो और उसमें सभी मसाले असली हों।
🌹🍇🌹
पास्चर संजीत ने बाईबिल खोलकर सभी हवाले चेक किए और वह हैरान रह गए कि बाईबिल में रब ने एक पवित्र तेल का नुस्ख़ा दे रखा है और इंडिया में पादरी साहिब और मसीही बहन भाई उसे भूले हुए हैं।
उन्हें इस बात ने भी हैरत में डाल दिया कि जो बात पादरी नहीं जानते, उसे एक मुस्लिम उन्हें बता रहा है।
🌹🍇🌹
Main Rab Ka shukrguzar Hun ki
Usne mujh par badi  rahmat ki.
Usne mujhe is Tel Ka nuskha Diya
Aur phir ab woh
Mere zariye ab aapko bhi de Raha hai.
🌹🍇🌹
Zyada jankari ke liye Email Karen:
allahpathy@gmail.com

🌹🍇🌹
aur is link par dekhen:

Friday, October 26, 2018

ग़लतफ़हमियाँ मिटाएं हिकमत से

दीन की कल्याणकारी दावत के शुरू में नए दाई सवाल पूछने वाले को फ़ौरन सही जानकारी देने लगते हैं। यह एक सही और नेक काम है। मैं भी ऐसी नेकियाँ करता था। वक़्त गुज़रा तो मुझे मालूम हुआ कि पवित्र क़ुरआन पर ऐतराज़ करने वालों ने कभी एक बार भी क़ुरआन और सीरते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नहीं पढ़ा है। इसके बाद मैं लोगों से पवित्र क़ुरआन और सीरते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पढ़ने के लिए कहने लगा। जो लोग सचमुच जवाब चाहते हैं, वे इन्हें पढ़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। मैं अपने दोस्तों से कहकर उन्हें पवित्र क़ुरआन की मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहिब की तफ़्सीर और सीरत की बुक्स कोरियर से भिजवा देता हूँ। वे उन्हें पढ़कर सवाल करते हैं तो मैं ऐसे लोगों के सवालों के जवाब देता हूँ और वे भी जवाब को क़ुबूल करते हैं, अल्हम्दुलिल्लाह!!!
Islam About Conceptions
मुझे कुछ लोग ऐसे भी मिले, जो कुछ सीखने के लिए नहीं  बल्कि मनोरंजन के लिए सवाल करते हैं। कुछ ऐसे लोग भी सवाल पूछते हैं, जिन्हें ग़लतफ़हमियाँ (Misconceptions) फैलानी हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करना है। ऐसे लोगों को मैंने जब भी सही  जानकारी दी तो उन्होंने उसे नहीं माना। वे डिबेट करने लगे और इस्लाम के बारे और ज़्यादा ग़लत बोलने लगे। मैंने जब उन्हीं बातों को उनके धर्मग्रंथों में दिखाया तो वे चुप हो गए।
ख़न्नास की पहचान क्या है?
कुछ वक़्त बाद, वे फिर सवाल के रूप में उसी वसवसे को लेकर आ गए। ख़न्नास यही काम करता है। ख़न्नास बुरी बात को बार बार दिल में डालता रहता है। इसी निशानी से आप ख़न्नास (elusive prompter who returns again and again) को पहचान सकते हैं। इंसानों में भी ख़न्नास होते हैं। इन्हें आपकी बात नहीं माननी है। 
मैं अब ऐसे लोगों को अलग अलग सही जानकारी देने में वक़्त नहीं लगाता क्योंकि इंटरनेट पर ऐसे लाखों लोग हैं। हरेक को अलग अलग कमेंट करके जवाब दिया जाए तो पूरी उम्र खप जाएगी और फिर भी सिर्फ़ चंद लोगों को ही जवाब दिया जा सकेगा।
मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इन लोगों को ख़ुद जवाब देने के बजाय ऐसे पेज, ग्रुप और वेबसाईट का लिंक दे दिया जाए, जहाँ ग़लतफ़हमियों को दूर किया जा रहा है।
अल्लाह का शुक्र है कि आज इंटरनेट पर कई आलिमों और दाईयों के ग्रुप दीन की जानकारी दे रहे हैं और वसवसों को दूर करके ग़लतफ़हमियों को मिटा रहे हैं।
एक आर्यसमाजी हिन्दुत्ववादी विचारक पिछले 7 साल से हमारे संपर्क में हैं। आज उन्होंने पहले मुझे मैसेंजर में आर्य समाजी प्रचारक महेन्द्र पाल आर्य की एक भड़काऊ पोस्ट भेजी और फिर मुझे उस पोस्ट का जवाब देने के लिए कहा।
अगर उन्हें सचमुच ग़लतफ़हमियाँ दूर करनी होतीं तो स्वामी अग्निवेश स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य, आचार्य प्रमोद कृष्णन व  रौशंनलाल आर्य जैसे सनातनी और आर्य समाजी विद्वान उन्हें क़ुरआन में मानवता के शत्रुओं से युद्ध संबंधी आदेशों के बारे में अपनी किताबों और वीडियोज़ में सप्रमाण समझा चुके हैं। महेन्द्र पाल आर्य ने उनकी सही बात को समझने के बजाय उन्हें नक़ली घोषित कर दिया और फिर वही झूठा आरोप फिर दोहरा दिया, जिसका जवाब वे विद्वान बार बार दे चुके हैं।
विजय कुमार सिंघल जी ने  आर्य समाजियों की आदत के मुताबिक़ मुझसे सवाल किया तो मैंने उन्हें Misconception About Islam ग्रुप में सवाल पूछने की सलाह दी। जिसे उन्होंने मान लिया और उन्होंने ग्रुप को सवाल भेज दिया है।
इन आर्यसमाजी हिन्दुत्ववादी विचारक से हुई बातचीत को आपकी शिक्षा के लिए पेश किया जा रहा है। इससे आप समय और ऊर्जा की बचत करना सीखेंगे। कोई आपसे सवाल करे तो आप तुरंत उसे जवाब न देने लगें। आप उसे ऐसे आलिमों और दाईयों के ग्रुप में सवाल पूछने के लिए कहें, जो इसी काम के लिए प्रशिक्षित और समर्पित हैं। अगर वह निष्पक्ष होकर दलीलों पर विचार करेगा तो उसकी ग़लतफ़हमी दूर भी हो सकती है। देश को दुनिया में आगे बढ़ाने के लिए धर्म को लेकर ग़लतफ़हमियों को दूर करना बहुत ज़रूरी है।इस तरह कम लोग बहुत ज़्यादा लोगों की ग़लतफ़हमियाँ दूर कर सकते हैं।
देखिए उनकी भेजी हुई पोस्ट और उसके नीचे उनके साथ हुई बातचीत के स्क्रीन शाट:
||आज दूसरा भाग पढ़ें आर्य लोगो ||
|| कुरान में कत्ल का आदेश स्पष्ट है देखें कुरान ||
जो अग्निवेश सरीखे, स्वामी लक्ष्मीशंकरानंद, एक नकली शंकराचार्य, एक आचार्य प्रोमोद कृष्णन, व एक नकली आर्य कहलाने वाले रौशंनलाल आर्य | यह सभी लोग प्रचारक है कुरान के, और समर्थक हैं इस्लाम के और खुल कर प्रचार करते हैं इन इस्लाम वालों का, और कुरान की तारीफ करते नहीं थकते | और कहते हैं कुरान में किसी को मारने की बाते नहीं है | विशेष कर मेरा यह लेख उन्ही सेकुलरवादी विचार वालों के लिए हैं | जो लोग यह नहीं जानते की कुरान में अल्लाह का हुक्म क्या है, इसे हमें कुरान में ही देखना चाहिए |
وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ وَأَخْرِجُوهُم مِّنْ حَيْثُ أَخْرَجُوكُمْ ۚ وَالْفِتْنَةُ أَشَدُّ مِنَ الْقَتْلِ ۚ وَلَا تُقَاتِلُوهُمْ عِندَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ حَتَّىٰ يُقَاتِلُوكُمْ فِيهِ ۖ فَإِن قَاتَلُوكُمْ فَاقْتُلُوهُمْ ۗ كَذَٰلِكَ جَزَاءُ الْكَافِرِينَ [٢:١٩١]
और तुम उन (मुशरिकों) को जहाँ पाओ मार ही डालो और उन लोगों ने जहाँ (मक्का) से तुम्हें शहर बदर किया है तुम भी उन्हें निकाल बाहर करो, और फितना परदाज़ी (शिर्क) खूँरेज़ी से भी बढ़ के है और जब तक वह लोग (कुफ्फ़ार) मस्ज़िद हराम (काबा) के पास तुम से न लडे तुम भी उन से उस जगह न लड़ों पस अगर वह तुम से लड़े तो बेखटके तुम भी उन को क़त्ल करो काफ़िरों की यही सज़ा है | सूरा बकर 2 /191
समीक्षा :- {आयात उतरने का सन्दर्भ} यह आयत उस समय उतरी जब मुसलमान उन मूर्ति पूजकों से, अथवा मूर्तिपूजक मुसलमानों से लड़ रहे थे | मुशरिक लोग संघबद्ध तरीके से लड़ रहे थे, उसी समय अल्लाह ने यह आयात उतारी और मुसलमानों को जोश दिलाया की और जम कर मुशरिकों को कतल करने का हुक्म दिया | और जिहाद के लिए उपदेश देते हुए कहा अल्लाह त्यला तजादिज =   { हदसे बढ़ जाना } वालों को पसंद नहीं करता |
यहाँ तक मुसलमानों को कहा कि अल्लाह तयला की नफरमानी न करो, उनके नाक, कान वगैरा न काटो | औरतों को और बच्चों को कतल न करो, बूढ़े को और कमजोरों को कत्ल न करो | जो लड़ने के काबिल नहीं है उनसे न लड़ो, और जो लड़ने के काबिल हैं और लड़ाई में दखल देते हैं उनसे लड़ो, और हैवानों {पशुयों } को भी ख़तम न करो |
हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़, हजरत मुकतिल बिन ह्यांन वगैरा से रवायत इस आयात के बनिस्बत है की,मुस्लिम शरीफ में उल्लेख है की हुजुर सल्लालाल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुजाहेदीन {जिहादीओं } के लिए फरमान दिया करते थे, की अल्लाह की राह में जिहाद करो |  बदअहदी {यानि जो वादा } करो उसे पूरा करो | बुखारी व मुस्लिम में उल्लेख है की एक औरत को कत्ल कर दिया गया था, जब यह आयात उतरी और ऐसा करने से मना किया अल्लाह ने |
जिहाद के अहकाम {शर्त} हैं, जिसमें बजाहिर कत्ल व खून होता है, इस लिए यह भी फरमा दिया गया की एक तरफ कत्ल व खून है, तो दूसरी तरफ, अल्लाह के साथ कुफ्र व शिर्क है, और उसकी मालिक की राह से उसकी मखलूक को रोकता हैं | और यह फितना कत्ल से ज्यादा सख्त है | अबुल मालिक फरमाते हैं, तुम्हारी यह खताकारियां,और बदकरियां, कत्ल से ज्यादा नुक्सान दह है |
नोट :- जो सेकुलर वादी यह कहते हैं की कुरान में, जिहाद को जद्दोजिहद,या जुस्तजू करना {बार बार } प्रयास करने के अर्थों में लिया गया यह कहते और मानते हैं वह मिथ्या है और निरर्थक भी | यह अल्लाह ने स्पष्ट आदेश दिया है मुसलमानों को काफिरों से, मूर्ति पूजकों से लड़ो, उन्हें कतल करो | फिर यह भी तो बताया गया की कमजोरों को न मारो, बूढ़े लोगों को न मारो, औरतों न मारो और बच्चों को भी न मारो | क्या यह उपदेश किसी प्रयास के लिए है ? अथवा किसी और काम के लिए उपदेश दिया गया ? जहाँ स्पष्ट बताया जा रहा है इन्हें मारो | और इन्हें न मारो, इनको कतल करो, और इन्हें कत्ल न करो | इसके बाद भी अगर कोई यह कहे की कुरान में मारो काटो लूटो की बातें नहीं है, यह बात गले के नीचे उतरने वाली नहीं है | वह लोग कुरान को जानते तक नहीं हैं और नाहक कुरान पर अपना विचार देते रहते हैं।
जनता को अन्धकार में रखने वाली बात है यह, दूसरी बात है एह तो अभी जिहाद का पहला हुक्म है उसे मैंने लिखा और बताया जो इस्लाम जगत में जिन्हें विद्वान् माने जाते हैं मुफ़स्सिरे कुरान।
{ कुरान के भाष्य कार माने जाते हैं } उन्ही की लिखी किताब में यह बातें लिखी है जिसका प्रमाण यहाँ दिया गया है | जिसे तफसीर कहा जाता है, {इब्ने कसीर} और {कन्जुल ईमान } यह दोनों किताब हैं देवबंदी, और बरेलवी वालों की।
अर्थात देवबंदी वाले मानते हैं इब्नेकसीर को, और बरेलवी वाले मानते हैं, कन्जुलईमान को। मैंने दोनों को इस लिए लिया कि कोई यह न कह सके की हमारी मान्यता यह नहीं है।
आप दुनिया वालों को चाहिए की कुरान को समझदारी से पढ़ें, और और मानव होने के नाते परमात्मा ने जो दिमाग दिया है उसी दिमाग को कार्यान्वित करें= वेद में ईसाई मुसलमानों को मारो कहीं नहीं।
धन्यवाद के साथ महेन्द्रपाल आर्य =राष्ट्रीय प्रवक्ता राजार्य सभा = 26 /10/18





Misconceptions About Islam का लिंक यह है:

Gratitude & Happiness: शैतान पर फ़तह का कान्सेप्ट Dr. Anwer Jamal

सवाल: अस्सलामुअलयकुम ❤🌹♥
अगर आपको कामयाब होना है तो सबसे पहले अपने सबसे बड़े दुश्मन शैतान को समझना होगा ।। उसे पहचानना होगा ।
शैतान की सबसे बड़ी चाल ये है कि वह हमारे माइंड से खेलता है ।। हमारा ध्यान भटका कर ।
डॉक्टर साहब मैं इस विषय में आपसे और यहां के सभी भाईयों से रिक्वेस्ट करता हूं कि मुझे इस विषय में ज्ञान, इल्म दें कि हम शैतान को कैसे पटक पटक कर उसकी धुलाई कर सकते हैं ?
जज़ाकल्लाहु ख़ैर♥🌹❤
उसकी धुलाई का एक तरीक़ा बहुत अच्छा है । सदक़ा दीजिए और और शैतान की कमर तोड़िए। मैंने ऐसा कई बार सुना है कि सदक़ा शैतान की कमर तोड़ देता है । वल्लाहु आलम । ये बात कितनी सही है ये तो आप आलिम लोग मुझे बताएं?
जज़ाकअल्लाहु ख़ैर❤🌹♥
-सरफ़राज़ मोटालिया, गुजरात

जवाब: सरफ़राज़ भाई! आप रब का शुक्र करें और ख़ुश रहें, आप शैतान पर ग़ालिब रहेंगे इन् शा अल्लाह!
शुक्र का मतलब
शुक्र का मतलब है क़द्र करना। जब आप रब के दिए नाम, नियम, वुजूद, गुण, कौशल (Skills), मौकों और साधनों का नबियों के तरीक़े पर अपनी और दूसरों की फ़लाह (कल्याण) की नीयत से इस्तेमाल करते हैं तो आप उनकी क़द्र करते हैं। तब आप रब का शुक्र करते हैं।
शुक्र का असर
जो रब का शुक्र करता है, अल्लाह उसकी नेमतों में इज़ाफ़ा करता है और जो नाशुक्री करता है, उसकी नेमतें उससे छिन जाती हैं और वह कष्ट उठाता है।
(देखें पवित्र क़ुरआन 14:7)
आपने मुझे कुछ दिन पहले जो मैसेज भेजा था उससे पता चलता है कि आप इस काम में पहले से ही लगे हुए हैं, अल्हम्दुलिल्लाह!

नई ज़िन्दगी (Transformation)
आपका मैसेज यह था:
'डॉक्टर साहब अलहम्दुलिल्लाह । अल्लाह ने मुझे आपसे वह दिया जिसकी मुझे ज़रूरत थी ।। जिसकी मैं तलाश में था ।
सिर्फ़ मेरा दिल ही जानता है कघ मेरे दिल मे आपका क्या मक़ाम है ।। मैं रो पड़ता हु शुक्रगुज़ारी में अल्लाह के सामने क्योंकि अल्लाह ने आप जैसे मुसलमान से मिलवाया ।। ♥🌹❤
मैं अपने शब्दों में बयान नहीं कर सकता । आप मेरे दिल की कैफ़ियत बख़ूबी जान सकते हैं 🌹♥❤
अल्लाह ने आप जैसे कई अल्लाह के नेक बंदों से  मिलावाया है ।। जिसका बदला मेरे पास आपके लिए दुआओं के अलावा मेरे पास कुछ भी नही 🌹♥❤
जज़ाकल्लाहु ख़ैरन 🌹♥❤
हम पांच भाई है ।। जिनमे से हम दो भाई आपके ग्रुप में है । जिनका नाम ज़हीर मोटालिया है । 
हम भाइयो में पहले से ज़्यादा मोहब्बत बन चुकी है ।। क्योंकि आप का दिया हुआ ज्ञान हम घर में शेयर करते है ।। हम अल्हम्दुलिल्लाह, अब अंदर से बेहतर से बेहतर मुसलमान बन रहे हैं ।।
में 10 साल से दाई का काम कर रहा हूं ।। मैं बस लोगों से डिबेट, सवाल जवाब में ही लगा रहता था ।। इस्लाम की अच्छी बातें भी बताता था । आज तक रिज़ल्ट ना मिला ।।
लेकिन जब से आपकी दावाह सायकोलॉजी में जुड़ा हूं और आपसे ज्ञान प्राप्त कर रहा हूं,
अब ये हाल है कि लोग मेरी बात सुनने के लिए भीड़ लगा देते हैं ।। मैं एकाउंट और टैक्सेशन की कंसल्टिंग करता हूं । मेरा कई पार्टियों में काम होता है ।। अब, उनसे पहले के बजाए आज बहुत बेहतर रिलेशन है । अल्हम्दुलिल्लाह ।। बल्कि अब तो वे मेरी इस्लाम की बात ऐसे सुनते हैं जैसे उनका भाई उन्हें कुछ बता रहा हो ।। अल्हम्दुलिल्लाह' 🌹♥❤
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शैतान के मिज़ाज को छोड़ दें
शैतान इब्लीस इंसान का सबसे पुराना और सबसे ज़्यादा खुला हुआ दुश्मन है। वह आदम से हसद (जलन) रखता था। ख़ुद को आदम से बड़ा मानता था। अल्लाह ने आदम को 'इल्म अस्मा कुल्लहा' दिया। सब फ़रिश्तों ने अल्लाह के हुक्म से आदम अलैहिस्सलाम को सज्दा किया। जो फ़रिश्ते जिन चीज़ों और जिन कामों पर लगे हुए हैं, वे उन चीज़ों से और वे अपने कामों से आदम अलैहिस्सलाम की नस्ल को सपोर्ट करते हैं। इस यूनिवर्स में आप हर तरफ़ यह लाईफ़ सपोर्ट सिस्टम देख सकते हैं।
Studies have shown that just looking at a natural green environment can boost one’s spirits.
There’s a whole branch of psychology called eco-psychology devoted to the mental benefits of nature. 
अल्लाह का शुक्र है कि उसने हमारे लिए ज़मीन और आसमानों की तमाम चीजों को मुसख़्ख़र (वशीभूत) कर रखा है। जब हम अल्लाह के शुक्रगुजार बनते हैं तो हमारे और शैतान के मिज़ाज में फ़र्क़ पैदा हो जाता क्योंकि शैतान अपने रब का नाशुक्रा है।
शैतान ने रब तआला से कहा था कि आप ज़्यादातर आदमियों को शुक्रगुज़ार न पाएंगे। यही उसका मिशन है। उसकी सारी भागदौड़ इसी मिशन के लिए है कि वह आदमियों को नाशुक्रा बनाए।

शैतान का गुमान सच कैसे हुआ?
(शैतान) बोला, "अच्छा, इस कारण कि तूने मुझे गुमराही में डाला है, मैं भी तेरे सीधे मार्ग पर उनके लिए घात में ज़रूर बैठूँगा। फिर उनके आगे और उनके पीछे और उनके दाएँ और उनके बाएँ से उनके पास आऊँगा। और तू उनमें ज़्यादातर को शुक्रगुज़ार न पाएगा।
-पवित्र क़ुरआन 7:16-17
शैतान ने जो गुमान किया था, वह उस पर डटा रहा और वह उसी की ज़रूरत के मुताबिक़ अमल करता रहा। जिसका नतीजा यह हुआ कि उसका 'गुमान' (Assumption) सच हो गया। शैतान कुदरत के उन कानूनों को जानता है, जिनके मुताबिक़ काम करने से दिल का गुमान ज़मीन पर सच हो जाता है।
अल्लाह कहता है:
और शैतान ने अपने गुमान को (जो उनके बारे में किया था) सच कर दिखाया तो उन लोगों ने उसकी पैरवी की मगर ईमानवालों का एक गिरोह (न भटका)।
-पवित्र क़ुरआन 34:20
अकसर लोग शुक्र अदा नहीं करते
आप पवित्र क़ुर्आन में शब्द *”अकसर लोग”*  (बहुत ज़्यादा लोग) तलाश करेंगे तो आप पाएंगे कि
* “अकसर लोग शुक्र अदा नहीं करते” –पवित्र क़ुरआन 2:243
* “अकसर लोग ईमान नहीं लाए” – पवित्र क़ुरआन 11:17
* “अकसर लोग शदीद नाफरमान हैं” –पवित्र क़ुरआन 5:59
* “अकसर लोग राहे हक से हट जाने वाले हैं” –पवित्र क़ुरआन 21:24
ऐसा इसलिए है क्योंकि
* “अकसर लोग जाहिल हैं” – पवित्र क़ुरआन 6:111
* “अकसर लोग नहीं जानते” – पवित्र क़ुरआन  7:187
आप पवित्र क़ुर्आन में शब्द *”क़लील”* (थोड़े लोग) तलाश करेंगे तो आप पाएंगे कि अल्लाह ने फ़रमाया है:
* “मेरे थोड़े ही बन्दे शुक्रगुज़ार हैं” – पवित्र क़ुरआन 34:13
* “और कोई ईमान नहीं लाया सिवाय चन्द के” –पवित्र क़ुरआन 11:40
* “नेमत भरी जन्नतों में होंगे; अगलों में से तो बहुत-से होंगे, और पिछलों में से कम ही” – पवित्र क़ुरआन 56:12-14
रब ने जिन्नों और इंसानों को 'अपनी इबादत' (हुक्म मानने) के लिए पैदा किया है। (पवित्र क़ुरआन 51:56)
रब के हुक्म बहुत से हैं। आप सबसे बुनियादी हुक्म को सबसे पहले मानने‌ से इबादत की शुरुआत करें। रब आपको हुक्म देता है:
इसलिए तुम मुझे याद रखो मैं भी तुम्हें याद रखूंगा, मेरा शुक्र करो और नाशुक्री न करो।
पवित्र क़ुरआन 2:152

आप अपने रब की इबादत करेंगे तो रब आपकी मदद करेगा। रब आपकी मदद करेगा तो आप शैतान से बचेंगे बल्कि आप शैतान पर भारी पड़ेंगे।

शैतान को पहचानने का तरीक़ा
इब्लीस के अलावा भी बहुत से जिन्न‌ और इंसान शैतान हैं। इसलिए आप शैतान को उसके सींग और दुम से नहीं पहचान सकते। आप शैतान को उसके पैटर्न से पहचान सकते हैं।
जो भी शैतान के तरीक़े (Pattern) पर चलता है, वह शैतान है। जो भी घमण्ड और जलन में लोगों में फ़साद फैलाता है और जब उसे रब की तरफ़ से आया अम्न और इंसाफ़ का, मेल-मिलाप का हुक्म बताओ तो वह बग़ावत और सरकशी करे तो वह शैतान होता है, चाहे वह कोई आदमी ही हो। किसी क़ौम और राष्ट्र का प्रमुख भी शैतान हो सकता है। आप पवित्र क़ुरआन 2:14 में ऐसे ही प्रमुखों का ज़िक्र देखेंगे। रब ने इन्हें शैतान कहा है। जो इनके पिछलग्गू (Followers) हैं, वे भी शैतान हैं।
इनमें से कुछ ख़न्नास हैं। जो एक ही झूठी फ़साद फैलाने वाली बात को बार बार दोहराते रहते हैं। आपको फ़ेसबुक पर ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जो फ़ेंक आईडी से क़ुरआन के बारे में वही सवाल बार बार कापी पेस्ट करते रहते हैं, जिनके जवाब सौ साल से लगातार दिए जा रहे हैं। ये सब ख़न्नास हैं। शैतानों में और भी वैरायटी है। पवित्र क़ुरआन और मुबारक हदीसों में इनकी पूरी तफ़्सील आई है।
ख़ुशी और शुक्र: शैतान पर ग़ालिब आने का तरीक़ा
शैतान का मक़सद आदम की औलाद को आख़िरत में जहन्नम में ले जाना ही नहीं हैं बल्कि उन्हें दुनिया में भी दुखी और मायूस रखना है। इब्लीस नाम के अर्थ ही दुखी और मायूस हैं। इस्लाम की तब्लीग़ करने वालों में भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो हालात देखकर मायूस हैं और दूसरों में भी मायूसी फैलाते रहते हैं। मायूसी की वजह से इंसान में हालात बदलने की ताक़त खतमख़ हो जाती है।
जब आप बार बार ख़ुश होते हैं तो शैतान ईमान वालों को ख़ुश देखकर और ज़्यादा दुखी और मायूस होता है। आप ख़ुश रहना अपनी आदत बना लें और आप दूसरों को भी ख़ुश रहना सिखाएं।
आप ग़ुस्ल और वुज़ू करें, अच्छे कपड़े पहनें, सिर में तेल और लिबास पर इत्र लगाएं। ग़र्ज़ यह कि अपना हाल अच्छा बनाकर रखें। देखने वाले आपको ग़नी और ख़ुशहाल समझेंगे। फिर आप अपनी सच्ची दौलत पर ख़ुशी ज़ाहिर करें। आप रब से राज़ी हो जाएं, आपका रब आपसे राज़ी हो जाएगा।
आप बार बार कहें: मैं अल्लाह के रब और मुहम्मद के रसूल और इस्लाम के दीन होने पर ख़ुश हूं।
यह एक मस्नून दुआ का तर्जुमा है। वह दुआ यह है: रज़ीतु बिल्लाहि रब्बंव-वबि-मुहम्मदर्-रसूलंव-वबिल-इस्लामि दीना।
-हिस्ने हसीन
एक मोमिन को ये नेमतें हमेशा हासिल रहती हैं और वह इन पर जितना ज़्यादा ख़ुश होता है, उसे ख़ुश देखकर शैतान उतना ही ज़्यादा दुखी होता है। वह ख़ुद को आप पर नाकाम महसूस करता है।

दुनिया में ज़्यादा दौलत अट्रैक्ट करने का तरीक़ा
एक ख़ास बात यह है कि दुनिया की दौलत, सच्ची दौलत के ताबेअ (अधीन) है। जब आप अपने रब से ख़ुश रहते हैं, अपना हाल अच्छा बनाते हैं और रब के लिए दूसरों पर ख़र्च करते हैं तो आपकी तरफ़ दुनिया की दौलत भी और ज़्यादा बढ़कर आने लगती है।
जब आप सदक़ा (ज़रूरतमन्दों को दान) देते हैं, तब आप शैतान की कमर तोड़ते हैं क्योंकि शैतान आपको कंजूसी पर उभारता है।
शैतान तुम्हें तंगदस्ती से डराता है...
-पवित्र क़ुरआन 2:268
अंग्रेज़ी में दो शब्द Miser और Misery बिल्कुल क़रीब हैं। इनसे भी आप कंजूसी और दुर्दशा का आपसी ताल्लुक़ समझ सकते हैं। शैतान आपको कंजूसी की प्रेरणा देकर आपका हाल ख़राब देखना चाहता है।
1. Miser: a person who loves to have a lot of money but hates to spend it
कंजूस, कृपण
2. Misery: great unhappiness or suffering
घोर निराशा या व्‍यथा, तकलीफ़, परेशानी, दुर्दशा

सदक़ा दें, फ़लाह पाएं
आप शैतान के वसवसों (कुविचारों) से बचकर रब के नाम पर लोगों की ज़रूरत में अपना माल ख़र्च करते हैं। इस तरह आप शैतान के मानसिक हमले (Psychic Attack) से बच जाते हैं और आप फ़लाह और कल्याण पा जाते हैं।
और जो अपने मन के लोभ और कंजूसी से बचा लिया जाए ऐसे लोग ही सफल हैं।
-पवित्र क़ुरआन 59:9
जब शैतान आपको फ़लाह पाते हुए देखता है तो वह आपके सामने ख़ुद को बेबस पाता है। यही उसकी कमर तोड़ना है।
यहाँ से आपको अमल शुरू करना है। फिर अपने इल्म और अमल को अपनी ताक़त के मुताबिक़ हिक्मत के साथ बढ़ाना है। ख़ुशी के साथ फ़राएज़ और वाजिबात की अदायगी ज़्यादा से ज़्यादा करनी है। सब्र करना है यानि अपने अमल पर डटे रहना है। कुछ वक़्त के बाद यह नया अमल आपकी नई आदत बन जाएगी।

रूकावट Resistance
आपको यह सब बहुत आसान लगेगा। आप कुछ दिन इस पर चलेंगे लेकिन फिर पुरानी निगेटिव आदतें ज़ोर मारेंगी और आप फिर पुराने पैटर्न पर चलने लगेंगे क्योंकि पुराना निगेटिव पैटर्न आपके दिल (यानि Subconscious mind) में जमा हुआ है। पुराना पैटर्न जल्दी से नहीं जाता। वह बार बार रूकावट बनेगा। उसकी वजह से आपके बाहर भी कोई काम बिगड़ सकता है। जब भी आप ख़ुद को बुलन्दी की तरफ़ ले जाएंगे, तब यह ज़रूर होगा। यह नेचुरल है। मेरे कुछ वेलनेस स्टूडेंट्स इस रूकावट (Resistance) की वजह से पुराने पैटर्न पर लौट चुके हैं। आप जागरूक (Aware) रहे तो आप इस हमले से बच सकते हैं।
ज़्यादातर लोगों में ग़ुस्से, डर और ग़म (Anger, Fear, Sadness) के जज़्बात ग़ालिब होते हैं। जब वे शुक्र करने और ख़ुश रहने का दीनी और कम्पलसरी अमल शुरू करते हैं तो ग़ुस्सा, डर और ग़म बार बार पलट कर आता है। आपका इन पर क़ाबू नहीं है। आप इन्हें अपने दिल में उभरने से नहीं रोक सकते लेकिन अपने रेस्पान्स पर आपका पूरा क़ाबू है।
आप उन निगेटिव जज़्बात के मुताबिक़ दिल, ज़ुबान और जिस्म से कोई अमल न करें। यह आप कर सकते हैं। आप यह ज़रूर करें।
आप फ़ौरन उस जज़्बे को अपने दिल से हटाकर शुक्र, ख़ुशी और मदद के जज़्बात ला सकते हैं। सो आप ऐसा ही करें।
जब भी आपको ग़ुस्सा दिलाने वाली, डर या ग़म की कोई बात पुरानी याद आए या ताज़ा पेश आए तो आप ख़बरदार हो जाएं। आप उसे जितना ज़्यादा सोचेंगे, आप उतनी ज़्यादा नाशुक्री करेंगे। उनके बजाय आप रब की उन नेमतों को और रब की उस मदद को याद करें, जो वह आपकी पहले कर चुका है और इस पल में भी कर रहा है। देखिए आपका सांस चल रहा है और आपका दिल धड़क रहा है। आपके अंदर ख़ून बन रहा है, जो गुर्दों से ख़ुद छन रहा है। आप इसके लिए हर वक़्त शुक्रगुजार हो सकते हैं। जिन लोगों से ये नेमतें छिन गई हैं, वे अब इनकी क़ीमत पहचानते हैं। रब के शुक्रगुज़ार बन्दे वे हैं, जो नेमतों को तब भी पहचानते हैं, जब वे उनके पास होती हैं।
और तुम अल्लाह की नेमतों की गिनती करना चाहो तो गिन नहीं सकते...
-पवित्र क़ुरआन 14:34

कल्पना: एक ज़बरदस्त शक्ति
आप अपनी कल्पना (Imagination) से काम लेंगे तो आपकी रूकावट (Resistance) बहुत कम हो जाएगी।
इसका तरीक़ा यह है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी में आपके लिए नमूना (Model) है। आप उनके वाक़यात को पढ़ें और हमेशा उन्हें अपने माइंड में रखें। कुछ लोगों की कल्पना (Imagination) इतनी ज़्यादा साफ़ होती है कि जब वे सीरते रसूल स. के वाक़यात लोगों के सामने बयान करते हैं तो सुनने वालों को ऐसा लगता है गोया कि वे ख़ुद उस सीन को देख रहे हों। शायरों और लेखकों में यह स्किल ज़्यादा डेवलप हो जाता है।
हमारे उस्ताद मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह एक बेहतरीन शायर और लेखक थे। उनकी लिखी हुई किताबें दुनिया के कई मुल्कों में पढ़ी जाती हैं। वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वाक़यात का इस तरह बयान करते थे कि सुनने वालों को यह लगता था कि मानो मौलाना, नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख रहे हों।
जब कोई आदमी कोई वाक़या पढ़ता है, तब वह अपने माइंड में, अपनी कल्पना (Imagination) में उसे धुंधला सा देखता भी रहता है। माइंड में तस्वीरें (Images) बनती रहती हैं। यह माइंड की नेचर है। यह माइंड की लैंग्वेज है। आप अपने माइंड में साफ़ तस्वीरें देखना शुरू कर सकते हैं। आप ख़ुद को अपने दिल में ज़कात देने और हज करने जैसे कामों को करते हुए देख सकते हैं, जो कि आप करना चाहते हैं और वे रब को पसंद हैं।
इससे आपको नक़द ख़ुशी मिलेगी। इससे आपकी नीयत और आपका मक़सद हमेशा आपके दिल में ताज़ा रहेगा। अपने दिल में अच्छे कामों की नीयत करना और अच्छे कामों के बारे सोचना भी इबादत में शामिल हैं। इससे बुरे वसवसे आने कम होते हैं और माइंड की यह नेचर है कि जब कोई किसी काम के बारे में लगातार सोचता रहता है तो माइंड उस काम के असबाब और मौकों को देखने लगता है। समझदार लोग इनसे हिकमत के साथ काम लेकर अपना मक़सद पूरा करते हैं।
हिकमत वालों के साथ बैठने से और उनकी किताबें पढ़ने से हिकमत मिलती है। हिकमत वालों को दोस्त बनाएं। शैतानों को दोस्त न बनाएं।
शैतान के असर से बचना है तो अपनी कल्पना को बेक़ाबू न होने दें। अपनी कल्पना में भी कोई गुनाह और जुर्म न करें। अपने दिल में भी सिर्फ़ अच्छे और जायज़ काम ही करें।
मन में भी बुरा काम न करें
अल्लाह के नबी ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है:

तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, कि व्यभिचार न करना। 
परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई किसी स्त्री पर बुरी नज़र डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।

मत्ती की इंजील 5:26-27
अल्लाह के बारे में बुरा गुमान न करें
क्योंकि यह मुनाफ़िक़ों और मुश्रिकों का तरीक़ा है और बुरे गुमान के कारण कष्ठ उठाना तय है।
'और कपटाचारी पुरुषों और कपटाचारी स्त्रियों और बहुदेववादी पुरुषों और बहुदेववादी स्त्रियों को, जो अल्लाह के बारे में बुरा गुमान रखते हैं, यातना दे। उन्हीं पर बुराई की गर्दिश है। उनपर अल्लाह का क्रोध हुआ और उसने उनपर लानत की, और उसने उनके लिए जहन्नम तैयार कर रखा है, और वह अत्यन्त बुरा ठिकाना है!'
पवित्र क़ुरआन 48:6

जिन लोगों का अपनी कल्पना और गुमान पर क़ाबू नहीं होता, उन पर शैतान का पूरा क़ाबू होता है। ऐसे ही लोग डिप्रेशन, तनाव और दूसरे मनोरोगों के शिकार बनते हैं। आज ऐसे रोगियों की भरमार है। शैतान उनके दिलों में जो भी बात डालता है, वे उसी को सोचने लगते हैं।
आप यह नहीं जानते हैं कि आपकी शक्ति से ही शैतान आपको नुक़सान पहुंचाता है। ख़ुद उसमें आपको नुक़सान पहुंचाने की कोई शक्ति नहीं है। अपनी ताक़त से अन्जान और लापरवाह रहना भी उसकी नाक़द्री करना है। अपनी ताक़त से फ़लाह पाने के बजाय बीमार या बर्बाद हो जाना भी नाशुक्री है।
समस्या के बजाय उसके हल पर विचार करें
आप अपनी कल्पना शक्ति का क्रिएटिव यूज़ करके ख़ुद अपनी चिंताओं और मनोरोगों का आसानी से इलाज कर सकते हैं। ऐसा करना शुक्र है। आप समस्या को सोच सोच कर परेशानी बढ़ाने के बजाए उसके हल पर सोचें और उसके हल के लिए ज़रूरी क़दम उठाएं। जो लोग उस समस्या को हल कर चुके हैं या उसका हल देने का स्किल रखते हैं, उनसे भी विचार मांग लें। आजकल लाइफ़ कोच, वेलनेस कोच और हैप्पीनेस कोच हर समस्या का हल देने के लिए आनलाईन मौजूद हैं। उनके टैलेंट से फ़ायदा उठाऊं।

Science Behind Gratitude
So, why do these gratitude experiences boost happiness and alleviate depression? Scientists say that these techniques shift our thinking from negative outcomes to positive ones, elicit a surge of feel good hormones like dopamine, serotonin and oxytocin, and build enduring personal connections.
शुक्र भरपूर करें कष्ट दूर
हक़ीक़त यह है कि शुक्र आपसे कष्ट और अज़ाब को दूर करता है।
अल्लाह को तुम्हें यातना देकर क्या करना है, यदि तुम कृतज्ञता दिखलाओ और ईमान लाओ? अल्लाह गुणग्राहक, सब कुछ जाननेवाला है.
-पवित्र क़ुरआन 4:147
हम सब मिलकर इस प्लैनेट के लोगों को शुक्र के फ़ायदों के बारे में जागरूक करें। इससे सबका कल्याण होगा और शैतान नाकाम होगा, इन् शा अल्लाह!

Wednesday, October 24, 2018

Sun Worship in Vedas वेदों में सूरज की हम्द और इबादत

यह मेरे और मेरे दोस्तों के बीच व्हाट्स एप्प ग्रुप पर हुई एक चर्चा है। जिसे एडिट करके सबकी भलाई की नीयत से ब्लाग पर पेश किया जा रहा है:
*वेदों में शिर्क*
वेदों में तौहीद साबित करने वाले मुबल्लिग़ 'स एष एक एकवृदेक एव' अथर्ववेद 13:4:20 
का हवाला बड़ी रवानी से देते हैं और इस मंत्र में ईश्वर अल्लाह के 'एक' होने की बात मानते हैं।
💚🌹💚
जब यह मंत्र सियाक़ व सबाक़ से, पूर्वापर से मिलाकर पढ़ते हैं, तब पता चलता है कि
'स एष एक एकवृदेक एव' से तात्पर्य सूर्य का वृत है, न कि ईश्वर अल्लाह (The Creator)!
मंत्र में कहा गया है कि सूर्य का गोला एक है। अथर्ववेद 13:4:12-13 में मंत्र कर्ता ऋषि ब्रह्मा ने सूर्य को सब देवताओं से बड़ा बताते हुए बिल्कुल साफ़ कहा कि
'यह सब उसे ही प्राप्त होता है, यह एक वृत केवल एक है। सब देवता इन एक को ही वरण करते हैं।'
अथर्ववेद के 13वें कांड के चौथे अनुवाक को शुरू से पढ़ें।
आपको पता चलेगा कि पहले मंत्र से 45वे मंत्र तक सूर्य के गुण गाए जा रहे हैं।
आप सच जानना चाहते हैं तो बीच में से एक मंत्र पढ़ने के बजाय 45 मंत्रों को एक साथ पढ़ें।
अनुवाद: पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, हरिद्वार

हमारे इस लेख पर दाई भाई हाफ़िज़ शानुद्-दीन, पटना ने यह सवाल किया:
'परंतु श्रीमान ! स्वामी दयानंद सरस्वती के भाषयानुसार तो ये मंत्र ब्रह्म के लिए है। पंडित राम शर्मा आचार्य जी की अपनी विचार धारा है तो ये उनकी अपनी बात उनके अपने विचारधारा के अनुकूल है। सायण भाष्य भी इस मंत्र को ब्रह्म से जोड़ता है। जहाँ तक वेद की बात है तो इसमें तो अधिकतर मंत्र अलंकारिक (तमसीली) हैं। फिर ये निर्णय कैसे लिया जा सकता है कि अथर्ववेद 13:04:20 ईश्वर/अल्लाह के लिए नहीं *सूर्य के वृत के लिए है?*
बहस को जारी रखने के लिए मेरा ये comment है।'

जवाब: Hafiz Sahib! 1. यह बात आपको कैसे पता चली कि 'जहाँ तक वेद की बात है तो इसमें तो अधिकतर मंत्र अलंकारिक (तमसीली) हैं?'
2. सायण इसे ब्रह्म से जुड़ा मानता है। आपने इसका कोई हवाला नहीं दिया है।
*ज्ञान:*
यह मंत्र ब्रह्म से संबंधित है तो भी यह मख़्लूक़ (creations) से संबंधित है। ब्रह्म, बढ़ने वाली चीज़ों को कहते हैं।सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है। और उसी को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है।
वैदिक धर्म में सूर्य की उपासना (इबादत) की अहमियत जानने के लिए आप नीचे दिए लिंक पर यह लेख पढ़ सकते हैं:
देखिए पंडित. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं कि वैदिक धर्म में अन्न और यज्ञ आदि कई चीज़ों (creations) को ब्रह्म कहते हैं।
3. स्वामी दयानन्द जी की हैसियत हिन्दुओं में वैसी ही है, जैसी मुस्लिमों में बाग़ी खारिजियों और अहले क़ुरआन की है।
जिन कारणों से आप ख़्वारिज और अहले क़ुरआन के तर्जुमे और तफ़्हीम को नहीं मानते,
वैसे ही कारणों से हिन्दू वेद ज्ञानी शंकराचार्य स्वामी दयानन्द के वेदार्थ को नहीं मानते।
आप भी क़ुरआन को नबियों की सुन्नत और सहाबा र. की तारीख़ से जोड़कर समझने पर ज़ोर देते हैं और हिन्दू वेदज्ञानी शंकराचार्य भी वेद को परम्परा और ऋषियों के इतिहास से जोड़कर समझने पर बल देते हैं।
क्या यह सही तरीक़ा है कि
आप ख़ुद तो क़ुरआन का अर्थ सुन्नत और तारीख़े सहाबा से जोड़कर समझें और 
जब वेद का अर्थ लेना हो तो उस आदमी का अर्थ लें जो वेद का अर्थ परम्परा और ऋषियों के इतिहास से काटकर मनमर्ज़ी तरीक़े से लेता है। जबकि उस आदमी को ऋषि परम्परा और ऋषियों के इतिहास का ठीक से पता भी नहीं था और उसने एक गुरू विरजानन्द से केवल व्याकरण पढ़ा था और व्याकरण भी पूरी अवधि (period) नहीं पढ़ा था, बीच में ही छोड़ दिया था। (देखें महर्षि दयानंद सरस्वती का जीवन चरित्र)

4. वेदों में इतिहास है। स्वामी दयानन्द जी ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका नामक ग्रंथ में ऐसे वेदमंत्रवेद को  लिखा है जिनमें उन्हें अश्वमेध यज्ञ आदि में अश्लीलता नज़र आई। स्वामी जी ने ऐसी सब जगहों पर अलंकार और तमसील मान ली है। इसके बाद उन जगहों के अर्थ बदल देना मामूली सा काम है। अर्थ बदलने की नीयत से ही उन्होंने वेदों में इतिहास का इन्कार कर दिया।
5. फिर भी आप दयानंद जी का अर्थ मानते हैं तो मान लें लेकिन दूसरों को बता दें कि हम यह वेदार्थ किस से ले रहे हैं!
साथ ही यह भी याद रखें कि स्वामी दयानन्द जी अथर्ववेद में नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ज़िक्र नहीं मानते।
उसके लिए आपको सनातनी पंडित वेद प्रकाश उपाध्याय का वेदार्थ लेना पड़ेगा।
6. स्वामी दयानन्द जी पुराणों को झूठ मानते हैं लेकिन पुराणों के मामले में आप स्वामी दयानन्द जी की समझ का ऐतबार नहीं करते और आप पुराणों से हवाले देते हैं।
7. लेकिन आप अल्लोपनिषद का हवाला नहीं देते कि देखो, इसमें अल्लाह और रसूल बिल्कुल साफ़ लिखा है क्योंकि स्वामी दयानन्द जी अल्लोपनिषद को झूठा मानते हैं जबकि सनातनधर्मी उसे अब भी अपना धर्म ग्रंथ मानते हैं। जब सनातन धर्मी पुराणों की तरह अल्लोपनिषद को भी मानते हैं तो आप अल्लोपनिषद से भी सुबूत दें। 
कुल मिलाकर एक खिचड़ी सी पक रही है। यह अब आप आसानी से समझ सकते हैं।
मैं सभी मुबल्लिग़ों की नीयत और मेहनत की क़द्र करता हूं और सबके लिए क़ूव्वत और बरकत की दुआ करता हूं। जो मैंने पढ़ा है, उसे यहां सिर्फ़ ग़ौरो फ़िक्र के लिए पेश कर रहा हूँ। इस लेख का मक़सद किसी को ग़लत बताना नहीं है। मक़सद यह है कि तौहीद की दलील के रूप में वेद में से केवल वही मंत्र पेश किए जाएं, जो सचमुच ख़ालिक़ creator की शान में आए हैं।
दूसरी बात यह है कि स्वामी दयानन्द जी को वैदिक धर्म का प्रवक्ता न माना जाए और न ही उनके ऐतराज़ के दबाव में अल्लोपनिषद जैसे धर्म ग्रन्थ को छोड़ा जाए, जिसमें अल्लाह और रसूल का नाम बिल्कुल साफ़ लिखा है।

Bhai Hafiz Shanuddin: जनाब जब मैं संस्कृत से शास्त्री कर रहा था, तब मेरे गुरु जी श्री अखिलेश्वर महाराज जी, संस्कृतं उदबोधनं के पाठ्य में मुझे बताया था कि * संस्कृत में ब्रह्मा creator को कहते हैं, और ब्रह्म उस लामहदूद शक्ति को कहते हैं जो ब्रह्मा का creator है।
जनाब अल्लाह क़ुरआन मजीद में फरमाते हैं "नुरुन अला नूर" मैं प्रकाश के ऊपर एक प्रकाश हूँ।
अब सवाल ये है कि अल्लाह कैसा प्रकाश है, सूर्य का प्रकाश है, चंद्रमा का प्रकाश, आग का प्रकाश है, tube light का प्रकाश या रात में टिमटिमाने वाले जुगनू का प्रकाश है ??

जवाब: Ok. श्री अखिलेश्वर महाराज जी ने जिनके लिए ब्रह्म शब्द बोला जाता है, आपको उन कई में से केवल एक वुजूद के बारे में बताया था। आप जानते ही हैं कि संस्कृत में एक शब्द कई अर्थ देता है।
क्या आपने उनसे वेद से कोई प्रमाण मांगा, जहां 'ब्रह्मा  creator को कहा गया है?
क्या आपने उनसे वेद से कोई प्रमाण मांगा, जहां 'ब्रह्म उस लामहदूद शक्ति को कहा गया है, जो ब्रह्मा का creator है?
मुझे अंदाज़ा है कि आपने श्री अखिलेश्वर महाराज जी से यह नहीं पूछा होगा!!!
🌹😊🌹
मुझे लगता है कि अल्लाह कैसा प्रकाश है?, यह सवाल इस मुद्दे से अलग है, जिसमें हम अथर्ववेद के 13 वे कांड के चौथे अनुवाक के विषय पर बात कर रहे हैं।
*अल्लाह नूर है।* आप इसे बहुत आसानी से समझ सकते हैं, अगर आप ख़ुद के नूरे शुऊर (ख़ुदी Consciousness) को समझ लें, जिससे आपके जिस्म में ज़िन्दगी है। अल्लामा इक़बाल रहमतुल्लाहि अलैह इसे 'नूरी जौहर' कहते हैं:
तेरा जौहर है नूरी पाक है तू
फ़रोग़े दीदा ए अफ़लाक है तू

आप उस नूर के समंदर के एक अंश (जुज़) हैं, जिसकी लहरों (Light waves) से ये ज़मीनो आसमान बने हैं और जिसमें ये सब तैर रहे हैं। पहले आप इस 'नूरे अव्वल' या 'हक़ीक़ते अहमदी' को समझ लें। आदमी इस वसीले के बिना सूरह नूर की इस आयत (नं. 35) को अपनी अक़्ल और मिसाल से नहीं समझ सकता।

मैं आपको यह बात यहीं समझा देता लेकिन यह मुतशाबिहाती इल्म और बहुत लतीफ़ मारिफ़त है। इस ग्रुप में हरेक बुलन्दी और हरेक फ़िक्र के लोग हैं। कुछ लोग उलझन का शिकार हो सकते हैं। इसलिए हम इसके बयान को छोड़ते हैं।
इस आयत को आप 'रिजालुल्लाह' में से किसी से दरयाफ़्त कर लें, जिनका ज़िक्र सूरह नूर की आयत नं. 37 में आया है। इस आयत में ज़मीन व आसमान (Universe) का सबसे बड़ा राज़ है, जिसे जानने के बाद मोमिन को क़ूव्वत का मन्बा (Source) अपने दिल में ही मिल जाता है।
अल्हम्दुलिल्लाह!!!
Talib Nadwi Rampur Media House:
 *قوت احتساب*
"جب قوم میں اتنی ہمت اور جرأت نہ ہو کہ اپنے قائد کی غلط کاری پر ٹوک سکے تو ایسی قوم کو جو سر پھرا چاہے غلام بنا سکتا ہے،  ہر جاہل اور احمق اس کی عزت و شرف کی دھجی بکھیر سکتا ہے، ایسی قوم ہر ظلم و زیادتی کا شکار ہوسکتی ہے، اور ہر استعمار کے لئے لقمۂ تر ثابت ہوسکتی ہے" .
*از - مفکر اسلام حضرت مولانا سید ابو الحسن علی الندوی*

Monday, October 22, 2018

Dua Qubool Kyon Nahi Hoti? Answered by Dr. Anwer Jamal

Quran me likha h namaz me sukun hai aur preshani k waqt namaz se kaam liya kro usme sari preshani ka hal h.
Phir bhi log minimum 20-20 saal namaz padhte hain phir bhi unki namaz me sukun nhi hota aur namaz se madad nhi mil pati ......esa kyun ?
Ek baat aur unko pta bhi nhi h. jin logo ko nhi pta namaz me jo hum padh rhe hain uska hindi anuwad kya hai, kya phir bhi hume namaz me sukun milega ?
-Nasir Husain

जवाब: आपके सवालों के जवाब में हर आदमी जो भी कहेगा।
उनमें ये दो बातें बहुत अहमियत रखती हैं, वह मैं यहां रखता हूं।
१. नमाज़ में मदद की दुआ अलफ़ातिहा है। यह एक दुआ है और दुआ के कुछ रुक्न होते हैं। जैसे वुज़ू के चार फ़र्ज़ हैं कि अगर उनमें से एक भी न होगा तो वुज़ू न होगी और जब वुज़ू ही नहीं हुई फिर नमाज़ भी न होगी।
ज़्यादातर को यह पता नहीं है कि अलफ़ातिहा में वे रब से मदद की दुआ करते हैं।
अब थोड़े से लोगों को अलफ़ातिहा का तर्जुमा पता हो गया है लेकिन उन्हें अब भी दुआ के रूक्न पता नहीं हैं। जिनके न होने से दुआ, दुआ नहीं होती।

रूक्न के बाद शर्त का दर्जा है, जिनपर दुआ की क़ुबूलियत निर्भर है। शर्त नहीं पाई जाएगी तो दुआ क़ुबूल नहीं होगी।

आप 10 दीनदार मुबल्लिग़ दाईयों से पता करें कि 
दुआ के रूक्न और शर्तें क्या‌ हैं?
फिर आप देखें कि दस के दस को यह पता है या दस के दस को इनका पता ही नहीं है?

२. अल्लाह की ख़ास रहमत यह है कि कुछ भी पता न हो और आदमी रिवायती मालूमात के साथ भी सबसे हटकर मस्जिद में आकर नमाज़ अदा करता है तो उसे पहले की बनिस्बत ज़रूर कुछ सुकून मिलता है।

मैंने बरसों पहले ओमप्रकाश उर्फ़ महलू को 'सत्य का कल्याणकारी उपदेश' दिया और उसे कलिमा पढ़वाया। फिर मैं उसे मस्जिद में ले गया। मैंने उसे अपने साथ ज़ुहर की नमाज़ में, महज़ नमाजियों के साथ क़ियाम, रूकुअ और सज्दे करते देखा और सिर्फ़ इतना करने के बाद मैंने उसका चेहरा एकदम बदला हुआ देखा।
वह एक ग़रीब देहाती दलित था।
नमाज़ और सज्दे हर हाल में तन मन पर असर डालते हैं।
यह मेरा तजुर्बा है।
यह आज साइंटिफ़िक फ़ैक्ट है।
सजदे में दिल ऊपर और दिमाग़ नीचे होता है। जिससे दिमाग़ को ज़्यादा ख़ून, ज़्यादा आक्सीजन, ग्लूकोज़ और सभी ज़रूरी चीज़ें ज़्यादा मिलती हैं। जिससे उसकी ज़रूरत पूरी होती है। दिमाग़ पहले के मुक़ाबले ज़्यादा अच्छा महसूस करता है।
सजदे में पैर, हाथ और चेहरा व माथा ज़मीन को छूते हैं। इसे साइंस की ज़ुबान में अर्थिंग (Earthing) कहते हैं। इससे निगेटिव एनर्जी ज़मीन जज़्ब कर लेती है। इससे कष्ट देने वाली एनर्जी दूर होती है। यह अल्लाह की तरफ़ से कुदरती हीलिंग का तरीक़ा है। यह मन और तन की ज़्यादातर बीमारियां दूर करने की बहुत असरदार, आसान और साइंटिफ़िक तकनीक है। इससे सुकून मिलता है। यह नमाज़ में शामिल हैं।
💚🌿💚
Ye namumkin hai ki
Koi aalim ummat ke logon ki islah aur tarbiyat kare aur
Unhe Dua ke Rukn aur uski sharten na sikhaye!
🌿

Jab aap aise logon se milen, jo aapko gumrah aur khud ko maqbool batayen to Aap unse yh sawal Kar Len:
*Dua ke Rukn aur Uski Sharten kya Hain?*
💚
Fauran Use pata chal Jayega ki Uske Maqbool hone ki buniyad hi ghayab hai.
इस सवाल से आप तास्सुब रखने वाले मुस्लिमों के इल्मी तकब्बुर का इलाज भी कर सकते हैं।
अल्हम्दुलिल्लाह!

Thursday, October 18, 2018

Self Employment and Double Income By Dr. Anwer Jamal


*ALHAKEEM Wellness Education*
मैं रोज़गार के लिए सरकार और नीति में सुधार की लंबी चौड़ी बात करने के बजाय अपनी ज़िन्दगी का एक सच्चा वाक़या आपको बताता हूँ।
जब मैं B.Sc. कर रहा था और मुझे माल की ज़रूरत हुई तो मैंने सुन्नत के मुताबिक़ ख़ुद को ख़ुद रोज़गार दे दिया। मैं रोज़मर्रा की ज़रूरत की कुछ चीजें बेचकर *तुंरत* कमाने लगा। 
🔘
यह बिज़नेस मैंने लगभग 
Zero investment से शुरू किया था।
फिर मैंने अपने भाई बहनों को 'ख़ुद-रोज़गारी' का तरीक़ा सिखा दिया।
रब का शुक्र है कि वे भी तुरंत ही अच्छा और काफ़ी कमाने लगे।
💷💵💸💶💷💰
हमारे चारों तरफ़ लाखों लोग हैं, जो बहुत सी चीज़ें ख़रीदते हैं। आप उनकी ज़रूरत की चीज़ें बेचेंगे तो वे आपसे ख़रीदने लगेंगे।
यहां लोग पान, पानी और पनीर सब ख़रीदते हैं।
यहां गोबर और पेशाब तक बिकता है। बेकार चीज़ का भी कोई न कोई ख़रीदार है।
🐪🐫🐄🐂🐄
आप अच्छी क्वालिटी की अच्छी चीज़ें बेचेंगे तो लोग क्यों न ख़रीदेंगे?
आप हज़ार दो हज़ार या एक लाख, जितने भी बेरोज़गारों को मुझसे मिलाएंगे, मैं उन सबको केवल एक दिन में ही कमाई की राह दिखा दूंगा।
इन् शा अल्लाह!!!
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अगर आप कहीं जाब करते हैं और आपको ज़्यादा इन्कम की ज़रूरत है तो आप अपने संपर्क में आने वाले लोगों को ज़ैतून के तेल और शहद के बारे में क़ुरआन और हदीस की जानकारी दें। 
मेडिकल साईन्स की ताज़ा रिसर्च में सामने आए फायदों के बारे में उन्हें बताएं।
आप फ़ेसबुक और व्हाट्स एप्प के ज़रिए यह जागरूकता फैलाएं।
जिन लोगों के एक दो बच्चे हैं। वे उनकी हेल्थ और वेलनेस को लेकर हमेशा चिंता करते रहते हैं। आप उनकी सेहत और हिफ़ाज़त के लिए ज़ैतून और शहद के फ़ायदे बताएं।
🌿
इससे उनमें जागरूकता awareness आएगी।
उनमें असली ज़ैतून और असली शहद की डिमांड पैदा होगी।
वे आपसे ये चीज़ें ख़रीदेंगे।
📊📊📊
आपको Extra Income होगी।
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आप सलीक़े से कार्ड और पम्फ़लेट छपवा लें। फिर जुमा की नमाज़ के बाद शहर की हर मस्जिद के बाहर लोगो में बंटवा दें। रब के नियम से आपकी इनकम डबल से ज़्यादा हो जाएगी।
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अल्लाह का नाम अल-हकीम है। उसने आपको यह मुबारक नाम दिया है।
आप हिकमत से काम लेंगे तो आपको रोज़गार तुरंत मिल सकता है और अगर आपको ज़्यादा इन्कम की ज़रूरत है तो आपकी इन्कम डबल भी हो सकती है।

फिर आप लोगों की ज़रूरत देखकर और ज़्यादा अच्छी चीज़ें बेच सकते हैं।
आपकी इन्कम ''डबल की डबल" हो जाएगी।
यह मेरी ज़िन्दगी में हो चुका है।
अब आपकी ज़िन्दगी में होगा।
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत तिजारत (Business) को अपनाओ।

Monday, October 15, 2018

क्या आप तुरंत शाँति पाना चाहते हैं? Dawah Psychology for Instant Peace By Dr. Anwer Jamal

शाँति से ही कल्याण है
जो आपके अंदर है, वही आपकी ज़िन्दगी के हालात में रेफ़्लेक्ट होगा। आपके अन्दर शाँति होगी तो आपकी ज़िन्दगी में शाँति के हालात होंगे। आपकी दिल में तनाव (Stress) होगा तो आपकी ज़िन्दगी में तनाव के हालात होंगे।
आप रब के सामने समर्पण करें। उसके सामने सज्दे और साष्टांग में झुककर अपना माथा ज़मीन पर रख दें। आपका तनाव चाहे जितना ज़्यादा हो, वह तुरंत कम होने लगेगा और आपको अपने अंदर शाँति महसूस होगी। बार बार ऐसा करें। बार बार अपने आपे में शांति महसूस करें। फिर अंदर की शांति बाहर भी रेफ़्लेक्ट होने लगेगी। आपका कल्याण हो जाएगा।

सज्दा एक पैदा करने वाले के प्रति समर्पण है। समर्पण से शांति महसूस होती है। जिस शांति को आप बाहर ढूंढ रहे हैं, वह आपके अंदर पहले से ही है। यह एक आसान तरीक़ा है। यह एक अचूक तरीक़ा है। यह Instant Result देता है। हरेक धर्म और देश का मर्द, औरत और बच्चा सज्दा कर सकता है। पूरा परिवार और पूरा देश सज्दा करें तो हर तरफ़ शांति होगी। सबका कल्याण होगा।

'Islam means Peace.'
यह बात हमने मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रह. से बार बार सुनी है। हमारे उस्ताद मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह की परी ज़िन्दगी शांति के लिए काम करते हुए गुज़र गई। उनकी ख़ास आदत यह थी कि तक़रीबन सभी लोगों से उनके नामों के बारे में ज़रूर बात करते थे। जब वह किसी से उसके नाम के बारे में बात करते थे तो वह उनकी बात को बहुत ध्यान से सुनता था। उन्हें अरबी, फ़ारसी, उर्दू, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी और इलाक़ाई ज़ुबानों और लहजों का गहरा इल्म था। इसलिए वह हरेक नाम के बारे में बहुत गहरी नाॅलिज रखते थे। आप भी लोगों के नामों के मीनिंग समझने की कोशिश करें। जिस नाम के मीनिंग का आपको पता न हो तो आप उस मिलने वाले से उसके नाम का मीनिंग पता कर सकते हैं। अगर वह जानता है तो वह आपको ज़रूर बताएगा और उसे बताते हुए ख़ुशी होगी। 
आप उसके माँ बाप की तारीफ़ कर सकते हैं कि उन्होंने उसके लिए इतना अच्छा नाम रखा। ऐसा उसके साथ किसी ने न किया होगा। उसे आपकी बात सुनकर अच्छा लगेगा। यही वह पल होगा, जब उसका दिल आपके लिए खुल जाएगा।
आप उसे बता सकते हैं कि हरेक नाम अपने अन्दर एक पूरा काॅन्सेप्ट है। अच्छा नाम अच्छा काॅन्सेप्ट है। माँ बाप अपने बच्चे का जो नाम रखते हैं, उससे यह पता चलता है कि वे अपने बच्चे में कौन से गुण देखना चाहते हैं। बच्चे की यह ज़िम्मेदारी है कि वह अपने नाम की अच्छाई को ज़ाहिर करे। यह अच्छाई ज़ाहिर करना ही रब की तस्बीह है, जोकि हरेक इन्सान की नेचुरल ड्यूटी है।
आप देख रहे हैं कि आखि़री लाईन में बताया गया है कि रब की तस्बीह करना इन्सान की नेचुरल ड्यूटी है। अब आप इसे किस तरह और कितना बता सकते हैं, यह आपकी समझ पर है और इस बात पर है कि आप दोनों के पास कितना वक़्त है!
आप उसकी बातें ग़ौर से सुनें।
आप ध्यान दें कि वह किस मसले का हल तलाश कर रहा है और अल्लाह ने उस मसले का हल पवित्र क़ुरआन में क्या बताया है?
आप उसे वह हल बताएं। इस पाॅइंट से भी आप अपनी बात शुरू कर सकते हैं। मक़सद शांति होना चाहिए जो कि इस्लाम की शिक्षा है। शाँति से ही कल्याण, फ़लाह और वेलनेस है।
ऐसी ख़बरें रोज़ सुनने में आती हैं, जो Emotional Management और Solution पर काम करने की ज़रूरत का एहसास दिलाती हैं।
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इस काम को सिर्फ़  मनोचिकित्सक psychiatrist नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनकी तादाद बहुत कम हैं।
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दावती और तब्लीग़ी बहन भाई अपने मिलने वालों को  Wellness Education देकर रह ज़िम्मेदारी अदा कर सकते हैं।
सो अपने घर, अपने देश और पूरे प्लेनेट को शांतिपूर्ण बनाने के लिए मुबल्लिग़ दाई वेलनेस एजुकेशन दें और सबका कल्याण करें।
यह वक़्त की ज़रूरत है और सब नबियों ने यह काम किया है। तनाव में जी रहे लोगों की जान बचाना हमारी ज़िम्मेदारी है।
इस ज़रूरत का एहसास दिलाने वाली एक ताज़ा ख़बर देखें:

Sunday, October 14, 2018

Polytheism in Vedas वेदों में बहुदेव-वाद

*वेदों में तौहीद या शिर्क?*
मैंने शुरू में 'वेदों में तौहीद (एकेश्वरवाद)' पर कुछ पढ़ा था। उन किताबों में वेदों के विषय में वह मान्यता आर्य समाज की  थी।
बहुत बाद में आदरणीय प्र. ह. रा. दिवेकर साहित्याचार्य, एम. ए. (इलाहाबाद) डी. लिट्. (पेरिस) की बुक ऋग्वेद सूक्त विकास पढ़ी तो पता चला कि वेदों में एक साथ दो दो देवताओं की संयुक्त स्तुति भी है यानि वेदों में शिर्क है।

ऋग्वेद के छठे मंडल के 57वें सूक्त में 
इन्द्रापूषणौ यानि इन्द्र और पूषन् दो देवताओं की एक साथ (संयुक्त) स्तुति की गई है।
जिनमें से एक इन्द्र सोम पीता है और दूसरा पूषन देवता 'घी मिला जौ का आटा' खाना पसंद करता है, जिसे करंभ बोलते हैं।
दोनों देवताओं की सवारी में भी अंतर है। पूषन् का रथ बकरे खींचते हैं और इन्द्र का घोड़े।
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अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में यह पहचान कराई है कि खाने पीने वाले लोग रब और माबूद नहीं होते। देखें-

मरयम का बेटा मसीह एक रसूल के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। उससे पहले भी बहुत-से रसूल गुज़र चुके हैं। उसकी माँ अत्यन्त सत्यवती थी। दोनों ही भोजन करते थे। देखो, हम किस प्रकार उनके सामने निशानियाँ स्पष्ट करते है; फिर देखो, ये किस प्रकार उलटे फिरे जा रहे है!
पवित्र क़ुरआन 5:75

अल्लाह ने निशानी स्पष्ट कर दी है।
अब तौहीद की पहचान रखने वाला जो आदमी इन्द्र और पूषन को माबूद माने, वह उल्टा फिर कर जा रहा है।
आप किन्हीं विद्वानों से पूछना चाहें कि वेदों में तौहीद है या शिर्क? 
तो आप उनसे यह पूछना कि क्या उन्होंने वेदों में दो दो देवताओं की एक साथ पूजा स्तुति पढ़ी है, जो खाते पीते हैं और रथों पर सवारी करते हैं?
🍪🍵🍪
देखें ऋग्वेद सूक्त विकास के पृष्ठ 104 व 105। दोनों पेज केवल विचार हेतु प्रेषित हैं। यह बुक 60 साल से ज़्यादा रिसर्च करके लिखी है। इसके लिए हम आदरणीय प्रथा. ह. रा. दिवेकर जी के बहुत आभारी हैं।


Saturday, October 6, 2018

मुस्लिम समाज के माली और सियासी मसलों का हल Let us sow love By Dr. Anwer Jamal


प्रेम की फ़सल वही लेगा, जो प्रेम के बीज बोएगा
मुस्लिमों के मारे जाने और उनके ऊपर एटमिक, रासायनिक, बारूदी और त्रिशूली हमलों पर मीडिया में बहुत से हिन्दू, सिक्ख और मुस्लिम भाई हमदर्दी के साथ सलाहें देते हैं। जिनमें बहुत कीमती सलाहें भी हैं। उन सबको इज़्ज़त देते हुए मैं यह कहना चाहता हूं कि
According to Dawah Psychology
मुस्लिमों का मसला दुनिया में और हिन्द में सियासी पार्टियों के बल पर या दूसरों से लड़कर हल नहीं हो सकता। मुस्लिम समाज की फ़लाह, कल्याण और wellness सामाजिक जागरूकता से ही मुमकिन है। इसमें 5-10 साल लग सकते हैं। 
इतिहास से यह सच पता चलता है कि मुस्लिमों की हालत सिर्फ़ आपस में लड़कर कमज़ोर हुई है और वे अब भी मसलक और सियासत वगैरह के नाम पर आपस में लड़े जा रहे हैं। 
पहले यहूदी आपस में लड़े। वे कमज़ोर हुए। दुश्मनों ने उन्हें क़त्ल किया। उनकी अक़्ल ठिकाने आ गई। उन्होंने आपस की लड़ाई छोड़ दी और तरक़्क़ी पर ध्यान दिया। उनकी तरक़्क़ी हो गई।
ईसाई पादरियों के हुक्म पर ईसाई आपस में लड़ते मरते रहे। तंग आकर ईसाई अवाम ने पादरियों की हुकूमत का ख़ात्मा कर दिया। तब पादरियों की अक़्ल ठिकाने आई। अब सारे मस्लकों के पादरी 'मिलकर' दुनिया में तब्लीग़ करते हैं। सो वे सेफ़ हैं और बढ़ रहे हैं।
सुर, असुर, शैव, वैष्णव, शाक्त, बौद्ध, जैन, वाममार्गी और नागा बनकर हिन्दू सदियों लड़ते रहे और बंटते रहे। अन्दर और बाहर के हमलावर आकर इन्हें मारते, कूटते और लूटते रहे। फिर इनकी अक़्ल ठिकाने आ गई। अब सब मतों के शाकाहारी और मांसाहारी हिन्दू एक ही पार्टी में सबका साथ देते हुए और अपना अपना विकास करते हुए मिल जायेंगे।
जब तक मुस्लिमों में एकता रही। मुसलमानों से लड़कर कोई न जीता। हज़रत उस्मान ग़नी रह. की शहादत के बाद मुनाफ़िक़ों ने हुकूमत क़ब़्ज़ाने के लिए मुस्लिमों का ख़ून बहाना शुरू किया। जो आज तक दुनिया भर में जारी है।
शुरू में सिर्फ़ एक सियासी मतभेद था। मस्लकी मतभेद को वे ज़्यादातर एडजस्ट करके चलते थे और फ़ालतू की डिबेट को नापसंद करते थे। बाद में मसलों के इख़्तिलाफ़ पर डिबेट होने लगीं। नए नए फ़लसफ़ों के आलिम दुनिया को दीन पहुंचाने के बजाय आपस में ही काफ़िर और मुरतद के फ़त्वे देने लगे। जिन पर पहले ख़लीफ़ा के हुक्म से अमल भी होता था। मसला ख़ल्क़े क़ुरआन पर दीन की रूह से नावाक़िफ़ ऐसे मुफ्तियों ने हज़ारों आलिमों की गर्दनें ख़लीफा ए वक़्त से कहकर कटवा दीं।
मुजद्दिद अलिफ़ सानी रह. के तज़्करे में लिखा है कि
अकबर के दरबार में भी ये आलिम मस्लकी डिबेट डिबेट खेलते रहे। यहां तक कि अकबर इन आलिमों से फिर गया और उसने अपने लिए अपना दीन 'दीने इलाही' ख़ुद बना लिया। मुग़ल हूकूमत ख़त्म हुई। फिर अंग्रेजी, कांग्रेसी और भगवाई हाकिम आए। मुस्लिमों की लीडरी करने वाले फ़तवेदार आलिमों को दौर की तब्दीली और उसमें Survival, Wellness और ग़लबे के रोड मैप का कुछ पता नहीं है। इनके पास मुसलमानों की एजुकेशन, हेल्थ, फायनेन्स, सेफ़्टी और Empowerment का कोई विज़न तक नहीं है। ये अब भी फ़त्वे दे रहे हैं जैसे कि ये मुग़ल काल में रह रहे हों। 🕌
अपनी मुक़ल्लिद क़ौम की तरबियत इन्होंने ऐसी की है कि जो लोग बचपन से नमाज़ पढ़ते पढ़ते बुज़ुर्ग हो चुके हैं, आप ऐसे 3 नमाजियों से क़ुरआन की सबसे छोटी 3 आयतों वाली सूरह कौसर का मतलब पूछ लीजिए। उनमें से एक भी न बता पाएगा। ये लोग आलिमों की नज़र में हिदायत पर होते हैं लेकिन जब ये आलिमों के आमाल का जायज़ा लेकर उन पर तन्क़ीद करने लगते हैं तो उनकी ज़ुबान बन्द करने के लिए फ़तवे को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
मैंने अपने बच्चों को क़ारी और मौलवी दोनों से कई साल क़ुरआन पढ़वाया। उन्होंने मेरे बच्चों को पूरा क़ुरआन पढ़ा दिया लेकिन किसी एक आयत का मतलब नहीं बताया। यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा रज़ियल्लाहुम. का तरीक़ा नहीं था।
मुस्लिमों का मसला दूसरे धर्म के क़ातिल ग़ुन्डे नहीं हैं बल्कि अपने ही आलिम और सियासी लीडर हैं, जो उन्हें क़ुरआन, हदीस, हिस्ट्री और नफ़ाबख़्श उलूम से दूर रखते हैं। जो मुस्लिमों को बांटते और लड़ाते आ रहे हैं। ये महदूद और ख़ुदग़र्ज़ सोच वाले आपको हरेक पार्टी का साथ देते हुए मिलेंगे। यही बात मुसलमानों को बेवज़न कर रही है।
*Solution:*
मेरी अपनी राय 30 साल की स्टडी के बाद यह है कि हिन्द में मस्लकी मुनाज़रेबाज़ फ़त्वेदार आलिमों का दीनी माडल फ़ेल है क्योंकि फ़त्वों से आम लोगों के रोज़ी, सेहत और सलामती के मसले हल नहीं होते।
जबकि सूफियों का दीनी माडल हिन्द में कामयाब है क्योंकि उनकी मुहब्बत के माडल से सब धर्मों के लोगों की वेलनेस होती है।
🍪🥣💖💐
Universal Law है कि
'जैसा बोओगे, वैसा काटोगे'
सूफ़ी मुहब्बत के बीज बोते हैं और मुहब्बत की फ़सल काटते हैं।
आज हर आदमी अपनी ज़िन्दगी में जिन मसलों (challenges) का सामना कर रहा है, उन्हें मुहब्बत से हल किया जा सकता है। मुस्लिम दूसरों का कल्याण करेंगे तो रब के क़ुदरती क़ानून के तहत उनका कल्याण ख़ुद होगा। 
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सूफियों का पैग़ाम मुहब्बत है।
उनका काम लोगों को आपस में जोड़ना और भूखों को खाना खिलाना, उन्हें भलाई की तालीम देना और उनकी मदद करना है।
रब का शुक्र है कि आज भी अच्छे आलिम इस माडल पर चल रहे हैं। उनका साथ दिया जाए। सब मुस्लिम मिलकर इस माडल पर चलें तो वे बिना लड़े आज भी कामयाब है।

1.मुस्लिम आलिम आपसी लड़ाई को फ़ौरन बन्द कर दें। इसी में उनका भला है।
2.चाहे वे सब अपने मतभेद बाक़ी रखें लेकिन सारे मसलकों के बड़े आलिम मिलकर एक All India Wellness Board ज़रूर बना लें और हर धर्म के लोगों की फ़लाह, कल्याण और वेलनेस के लिए ज़्यादा से ज़्यादा काम करें।
बस *सिर्फ़ इस एक काम के बाद ही दुश्मन के हौसले पस्त हो जाएंगे।*
3.मुनाफ़िक़ों के बहकावे में आकर मुस्लिम न लड़ें, न मुस्लिम से और न दूसरों से। शांति, प्रेम और एकता से हर मसला हल हो सकता है। इसीलिए रब कहता है:
और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थामे रहो और आपस में फूट न डालो।
पवित्र क़ुरआन 3:103
4. *आमदनी बढ़ाने के लिए* तिजारत करें। जो लोग मज़दूर हैं, दस्तकार हैं या कहीं नौकरी करते हैं तो उनकी ज़रूरत के मुक़ाबले उनकी आमदनी हमेशा कम रहेगी। इसका हल नबी ए रहमत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत 'तिजारत' में है। आप अपना काम करते हुए जिन लोगों से मिलते हैं, उन्हें ज़िन्दगी में काम आने वाली चीज़ें जैसे कि हर्बल प्रोडक्ट्स, कोई जड़ी बूटी और कपड़ा वग़ैरह बेच सकते हैं। इससे आपको 'डबल इन्कम' होगी।
तिब्बे नबवी की चीज़ें जैतून का तेल, शहद, सिरका, खजूर, अंजीर, सना, कलौंजी, लकड़ी का प्याला और मिस्वाक जैसी चीज़ों को बेचकर भी आप भारी मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
5.अपने घर के लोगों को मज़दूर या दस्तकार बनाने के बजाय उन्हें तालीम दिलाएं और उन्हें पढ़ने के साथ घर से ही अच्छी चीज़ें बेचना सिखाएं। छोटी पूंजी से शुरूआत करेंगे तो भी वह तिजारत बढ़ेगी। आप देख सकते हैं कि आर्थिक ढाँचा ही ऐसा है कि उम्र बढ़ने के साथ मज़दूर घटता है और व्यापारी बढ़ता है।
6.अगर आप किसान हैं और ज़मीन कम है तो आप अपने घर में ही मशरूम और कीड़ा जड़ी यार्सागुम्बा की खेती करके कई गुना ज़्यादा कमा सकते हैं।
आयुर्वेद में यार्सागुम्बा को जड़ी-बूटी की श्रेणी में रखा गया है जो हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में मिलता है। इसकी कीमत करीब 60 लाख रुपये प्रति किलोग्राम है। आप सरकारी केन्द्रों से इसकी खेती की ट्रेनिंग लेकर इसे पैदा करेंगे तो आपकी पैदावार 1.5 लाख प्रति किलोग्राम बिकेगी। आप एक कमरे से 40 दिन में 6 लाख रूपये का माल पैदा कर सकते हैं।

वह जिसको चाहता है हिकमत अता फ़रमाता है और जिसको (रब की तरफ़) से हिकमत अता की गई तो इसमें शक नहीं कि उसे ख़ूबियों से बड़ी दौलत हाथ लगी और अक्लमन्दों के सिवा कोई नसीहत मानता ही नहीं.
पवित्र क़ुरआन 2:269

Wednesday, October 3, 2018

आर्य समाजी नहीं जानते कि वे किस किस तरह इस्लाम को फ़ायदा पहुँचाते आ रहे हैं?

सकारात्मक और रचनात्मक बनें
सवाल: स्वामी दयानन्द जी और आर्य समाज के साहित्य में  इस्लाम के बारे में जो नफ़रत का ज़हर मिलता है, उसके नुक़सान से मुस्लिम दाई कैसे बचें?

जवाब: आप हिकमत (wisdom) से काम लें तो आप आर्य समाज के साहित्य के नुक़सान को बहुत कम कर सकते हैं और आप ज़्यादा हिक्मत से काम लेकर उस नुक़सान को फ़ायदे में भी बदल सकते हैं। कोई चीज़ ऐसी नहीं है, जिसमें फ़लाह और कल्याण का कोई पहलू न हो।
एक अख़बार में मैंने कुछ साल पहले एक सच्चा वाक़या पढ़ा था। मुरादाबाद सम्भल रोड पर एक किसान ने गुलाब की खेती शुरू की तो उसके खेत में ज़हरीले साँप आ जाते थे। उसने उन्हें मार कर फेंकने के बजाय उन्हें पकड़ कर पालना शुरू कर दिया। एक एक करके उसके पास तक़रीबन 300 ज़हरीले साँप जमा हो गए। उसने क़ायदे से 'साँप पालन' शुरू कर दिया। उसने साँप के ज़हर का सैम्पल अमेरिका भेजा। वहाँ की लैब साँप के ज़हर से दवा बनाती है। 300 डालर प्रति 10 मिली. के भाव से दवा कम्पनियाँ ज़हर खरीदती हैं। भारत में बंगाल में कई snake farm हैं। उसका सैम्पल पास हो गया। वह पकड़े गए ज़हरीले साँपों का ज़हर बेचकर डालर कमाने लगा।
यह सब अपने नज़रिए को बदलने और किसी भी चीज़ में अपनी फ़लाह का पहलू तलाश करने की मानसिकता के साथ ही मुमकिन है। आर्य समाजी तो फिर भी इंसान ही हैं। हम आर्य समाजी के रवैये को सीधे तौर पर नहीं बदल सकते तो हम उनके बारे में अपने नज़रिए और पालिसी को तो ज़रूर ही बदल सकते हैं और याद रखें कि अगर हम बदल गए तो उनमें भी बदलाव शुरू हो जाएगा।
वेद, उपनिषद, पुराण और वैदिक ऋषियों का इतिहास जानने वाले सनातनी विद्वानों के अनुसार वेदों में बहुदेववाद है। वे वेदों में इतिहास भी बताते हैं। वे उसमें अश्वमेध यज्ञ का ऐसा तरीक़ा बताते हैं, जिसे शायद अब कोई कर न पाए। यहाँ हमारा  मक़सद उन सब कमियों को गिनाना नहीं है। ऐसी बहुत सी परमपराएं थीं, जिन्हें तब मुस्लिम और अंग्रेज़ कुरीति कहते थे और अब भारतीय क़ानून जुर्म कहता है और सज़ा देता है।
ऐसे कारणों से लोग इस्लाम और ईसाइयत की तरफ़ जा रहे थे। स्वामी  दयानंद जी उन्हें वर्णाश्रम धर्म में बाक़ी रखना चाहते थे। वे भी सनातनी पंडितों की तरह वर्णााश्रम धर्म को ही सत्य और कल्याणकारी मानते थे। आम लोग अपने बड़़े और पढ़े लिखे लोगों को फ़ोलो करते हैं। समाज के बड़े और पढ़े लिखे लोग अपना हित देखकर हाकिम को फ़ोलो करते हैं। यह संस्कृतिकरण (culturization) कहलाता है। संस्कृतिकरण हमेशा ऊपर से नीचे की तरफ़ चलता है। तब भारत में हाकिम मुस्लिम और अंग्रेज़ थे, जो ऊपर थे और बाक़ी सब नीचे थे। संस्कृतिकरण तब भी चल रहा था। इससे समाज में बदलाव आ रहा था। 
स्वामी दयानन्द जी इन बदलावों के प्रति जागरूक थे। वह मुस्लिमों में एकेश्वरवाद और अंग्रेज़ों में नारी शिक्षा जैसे गुणों को देख रहे थे। भारतीय समाज ऐकेश्वरवाद और नारी शिक्षा जैसे गुणों को अपना चुका था। लोगों को उनमें अपना कल्याण नज़र आ चुका था। उन्हें इन अच्छाईयों से रोका नहीं जा सकता था। अगर उन गुणों को वैदिक धर्म में क़ुबूल कर लिया जाए तो लोगों को वैदिक धर्म छोड़ने से रोका जा सकता था। यही सोच कर स्वामी दयानन्द जी ने वेदमंत्रों का एकेश्वरवादी अनुवाद, बुतपरस्ती का खंडन और नारी शिक्षा का महिमा मंडन कर दिया। यह सब इस्लाम के पक्ष में जाता है क्योंकि इस्लाम को समझने में बहुदेववाद, मूर्ति पूजा और जहालत बहुत बड़ी रूकावट थी। उन्हें स्वामी जी ने दूर करने में मदद की। जिन जगहों पर और जिन लोगों के सामने मुस्लिम विद्वान मूर्ति पूजा का खंडन नहीं कर सकते थे, वहाँ स्वामी जी ने यह काम कर दिया। उन्होंने मूर्ति पूजा को बेकार और बेअसर साबित कर दिया। उन्होंने यह बहुत बड़ा काम किया है और सचमुच यह बहुत साहस और वीरता का काम है।
स्वामी दयानन्द जी ने नानक साहिब, कबीर दास और अन्य मतों के साथ अपनी किताब सत्यार्थ प्रकाश में इस्लाम और क़ुरआन पर भी भौंडे ऐतराज़ किए और मज़ाक़ भी उड़ाई। इससे सब समुदायों के बीच सद्भाव और एकता को कुछ नुक़सान हुआ और इसका थोड़ा लाभ आर्य समाज और अंग्रेज़ों को ज़रूर मिला लेकिन इसका सबसे बड़ा नुक़सान ख़ुद आर्य समाज को ही मिला। अपने इस भौंडेपन की वजह से वह सबसे अलग थलग पड़ गया। लोगों ने आर्य समाजियों की बात सुननी बन्द कर दी। यहाँ तक कि ख़ुद उनके बीवी बच्चे उन्हीं के घर में उनकी बात नहीं मानते। आर्य समाज मंदिर शहरों में वीरान पड़े रहते हैं और गाँवों में सनातनियों के मुक़ाबले आर्य समाज मंदिर हैं ही नहीं। जबकि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। इस तरह आप आर्य समाज को भारत की आत्मा से कटा हुआ साफ़ देख सकते हैं।
मुस्लिम विद्वानों ने आर्य समाज के इस्लाम विरोध पर इतना ज़्यादा फ़ोकस कर लिया है कि वे उन फ़ायदों को नहीं देख पाए, जो इस्लाम को आर्य समाजी प्रचारकों से लगातार पहुंच रहे हैं।
मैं आर्य समाजियों का शुक्रगुज़ार हूँ क्योंकि
उन्होंने इस्लाम का निगेटिव प्रचार करके लोगों में इस्लाम को जानने की उत्सुकता पैदा की।
इसका नतीजा यह हुआ कि आम लोग इस्लाम और क़ुरआन के बारे में सवाल करने लगे। इससे समाज में #dawah_work की डिमांड पैदा हुई।
डिमांड एंड सप्लाई के नियम के मुताबिक़ इस डिमांड को पूरा करने के लिए भारत में इतनी ज़्यादा तादाद में मुबल्लिग़ पैदा हुए, जो पहले न थे।
उसके बाद आर्य समाजियों की राह हिंदुत्ववादी भी चले। ये लोग अख़बार, टीवी और इन्टरनेट पर इस्लाम के विषय में सवाल करते रहते हैं और मुस्लिम इन्हें जवाब देते रहते हैं। आजकल हर तरफ़ इस्लाम पर बात हो रही है। सबके फ़ोकस में इस्लाम है।
सृष्टि का नियम है:
Energy flows where attention goes.
जहाँ आप ध्यान देते हैं, वहाँ आप ऊर्जा देते हैं।
इसीलिए Universal Laws के ज्ञानी सिखाते हैं:
Resist Persist.
आप जिसका विरोध करते हैं, उसका वुजूद बनाए रखते हैं।
आजकल पूरे देशवासियों की 'ध्यान ऊर्जा' इस्लाम को मिल रही है। इससे इस्लाम और ज़्यादा शक्तिशाली हो रहा है।
आर्य समाजी इस बात को नहीं जानते। मुस्लिम भी यह नहीं जानते। मुस्लिम विद्वानों ने आर्य समाज के इस्लाम विरोध पर इतना ज़्यादा फ़ोकस कर लिया है कि वे उन फ़ायदों को नहीं देख पाए, जो इस्लाम को आर्य समाजी प्रचारकों से लगातार पहुंच रहे हैं।
स्वामी दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 1 में ईश्वर के नाम राहु, केतु, चाँद, सूरज, जल, वायु, पृथिवी, आकाश, दादा, परदादा और भाई बताए। फिर जैसे तैसे वेद के मंत्रों का
एकेश्वरवादी अनुवाद तो कर दिया लेकिन इससे सच्चे वेदार्थ पर पर्दा भी पड़ गया। स्वामी जी ने पुराणों को मानने से इन्कार कर दिया क्योंकि पुराणों को मानने से उनका वेदार्थ झूठा सिद्ध होता है। जिन राजाओं और ऋषियों का इतिहास वेदों में सूक्ष्म रूप में है, पुराणों में वही विस्तार से है। पुराणों में पुराना इतिहास है। जिसे जाने बिना सच्चा वेदार्थ जानना मुमकिन नहीं है। सच्चे वेदार्थ को छिपाने के लिए स्वामी जी ने वेदों में भी इतिहास मानने से इन्कार कर दिया। स्वामी जी की जीवनी में लिखा है कि उन्होंने देश विदेश के विद्वानों के पास अपना वेदार्थ भेजा। किसी ने भी उनके वेदार्थ को स्वीकार न किया।

दूसरे धर्मों के ग्रंथों के बारे में भी लोगों को कनफ़्यूज़ करने के लिए स्वामी जी ने उनकी मूल भाषा जाने बिना ही ताबड़तोड़ ऐतराज़ कर दिए। उनके सवाल या ऐतराज़ के पीछे मक़सद सच जानना नहीं था बल्कि सच पर पर्दा डालना और वर्ण व्यवस्था को जमाना था। वर्ण व्यवस्था जमी नहीं क्योंकि ईश्वर अल्लाह ने समाज को वर्ण व्यवस्था की शिक्षा नहीं दी। आर्य समाज की स्थापना के बाद मूल निवासियों के कारण ऊंच-नीच और छूतछात क़ानूनी अपराध ठहर गए। विवाह भी संस्कार के बजाय मुस्लिम निकाह की तरह एक क़रार बन गया।

अपने धर्म के अनुसार गुरूकुल में वेद सीखना, 2 समय हवन करना, 4 आश्रम और 16 संस्कार का पालन करना आर्य समाजियों में बाप या बेटे के, किसी के बस में नहीं है। सो ये  सब बेरोज़गार हो गए हैं कि अब क्या करें?
अब ये इस्लाम को या किसी दूसरे मत को फैलते हुए देखते हैं तो ये क्रोध और कुंठा से भर जाते हैं। जहां भी लोग सीख रहे हैं और मुस्लिम या दूसरे लोग जीवन के नियम सिखा रहे हैं, ये वहां पहुंच कर उनके मत के बारे में या अल्लाह, नबी और क़ुरआन के बारे में बद-तमीज़ियाँ करना शुरू कर देते हैं। जो लोग सीखने वालों को छोड़कर इन्हें जवाब देने लगते हैं, उनका ध्यान अपने मक़सद (goal) से हट जाता है। इनकी चाल से बचना ज़रूरी है। रब के फ़रमान के मुताबिक़  ये ख़ुद नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुश्मनी में उनकी शाने मुबारक में बद्तमीज़ी करने की सज़ा पा रहे हैं लेकिन आर्य समाजी उस पर ध्यान नहीं देते। इस तरह ये जिस पवित्र क़ुरआन को झुठला रहे हैं, स्वामी दयानन्द जी और आर्य समाजी ख़ुद उसकी सच्चाई का सुबूत बन गए हैं।
रब का फ़रमान है:
 إِنَّ شَانِئَكَ هُوَ الْأَبْتَرُ ﴿٣
निस्संदेह तुम्हारा जो वैरी है वही जड़कटा है।
पवित्र क़ुरआन 108:3
1. स्वामी दयानन्द जी की नस्ल नहीं चली क्योंकि वह सन्यासी थे।
2.   स्वामी जी का नाम  मूल शंकर था। मूूल शंकर जिस बस्ती में पैदा हुए थे, उनके अनुयायी उस जगह को तलाश करते रहे। वह जन्म स्थान भी उन्हें नहीं मिला। मूल शंकर का मूल ही नहीं मिला।
3. आर्य समाज के मन्दिरों में रोज़ सुबह शाम हवन तक नहीं होता। ऐसे में बाक़ी 4 आश्रमों और 16 संस्कारों का पालन आर्य समाजी नहीं कर पाते।
4. जो बातें आर्य समाज और इस्लाम में समान हैं, आर्य समाजी उन समान बातों पर चलते हैं क्योंकि वे स्वाभाविक और व्यवहारिक हैं। जो बातें इस्लाम के विरोध में हैं, आर्य समाजी उन पर नहीं चलते क्योंकि वे अप्राकृतिक और अव्यवहारिक हैं। आप देख सकते हैं कि आर्य समाजी अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में इस्लाम पर चलते हैं।
5. इस तरह आप देख सकते हैं कि स्वामी दयानन्द जी ने इस्लाम के विरुद्ध जाकर जो शिक्षा दी, उस शिक्षा की भी जड़ कट गई। जैसे कि स्वामी जी विधवा के पुनर्विवाह का विरोध किया लेकिन आर्य समाजियों ने उनकी शिक्षा नहीं मानी और भारी आन्दोलन चलाकर सरकार से विधवा के पुनर्विवाह का क़ानून बनवाया, जो कि इस्लाम के अनुकूल है।

इस्लाम के और दूसरे धर्मों के बड़े पेशवा, जो सामाजिक सद्भाव के लिए इंसानियत के दुश्मनों को इग्नोर करने की पालिसी पर चलते हैं। वे अपना ध्यान और समय केवल सीखने वालों को देते हैं। वे फ़ालतू की बहस और डिबेट से बचते हैं।
मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी साहिब जैसे लेखकों की किताबों की ज़ुबान वगैरह को अपडेट करना भी ज़रूरी है। जिन्होंने अपनी किताबों में आर्य समाजी ऐतराज़ के बहुत तार्किक जवाब दिए हैं।
कोई एक मुस्लिम विद्वान आज भी ज़रूरी है, जो एक सकारात्मक विचारक-शोधक हो। वह लेख लिखकर और वीडियो बनाकर समाज में सद्भाव बनाए रखने की नीयत से आर्य समाजियों के ऐतराज़ के जवाब देता रहे। कुछ लोग उसकी मदद करें। इस तरह एक ही आलिम काफ़ी है, अल्हम्दुलिल्लाह!
हर दाई मुबल्लिग़ उसी आलिम की तरफ़ हरेक बेरोज़गार आर्य समाजी को भेज दे, ख़ुद उनसे बात न करे। ख़ुद रचनात्मक लोगों से सकारात्मक बात करे।
इन्हें इस्लाम का निगेटिव प्रचार करना है, सो ये करते रहेंगे लेकिन हम इनके बदले में किसी हिन्दू ग्रंथ या हिन्दू महापुरुष को बुरा नहीं कहेंगे क्योंकि हम उनकी अच्छी बातों को सम्मान सहित मानते हैं।
हिन्दू भाई जिस शख़्सियत को जल‌ प्रलय वाला महर्षि मनु बताते हैं, हम उन्हें नबी नूह मानते हैं। हम उन पर ईमान रखते हैं।
आर्य समाजियों की बदतमीज़ी के जवाब में उनसे बात करते  हुए स्वामी दयानन्द जी को बुरा न कहें। बुराई का बदला बुराई से न दें, भलाई से दें। स्वामी जी ने जो अच्छी बातें कही हैं और अच्छे काम किए हैं, उनकी तारीफ़ भी करें। जैसे कि स्वामी जी मनुष्य का गुण और कर्त्तव्य बताते हुए एक बहुत अच्छी बात लिखते हैं:
'और जो बलवान होकर निर्बलों की रक्षा करता है वही मनुष्य कहाता है और जो स्वार्थवश होकर परहानि मात्र करता रहता है, वह जानो पशुओं का भी बड़ा भाई है।'
-सत्यार्थप्रकाश भूमिका पेज नं. 3

आप आर्य समाजियों के जन सेवा जैसे अच्छे कामों में उनका साथ दें क्योंकि ऐसा करके वे इस्लाम पर अमल कर रहे हैं। जब वे इस्लाम पर चलें तो आप उनका साथ दें। आर्य समाज में अच्छे और सभ्य लोग भी हैं। इसलिए कुछ लोगों के बुरे बर्ताव से सब आर्य समाजियों के बारे में कोई बुरी राय न बनाएं। आर्य समाजी परोपकार के कुछ काम भी करते हैं। कुछ अच्छे आर्य समाजी हमारे मित्र हैं। 
इस्लाम के बारे में निगेटिव प्रचार करने वाले आर्य समाजी लोगों के मन में सवाल डालकर आपकी तरफ़ भेज रहे हैं। आप जवाब में उन्हें ईमान‌ और सम्मान की शिक्षा देते रहें। उनकी नफ़रत और आपकी मुहब्बत देखकर लोग आपकी बात मानेंगे। इस पालिसी से आप आर्य समाजी प्रचारकों को एक अच्छे सप्लायर के रूप में देख सकते हैं। वे एक हिन्दू बहन भाई को मूर्ति पूजा, नशा, सामाजिक कुरीतियों और अपराध से दूर रहने के लिए सहमत कर ही लेते हैं। ऐसा करके वे आपका कुछ काम हल्का ही करते हैं।अब आपके लिए सिर्फ़ इस्लाम के संबंध में ज्ञानपूर्ण उत्तर से और अच्छे व्यवहार से उनका भ्रम दूर करने का काम बाक़ी बचता है।

मनौवैज्ञानिक सत्य:
याद रखें कि लोग सिर्फ़ मज़बूत दलील देखकर ही किसी सत्य को नहीं मान लेते। वे उसमें अपनी दुनियावी फ़लाह के फ़ैक्टर को भी देखते हैं। सत्य के उपदेश के साथ मुहब्बत का बर्ताव किया जाए और लोगों का भला किया जाए, तभी वे उपदेशक की बात को क़ुबूल करते हैं और उस पर चलते हैं। आप जिसे भी इस्लाम की कोई शिक्षा दें तो आप उसे यह ज़रूर बताएं कि उस शिक्षा से दुनिया में और दुनिया से जाने के बाद उसे क्या फ़ायदा होगा और किस नुक़सान से उसका बचाव होगा।

हमने ये कुछ बातें आपके सामने रखी हैं। आप ख़ुद समझदार हैं। आप जितनी ज़्यादा हिकमत से काम लेंगे, आप स्वामी दयानन्द जी के आर्य समाजियों से उतना ज़्यादा लाभ उठा सकते हैं। जब आर्य समाजी ख़ुद को आपका बिना सैलरी का सेवक पाएंगे और अपने निगेटिव प्रचार का पाज़िटिव लाभ आपको मिलता देखेंगे तो वे भी अपना नज़रिया और पालिसी बदलने पर विचार ज़रूर करेंगे। आप बदलेंगे तो उन्हें भी बदलना पड़ेगा। ख़ुद को बदलना हमारा अपना फ़ैसला है और अपना काम है। ख़ुद को बदलने का फ़ायदा हमारे साथ सारे समाज को मिलेगा।
यह पोस्ट समाज में शाँति और सद्भाव के लिए प्रेम और सभ्यता के साथ लिखी गई है। असभ्य लोग केवल सभ्यतापूर्वक कमेंट करें। नज़रिए के फ़र्क़ की वजह से ग़ुस्सा और बदतमीज़ी करना जायज़ नहीं है।