Translate

Thursday, January 30, 2020

आप वेदों को परमेश्वर की वाणी कैसे मान सकते हैं? Dr. Anwer Jamal

दोस्तो, आज गोरखपुर से हमारे एक दीनी तब्लीग़ी दोस्त ने मोबाईल काल पर हमसे पूछा कि क्या आप वेदों को परमेश्वर की वाणी नहीं मानते?
हमने कहा कि हम वेदों को ऋषियों की वाणी मानते हैं और हम ऋषियों का और वेदों का सम्मान करते हैं। क्या यह काफ़ी नहीं है। क्या वेदों को ईश्वर की वाणी मानना ज़रूरी है जबकि उसमें अजन्मे अविनाशी परमेश्वर ने अपना निज नाम बताकर अपना परिचय एक सूक्त में भी नहीं दिया जैसा कि पवित्र क़ुरआन में सूरह इख़्लास में दिया है। सूरह इख़्लास का अनुवाद शिया, सुन्नी, देवबंदी, बरेलवी, अहले हदीस, अहले क़ुरआन, क़ादियानी या पंडित नंद कुमार अवस्थी; जो भी करता है; हरेक एक ही अनुवाद करता है। यह बात आपको वेद के अनुवाद में न मिलेगी। आप किसी एक वैदिक विद्वान का अनुवाद ले लें और उसके अनुवाद में कोई एक ऐसा सूक्त लें, जिसमें परमेश्वर के गुणों का वर्णन बहुत अच्छा किया गया हो। अब उसी सूक्त का अनुवाद सायण का या ग्रिफ़िथ का पढ़ लें। आप देखेंगे कि एक बिल्कुल अलग अनुवाद सामने आ गया है, जिसमें परमेश्वर के गुणों का नहीं बल्कि किसी चीज़ के गुणों का वर्णन हो रहा है।
आप पवित्र क़ुरआन ही नहीं, आप तौरात, ज़बूर और इंजील पढ़ लें। आपको उसमें भी कैथौलिक, प्रोटेस्टेंट और दूसरे संप्रदायों के अनुवाद में यही मिलेगा कि जिन आयतों में परमेश्वर का ज़िक्र है, सब संप्रदायों के अनुवादों में उन आयतों में परमेश्वर का ज़िक्र ही मिलेगा। ऐसा न होगा कि एक संप्रदाय सूर्य और चन्द्रमा का अर्थ सूरज और चाँद बता रहा है और दूसरा इनका अर्थ परमेश्वर बता रहा है।
परमेश्वर की किसी भी वाणी में परमेश्वर, सूर्य और चन्द्रमा आपस में गड्ड मड्ड नहीं हैं। परमेश्वर की हरेक वाणी में परमेश्वर का नाम स्पष्ट है। वेदों में ऐसा नहीं है। हक़ीक़त यह है कि वेदों में सूर्य और चंद्रमा आदि प्राकृतिक चीज़ों की स्तुति करके उनसे सहायता और कामनापूर्ति की प्रार्थना की गई है, जोकि सायण के भाष्य में स्पष्ट है।
स्वामी दयानन्द जी को यह पसंद नहीं आया। उन्होंने वेदों को ईश्वर की वाणी घोषित कर दिया। वेदों के वे सूक्त उनके दावे को झुठला रहे थे जिनमें सूर्य, चंद्रमा और अग्नि आदि प्राकृतिक चीज़ों की स्तुति करके उनसे सहायता की या कामनापूर्ति की प्रार्थना की गई है। स्वामी दयानंद जी ने इसका हल यह निकाला कि अपना मनमाना अनुवाद करने के लिए उन्होंने सूर्य, चंद्रमा, अग्नि, जल, पृथिवी, आकाश, राहु, केतु, दादा, परदादा और भाई; ये सब परमेश्वर के नाम घोषित कर दिए। देखें: सत्यार्थ प्रकाश का पहला समुल्लास
आप अपनी अक़्ल से ख़ुद ग़ौर करें कि क्या आपने परमेश्वर कि किसी भी वाणी में सूर्य, चंद्रमा, अग्नि, जल, पृथिवी, आकाश, राहु, केतु, दादा, परदादा और भाई को परमेश्वर का नाम पढ़ा है?
नहीं।
बस, अगर आप स्वामी दयानन्द जी की इस धांधली को समझ गये तो आप यह भी समझ जाएंगे कि स्वामी जी ने वेदों का अनुवाद कैसे बदला!
स्वामी दयानंद जी के अनुवाद में परमेश्वर के गुणों का वर्णन पढ़ें और फिर किसी सनातनी विद्वान का उसी सूक्त का अनुवाद पढ़ें। आप देखेंगे कि दोनों का अर्थ बिल्कुल अलग है। सनातनी पंडित सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, आकाश, राहु, केतु, दादा, परदादा, भाई आदि शब्दों का बिल्कुल ठीक अनुवाद करते हैं। जिससे वेद का सही अर्थ साफ़ समझ में आता है। इसीलिए मैं स्वामी दयानन्द जी के मुक़ाबले सनातनी अनुवाद को ज़्यादा सही मानता हूँ।
सनातनी पंडित स्पष्ट रूप से मानते हैं कि वेदों में प्राकृतिक चीज़ों की उपासना और उनसे प्रार्थना करना वर्णित है। मुस्लिम भाई यह कह सकते हैं कि वेदों में जिन जगहों पर प्राकृतिक चीज़ों की उपासना और उनसे प्रार्थना करना वर्णित है वह तहरीफ़ (बाद की मिलावट) है।
ठीक है, तब आप बिना तहरीफ़ वाली जगह तलाश कर उसमें तौहीद (एकेश्वरवाद) का ऐसा वर्णन दिखाएं, जैसा कि तौरात, ज़बूर और इंजील में है।
क्योंकि तौहीद का जैसा ज़िक्र पवित्र क़ुरआन में बयान है, वैसा वेदों में नहीं है। वेदों के सैकड़ों सूक्तों में एक सूक्त भी तौहीद पर नहीं है।
क्या यह संभव है कि परमेश्वर की वाणी में उसी के अस्तित्व और उसी के गुणों का स्पष्ट वर्णन न हो?
याद रखें कि परमेश्वर की वाणी में तहरीफ़ होती है लेकिन  असल तालीम ग़ायब नहीं होती बल्कि उसमें इज़ाफ़ा कर दिया जाता है और असल तालीम बाक़ी रहती है।
जो वेदों को परमेश्वर की प्रथम वाणी मानता हो, वह वेदों में असल तालीम हमारे सामने लाये और वह याद रखे कि कम से कम एक सूक्त सामने ले आए कि यह असल तालीम है। वेद मंत्र के टुकड़े उठाकर न लाए कि पूरे सूक्त में से 'अकायम्' बस एक शब्द उठा लाए कि देखो, यह है वेदों की असल तालीम!
क्या आप पवित्र क़ुरआन या इंजील भी ऐसे ही पढ़ते हो?
आप पवित्र क़ुरआन या इंजील पढ़ते हो तो एक सब्जेक्ट की सारी आयतें एक साथ रखकर मतलब निकालते हो और जब वेद पढ़ते हो तो यह क़ायदा भूल जाते हो?
जिस क़ायदे से पवित्र क़ुरआन और इंजील पढ़ते हो, वैसे ही वेद पढ़ो। आपको वेद सही सही समझ में आएगा। अपनी पसंद की चीज़ वेद में देखना बंद करो और जो वेद में है, वही देखो। हम वेद में क्या देखना चाहते हैं, यह मायने नहीं रखता। वास्तव में वेदों में क्या है? यह जानना मायने रखता है।
पवित्र क़ुरआन अपने ईश्वर की ओर से होने का दावा ख़ुद करता है और ख़ुद उसका सुबूत देता है।
वेद में न ऐसा कोई दावा पाया जाता है और न कोई सुबूत।

ख़ामख़्वाह अपने अक़ीदे ख़राब न करो।
कोई वेद को ईश्वर की पहली वाणी बता रहा है।
कोई ख़ुद को हिन्दू बता रहा है।
यार तुम इस्लाम की तब्लीग़ कर रहे हो या मुस्लिमों का हिन्दूकरण कर रहे हो?
अल्लाह से पनाह चाहो और अपने ईमान की हिफ़ाज़त करो।
अल्लामा इक़बाल ने ख़ुद को हिन्दी कहा है, हिन्दू नहीं कहा। ख़ुद को हिन्दी कहो और जो हिन्दू हैं, उनके अक़ीदे की आज़ादी का आदर करो। उनके साथ अच्छा बर्ताव करो।