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Saturday, February 16, 2019

How to do most attractive dawah work? Dr. Anwer Jamal

आज हम *Dawah Psychology* में
1. Personal Attraction Point
2. Common Attraction Point और
3. Subconscious Mind के काम करने के तरीक़े की जानकारी देंगे।
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मेरी स्टडी और 30 साल के तब्लीग़ी फ़लाही अमल का ज़़ाती तजुर्बा यह है कि
हम लोगों से आमने सामने बातचीत करके, सोशल वेबसाइट्स पर पोस्ट और कमेंट करके अपने नज़रिए को दूसरे के दिल में नक़्श करते हैं/कर सकते हैं। इसके लिए हमें यह जानना ज़रूरी है कि इंसान का दिल (subconscious mind) कैसे काम करता है?
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इंसान के सामने जो बात बार बार रिपीट होती है, वह उसके दिल में नक़्श हो जाती है,
चाहे वह ग़लत हो या सही।
इंसान के दिल में ग़लत और बुरी बात जमेगी तो वह भ्रम का शिकार रहेगा और लोगों से लड़ता रहेगा। जो लोग उसके काम आ सकते हैं, वह उन्हें अपने ख़िलाफ़ कर लेगा और वह नुक़्सान उठाएगा। उसके दिल में सच्ची और अच्छी बात जमेगी तो उसका मन शाँत रहेगा। वह लोगों से दोस्ती का बर्ताव करेगा और इससे उसका भला होगा।
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जब कोई बात किसी इंसान के सामने माँ बाप गुरू और लीडर जैसी उसकी मौतबर शख़्सितें बार बार और बहुत ज़्यादा दोहराती हैं तो वह उसे सच मान लेता है और
फिर वह बात उसका विश्वास और नज़रिया बन जाता है।
वह नज़रिया उसके subconscious mind का पैटर्न होता है। उस नज़रिए से उसकी सीमाएं (limitations) तय हो जाती हैं। अब उसके जीवन में उस नज़रिए के मुताबिक़ हालात ख़ुद जन्म लेते हैं और वह समझता है कि वह अपने हालात के सामने बेबस है।
इस तरह वह उस नज़रिए के तिलिस्म (Matrix) में क़ैद हो जाता है, जो दूसरों ने बार बार उसके सामने रिपीट करके उसके दिल में जमा दिया है।
वह इससे unconscious होता है कि वह दूसरों के नज़रिए का ग़ुलाम है और अगर वह अपने नज़रिए का ग़ुलाम न रहे बल्कि उसका मालिक बन जाए यानि अपने नज़रिए को सच्चा और अच्छा बना ले तो उसके हालात भी बदल जाएंगे।
💛💚💛
जब एक बच्चे के सामने बार बार किसी क़ौम के लिए नफ़रत, दुश्मनी और बदले की बात बचपन से दोहराई जाए तो यह  बात उसकी धारणा (core belief) बन जाती है
और उसका दिल (subconscious mind) ख़ुद नेचुरली उस क़ौम के लिए उसकी धारणा (अक़ीदे) के मुताबिक़ उसके अंदर विचार, भावना, कर्म और अंजाम पैदा करता है। वह बात (कलिमा) नेचुरल तरीक़े से हालात के रूप में अपने ठीक वक़्त पर साकार हो जाती है।
एक आदमी दूसरे आदमी से, एक क़ौम दूसरी क़ौम से और एक देश दूसरे देश से लड़ने लगता है। इसीलिए आज लड़ाई जारी है और लोग मर रहे हैं। जिसका फ़ायदा थोड़े से धनपति, धर्म गुरू और राजनेता उठा रहे हैं। जब वे आपके दिल पर क़ब्ज़ा कर सकते हैं तो आप ख़ुद अपने दिल के पर काबू क्यों नहीं कर सकते?
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जब कोई इंसान अपने दिल की निगरानी नहीं करता तो दूसरे लोग उस पर क़ब्ज़ा जमा लेते हैं। वे उसमें अपने हित के अनुसार बातें जमा देते हैं। वे उसे अपने फ़ायदे के लिए लड़ने के लिए और अपना धन और अपनी जान देने के लिए तैयार कर लेते हैं। यह ज़हनी ग़ुलामी है।
यही ग़ुलामी इंसान के लिए बर्बादी (ویل) है। नाशुक्रे मुजरिम पापी के लिए यह नक़द जहन्नम (नर्क) है लेकिन ज़्यादातर लोग इसे पहचानते नहीं।
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मुबल्लिग़ दाई का काम इंसान को उसकी मौजूदा बर्बादी की वजह बताना और उसे बर्बादी से फ़लाह की तरफ़ बढ़ने की सीधी राह दिखाना है।
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सोशल मीडिया पर पोस्ट और कमेन्ट के ज़रिए एक दाई मुबल्लिग़ को यही काम अंजाम देना होता है।
💞
आप जितना ज़्यादा अपने पाठकों के मनोविज्ञान को समझेंगे,
उतना ज़्यादा आप उन्हें समझा पाएंगे कि उन्हें कैसे बुरे हालात में क़ैद किया गया है। तभी आप उन्हें क़ायल कर पाएंगे।वे अपना फ़ायदा देखकर आपकी बात मानेंगे।
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पौराणिक, आर्य समाजी, हिन्दुत्ववादी, ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया, दलित, वामपंथी, कबीर पंथी, बच्चा, किशोर, जवान, बूढ़ा, क़ैदी, कुंवारी लड़की, शादीशुदा औरत, विधवा, तलाक़शुदा, नौकरीपेशा, गृहस्थन, अनपढ़, शिक्षित, मज़दूर, व्यापारी, किसान, फ़ौजी, अफ़सर, शायर, नेता, डाक्टर, रोगी
हिन्दी, पंजाबी, दक्षिण भारतीय और कान्वेंट एजुकेटिड,
इनमें से हरेक का मनोविज्ञान दूसरों से कुछ अलग है। हरेक को अलग बात में Attraction महसूस होता है।
और कुछ बातें सबके लिए बराबर attraction रखती हैं।
💓⭐💓
हम इन्हें
1. Personal Attraction Points और
2. Common Attraction Points कह सकते हैं।
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जब हम इन दोनों बातों को नज़र अंदाज़ करके एक लगे बंधे ढर्रे से सबको मैसेज देते हैं तो यह भी अपने अंदर एक अच्छी बात होती है लेकिन उसकी तरफ़ लोग कम आकर्षित होते हैं
और लोगों पर उनका पुराना नज़रिया ग़ालिब रहता है।
जब हम इन दोनों बातों को सामने रखकर लोगों को मैसेज देते हैं तो फिर उनका ख़ुद पर क़ाबू नहीं रहता और 
वे माँ बाप गुरू और लीडर, हरेक की बात को पीछे डालकर आपकी बात को सच मान लेते हैं क्योंकि उन्हें उससे अपनी फ़लाह (कल्याण) का यक़ीन आ जाता है।
'मुझे कैसे नफ़ा होगा?' यह बात हरेक को अट्रैक्ट करती है। जो आदमी लोगों को नफ़े की बात बताता है, लोग उसे अपना गुरू बना लेते हैं। इस तरह वह रब के कुदरती क़ानून के तहत ज़मीन में जम जाता है। उसकी दावत भी लोगों के दिलों में जम जाती है।
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मैं Common Attraction Points में ऐसी बातें रखता हूँ, जो सबको आकर्षित करती हैं, जैसे कि
1. मैं कौन हूँ?
2. मैं क्यों पैदा हो गया?
3. मरने के बाद इंसान का क्या होता है?
4. ईश्वर अल्लाह कौन है और वह हमारे लिए क्या करता है?
5. मेरी भलाई किस काम में है और किन कामों से मुझे नुक़्सान पहुंच सकता है?
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मैं Personal Attraction Points में वे बातें रखता हूँ, जिनकी तरफ़ एक आदमी अट्रैक्ट होता है और दूसरे नहीं होते। जैसे कि एक जवान और कुँवारी लड़की के दिल में यह सवाल होता है कि मुझे अच्छा पति कैसे मिलेगा?
जिन लड़कियों की शादी में दहेज या क़द और ख़ूबसूरती कम होने की वजह से देर हो रही है, उनके दिल में सवाल होता है कि मेरी शादी जल्दी कैसे हो?
जब आप उन्हें इसका जवाब देंगे तो वे अट्रैक्ट होंगी लेकिन एक बच्चे या एक बूढ़े को यह जवाब अट्रैक्ट नहीं कर सकता।
एक बच्चे को उसकी पसंद के खिलौनै या सायकिल पर बात करना अट्रैक्ट करेगा जबकि एक अफ़सर इस बात से अट्रैक्ट न होगा।
एक अफ़सर इस बात से अट्रैक्ट होगा कि वह अपनी पसंद की सीट कैसे पाए या अपने आला अफसरान को ख़ुद पर कैसे मेहरबान रखे।
ऐसे ही किसी ब्राह्मण को वेदों में अग्नि विषय पर और पौराणिक कथाओं पर बात करना, अल्लामा इक़बाल की मशहूर नज़्म 'इमामे हिन्द' सुनाकर उनके गुण गाना तुरंत अट्रैक्ट करेगा लेकिन यही बात दलित और वामपंथी लेखक को आपसे दूर कर देगी।
दलित और वामपंथी लेखकों को सामाजिक न्याय और आर्थिक सुरक्षा से जुड़ी बात अट्रैक्ट करेगी।
एक किसान को फ़सल में बरकत और एक व्यापारी को ज़्यादा सेल और ज़्यादा नफ़ा कैसे हो?, यह बात अट्रैक्ट करेगी।
ऐसे ही हरेक इंसान को कोई अलग बात अट्रैक्ट करती है।
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जब हम एक मुबल्लिग़ के रूप में बात करें तो अपने सामने वाले को Common Attraction Points के साथ उसके Personal Attraction Point पर जानकारी ज़रूर दें, जो सच हो और तुरंत भौतिक लाभ देती हो।
आप ध्यान देंगे तो आपको अल्लाह और उसके नबियों की दावत में ये दोनों बातें मौजूद मिलेंगी। देखें:
"और मैंने कहा, अपने रब से क्षमा की प्रार्थना करो। निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील है, वह बादल भेजेगा तुमपर ख़ूब बरसनेवाला, और वह माल और बेटों से तुम्हें बढ़ोतरी प्रदान करेगा, और तुम्हारे लिए बाग़ पैदा करेगा और तुम्हारे लिए नहरें प्रवाहित करेगा।"
---पवित्र क़ुरआन 71:11-13
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एक बुनियादी उसूल
जो बात सच हो
तुरंत भौतिक लाभ देती हो
बार बार दोहराई जाती हो
और उस तरीक़े से कामयाबी पाने वालों के वाक़यात भी सामने हों तो सुनने वाला उसे ज़रूर मानता है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
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हम पोस्ट और कमेन्ट में इन बातों का ध्यान रखें तो हम अपनी बात अपने पाठकों के दिल में नक़्श कर सकते हैं।
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यह एक बुनियादी रहनुमा उसूल है।
इसके अलावा कुछ ख़ास उसूल भी होते हैं,
जैसे कि
कोई नर्म और मददगार इंसान हो तो 
उसके अच्छे कामों की तस्दीक़ और तारीफ़ से काम लिया जाएगा और फिर बात की जाएगी।
इल्मी तकब्बुर (ज्ञान-अहंकार) वाले किसी आर्य समाजी विचारक पर यह तरीक़ा काम न देगा, जो अल्लाह, क़ुरआन और सब धर्मों की मज़ाक़ उड़ाता हो। अपनी नज़र में सबसे बड़ा ज्ञानी वह ख़ुद है। जब तक आप उसके तकब्बुर को पहले चूरा और फिर पाउडर न बना दें, वह आपको अपने से नीच और मूर्ख समझता रहेगा।
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किसी और को दूसरी तरह झिंझोंड़ डालना भी आपके मैसेज पर अट्रैक्ट कर सकता है ताकि वह हर वक़्त अपने मन में आपसे लड़ता रहे।
इससे आप उसके मन में समा जाते हैं और वह हर वक़्त आपकी फ़िक्र पर तवज्जो जमाए रखता है।
...और वह चीज़ उसके वुजूद में बढ़ने लगती है,
जिस पर वह ज़्यादा ध्यान देता है।
💓
वह बार बार FB Wall पर या Blog पर आकर आपके लेख पढ़ता है ताकि आपकी कमी पकड़ कर आपको हराए।
या
वह दूसरी जगह से इस्लाम के बारे में पढ़ता है ताकि आपसे बहस कर सके।
इस तरह इस्लाम के बारे में वह लगातार अंधेरे से उजाले की तरफ़ सफ़र करता है।
अल्हम्दुलिल्लाह।
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इन सब लोगों से सोशल वेबसाइट्स पर बात करते हुए मैं अपने और दूसरे के कुछ लिंक्स ज़रूर छोड़ता हूँ क्योंकि वह उन्हें जाँचने की नीयत से ज़रूर पढ़ेगा। उसके अलावा उस पोस्ट पर आने वाले दूसरे बहुत से लोग भी उन्हें पढ़ते हैं।
हर आदमी के दिल कुछ नया देखने और छिपे हुए को देखने का जज़्बा होता है।
मुहब्बत का चश्मा कैसे पहनाएं?
जो लोग आज सोशल वेबसाइट्स पर इस्लाम के ख़िलाफ़ नफ़रत फैला रहे हैं या ऐतराज़ कर रहे हैं, वे नफ़्सियाती मर्ज़ (psychosocial disorders) के शिकार हैं। उन पर कोई लाजिकल जवाब असर नहीं करेगा क्योंकि उनका दिल (subconscious mind) नफ़रत और दुश्मनी की वजह से उसे क़ुबूल नहीं करता। उनके दिल में बचपन से जमे हुए नफ़रत और दुश्मनी के अक़ीदों को बदलकर मुहब्बत और दोस्ती के विचारों को जमाना ज़रूरी है। तब वे उन सवालों को छोड़ देंगे, जिनका सोर्स नफ़रत थी।
ज़्यादातर मुबल्लिग़ सवालों का लाजिकल जवाब देते रहते हैं लेकिन वे उसके सोर्स को ज्यों का त्यों छोड़ देते हैं। जिससे उनके दिलों में वैसे सवाल लगातार उठते रहते हैं।
जब आप ऐसे किसी मनोरोगी को 
किसी मुसीबत का हल बताते हैं या
कोई दुनियावी फ़ायदा उठाने या
मन की मुराद पाने का तरीक़ा बताते हैं तो वह थोड़ी देर के लिए सारी नफ़रत और दुश्मनी को एक तरफ़ कर देता है और आपकी बात सुनता है। जब वह बार बार ऐसा करता है तो उसकी नफ़रत और दुश्मनी कमज़ोर पड़ने लगती है। उसके दिल में आपकी मुहब्बत बढ़ने लगती है।
जब आप उसे दिल (subconscious mind) के काम करने का तरीक़ा बताते हैं तो वह पूरी तरह समझ जाता है कि उसके दिल में क्या ख़राबी थी और वह कैसे आ गई थी?
अब वह नफ़रत और दुश्मनी की क़ैद से रिहा हो सकता है। अब वह अपना दिल और अपना नज़रिया बदल सकता है। अब वह आपको और इस्लाम को मुहब्बत के चश्मे से देख सकता है। मुहब्बत का नज़रिया मुहब्बत का चश्मा है। इस्लाम का मुबल्लिग़ वहीं है जो दुश्मनों को मुहब्बत का चश्मा पहना सके।
तब्लीग़े दीन का काम नफ़्सियाती इलाज (Psychological treatment) करने जैसा नहीं है बल्कि 
नफ़्सियाती इलाज करना ही है।
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ज़्यादातर लोग दिल (अक़ीदे और नज़रिए) के मरीज़ हैं।
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दिल (के नज़रिए) को बदलना मक़सूद (Goal) है।
क़ल्बे सलीम मक़सूद (Goal) है।
इसी से फ़लाह और कल्याण है।
🍎🍏🍎
इसके लिए हमें सच्ची और अच्छी बातों को, रब की अनंत क़ुदरत को और उसके क़ुदरती नियमों को बार बार रिपीट करते रहना है ताकि वे हमारे दिल में जम जाएं और जो हमसे सुनें, उनके दिल में भी नक़्श हो जाएं।
जैसा नक़्शा (blueprint) होगा, आपकी ज़िन्दगी वैसी ही होगी।
इसलिए आपके अंदर एक रब की जो पहचान दर्ज हैं उस पर फ़ोकस करें, उसमें मुहब्बत, माफ़ी, मदद और शुक्र जैसे अच्छे गुणों को डेवलप करें। आपका नक़्श अच्छा बनेगा।
आपके अपने अंदर एक किताब पोशीदा है, जिसे किताबे मक्नून कहेंगे। आप उस किताब को अच्छा लिखें। आप आज भी उसे पढ़ सकते हैं, जिसे आप कल पढ़ेंगे।
وَكُلَّ إِنسَانٍ أَلْزَمْنَاهُ طَائِرَهُ فِي عُنُقِهِ ۖ وَنُخْرِجُ لَهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ كِتَابًا يَلْقَاهُ مَنشُورًا ﴿١٣اقْرَأْ كِتَابَكَ كَفَىٰ بِنَفْسِكَ الْيَوْمَ عَلَيْكَ حَسِيبًا ﴿١٤
हमने प्रत्येक मनुष्य का शकुन-अपशकुन उसकी अपनी गरदन से बाँध दिया है और क़ियामत के दिन हम उसके लिए एक किताब निकालेंगे, जिसको वह खुला हुआ पाएगा। पढ़ ले अपनी किताब (कर्मपत्र)! आज तू स्वयं ही अपना हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।"
-पवित्र क़ुरआन 17:13-14

Tuesday, February 5, 2019

सद्-गुण अपनाएं, ज़्यादा धन कमाएं Dr. Anwer Jamal's Powerful Technique

50,000 रूपये महीना कमाने का तरीक़ा, आज़माया हुआ
मैं आपको यह ख़ास तरीक़ा एक सच्चे वाक़ये के ज़रिए सिखाऊंगा।
क्या आप तैयार हैं?
ओके, आप तैयार हैं तो ठीक है।
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यह तरीक़ा 'शुक्र' करने और शिकायत से बचने पर based है।
दो साल  पहले यू. पी. में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान मुझे कई लोगों ने मुझसे पूछे बिना राजनैतिक ग्रुप्स में जोड़ लिया। ये वे लोग थे, जो मेरे साथ किसी ग्रुप में थे या उनके पास मेरा नंबर था। मैं राजनैतिक ग्रुप में नहीं रहता। उस पर यह कि हर ग्रुप में तीन सौ मैसेज रोज़ आते थे।
मैंने उनसे शिकायत नहीं की बल्कि मैंने उनकी मेहनत सराहना की और उसमें बना रहा।
🌹🍏🌹
मैं सोचने लगा कि मैं इस opportunity का कैसे फ़ायदा उठा सकता हूँ?
मुझे एक नौजवान लड़के का ध्यान आया। जिसकी job छूट गई थी और उस पर अपने परिवार की ज़िम्मेदारियां थीं। वह एक कंपनी के कुछ प्रोडक्ट्स बेच रहा था लेकिन सेल बहुत कम थी। चार पाँच हज़ार रूपये महीने की सेल थी। यह उसके गुज़ारे के लिए काफ़ी न थी।
🌹🍏🌹
एक दिन मैंने उन सभी राजनैतिक ग्रुप्स के सभी  एडमिन को छोड़कर बाक़ी सब लोगों के नंबर सेव कर लिए और फिर रात में तीन चार बजे बैठकर चार व्हाट्स एप ग्रुप बना दिए। हरेक ग्रुप में 256 मेंबर्स थे।
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मैंने उस नौजवान व्यापारी को उन सभी ग्रुप का एडमिन बना दिया और मैंने वे सभी राजनैतिक ग्रुप छोड़ दिए। मैंने अपने बनाए वे ग्रुप भी छोड़ दिए। वह नौजवान उन ग्रूप्स में अपना माल सेल करने लगा। उसे कुछ आर्डर मिले। उसे कुछ दूसरे ग्रुप वालों ने भी जोड़ लिया। उसके पास सौ से ज़्यादा ग्रुप हो गए। फिर उसने फ़ेसबुक पर पेज बनाकर अपना माल बेचना शुरू कर दिया।
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सब्र के साथ एक साल की मेहनत के बाद वह व्हाट्स एप और फ़ेसबुक के ज़रिए सेल करके 50,000/- रूपये महीना कमाने लगा और यह इन्कम लगातार बढ़ रही है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
सब्र और शुक्र से आप अपने मक़सद में कामयाबी पा सकते हैं। अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में सब्र और शुक्र से कामयाबी और फ़लाह पाने का पूरा तरीक़ा बताया है। सो पवित्र क़ुरआन के तरीक़े पर जो भी चलेगा, बेरोज़गार और ग़रीब न रहेगा। वह सफल और अमीर बनेगा।
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ख़ास बात:
1. शुक्र का मतलब है क़द्र करना। अब तक आम लोग इसे दीनी बात समझकर रस्मी तौर पर अल्हम्दुलिल्लाह और अल्लाह का शुक्र है, कहते हैं। वे अल्लाह की तरफ़ से मिले हुए लोगों, मौक़ों और साधनों की क़द्र नहीं करते। आप इन्हें पहचानें और इनकी क़द्र करें।
2. सब्र का मतलब है डटे रहना। जब आप एक नया काम शुरू करते हैं तो उसकी आदत नहीं होती, उसका तजुर्बा नहीं होता और जिस काम की आदत नहीं होती, उसमें मुश्किलें बहुत आती हैं। हरेक काम के शुरू में यही होता है। इसकी वजह से बहुत लोग वह काम छोड़ देते हैं। इस तरीक़े से कामयाबी नहीं मिलती। जो लोग लगातार डटे रहते हैं। उन्हें उस काम की आदत पड़ जाती है। उन्हें कुछ तजुर्बा भी हो जाता है। इसके बाद उन्हें वह काम आसान लगने लगता है।
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जो भी आदमी दुनिया में कहीं अपनी मेहनत का सुफल पा रहा है, सब्र और शुक्र की वजह से ही पा रहा है। चाहे उसे पता न हो लेकिन वह इस्लाम पर चल रहा होता है। सब्र और शुक्र सफलता का क़ुदरती क़ानून है। लोगों ने इसे सिर्फ़ दीन और मज़हब तक सीमित समझ लिया है। हक़ीक़त में यह क़ुदरती क़ानून ज़िन्दगी को जीने लायक़ बनाता है।
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अब फिर लोकसभा चुनाव 2019 आ रहे हैं।
मैंने सोचा कि मैं यह कामयाब तजुर्बा इस मुल्क के सब धर्म के सारे नौजवानों को बता दूँ ताकि आप भी सोचें कि आप इस शुभ अवसर से शुभ लाभ कैसे उठा सकते हैं?

Saturday, February 2, 2019

Peer Pressure: सबसे बड़ी जेल से मुक्ति का तरीक़ा क्या है? Dr. Anwer Jamal


कह दो, "हर एक अपने ढब पर काम कर रहा है, तो अब तुम्हारा रब ही भली-भाँति जानता है कि कौन अधिक सीधे मार्ग पर है।"
पवित्र क़ुरआन 17:84

सोसायटी सराहना (स्तुति) और मज़म्मत (निंदा) के ज़रिए लोगों के नज़रिए को कन्ट्रोल करती है।
मेरे साथ हिन्दु, मुस्लिम, आर्य समाजी और नास्तिक लोग इंटरनेट पर लिखित रूप में बद्तमीज़ी कर चुके हैं। यहां तक कि कुछ दावती साथी भी लेकिन मैं उनकी निंदा, स्तुति और मान्यता की परवाह किए बिना वही कहता रहा, जिसे मैंने अपनी तहक़ीक़ में और प्रैक्टिकल लाईफ़ में हक़ और फ़लाहबख़्श पाया।
इस्लाम के मुबल्लिग़ दाई के लिए सबसे ज़रूरी गुण यह  है कि
'उसकी नज़र में सराहना (स्तुति) और मज़म्मत (निंदा) बराबर हो जाए।'
इसी के बाद वह अपने साथियों के और अपनी  सोसायटी के दबाव से आज़ाद होकर उस बात का प्रचार कर सकता है, जिसे वह दिल से सच मानता है।
मुझे यह तालीम इस्लामी शरीअत के पाबंद सूफियों से पहुंची है। मैंने इसकी प्रैक्टिस की तो मुझे इससे फ़ायदा हुआ। मुझे यह पता चला कि हमारे साथी और हमारे समाज के लोग Peer Pressure से लोगों को ग़ुलाम बनाए रखते हैं।
आप उनकी पसंद की बात करते हैं तो वे आपकी तारीफ़ करते हैं। इससे आप उनकी पसंद की बातें और ज़्यादा करते और आप उन्हें वे बातें नहीं बताते, जो उन्हें नापसंद हैं।
जब आप उनकी पसंद के ख़िलाफ़ बोलते हैं तो वे आपकी निंदा करते हैं, आपको बहका हुआ और पागल कहने लगते हैं। वे आपकी मज़ाक़ उड़ाते हैं। वे समाज में आपकी छवि बिगाड़ते हैं और आपकी इज़्ज़त पर हमले करते हैं ताकि आप डर जाएं और अपनी बात कहना बंद कर दें।
जो लोग अपने साथियों से और अपने समाज में अपनी सराहना चाहते हैं और उनके बीच अपनी मान्यता बनाए रखना चाहते हैं, वे लोगों के बुरे बर्ताव से डर कर ऐसी बातें नहीं कहते, जिन्हें वे अपनी आत्मा में सच मानते हैं। नतीजा यह होता है कि
वे समाज में प्रचलित नज़रियों और रस्मों के ग़ुलाम बदस्तूर बने रहते हैं और इसी हाल में वे मर जाते हैं।
आप ज़हनी (मानसिक) गुलामी से तभी मुक्त हो सकते हैं जबकि आपकी नज़र में सराहना (स्तुति) और मज़म्मत (निंदा) बराबर हो जाए।
जो नौजवान लड़के नए नए बैनर तले दावती काम कर रहे हैं, वे दूसरों को दिल खोलकर अपने मैसेज पर ग़ौर करने और साथ मिलकर काम करने की दावत देते हैं लेकिन दूसरे मुस्लिमों के बारे में ख़ुद उनकी अपनी राय यही होती है कि हम बढ़िया तरीक़े पर हैं। अल्लाह हमें ईनाम देगा और बाक़ी मुस्लिम, जो दावते दीन का काम नहीं करते, अल्लाह इन्हें मार देगा या सख़्त अज़ाब देगा। ऐसे लोगों को सच्चे सूफियों की दावती तरबियती हिकमत और उनके अच्छे अख़्लाक़ को ज़रूर देखना चाहिए।
आज नई नस्ल के लिए सच्चा सूफ़ी देखना इतना मुश्किल है, जितना उनके बिना मिलावट का असली दूध पीना।  जिन लोगों ने सच्चे सूफ़ी की कल्याणकारी सोहबत नहीं पाई, वे तसव्वुफ़ का मतलब आम तौर से क़ब्र परस्ती, क़व्वाली और तावीज़ गंडे करना समझते हैं। और वे तसव्वुफ़ के नाम से ही बिदकते हैं।
ऐसे लोग, ग़म, डर, लालच और शक से आज़ाद नहीं हो पाते। वे ज़िन्दगी भर नहीं जान पाते कि
उनके साथी, उनके पेशवा और ख़ुद उनका अपना नफ़्स उनका 'इलाह' बना हुआ है और वे उसके बंदे और ग़ुलाम बने हुए हैं।
मुझे यह तालीम सूफियों से पहुंची है कि 'ला इलाहा इल्-लल्लाह' के ज़िक्र से इन बातिल माबूदों की नफ़ी (इन्कार) भी मतलूब है, जो हमारे साथियों और हमारे समाज के पेशवाओं के रूप में हमें घेरे रहते हैं और वे हमें सच कहने से रोकते हैं।
हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की हिकमत और उनके रूहानी रहस्यों को हम तक पहुंचाने में सूफियों का बड़ा और बुनियादी रोल है। सूफ़ी आलिमों ने अपने दिल में आने वाले वसवसों और जज़्बों को बहुत बारीकी से पहचानने में अनोखी महारत हासिल की है।
इल्म रखने वाले लोग यह बात जानते हैं कि हर फ़न (आर्ट) की तरह तसव्वुफ़ में भी नाक़िस और कम फ़हम के लोग शामिल हुए, उनमें से जिनकी की इस्लाह हो गई, वे कामिल हो गए और कुछ रास्ते में ही रह गए।
इनमें से कुछ लोगों का मक़सद रब पाने से ज़्यादा रोटी और इज़्ज़त पाना था। कुछ दूसरे लोगों की चाहतें कुछ और थीं। वे मुज्तहिद इमाम सूफियों से अलग रास्ते पर चल पड़े।
तसव्वुफ़ एक फ़न है, जिसकी प्रैक्टिस इस्लामी शरीअत के साथ की जा सकती है।
इस्लामी अक़ीदों और मान्यताओं के प्रचार में भी तसव्वुफ़ से मदद मिलती है।
एक बड़ी तादाद ऐसी है, जो ख़ुद को इमाम अबू हनीफा र., शाह वलीउल्लाह र., मौलाना थानवी र., आला हज़रत र., और हुसैन अहमद मदनी र. जैसे सूफ़ी आलिमों का फ़ोलोवर ज़ाहिर करते और फिर भी वे अपने मस्लक से अलग राय रखने वालों की मज़ाक उड़ाते हैं और उनसे बद-अख़्लाक़ी से पेश आते हैं। वे यह नहीं देख पाते कि ऐसा करके उनकी निस्बत इन बुज़र्गों से तो क्या क़ायम होगी, नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से भी बाक़ी बचेगी या नहीं?
حضور نبی اکرم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم نے بزرگوں کی عزت و تکریم کی تلقین فرمائی اور بزرگوں کا یہ حق قرار دیا کہ کم عمر اپنے سے بڑی عمر کے لوگوں کا احترام کریں اور ان کے مرتبے کا خیال رکھیں۔ آپ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم نے فرمایا :

ليس منا من لم يرحم صغيرنا ويؤقر کبيرنا.
’’وہ ہم میں سے نہیں جو ہمارے چھوٹوں پر رحم نہ کرے اور ہمارے بڑوں کی عزت نہ کرے۔‘‘
1. ترمذي، السنن، کتاب البر والصلة، باب ما جاء في رحمة الصبيان، 4 : 321، 322، رقم : 1919، 1921 2. ابويعلي، المسند، 7 : 238، رقم : 4242 3. ربيع، المسند، 1 : 231، رقم : 582
Peer Pressure का बेहतरीन इलाज
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तरीक़ा पीयर प्रेशर का बेहतरीन इलाज है। सीरते नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक बहुत मशहूर वाक़िआ है कि जब हज़रत मुहम्मद का कल्याणकारी सन्देश तेज़ी से फैलने लगा तो उनके विरोधी पुरोहित और लोगों को अपना ग़ुलाम बनाने वाले सरदार दमन और हिंसा करने लगे। पैग़म्बर मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तब भी अपने कल्याणकारी काम करते रहे।  उनके विरोधी खिन्न हो कर उनके चाचा हज़रत अबू तालिब के पास पहुंचे और औरत, दौलत और बादशाही का का लालच देते हुए डराया कि या तो वे हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने दीन के प्रचार से रोकें या फिर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को संरक्षण देना बंद कर दें वर्ना सबको बुरा अंजाम भुगतना होगा। हज़रत अबू तालिब ने नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने हालात समझाने की कोशिश की लेकिन नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे साफ़ साफ़ कह दिया कि
“अगर मेरे एक हाथ में चाँद और दूसरे हाथ में सूरज भी रख दिया जाए तो भी में अल्लाह के सन्देश को फैलाने से खुद को रोक नहीं सकता. अल्लाह इस काम को पूरा करवायेगा या मैं खुद इस पर निसार (क़ुर्बान) हो जाऊँगा.”
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ऐसे बहुत से वाक़िआत सीरत की किताबों में भरे हुए हैं। इन सबको बार बार पढ़ने से आपको वह हिदायत और हिम्मत मिलती है, जो आपको समाज के झूठे ख़ुदाओं और बातिल माबूदों से मुक्त करती है।
यह लेख मैंने मुस्लिमों को peer pressure के बारे में बताने के लिए लिखा है लेकिन इससे दूसरे धर्म के लोग भी फ़ायदा उठा सकते हैं। वे भी देख सकते हैं कि उनके संप्रदाय के पुरोहित और सामाजिक संगठनों के मुखिया कैसे उनकी सोच के पहरेदार और ठेकेदार बने हुए हैं!
आप अपना कल्याण चाहते हैं तो उनकी निंदा, स्तुति और मान्यता की परवाह न करें। आप उनके दबाव में न आएं। आप लालच और डर से निकलें।
आप वही बात मानें, जो सच हो और आपके लिए इस ज़िन्दगी में और परलोक में कल्याणकारी हो।
आप सबसे वही बात कहें जो आपके ज्ञान और तजुर्बे में सच हो और सबके लिए कल्याणकारी हो क्योंकि यही सच्चे दीन धर्म की बात है।
जो लोग अपने आकाओं के हुक्म पर ग़ुन्डई करते हैं और लोगों को सच्ची और कल्याकारी बात कहने से रोकते हैं, वे भी बार बार आपकी बात सुनेंगे तो उनमें भी जागरूकता आती चली जाएगी कि उनके आक़ा उन्हें कैसे अपना मानसिक दास बनाए हुए हैं?