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Sunday, September 20, 2020

वेद और उपनिषद में भी है सबके इलाह अल्लाह का नाम

अल्लाह नाम भी हिन्दुओं के लिए अजनबी नहीं है। अल्लोपनिषद में अल्लाह नाम आया है। अल्लोपनिषद को सनातनी मानते हैं।

सनातनियों के विपरीत चलने वाले जो थोड़े आर्य से समाजी अल्लोपनिषद को नहीं मानते। वे इस नाम में समाहित ‘इलाह‘ को थोड़े अंतर के साथ वेद में भी देख सकते हैं लेकिन वहां भी इसका अर्थ पूज्य ही है।

ऋग्वेद में ईश्वर के लिए जिन नामों को प्रयोग हुआ है, उनमें से एक नाम ‘इला‘ है जिसका मूल तत्व ‘इल‘ या ‘ईल‘ है और जिसका अर्थ है पूजा करना, स्तुति करना। ‘ईल्य‘ का धात्वर्थ है ‘पूजनीय‘। ऋग्वेद के बिल्कुल शुरू में ही यह शब्द प्रयुक्त हुआ है जिसका स्पष्ट अर्थ है कि ‘हे अग्नि ! तू पूर्व और नूतन, छोटे और बड़े सभी के लिए पूजनीय है। तुझे केवल विद्वान ही समझ सकते हैं।‘ (ऋ. 1:1:1 ) 

यह नाम इतना पुरातन है कि लगभग 6 हज़ार साल पहले सुमेरिया की भाषा में ‘ईल‘ शब्द परमेश्वर के लिए बोला जाता था। सुमेरियन नगर ‘बाबिलोन‘ शब्द दरअस्ल ‘बाबेईल‘ था अर्थात ईश्वर का द्वार, हरिद्वार । यही वह शब्द है जो किसी न किसी रूप में इब्रानी, सुरयानी तथा कलदानी भाषाओं में ईश्वर के अस्तित्व के लिए इस्तेमाल होता आया है। जिस वुजूद के लिए यह नाम हमेशा से इस्तेमाल होता आया है वह सबका मालिक है। सबका मालिक एक है। वही एक सबका इलाह (पूज्य और वंदनीय) है।

अधिक जानकारी के लिए देखें:

http://vedquran.blogspot.com/2010/11/allah-in-indian-scriptures-anwer-jamal.html

वेदों में इब्राहीम अलैहिस्सलाम के नगर 'उर' का वर्णन है

वेद का सबसे पहला छंद गायत्री ऋषि विश्वामित्र को ब्रह्मा जी के निर्देशन में साधना करने पर मिला था।

वेद के BARAHAMA जी अर्थात् #ABRAHAM
के शहर 'उर' का नाम वेद में मौजूद है। नाम के अक्षरों में भी समानता है। एक अक्षर A को आगे पीछे करने से एक  नाम के दो नाम बन जाते हैं।
इराक़ के उर नगर में सांप के विष की चिकित्सा करने वाले वैद्य को
उर्गुला
और उर नगर की सुंदर स्त्री को
उर्वशी
कहते थे।
बाद में उर्वशी नाम दूसरे देशों में भी चला गया तो भारत में भी वेद आ गए और इस तरह भारत में उर्वशी नाम भी आ गया।

ब्रह्मा जी वैदिक देवता हैं। ब्रह्मा जी अर्थात् अब्राहम की संतान अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते कश्मीर में आकर आबाद हुई थी। जिन्हें वैदिक लोग देवता कहते थे। इसीलिए कश्मीर को पुराणों में स्वर्ग कहा गया है। अब्राहम के वंशज फ़िलिस्तीन से अपने साथ ज़ैतून लाए थे। वे आज भी कश्मीर में ज़ैतून की खेती करते हैं।
🌿🌿🌿
वे सब देवता आज मुस्लिम हैं।
स्वर्ग में इस्लाम है।
ईरान का अर्थ आर्यों का स्थान है।
ईरान में इस्लाम है।
आज आर्य इस्लाम के रक्षक हैं।
देवता मुस्लिम, आर्य मुस्लिम।
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Friday, September 11, 2020

ओंकार का सही प्राकृतिक उच्चारण क्या है?

वैदिक धर्म में ऊँ का इतना अधिक महत्व है कि हरेक शुभ कार्य में सबसे पहले इसका उच्चारण करते हैं। इसकी महिमा और इसकी शक्ति बताते हुए कहा गया है कि

हां, यह शब्दांश ब्रह्म है,
यह सबसे ऊंचा शब्द है
वह जो इस उच्चारण को जानता है,
वह चाहे जो चाहे, उसका है।
– कठो उपनिषद, 1.2.15-1.2.16
एक आदमी, जो ऊँ का सही उच्चारण जानता है। वह जो चीज़ चाहे, वह चीज़ उसकी है। अब एक आदमी स्वयं चेक करके देख सकता है। वह अपनी ज़रूरत की किसी चीज़ को चाहे और ऊँ का उच्चारण करे। यदि वह चीज़ उसे मिल जाए तो उसका उच्चारण सही है। यदि सबको उनकी इच्छित वस्तु मिल जाया करती तो आज भारत में अभाव का रोना इतने अधिक लोग न रोते। ऊँ का जाप करने वाले अरबों अभावग्रस्त लोग इस तथ्य का प्रमाण हैं कि वे ऊँ का सही उच्चारण नहीं जानते। वैदिक पंडित ऊँ का संस्कृत उच्चारण करते हैं प्राकृतिक नहीं है, जोकि प्रकृति में है। ऋषि प्रकृति में ऊँ की ध्वनि बैल और बादल की ध्वनि में सुनते थे। जिसका वर्णन वेद में आया है।

श्रीमद्भगवद्गीता में ओंकार को एकाक्षर ब्रह्म कहा है। प्राकृतिक उच्चारण वह है जिसमें केवल एक अक्षर का उच्चारण किया जाए जैसे कि बैल और गाय करते हैं। यदि बैल और गाय की तरह ऊँ का उच्चारण किया जाए तो ऊँ का सही प्राकृतिक उच्चारण किया जा सकता है। एक अक्षर को जब तीन अक्षर मानकर उच्चारण किया जाएगा तो वह प्राकृतिक उच्चारण न रहेगा और पूरा फल न देगा।

योग वशिष्ठ के अनुसार ऊँ का सही उच्चारण उस बच्चे के रोने के स्वर के समान है, जो ऊँ, ऊँ करके रोता है।
गाय और बैल जब रंभाते हैं तो 'ओं' 'ओं' शब्द निकालते हैं। जिसे पशुपालक आर्य शुभ और समृद्धि का प्रतीक मानते थे। जिस आर्य के घर के बाहर जितने अधिक गाय बैल होते थे, वह समाज में उतना अधिक समृद्ध और शक्तिशाली होता था। समृद्ध और शक्तिशाली आर्य हर ओर से 'ओं' की ध्वनि सुनते थे। वे स्वयं भी हर शुभ कार्य से पहले 'ओं' शब्द बोलने लगे। बाद में जब आर्यों ने लिपि में लिखना सीखा तो वे 'ओं' शब्द को 'ओम्' और 'ओउम्' लिखने लगे। ओम् का सही उच्चारण वह है, जो गाय और बैल बोलते हैं। बाद में जब वैदिक विद्वान प्रकृति के बजाय अपनी बनाई व्याकरण पर आश्रित होते गए तो अधिकतर पंडित ओम् का उच्चारण गाय और बैल से भिन्न करने लगे जैसा कि आजकल प्रचलित है।

वैदिक विद्वानों ने किसी समय 'ओं' को सृष्टिकर्ता परमेश्वर का नाम और किसी विद्वान ने तो निज नाम तक घोषित कर दिया। जबकि चारों वेदों में रचयिता परमेश्वर का कोई ऐसा नाम नहीं है, जो वेदों में केवल परमेश्वर के लिए प्रयुक्त हुआ हो और उसे ऋषियों ने किसी अन्य सृष्टि के लिए न बोला हो। अब ओंकार को परमेश्वर का नाम माना जाता है।
गाय बैल 'ओं' बोलते हैं। इससे 'ओं' शब्द का महत्व कम नहीं होता क्योंकि रचयिता परमेश्वर क़ुरआन में कहता है कि बादल, पहाड़, पशु-पक्षी और ज़मीन व आसमान की हर चीज़ रब की तस्बीह (गुणगान) करती है:
1.बादल की गरज उसका गुणगान करती है।
-सूरह अर्-रअद 13
2.“सातों आकाशों और धरती और जो कोई उनके बीच है सब उसकी तस्बीह करते हैं, और कोई चीज़ नहीं जो उसकी प्रशंसा के साथ तस्बीह न करती हो; परन्तु तुम उसकी तस्बीह को समझते नहीं !
-सूरह इसरा 44
3.और हमने दाऊद को अपनी तरफ से बड़ी नेमत दी थी ; (और हमने हुक्म दिया): हे पहाड़ों ! पक्षियों समेत उसके साथ (रुजू की) ‘तस्बीह’ में गुंजित हो !
-सूरह सबा 10
हम पवित्र क़ुरआन के आलोक में गाय बैल के शब्द 'ओं' को समझें तो वह रचयिता परमेश्वर का गुणगान (तस्बीह) है। अत: ऊँ रब की तस्बीह है।

Monday, September 7, 2020

Bhag Jhuthe Bhag: Click Bait Title Exposed

यह पोस्ट एक झूठे दावे की वीडियो के खण्डन में लिखी गई है। सबसे पहले पेश है वह वीडियो:

https://youtu.be/uwJZxjmvAPE


मेरा जवाब:

इंसान को पैदा करने वाले रब ने पवित्र क़ुरआन के रूप में एक ऐसी किताब दी है जिसमें इंसान के व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में फ़लाह और कल्याण पाने का क़ानून बयान किया गया है। वह किताब भविष्यवाणियां भी करती है। वह ऐसे बहुत से गुणों से भरपूर है। अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में फ़रमाया है कि पवित्र क़ुरआन जैसी किताब लिखना इंसानों के बस का काम नहीं है।
पैग़म्बर मुहम्मद साहब ने सब लोगों को पवित्र क़ुरआन सुनाया। उनकी बीवियों, बेटियों,  दामादों और नवासों ने पवित्र क़ुरआन को रब का संदेश माना। उसे उनके दोस्तों ने माना। पवित्र क़ुरआन वह किताब है जिसे पैग़म्बर मुहम्मद साहब के दुश्मनों ने भी उनका दोस्त बनकर माना। यहां तक कि जो लोग मुहम्मद साहब से लड़े और पवित्र क़ुरआन का जीवन भर विरोध करते हुए मर गए, वे दुश्मन भी हमेशा मोहम्मद साहब को सच्चा इंसान मानते रहे। उनके दुश्मन भी अपनी दौलत अमानत के रूप में उनके पास उनकी सच्चाई के कारण रखवाते रहे।
पैग़म्बर मुहम्मद साहब की सच्चाई की वजह से ही रब का सच्चा कलाम उनके दिल पर उतरा और उनकी सच्चाई की वजह से ही लोगों ने पवित्र क़ुरआन को माना और उन्होंने अपने माल और अपनी जानों की कुर्बानियां दीं। पैग़म्बर मोहम्मद साहब ने क़ुरआन को फैलाया। आज क़ुरआन हर देश के क़ानून का हिस्सा है। अमेरिका हो या भारत हो या कोई अन्य देश हो सब देशों ने पवित्र क़ुरआन के कई कानूनों को कल्याणकारी देखकर न्याय और शाँति व्यवस्था के लिए अपने देश का क़ानून बनाया है। आज पूरी दुनिया में इस्लाम को एक अरब 53 करोड़ मुस्लिम मानते हैं और मुस्लिम के अलावा भी अन्य धर्मों के करोड़ों लोग क़ुरआन की शिक्षाओं को अपनी भलाई के लिए मानते हैं। आज सब देशों के लोग पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं को अपने देश के संविधान के रूप में मानते हैं। चाहे लोगों को पता हो या पता न हो लेकिन आज पवित्र क़ुरआन लोगों की रोज़ाना की ज़िंदगी में किसी न किसी रूप में शामिल है। पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं में अपनी भलाई देखकर आज हर देश‌ की हर भाषा में लोग इसे पढ़ रहे हैं। आज हर हर शहर में पवित्र क़ुरआन मौजूद है। दुनिया की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली किताब पवित्र क़ुरआन है। पवित्र क़ुरआन की यह ख़ासियत है कि इसे लाखों लोगों ने पूरा याद किया है। दूसरी किसी किताब के इतने हाफ़िज़ और कंठस्थी नहीं हैं।
पवित्र क़ुरआन का विरोध करने वाले दुश्मनों ने पवित्र कुरआन जैसी किताब लिखने की कोशिश की लेकिन वे क़ुरआन जैसी किताब न लिख सके। जिस पर वे खुद चले हों या जिस पर उनकी बीवियां, बेटियां, दामाद, ससुर, दोस्त और उनके मानने वाले चले हों। पैग़म्बर मुहम्मद साहब के दुश्मन बहुत बड़े सियासी लीडर थे और वे अपने कबीलों के लिए क़ानून बनाते रहते थे। तब भी वे कोई ऐसी किताब न लिख सके जिसे वे क़ुरआन जैसी किताब बता देते‌। उनकी लिखी किसी किताब को पढ़कर उनके दुश्मन उनके दोस्त नहीं बने।  उनकी लिखी कोई किताब दुनिया के हर देश और हर शहर में आज मौजूद नहीं है जैसे कि पवित्र क़ुरआन मौजूद है। आज पैग़म्बर मुहम्मद साहब के दुश्मनों का नाम केवल इसलिए जाना जाता है कि वे पवित्र क़ुरआन का विरोध करते थे क्योंकि पवित्र क़ुरआन लोगों को चौधरियों की पूजा से, मूर्तिपूजा से रोकता है। पवित्र क़ुरआन सरदार चौधरियों को कमज़ोरों पर ज़ुल्म करने से मना करता है और वह अमीर लोगों के माल में बेघर, अनाथों और ग़रीबों का हक़ ठहराता है। जिसे मक्का के सरदार मानना नहीं चाहते थे। वे दूसरों को अपने बराबर खड़े होने देना नहीं चाहते थे। वे मूर्ति पूजा के चढ़ावे से वंचित होना नहीं चाहते थे। वे कमज़ोरों को दबाकर उनका माल हड़प लेते थे। वे बेघर, अनाथों और ग़रीबों को अपने माल में हिस्सा नहीं देना चाहते थे। वे ज़ालिम सरदार आज अपने साहित्य या अपने रचनात्मक कामों के लिए याद नहीं किए जाते। ऐसे सख़्त दुश्मनों ने भी कभी यह दावा न किया कि उन्होंने पवित्र क़ुरआन जैसी कोई किताब बनाई है।
आज मैंने एक मित्र के कहने पर एक वीडियो देखी। जिसमें एक लौंडा अपनी पहचान छिपाकर यह दावा कर रहा है कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विरोधियों ने पवित्र क़ुरआन जैसी किताब उनके सामने ही बना ली थी। यह एक बिल्कुल झूठा दावा है। इसे झूठा साबित करने की ज़रूरत भी नहीं है। बस इतना कह देना काफ़ी है कि
'अच्छा, अगर नबी मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विरोधियों ने पवित्र क़ुरआन जैसी कोई किताब लिखी थी तो लाओ उस किताब को हमें दिखाओ। 
उस किताब के लेखकों का नाम बताओ।
उस किताब की शिक्षाएं और कानून बताओ। वह किताब कमज़ोरों और गरीबों का भला करने के लिए क्या शिक्षा देती है?, उसके बारे में बताओ। उस किताब के लेखक का, उसके परिवार का, उसके दोस्तों का और उस किताब को सच्चा मानने वालों का जीवन दिखाओ ताकि हम देख सकें कि क्या वाक़ई वह किताब पवित्र क़ुरआन की तरह लोगों के दिलों में याद और नक़्श हो जाती है?
क्या वाक़ई वह किताब भी क़ुरआन की तरह लोगों का नज़रिया बदलकर उनका जीवन बदलती है?
क्या वह किताब भी भविष्यवाणी करती है और वह बाद में सच साबित होती है?, जैसे कि अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के द्वारा मक्का फ़तह होने की भविष्यवाणी है और बाद में वह भविष्यवाणी पूरी हुई।
क्या नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विरोधियों के द्वारा भी अपनी किताब में अपने द्वारा मदीना का विजेता बनने की भविष्यवाणी की गई थी जैसा कि वे कहते थे और क्या उस किताब की भविष्यवाणी पवित्र क़ुरआन की भविष्यवाणी की तरह पूरी हुई?'
बस यह सुनते ही झूठे दावेदार भाग खड़े होंगे और वे अपने दिल में ख़ुद से कहेंगे: 'भाग झूठे भाग'
क्योंकि न तो नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विरोधियों ने पवित्र क़ुरआन जैसी किताब लिखी थी और न वे उस किताब को आज दिखा सकते हैं। उनके पास ऐसी कोई किताब नहीं है जिसे वे अपने दावे के सुबूत में दिखा सकें। वे झूठे लोग ख़ुद क़ुरआन जैसी किताब लिखने में नाकाम होने के बाद यह दावा कर रहे हैं कि पवित्र क़ुरआन जैसी किताब नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विरोधियों ने तभी लिख दी थी। अगर लिख दी थी तो पवित्र क़ुरआन आज भी बाक़ी है और वह किताब तभी क्यों मिट गई?
जो किताब ख़ुद को क़ुरआन की तरह बाक़ी न रख सकी तो वह किताब पवित्र क़ुरआन जैसी तो न हुई!
ये झूठे धोखेबाज़ लोग आम भोले शरीफ़ मुस्लिमों के ईमान में ख़लल और फ़साद डालने के लिए बिना सुबूत के सिर्फ़ झूठे दावे करते हैं। वे कहते हैं कि हम इस्लाम छोड़ चुके हैं। जबकि हक़ीक़त में ये दूसरे धर्म के बेरोज़गार लोग हैं, जिनसे दुकान, खेत और कारख़ाने में मेहनत करके पिज़्ज़ा पेप्सी नहीं खाया जाता। सो ये चैनल खोल कर बकर बकर कुछ भी बोल देते हैं और लाईक कमेंट बटोरने के चक्कर में बहुत बदतमीज़ी करते हैं। जिससे इनकी सोच और इनकी गिरावट का पता चलता है।  मैं इनके लिए वैसे शब्द नहीं बोल रहा हूँ जैसे ये अपनी वीडियो में अल्लाह और उसके रसूल के बारे में टीआरपी बढ़ाने के लिए बोलते हैं। 
बहरहाल इनके ज़रिए इस्लाम का नकारात्मक प्रचार होता है। जिससे लोग इस्लाम का ओपिनियन जानने के लिए उत्सुक हो जाते हैं और जब उनके सामने इस्लाम के प्रचारक इस्लाम का कांसेप्ट रखते हैं तो वे इस्लाम क़ुबूल कर लेते हैं। हमें उम्मीद है कि नक़ाब पहनकर इस्लाम को कोसने वाले दूसरे धर्म के ये लौंडे भी एक दिन इस्लाम क़ुबूल कर लेंगे जैसे कि 
आमीन।

Sunday, September 6, 2020

ख़ुदा ने इतने सारे धर्म मत क्यों बनने दिए?

 


मैंने सत्यानंद महाराज सत्य जी की पोस्ट पर जवाब में यह कमेंट किया:

ख़ुदा ठोस नहीं है तो उसके बारे में कोई जवाब ठोस कैसे हो सकता है?
क्या कभी आपने पूूूरी मानव जाति को #अल्बोनियम मैटल के बारे में  सोचते हुए सुना है?
नहीं!
क्यों?
क्योंकि अल्बोनियम मैटल का कोई वुजूद नहीं है। पूरी मानव जाति किसी ऐसी चीज़ के बारे में नहीं सोच सकती जिसका वुजूद न हो।

दो चार लोग ज़रूर ऐसी चीज़ के बारे में सोच सकते हैं, जो न हो लेकिन पूरी धरती के अरबों आस्तिक और नास्तिक सब ख़ुदा परमेश्वर के बारे में सोचते हैं तो यह सोच ख़ुदा के होने का सुबूत है।
जितने लोगों ने ख़ुुुदा परमेश्वर के बारे में सोचा, उनकी सोच को जब लोगों ने लिखा तो उतने ही धर्म मत बन गए।
उन सबमें से एक दीन ख़ुदा का भेजा हुआ है।
वह दीन कौन सा है?
यह तय करना इंसान का काम है।
रब को इंसान की अक़्ल का इम्तेहान लेना है कि कौन सा इंसान सही दीन तक पहुंचता है।
इसीलिए उसने इतने सारे धर्म और दीन बनने दिए हैं।

जल छलका एक से दूजे में जाकर बना इंसान

जो न विचारे ख़ुद को कैसे पहचानेगा भगवान

-डा० अनवर जमाल