*आपका यक़ीन (core belief) आपके हालात के रूप में ख़ुद ब ख़ुद ज़ाहिर होता है*
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हिन्दू, हिन्दुस्तान, मुसलमान और ग़ैर मुस्लिम; आप ये चार शब्द कहना बंद कर दें तो मेहरबानी होगी।
1. हिन्दू
2. हिन्दुस्तान
3. मुसलमान और
2. ग़ैर मुस्लिम; ये चार अल्फ़ाज़ कहना ग़लत है और मुस्लिम समाज इन ग़लतियों का बहुत बुरा अंजाम भुगत रहा है लेकिन उसे इसका पता नहीं है क्योंकि उसे रब के क़ानूने क़ुदरत का इल्म नहीं है।
रब का क़ानूने क़ुदरत यह है कि आपके दिल का यक़ीन आपकी ज़िन्दगी के ज़ाहिरी हालात के रूप में ख़ुद ब ख़ुद रेफ़्लेक्ट होता है। आपके ज़ाहिरी हालात आपके दिल के अधीन (ताबै) हैं।
आज अच्छी बात यह है कि मुस्लिम समाज अपनी उन ग़लतियों पर ध्यान दे रहा है, जिनकी वजह से उसे ग़रीबी, नफ़रत और ख़ूनी हमलों का शिकार होना पड़ रहा है और उसे हिन्दुस्तान में अपनी नागरिकता और अपना आस्ताना बरक़रार रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
कुछ ग़लतियों को सब जान चुके हैं और उन पर सब लोग चर्चा कर रहे हैं जैसे मुस्लिम का फ़िरक़ों में बंट जाना।
...लेकिन कुछ ग़लतियां ऐसी हैं, जिनकी तरफ़ मुस्लिम समाज के ख़ास व आम लोगों का ध्यान तक नहीं जाता है जैसे कि हमने चार अल्फ़ाज़ का ज़िक्र ऊपर किया है।
जो लोग रब के क़ानूने क़ुदरत और कलामे इलाही की मारिफ़त कम रखते हैं, उनका इन बातों को अहमियत न देना नेचुरल है लेकिन इल्म में बड़ा दर्जा रखने वाले (रासिख़ून फ़िल्-इल्म) आलिम भी ये ग़लतियाँ करते हैं।
ऐसा होता है कि एक बात लोगों की नज़र में मामूली होती है लेकिन वह बात अल्लाह की नज़र में बड़ा वज़न रखती है यानि रब के क़ानूने क़ुदरत के मुताबिक़ उस बात के बड़े नतीजे सामने आते हैं।
रब का क़ानूने क़ुदरत यह है कि आपका दिल एक ज़मीन की तरह है और जिस बात में आप यक़ीन रखते हैं, आपका वह यक़ीन (Belief) एक बीज की तरह है। जब आप एक बात का पूरे दिल से यक़ीन करते हैं और उसे बार बार बोलते हैं तो फिर एक मुद्दत बाद वह बात हालात बनकर आपकी ज़िन्दगी का सच बन जाती है और ऐसा ख़ुद ब ख़ुद हो जाता है। जैसा आपका यक़ीन होता है, आप वैसी ही फ़सल काटते हैं।
आप अपने ज़ाहिरी हालात को बदलना चाहते हैं तो आपको अपने अन्दर के उस यक़ीन (Belief) को भी बदलना होगा, जिससे वे हालात बने हैं। आप इस मुल्क के हिन्दुस्तान होने का यक़ीन करने लगे और हिन्दुस्तान बोलने लगे तो एक मुद्दत बाद यह ख़ुद ब ख़ुद हिन्दुस्तान यानि हिन्दुओं का स्थान बन गया और मुस्लिमों का स्थान खत्म होने लगा। जब ऐसा होने लगा तो मुस्लिम चीख़ने लगे कि यह क्या हो गया!
यह वही हो गया, जो कुछ वे बोलते थे। उनके बोल अब हालात की शक्ल में उनके सामने आ चुके हैं।
मुस्लिम समाज इस मुल्क का नाम हिन्दुस्तान बोलता है। यह फ़ारसी भाषा का नाम है। फ़ारसी भाषा में हिन्दुस्तान शब्द का अर्थ है, हिन्दुओं का आस्ताना (स्थान)। ईरानी आर्यन्स ने इस मुल्क का नाम 'हिन्दुस्तान' रखा था। तब मुस्लिम इस देश में नहीं आए थे।
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह ने मुझे एक दिन देवबंद में अपने घर पर अपनी रिसर्च को सबक़ की शक्ल में पढ़ाते हुए मेरी कापी में लिखवाया था कि ईरानी आर्यन शब्दकोष में हिन्दू शब्द का अर्थ है: काला, ग़ुलाम और चोर।
यही वजह है कि बहुत से वैदिक पंडितों ने ख़ुद को हिन्दू कहलाना पसंद नहीं किया। शायद इसीलिए हिन्दुस्तान शब्द इन्डियन कांस्टीट्यूशन में दर्ज नहीं है।
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह ने यह भी बताया कि हिन्दू शब्द किसी अक़ीदे और मज़हब के लिए नहीं बोला जाता था लेकिन जब फ़ारसी बोलने वाले मुस्लिम इस मुल्क में आए तो वे हिन्दू लफ़्ज़ को मज़हबी आईडेंटिटी के लिए बोलने लगे और उन्होंने इस मुल्क में बहुत से अलग अलग मज़हब देखे और उन्हें उन सैकड़ों मज़हब के लोगों को उनके अलग अलग मज़हब के नाम के साथ याद रखना मुश्किल लगा तो उन्होंने अपनी आसानी के लिए उन सबको एक नाम 'हिन्दू' दे दिया। मुग़लों ने सरकारी रजिस्टरों में हर जगह उनके सैकड़ों मज़हबों को ख़ुद हिन्दू मज़हब लिखा।
इस तरह मुस्लिमों ने अपने नज़रिए में हिन्द के सैकड़ों मज़हबों के लोगों को एक मानकर उन्हें एक होने की बुनियाद दे दी। इसके साथ मुस्लिमों ने इस मुल्क को हिन्दुस्तान मानकर अपने नज़रिए में इस मुल्क को सिर्फ़ हिन्दुओं का आस्ताना तस्लीम किया और अपने नज़रिए में ख़ुद अपना आस्ताना खो दिया। जिसे एक मुद्दत बाद मुख़्तलिफ़ असबाब के ज़रिए रब के क़ानूने क़ुदरत के मुताबिक साकार होना ही था और वह अब हो रहा है। अब मुस्लिम विरोध और प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन उन्हें इसका शुऊर अब भी नहीं है कि यह सब कुछ हमारा ही किया धरा है। वे अब भी लगातार हिन्दू और हिन्दुस्तान शब्द बोल रहे हैं।
मुस्लिम समाज को अपनी ख़ैर मतलूब है तो मुस्लिम हिन्दू और हिन्दुस्तान शब्द बोलना बन्द कर दें और इसके बजाय कोई अच्छा और सच्चा नाम बोलें, जो मुस्लिमों को और सबको सपोर्ट करता हो।
अल्लाह के नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस मुल्क को हिन्द कहा जो कि एक अच्छा और सच्चा नाम है। यह नाम अपने अंदर एक पूरा नज़रिया है, जो हमें इस मुल्क में रहने, बसने और हर भला काम करने में सपोर्ट देता है।
इंडिया भी एक अच्छा नाम है और यह इंडियन कांस्टीट्यूशन में दर्ज भी है।
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ऐसे ही ग़ैर मुस्लिम एक ऐसा लफ़्ज़ है, जिसके दोनों लफ़्ज़ अरबी के हैं और दोनों लफ़्ज़ अलग अलग पवित्र क़ुरआन में सैकड़ों बार आए हैं लेकिन एक साथ एक बार भी नहीं आए। मुस्लिम शब्द के अपोज़िट ग़ैर मुस्लिम शब्द क़ुरआन और हदीस में कहीं नहीं आया।
...क्योंकि पवित्र क़ुरआन हिकमत (wisdom) से भरा है।
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मुस्लिम आलिमों ने एक नया लफ़्ज़ ईजाद किया 'ग़ैर मुस्लिम' और पूरी दुनिया के हज़ारों मज़हबों और सैकड़ों मुल्कों को अपने नज़रिए में एक कर दिया और फिर दुनिया जब उन पर एक साथ पिल पड़ी तो वे चीख़ने लगे कि यह क्या हो गया?
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ये उनका नज़रिया, उनका ईमान मुख़्तलिफ़ असबाब के ज़रिए उनके हालात के रूप में ज़ाहिर हो गया।
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*क्या हम मुसलमान हैं?*
उस (रब) ने इससे पहले तुम्हारा नाम मुस्लिम (आज्ञाकारी) रखा था...
-पवित्र क़ुरआन 22:78
मुस्लिमों ने रब का दिया अपना नाम ही बिगाड़ लिया। अपना नाम मुस्लिम से बिगाड़कर मुसलमान कर लिया और फिर क़ुदरती तौर पर ऐसे असबाब बने कि ख़ुद भी बिगड़ गये जबकि अल्लाह ने सूरह हुजुरात में नाम बिगाड़ने से रोका है। देखें पवित्र क़ुरआन 49:11
इल्म में पुख़्ता मुस्लिम आलिम भी अपनी तहरीर और तक़रीर में मुसलमान लफ़्ज़ धड़ल्ले से लिखते और बोलते हैं।
जैसे हिन्दू शब्द पारसियों ने दिया था, वैसे ही मुसलमान शब्द भी रब ने नहीं, पारसियों ने दिया है।
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इस लेख में आपके सामने हिन्दू, हिन्दुस्तान, मुसलमान और ग़ैर मुस्लिम पर विचार, एक साथ बिल्कुल पहली बार किया जा रहा है। इसलिए आप इस पर ज़रूर तवज्जो दें।
डा. अनवर जमाल का कहना है कि
इस्लाह (सुधार) मतलूब है तो
*शुरूआत दिल के नज़रिए की इस्लाह से करनी होगी।*
सबकॉन्शियस माइंड की रिप्रोग्रामिंग करनी होगी।
इसके बिना बाहर की कोशिशें उल्टे फल देंगी। जिससे ज़िल्लत और तबाही में इज़ाफ़ा हो सकता है।
अपने नज़रिए को सही करके मुनासिब हिकमत भरा और जायज़ ज़ाहिरी अमल मुसलसल करें, सब्र रखें। आपको सफलता ज़रूर मिलेगी।