इस लेख में सतीशचंद गुप्ता जी के सवाल और ऐतराज़ का जवाब है। आप यह याद रखें कि सतीश गुप्ता जी एक विद्वान हैं। देखें उनका लेख, जो उन्होंने फेसबुक पर लिखा है:
🙏अध्ययन और चिंतन🙏
#जन्नत_की_सैर ..!!
सुना है जन्नत में दूध और शहद की नदियां होगी ..परिंदों के लजीज़ व्यंजन होंगे...72 प्रकार की हूरें होगी, जवान, बेमिसाल हुस्नो-जमाल, नर्मों-नाजुक, शर्मिली आंखों वाली, मृगनयनी ..!!
हर प्रकार के सुरूर और लज्ज़तों के ढेर होंगे ..!!
दीबा और रेशम के कपड़े, सोने और बेशकीमती मोतियों के कंगन ..!!
बैठने-लेटने के लिए आरामदायक तकिएं और तख़्त होंगे ..!!
मोतियों जैसे खादिम ..!!
हर प्रकार के रसास्वादन, सौंदर्य, आकर्षण, ठाठबाट वहां सब होंगे ..!!
जो मनुष्य चाहेगा, सब कुछ मिलेगा ..!!
संक्षेप में कहा जाए तो जन्नत में हमारी खुशी बाह्य सामग्री, साधनों और सहारों की मोहताज होगी ?
वहां जो खुशी होगी, संतुष्टि होगी वह शारीरिक होगी, भौतिक होगी ..??
सवाल यहां यह है कि वह जन्नत ही क्या ..जहां सारी खुशियां दूसरों की मोहताज हो ??
साधनों की मोहताज हो ??
दूसरी बात यह कि बाह्य साधनों से आदमी को कभी खुशी और इतमीनान हासिल हो ही नहीं सकता ..!!
अगर जन्नत जैसी कोई जगह है तो वहां की खुशियां आत्मिक होनी चाहिए ..आंतरिक होनी चाहिए ..स्वयं की होनी चाहिए ..!!
यह तो निश्चित है कि हमें मृत्यु के पार जाना है, मगर ऐसी दुनिया में नहीं जहां शारीरिक सुख-भोग होंगे ..!!
हम केवल शरीर के तल पर सोचते हैं ..!!
मैं समझता हूं शरीर स्त्री-पुरूष होते हैं ..आत्मा स्त्री-पुरूष नहीं होती ..!!
जन्नत में हूरें ..??
कितनी बेतुकी, बेहूदी, घटिया और मूर्खतापूर्ण व्याख्या है जन्नत की ..??
....✍🌏
आदरणीय, सतीश गुप्ता जी ख़ुशी आज भी आंतरिक और आत्मिक है। केवल ख़ुशी ही नहीं बल्कि दिल का हरेक जज़्बा आज भी अंदर आत्मा में ही है।
अगर हम 'हिदायत' और सही समझ रखते हैं तो हमारी ख़ुशी बाहरी साधनों की मोहताज आज भी नहीं है। आपने ऐसे वाक़ये सुने होंगे कि एक आदमी देश के फ़ायदे के लिए ख़ुशी ख़ुशी मर गया या एक आदमी कम साधनों में या फ़क़ीरी हाल में भी ख़ुश और संतुष्ट रहा। उनकी समझ की वजह से ऐसा हुआ।
आस्ट्रेलिया के Nicholas James Vujicic के पास हाथ पैर तक नहीं हैं लेकिन वह ख़ुश है। ख़ुशी आज भी साधनों की मोहताज नहीं है।
जन्नत, फलदार पेड़ों का साया, मेहरबान सच्चे दोस्त, सुंदर प्रेमी जीवन साथी, रेशमी लिबास ऊँचे तख़्त, गद्दे, तकिये, सोने-चाँदी के ज़ेवर, काँच के बर्तन, पीने को भरपूर दूध, शहद, पवित्र पेय, खाने को भरपूर फल गोश्त, हमेशा की जवानी और सेहत, ख़िदमत को ख़ादिम, राजसी वैभव और हर तरह से सलामती और सुरक्षा ये सब इंसान की वे ख़्वाहिशें हैं, जो इस दुनिया में पूरी नहीं होतीं लेकिन ये किसी न किसी दर्जे में हर इंसान चाहता है। यह क़ानूने क़ुदरत है कि अगर आपके अंदर प्यास है तो कहीं पानी भी ज़रूर है और आपको उसे पीने का हक़ है।
इसी तरह अगर हरेक सेहतमंद और अक़्लमंद इंसान के दिल में एक वैभवशाली, आनंददायक और सलामती भरा जीवन जीने की इच्छा है और वह यहाँ ठुक पिट कर, ज़लील होकर अभाव में जी और मर रहा है तो यह एक नेचुरल बात है कि अगर उसकी मनोकामनाओं की तृप्ति इस लोक में न हो तो दूसरे लोक में; परलोक में हो क्योंकि इस यूनिवर्स में डिमांड एंड सप्लाई का रूल काम करता है।
यह एक असंभव बात है कि डिमांड हो और सप्लाई न हो।
अब आप आत्मा को समझें कि आत्मा अदृश्य और सीमाहीन है। अगर एक आत्मा के पास शरीर न हो तो यह कोई न जान पाएगा कि एक आत्मा कहां से शुरू हो रही है और कहां ख़त्म हो रही है?
एक आत्मा को अपनी खूबियां दूसरी आत्मा पर प्रकट करने के लिए शरीर की आवश्यकता है। एक शरीर ही आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है कि वह आत्मा कैसी है, क्या करती है और क्या चाहती है?
अगर कहीं बहुत सारी आत्माएं हैं और उनके पास शरीर नहीं है तो वे अपने समाज में कुछ भी रचनात्मक नहीं कर सकतीं। एक आत्मा को अपने गुण प्रकट करने के लिए शरीर की बहुत आवश्यकता है। जब भी आत्मा के पास शरीर होगा तो उस शरीर की कुछ आवश्यकताएं ज़रूर होंगी और उन आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन भी उस समाज में उस जगह पर ज़रूर होंगे।
अब आप समझ सकते हैं कि यह अक़्ल में आने वाली और बिल्कुल नेचुरल बात है कि
जन्नत में दूध और शहद की नदियां होंगी ..परिंदों के लजीज़ व्यंजन होंगे...72 प्रकार की हूरें होंगी, जवान, बेमिसाल हुस्नो-जमाल, नर्मों-नाजुक, शर्मीली आंखों वाली, मृगनयनी ..!!
हर प्रकार के सुरूर और लज्ज़तों के ढेर होंगे ..!!
दीबा और रेशम के कपड़े, सोने और बेशक़ीमती मोतियों के कंगन ..!!
बैठने-लेटने के लिए आरामदायक तकिए और तख़्त होंगे ..!!
मोतियों जैसे ख़ादिम ..!!
हर प्रकार के रसास्वादन, सौंदर्य, आकर्षण, ठाठबाट वहां सब होंगे ..!!
इन बातों को बुरा मानने की वजह यह है कि हमारे समाज में सेक्स संबंधों को बुरा और घिनौना काम माना गया है। हमारे समाज में सन्यास को और औरत से विरक्त रहने को बहुत ऊंचे दर्जे का अध्यात्म माना गया है और हजारों साल से सेक्स संबंधों को बुरा मानते रहने के कारण यह हमारे समाज के सामूहिक अवचेतन मन में बहुत गहराई तक बैठ गया है। लोग विवाह करते हैं और उसे पवित्र संबंध बताते हैं लेकिन फिर भी उनके मन में कहीं न कहीं उन संबंधों को लेकर कुछ अपराध बोध बना रहता है क्योंकि बचपन से ही इस काम को 'गंदा काम' बताया जाता है। हमारा समाज कुंठित है। वह एक बात अपने दिल में पाले हुए घूमता है और उससे विपरीत बात की सराहना करता है। जितने लोग 72 हूरों की बात पर मुस्लिमों की आलोचना करते हैं। आप उन्हें पोर्न मूवीज़ देखते हुए और फ़ेसबुक पर लड़कियों को इनबॉक्स मैसेज पर धिक्कार खाते हुए देख सकते हैं।
हो सकता है कि आज 72 हूरों की बात समझ में न आ पाए क्योंकि आज सभ्यता एक ऐसे दौर में पहुंच गई है जहां आदमी जंगलों और कुदरती माहौल से कटकर एक कमरे के दड़बे में जिंदगी गुज़ारने को मजबूर है। जिसमें एक बीवी और 4 बच्चों तक की गुंजाइश नहीं है। जहां घर बनाने के लिए काफ़ी माल देकर ज़मीन ख़रीदनी पड़ती है और फिर उसे बनाने सजाने में भी बहुत भारी ख़र्च आता है। जहां कमाई का साधन केवल जॉब या मज़दूरी है। जहां सुरक्षा के लिए पुलिस और सेना है।
आज के लोग अरब की उस दौर की परिस्थिति को नहीं समझ सकते, जब न बादशाह था, न सेना थी, न पुलिस थी और न कोई अदालत थी। बस क़बीले थे और बड़ा क़बीला कम संख्या वाले लोगों के क़बीले के लोगों पर हमला करके मर्दों को मार देता था और औरत और बच्चों को गुलाम बना लेता था। वह उनके घर लूट लेते थे, उनके बाग़ के मालिक ख़ुद बन कर बैठ जाते थे। जहां हर बात का फैसला ताकतवर तलवार से होता था। उस समाज में जीने के लिए और बाक़ी रहने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा लड़ाकों की ज़रूरत थी। जिसके लिए ज़्यादा संतान की ज़रूरत थी और ज़्यादा संतान पैदा करने के लिए ज़्यादा पत्नियों की जरूरत पड़ती थी। इसलिए कबीलों में ज़्यादा शादियां करने का रिवाज आम था। ज़्यादा शादियां क़बीले की सुरक्षा और आज़ादी की गारंटी होती थी। आज के दौर का आदमी उन बातों को पूरी तरह नहीं समझ सकता, जो बातें उस दौर के लोगों की मानसिकता को सामने रखकर कही गई थीं। इसलिए आज शीघ्रपतन के रोगियों को 72 हूरों की बातें बहुत अटपट लगती हैं जबकि उस दौर में 72 औरतों से विवाह करने का चलन मौजूद था। जो बात तब कही गई थी। वह तब के चलन के मुताबिक़ कही गई थी। यह बात समझने की ज़रूरत है। यह बात आपके लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए लिख दी है ताकि दूसरों का काम इसी लेख से चल जाए।
आपके लिए हम यह कहेंगे कि आपको 72 हूरें पसंद नहीं हैं तो आपको 72 हूरें नहीं मिलेंगी लेकिन आपकी पसंद से यह तय नहीं होगा कि दूसरों को भी वही मिलेगा जो आपको पसंद है।
हरेक को उसकी पसंद की चीज़ें मिलेंगी और यही होना भी चाहिए।
❤️❤️❤️
🙏अध्ययन और चिंतन🙏
#जन्नत_की_सैर ..!!
सुना है जन्नत में दूध और शहद की नदियां होगी ..परिंदों के लजीज़ व्यंजन होंगे...72 प्रकार की हूरें होगी, जवान, बेमिसाल हुस्नो-जमाल, नर्मों-नाजुक, शर्मिली आंखों वाली, मृगनयनी ..!!
हर प्रकार के सुरूर और लज्जतों के ढेर होंगे ..!!
दीबा और रेशम के कपड़े, सोने और बेशकीमती मोतियों के कंगन ..!!
बैठने-लेटने के लिए आरामदायक तकिएं और तख़्त होंगे ..!!
मोतियों जैसे खादिम ..!!
हर प्रकार के रसास्वादन, सौंदर्य, आकर्षण, ठाठबाट वहां सब होंगे ..!!
जो मनुष्य चाहेगा, सब कुछ मिलेगा ..!!
संक्षेप में कहा जाए तो जन्नत में हमारी खुशी बाह्य सामग्री, साधनों और सहारों की मोहताज होगी ?
वहां जो खुशी होगी, संतुष्टि होगी वह शारीरिक होगी, भौतिक होगी ..??
सवाल यहां यह है कि वह जन्नत ही क्या ..जहां सारी खुशियां दूसरों की मोहताज हो ??
साधनों की मोहताज हो ??
दूसरी बात यह कि बाह्य साधनों से आदमी को कभी खुशी और इतमीनान हासिल हो ही नहीं सकता ..!!
अगर जन्नत जैसी कोई जगह है तो वहां की खुशियां आत्मिक होनी चाहिए ..आंतरिक होनी चाहिए ..स्वयं की होनी चाहिए ..!!
यह तो निश्चित है कि हमें मृत्यु के पार जाना है, मगर ऐसी दुनिया में नहीं जहां शारीरिक सुख-भोग होंगे ..!!
हम केवल शरीर के तल पर सोचते हैं ..!!
मैं समझता हूं शरीर स्त्री-पुरूष होते हैं ..आत्मा स्त्री-पुरूष नहीं होती ..!!
जन्नत में हूरें ..??
कितनी बेतुकी, बेहूदी, घटिया और मूर्खतापूर्ण व्याख्या है जन्नत की ..??
....✍🌏
मेरा जवाब:
आदरणीय, सतीश गुप्ता जी ख़ुशी आज भी आंतरिक और आत्मिक है। केवल ख़ुशी ही नहीं बल्कि दिल का हरेक जज़्बा आज भी अंदर आत्मा में ही है।
अगर हम 'हिदायत' और सही समझ रखते हैं तो हमारी ख़ुशी बाहरी साधनों की मोहताज आज भी नहीं है। आपने ऐसे वाक़ये सुने होंगे कि एक आदमी देश के फ़ायदे के लिए ख़ुशी ख़ुशी मर गया या एक आदमी कम साधनों में या फ़क़ीरी हाल में भी ख़ुश और संतुष्ट रहा। उनकी समझ की वजह से ऐसा हुआ।
आस्ट्रेलिया के Nicholas James Vujicic के पास हाथ पैर तक नहीं हैं लेकिन वह ख़ुश है। ख़ुशी आज भी साधनों की मोहताज नहीं है।
जन्नत, फलदार पेड़ों का साया, मेहरबान सच्चे दोस्त, सुंदर प्रेमी जीवन साथी, रेशमी लिबास ऊँचे तख़्त, गद्दे, तकिये, सोने-चाँदी के ज़ेवर, काँच के बर्तन, पीने को भरपूर दूध, शहद, पवित्र पेय, खाने को भरपूर फल गोश्त, हमेशा की जवानी और सेहत, ख़िदमत को ख़ादिम, राजसी वैभव और हर तरह से सलामती और सुरक्षा ये सब इंसान की वे ख़्वाहिशें हैं, जो इस दुनिया में पूरी नहीं होतीं लेकिन ये किसी न किसी दर्जे में हर इंसान चाहता है। यह क़ानूने क़ुदरत है कि अगर आपके अंदर प्यास है तो कहीं पानी भी ज़रूर है और आपको उसे पीने का हक़ है।
इसी तरह अगर हरेक सेहतमंद और अक़्लमंद इंसान के दिल में एक वैभवशाली, आनंददायक और सलामती भरा जीवन जीने की इच्छा है और वह यहाँ ठुक पिट कर, ज़लील होकर अभाव में जी और मर रहा है तो यह एक नेचुरल बात है कि अगर उसकी मनोकामनाओं की तृप्ति इस लोक में न हो तो दूसरे लोक में; परलोक में हो क्योंकि इस यूनिवर्स में डिमांड एंड सप्लाई का रूल काम करता है।
यह एक असंभव बात है कि डिमांड हो और सप्लाई न हो।
अब आप आत्मा को समझें कि आत्मा अदृश्य और सीमाहीन है। अगर एक आत्मा के पास शरीर न हो तो यह कोई न जान पाएगा कि एक आत्मा कहां से शुरू हो रही है और कहां ख़त्म हो रही है?
एक आत्मा को अपनी खूबियां दूसरी आत्मा पर प्रकट करने के लिए शरीर की आवश्यकता है। एक शरीर ही आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है कि वह आत्मा कैसी है, क्या करती है और क्या चाहती है?
अगर कहीं बहुत सारी आत्माएं हैं और उनके पास शरीर नहीं है तो वे अपने समाज में कुछ भी रचनात्मक नहीं कर सकतीं। एक आत्मा को अपने गुण प्रकट करने के लिए शरीर की बहुत आवश्यकता है। जब भी आत्मा के पास शरीर होगा तो उस शरीर की कुछ आवश्यकताएं ज़रूर होंगी और उन आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन भी उस समाज में उस जगह पर ज़रूर होंगे।
अब आप समझ सकते हैं कि यह अक़्ल में आने वाली और बिल्कुल नेचुरल बात है कि
जन्नत में दूध और शहद की नदियां होंगी ..परिंदों के लजीज़ व्यंजन होंगे...72 प्रकार की हूरें होंगी, जवान, बेमिसाल हुस्नो-जमाल, नर्मों-नाजुक, शर्मीली आंखों वाली, मृगनयनी ..!!
हर प्रकार के सुरूर और लज्ज़तों के ढेर होंगे ..!!
दीबा और रेशम के कपड़े, सोने और बेशक़ीमती मोतियों के कंगन ..!!
बैठने-लेटने के लिए आरामदायक तकिए और तख़्त होंगे ..!!
मोतियों जैसे ख़ादिम ..!!
हर प्रकार के रसास्वादन, सौंदर्य, आकर्षण, ठाठबाट वहां सब होंगे ..!!
इन बातों को बुरा मानने की वजह यह है कि हमारे समाज में सेक्स संबंधों को बुरा और घिनौना काम माना गया है। हमारे समाज में सन्यास को और औरत से विरक्त रहने को बहुत ऊंचे दर्जे का अध्यात्म माना गया है और हजारों साल से सेक्स संबंधों को बुरा मानते रहने के कारण यह हमारे समाज के सामूहिक अवचेतन मन में बहुत गहराई तक बैठ गया है। लोग विवाह करते हैं और उसे पवित्र संबंध बताते हैं लेकिन फिर भी उनके मन में कहीं न कहीं उन संबंधों को लेकर कुछ अपराध बोध बना रहता है क्योंकि बचपन से ही इस काम को 'गंदा काम' बताया जाता है। हमारा समाज कुंठित है। वह एक बात अपने दिल में पाले हुए घूमता है और उससे विपरीत बात की सराहना करता है। जितने शीघ्रपतन के रोगी 72 हूरों की बात पर मुस्लिमों की आलोचना करते हैं। वे ख़ुद उन्हें फ़ेसबुक पर 72 लड़कियों को इनबॉक्स मैसेज करते हैं और पोर्न मूवीज़ देखते हैं। आप उनमें से कुछ को फ़ेसबुक पर लड़कियों से धिक्कार खाते हुए देख सकते हैं। ये ग़ैर ज़िम्मेदार लड़के दस बारह लड़कियों को गर्ल फ़्रेंड बनाए हुए भी देखे जा सकते हैं।
हो सकता है कि आज 72 हूरों की बात समझ में न आ पाए क्योंकि आज सभ्यता एक ऐसे दौर में पहुंच गई है जहां आदमी जंगलों और कुदरती माहौल से कटकर एक कमरे के दड़बे में जिंदगी गुज़ारने को मजबूर है। जिसमें एक बीवी और 4 बच्चों तक की गुंजाइश नहीं है। जिस समाज में लोग माँ बाप को वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं। जहां घर बनाने के लिए काफ़ी माल देकर ज़मीन ख़रीदनी पड़ती है और फिर उसे बनाने सजाने में भी बहुत भारी ख़र्च आता है। जहां कमाई का साधन केवल जॉब या मज़दूरी है। जहां सुरक्षा के लिए पुलिस और सेना है।
आज के लोग अरब की उस दौर की परिस्थिति को नहीं समझ सकते, जब न बादशाह था, न सेना थी, न पुलिस थी और न कोई अदालत थी। बस क़बीले थे और बड़ा क़बीला कम संख्या वाले लोगों के क़बीले के लोगों पर हमला करके मर्दों को मार देता था और औरत और बच्चों को गुलाम बना लेता था। वह उनके घर लूट लेते थे, उनके बाग़ के मालिक ख़ुद बन कर बैठ जाते थे। जहां हर बात का फैसला ताकतवर तलवार से होता था। उस समाज में जीने के लिए और बाक़ी रहने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा लड़ाकों की ज़रूरत थी। जिसके लिए ज़्यादा संतान की ज़रूरत थी और ज़्यादा संतान पैदा करने के लिए ज़्यादा पत्नियों की जरूरत पड़ती थी। इसलिए कबीलों में ज़्यादा शादियां करने का रिवाज आम था। ज़्यादा शादियां क़बीले की सुरक्षा और आज़ादी की गारंटी होती थी।
आज के दौर का आदमी उन बातों को पूरी तरह नहीं समझ सकता, जो बातें उस दौर के लोगों की मानसिकता को सामने रखकर कही गई थीं। इसलिए आज लोगों को 72 हूरों की बातें कुछ अटपटी लगती हैं जबकि उस दौर में हर धर्म में 72 औरतों से विवाह करने का चलन मौजूद था। कुछ ने उससे ज़्यादा विवाह भी किए हैं। जो बात तब कही गई थी। वह तब के चलन के मुताबिक़ कही गई थी। यह बात समझने की ज़रूरत है। यह बात आपके लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए लिख दी है ताकि दूसरों का काम इसी लेख से चल जाए।
हूर बड़ी आंखों वाली औरत को बोलते हैं, जिसे आपने मृगनयनी लिखा है। दुनिया में भी इंसान बड़ी आंखों वाली पत्नी चाहता है। बड़ी आंखें रूप सौंदर्य के पैमाने पर अच्छी लगती हैं और ये आत्मा के इस गुण को भी प्रकट करती हैं कि वह बड़ा और उदार नज़रिया रखती है। जिस आदमी में उदारता हो और उसके जीवन साथी में भी उदारता हो तो उसका घर इस दुनिया में ही जन्नत बन जाता है।
आपके लिए हम यह कहेंगे कि आपको 72 हूरें पसंद नहीं हैं तो आपको 72 हूरें नहीं मिलेंगी लेकिन आपकी पसंद से यह तय नहीं होगा कि दूसरों को भी वही मिलेगा जो आपको पसंद है।
पवित्र क़ुरआन में कहीं नहीं आया है कि हरेक आदमी को 72 हूरें ज़रूर मिलेंगी।
हरेक को उसकी पसंद की चीज़ें मिलेंगी और यही होना भी चाहिए।