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Sunday, December 29, 2019

हिन्दू, हिन्दुस्तान, मुसलमान और ग़ैर मुस्लिम पर विचार, एक साथ बिल्कुल पहली बार

*आपका यक़ीन (core belief) आपके हालात के रूप में ख़ुद ब ख़ुद ज़ाहिर होता है*
✍🏻🌹👍🏻
हिन्दू, हिन्दुस्तान, मुसलमान और ग़ैर मुस्लिम; आप ये चार शब्द कहना बंद कर दें तो मेहरबानी होगी।
1. हिन्दू
2. हिन्दुस्तान
3. मुसलमान और
2. ग़ैर मुस्लिम; ये चार अल्फ़ाज़ कहना ग़लत है और मुस्लिम समाज इन ग़लतियों का बहुत बुरा अंजाम भुगत रहा है लेकिन उसे इसका पता नहीं है क्योंकि उसे रब के क़ानूने क़ुदरत का इल्म नहीं है।
रब का क़ानूने क़ुदरत यह है कि आपके दिल का यक़ीन आपकी ज़िन्दगी के ज़ाहिरी हालात के रूप में ख़ुद ब ख़ुद रेफ़्लेक्ट होता है। आपके ज़ाहिरी हालात आपके दिल के अधीन (ताबै) हैं। 
आज अच्छी बात यह है कि मुस्लिम समाज अपनी उन ग़लतियों पर ध्यान दे रहा है, जिनकी वजह से उसे ग़रीबी, नफ़रत और ख़ूनी हमलों का शिकार होना पड़ रहा है और उसे हिन्दुस्तान में अपनी नागरिकता और अपना आस्ताना बरक़रार रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
कुछ ग़लतियों को सब जान चुके हैं और उन पर सब लोग चर्चा कर रहे हैं जैसे मुस्लिम का फ़िरक़ों में बंट जाना।
...लेकिन कुछ ग़लतियां ऐसी हैं, जिनकी तरफ़ मुस्लिम समाज के ख़ास व आम लोगों का ध्यान तक नहीं जाता है जैसे कि हमने चार अल्फ़ाज़ का ज़िक्र ऊपर किया है।
जो लोग रब के क़ानूने क़ुदरत और कलामे इलाही की मारिफ़त कम रखते हैं, उनका इन बातों को अहमियत न देना नेचुरल है लेकिन इल्म में बड़ा दर्जा रखने वाले (रासिख़ून फ़िल्-इल्म) आलिम भी ये ग़लतियाँ करते हैं।
ऐसा होता है कि एक बात लोगों की नज़र में मामूली होती है लेकिन वह बात अल्लाह की नज़र में बड़ा वज़न रखती है यानि रब के क़ानूने क़ुदरत के मुताबिक़ उस बात के बड़े नतीजे सामने आते हैं। 
रब का क़ानूने क़ुदरत यह है कि आपका दिल एक ज़मीन की तरह है और जिस बात में आप यक़ीन रखते हैं, आपका वह यक़ीन (Belief) एक बीज की तरह है। जब आप एक बात का पूरे दिल से यक़ीन करते हैं और उसे बार बार बोलते हैं तो फिर एक मुद्दत बाद वह बात हालात बनकर आपकी ज़िन्दगी का सच बन जाती है और ऐसा ख़ुद ब ख़ुद हो जाता है‌। जैसा आपका यक़ीन होता है, आप वैसी ही फ़सल काटते हैं।
आप अपने ज़ाहिरी हालात को बदलना चाहते हैं तो आपको अपने अन्दर के उस यक़ीन (Belief) को भी बदलना होगा, जिससे वे हालात बने हैं। आप इस मुल्क के हिन्दुस्तान होने का यक़ीन करने लगे और हिन्दुस्तान बोलने लगे तो एक मुद्दत बाद यह ख़ुद ब ख़ुद हिन्दुस्तान यानि हिन्दुओं का स्थान बन गया और मुस्लिमों का स्थान खत्म होने लगा। जब ऐसा होने लगा तो मुस्लिम चीख़ने लगे कि यह क्या हो गया!
यह वही हो गया, जो कुछ वे बोलते थे। उनके बोल अब हालात की शक्ल में उनके सामने आ चुके हैं।
मुस्लिम समाज इस मुल्क का नाम हिन्दुस्तान बोलता है। यह फ़ारसी भाषा का नाम है। फ़ारसी भाषा में हिन्दुस्तान शब्द का अर्थ है, हिन्दुओं का आस्ताना (स्थान)। ईरानी आर्यन्स ने इस मुल्क का नाम 'हिन्दुस्तान' रखा था। तब मुस्लिम इस देश में नहीं आए थे।
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह ने मुझे एक दिन देवबंद में अपने घर पर अपनी रिसर्च को सबक़ की शक्ल में पढ़ाते हुए मेरी कापी में लिखवाया था कि ईरानी आर्यन शब्दकोष में हिन्दू शब्द का अर्थ है: काला, ग़ुलाम और चोर।
यही वजह है कि बहुत से वैदिक पंडितों ने ख़ुद को हिन्दू कहलाना पसंद नहीं किया। शायद इसीलिए हिन्दुस्तान शब्द इन्डियन कांस्टीट्यूशन में दर्ज नहीं है।
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह ने यह भी बताया कि हिन्दू शब्द किसी अक़ीदे और मज़हब के लिए नहीं बोला जाता था लेकिन जब फ़ारसी बोलने वाले मुस्लिम इस मुल्क में आए तो वे हिन्दू लफ़्ज़ को मज़हबी आईडेंटिटी के लिए बोलने लगे और उन्होंने इस मुल्क में बहुत से अलग अलग मज़हब देखे और उन्हें उन सैकड़ों मज़हब के लोगों को उनके अलग अलग मज़हब के नाम के साथ याद रखना मुश्किल लगा तो उन्होंने अपनी आसानी के लिए उन सबको एक नाम 'हिन्दू' दे दिया। मुग़लों ने सरकारी रजिस्टरों में हर जगह उनके सैकड़ों मज़हबों को ख़ुद हिन्दू मज़हब लिखा।
इस तरह मुस्लिमों ने अपने नज़रिए में हिन्द के सैकड़ों मज़हबों के लोगों को एक मानकर उन्हें एक होने की बुनियाद दे दी। इसके साथ मुस्लिमों ने इस मुल्क को हिन्दुस्तान मानकर अपने नज़रिए में इस मुल्क को सिर्फ़ हिन्दुओं का आस्ताना तस्लीम किया और अपने नज़रिए में ख़ुद अपना आस्ताना खो दिया। जिसे एक मुद्दत बाद मुख़्तलिफ़ असबाब के ज़रिए रब के क़ानूने क़ुदरत के मुताबिक साकार होना ही था और वह अब हो रहा है। अब मुस्लिम विरोध और प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन उन्हें इसका शुऊर अब भी नहीं है कि यह सब कुछ हमारा ही किया धरा है। वे अब भी लगातार हिन्दू और हिन्दुस्तान शब्द बोल रहे हैं।
मुस्लिम समाज को अपनी ख़ैर मतलूब है तो मुस्लिम हिन्दू और हिन्दुस्तान शब्द बोलना बन्द कर दें और इसके बजाय कोई अच्छा और सच्चा नाम बोलें, जो मुस्लिमों को और सबको सपोर्ट करता हो।

अल्लाह के नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस मुल्क को हिन्द कहा जो कि एक अच्छा और सच्चा नाम है। यह नाम अपने अंदर एक पूरा नज़रिया है, जो हमें इस मुल्क में रहने, बसने और हर भला काम करने में सपोर्ट देता है।
इंडिया भी एक अच्छा नाम है और यह इंडियन कांस्टीट्यूशन में दर्ज भी है।
💞💖💞
ऐसे ही ग़ैर मुस्लिम एक ऐसा लफ़्ज़ है, जिसके दोनों लफ़्ज़ अरबी के हैं और दोनों लफ़्ज़ अलग अलग पवित्र क़ुरआन में सैकड़ों बार आए हैं लेकिन एक साथ एक बार भी नहीं आए। मुस्लिम शब्द के अपोज़िट ग़ैर मुस्लिम शब्द क़ुरआन और हदीस में कहीं नहीं आया।
...क्योंकि पवित्र क़ुरआन हिकमत (wisdom) से भरा है।
मुस्लिम आलिमों ने एक नया लफ़्ज़ ईजाद किया 'ग़ैर मुस्लिम' और पूरी दुनिया के हज़ारों मज़हबों और सैकड़ों मुल्कों को अपने नज़रिए में एक कर दिया और फिर दुनिया जब उन पर एक साथ पिल पड़ी तो वे चीख़ने लगे कि यह क्या हो गया?
🔆🔆🔆
ये उनका नज़रिया, उनका ईमान मुख़्तलिफ़ असबाब के ज़रिए उनके हालात के रूप में ज़ाहिर हो गया।
🔆
*क्या हम मुसलमान हैं?*
उस (रब) ने इससे पहले तुम्हारा नाम मुस्लिम (आज्ञाकारी) रखा था...
-पवित्र क़ुरआन 22:78
मुस्लिमों ने रब का दिया अपना नाम ही बिगाड़ लिया। अपना नाम मुस्लिम से बिगाड़कर मुसलमान कर लिया और फिर क़ुदरती तौर पर ऐसे असबाब बने कि ख़ुद भी बिगड़ गये जबकि अल्लाह ने सूरह हुजुरात में नाम बिगाड़ने से रोका है। देखें पवित्र क़ुरआन 49:11
इल्म में पुख़्ता मुस्लिम आलिम भी अपनी तहरीर और तक़रीर में मुसलमान लफ़्ज़ धड़ल्ले से लिखते और बोलते हैं।
जैसे हिन्दू शब्द पारसियों ने दिया था, वैसे ही मुसलमान शब्द भी रब ने नहीं, पारसियों ने दिया है।
💚
इस लेख में आपके सामने हिन्दू, हिन्दुस्तान, मुसलमान और ग़ैर मुस्लिम पर विचार, एक साथ बिल्कुल पहली बार किया जा रहा है। इसलिए आप इस पर ज़रूर तवज्जो दें।
डा. अनवर जमाल का कहना है कि
इस्लाह (सुधार) मतलूब है तो
*शुरूआत दिल के नज़रिए की इस्लाह से करनी होगी।*
सबकॉन्शियस माइंड की रिप्रोग्रामिंग करनी होगी।
इसके बिना बाहर की कोशिशें उल्टे फल देंगी। जिससे ज़िल्लत और तबाही में इज़ाफ़ा हो सकता है।
अपने नज़रिए को सही करके मुनासिब हिकमत भरा और जायज़ ज़ाहिरी अमल मुसलसल करें, सब्र रखें। आपको सफलता ज़रूर मिलेगी।

Wednesday, December 4, 2019

क्या अथर्ववेद परमेश्वर की वाणी है? Na Dhokha Den Aur Na Dhokha Khayen

दोस्तों, आज मैं आपको अपने एक आर्य मित्र से हुई बात बताता हूं। वह चीनी सु-जोक तरीक़े से रोगों की चिकित्सा करते हैं।
एक दिन मैंने उनसे कहा कि दयानंद जी कहते हैं और आर्य समाजी मानते हैं कि परमेश्वर ने लगभग एक अरब छियानवे करोड़ साल पहले औषधि और चिकित्सा पर अथर्ववेद दिया।
मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई कि अब जो भी रोग होगा परमेश्वर के दिए हुए इस ग्रंथ में उसकी दवा देखकर सब लोग चिकित्सा कर लिया करेंगे।
मैंने अथर्ववेद पूरा पढ़ लिया लेकिन उसमें नज़ला, बुख़ार, खांसी, जोड़ों के दर्द, गैस, एसिडिटी, बवासीर थायराइड और कैंसर का तो क्या सिर और पेट दर्द के उपचार तक की कोई औषधि लिखी हुई नहीं मिली। न ही उसमें मनुष्य शरीर की रचना के बारे में बताया गया है।
मुझे बहुत अजीब लगा कि परमेश्वर का यह कैसा ग्रंथ है, जो औषधि और रोगों की चिकित्सा पर है और मनुष्य के शरीर और दवा के बारे में नहीं बताता।
अथर्ववेद पढ़कर रोगों की चिकित्सा कोई आर्य वैद्य नहीं करता। इसलिए  यह ग्रंथ परमेश्वर की वाणी नहीं है, जैसा कि दयानंद जी लिखवा गए हैं।
जिस आर्य समाजी को हमारी बात पर संदेह हो, वह आदमी सारे मददगारों को बुला ले और अथर्ववेद से रोगों की चिकित्सा करके दिखा दे।
आर्य मित्र ने हंसते हुए मेरी बात से अपनी सहमति जताई।
दयानंद जी अभ्रक भस्म बनाकर खाया करते थे। जब उन पर उस भस्म का विषैला प्रभाव पड़ा तो स्वयं दयानंद जी को अपने लिए अथर्ववेद में कोई औषधि न मिली। उन्हें मजबूरी में इधर उधर के मुस्लिम हकीम और एलोपैथी के डाक्टर आदि से इलाज करवाना पड़ा।
दयानंद जी ने सत्य कहा है कि
अंतकाल में सब सत्य प्रकट हो जाता है।
वास्तव में अथर्ववेद परमेश्वर की नहीं बल्कि ऋषियों की वाणी है। अथर्वा ऋषि ने अथर्ववेद के बहुत से मंत्रों की रचना की है। उसका नाम अथर्ववेद में ही कांड से पहले लिखा हुआ भी है। अथर्ववेद में पेड़ पौधों पर कविताएं हैं और उनकी हम्दो सना (स्तुति) के साथ उनसे दुआएं की गई हैं।
हम अथर्ववेद को ऋषियों की वाणी मानकर भी आदर दे सकते हैं। यही मान्यता सनातनी पंडितों की है।
एक बार सनातनी पंडितों का अनुवाद पढ़ लें। फिर अपनी राय क़ायम करें।

Wednesday, November 27, 2019

इस्लाम क्या है और कब से है? -Dr. Anwer Jamal

यह एक अनोखा लेख है, जो आपको इस्लाम के सनातन और सार्वकालिक सत्य रूप का परिचय देता है। आप इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें।
✨💖✨
इस्लाम का अर्थ ईश्वर की आज्ञा और उसके नियमों का पूर्ण समर्पण के साथ पालन करना है।
सबसे पहले आप इस बात को अच्छी तरह समझ लें और फिर आप देख लें कि इस यूनिवर्स में जो सबसे पहले बना, वह अपने बनने के साथ ही अपने रचयिता का पाबंद हो गया था। हर चीज़ में एक डिज़ाइन है और हर चीज़ क़ानून के अनुसार चलती है। जब डिज़ाइन है तो डिज़ाइनर भी है और क़ानून है तो कोई उसका बनाने वाला और उसे क़ायम रखने वाला भी है, यह एक सामान्य बुद्धि की बात है।
आप हर एक चीज़ को देख सकते हैं कि हर एक चीज़ में डिज़ाइन है और यूनिवर्स की सारी चीज़ें आपस में तालमेल के साथ क़ानून के अनुसार काम कर रही हैं। उसी कानून को जानने और समझने का काम विज्ञान करता है और विज्ञान अभी तक एक बाल की भी पूरी स्टडी नहीं कर सका है कि विज्ञान यह कह दे कि अब बाल के बारे में जानने के लिए कुछ शेष नहीं बचा है। यूनिवर्स में एनर्जी के जितने रूप नज़र आते हैं उससे ज्यादा एनर्जी डार्क एनर्जी है। जिसके बारे में भी विज्ञान कुछ नहीं जानता। ऐसे में ईश्वर और दीन धर्म का इन्कार करना एक अवैज्ञानिक बात है।
इस सबके बावजूद यूनिवर्स में शांति है। यूनिवर्स का धर्म शांति है। अरबी शब्द इस्लाम जिस धातु से बना है, उसका अर्थ शांति है।
आप यूनिवर्स में हर जगह यूनिवर्स के रचयिता का आज्ञा पालन देखेंगे और शांति देखेंगे। वह रचयिता यह चाहता है कि मनुष्य भी आज्ञापालन करे, नियम पर चले और शांति से रहे। इसीलिए उसने शांति के नियमों का ज्ञान दिया और आदेश दिया कि इनका पालन करो। आप भी शांति के नियमों का इंकार ना करो बल्कि इनका पालन करो। सदा से यही धर्म है। सबका एक यही धर्म है कि शांति से अपने रचयिता के विधान को मानो। उसके शुक्रगुज़ार (क़द्रदान) बनो, परोपकार करो। यही संस्कृत में सनातन धर्म है। इसका दूसरी अलग भाषा में कोई और नाम हो सकता है। सबका एक ही धर्म है। इसीलिए हर धर्म में अच्छे गुण अपनाने को और भलाई करने को कहा गया है। यह इतना अनिवार्य काम है कि ईश्वर और धर्म का इन्कार करने वाला भी अच्छे गुण अपनाने और भलाई करने को कहता है।
दीन धर्म के समझने में आलिम, पंडित और पादरी से भूल चूक हो सकती है, किसी को उसकी व्याख्या से मतभेद हो तो यह बात अलग है। समझने और समझाने की नीयत से आलोचना, समीक्षा, विचार-विमर्श, उत्तर-प्रत्युत्तर और शास्त्रार्थ चलते रहना चाहिए।
सभी महापुरुष किसी न किसी रूप में इस्लाम अर्थात शांति और आज्ञापालन से ही जुड़े हुए थे, चाहे वे नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले आए हों। हम सबका सम्मान करते हैं। हम सबको अपना मानते हैं।

Sunday, November 24, 2019

जन्नत में 72 हूर, क्यों मिलेंगी हुज़ूर?

इस लेख में सतीशचंद गुप्ता जी के सवाल और ऐतराज़ का जवाब है। आप यह याद रखें कि सतीश गुप्ता जी एक विद्वान हैं। देखें उनका लेख, जो उन्होंने फेसबुक पर लिखा है:
🙏अध्ययन और चिंतन🙏
#जन्नत_की_सैर ..!!
सुना है जन्नत में दूध और शहद की नदियां होगी ..परिंदों के लजीज़ व्यंजन होंगे...72 प्रकार की हूरें होगी, जवान, बेमिसाल हुस्नो-जमाल,  नर्मों-नाजुक, शर्मिली आंखों वाली, मृगनयनी ..!!
हर प्रकार के सुरूर और लज्ज़तों के ढेर होंगे ..!!
दीबा और रेशम के कपड़े, सोने और बेशकीमती मोतियों के कंगन ..!!
बैठने-लेटने के लिए आरामदायक तकिएं और तख़्त होंगे ..!!
मोतियों जैसे खादिम ..!!
हर प्रकार के रसास्वादन, सौंदर्य, आकर्षण, ठाठबाट वहां सब होंगे ..!!
जो मनुष्य चाहेगा, सब कुछ मिलेगा ..!!
संक्षेप में कहा जाए तो जन्नत में हमारी खुशी बाह्य सामग्री, साधनों और सहारों की मोहताज होगी ?
वहां जो खुशी होगी, संतुष्टि होगी वह शारीरिक होगी, भौतिक होगी ..??
सवाल यहां यह है कि वह जन्नत ही क्या ..जहां सारी खुशियां दूसरों की मोहताज हो ??
साधनों की मोहताज हो ??
दूसरी बात यह कि बाह्य साधनों से आदमी को कभी खुशी और इतमीनान हासिल हो ही नहीं  सकता ..!!
अगर जन्नत जैसी कोई जगह है तो वहां की खुशियां आत्मिक होनी चाहिए ..आंतरिक होनी चाहिए ..स्वयं की होनी चाहिए ..!!
यह तो निश्चित है कि हमें मृत्यु के  पार जाना है, मगर ऐसी दुनिया में नहीं जहां शारीरिक सुख-भोग होंगे ..!!
हम केवल शरीर के तल पर सोचते हैं ..!!
मैं समझता हूं शरीर स्त्री-पुरूष होते हैं ..आत्मा स्त्री-पुरूष नहीं होती ..!!
जन्नत में हूरें ..??
कितनी बेतुकी, बेहूदी, घटिया और मूर्खतापूर्ण व्याख्या है जन्नत की ..??
....✍🌏
आदरणीय, सतीश गुप्ता जी ख़ुशी आज भी आंतरिक और आत्मिक है। केवल ख़ुशी ही नहीं बल्कि दिल का हरेक जज़्बा आज भी अंदर आत्मा में ही है।
अगर हम 'हिदायत' और सही समझ रखते हैं तो हमारी ख़ुशी बाहरी साधनों की मोहताज आज भी नहीं है। आपने ऐसे वाक़ये सुने होंगे कि एक आदमी देश के फ़ायदे के लिए ख़ुशी ख़ुशी मर गया या एक आदमी कम साधनों में या फ़क़ीरी हाल में भी ख़ुश और संतुष्ट रहा। उनकी समझ की वजह से ऐसा हुआ। 
आस्ट्रेलिया के Nicholas James Vujicic के पास हाथ पैर तक नहीं हैं लेकिन वह ख़ुश है। ख़ुशी आज भी साधनों की मोहताज नहीं है।
जन्नत, फलदार पेड़ों का साया, मेहरबान सच्चे दोस्त, सुंदर प्रेमी जीवन साथी, रेशमी लिबास ऊँचे तख़्त, गद्दे, तकिये, सोने-चाँदी के ज़ेवर, काँच के बर्तन, पीने को भरपूर दूध, शहद, पवित्र पेय, खाने को भरपूर फल गोश्त, हमेशा की जवानी और सेहत, ख़िदमत को ख़ादिम, राजसी वैभव और हर तरह से सलामती और सुरक्षा  ये सब इंसान की वे ख़्वाहिशें हैं, जो इस दुनिया में पूरी नहीं होतीं लेकिन ये किसी न किसी दर्जे में हर इंसान चाहता है। यह क़ानूने क़ुदरत है कि अगर आपके अंदर प्यास है तो कहीं पानी भी ज़रूर है और आपको उसे पीने का हक़ है।
इसी तरह अगर हरेक सेहतमंद और अक़्लमंद इंसान‌ के दिल में एक वैभवशाली, आनंददायक और सलामती भरा जीवन जीने की इच्छा है और वह यहाँ ठुक पिट कर, ज़लील होकर अभाव में जी और  मर रहा है तो यह एक नेचुरल बात है कि अगर उसकी मनोकामनाओं की तृप्ति इस लोक में न हो तो दूसरे लोक में; परलोक में हो क्योंकि इस यूनिवर्स में डिमांड एंड सप्लाई का रूल काम करता है।
यह एक असंभव बात है कि डिमांड हो और सप्लाई न हो।
अब आप आत्मा को समझें कि आत्मा अदृश्य और सीमाहीन है। अगर एक आत्मा के पास शरीर न हो तो यह कोई न जान पाएगा कि एक आत्मा कहां से शुरू हो रही है और कहां ख़त्म हो रही है? 
एक आत्मा को अपनी खूबियां दूसरी आत्मा पर प्रकट करने के लिए शरीर की आवश्यकता है। एक शरीर ही आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है कि वह आत्मा कैसी है, क्या करती है और क्या चाहती है?
अगर कहीं बहुत सारी आत्माएं हैं और उनके पास शरीर नहीं है तो वे अपने समाज में कुछ भी रचनात्मक नहीं कर सकतीं। एक आत्मा को अपने गुण प्रकट करने के लिए शरीर की बहुत आवश्यकता है। जब भी आत्मा के पास शरीर होगा तो उस शरीर की कुछ आवश्यकताएं ज़रूर होंगी और उन आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन भी उस समाज में उस जगह पर ज़रूर होंगे।
अब आप समझ सकते हैं कि यह अक़्ल में आने वाली और बिल्कुल नेचुरल बात है कि
जन्नत में दूध और शहद की नदियां होंगी ..परिंदों के लजीज़ व्यंजन होंगे...72 प्रकार की हूरें होंगी, जवान, बेमिसाल हुस्नो-जमाल,  नर्मों-नाजुक, शर्मीली आंखों वाली, मृगनयनी ..!!
हर प्रकार के सुरूर और लज्ज़तों के ढेर होंगे ..!!
दीबा और रेशम के कपड़े, सोने और बेशक़ीमती मोतियों के कंगन ..!!
बैठने-लेटने के लिए आरामदायक तकिए और तख़्त होंगे ..!!
मोतियों जैसे ख़ादिम ..!!
हर प्रकार के रसास्वादन, सौंदर्य, आकर्षण, ठाठबाट वहां सब होंगे ..!!
इन बातों को बुरा मानने की वजह यह है कि हमारे समाज में सेक्स संबंधों को बुरा और घिनौना काम माना गया है। हमारे समाज में सन्यास को और औरत से विरक्त रहने को बहुत ऊंचे दर्जे का अध्यात्म माना गया है और हजारों साल से सेक्स संबंधों को बुरा मानते रहने के कारण यह हमारे समाज के सामूहिक अवचेतन मन में बहुत गहराई तक बैठ गया है। लोग विवाह करते हैं और उसे पवित्र संबंध बताते हैं लेकिन फिर भी उनके मन में कहीं न कहीं उन संबंधों को लेकर कुछ अपराध बोध बना रहता है क्योंकि बचपन से ही इस काम को 'गंदा काम' बताया जाता है। हमारा समाज कुंठित है। वह एक बात अपने दिल में पाले हुए घूमता है और उससे विपरीत बात की सराहना करता है। जितने लोग 72 हूरों की बात पर मुस्लिमों की आलोचना करते हैं। आप उन्हें पोर्न मूवीज़ देखते हुए और फ़ेसबुक पर लड़कियों को इनबॉक्स मैसेज पर धिक्कार खाते हुए देख सकते हैं।
हो सकता है कि आज 72 हूरों की बात समझ में न आ पाए क्योंकि आज सभ्यता एक ऐसे दौर में पहुंच गई है जहां आदमी जंगलों और कुदरती माहौल से कटकर एक कमरे के दड़बे में जिंदगी गुज़ारने को मजबूर है। जिसमें एक बीवी और 4 बच्चों तक की गुंजाइश नहीं है। जहां घर बनाने के लिए काफ़ी माल देकर ज़मीन ख़रीदनी पड़ती है और फिर उसे बनाने सजाने में भी बहुत भारी ख़र्च आता है। जहां कमाई का साधन केवल जॉब या मज़दूरी है। जहां सुरक्षा के लिए पुलिस और सेना है।
आज के लोग अरब की उस दौर की परिस्थिति को नहीं समझ सकते, जब न बादशाह था, न सेना थी, न पुलिस थी और न कोई अदालत थी। बस क़बीले थे और बड़ा क़बीला कम संख्या वाले लोगों के क़बीले के लोगों पर हमला करके मर्दों को मार देता था और औरत और बच्चों को गुलाम बना लेता था। वह उनके घर लूट लेते थे, उनके बाग़ के मालिक ख़ुद बन कर बैठ जाते थे। जहां हर बात का फैसला ताकतवर तलवार से होता था। उस समाज में जीने के लिए और बाक़ी रहने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा लड़ाकों की ज़रूरत थी। जिसके लिए ज़्यादा संतान की ज़रूरत  थी और ज़्यादा संतान पैदा करने के लिए ज़्यादा पत्नियों की जरूरत पड़ती थी। इसलिए कबीलों में ज़्यादा शादियां करने का रिवाज आम था। ज़्यादा शादियां क़बीले की सुरक्षा और आज़ादी की गारंटी होती थी। आज के दौर का आदमी उन बातों को पूरी तरह नहीं समझ सकता, जो बातें उस दौर के लोगों की मानसिकता को सामने रखकर कही गई थीं। इसलिए आज शीघ्रपतन के रोगियों को 72 हूरों की बातें बहुत अटपट लगती हैं जबकि उस दौर में 72 औरतों से विवाह करने का चलन मौजूद था। जो बात तब कही गई थी। वह तब के चलन के मुताबिक़ कही गई थी। यह बात समझने की ज़रूरत है। यह बात आपके लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए लिख दी है ताकि दूसरों का काम इसी लेख से चल जाए।
आपके लिए हम यह  कहेंगे कि आपको 72 हूरें पसंद नहीं हैं तो आपको 72 हूरें नहीं मिलेंगी लेकिन आपकी पसंद से यह तय नहीं होगा कि दूसरों को भी वही मिलेगा जो आपको पसंद है।
हरेक को उसकी पसंद की चीज़ें मिलेंगी और यही होना भी चाहिए।

❤️❤️❤️

🙏अध्ययन और चिंतन🙏
#जन्नत_की_सैर ..!!
सुना है जन्नत में दूध और शहद की नदियां होगी ..परिंदों के लजीज़ व्यंजन होंगे...72 प्रकार की हूरें होगी, जवान, बेमिसाल हुस्नो-जमाल,  नर्मों-नाजुक, शर्मिली आंखों वाली, मृगनयनी ..!!
हर प्रकार के सुरूर और लज्जतों के ढेर होंगे ..!!
दीबा और रेशम के कपड़े, सोने और बेशकीमती मोतियों के कंगन ..!!
बैठने-लेटने के लिए आरामदायक तकिएं और तख़्त होंगे ..!!
मोतियों जैसे खादिम ..!!
हर प्रकार के रसास्वादन, सौंदर्य, आकर्षण, ठाठबाट वहां सब होंगे ..!!
जो मनुष्य चाहेगा, सब कुछ मिलेगा ..!!
संक्षेप में कहा जाए तो जन्नत में हमारी खुशी बाह्य सामग्री, साधनों और सहारों की मोहताज होगी ?
वहां जो खुशी होगी, संतुष्टि होगी वह शारीरिक होगी, भौतिक होगी ..??
सवाल यहां यह है कि वह जन्नत ही क्या ..जहां सारी खुशियां दूसरों की मोहताज हो ??
साधनों की मोहताज हो ??
दूसरी बात यह कि बाह्य साधनों से आदमी को कभी खुशी और इतमीनान हासिल हो ही नहीं  सकता ..!!
अगर जन्नत जैसी कोई जगह है तो वहां की खुशियां आत्मिक होनी चाहिए ..आंतरिक होनी चाहिए ..स्वयं की होनी चाहिए ..!!
यह तो निश्चित है कि हमें मृत्यु के  पार जाना है, मगर ऐसी दुनिया में नहीं जहां शारीरिक सुख-भोग होंगे ..!!
हम केवल शरीर के तल पर सोचते हैं ..!!
मैं समझता हूं शरीर स्त्री-पुरूष होते हैं ..आत्मा स्त्री-पुरूष नहीं होती ..!!
जन्नत में हूरें ..??
कितनी बेतुकी, बेहूदी, घटिया और मूर्खतापूर्ण व्याख्या है जन्नत की ..??
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मेरा जवाब:
आदरणीय, सतीश गुप्ता जी ख़ुशी आज भी आंतरिक और आत्मिक है। केवल ख़ुशी ही नहीं बल्कि दिल का हरेक जज़्बा आज भी अंदर आत्मा में ही है।
अगर हम 'हिदायत' और सही समझ रखते हैं तो हमारी ख़ुशी बाहरी साधनों की मोहताज आज भी नहीं है। आपने ऐसे वाक़ये सुने होंगे कि एक आदमी देश के फ़ायदे के लिए ख़ुशी ख़ुशी मर गया या एक आदमी कम साधनों में या फ़क़ीरी हाल में भी ख़ुश और संतुष्ट रहा। उनकी समझ की वजह से ऐसा हुआ। 
आस्ट्रेलिया के Nicholas James Vujicic के पास हाथ पैर तक नहीं हैं लेकिन वह ख़ुश है। ख़ुशी आज भी साधनों की मोहताज नहीं है।
जन्नत, फलदार पेड़ों का साया, मेहरबान सच्चे दोस्त, सुंदर प्रेमी जीवन साथी, रेशमी लिबास ऊँचे तख़्त, गद्दे, तकिये, सोने-चाँदी के ज़ेवर, काँच के बर्तन, पीने को भरपूर दूध, शहद, पवित्र पेय, खाने को भरपूर फल गोश्त, हमेशा की जवानी और सेहत, ख़िदमत को ख़ादिम, राजसी वैभव और हर तरह से सलामती और सुरक्षा  ये सब इंसान की वे ख़्वाहिशें हैं, जो इस दुनिया में पूरी नहीं होतीं लेकिन ये किसी न किसी दर्जे में हर इंसान चाहता है। यह क़ानूने क़ुदरत है कि अगर आपके अंदर प्यास है तो कहीं पानी भी ज़रूर है और आपको उसे पीने का हक़ है।
इसी तरह अगर हरेक सेहतमंद और अक़्लमंद इंसान‌ के दिल में एक वैभवशाली, आनंददायक और सलामती भरा जीवन जीने की इच्छा है और वह यहाँ ठुक पिट कर, ज़लील होकर अभाव में जी और  मर रहा है तो यह एक नेचुरल बात है कि अगर उसकी मनोकामनाओं की तृप्ति इस लोक में न हो तो दूसरे लोक में; परलोक में हो क्योंकि इस यूनिवर्स में डिमांड एंड सप्लाई का रूल काम करता है।
यह एक असंभव बात है कि डिमांड हो और सप्लाई न हो।
अब आप आत्मा को समझें कि आत्मा अदृश्य और सीमाहीन है। अगर एक आत्मा के पास शरीर न हो तो यह कोई न जान पाएगा कि एक आत्मा कहां से शुरू हो रही है और कहां ख़त्म हो रही है? 
एक आत्मा को अपनी खूबियां दूसरी आत्मा पर प्रकट करने के लिए शरीर की आवश्यकता है। एक शरीर ही आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है कि वह आत्मा कैसी है, क्या करती है और क्या चाहती है?
अगर कहीं बहुत सारी आत्माएं हैं और उनके पास शरीर नहीं है तो वे अपने समाज में कुछ भी रचनात्मक नहीं कर सकतीं। एक आत्मा को अपने गुण प्रकट करने के लिए शरीर की बहुत आवश्यकता है। जब भी आत्मा के पास शरीर होगा तो उस शरीर की कुछ आवश्यकताएं ज़रूर होंगी और उन आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन भी उस समाज में उस जगह पर ज़रूर होंगे।
अब आप समझ सकते हैं कि यह अक़्ल में आने वाली और बिल्कुल नेचुरल बात है कि
जन्नत में दूध और शहद की नदियां होंगी ..परिंदों के लजीज़ व्यंजन होंगे...72 प्रकार की हूरें होंगी, जवान, बेमिसाल हुस्नो-जमाल,  नर्मों-नाजुक, शर्मीली आंखों वाली, मृगनयनी ..!!
हर प्रकार के सुरूर और लज्ज़तों के ढेर होंगे ..!!
दीबा और रेशम के कपड़े, सोने और बेशक़ीमती मोतियों के कंगन ..!!
बैठने-लेटने के लिए आरामदायक तकिए और तख़्त होंगे ..!!
मोतियों जैसे ख़ादिम ..!!
हर प्रकार के रसास्वादन, सौंदर्य, आकर्षण, ठाठबाट वहां सब होंगे ..!!
इन बातों को बुरा मानने की वजह यह है कि हमारे समाज में सेक्स संबंधों को बुरा और घिनौना काम माना गया है। हमारे समाज में सन्यास को और औरत से विरक्त रहने को बहुत ऊंचे दर्जे का अध्यात्म माना गया है और हजारों साल से सेक्स संबंधों को बुरा मानते रहने के कारण यह हमारे समाज के सामूहिक अवचेतन मन में बहुत गहराई तक बैठ गया है। लोग विवाह करते हैं और उसे पवित्र संबंध बताते हैं लेकिन फिर भी उनके मन में कहीं न कहीं उन संबंधों को लेकर कुछ अपराध बोध बना रहता है क्योंकि बचपन से ही इस काम को 'गंदा काम' बताया जाता है। हमारा समाज कुंठित है। वह एक बात अपने दिल में पाले हुए घूमता है और उससे विपरीत बात की सराहना करता है। जितने शीघ्रपतन के रोगी 72 हूरों की बात पर मुस्लिमों की आलोचना करते हैं। वे ख़ुद उन्हें फ़ेसबुक पर 72 लड़कियों को इनबॉक्स मैसेज करते हैं और पोर्न मूवीज़ देखते हैं। आप उनमें से कुछ को फ़ेसबुक पर लड़कियों से धिक्कार खाते हुए देख सकते हैं। ये ग़ैर ज़िम्मेदार लड़के दस बारह लड़कियों को गर्ल फ़्रेंड बनाए हुए भी देखे जा सकते हैं।
हो सकता है कि आज 72 हूरों की बात समझ में न आ पाए क्योंकि आज सभ्यता एक ऐसे दौर में पहुंच गई है जहां आदमी जंगलों और कुदरती माहौल से कटकर एक कमरे के दड़बे में जिंदगी गुज़ारने को मजबूर है। जिसमें एक बीवी और 4 बच्चों तक की गुंजाइश नहीं है। जिस समाज में लोग माँ बाप को वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं। जहां घर बनाने के लिए काफ़ी माल देकर ज़मीन ख़रीदनी पड़ती है और फिर उसे बनाने सजाने में भी बहुत भारी ख़र्च आता है। जहां कमाई का साधन केवल जॉब या मज़दूरी है। जहां सुरक्षा के लिए पुलिस और सेना है।
आज के लोग अरब की उस दौर की परिस्थिति को नहीं समझ सकते, जब न बादशाह था, न सेना थी, न पुलिस थी और न कोई अदालत थी। बस क़बीले थे और बड़ा क़बीला कम संख्या वाले लोगों के क़बीले के लोगों पर हमला करके मर्दों को मार देता था और औरत और बच्चों को गुलाम बना लेता था। वह उनके घर लूट लेते थे, उनके बाग़ के मालिक ख़ुद बन कर बैठ जाते थे। जहां हर बात का फैसला ताकतवर तलवार से होता था। उस समाज में जीने के लिए और बाक़ी रहने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा लड़ाकों की ज़रूरत थी। जिसके लिए ज़्यादा संतान की ज़रूरत  थी और ज़्यादा संतान पैदा करने के लिए ज़्यादा पत्नियों की जरूरत पड़ती थी। इसलिए कबीलों में ज़्यादा शादियां करने का रिवाज आम था। ज़्यादा शादियां क़बीले की सुरक्षा और आज़ादी की गारंटी होती थी।
आज के दौर का आदमी उन बातों को पूरी तरह नहीं समझ सकता, जो बातें उस दौर के लोगों की मानसिकता को सामने रखकर कही गई थीं। इसलिए आज लोगों को 72 हूरों की बातें कुछ अटपटी लगती हैं जबकि उस दौर में हर धर्म में 72 औरतों से विवाह करने का चलन मौजूद था। कुछ ने उससे ज़्यादा विवाह भी किए हैं। जो बात तब कही गई थी। वह तब के चलन के मुताबिक़ कही गई थी। यह बात समझने की ज़रूरत है। यह बात आपके लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए लिख दी है ताकि दूसरों का काम इसी लेख से चल जाए।
हूर बड़ी आंखों वाली औरत को बोलते हैं, जिसे आपने मृगनयनी लिखा है। दुनिया में भी इंसान बड़ी आंखों वाली पत्नी चाहता है। बड़ी आंखें रूप सौंदर्य के पैमाने पर अच्छी लगती हैं और ये आत्मा के इस गुण को भी प्रकट करती हैं कि वह बड़ा और उदार नज़रिया रखती है। जिस आदमी में उदारता हो और उसके जीवन साथी में भी उदारता हो तो उसका घर इस दुनिया में ही जन्नत बन जाता है।
आपके लिए हम यह कहेंगे कि आपको 72 हूरें पसंद नहीं हैं तो आपको 72 हूरें नहीं मिलेंगी लेकिन आपकी पसंद से यह तय नहीं होगा कि दूसरों को भी वही मिलेगा जो आपको पसंद है।
पवित्र क़ुरआन में कहीं नहीं आया है कि हरेक आदमी को 72 हूरें ज़रूर मिलेंगी।
हरेक को उसकी पसंद की चीज़ें मिलेंगी और यही होना भी चाहिए।

Wednesday, November 13, 2019

शिर्क और मूर्ति पूजा से मुक्ति के लिए Maulana Shams Naved Usmani R. क्या तरीक़ा बताते थे?

मेरे व्हाट्स एप ग्रुप 'दावा सायकोलॉजी' पर आज हुई बातचीत यहाँ सबकी तालीम के लिए पेश कर रहा हूँ।
Mushtaq Ahmad: Surat No 4 : Ayat No 140 
وَ قَدۡ نَزَّلَ عَلَیۡکُمۡ فِی الۡکِتٰبِ اَنۡ اِذَا سَمِعۡتُمۡ اٰیٰتِ اللّٰہِ یُکۡفَرُ بِہَا وَ یُسۡتَہۡزَاُ بِہَا فَلَا تَقۡعُدُوۡا مَعَہُمۡ حَتّٰی یَخُوۡضُوۡا فِیۡ حَدِیۡثٍ غَیۡرِہٖۤ ۫ ۖاِنَّکُمۡ اِذًا مِّثۡلُہُمۡ ؕ اِنَّ اللّٰہَ جَامِعُ الۡمُنٰفِقِیۡنَ وَ الۡکٰفِرِیۡنَ فِیۡ جَہَنَّمَ جَمِیۡعَا ۨ ﴿۱۴۰﴾ۙ

 اور اللہ  تعالیٰ تمہارے پاس اپنی کتاب میں یہ حکم اتار چکا ہے کہ تم جب کسی مجلس والوں کو اللہ تعالٰی کی آیتوں کے ساتھ کفر کرتے اور مذاق اڑاتے ہوئے سنو تو اس مجمع میں ان کے ساتھ نہ بیٹھو! جب تک کہ وہ اس کے علاوہ اور باتیں نہ کرنے لگیں ،   ( ورنہ )  تم بھی اس وقت انہی جیسے ہو   یقیناً اللہ تعالٰی تمام کافروں اور سب منافقوں کو جہنم میں جمع کرنے والا ہے ۔  

क्या कोई इस आयत का अर्थ समझा सकता है, वो इसलिए कि हम लोग कुछ ऐसे ग्रुप में होते हैं जहां इस्लाम का मज़ाक उड़ाया जाता है क़ुरआन कि आयतों का मज़ाक उड़ाया जाता है, रसूल अल्लाह का मज़ाक उड़ाया जाता है। इस आयत की रोशनी में क्या हमें वो ग्रुप छोड़ देना चाहिए।।
इस पर आप लोग अपनी राय दें। 
दलील के साथ देंगे तो और अच्छा रहेगा।
*👆👆इस पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें*

Dr. Anwer Jamal: यह आयत उन आम लोगों के लिए है जो अल्लाह की मज़ाक़ उड़ाई जाते देखकर अपने व्यापारिक और खानदानी हितों के लिए उनकी हां में हां मिलाते हों या चुप रह जाते हों
लेकिन जो धर्म प्रचारक उनकी बातों का जवाब दे सकते हैं और उन्हें उनके ग़लत होने पर ध्यान दिला सकते हैं या उन्हें ऐसा करने से किसी भी तरह से रोक सकते हैं या उनके चंगुल में दूसरों को फंसने से बचा सकते हैं; उन धर्म प्रचारकों के लिए यह आयत नहीं है। उनके लिए वे दूसरी आयते हैं जिनमें उन्हें मजाक़ उड़ाने वालों को उस बुरे काम से रोकने का हुक्म दिया गया है।

धर्म के प्रचारक समाज में शांति और न्याय व्यवस्था की स्थापना के लिए ऐसे ग्रुपों में सही बात सामने लाने के लिए जुड़े रह सकते हैं।

Mushtaq Ahmad: 🌹🌹Jazakallahu Khairan Sir🌹🌹
लेकिन उसमें भी कई ऐसे लोग होते हैं जो आपकी बात नहीं मानते उल्टे सीधे आरोप लगाते रहते हैं। चाहे आप उनके आक्षेप का उत्तर दे चुके हों तब भी वो मानते नहीं और लगातार मज़ाक उड़ाते और गंदे गंदे शब्द का उपयोग करते हों। फिर चाहे वो नबी सल्ल. की हज़रत आयशा से शादी को लेकर हों या और भी बहुत कुछ। इन बातों को  आप हमसे अच्छी तरह से जानते हैं। क्यूंकि इन बातों का सामना बहुत किया है।

Dr. Anwer Jamal: उनकी बात सुनकर ईसा अलैहिस्सलाम ने कहा, “जो भले-चंगे हैं उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है। (इंजील)
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मुश्ताक़ भाई, एक दाई दिल (के नज़रिये) का डाक्टर होता है।
मैंने ऐसे लोगों को फ़ेस किया है। अल्लाह की मदद से इन्हें मग़्लूब किया है। आपमें से कुछ लोग दीन के एहकाम मुझसे ज़्यादा जानते हैं तो भी मैं यह 'फ़न' जानता हूं कि बहस में हमेशा दलील के साथ कैसे ग़ालिब रहें।
याद रखें कि बहस में ग़ालिब आने का ताल्लुक़ इल्म से कम और हिकमत (तकनीक) से ज़्यादा है।
कम इल्म रखते हुए भी आप हमेशा बहस में ग़ालिब आ सकते हैं।
सिर्फ़ कटहुज्जती करने वाले हठधर्म आपसे मग़्लूब होकर भी आपकी बात न मानेंगे लेकिन वे भी हमेशा आपकी बात पर लाजवाब हो जाएंगे।
बाक़ी पाठक दिल में आपसे सहमत हो जाएंगे और ख़ामोश रहेंगे और इक्का दुक्का लोग वहीं समर्थन भी कर देंगे।
💖
मैंने अपने इन तजुर्बात को ही दावा सायकोलॉजी की शक्ल दी है क्योंकि अल्लाह, इस्लाम, नबी, अहले बैत, सहाबा और सच की मज़ाक़ उड़ाने वाले साइकोलॉजिकल पेशेंट (दिल के मरीज़) हैं। उनके दिलों के रोग को दूर करने के लिए अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन को उतारा है।

एक दाई (दीन का शिक्षक) इस दवा को उनके हवास (सेंसेज़) के ज़रिये हिकमत के साथ उनके दिलों में उतारता है।
💖
जो आदमी अवचेतन मन (subconscious mind) के काम करने का तरीक़ा जानता है, वह अपनी पसंद की बात सुनने वाले के दिल में बिना उसे पता चले उतार सकता है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
एक इमेज इस काम को बहुत आसानी से करती है।
इसलिए किसी इमेज को देखते हुए बहुत होशियार और ख़बरदार रहने की ज़रूरत है।
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आज विकसित देशों की क़ौमें इस तकनीक से राजनीति और व्यापार में बहुत काम ले रही हैं।
सनातनी ब्राह्मण इस तकनीक से बहुत पुराने दौर से काम लेते आ रहे हैं।
कुछ दशक पहले उन्होंने भारत माता के जिस रूप की कल्पना की और उसके रूप का वह अलंकारिक चित्र बनाकर अपने फोलोवर्स को दिखाया, आज भारत उस रूप में मौजूद है।
✨💖✨
एक इमेज एक कान्सेप्ट होती है, जो सीधा सबकॉन्शियस माइंड यानी दिल में जाती है। उसे कॉन्शियस माइंड एनालाइज़ करके रोक नहीं पाता।
शब्दों में दिए गए मैसेज को चश्मा एंड एनालाइज करके उस पर सवाल खड़े कर सकता है और उसे सबकॉन्शियस माइंड में जाने से रोक सकता है। कॉन्शियस माइंड सबकॉन्शियस माइंड के लिए चौकीदार की तरह काम करता है और सब्कॉन्शियस माइंड एक स्टोर हाउस की तरह काम करता है
✨💖✨
जब आप कोई तस्वीर देख रहे होते हैं तो आप एक बहुत नाज़ुक मरहले से गुज़र रहे होते हैं। वह तस्वीर एक मैसेज होती है। 
वह मैसेज आपकी लाइफ़ को सपोर्ट भी कर सकता है और आपकी लाइफ़ को डैमेज भी कर सकता है।
जो कुछ आप एक तस्वीर की शक्ल में देखते हैं वह सीधा आपके दिल पर नक़्श हो रहा होता है।
जो कुछ आपके दिल पर नक्श हो जाएगा वह अपने ठीक टाइम पर किसी न किसी शक्ल में आपकी ज़िंदगी में खुद ज़ाहिर हो जाएगा।
आपके दिल में तख़्लीक़ी सिफ़त (creation power) है। यह बात आप नहीं जानते।
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जब कुछ अच्छी या बुरी घटनाएं एक आदमी के जीवन में प्रकट होती है तो वह हैरान रह जाता है कि मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया कि यह घटना मेरे जीवन में आती।
अगर वह व्यक्ति अपनी देखी गई छवियों को याद करे तो वह अपने जीवन में सहज रूप से प्रकट होने वाली अधिकतर घटनाओं का सोर्स पता कर सकता है कि इन घटनाओं को जन्म उसने तब दिया था जब उसे होश नहीं था और वह कुछ छवियों को देख रहा था।
देखी गई छवियां देखने वाले के जीवन में अपने अनुरूप घटनाओं के रूप में साकार होती हैं।
नबी सुलैमान अलैहिस्सलाम के हुक्म पर उनके लिए जिन्न प्रतिमाएं (तमासील تماثیل) बनाया करते थे। देखें पवित्र क़ुरआन 34:12-13
प्राचीन काल के लोगों को इस रहस्य का पता था। वे तालीम और यादगार जैसे दूसरे मक़सद के अलावा मैसेज देने के लिए भी धन, समृद्धि और विजय की छवियों और मूर्तियाँ बनवाया करते थे।
सभी विकसित संस्कृतियों में यह रिवाज आम था।
बाद में बहुत लोगों को यह पता नहीं रहा कि ज्ञानी लोगों ने उनका निर्माण किस उद्देश्य से किया था। तब वह काम परंपरा और रूढ़ि बन गईं और वह बिगड़ कर मूर्ति पूजा के रूप में प्रचलित हो गया।
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह कहते थे कि हिन्दू भाईयों में शिर्क (मूर्ति पूजा आदि) के रिवाज का कारण यह नहीं है कि इनके पास सत्य ज्ञान नहीं था बल्कि इसका कारण अपने धार्मिक ग्रंथों में मौजूद मुतशाबिहाती इल्म (गूढ़ ज्ञान) को ठीक से न समझ पाना है। आप उन्हें उनकी उलझी हुई गुत्थी को सुलझाने में मदद करें।
मौलाना ज़िन्दगी भर लोगों को मुतशाबिहाती इल्म (divine secrets) देकर उन्हें उस ग़लती के प्रति जारूक करते रहे, जो उनसे गूढ़ ज्ञान को समझने में हुई थी।
✨💖✨
दावत का एक पोशीदा रूहानी तरीक़ा
आप आज हिन्द में किसी सनातन धर्मी व्यापारी की दुकान पर जाएं तो आप देखेंगे कि उसने अपनी दुकान में लक्ष्मी देवी का एक चित्र लगा रखा है जिसके दोनों हाथों से सोने के सिक्के झड़ रहे हैं और नीचे के बर्तन सोने के सिक्कों से भरे होते हैं और कुछ सिक्के ज़मीन पर भी गिर रहे हैं।
इस चित्र में प्रचुरता यानि abundance दर्शाई गई है जो कि व्यापारी का लक्ष्य और मुराद है। यह चित्र भरपूर दौलत का एक कान्सेप्ट है। जब आप लगातार अपनी मुराद को अपनी नज़र में हाज़िर रखते हैं तो आप उसे आलमे अम्र (सूक्ष्म आत्मिक जगत) से आलमे ख़ल्क़ (स्थूल भौतिक जगत) में आने की दावत देते हैं। यह दावत का एक पोशीदा रूहानी तरीक़ा है। जब आप अपनी मुराद पर ज़्यादा लोगों की तवज्जो फ़ोकस करते हैं तो फिर वह मुराद ज़्यादा लोगों की तवज्जो पाकर ज़्यादा फलती फूलती चली जाती है। जब आप किसी बड़े समूह का भला करना चाहें तो उस उस उस समूह की तवज्जो अपनी मुराद पर फ़ोकस कर दें और बार बार लेक्चर देकर उनकी तवज्जो अपनी मुराद पर फ़ोकस किए रखें। यहाँ तक कि आपकी मुराद उन सबकी मुराद बन जाए और जैसे आप उस मुराद के अनुकूल काम कर रहे हैं, वैसे ही वे भी करने लगें।
आप इस पोशीदा रूहानी राज़ को अपनी और सबकी फ़लाह और कल्याण के लिए समझें और इसे अपनी दावत में इस्तेमाल करें।
एक व्यापारी अपनी नज़र के सामने सुबह से शाम तक abundance यानि प्रचुरता देखता रहता है और फिर उसी के अनुकूल कर्म भी करता है तो वह abundance उसके जीवन में प्रकट हो जाती है। भरपूर दौलत और ख़ुशहाली को ज़िन्दगी में बुलाने (दावत देने) के लिए व्यापार एक अनुकूल कर्म है।
वह व्यापारी समझता है कि लक्ष्मी जी की उस पर कृपा है जबकि यह सब उसकी मानसिक शक्ति का परिणाम है जिसका वह अपने हित में अनकॉन्शियसली यानि बिना ज्ञान के प्रयोग कर रहा है।
यह रब का क़ानून है, जो यूनिवर्स में काम कर रहा है।
जो आप देखते हैं, उसे आप आकर्षित करते हैं।
इसलिए हमेशा अपने मन में अपने लक्ष्य और अपनी मुराद को बिल्कुल साफ़ देखते रहें, जैसे कि मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह देखते थे कि लोग मूल धर्म का ज्ञान पाने के बाद परमात्मा (प्रथम आत्मा) और अहमद के एक होने का ज्ञान पाकर एक हो चुके हैं। सब लोग मिलकर मंदिरों में बा-जमाअत नमाज़ पढ़ रहे हैं।
उनके बोल सुनकर मैं भी यह मंज़र अपने दिल में देखता था और फिर यह मंज़र मेरे जीवन में ऐसे प्रकट हुआ कि मैं ग्वालियर मध्यप्रदेश गया तो  ग्वालियर में मेरे मेज़बान हिंदू भाई ने मुझे नमाज़ पढ़ने के लिए अपने पूजा के कमरे में खड़ा कर दिया। जिसमें दर्जनों मूर्तियां रखी हुई थीं और मुझे उस कमरे में सिर्फ एक मुसल्ला बिछाने की जगह भी बड़ी मुश्किल से नजर आई। मैंने उसमें नमाज़ पढ़ी।
यह 14 बरस पहले की घटना है। तब मैं नहीं जानता था कि मेरे जीवन में यह घटना क्यों प्रकट हुई?
आज यह मंज़र फिर से एक नये रूप में प्रकट हुआ है। मैं अब जिस मकान में रहता हूं। उसमें  पहले एक हिंदू भाई रहते थे और उन्होंने उसके आंगन में पूजा करने के लिए एक पत्थर गाड़ रखा था, जो अब भी गड़ा हुआ है और मैं उसी आंगन में नमाज़ पढ़ता हूं।
ये कुछ शुरूआती संकेत हैं कि जो कुछ हमने अपनी कल्पना में देखा है और जिसका हमें विश्वास है, वह घटना भी अपने सही समय पर सहज ही प्रकट होकर समाज का सच बन जाएगी।
इन् शा अल्ल्लाह!
✨💖✨
दावा साइकोलॉजी सब्जेक्ट के ज़रिए मैं दाई भाई बहनों को यही बात समझाने की कोशिश करता हूं कि आपकी बाहर की कोशिश भले ही छोटी हो लेकिन आप अपने मन में विज़न हमेशा बहुत बड़ा रखें।
आप अपने मन में बड़ा लक्ष्य एक क्रिस्टल क्लियर इमेज के रूप में हमेशा सामने रखें, तब दावत का काम करें। इससे आपकी दावत उसी सपने (vision) को साकार करने की तरफ़ चलेगी, जिसे आप अपनी कल्पना में देख रहे हैं और इसमें ज़मीनो आसमान की नेचुरल फोर्सेज़ आपकी मदद करेंगी। जिसे हम दीनी ज़ुबान में रब के हुक्म से फ़रिश्तों की ग़ैबी मदद आना कहते हैं।
जो चीज़ें आसमानों में हैं और जो ज़मीन में हैं, उस (रब) ने उन सबको अपनी ओर से तुम्हारे काम में लगा रखा है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है जो सोच-विचार से काम लेते हैं।
-पवित्र क़ुरआन 45:13
✨💖✨
मेरा मक़सद यही है कि आप अपने रब के क़ानूने क़ुदरत को समझें और अपने कामों में उसकी ग़ैबी मदद पाएं।
✨💖✨
जब मैं मूर्ति पूजकों को मन की शक्ति का विज्ञान और उसके लाभ समझाता हूँ तो वे मूर्तियों में शक्ति मानना छोड़ देते हैं।
आप स्वयं जानते हैं कि
इंसान हमेशा से माल के पीछे है। वह मूर्ति पूजा इसीलिए करता है कि उसे माल या कोई और लाभ मिल जाए। जब उसे पता चलता है कि यह सब उसे अपने मन की शक्ति से मिलता है तो फिर वह बाहर के सहारों से आशा करना छोड़ देता है। उसका यह विश्वास ख़त्म हो जाता है कि बाहर की बेजान चीज़ें उसके दुख में उसकी कुछ मदद कर सकती हैं।
✨💖✨
बातिल (मिथ्या भ्रम) को मिटाना हो तो बातिल में लोगों के विश्वास को सत्य ज्ञान देकर ख़त्म करो।
आदमियों को समझाओ कि जो कुछ उन्हें चाहिए, उन्हें वह सब किससे और कैसे मिलेगा?

Mushtaq Ahmad: Jazakallahu khair sir
ये लेख लिखने के लिए धन्यवाद।
आशा करता हूं कि इस ग्रुप के सभी सदस्यों को इस प्रकार की समस्याएं जो सामने आती है। इससे सभी को मार्गदर्शन मिलेगा।

Sunday, November 10, 2019

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पैग़ामे रहमत

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जन्म के मौक़े पर यह याद रखना और याद दिलाना ज़रूरी है कि

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं से आज हर देश प्रकाशित है। आज कन्या को मारना बंद है और विधवा विवाह का रिवाज आम है। आज उनकी शिक्षाओं को आज 'ह्यूमन राईट्स' के नाम से सारी दुनिया स्वीकार कर चुकी है। किसी देश का क़ानून ऐसा नहीं है, जिसमें आज उनकी शिक्षाएं न हों।

एक ख़ास बात यह है कि मुस्लिम समाज को इस्लाम के मानवतावादी पहलू को सामने रखकर ख़ुद उस पर अमल करने की बहुत ज़रूरत है। इससे मुस्लिम समाज संकीर्णता और सांप्रदायिकता से मुक्त होगा।

हर वक़्त मस्जिद, मदरसा और मुस्लिम की फ़िक्र करना ठीक नहीं है। कुछ वक़्त अपने पड़ोसियों और दूसरे समुदाय के लोगों के दुख-दर्द दूर करने में भी अपना जान माल वक़्त ख़र्च करें। आख़िर हम सब एक रब के बंदे और एक आदम की औलाद हैं। यह भी दीन का हिस्सा है।
इस मौक़े पर मुश्ताक़ अहमद भाई ने हमें हदीसों का  यह एक बहुत कल्याणकारी कलेक्शन भेजा है। जिसके लिए हम उनके शुक्रगुज़ार हैं।
*💖सलाम उस पर कि जिसने तीर खा कर भी दुआएं दीं 🌹🌹✨💖*

*और (ऐ मुहम्मद) हमने (अल्लाह ने) आपको सब लोकों के लिए रहमत बनाकर भेजा है।*(क़ुरआन 21:107)

*करुणा के सागर नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के कल्याणकारी संदेश* आज पहले से ज़्यादा फलदायी हो चुके हैं क्योंकि आज ज़मीन पर पहले से ज़्यादा इंसान आबाद हैं। हर धर्म का आदमी इन्हें अपनाकर अपना और संपूर्ण मानवता का कल्याण कर सकता है। भावार्थ हदीस नीचे दर्ज हैं:

✍तुम ज़मीन वालों पर रहम करो आसमान वाला तुम पर रहम करेगा (अबू दाऊद 4941)

✍स्वच्छता आधा ईमान है (मुस्लिम 534)

✍मां के क़दमों के नीचे जन्नत है। (निसाईं 3106)

✍बाप जन्नत का दरवाज़ा है। (इब्ने माजा 2089)

✍माता पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो। तुम्हारी औलाद तुमसे अच्छा व्यवहार करेगी। (मुस्तद्रक 7248)

✍मोमिन वह नहीं जो ख़ुद पेट भर खाए और उसका पड़ोसी भूखा रहे। 
(अस् सिलसिला तुस्सहीहा 387)

✍कोई पिता अपने पुत्र को सदाचार की शिक्षा से बेहतर कोई चीज़ नहीं देता।
 (तिरमिज़ी 1952)

✍अगर क़यामत आने वाली हो और खजूर के पौधे लगाने की मोहलत मिल जाए तो उसे लगा दे। (मसनद अहमद 12770)

✍आत्महत्या हराम है।
 (बुखारी 1365)

 ✍रास्ते से पत्थर या तकलीफ़ देने वाली चीज़ हटा देना सदक़ा है। (मिसकात उल मसाबीह 1911)

 ✍तुम में सबसे बेहतर वह है जिसका व्यवहार अच्छा हो।
( बुख़ारी शरीफ 6029)

✍जो लोगों का शुक्र अदा नहीं करता वह अल्लाह का भी शुक्र अदा नहीं कर सकता।
 (तिर्मीज़ी 1954)

 ✍रिश्ता नाता तोड़ने वाला जन्नत में दाखिल नहीं होगा।
(अबू दाऊद 1696)

 ✍पानी पिलाना उत्तम दान है। (दाऊद 1679)

✍पहलवान वह नहीं जो कुश्ती में हरा दे बल्कि असली पहलवान तो वह है जो गुस्से की हालत में अपने पर क़ाबू रखें , बेक़ाबू ना हो जाए।
(बुखारी 6114)

✍जब तुम में से कोई ऐसे व्यक्ति को देखे जो दौलत व शक्ल सूरत में उससे बढ़कर हो तो उसे ऐसे व्यक्ति का ध्यान करना चाहिए जो उससे कमतर हो।
 (बुखारी 6490)

✍जिसके पास कोई बेटी हो और वह उसे जीवित न दफ़नाए (वर्तमान में कन्या भ्रूण हत्या), न उसे कमतर जाने, न बेटे को उस पर प्राथमिकता दे तो अल्लाह तआला उसे स्वर्ग में दाख़िल करेगा।
(अबु दाऊद 5146)

✍जिसकी तीन बेटियां या तीन बहनें हों या दो बेटियां या दो बहनें हों, वह उनकी अच्छी परवरिश और  देखभाल करे और उनके मामले में अल्लाह से डरे तो उसके लिए जन्नत है।
(तिरमिज़ी 1916)

✍सबसे अच्छे वे लोग हैं जो क़र्ज़ की अदायगी में अच्छे हों।
(इब्ने माजा 2423)

✍झूठी क़समें खाकर माल बेचने वाले का माल तो बिक जाता है लेकिन कमाई से बरकत खत्म हो जाती है।
( मसनद अहमद 5781)

 ✍मैं ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग की ज़मानत देता हूं जो सत्य पर होते हुए भी झगड़ा छोड़ दे।
 (अबू दाऊद 4800 )

✍सख्त झगड़ालू व्यक्ति अल्लाह के नज़दीक अत्यंत नापसंदीदा व्यक्ति है।
 (मिश्कातुल मसाबीह 3762)

 ✍इस्लाम में बेहतर है, लोगों को खाना खिलाना, परिचित और अपरिचित दोनों को सलाम करना।
(अबु दाऊद 5194 )

✍ कमज़ोर निगाह वाले को रास्ता दिखाना सदक़ा है।
( मसनद अहमद 3614)

✍बीवी के कामों में मदद करना सुन्नत है। (बुखारी 676)

✍पत्नी को अपने हाथ से खाना खिलाना सदका है।
 (बुख़ारी 56)

✍भलाई की बातें बताने वाले को उतना ही पुण्य मिलता है जितना उस पर चलने वाले को।
(तिरमिज़ी 2671)

✍कोई भी प्राणी जो भूखा हो, उसका पेट भरना उत्तम दान है।
 (मिश्कातुल मसाबीह 1946)

✍रिश्वत देने वाले और रिश्वत लेने वाले दोनों पर अल्लाह की लानत है।
(इब्ने माजा 2313)

✍दो झगड़ा करने वालों में पहले सुलह समझौता करने वाले के गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं। (अत् तर्ग़ीब 2759)

✍जो व्यक्ति अत्याचार से बालिश्त बराबर ज़मीन हासिल करता है, रोज़े  क़यामत सात ज़मीनों तक उसके गले में तौक़ (जंजीर) डाला जाएगा।
(मिश्कात उल मसाबीह 293)

✍आपस में सुलह करवाना अफ़ज़लतरीन सदक़ा है।
 (अल सिलसिला तुस्सहिहा 37)

✍किसी से ऐसा मज़ाक़ मत करो जो झगड़े का सबब बने।
 (तिरमिज़ी 1995)

✍सबसे बा बरकत निकाह वह है जिसमें ख़र्च कम हो। 
(मिश्कात उल मसाबीह 3097)

✍शराब के पीने, पिलाने वाले, उसके बेचने वाले, उसको बनाने वाले, बनवाने वाले, उसे ले जाने वाले और जिसके लिए ले जाई जाए, उन सब पर अल्लाह की लानत है।
(अबु दाऊद 3674)

✍जिसके दिल में राई के दाने के बराबर भी अहंकार होगा वह स्वर्ग में नहीं जाएगा।
 (मुस्लिम 266)

✍जो नरमी से वंचित रहा वह कल्याण से वंचित रहा।
(मुसनद अहमद 3442)

✍जिसने लूटमार की, वह हममें से नहीं। 
(तिरमिज़ी 1601)

✍अपने भाई से मुस्कुरा कर मिलना सदक़ा है।
(तिरमिज़ी 1970)

✍तुम में से कोई मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने भाई के लिए वही पसंद न करे जो अपने लिए पसंद करता है।
(निसाई 5042)

✍ईर्ष्या नेकियों को ऐसे खा जाती है जैसे लकड़ी को आग।
( अबु दाऊद 4903)

✍जो व्यक्ति माफ़ कर देता है, अल्लाह उसका सम्मान बढ़ाता है।
(मुस्लिम 6592)

✍आसानी करो सख्ती न करो खुश करो नफ़रत न दिलाओ। 
(बुखारी 69)

नोट: हदीसों के संपादन में किसी प्रकार की कमी देखें तो ज़रूर सुधार कर लें और ईमेल करके हमें सूचित कर दें। हम भी सुधार कर लेंगे, इन् शा अल्लाह!
ईमेल: allahpathy@gmail.com
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Saturday, November 9, 2019

ईद मीलादुन्-नबी को यौमे रहमत के रूप में मनाने और इस दिन रहमत के काम करने पर मेरे विचार

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाईश पर ख़ुश होना बहुत अच्छा काम है। हरेक मोमिन बंदे को इस बात पर ख़ुश होना चाहिए। इसलिए ख़ुश ज़रूर हों।
इस मौक़े को धूम धड़ाके से मनाना ज़रूरी नहीं है। इसलिए इससे बचें।
रहमत के कामों से सब धर्म के लोगों का भला करना सचमुच क़ाबिले तारीफ़ है लेकिन मेरे विचार में एक और त्यौहार का इज़ाफ़ा करना ठीक नहीं है।
मैंने अपने उस्ताद मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह को ईद मीलादुन्-नबी को टीम के साथ मिलकर कुछ करके मनाते हुए नहीं देखा।
इस आसानी के लिए मैं उनका और सभी उलमा ए देवबंद का शुक्रगुज़ार हूँ।
✨💖✨
मुस्लिमों के एक तबक़े ने ईद मीलादुन्-नबी नाम रखकर इस्लाम में एक नया त्यौहार बना दिया है, जोकि ग़लत है।
उसके ग़लत होने के साथ इसमें जो फ़ुज़ूलख़र्ची और दूसरी ख़राबियां होती हैं, जैसे कि नमाज़ का छूट जाती है। जुलूस  देखने और चाट पकौड़ी खाने के लिए लड़कियाँ बन ठन कर आ जाती हैं और ठेलम ठाली के लिए लड़के आ जाते हैं। जिससे छेड़ छाड़ से लेकर झगड़े तक, प्यार से लेकर घर से फ़रार तक की नौबत आ जाती है।
यह एक सच्चाई है कि जब बहुत सारे लोग किसी कारण से एक जगह जमा होते हैं तो आने जाने में कुछ लोग ज़रूर मर जाते हैं। जितने लोग घरों से निकलते हैं, उतने लोग अपने घरों को वापस नहीं लौटते।
ईद मीलादुन्-नबी का त्यौहार धूम धड़ाके से न मनाकर इन सब नुक़्सानों से बचा जा सकता है।
✨🌹✨
इस दिन को कोई नाम देकर ख़ास न  करें, ख़ास करके नेकी के काम न करें क्योंकि यह भी ईद मीलादुन्-नबी को प्रोमोट करता है।
💚
इसके बावजूद भी एक बड़ी तादाद ईद मीलादुन्-नबी का त्यौहार धूम धड़ाके से ज़रूर मनाएगी। उन्हें मनाने दें। उन पर ऐतराज़ न करें क्योंकि वे नहीं मानेंगे।
💚
इनमें जो लोग समझाने से समझ जाएं, उन्हें समझाएं‌ और अगर समझाने से फ़साद और झगड़े का अंदेशा हो तो आज के हालात में इन्हें समझाने से में बचें। जो भी करें, समाज की शांति को क़ायम रखते हुए करें।
✨💖✨
*Solution:*
हाँ, इस दिन को मनाने वालों के जमा होने की जगह पर दीनी शुऊर पैदा करने वाली किताबें तक़सीम कर सकते हैं।
उन लोगों को खाना, कपड़े और दवा वग़ैरह बांटकर  अपनी मुहब्बत का एहसास कराना अच्छी बात है।
✨💖✨
इस दिन बड़े पैमाने पर पैग़ाम पहुंचाना मुमकिन है।
सीरत पर ऑडियोवी वीडियोज़नाकर अपने दोस्तों को बड़े पैमाने पर शेयर करें और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़ूबियों को सामने लाएं।
✨💖✨
*धर्म के शिक्षक बहन भाई* इस दिन का लाभ दावते दीन में लें तो यह मेरी नज़र में ठीक है।
दावते दीन का मक़सद है लोगों को रब का शुक्रगुज़ार बनना सिखाना।
रब के जो क़ानून ज़मीन और आसमान में क़ायम हैं और हर धर्म की किताब में लिखे हुए हैं, उनकी शिक्षा देना; जैसे कि जैसा बोओगे, वैसा काटोगे। इसलिए अच्छे बीज बोओ। प्रेम के बीज बोओ, प्रेम की फ़सल काटो।
✨💖✨
हर धर्म के ग़रीब लोगों को ज़रूरत की चीज़ें प्रेम से बाँटो तो इस नेक काम में हर धर्म का आदमी सपोर्ट करेगा।
✨💖✨
इस दिन पूरे नगर में डीजे पर सहने लायक़ आवाज़ में नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के महान चरित्र का और उनके कामों का परिचय हर धर्म के लोगों को और ख़ुद मुस्लिमों को भी दें और
उन्हें उनकी ज़िंदगी का मक़सद याद दिलाएं।
रब की तरफ़ लौटने को याद दिलाएं।
लोगों को सीधे रास्ते के बारे में बताएं तो
इस दिन प्रशासन सपोर्ट करता है।
ऐसी सपोर्ट अन्य दिनों में नहीं मिलती।
प्रशासन समाज में शांति व्यवस्था चाहता है। मुस्लिम भी प्रशासन को सपोर्ट करें।

Saturday, October 12, 2019

मौलवियों के शर से बचने के लिए उनकी बात में Falah Factor चेक कर लें

शुरू में जब अल्लाह ने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अहकाम नाज़िल करने शुरू किए और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाना शुरू किया तो इसका मक़सद था कल्याण, फ़लाह, वैलनेस। अब यह मक़सद आम और ख़ास की नज़र से हट चुका है।
समाज में जो लोग इलाह (विधाता) बने हुए थे और लोगों के लिए क़ानून बनाते थे और उनकी जान-माल और इज़्ज़त को जब चाहे तब ख़त्म कर देते थे। उन्होंने इसका विरोध किया कि सबको इज्ज़त, बराबरी और विकास के अवसर न मिलें। वे अपनी नस्ल की बुनियाद पर अपनी चौधराहट बाक़ी रखना चाहते थे।
फिर नबी, अहले बैत और सहाबा रज़ि. के लगातार मेहनत और क़ुर्बानियों के बाद सारे नक़ली खुदा ख़त्म हो गए। सारे चौधरियों की चौधराहट खत्म हो गई। अल्लाह का क़ानून समाज का क़ानून बन गया। ग़रीबों, कमज़ोरों, अनाथों, बेघरों, सताए हुए दबाए हुए वंचितों और औरतों को जीने का, इज्ज़त का, विरासत का, तालीम का और तरक़्क़ी का हक़ मिला। इसमें अहले बैत में और सहाबा में आपस में कुछ मतभेद और तकरार भी हुई जो कि एक समाज में रहने वाले लोगों में आम बात है। हज़रत अब्बास और हजरत अली रज़ि. के बीच हुई बातचीत की यह रिवायत सही है तो यह बात एक परिवार के सदस्यों के बीच हुई तकरार के रूप में पेश आई थी। 
इस रिवायत से यह मौलवी ख़ालिद ग़ाज़ीपुरी क्या साबित करना चाहते हैं?, इस छोटी सी क्लिप से यह स्पष्ट नहीं हुआ। अब उनके माफी मांगने की बात सुनाई दे रही है तो यह उनकी समझदारी की बात है। हिंद की जमीन अहले बैत की शान में गुस्ताख़ी करने वाले मौलवियों को क़ुबूल नहीं करती।
अब ज़्यादातर मौलवियों की बातें इसी तरह की unproductive हैं, जिनसे फ़साद और इन्तिशार फैलता है।
मैं इन बातों को मौलवियों के लिए छोड़ देता हूं और मैं ख़ुद अल्लाह के 'क़ानून ए फ़लाह' की जानकारी देता हूं, जिनसे मुस्लिमों का और हर धर्म के इंसानों का भला होता है। उन्हें आख़िरत से पहले इस दुनिया में भी फ़लाह, कल्याण, वैलनेस नसीब होती है।
🕋
फ़साद फैलाने वाले मौलवियों के शर से आम मुस्लिम सिर्फ तभी बच सकते हैं जब वे उसके बोलने को फ़लाह की तराज़ू पर तोल कर देखें कि इससे मुस्लिम समाज की और दूसरे इंसानों की कितनी भलाई हुई?
जिस बात से भलाई न हो और बुराई फैले, उस बात को कहने वाले मौलवियों को मलामत करें। इससे वे तुरंत सीधे हो जाते हैं जैसे यह मौलवी ख़ालिद गाज़ीपुरी नदवी साहब सीधे हो गए हैं, अल्हम्दुलिल्लाह।
यक़ीनन आम आदमी आलिमों की तरह क़ुरआन का तर्जुमा नहीं जानता, वह हदीस की रिवायतों का सही, कमज़ोर और मौज़ू (गढ़ा हुआ) होना नहीं जानता। तब भी रब ने हर एक इंसान की फ़ितरत में यह जानकारी रख दी है की मेरी और सबकी भलाई इस बात में है या नहीं?
जिस बात में व्यक्ति और समाज की भलाई नहीं है, वह बात दीन की बात नहीं है।
हर इंसान इस कसौटी पर अपने मौलवियों की और हर एक धर्म के ज्ञानियों की बात को परख कर देख सकता है और बुरी बातों के शर से बच सकता है।
फ़लाह के लिए काम करने वाले आलिमों की हिमायत करना दीनी काम है। अच्छे आलिमों का साथ दें।
📚
फ़ेसबुक  की जिस पोस्ट में मौलवी ख़ालिद गाज़ीपुरी नदवी साहब की मशहूर आडियो क्लिप पेश की गई। उसका लिंक यह है; हमने उसी पोस्ट पर तह कमेंट दिया है।

Friday, October 4, 2019

सही दीन धर्म को पहचानने का तरीक़ा -Dr. Anwer Jamal

Dr. Arif Kamal: Anwer Jamal Khan साहब धर्म क्या है ? इसकी परिभाषा क्या है? अगर परिभाषा सही है तो धार्मिक आदमी सही हो सकता है। पर अफ़सोस, किसी भी धर्म की परिभाषा ही अभी तक सही नहीं है।
Dr. Anwer Jamal Khan: Arif Kamal bhai, दीन का मतलब तरीक़ा और क़ानून है। आदमी आस्तिक हो नास्तिक, हरेक को तरीक़े और क़ानून की ज़रूरत होती है। इसीलिए व्यक्ति और देश, आस्तिक हो नास्तिक, सबके पास तरीक़ा और क़ानून ज़रूर है।
अब आप यह देख लें कि जिस दीन यानि तरीक़ा और क़ानून से जन्म और मृत्यु के मक़सद के बारे में उठने वाले सवाल हल होते हों 
जिससे व्यक्ति और समाज का भला होता हो,
वह सही दीन है।
जिससे समाज के ग़रीबों और कमज़ोरों को शांति, सुरक्षा और आवश्यक वस्तुएं मिलती हों, वह दीन सही है।
यूनिवर्स में कुछ क़ानून काम कर रहे हैं जैसे कि
The law of cause and effect
The law of polarity
The law of gestation आदि
जो दीन इन प्राकृतिक नियमों के अनुकूल हो, वह सत्य है।

Sunday, September 1, 2019

आपकी बात कम लोगों को क्यों अट्रैक्ट करती है? Dr. Anwer Jamal

अगर आप एक मुबल्लिग़ हैं और आप लोगों को अल्लाह के अज़ाब से डराकर नेक रास्ते पर लाने की कोशिश कर रहे हैं तो आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन यह
समझ लें कि बहुत कम लोग अल्लाह के अज़ाब से डरते हैं।
📚
आप पवित्र क़ुरआन में सब नबियों का क़िस्सा पढ़ें कि नबियों ने लोगों को अज़ाब से डराया लेकिन ज्यादातर लोग अल्लाह के अज़ाब से नहीं डरे। उन्होंने उनकी मज़ाक़ उड़ाई।
इस एप्रोच से आप बहुत कम लोगों को प्रभावित और आकर्षित कर पाएंगे।
अल्लाह के आख़िरी नबी मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने अपनी क़ौम को एक अल्लाह की शुक्रगुज़ारी और फरमांबरदारी की तरफ़ बुलाया और अल्लाह के अज़ाब से डराया लेकिन उनकी क़ौम ने उनकी बात पर ध्यान देने के बजाय उन्हें जान से मारने की कोशिश की। लोगों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक्का छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।
उसी मक्का के लोगों ने जब फ़तह के बाद उन से दुनियावी फ़ायदा होते हुए देखा तो उनकी हर बात को क़ुबूल कर लिया।
दुनियादारी इंसानों को आकर्षित करने वाली चीज दुनिया का फायदा है और हमारे दीन में दुनिया का फ़ायदा पहुंचाने की बहुत ज़्यादा ताकीद है।
अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में दोनों काम करने के लिए कहा है कि अल्लाह पर ईमान लाने के लिए कहो, नाफ़रमानी पर उसके अज़ाब से डराओ और लोगों का भला करो। आप से आम दुनियादार लोगों को दुनिया में रोज़ी, सेहत, माल, तालीम और दवा का फ़ायदा होगा तो वे आपकी बात को मानेंगे। जिसे भी दावत के मैदान में ज्यादा लोगों को आकर्षित करना हो, उसे लोगों के लिए नफ़ाबख़्श बनकर दावत और तब्लीग़ का काम करना होगा।
याद रखें, ज़्यादातर लोग अपना हित (wellness) देखकर अपना विचार बदल लेते हैं।
फिर जो झाग है वह तो सूखकर नष्ट हो जाता है और जो कुछ लोगों को लाभ पहुँचानेवाला होता है, वह धरती में ठहर जाता है। इसी प्रकार अल्लाह दृष्टांत प्रस्तुत करता है  पवित्र क़ुरआन 13:17
अब आप तय करें कि आप कम लोगों को अट्रैक्ट करना चाहते हैं या ज़्यादा लोगों को?

Saturday, August 31, 2019

Peace and Wellness Center खोलना क्यों ज़रूरी है? Dr. Anwer Jamal

फ़ैज़ ख़ान भाई ने रामपुर से सवाल किया है: Sir तारिक़ साहब ने बोला है कि अगले पार्लियामेंट सेशन मैं तब्दीली ए मज़हब के ख़िलाफ़ भी क़ानून बन सकता है। फिर तो उन आलिमों और उनके शागिर्दों को भी रोका जायेगा जो डायरेक्ट इस्लाम पेश करते हैं।
जवाब: आपने सही कहा बिल्कुल रोका जाएगा। कानून बनने से पहले ही एक बहुत बड़े मुबल्लिग़ को रोका जा चुका है।
💚🌹💚
दीन का मक़सद
शांति व्यवस्था और कल्याण है।
यही दावा हरेक देश के संविधान का है।
आप शांति व्यवस्था और कल्याण के उनवान से काम करें।
🌹
तौहीद का अक़ीदा अब सब धर्मों का साझा है और अगर आप इस अक़ीदे से शुरू करके अपनी हुकूमत क़ायम नहीं करना चाहते तो फिर किसी को तौहीद पर और आपकी तब्लीग़ पर आपि नहीं है।
हर दौर की ख़ास ज़रूरत होती है। जो दीन उसे पूरी करता है, लोग उसकी तरफ़ दौड़ते हैं।
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इस वक़्त बेरोज़गारी, बीमारी, असुरक्षा, जुर्म, आतंकवाद, ग़रीबी और ग्लोबल वार्मिंग आम है।
ये समस्याएं हर धर्म के लोगों के सामने हैं।
🌹💚🌹
अगर तौहीद से दुनिया की रोज़ी, सेहत और सलामती मिलती है तो हरेक इसे शौक़ से सीखता है। हरेक देश की सरकार चाहती है कि उसके देश से ये समस्याएं कम हों।
🌹
रब पवित्र क़ुरआन में इनका हल अपने नाम से और शुक्रगुज़ारी से करना सिखाता है।
🍏
आप समाज में शांति, रिचनेस, सेफ़्टी, सद्भावना और पेड़ लगाने का काम करेंगे,
आप लोगों को रब का और इंसानों का, अपने हाकिमों का शुक्रगुज़ार होना सिखाएंगे तो
आपको तब्लीग़ के लिए हरेक इन्वाईट करेगा।
🌹
क्योंकि आप किसी का धर्म परिवर्तन नहीं कर रहे हैं बल्कि सबको भूला हुआ धर्म याद दिला रहे हैं।
शुक्रगुज़ारी और कल्याण
सबका धर्म है।
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नये दौर में प्रेज़ेंटेशन को रिवायती दावती ट्रेंड से थोड़ा चेंज करना होगा। दावत के मक़सद पीस और वेलनेस पर काम करना होगा। इसके लिए तौहीद और यूनिवर्स में काम करने वाले क़ानून सिखाने होंगे। हर देश में हर धर्म के लोग इस पर काम कर रहे हैं। आप एक सेंटर का बोर्ड इमेज में देख सकते हैं।
🌹🍇💚
तौहीद, अद्ल और हुस्ने अख़़लाक़ से दावत शुरू होगी।
जन्म और मृत्यु का रहस्य बताना होगा।
दिल और जिस्म के रोगों की शिफ़ा के तरीक़े बताने होंगे। तिब्बे नबवी बेस्ड हर शहर में वेलनेस सेंटर खोलना आज के दौर की ज़रूरत है।
💚
आप नफ़ाबख़्श होंगे तो अहले ज़मीन आपको अपने बीच जगह देंगे।
🌹🍇💚

Friday, August 30, 2019

इंडियन मुस्लिम क्या करें? Dr. Anwer Jamal

आज मुस्लिम पूछते हैं कि हम क्या करें?
जवाब बहुत आसान है कि जो ब्राह्मण कर रहे हैं, वही तुम करो। वे बुद्धि से काम ले रहे हैं, तुम भी बुद्धि से काम लो। ब्राह्मण अपनी बेस्ट परफॉर्मेंस दे रहे हैं, तुम भी दो।
आपको पता होना चाहिए कि ब्राह्मणों का रिश्ता ब्रह्मा जी से है। उन्हें यहूदी ईसाई अब्राहम और मुस्लिम इब्राहीम के नाम से जानते हैं। जैसे अब्राहम और इब्राहीम नाम के कई लोग हुए हैं क्योंकि मशहूर हस्ती का नाम उनके बाद बहुत लोग रख लेते हैं। ऐसे ही ब्रह्मा नाम के ऋषि भी बहुत हुए हैं। बाद में यह एक पद बन गया था। जो चारों वेदों को जानता था, उसे ब्रह्मा कह देते थे। जो शुरू के ब्रह्मा थे, वह इबराहीम (अलैहिस्सलाम) थे। ब्राह्मणों में कुछ उनकी नस्ल से हैं और कुछ उनकी शिक्षा के स्नातक होने के कारण ब्राह्मण कहलाए।
यह बात सामने रहे तो ब्राह्मण अपने लगेंगे और ग़ैरियत की दीवार गिर जाएगी।
अब यह बात भी आसानी से समझ में आ जाएगी कि इतने दौर गुज़रने के बावुजूद भारतीय समाज की सभी जातियों पर ब्राह्मणों की पकड़ आज भी पहले जैसी है। यह सब उस बुद्धि की वजह से है, जो ब्रह्मा जी से उन्हें मिली है। यह उनकी बुद्धि और हिकमत का कमाल है। उन्होंने सैकड़ों सालों में दुनिया की बहुत सी संस्कृतियों से सीखा है। जिसमें ब्रह्मा जी (इब्राहीम) की असल शिक्षा दब गई है।
आज वे गली गली लोगों को उनकी समस्या का उपाय बता रहे हैं और लोग उनकी बात मान रहे हैं।
वे किसी को तीर्थ यात्रा बता रहे हैं, किसी को हवन बता रहे हैं, किसी को योगासन बता रहे हैं, किसी को ग्रह पूजा और मोती मूंगा पहनना बता रहे हैं। वे किसी को दुकान पर नींबू और मिर्च लटकाना बता रहे हैं। वे अपने तरीक़े से उपाय बता रहे हैं, आप अपने तरीक़े से उपाय बता दो।
  
भाई, सबसे पहले अपने जज़्बात क़ाबू करो और चैलेंज की भाषा बोलनी बंद करो। पिछली नस्लें यही बोलती रहीं। इमाम बुख़ारी से लेकर  बाबरी मस्जिद आंदोलन के नेता तक, सब चैलेंज की भाषा बोलते रहे। नतीजा नुक़्सान के सिवा कुछ न हुआ। प्रतिक्रया की मानसिकता और बदले की भावना से निकलो। 
अपना गोल सैट करो।
आप ख़ुद को, अपनी क़ौम को, देश और दुनिया को भविष्य में जैसा देखना चाहते हो, वैसा अपनी 'आत्मा' में देखो। इससे आप पर आपका विज़न क्लियर होगा। 
अब अपने विज़न पर चुपचाप काम करो, बस।
कम लिखे को ज़्यादा समझो।

आपको कुछ करना है तो सबसे पहले आप ब्राह्मणों की तरह भारत में बसी हुई जातियों की गिनती, उनके नाम और उनका इतिहास पढ़ो। उनकी मानसिकता को समझो।
उनसे काम लेना है तो यह देखो कि ब्राह्मण उनसे किस 'उपाय' से काम लेता है?
आप जानेंगे कि वह उन्हें 'उपाय बताने' के उपाय से वश में करता है।
आप भी उपाय बताएं।
अब आप गुरू बन गये। हर शहर में गली गली ऐसे गुरू हों, जो लोगों को सूरह फ़ातिहा से शुक्रगुज़ार बनने और अपने कामों में रब से मदद पाना सिखाएं।
ऐसे एक लाख गुरू हों।
लाख न हों तो दस हज़ार भी चलेंगे।
दस हज़ार उपाय बताने वाले गुरू चाहिएं।
अब आप 'बुद्धि' वाले बन चुके हैं।
भारत में काम जज़्बाती तक़रीरों से नहीं, ज्ञान और बुद्धि से चलेगा।
अब आप लोगों की सेवा करें और उन्हें जज़्बात क़ाबू में रखना सिखाएं। नफ़रत के बजाय मुहब्बत करना सिखाएं। उन्हें सफलता मिलेगी।
वे फ़ायदा देखकर आपकी बात मानेंगे। आपकी बात ब्राह्मण भी मानेंगे। आप उन्हें याद दिलाएं कि ब्रह्मा जी की शिक्षा वास्तव में यह है: 'हस्बुल्लाहु व नेमल वकील' अर्थात् हमें परमेश्वर काफ़ी है और वह अच्छा कार्यसाधक है। इस एक विश्वास से हर मुसीबत पलती है और हर मनोकामना पूरी होती है।
मुझे ऐसे ब्राह्मण गुरू मिलते हैं, जो अपने और अपने शिष्यों के काम बनाने के लिए पवित्र क़ुरआन की दुआओं से काम लेते हैं।
पवित्र क़ुरआन में हर समस्या का उपाय है तो भाई आप वे उपाय सबको बताओ।
सच यह है कि भारत की जनता उपाय बताने वाले 'गुरूओं' के पीछे चलती है।
आप यह मानसिकता पहचानो। आप कल्याण गुरू बनो। आप ब्राह्मणों से ज़्यादा कल्याण करो। आप ब्राह्मणों का भी कल्याण करो।
आप कल्याण के बीज बोओ। भविष्य में आप कल्याण की फ़सल काटोगे। यह तय है।
////
Danish Human भाई ने सवाल किया है: 
अस्सलामु अलैकुम। कैसे हैं आप? एक बात कहनी है। 
Aapki posts mein aksar ब्रह्मा का मतलब इब्राहीम(अ.) लिखा होता है।
Sir मैंने जो पढ़ा है उसके हिसाब से ब्रह्मा का मतलाब Creatoर(ख़ालिक़) होता है और इस हिसाब से यह अल्लाह का सिफ़ाती नाम हुआ तो ब्रह्मा को इब्राहीम(अ) से कैसे मुशाबेहत दी सकती है????
अगर लफ्ज़ ब्रह्मा वेदों या पुराणों में कहीं किसी इंसान 
के लियें भी आया है तो मुझे बताइएगा...इन शा अल्लाह।

जवाब: W alaykum assalam
Main achcha hun, Alhamdulillah!
इसे समझने के लिए आप अली नाम को ले लें। अली नाम क्रिएटर अल्लाह का है या एक इंसान का है या दोनों का है?
अगर अली नाम क्रिएटर और एक इंसान का हो सकता है तो ऐसे ही ब्रह्मा नाम भी क्रिएटर और इंसान दोनों का हो सकता है।
आप वेद पढ़ें। वेद के हर एक सूक्त के शुरू में उस सूक्त की रचना करने वाले ऋषि का नाम लिखा रहता है। कुछ सूक्तों के शुरू में आपको ब्रह्मा ऋषि का नाम लिखा हुआ मिलेगा। यह ब्रह्मा हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से अलग ऋषि है। यह एक पद नाम वाला ब्रह्मा ऋषि है।

Danish Human: JazakAllah...reply ke liyein.
जवाब: 🌹😊🌹

गीता का परम गुप्त सहज योग क्या है? Dr. Anwer Jamal

मैंने नरेश शर्मा जी की पोस्ट पर राजेश शर्मा जी का कमेंट पढ़ा। मैंने उन्हें जवाब में गीता का सहज योग समझाया। यह डायलाग आपके लिए फायदेमंद है। इसलिए मैं नरेश शर्मा जी की पोस्ट और दोनों कमेंट यहां पेश कर रहा हूँ।
Rajesh Sharma ji, 'मैं' एक दिव्य नाम है। इसके साथ जो भी गुण लगा दो और उसे रिपीट करके बोलते रहो तो वह एक समय बाद सूक्ष्म भाव जगत से स्थूल होकर जीवन में सहज साकार हो जाता है। यही सहज योग है।
गीता के दसवें अध्याय में श्री कृष्ण जी ने ख़ुद को पीपल, कुबेर और राजा आदि के रूप में पहचानने का उपदेश दिया है ताकि आपके जीवन में महानता और ऐश्वर्य आए।
लेकिन अज्ञानियों ने 'मैं' नाम के साथ वैसे ही खेल किया जैसे अज्ञानवश पांच भारतीय फ़ौजियों ने अपने ही हेलीकॉप्टर को गिरा लिया था और अब दोषी पाकर दण्ड पा रहे हैं।
मैं चौकीदार हूँ, एक दो बार कहने में कोई हरज नहीं है लेकिन इस वाक्य का रिपीटेशन चौकीदार ही बना देगा।
सारे मंत्र इसी मानसिक नियम के अनुसार फल देते हैं।
इसीलिए अपने मन में हर समय अपराध बोध लिए घूमना ठीक नहीं है क्योंकि 'मैं पापी हूँ' का विश्वास उसके जीवन में दण्ड के हालात लाता रहता है।
उसी के लिए संयम, पवित्राचरण और प्रायश्चित है ताकि मन निर्मल रहे और वह अंदर के सूक्ष्म भाव बाहर स्थूल होकर प्रकट हों तो जीवन में पवित्रता आए।
छल कपट करके कोई भी दूसरों को नहीं ख़ुद को धोखा देता है। मलिन आत्मा और अपराध बोध उसके अंदर से आनंद को ख़त्म कर देता और मरकर तो वह दुख पाता ही रहेगा।
आदमी अपनी आत्मा को कहां छोड़कर भागेगा?
बहरहाल 'हम पापी हैं' यह हमारी सामूहिक धारणा है। इसे भी बदलने की ज़रूरत है।
हमारा भौतिक जीवन हमारी मानसिक धारणाओं का प्रतिबिंब मात्र है।
'मैं प्रेम हूँ।'
'मैं शुद्ध हूँ।'
'मैं शांत हूँ।'
'मैं rich हूँ।'
'मैं सफल हूँ।'
'मैं शुक्रगुज़ार हूँ।'
ये अच्छे विश्वास हैं। इन्हें नियमित दोहराने की ज़रूरत है। आज मन के नियमों को समझने की बहुत ज़रूरत है।
Masood Ali Khan इन नियमों को सिखाते हैं।

Wednesday, August 28, 2019

मुफ़्त के माल से लाखों रूपये कमाने का सफल आयडिया Dr. Anwer Jamal


*बिज़नेस आयडिया*
हमारे शहर में एक आदमी मुफ़्त के चारे पर बकरे पालता है और ऊँची क़ीमत पर बेचता है।
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*मुफ़्त का चारा*
जो लोग फलों का जूस बेचते हैं उनके पास उस जूस का वेस्टेज खट्टा हो जाता है उस वेस्टेज में भी काफी हिस्सा दूसरा होता है और वह वेस्टेज पौष्टिक होता है जिसे बकरों के खाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
🍏🍎🍏
आप अपने घर पर जूस के बचे हुए पल्प से अपने लिए कई चीज़ें तैयार कर सकते हैं। नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:

9 Ways to Make the Best of Your Juice Pulp

एक अक्लमंद आदमी ने कुछ जूस वालों से बात कर ली कि मेरा आदमी आकर आपसे यह वेस्टेज ले जाएगा। तैयार हो गए। उसका आदमी उन सब से फलों की वेस्टेज इकट्ठे करके ले जाता है जिसे  बकरों को चारे के रूप में दिया जाता।
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फ़्री के चारे पर बकरे पलकर क़ीमत में बिकते हैं और वह आदमी काफ़ी दौलत कमा रहा है।
Goat Farming एक बहुत सफल बिज़नेस है। अल्हम्दुलिल्लाह! अर्थात् अल्लाह का शुक्र है।
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क़स्बों की सब्ज़ी मंडी में सुबह को ऐसा ही बहुत चारा मिल जाता है, जो यहा़ं वहां बिखरा पड़ा रहता है। वहां से उसे लाने के लिए किसी लड़के को मुक़र्रर किया जा सकता है।
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दिल्ली की आज़ादपुर सब्ज़ी म़डी में गिरी पड़ी सब्ज़ी और पत्तों को बिहार के कुछ लोग जमा कर लेते हैं और फिर उन्हें छांटकर अलग करके उन ढाबों पर बेच देते हैं जो स्लम एरिया में ग़रीब लोगों के लिए सस्ता खाना तैयार करके बेचते हैं।
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चमत्कार या मार्गदर्शन: कैसे होती है मुराद पूरी? Dr. Anwer Jamal

साजिद ख़ान भाई ने गुजरात से यह सवाल किया है:
इसमें कोई गलती हो तो सुधारे 
यह सच में बात हुई थी।
💫💥 *Chamtkaar ya margdarshn* ✒📖

*time nikalke jarur padhna*

  *book fair me ek teacher se baat hue islam pe , teacher surat ki badi school me principal he , baat lmbi thi yaha sirf ek hi point rkhta hu*

💥 *teacher* : *yah mera beta muje "haji ali dargah ki mannat se mila he (unhe dargah pe kafi bharosha)*

📌 *me : teacher agar aapki ek ungli kut jaaye to kya aap duniya ki kisi bhi dargah ya chamtkari mandir (koibhi dharmik jagah) se mannat maan ke vapis la sakti ho ?*

*teacher : nahi , aisa thodi ho sakta he* ❓

📌 *me : agar mannat se ek beta mil sakta he to ek kati hue ungli kyu nahi ?* 

*teacher : !!!!???* ❗❓

💫 *me : teacher,  yah acid test he !!!*
*aisa kabhi nahi ho sakta !!*
*dargah jis bujurg ki he voh hame*
*way of life, do & don't sikhane aaye the*

📖✒ *islam ne apni satyta manvane ke liye rivayati chamtkar ko kabhi base nahi banaya* 
*Islam ne baudhik nishaniya di he taaki inshan uspe chintan manan karke saty ko pehchan ne ki koshis kare*

📌 *teacher : to fir Allah kati hue ungli kaise dega ?* ❓

*me : Allah hame guide karta he ki ungli ka ilaj karavo aur dhiraj rakho* ✅

📣 *Allah chahta to sabko iman vaala bana deta* 

📖 *lekin voh to dekhna chahta he ki saty samaj me aane ke baad kon truth pe chalta he aur kaun false pe*

*bahut interesting discussion thi yaha bas itna hi*

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जवाब: आपकी इस बात में कोई ग़लती नहीं है।
लेकिन आपको यह बात जाननी है कि भारत की जनता आशीर्वाद और चमत्कार में विश्वास रखती है। भारत का हिंदू विश्वास रखता है, भारत का मुसलमान भी विश्वास रखता है।
हिंदू अपनी मुराद के लिए मंदिर में जाता है। मुसलमान बाबा या मज़ार के पास जाता है  या वह तावीज़ लेने के लिए जाता है। आप समझा कर तर्क से एक दो या 10-20 या 100 लोगों को रोक सकते हैं, भारत के सब लोगों को नहीं रोक सकते।
भारत के सब लोगों को शिर्क से रोकने के लिए आपको उन्हें बताना होगा कि जो भी मंदिर, पेड़ या मज़ार पर अपनी मुराद पाने के लिए जाता है और उसकी मुराद पूरी होती है तो उसकी मुराद रब के क़ानून के तहत पूरी होती है और वह क़ानून है यक़ीन का कानून।
जो भी इंसान कोई मक़सद रखता है और उसे उसके पूरा होने का यक़ीन है और फिर वह उसके लिए कोई अमल कर सकता है तो वह भी करता है और अगर वह जिस्म से अमल नहीं कर सकता, मजबूर है तो कोई बात नहीं लेकिन अगर वह विश्वास रखता है तो उसके जीवन में उसके विश्वास के कारण वह मुराद अपने आप किसी समय पर किसी न किसी रूप में ज़रूर पूरी हो जाती है।
अब कोई आदमी पेड़ पर, मूर्ति पर, मज़ार पर या तावीज़ पर यक़ीन रखता है तो वह पेड़, मूर्ति, मज़ार या तावीज़ उस मुराद को पूरी नहीं करता बल्कि उसका यक़ीन उस मुराद की शक्ल में पूरा होता है क्योंकि रब का क़ानून यही है।
इसीलिए इस्लाम में इख़्लास और यक़ीन दुआ के रुक्न हैं। 
इन्हीं के होने से दुआ, दुआ है। ये रुक्न न हों तो दुआ, दुआ नहीं होती। हलाल माल खाना, हलाल माल से पहनना और हलाल माल से अपनी ज़रूरतें पूरी करना दुआ क़ुबूल होने की शर्त है।
मुस्लिम सूफ़ी पूरी ज़िन्दगी सब लोगों को दुआ के रुक्न और शर्तें सिखाते रहे और खुद दुआ करके दिखाते भी रहे यानि वे लोगों को दुआ की थ्योरी सिखाते रहे और प्रैक्टिकल करके दिखाते रहे लेकिन लोगों ने न उनसे थ्योरी सीखी और न उनके प्रैक्टिकल को देखकर ऐसी दुआ करना सीखा कि उनकी दुआ अपना असर ज़ाहिर करे।
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सबसे बड़ी दुआ अल-फ़ातिहा है। इसमें शुक्र की तालीम है। रब का नाम है। उसकी रहमत का और उसकी अनंत क़ुदरत का और उसकी मदद का बयान है। सूरह फ़ातिहा की चौथी आयत में रब से मदद मांगने की दुआ है।
शुक्रगुज़ार बनकर उसकी रहमत पर नज़र करके जिस काम में भी इख़्लास और यक़ीन के साथ मदद की दुआ की जाती है और फिर उसके पूरा होने तक सब्र और मुनासिब अमल किया जाता है, वह दुआ अपने ठीक वक़्त पर किसी न किसी रूप में अपने आप ज़रूर पूरी हो जाती है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
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इस तरह जो लोग ज्ञान के अभाव में ग़लत विकल्प चुनकर शिर्क कर रहे थे। वे ज्ञान मिलने पर सही तरीक़े से दुआ करेंगे और जब उनकी दुआ अपना असर ज़ाहिर करेगी तो फिर वे क्यों बाहर की चीज़ों से मदद मांगेंगे?
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हमें लोगों को मुराद पाने का सही तरीका सिखाना होगा। तब सब लोग शिर्क छोड़ेंगे।
शुक्रिया!