(1)
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#surahikhlas
कह दीजिए कि वह अल्लाह अहद (एक) है।
अल्लाह अस्समद है (यानी आत्मनिर्भर, बेनियाज़ self sufficient है।)
न उसने किसी से जन्म लिया और न उसने किसी को (मनुष्यों की तरह) जन्म दिया।
न ही कोई उसके कुफ़ू (बराबरी) का है।
एक्स्पलेनेशन:
मैंने अपने बच्चों को बताया कि मुझे क़ुरआन मजीद की यह सूरह बहुत पसंद है और मैं इसे बहुत ज़्यादा पढ़ता हूँ। इस सूरह से हमारा माइंड अल्लाह के बारे में क्लियर हो जाता है कि वह कैसा है और हम उसे तुरंत ही देखने लगते हैं।
जब इंसान चारों तरफ़ फैली हुई कायनात को देखता है तो वह कहता है कि मैं इसमें नियम को देख रहा हूं कि हर तरफ नियम काम कर रहे हैं। रात के बाद दिन आती है और दिन के बाद रात आती है यह प्रकृति का नियम है। आम का बीज बोते हैं तो आम निकलता है और और बबूल बोते हैं तो बबूल ही निकलता है जैसा बीज बोया जाता है वैसा ही पेड़ निकलता है और वह पेड़ अपनी प्रकृति के अनुरूप ही फल देता है यह प्रकृति का नियम है। मैं नियम को काम करते देख रहा हूं।
अब अगर कोई आदमी उससे पूछे की नियम का साइज़ क्या है, वह कितने फ़ुट का है या उसका आकार क्या है? नियम त्रिकोण है या चतुर्भुज है? या नियम का रंग क्या है? वह बैंगनी कलर का है या पीला है? जब आप प्रकृति में नियम देख रहे हैं तो कृपया उसका साइज़, आकार और रंग भी बता दें।
इस बात को सुनकर हरेक आदमी हंसेगा कि हमारे देखने का मतलब यह नहीं है कि हम साइज़, आकार और रंग वाली कोई चीज़ अपनी माँस की आँख से देख रहे हैं बल्कि हम नियम को अपनी अक़्ल से देख रहे हैं कि प्रकृति में नियम है।
नियम बनाने वाले परमेश्वर को भी हम अपनी अक़्ल से देख सकते हैं और अभी देख सकते हैं।
इंसान अपनी अक़्ल से उसे भी देख सकता है जिसका साइज़, आकार और रंग न हो।
जब रस्सी पर लटके हुए कपड़े और पेड़ के पत्ते हिलते हैं तो लोग कहते हैं कि हम देख रहे हैं कि हवा चल रही है। हालाँकि कोई भी हवा को नहीं देखता, हरेक कपड़ों और पत्तों को देखता है। वे कपड़े और पत्ते हिलते देखकर अपनी अक़्ल से इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि कोई है, जो इन्हें हिला रहा है। वही हवा है। हर तरफ़ चीज़ें हिल रही हैं। जिधर भी हम चेहरा घुमाते हैं। हम हर तरफ़ हवा देखते हैं। ऐसे ही हम हर तरफ़ नियम देखते हैं। ऐसे ही हम जिधर भी देखते हैं, अपनी अक़्ल से अल्लाह को देखते हैं।
अक़्ल बहुत इम्पोर्टेंट हैं। अक़्ल न हो तो इंसान अपने पैदा करने वाले को नहीं पहचान सकता।
अक़्ल न हो तो हम यह नहीं जान पाते कि हमारा माइंड चित्रों की भाषा में विचार करता है। हमने बादशाह देखा है। हमने उसे सिंहासन पर बैठे हुए देखा है। हमने उसे हुक्म देते हुए देखा है। वह बादशाह सब पर नज़र रखता है कि कौन क्या कर रहा है।
जब अल्लाह अपने परिचय में ख़ुद को बादशाह कहता है और वह कहता है कि वह सिंहासन (अर्श) पर बैठा है और वह हुक्म देता है तो हमारा माइंड एक चित्र बना लेता है कि एक बड़ा सा इंसान अर्श पर बैठकर हुक्म दे रहा है। वह ऊपर बैठकर हमें नीचे की तरफ़ काम करते हुए देख रहा है।
जब हम क़ुरआन मजीद पढ़ते हैं तो हमारा माइंड ऐसे चित्र बनाता है क्योंकि शब्द सुनकर सोचने समझने की प्रोसेस में यही होता है। जो चित्र हमारा माइंड बनाता है, वह हमारी बनाई हुई चीज़ है और अल्लाह किसी चीज़ जैसा नहीं है।
हिंदुओं ने अंदर के काल्पनिक चित्र को बाहर भी बना दिया ताकि दूसरे भी देख लें कि वे अपने मन में परमेश्वर को किस रूप में देखते हैं। परमेश्वर की ज़्यादा शक्ति दिखाने के लिए उन्होंने उसकी मूर्ति में ज़्यादा हाथ बना दिए। उनके विद्वानों ने भी माना है परमेश्वर इस मूर्ति जैसा बिल्कुल नहीं है।
एक इंसान अपने अंदर बन रहे चित्रों को अपने मन से हटा दे और बस अल्लाह के होने को अपनी अक़्ल से जाने कि 'वह है' तो वह अल्लाह को देख लेगा।
'वह है' को ही अरबी में हुवा और हिब्रू में यहोवा कहते हैं।
सूरह इख़लास की पहली आयत ही दिल के ईमान को ख़ालिस कर देती है। वह दिल से हरेक चीज़ को हटा देती है, जिसे हमने अपना रब और इलाह बनाकर दिल में जमा रखा था। जब तक ये तस्वीरें और ये बुत दिल में रहते हैं, इंसान अपने ख़ुदा को नहीं देख पाता। जबकि वह हर तरफ़ है।
लोग पूछते हुए घूमते हैं कि क्या ख़ुदा है? हमें तो परमेश्वर नहीं दिखता। बताओ गॉड है तो वह कहाँ है?
यह ऐसा ही है जैसे नदी में रहते हुए मछली पूछे कि पानी कहाँ है?
मेरे बच्चों सूरह इख़लास पढ़ो और इसे अच्छी तरह समझो ताकि तुम अपने रब को देख लो। जब तुम क़ुरआन पढ़ोगे तो कभी बोर न होओगे। मुझे अकेलापन बुरा नहीं लगता। कोई साथ होता है तो मैं क़ुरआन मजीद की आयतें उसे सुनाकर उनका मतलब समझाता हूँ और इससे मेरा दिल ख़ुश होता है। जब मैं अकेला होता हूँ तो मुझे क़ुरआन की आयतें अपनी आत्मा में याद आने लगती हैं और मैं उनके अर्थ पर विचार करने लगता हूँ और जब वे मेरी समझ में आती हैं तो इससे भी मेरा दिल ख़ुश होता है। जब दिल ख़ुश होता है तो इंसान को अपने अंदर अच्छा महसूस होता है। इस यूनिवर्स में फलने फूलने के लिए #feelgood बहुत ज़रूरी है।
(नोट: अभी एक आयत का एक्सप्लेनेशन भी पूरा नहीं हुआ, जो मैने अपने बच्चों को समझाया।)
देखें: Blog:allahpathy.blogspot.com
(2)
*Allahpathy part 2*
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पिछली पोस्ट से जोड़कर आगे पढ़ें:
'हुवा' एक नाम है। किसी को पुकारना हो तो अरबी में 'या' शब्द लगाकर पुकारते हैं। हुवा को पुकारना हो तो 'या हुवा' कहते हैं। इस नाम से केवल उसके 'वुजूद' पर ध्यान जाता है कि वह जो है सो है।
या हुवा को याहू भी पढ़ा जाता है। यह नाम एक गुप्त रहस्य है।
For Jewish people YHWH (YAHWEH) is the most holy name of God. Traditionally, religious Jews today do not often say this name aloud. This is because it is believed to be too holy to be spoken. However, they often use substitutes when referring to the name of their God. For example, they use HaShem ("The Name") or Shem HaMeforash (“the indescribable Name”).
मूसा ने परमेश्वर से कहा, “जब मैं इस्राएलियों के पास जाकर उनसे यह कहूँ, ‘तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है,’ तब यदि वे मुझसे पूछें, ‘उसका क्या नाम है?’ तब मैं उनको क्या बताऊँ?”
परमेश्वर ने मूसा से कहा, “मैं जो हूँ सो हूँ।” फिर उसने कहा, “तू इस्राएलियों से यह कहना, ‘जिसका नाम मैं हूँ है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है’।”
फिर परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, “तू इस्राएलियों से यह कहना, ‘तुम्हारे पूर्वजों का परमेश्वर, अर्थात् अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर, यहोवा, उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है। देख सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी-पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा।’
-निर्गमन 3:13-15
हिब्रू में YAHWEH यहोवा का अर्थ है “मैं जो हूँ सो हूँ" I AM THAT I AM.
इस तरह हम हुवा नाम से "मैं हूँ" (अरबी में अना और संस्कृत में अहम्) नाम तक पहुँच जाते हैं। यह एक गुप्त भेद है। जिसे आम तौर से बताया जाए तो लोग किन्तु परन्तु करेंगे। सो मैं इसे यहाँ न बताऊंगा।
लेकिन इस नाम के साथ इंसान की फ़लाह और कल्याण जुड़ा है। इसलिए फिर भी मैं इतना बता दूँ कि 'मैं हूँ' उस वुजूद के लिए बोला जाता है जो अपने होने का एहसास रखता है।
मिसाल:
एक इंसान भी अपने लिए 'मैं हूँ' बोलता है।
इंसान में जिस्म से अलग एक हक़ीक़त है। वही "मैं हूँ। जब भी इंसान के वुजूद में कोई डर या विश्वास जम जाता है तो उसके डर या विश्वास के अनुसार ही उसके जीवन में कुछ घटनाएं घटित हो जाती हैं। ख़ुद आपने भी कई बार यह कहा होगा कि मुझे जिस बात का डर था, वही बात हो गई।
आपके डर ने ही उस बुरी घटना को आपके जीवन में आकर्षित किया है। इसलिए अपने कल्याण के लिए "मैं हूँ" को यानि अपने वुजूद को डर और बुरे विश्वास (वसवसे) से पाक किया जाता है।
ख़ुद को पाक रखना है। इसीलिए ग़ुस्ल (स्नान) और वुज़ू किया जाता है ताकि याद रहे कि हमें अपने आप को अंदर से भी पाक करते रहना है। हरेक दीन धर्म में पवित्र रहने और स्नान करने की शिक्षा मौजूद है।
मुस्लिम आलिम हर ज़माने में रब के एक गुप्त नाम #ismeazam की तलाश में रहे हैं। इमाम बोनी रहमतुल्लाहि अलैह ने एक पूरी किताब शम्सुल मआरिफ़ इस्मे आज़म की तलाश में लिखी है और मुझे हैरत है कि उन्होंने तौरात में आए नाम "मैं जो हूँ सो हूँ" को भी अपनी किताब में जगह दी है। उनके अलावा मुझे दूसरे किसी आलिम की इस्मे आज़म पर रिसर्च में इस हिब्रू नाम का तज़्करा न मिला।
बहरहाल जब भी 'हुवा' या 'हू' कहकर अपने रब का ध्यान करोगे तो केवल उसके अस्तित्व (वुजूद) की तरफ़ ध्यान जाएगा। इससे आपको इख़लास नसीब हो जाएगा।
दुआ के दो रूक्न (स्तंभ pillars) हैं:
इख़लास और यक़ीन।
जब ये दोनों होते हैं तो दुआ वुजूद में आ जाती है और इनमें से एक भी न हो तो दुआ का वुजूद नहीं होता।
कई बार आदमी दुआ करता है लेकिन वह नहीं जानता कि इख़लास और यक़ीन के बिना या इनमें से एक न हो तो भी दुआ हक़ीक़त में दुआ नहीं होती।
और कई बार वह नहीं जानता कि वह इख़लास और यक़ीन को कैसे हासिल करे।
सूरह इख़लास को समझने और बार बार पढ़ने से ये दोनों हासिल हो जाते हैं।
अल्हम्दुलिल्लाह।
Blog: allahpathy.blogspot.com
(3)
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#हुवा का सिम्पल अर्थ है वह, He.
जब हम इस शब्द को परमेश्वर के लिए बोलते हैं तो यह केवल अस्तित्व का बोध कराता है, उसके किसी गुण का नहीं।
हक़ीक़त में वही परमेश्वर हरेक वस्तु और हरेक व्यक्ति के अस्तित्व का स्रोत है।
एक व्यक्ति अपने होने को फ़ील करता है कि 'मैं हूँ' तो वह अपने अस्तित्व को फ़ील करता है। जिसे वह आत्म या आत्मा कहता है और यह आत्म या आत्मा शरीर से अलग एक हक़ीक़त है।
जब आप लेटकर आँखें बंद करके पूरी तरह #रिलैक्स्ड होकर अपने होने को फ़ील करते हैं और इसी हाल में जागे रहते हैं या सो जाते हैं तो अपने आपको जानने की #नीयत के कारण आप पर आपका अस्तित्व ख़ुद को और ज़्यादा प्रकट करता है।
आपका अस्तित्व एक रेफ़्लेक्शन और एक ज्योति है असल अस्तित्व की। आप हमेशा हक़ीक़ी वुजूद से जुड़े हुए होते हैं।
'मैं हूँ' या 'आत्मा' या 'ख़ुदी' एक नाम है, जिसमें इंसान ज़िंदा और क़ायम है। यह रब का एक पोशीदा नाम है, जो उसने हमें दिया ताकि हम जीवन पाएं। 'मैं हूँ' में हम जीवित हैं।
जब कोई व्यक्ति इस नाम के साथ कोई गुण मान लेता है कि मैं ग़रीब हूँ, मैं ग़ुलाम हूँ, मैं परेशान हूँ
...तो उसके विश्वास के अनुरूप ही उसके जीवन में और ज़्यादा बुरी परिसथितियाँ घटित होती हैं और वह व्यक्ति वही बना रहता है जो वह अपनी आत्मा में विश्वास रखता है। जिसे ईमान बोलते हैं। बाहर की ग़रीबी, ग़ुलामी और परेशानी की वजह अंदर का विश्वास (core belief) है।
जब अपने अंदर के ईमान को सही कर लिया जाता है तो बाहर की ग़रीबी, ग़ुलामी और परेशानी भी घटने और मिटने लगती है। बाहर की परिस्थिति या व्यक्ति इंसान पर कोई ज़ोर और ताक़त नहीं रखते बल्कि अंदर का #अस्तित्व बाहर की परिस्थितियों पर ज़ोर रखता है क्योंकि वही उनका चुनाव करता है कि मुझे क्या बनाना है और क्या भोगना है!
अधिकांश लोग इससे बेशुऊर (अचेत, #unconscious) हैं।
अधिकतर लोग ख़ुद अपने अस्तित्व से अचेत और #अज्ञानी हैं और बहुत लोग अपने अस्तित्व के स्त्रोत से अपने संबंध के प्रति ग़ाफ़िल हैं।
क़ुरआन मजीद के ज़रिए #रब ने लोगों को उनकी अपनी हक़ीक़त के प्रति चेताया है और उन्हें उनकी शक्तियों का ज्ञान दिया है। जिनसे वे ग़रीबी, ग़ुलामी और परेशानी से #मुक्ति पा सकें।
इंसान की शक्ति उसका #ईमान और #नीयत है। यह सही हो जाए तो जो पुराने ईमान से बनी हुई बुरी परिस्थितियां हैं, वे मिटने लगती हैं क्योंकि उन्हें अब हमारे अंदर के ईमान से सपोर्ट नहीं मिलती।
जब हम हुवा या 'हू' या 'याहू' कहकर कुछ देर केवल अस्तित्व के प्रति सजग होते हैं तो यही सजगता #ध्यान है। इस हाल में हमारा #माइंड परिस्थितियों से हट जाता है और हमें तुरंत शाँति मिल जाती है लेकिन यह अस्थायी होती है क्योंकि इस हाल से बाहर आते ही फिर से पुरानी परिस्थितियां दबाव बना लेती हैं।
उन परिस्थितियों को बदलने के लिए हमें इस पूरे मैकेनिज़्म को समझना होगा कि अस्तित्व कैसे काम करता है?
जोकि एक पूरी किताब का विषय है।
हालात बदलने के लिए ईमान के बाद हिकमत भरा अमल ज़रूरी है।
और यह #हिकमत भरा अमल भी आत्मा से ही शुरू होता है।
अगर यह विज़न और विश्वास है कि 'मैं मज़लूम हूँ' तो इस विश्वास की डिमांड के अनुरूप हमेशा कोई ज़ालिम ऊपर बैठा रहेगा। वह नहीं उतरेगा। वह नए नए कष्ट देता ही रहेगा ताकि आपका विश्वास आप पर घटित हो। लोग अपने ग़लत विश्वास के मारे हुए हैं। जब क़ौमी सतह पर यह ग़लत विश्वास जड़ पकड़ लेता है कि
'हम मज़लूम हैं' तो फिर वे एक बुरे तिलिस्म की रचना करके उसके दुष्चक्र में फंस जाते हैं।
इस #तिलिस्म से मुक्ति के लिए एक नए #हैल्दी #विज़न की रचना करना ज़रूरी है। जिसमें आप ख़ुद ग़ालिब हों और दुश्मन पाँव तले की चौकी हों, जैसा कि #नबियों का विज़न होता था। जिसे वे सामने रखकर चलते थे।
#यहोवा ने मेरे स्वामी से कहा,
“तू मेरे दाहिने बैठ जा, जब तक कि मैं तेरे शत्रुओं को तेरे पाँव की चौकी न कर दूँ।”
-ज़बूर 110:1
ख़ुद को अकेला और कमज़ोर मानना एक ग़लत विश्वास है।
क़ुरआन कहता है कि #अल्लाह क़वी यानी ताक़त वाला है।
#क़ुरआन कहता है कि
'व हुवा म'अकुम' यानी और वह तुम्हारे साथ है।
यह एक #हक़ बात है और यह एक सही विश्वास है।
जब हम अपने अकेले और कमज़ोर होने का माइंडसेट लेकर काम करते हैं तो हमारे काम ख़राब होते हैं और
जब हम ताक़त वाले रब के अपने साथ होने का #माइंडसेट लेकर काम करते हैं तो हमारे दुश्मनों के काम ख़राब होने लगते हैं और
हमारे काम बनने लगते हैं।
#परमेश्वर ने हमारे #कल्याण की शक्ति हमारी #आत्मा में रखी हुई है।
आत्मा 'मैं हूँ' कहती है।
यह एक #पवित्र शक्तिशाली नाम है।
इसका सही प्रयोग सीखने की ज़रूरत है।
मैं हूं के साथ अच्छे गुण बोलो कि मैं शुक्रगुजार हूँ।
I AM #BLESSED BEYOND MEASURE.
...तो इससे आपका हाल नेचुरली ख़ुद संवरेगा।
अच्छे अवसर और अच्छे लोग ख़ुद मिलेंगे।
#कहने_का_मक़सद यह है कि
'हुवा' का ध्यान।
है परम ज्ञान ।।
#अगरअबभीनाजागेतो रब की शक्ति से अपने हक़ में कल्याणकारी काम कैसे करोगे?
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#ईद #मुबारक
#ईदी के रूप में #आत्मज्ञान का तोहफ़ा:
क़ुल हुवल्लाहु अहद।
यानी कह दीजिए वह अल्लाह अहद (एक) है।
-क़ुरआन, सूरह इख़लास
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह ने एक दिन मुझे इस आयत का मतलब बताते हुए कहा कि 'अरबी में अहद उसे कहते हैं जो एक होकर एक हो। जैसे रूह और जिस्म से मिलकर 'एक' इंसान बना है तो इसे अहद न कहेंगे। यह गिनती में एक है। इसके एक होने को अरबी में वाहिद कहेंगे।'
अल्लाह वाहिद भी है और अहद भी। इंसान का एक जिस्म भी बहुत सारी हड्डियों और नसों से मिलकर बना है। वह वाहिद है, #अहद नहीं।
मैं आपको 'अहद' का गुण समझाने के लिए किस निशानी से मिसाल दे सकता हूँ?
यह आपकी आत्मा और शुऊर (चेतना consciousness) है, जो अपने होने का एहसास रखती है कि 'मैं हूँ'। यह एक होकर एक है। यह अहद की उम्दा मिसाल है। आप ख़ुद अल्लाह की निशानी हैं। आप ख़ुद पर ग़ौर करके अल्लाह को पहचान सकते हैं कि अल्लाह अहद है और अहद होना क्या होता है!
#अल्लाह के गुणों का कीर्तन आत्मज्ञान की कुंजी है।
#अगरअबभीनाजागेतो आत्मज्ञान से कल्याण कैसे पाओगे?
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#अल्लाह नाम उस हस्ती के लिए बोला जाता है जो हक़ीक़ी माबूद यानी वास्तविक हाकिम है। जिसका हुक्म ज़मीन और आसमान में क़ायम है। अल्लाह शब्द का अर्थ
हक़ीक़ी माबूद है।
लेकिन इसके और भी कई अर्थ हैं जैसे कि जो हैरत में डालता है और जिसकी तरफ़ दिल खिंचता है और जिससे वालिहाना #मुहब्बत की जाए यानी बहुत ज़्यादा मुहब्बत की जाए।
हम अल्लाह के बनाए हुए कामों को और ख़ुद को देखते हैं तो हैरत में पड़ते हैं और हम सब अपने अंदर अपने पैदा करने वाले के लिए पैदाइशी तौर पर एक प्रेम मौजूद पाते हैं। इंसान शब्द उन्स से बना है। उन्स का अर्थ प्रेम है। जब हम प्रेम करते हैं तो हम अपने वुजूद को सार्थक करते हैं। इंसान शब्द का अर्थ प्रेमी है। #मोमिन बंदा अपने रब से सबसे ज़्यादा प्रेम करता है।
अल्लाह नाम किसी क्रिएशन के लिए या किसी इंसान या फ़रिश्ते के लिए नहीं बोला जाता। यह एक रब के लिए ही ख़ास है, जिसने सबको पैदा किया है।
अल्लाह की हस्ती के लिए बोला जाने वाला नाम अल्लाह भी हैरत में डालता है। इस नाम पर रिसर्च करने वाले आलिम बताते हैं कि अल+इलाह से मिलकर अल्लाह शब्द बना है। जिसका अर्थ हक़ीक़ी #माबूद है।
लेकिन हैरत की बात यह है कि जिन नामों में शुरू में 'अल' लगता है। जब उन नामों के साथ शुरू में पुकारने के लिए 'या' लगाते हैं तो 'अल' हट जाता है जैसे कि अल-रहमान और अल-रहीम में जब या लगाकर दुआ करते हैं तो या रहमान और या रहीम बोला जाता है लेकिन अरबी व्याकरण का यह क़ायदा 'अल्लाह' नाम पर लागू नहीं होता। अल्लाह शब्द में से 'अल' हटाकर 'या' नहीं लगाया जाता बल्कि अल्लाह ज्यों का त्यों रहता है और शुरू में 'या' लगाकर 'या अल्लाह' बोलते हैं। इससे पता चलता है कि अल्लाह नाम भी 'अहद' है यानी न तो यह दो शब्दों के जोड़ से बना है और न ही इसे तोड़ा जा सकता है। यह पूरा एक ही शब्द है। अल्लाह की ज़ात (अस्तित्व) के लिए अल्लाह नाम बहुत ज़्यादा उपयुक्त है। यह नाम भी उसकी सिफ़त (गुण) को ज़ाहिर करता है। यह ख़ासियत किसी दूसरे नाम में नहीं है। आलिम और सूफ़ी इसे सबसे बड़ा नाम मानते हैं। क़ुरआन मजीद में यह नाम बार बार और बहुत ज़्यादा आता है।
God's name in Arabic, 'Allah,' occurs in the Qur'an 2698 times.
*#अगरअबभीनाजागेतो अल्लाह नाम का अर्थ कैसे पता करोगे?*
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*कह दीजिए कि वह अल्लाह अहद (एक) है।*
अल्लाह अस्समद है। (यानी आत्मनिर्भर, दूसरों पर निर्भर होने से बेनियाज़ है और self sufficient है।)
न उसने किसी को (मनुष्यों की तरह) जन्म दिया और न ही उसे किसी ने जन्म दिया।
और न ही कोई उसके कुफ़ू (बराबरी) का है।
#Quran #surahikhlas
हम सूरह इख़्लास की पहली आयत के बारे में आपको बता चुके हैं।
दूसरी, तीसरी और चौथी आयत भी बिल्कुल क्लियर है।
अल्लाह अस्समद है यानी हर चीज़ और हर इंसान अपनी ज़रूरत की पूर्ति के लिए अल्लाह पर निर्भर है लेकिन वह किसी पर निर्भर नहीं है। अपनी मुराद की पूर्ति के लिए लोग उसकी तरफ़ तवज्जो करते हैं।
कोई भी उसकी हस्ती में से नहीं निकला कि उसका अंश या वंश हो और न ही वह ख़ुद किसी में से निकला कि वह किसी का वंश या बेटा हो।
कोई भी अल्लाह के कुफ़ू का नहीं है यानी कोई भी उसके जोड़ और बराबरी का नहीं है। मैंने अपने बच्चों को बताया कि जैसे शैख़ अदब अली अपनी बेटी बाला ख़ातून का निकाह उस्मान से करते हैं तो वह उन्हें एक दूसरे के जोड़ और बराबरी का देखकर ही उनका निकाह करते हैं। एक इंसान के 'कुफ़ू' यानी बराबरी के कई इंसान होते हैं लेकिन कोई भी अल्लाह के कुफ़ू का नहीं है।
*हैरत की बात यह है कि* सूरह इख़्लास की चारों आयतें 'अल्लाह' के वुजूद का परिचय देती हैं और इसी के साथ ये चारों आयतें #अल्लाह नाम के बारे में भी पूरी उतरती हैं।
1. अल्लाह नाम अहद है यानि यह नाम एक होकर एक है। अल्लाह नाम दो शब्दों से मिलकर नहीं बना।
2. अल्लाह नाम अपना अर्थ देने में दूसरे किसी शब्द पर निर्भर नहीं है। यह नाम अपना अर्थ देने के लिए अपने आप में काफ़ी है।
3. न अल्लाह नाम किसी शब्द या धातु से निकला है और न अल्लाह नाम से किसी शब्द ने जन्म लिया है।
4. कोई भी दूसरा नाम अल्लाह नाम के कुफ़ू (बराबरी) का नहीं है। अपनी तरह का यह अकेला नाम है।
*इस नाम की हैरत में डालने वाली ख़ासियत यह है कि* अगर इस नाम से एक एक हरफ़ हटाते रहें, तब भी यह नाम अपने अंदर अल्लाह की हस्ती की तरफ़ ठीक ठीक इशारा और अर्थ देता रहता है।
जैसे कि अल्लाह नाम में से अलिफ़ हटा दें तो लिल्लाह للہ रहता है। जिसका अर्थ 'अल्लाह का' है।
अब इसमें से एक और हरफ़ लाम हटा दें तो 'लहु' शब्द बचता है। जिसका अर्थ है 'उसी का'।
अब इसमें से फिर एक हरफ़ लाम हटा दें तो 'हु' बचता है और 'हु' का अर्थ है 'वह'।
इन चारों शब्दों से क़ुरआन मजीद में आयतें शुरू होती हैं और वहाँ ये चारों शब्द अल्लाह के वुजूद की तरफ़ इशारा देते हैं जैसे कि
1.अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवल हय्युल क़य्यूम।
اَللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ١ۚ اَلْحَیُّ الْقَیُّوْمُ
-क़ुरआन मजीद 2:255
2.लिल्लाहि माफ़िस्समावाति वमा फ़िल् अर्ज़।
لله ما في السماوات وما في الأرض
-क़ुरआन मजीद 2:284
3.लहु माफ़िस्समावाति वमा फ़िल् अर्ज़ि वमा बैइनाहुमा वमा तहतस्सरा।
لَهٗ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَ مَا فِی الْاَرْضِ وَ مَا بَیْنَهُمَا وَ مَا تَحْتَ الثَّرٰى(۶)
-क़ुरआन मजीद, सूरह ताहा 6
4. हुवल्लाहुल् लज़ी ला इलाहा इल्ला हू।
ھُوَ اللّٰہُ الَّذِیْ لَآاِلٰہَ اِلَّا ھُوَ
-क़ुरआन मजीद, सूरह हश्र 22
अरबी के हरफ़ 'हा' (H) की वजह से अल्लाह नाम अपने आख़री हरफ़ तक रब के वुजूद की तरफ़ इशारा देता है। इसीलिए अल्लाह के नामों की तासीर पर रिसर्च करने वाले बहुत से ज़िक्र करने वालों ने 'हू' को इस्मे आज़म #IsmeAzam लिखा है।
इस्मे आज़म अल्लाह का वह सबसे बड़ा नाम है जो अधिकतर आलिमों से पोशीदा है और उस नाम की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि उसके साथ जो भी दुआ माँगी जाती हे, वह क़ुबूल होती है, चाहे दुआ करने वाला कितना ही गुनाहगार हो।
अब यह *इस्मे आज़म* है या नहीं?
यह बात आप ख़ुद इसके साथ दुआ करके देख सकते हैं।
*#इख़्लास और #यक़ीन के साथ* इस बरकत वाले नाम के साथ *दुआ करें* और इस नाम की तासीर देखें।
#अगरअबभीनाजागेतो ?