Faiz Khan-सर् मैं आपसे किताब लिखने के लिए इसलिए कह रहा था क्योंकि मैं समझता हूँ कि दोनों तरह के नैरेटिव लोगों के सामने होने चाहिए जिसको जो सही लगे क़ुबूल कर ले मैं यह भी नहीं कह रहा हूँ कि आप सही कह रहे हैं और न आपको ग़लत कह रहा हूँ क्योंकि मैं संस्कृत नहीं जानता और न ही वेदों के बारे में कुछ जनता हूँ सिवाय कुछ मन्त्रो के अलावा जहाँ तक WORK के दाइयों की बात है तो उसमें दोनों तरह के लोग हैं। कुछ muqallid हैं तो बहुत सारी इल्मी और अख़लाक़ी शख्सियत भी है। बहुत सारे पढ़े लिखे लोग भी वर्क में शामिल हुए हैं जो लोग वर्क मैं इख़्तेलाफ़ के आदाब नहीं जानते। असल में तारिक़ सर् की फिक्र पर नहीं हैं।तारिक़ सर् को सुनने समझने से पहले मैं भी बहुत कट्टर था उनसे हुस्ने इख़्तेलाफ़ सीखने की इब्तेदा हुई बहरहाल कोई भी दावती ग्रुप लोगों से बनता है जैसे ghamidi साहब को अल्लाह ने बड़ी इल्मी और आला shaksiyaaat की टीम दी है जिसमे से कितने लोग ऐसे हैं जो खुद किसी तंज़ीम को लीड करने की सलाहियत रखते हैं इन् शा अल्लाह तारिक़ सर को भी ऐसे लोग मिलते रहेंगे इसी तरह की जमातों के साथ अल्लाह की मदद होती है ।। अल्हम्दुलिल्लाह.
Tauheed Bhai-भाई अस्सलामु अलैकुम, अनवर भाई वेद मे तौहीद नही है ये तो पता चल गया। लेकिन कुछ मंत्र जो है जैसे कि 'न तस्य प्रतिमा अस्ति' और भी इस तरह के मंत्र है जिसमे बताया गया है के वो एक है उसका कोई शरीर नही है, तो भाई इन मंत्रो में किसके बारे मे बताया गया है, भाई मदद करिये जब से आप ने बताया है वेद में तौहीद नही है तो बस ये वाले मंत्र सोच सोच कर दिमाग मे अजीब हलचल मची है।
Rihan Khan-Sir isi wajah se to dr. Anwar sahab hmare ustad e mohtram se hmne request ki h ki book likhe or usme ye sare mazameen naqal kre jaise abhi hmare bhai ne puchhenge hai "na tasya partima asti" wagera mantr pr roshni dale or unki shi tashreeh kre taki hmare ilm me izafa ho or mantro ko shi samjh sake.
Dr. Anwer Jamal- आप सभी भाईयों का इतना ज़्यादा तक़ाज़़ा है तो मैं इस सब्जेक्ट पर जरूर एक किताब लिखूंगा, इन् शा अल्लाह; और उससे आपके सामने मेरा नज़रिया आ जाएगा लेकिन उसमें कुछ वक्त लगेगा और जैसाा कि तौहीद भाई लिखा है कि 'भाई मदद करिये जब से आप ने बताया है कि वेद में तौहीद नही है तो बस ये वाले मंत्र सोच सोच कर दिमाग में अजीब हलचल मची है।'
आप सब लोग उस हलचल से मेरी किताब आने से पहले एक खास तकनीक का इस्तेमाल करके इत्मीनान और सुकून हासिल कर सकते हैं। मैं इस तकनीक को सेकेंड ओपिनियन तकनीक कहता हूं। हम इस तकनीक का इस्तेमाल मरीज़ की सही हालत जानने के बारे में करते हैं।
आप जानते हैं कि सब लोग किसी विशेषज्ञ डॉक्टर जितना नहीं जानते। जब एक डॉक्टर किसी गर्भवती औरत के बारे में यह सलाह देता है कि गर्भवती औरत की या उसके गर्भ के शिशु की जान को खतरा है और तुरंत उसका ऑपरेशन होना जरूरी है तो सब लोग बहुत चिंतित हो जाते हैं और गर्भवती औरत के परिवार वाले मेडिकल जानकारी के अभाव में खुद अपने ज्ञान और अपने अनुभव से यह तय नहीं कर पाते कि वे डॉक्टर का कहना मान कर ऑपरेशन कराएं या न कराएं। हम सबके सामने ऐसे कई केस आ चुके हैं जिनमें डॉक्टर ने बिना ज़रूरत ही गर्भवती औरत का ऑपरेशन कर दिया जिससे वह ग़ैर ज़रूरी तौर से आर्थिक क़र्ज़ में फंस गई और उसकी सेहत भी पहले जैसी न रही। कुछ केस ऐसे भी सामने आए हैं जिनमें एक आदमी पेट दर्द के लिए अस्पताल में दाखिल हुआ और डॉक्टर ने उसे ऑपरेशन की जरूरत बताकर ऑपरेशन कर दिया। कुछ महीने बाद किसी और वजह से जब उसने अपने पेट का अल्ट्रासाउंड टेस्ट कराया तो उसे पता चला कि डॉक्टर ने उसकी एक किडनी निकाल ली है। इन सब केसेज़ को देख कर अब यह होने लगा है कि जब एक डॉक्टर किसी पेशेंट को ऑपरेशन की ज़रूरत बताता है और उसके परिवार के जागरूक लोग खुद अपने ज्ञान और अनुभव की बुनियाद पर कोई फैसला नहीं कर पाते कि उस उस डॉक्टर की सलाह के मुताबिक ऑपरेशन कराया जाए या न कराया जाए तब वे सेकंड ओपिनियन के लिए दूसरे डॉक्टर के पास जाते हैं। अगर सचमुच ऑपरेशन की जरूरत होती है तब दूसरा डॉक्टर भी मरीज़ की रिपोर्ट्स देखकर वही बात कहता है जो पहले डॉक्टर ने कही थी जब कि उसे नहीं पता होता कि पहले डॉक्टर ने क्या कहा है। दोनों जगह एक ही बात सामने आने से बात के सच होने का यक़ीन हो जाता है।
यूरोप में, अमेरिका में और अफ़्री़क़ा में बहुत लोग पवित्र क़ुरआन का अनुवाद पढ़ कर तौहीद को अपना लेते हैं हालांकि वे लोग क़ुरआन की मूल भाषा नहीं जानते। उन्हें किसी आयत के अनुवाद में शक होता है तो वे दूसरे संप्रदाय का अनुवाद देख लेते हैं और जब वे देखते हैं कि दोनों अनुवाद में एक ही सेंस है तो वे मुत्मईन हो जाते हैं। मिसाल के तौर पर सऊदी अरब में इस्लामी तीर्थ और प्रचार केंद्र है, जहाँ सब मुस्लिम हज करने जाते हैं और वहाँ के आलिम हर भाषा में पवित्र क़ुरआन का ऑथेंटिक अनुवाद डिस्ट्रीब्यूट करते हैं और सऊदी अरब ईरान का विरोध करता है। ईरान के मुस्लिम आलिम भी पवित्र क़ुरआन का अनुवाद करते हैं। अब आप देख सकते हैं कि जिन आयतों में अरब के सुन्नी आलिम तौहीद बता रहे हैं, उनका आनुवाद उसके विरोधी शिया आलिम भी तौहीद वाला करते हैं। जिन आयतों में एक अल्लाह की इबादत का हुक्म है, वे उनमें आत्मा, आग या सूरज की इबादत नहीं बताते।
इसी तरह आप ईसाई धर्म के तीर्थ स्थान वेटिकन सिटी से प्रकाशित रोमन कैथोलिक संप्रदाय के बाइबल के अनुवाद को देख सकते हैं और उसे उसके विरोधी प्रोटेस्टेंट संप्रदाय के अनुवाद से मिला कर देख सकते हैं। एक संप्रदाय के अनुवाद में जिन आयतों में क्रिएटर की तौहीद का बयान है, उन आयतों में उसके विरोधी संप्रदाय के अनुवाद में भी तौहीद का बयान ही मौजूद मिलता है।
इसी तरह आप हरिद्वार जैसे हिन्दू तीर्थों और आश्रमों और शंकराचार्यों द्वारा मान्यताप्राप्त सायण का वेदभाष्य देख लें और दूसरा ओपिनियन उसका विरोध करने वाले स्वामी दयानन्द जी का वेदभाष्य देख लें। दोनों संप्रदाय जिन वेद मंत्रों में तौहीद बता दें। आप समझ लें कि वह अनुवाद ठीक है और ऐसा मिलना बहुत मुश्किल है। सनातनी जिस मंत्र के अनुवाद में एक सूर्य की इबादत बताते हैं, स्वामी दयानन्द जी उसी में एक परमेश्वर की भक्ति बता रहे हैं। जब एक शिर्क और दूसरा तौहीद बताए तो आप समझ लें कि इस मंत्र के अनुवाद में दोनों एक मत नहीं हैं, दोनों में कोई एक ग़लत अनुवाद कर रहा है।
जैसे कि तौहीद भाई ने एक वेदमंत्र 'न तस्य प्रतिमा अस्ति' यजुर्वेद 32:3
के बारे में पूछा है कि वह परमेश्वर के बारे में है या नहीं? तो आप यह बात ख़ुद भी बहुत आसानी से जान सकते हैं। उसका तरीक़ा यह है कि आप सनातनी और आर्य समाजी भाष्य लेकर दोनों का अनुवाद मिला लें। आपके सामने सच्चाई आ जाएगी। वेद के विषय में एक सकारात्मक बात यह और है कि उसमें हरेक वेदमंत्र का देवता लिखा रहता है। जिससे आप यह जान सकते हैं कि इस वेदमन्त्र में किसकी बात हो रही है?
जब आप यजुर्वेद 32:3 का देवता देखते हैं तो आपको वहाँ इस मंत्र का देवता 'आत्मा' लिखा हुआ मिलेगा और इस तरह आप जान लेंगे कि यह बात आत्मा के विषय में कही जा रही है कि आत्मा की प्रतिमा नहीं है। यह बात सच है। यह मंत्र परमेश्वर के विषय में नहीं है।
मेरा मक़सद यह नहीं है कि मैं आपको कुछ बता दूँ और आप उसे मान लें। मेरा मक़सद है कि मैं आपको जागरूक कर दूँ कि आप ख़ुद चेक करके देखें कि
1. जिन वेद मंत्रों में तौहीद बताई जाती है क्या सचमुच वैदिक धर्म के दोनों संप्रदाय उसमें तौहीद बताते हैं?
2. क्या सचमुच वेद का एक सूक्त भी एक परमेश्वर की उपासना पर आधारित है?
3. आप स्वयं जागरूक बनें ताकि कोई आपको मुशरिक न बना सके। आपकी सबसे बड़ी दौलत 'तौहीद' है। इसमें कोई समझौता न करें, इसमें किसी की शख़्सियत से मरऊब न हों। आप ख़ुद चेक करें कि दावते दीन के नाम पर शिर्क का घालमेल तो नहीं चल रहा है?
अल्लाह का शुक्र है कि WORK में बहुत सारे लोग इल्म और अच्छे अख़्लाक़ वाले हैं और वे इख़्तिलाफ़ के आदाब जानते हैं। मुझे उनसे भी ख़ैर की उम्मीद है, अल्हम्दुलिल्लाह!
आप सब लोग उस हलचल से मेरी किताब आने से पहले एक खास तकनीक का इस्तेमाल करके इत्मीनान और सुकून हासिल कर सकते हैं। मैं इस तकनीक को सेकेंड ओपिनियन तकनीक कहता हूं। हम इस तकनीक का इस्तेमाल मरीज़ की सही हालत जानने के बारे में करते हैं।
आप जानते हैं कि सब लोग किसी विशेषज्ञ डॉक्टर जितना नहीं जानते। जब एक डॉक्टर किसी गर्भवती औरत के बारे में यह सलाह देता है कि गर्भवती औरत की या उसके गर्भ के शिशु की जान को खतरा है और तुरंत उसका ऑपरेशन होना जरूरी है तो सब लोग बहुत चिंतित हो जाते हैं और गर्भवती औरत के परिवार वाले मेडिकल जानकारी के अभाव में खुद अपने ज्ञान और अपने अनुभव से यह तय नहीं कर पाते कि वे डॉक्टर का कहना मान कर ऑपरेशन कराएं या न कराएं। हम सबके सामने ऐसे कई केस आ चुके हैं जिनमें डॉक्टर ने बिना ज़रूरत ही गर्भवती औरत का ऑपरेशन कर दिया जिससे वह ग़ैर ज़रूरी तौर से आर्थिक क़र्ज़ में फंस गई और उसकी सेहत भी पहले जैसी न रही। कुछ केस ऐसे भी सामने आए हैं जिनमें एक आदमी पेट दर्द के लिए अस्पताल में दाखिल हुआ और डॉक्टर ने उसे ऑपरेशन की जरूरत बताकर ऑपरेशन कर दिया। कुछ महीने बाद किसी और वजह से जब उसने अपने पेट का अल्ट्रासाउंड टेस्ट कराया तो उसे पता चला कि डॉक्टर ने उसकी एक किडनी निकाल ली है। इन सब केसेज़ को देख कर अब यह होने लगा है कि जब एक डॉक्टर किसी पेशेंट को ऑपरेशन की ज़रूरत बताता है और उसके परिवार के जागरूक लोग खुद अपने ज्ञान और अनुभव की बुनियाद पर कोई फैसला नहीं कर पाते कि उस उस डॉक्टर की सलाह के मुताबिक ऑपरेशन कराया जाए या न कराया जाए तब वे सेकंड ओपिनियन के लिए दूसरे डॉक्टर के पास जाते हैं। अगर सचमुच ऑपरेशन की जरूरत होती है तब दूसरा डॉक्टर भी मरीज़ की रिपोर्ट्स देखकर वही बात कहता है जो पहले डॉक्टर ने कही थी जब कि उसे नहीं पता होता कि पहले डॉक्टर ने क्या कहा है। दोनों जगह एक ही बात सामने आने से बात के सच होने का यक़ीन हो जाता है।
यूरोप में, अमेरिका में और अफ़्री़क़ा में बहुत लोग पवित्र क़ुरआन का अनुवाद पढ़ कर तौहीद को अपना लेते हैं हालांकि वे लोग क़ुरआन की मूल भाषा नहीं जानते। उन्हें किसी आयत के अनुवाद में शक होता है तो वे दूसरे संप्रदाय का अनुवाद देख लेते हैं और जब वे देखते हैं कि दोनों अनुवाद में एक ही सेंस है तो वे मुत्मईन हो जाते हैं। मिसाल के तौर पर सऊदी अरब में इस्लामी तीर्थ और प्रचार केंद्र है, जहाँ सब मुस्लिम हज करने जाते हैं और वहाँ के आलिम हर भाषा में पवित्र क़ुरआन का ऑथेंटिक अनुवाद डिस्ट्रीब्यूट करते हैं और सऊदी अरब ईरान का विरोध करता है। ईरान के मुस्लिम आलिम भी पवित्र क़ुरआन का अनुवाद करते हैं। अब आप देख सकते हैं कि जिन आयतों में अरब के सुन्नी आलिम तौहीद बता रहे हैं, उनका आनुवाद उसके विरोधी शिया आलिम भी तौहीद वाला करते हैं। जिन आयतों में एक अल्लाह की इबादत का हुक्म है, वे उनमें आत्मा, आग या सूरज की इबादत नहीं बताते।
इसी तरह आप ईसाई धर्म के तीर्थ स्थान वेटिकन सिटी से प्रकाशित रोमन कैथोलिक संप्रदाय के बाइबल के अनुवाद को देख सकते हैं और उसे उसके विरोधी प्रोटेस्टेंट संप्रदाय के अनुवाद से मिला कर देख सकते हैं। एक संप्रदाय के अनुवाद में जिन आयतों में क्रिएटर की तौहीद का बयान है, उन आयतों में उसके विरोधी संप्रदाय के अनुवाद में भी तौहीद का बयान ही मौजूद मिलता है।
इसी तरह आप हरिद्वार जैसे हिन्दू तीर्थों और आश्रमों और शंकराचार्यों द्वारा मान्यताप्राप्त सायण का वेदभाष्य देख लें और दूसरा ओपिनियन उसका विरोध करने वाले स्वामी दयानन्द जी का वेदभाष्य देख लें। दोनों संप्रदाय जिन वेद मंत्रों में तौहीद बता दें। आप समझ लें कि वह अनुवाद ठीक है और ऐसा मिलना बहुत मुश्किल है। सनातनी जिस मंत्र के अनुवाद में एक सूर्य की इबादत बताते हैं, स्वामी दयानन्द जी उसी में एक परमेश्वर की भक्ति बता रहे हैं। जब एक शिर्क और दूसरा तौहीद बताए तो आप समझ लें कि इस मंत्र के अनुवाद में दोनों एक मत नहीं हैं, दोनों में कोई एक ग़लत अनुवाद कर रहा है।
जैसे कि तौहीद भाई ने एक वेदमंत्र 'न तस्य प्रतिमा अस्ति' यजुर्वेद 32:3
के बारे में पूछा है कि वह परमेश्वर के बारे में है या नहीं? तो आप यह बात ख़ुद भी बहुत आसानी से जान सकते हैं। उसका तरीक़ा यह है कि आप सनातनी और आर्य समाजी भाष्य लेकर दोनों का अनुवाद मिला लें। आपके सामने सच्चाई आ जाएगी। वेद के विषय में एक सकारात्मक बात यह और है कि उसमें हरेक वेदमंत्र का देवता लिखा रहता है। जिससे आप यह जान सकते हैं कि इस वेदमन्त्र में किसकी बात हो रही है?
जब आप यजुर्वेद 32:3 का देवता देखते हैं तो आपको वहाँ इस मंत्र का देवता 'आत्मा' लिखा हुआ मिलेगा और इस तरह आप जान लेंगे कि यह बात आत्मा के विषय में कही जा रही है कि आत्मा की प्रतिमा नहीं है। यह बात सच है। यह मंत्र परमेश्वर के विषय में नहीं है।
मेरा मक़सद यह नहीं है कि मैं आपको कुछ बता दूँ और आप उसे मान लें। मेरा मक़सद है कि मैं आपको जागरूक कर दूँ कि आप ख़ुद चेक करके देखें कि
1. जिन वेद मंत्रों में तौहीद बताई जाती है क्या सचमुच वैदिक धर्म के दोनों संप्रदाय उसमें तौहीद बताते हैं?
2. क्या सचमुच वेद का एक सूक्त भी एक परमेश्वर की उपासना पर आधारित है?
3. आप स्वयं जागरूक बनें ताकि कोई आपको मुशरिक न बना सके। आपकी सबसे बड़ी दौलत 'तौहीद' है। इसमें कोई समझौता न करें, इसमें किसी की शख़्सियत से मरऊब न हों। आप ख़ुद चेक करें कि दावते दीन के नाम पर शिर्क का घालमेल तो नहीं चल रहा है?
अल्लाह का शुक्र है कि WORK में बहुत सारे लोग इल्म और अच्छे अख़्लाक़ वाले हैं और वे इख़्तिलाफ़ के आदाब जानते हैं। मुझे उनसे भी ख़ैर की उम्मीद है, अल्हम्दुलिल्लाह!