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Sunday, April 26, 2020

वेदमंत्र 'न तस्य प्रतिमा अस्ति' का देवता 'आत्मा' है, परमेश्वर नहीं है। अत: यह तौहीद का प्रमाण नहीं है।

Faiz Khan-सर् मैं आपसे किताब लिखने के लिए इसलिए कह रहा था क्योंकि मैं समझता हूँ कि दोनों तरह के नैरेटिव लोगों के सामने होने चाहिए जिसको जो सही लगे क़ुबूल कर ले मैं यह भी नहीं कह रहा हूँ कि आप सही कह रहे हैं और न आपको ग़लत कह रहा हूँ क्योंकि मैं संस्कृत नहीं जानता और न ही वेदों के बारे में कुछ जनता हूँ सिवाय कुछ मन्त्रो के अलावा जहाँ तक WORK के दाइयों की बात है तो उसमें दोनों तरह के लोग हैं। कुछ muqallid हैं तो बहुत सारी इल्मी और अख़लाक़ी शख्सियत भी है। बहुत सारे पढ़े लिखे लोग भी वर्क में शामिल हुए हैं जो लोग वर्क मैं इख़्तेलाफ़ के आदाब नहीं जानते। असल में तारिक़ सर् की फिक्र पर नहीं हैं।तारिक़ सर् को सुनने समझने से पहले मैं भी बहुत कट्टर था उनसे हुस्ने इख़्तेलाफ़ सीखने की इब्तेदा हुई बहरहाल कोई भी दावती ग्रुप लोगों से बनता है जैसे ghamidi साहब को अल्लाह ने बड़ी इल्मी और आला shaksiyaaat की टीम दी है जिसमे से कितने लोग ऐसे हैं जो खुद किसी तंज़ीम को लीड करने की सलाहियत रखते हैं इन् शा अल्लाह तारिक़  सर को भी ऐसे लोग मिलते रहेंगे इसी तरह की जमातों के साथ अल्लाह की मदद होती है ।। अल्हम्दुलिल्लाह.
Tauheed Bhai-भाई अस्सलामु अलैकुम, अनवर भाई वेद मे तौहीद नही है ये तो पता चल गया। लेकिन कुछ मंत्र जो है जैसे कि 'न तस्य प्रतिमा अस्ति' और भी इस तरह के मंत्र है जिसमे बताया गया है के वो एक है उसका कोई शरीर नही है, तो भाई इन मंत्रो में किसके बारे मे बताया गया है, भाई मदद करिये जब से आप ने बताया है वेद में तौहीद नही है तो बस ये वाले मंत्र सोच सोच कर दिमाग मे अजीब हलचल मची है।
Rihan Khan-Sir isi wajah se to dr. Anwar sahab hmare ustad e mohtram se hmne request ki h ki book likhe or usme ye sare mazameen naqal kre jaise abhi hmare bhai ne puchhenge hai "na tasya partima asti" wagera mantr pr roshni dale or unki shi tashreeh kre taki hmare ilm me izafa ho or mantro ko shi samjh sake.

Dr. Anwer Jamal- आप सभी भाईयों का इतना ज़्यादा तक़ाज़़ा  है तो मैं इस सब्जेक्ट पर जरूर एक किताब लिखूंगा, इन् शा अल्लाह; और उससे आपके सामने मेरा नज़रिया आ जाएगा लेकिन उसमें कुछ वक्त लगेगा और जैसाा कि तौहीद भाई  लिखा है कि 'भाई मदद करिये जब से आप ने बताया है कि वेद में तौहीद नही है तो बस ये वाले मंत्र सोच सोच कर दिमाग में अजीब हलचल मची है।'
आप सब लोग उस हलचल से मेरी किताब आने से पहले एक खास तकनीक का इस्तेमाल करके इत्मीनान और सुकून हासिल कर सकते हैं। मैं इस तकनीक को सेकेंड ओपिनियन तकनीक कहता हूं। हम इस तकनीक का इस्तेमाल मरीज़ की सही हालत जानने के बारे में करते हैं।
आप जानते हैं कि सब लोग किसी विशेषज्ञ डॉक्टर जितना नहीं जानते। जब एक डॉक्टर किसी गर्भवती औरत के बारे में यह सलाह देता है कि गर्भवती औरत की या उसके गर्भ के शिशु की जान को खतरा है और तुरंत उसका ऑपरेशन होना जरूरी है तो सब लोग बहुत चिंतित हो जाते हैं और गर्भवती औरत के परिवार वाले मेडिकल जानकारी के अभाव में खुद अपने ज्ञान और अपने अनुभव से यह तय नहीं कर पाते कि वे डॉक्टर का कहना मान कर ऑपरेशन कराएं या न कराएं। हम सबके सामने ऐसे कई केस आ चुके हैं जिनमें डॉक्टर ने बिना ज़रूरत ही गर्भवती औरत का ऑपरेशन कर दिया जिससे वह ग़ैर ज़रूरी तौर से आर्थिक क़र्ज़ में फंस गई और उसकी सेहत भी पहले जैसी न रही। कुछ केस ऐसे भी सामने आए हैं जिनमें एक आदमी पेट दर्द के लिए अस्पताल में दाखिल हुआ और डॉक्टर ने उसे ऑपरेशन की जरूरत बताकर ऑपरेशन कर दिया। कुछ महीने बाद किसी और वजह से जब उसने अपने पेट का अल्ट्रासाउंड टेस्ट कराया तो उसे पता चला कि डॉक्टर ने उसकी एक किडनी निकाल ली है। इन सब केसेज़ को देख कर अब यह होने लगा है कि जब एक डॉक्टर किसी पेशेंट को ऑपरेशन की ज़रूरत बताता है और उसके परिवार के जागरूक लोग खुद अपने ज्ञान और अनुभव की बुनियाद पर कोई फैसला नहीं कर पाते कि उस  उस डॉक्टर की सलाह के मुताबिक ऑपरेशन कराया जाए या न कराया जाए तब वे सेकंड ओपिनियन के लिए दूसरे डॉक्टर के पास जाते हैं। अगर सचमुच ऑपरेशन की जरूरत होती है तब दूसरा डॉक्टर भी मरीज़ की रिपोर्ट्स देखकर वही बात कहता है जो पहले डॉक्टर ने कही थी जब कि उसे नहीं पता होता कि पहले डॉक्टर ने क्या कहा है। दोनों जगह एक ही बात सामने आने से बात के सच होने का यक़ीन हो जाता है।
यूरोप में, अमेरिका में और अफ़्री़क़ा में बहुत लोग पवित्र क़ुरआन का अनुवाद पढ़ कर तौहीद को अपना लेते हैं हालांकि वे लोग क़ुरआन की मूल भाषा नहीं जानते। उन्हें किसी आयत के अनुवाद में शक होता है तो वे दूसरे संप्रदाय का अनुवाद देख लेते हैं और जब वे देखते हैं कि दोनों अनुवाद में एक ही सेंस है तो वे मुत्मईन हो जाते हैं। मिसाल के तौर पर सऊदी अरब में इस्लामी तीर्थ और प्रचार केंद्र है, जहाँ सब मुस्लिम हज करने जाते हैं और वहाँ के आलिम हर भाषा में पवित्र क़ुरआन का ऑथेंटिक अनुवाद डिस्ट्रीब्यूट करते हैं और सऊदी अरब ईरान का विरोध करता है। ईरान के मुस्लिम आलिम भी पवित्र क़ुरआन का अनुवाद करते हैं। अब आप देख सकते हैं कि जिन आयतों में अरब के सुन्नी आलिम तौहीद बता रहे हैं, उनका आनुवाद उसके विरोधी शिया आलिम भी तौहीद वाला करते हैं। जिन आयतों में एक अल्लाह की इबादत का हुक्म है, वे उनमें आत्मा, आग या सूरज की इबादत नहीं बताते।
इसी तरह आप ईसाई धर्म के तीर्थ स्थान वेटिकन सिटी से प्रकाशित रोमन कैथोलिक संप्रदाय के बाइबल के अनुवाद को देख सकते हैं और उसे उसके विरोधी प्रोटेस्टेंट संप्रदाय के अनुवाद से मिला कर देख सकते हैं। एक संप्रदाय के अनुवाद में जिन आयतों में क्रिएटर की तौहीद का बयान है, उन आयतों में उसके विरोधी संप्रदाय के अनुवाद में भी तौहीद का बयान ही मौजूद मिलता है।
इसी तरह आप हरिद्वार जैसे हिन्दू तीर्थों और आश्रमों और शंकराचार्यों द्वारा मान्यताप्राप्त सायण का वेदभाष्य देख लें और दूसरा ओपिनियन उसका विरोध करने वाले स्वामी दयानन्द जी का वेदभाष्य देख लें। दोनों संप्रदाय जिन वेद मंत्रों में तौहीद बता दें। आप समझ लें कि वह अनुवाद ठीक है और ऐसा मिलना बहुत मुश्किल है। सनातनी जिस मंत्र के अनुवाद में एक सूर्य की इबादत बताते हैं, स्वामी दयानन्द जी उसी में एक परमेश्वर की भक्ति बता रहे हैं। जब एक शिर्क और दूसरा तौहीद बताए तो आप समझ लें कि इस मंत्र के अनुवाद में दोनों एक मत नहीं हैं, दोनों में कोई एक ग़लत अनुवाद कर रहा है।
जैसे कि तौहीद भाई ने एक वेदमंत्र 'न तस्य प्रतिमा अस्ति' यजुर्वेद 32:3
के बारे में पूछा है कि वह परमेश्वर के बारे में है या नहीं? तो आप यह बात ख़ुद भी बहुत आसानी से जान सकते हैं। उसका तरीक़ा यह है कि आप सनातनी और आर्य समाजी भाष्य लेकर दोनों का अनुवाद मिला लें। आपके सामने सच्चाई आ जाएगी। वेद के विषय में एक सकारात्मक बात यह और है कि उसमें हरेक वेदमंत्र का देवता लिखा रहता है। जिससे आप यह जान सकते हैं कि इस वेदमन्त्र में किसकी बात हो रही है?
जब आप यजुर्वेद 32:3 का देवता देखते हैं तो आपको वहाँ इस मंत्र का देवता 'आत्मा' लिखा हुआ मिलेगा और इस तरह आप जान लेंगे कि यह बात आत्मा के विषय में कही जा रही है कि आत्मा की प्रतिमा नहीं है। यह बात सच है। यह मंत्र परमेश्वर के विषय में नहीं है।
मेरा मक़सद यह नहीं है कि मैं आपको कुछ बता दूँ और आप उसे मान लें। मेरा मक़सद है कि मैं आपको जागरूक कर दूँ कि आप ख़ुद चेक करके देखें कि
1. जिन वेद मंत्रों में तौहीद बताई जाती है क्या सचमुच वैदिक धर्म के दोनों संप्रदाय उसमें तौहीद बताते हैं?
2. क्या सचमुच वेद का एक सूक्त भी एक परमेश्वर की उपासना पर आधारित है?
3. आप स्वयं जागरूक बनें ताकि कोई आपको मुशरिक न बना सके। आपकी सबसे बड़ी दौलत 'तौहीद' है। इसमें कोई समझौता न करें, इसमें किसी की शख़्सियत से मरऊब न हों। आप ख़ुद चेक करें कि दावते दीन के नाम पर शिर्क का घालमेल तो नहीं चल रहा है?
अल्लाह का शुक्र है कि WORK में बहुत सारे लोग इल्म और अच्छे अख़्लाक़ वाले हैं और वे इख़्तिलाफ़ के आदाब जानते हैं। मुझे उनसे भी ख़ैर की उम्मीद है, अल्हम्दुलिल्लाह!

Thursday, April 23, 2020

वह कौन सा गुनाहे कबीरा है, जिससे अल्लाह रोकता है और कुछ मुबल्लिग़े इस्लाम उसे नेकी समझकर करते हैं?

रीहान भाई- Assalamualaikum warahmatullahi wabarakatu. 
Sir kya vedo me ek ishwarvad ki taleem nhi h jaisa ki humne Abdullah Tariq sahab ki class ki to unhone bhi btaya aur Dr. Zakir Naik ne bhi btaya. sabhi Muslim scholers btate hain. agar is topic par koi post ho to kya aaplink send kr sakte hain?

DR. ANWER JAMAL- W alaykum assalam wrwb
JazakAllah. 🌹
आप जानते हैं कि क़ुरआन में सूरह इख़्लास में तौहीद की तालीम है।
आप शिया, सुन्नी, देवबंदी, बरेलवी और जमाते इस्लामी का उर्दू तर्जुमा देख लें या पंडित नन्द कुमार अवस्थी जी का हिंदी तर्जुमा या पिक्थाल का अंग्रेज़ी तर्जुमा देख लें।
आप किसी भी आलिम का, किसी भी देश के अनुवादक का और किसी भी भाषा का अनुवाद देख लें। आपको हरेक के अनुवाद में तौहीद ही मिलेगी। आपको ऐसा कोई मक़बूल अनुवाद न मिलेगा, जिसमें सूरह इख़लास का अनुवाद तौहीद के ख़िलाफ़ हो।
यह तौहीद का साफ़ और यक़ीनी बयान होता है और अल्लाह का कलाम या उसकी किताब का यह बुनियादी गुण होता है, जो उसमें ज़रूर पाया जाता है।
मैंने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पर उतरे कलामे इलाही के बाक़ी हिस्सों को पढ़ा तो देखा कि उसमें कुछ घट बढ़ होने के बावजूद तौहीद का साफ़ और यक़ीनी बयान मौजूद है। मैंने उनके कई संप्रदायों का अनुवाद पढ़ा लेकिन तौहीद का बयान करने वाली आयतों का अनुवाद सबमें समान था।
मैंने तीस साल से ज़्यादा वक़्त तक चारों वेद पढ़े लेकिन मुझे वेदों में तौहीद के साफ़ और असंदिग्ध बयान वाला एक भी सूक्त अब तक नहीं मिला है।
स्वामी दयानंद जी ने अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, दादा, परदादा, भाई और देवु आदि शब्दों के अर्थ बदलकर उन्हें परमेश्वर के नाम मान लिया और फिर जिन मंत्रों में अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, दादा, परदादा, भाई और देवी की इबादत या उनसे मदद की प्रार्थन की गई है या उनकी तारीफ़ की गई है, उनके अर्थ बदलकर परमेश्वरपरक अर्थात् तौहीद के अर्थ वाले बना डाले। यह उनकी व्याकरण की महारत का उम्दा प्रदर्शन  कहला सकता है लेकिन उनकी इस धांधली की वजह से देश विदेश के वैदिक स्कालर्स ने उनके वेदानुवाद को उनके जीवन में ही स्वीकार  करने से मना कर दिया था। स्वामी दयानन्द जी के अनुवाद को केवल आर्य समाजी मानते हैं जबकि सनातनी विद्वान सायण के वेदभाष्य को देश विदेश में सब मानते हैं और सायण के भाष्य में तौहीद नहीं मिलती। सनातनी विद्वान वेदों में देवी, देवताओं की इबादत को, अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश और दूसरी प्राकृतिक चीज़ों की इबादत करने और उन्हें नज़र चढ़ाने या उनके नाम पर क़ुरबानी करने की बात क़ुबूल करते हैं। क़ुरबानी के नाम पर चाहे वे नारियल ही क़ुरबान करते हों। उनकी रोज़ाना की ज़िन्दगी में वैदिक देवी देवताओं की इबादत के तरीक़े आसानी से सब देख सकते हैं।
अल्लामा सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब और डा० ज़ाकिर नाईक, दोनों जब वेद से तौहीद साबित करते हैं तो वे आर्य समाजी आनुवाद के हवाले देते हैं और इस तरह जाने अन्जाने में वे अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, दादा, परदादा, भाई और देवी को अल्लाह का नाम मान लेते हैं। जिसका खंडन क़ुरआन करता है और इसे 'इल्हाद फ़िल्-अस्मा' का बहुत बड़ा जुर्म और गुनाह क़रार देता है और अल्लाह इससे बचने का हुक्म देता है। अब अगर आप वेदों में तौहीद मानना चाहते हैं तो यह तभी मुमकिन है, जब आप अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, दादा, परदादा, भाई और देवी आदि चीज़ों के नामों को अल्लाह के नाम मान लें।
जिन दाईयों ने ख़ुद सनातनी और आर्य समाजी वेदभाष्यों की कम्पैरेटिव स्टडी नहीं की है और उन्हें समझने का कष्ट नहीं किया है। वे जब अल्लामा सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब और डा० ज़ाकिर नाईक के लेक्चर्स से वेदों के हवाले देकर दूसरों पर तौहीद साबित करते हैं, तब दरहक़ीक़त वे अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, दादा, परदादा, भाई और देवी आदि चीज़ों के नामों को अल्लाह के नाम मान रहे होते हैं और उन्हें इस बात का पता नहीं होता कि वे अल्लाह की नज़र में कितना बड़ा जुर्म और कितना बड़ा गुनाह कर रहे हैं।
जब वे कहते हैं कि हम क़ुरआन को कसौटी मानते हैं और हम हर बात को इसी की बुनियाद पर क़ुबूल और रद्द करते हैं तो मेरे भाईयो, अगर उन्होंने क़ुरआने करीम की कसौटी पर अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, दादा, परदादा, भाई और देवी आदि चीज़ों के नामों को परखा होता तो क्या क़ुरआने हकीम उन्हें अल्लाह के सिफ़ाती नामों के तौर पर इन्हें क़ुबूल करने की इजाज़त देता?
या आप अब क़ुरआने अज़ीम की रौशनी में देख लें तो क्या क़ुरआने हकीम आपको इन्हें अल्लाह के सिफ़ाती नामों के तौर पर क़ुबूल करने की इजाज़त देता है?
हमने आप जैसे सभी भाईयों के लिए ऐसे कुछ लेखों में यह बात समझाई है, जो सचमुच 'वेदों में तौहीद' के विषय को समझना चाहते हैं। आप नीचे गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं:

Monday, April 20, 2020

Islam ki Ghutti इस्लाम की घुट्टी اسلام کی گھٹی -DR. ANWER JAMAL

दास्ताने आरिफ़
आज मैंने अपने दोस्त को धीरे धीरे मौत की तरफ बढ़ते देखा तो जीवन से मेरा मोहभंग हो गया और मुझे खुदा याद आया। मेरा दोस्त कोल्ड ड्रिंक्स बहुत पीता था। उसकी किडनी फ़ेल हो गई थीं। मुझे मौत आएगी तो अल्लाह मुझे बहुत अज़ाब देगा। मुझे सांप, बिच्छुओं के डसने और आग में जलने की बातें याद आ गईं जो मैंने बचपन में सुनी थीं और जवानी में भूल गया था। मैंने ख़ुद को अपने कमरे में बंद सा कर लिया। बीवी बच्चे खाना दे जाते या खर्चे के पैसे ले जाते। इसी तरह महीना भर बीत गया। मेरे अब्बा और मेरी अम्मी दोनों मेरा हाल देख कर बहुत परेशान थे। उन्होंने मेरे एक दोस्त इस्लाम से मेरा हाल बयान किया तो एक दिन वह मुझसे मिलने के लिए आया। उसकी अक़्ल‌ बहुत तेज़ थी। उसके घर में कई नस्लों से बड़े बड़े आलिम और सूफ़ी हुए हैं। वह दुनिया के दर्जनों मुल्क घूम चुका है। रूपए और तालीम में मुझसे बहुत ज़्यादा है। फ़र्राटे से अंग्रेज़ी और फ़्रेंच से लेकर पंजाबी तक कई ज़ुबान बोलता है। लिबास भी अंग्रेज़ी ही पहनता है। यूरोप में उसके बहुत लोग मुरीद और फ़ैन हैं। न जाने वह उन्हें क्या घुट्टी पिलाता है। वह मुझसे दो साल बड़ा भी है। इन सब वजहों से मैं‌ इस्लाम की इज़्ज़त भी करता हूँ और उसकी बात मानता हूँ।
इस्लाम ने मुझसे पूछा कि क्या तुझे मौत के बाद आग में जलने से डर लग रहा है?
मैंने कहा कि हाँ!
इस्लाम ने पूछा कि तू क्या चाहता है?
मैंने कहा कि मैं तो बस यही चाहता हूं कि जब मैं मर जाऊँ तो अल्लाह मुझे आग में न डाले, मुझ पर रहम करे।
इस्लाम ने कहा कि यह बहुत आसान काम है लेकिन अगर मैंने तुझे यह क़ानूने क़ुदरत आसानी से बता दिया तो तू उसकी क़द्र न करेगा। इसलिए सबसे पहले तू दीनी रस्में नमाज़, रोज़ा, तिलावते क़ुरआन, दुरूद, ज़िक्र और हज व उमरह कर ले। फिर मैं तुझे वह बात बताऊंगा।
मेरे पास काफ़ी रूपया था। प्रॉपर्टी डीलिंग का बिजनेस ठंडा चल रहा था। सो वक़्त काफ़ी था मैं हज व उमरह कर आया और नमाज़, रोज़ा, तिलावते क़ुरआन, दुरूद और ज़िक्र का पाबंद हो गया।
एक दिन इस्लाम मुझसे मिलने आया तो उसने पूछा कि अब तेरे दिल को कुछ सुकून मिला?
मैंने कहा कि हां मुझे पहले से कुछ सुकून मिला है और अपनी माफ़ी की उम्मीद भी पैदा हुई है लेकिन अभी तक मैं इस यकीन को नहीं पहुंचा कि जब मैं मर जाऊंगा तो अल्लाह यक़ीनन मुझे माफ़ कर देगा। आप मुझे वह आसान काम बता दीजिए जिसे करने के बाद अल्लाह का रहम पाना यक़ीनी है।
इस्लाम ने कहा कि मैं वह बात कुछ वक्त बाद बताऊंगा।
अब मैं दीनी मजलिसों में भी जाने लगा था। इस बीच इस्लाम मलेशिया चला गया और मैं दीन में बहुत तरक़्क़ी कर गया था। मैंने दाढ़ी लंबी कर ली थी। मैं लंबा ढीला कुर्ता, ऊंचा पायजामा, सिर पर टोपी और पगड़ी पहनने लगा था। हर वक़्त मेरी जेब में मिस्वाक, हाथ में तस्बीह और ज़ुबान पर इस्मे आज़म का विर्द रहने लगा था। एक साल में ही दूर दूर से लोग मेरे दर्से क़ुरआन में आने लगे थे। मैं अपने गुनाहों को याद‌ करके जितना ज़्यादा रो रोकर अल्लाह से माफ़ी की दुआ माँगता, लोग मुझे उतना ज़्यादा अल्लाह का वली समझने लगे थे।
एक दिन जब मैं अपने घर के बड़े हॉल में दर्से क़ुरआन कर रहा था तो इस्लाम भी वहीं आकर बैठ गया। मैंने लोगों को ज़ुलक़रनैन और याजूज माजूज के बारे में बताया। दर्स पूरा होने से पहले ही वह उठकर चला गया और इससे मुझे सुकून मिला कि अब मैं खुलकर रो रो कर दुआ माँग सकता हूँ।
फिर इस्लाम का यह रोज़ का सिलसिला हो गया कि जब मैं दर्स शुरू करता तो वह कुछ देर बाद हॉल में आकर बैठ जाता और जब दर्स खत्म होने के करीब होता तो वह उठकर चला जाता। इस दौरान मैंने जिन सब्जेक्ट्स पर दर्स दिया, वे ये थे: ईसा मसीह अलैहिस्सलाम का आसमान पर उठाया जाना और दोबारा आना, नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का बशर होना, क़ुरआन महफ़ूज़‌ है, तरावीह की रकअतें बीस हैं, दाढ़ी एक मुठ्ठी भर होनी ज़रूरी है, दज्जाल का फ़ितना क्या है और इमाम महदी कब आएंगे?
एक दिन मैं इस्लाम के घर चला गया। उसने मुझे गले से लगाया और अपने पास बिठाकर वह मुझसे हंसते हुए बोला कि अब तो तू हज़रत जी हो गया है भाई।
मैंने कहा-'इस्लाम भाई, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?'
इस्लाम-'क्योंकि तेरी सोच और तेरी तालीम से यतीम, मिस्कीन और बीमारों का, भूखों का, क़र्ज़दारों का, बेवाओं का और दुख के मारे इंसानों की मदद का ज़िक्र ग़ायब है।'
मैं एकदम सन्नाटे में आ गया। मुझे रियलाईज़ हुआ कि इस्लाम भाई की बात सच है। मुझे लगने लगा कि मैंने अब तक अपना वक्त बर्बाद किया है और अगर आज इस्लाम भाई ने मुझे न बताया होता तो मैं आगे भी अपना वक़्त और ज़्यादा बर्बाद करता।
मैंने इस्लाम भाई को एक बार फिर याद दिलाया-'इस्लाम भाई प्लीज़ आज आप मुझे वह बात बता दें जो आपने मुझे बताने के लिए कहा था और आपने कहा था कि जब मैं एक आसान काम करूंगा तो अल्लाह मुझ पर ज़रूर रहम करेगा। वह काम क्या है?'
इस्लाम ने कहा- 'तुम ज़मीन वालों पर रहम करो, आसमान वाला तुम पर रहम करेगा। जिनसे तुम नाराज़ हो, तुम उन्हें माफ़ करो, अल्लाह तुम्हें माफ़ करेगा। तुम ज़रूरतमंदों की मदद करो। अल्लाह तुम्हारी ज़रूरत में तुम्हारी मदद करेगा। तुम लोगों के ऐब ढको, अल्लाह तुम्हारे ऐब ढकेगा। जैसा तुम दूसरों के साथ करते हो, अल्लाह वैसा ही तुम्हारे साथ करेगा। तुम अल्लाह से अपने साथ अच्छा बरताव चाहते हो तो तुम दूसरों के साथ अच्छा बरताव करो। अगर तुम इसकी क़द्र करो तो यह एक आसान काम है।'
मुझे महसूस हुआ कि दीन की रूह और अल्लाह की चाहत मुझ पर आज खुली है कि वह इ़सान से हक़ीक़त में क्या चाहता है!
इस्लाम की घुट्टी पीकर मुझे ऐसा लगा जैसे कि मैं आज एक नई दुनिया में आँखें खोल‌ रहा हूँ।

Sunday, April 19, 2020

वेद में कलामे इलाही की ख़ूबियाँ क्यों नहीं हैं? -DR. ANWER JAMAL

कुछ सालों से मुस्लिम भाई बहनों में एक बहुत ग़लत अक़ीदे का प्रचार किया जा रहा है और वह यह है कि वेद अल्लाह का पहला कलाम है या पहली ईशवाणी है।
यह झूठी बात बिना क़ुरआनी दलील के बहुत बड़े बड़े आलिमों ने दावते दीन के हलक़ों में इतनी आम कर दी है कि जब मैं इस अक़ीदे के मुबल्लिग़ों से दलील माँगता हूँ तो उन्हें ताज्जुब होता है कि मैं उनसे दलील क्यों माँग रहा हूँ। मैं उनकी बात बिना दलील के मान क्यों नहीं लेता?
गोया वेद के कलामे इलाही होने को वे दिल की इतनी गहराई से क़ुबूल कर चुके हैं कि उन्हें इस बात का ख़याल ही नहीं आता कि इस बात को क़ुबूल करने के लिए किसी मज़बूत दलील की ज़रूरत है। जिससे साबित हो सके कि वेद ऋषियों का रचा हुआ काव्य नहीं बल्कि रब का उतारा हुआ कलाम है।
आम तौर से किसी मशहूर मुबल्लिग़े दीन के ज़रिए मुस्लिम नौजवानों के ज़हन में 3 दिन के तब्लीग़ी तरबियती कैंप में यह अक़ीदा बिठा दिया जाता है कि वेद पहला कलामे इलाही है और वे नौजवान यह सोचकर यह बात मान लेते हैं कि इतना बड़ा मुबल्लिग़े इस्लाम झूठ थोड़े ही बोल‌ रहा होगा। उन नौजवानों में से किसी ने वेद पढ़ा नहीं होता। वेद से पूरी तरह जाहिल मुस्लिम बड़ी और मशहूर शख़्सियत के रौब में दबकर एक ऐसी बात को तस्लीम कर लेते हैं, जिसका दावा ख़ुद वेद नहीं करते और न ही वे अपने अंदर कलामे इलाही होने की वे बुनियादी सिफ़तें रखते हैं, जोकि तहरीफ़शुदा कलामे इलाही तक में होती हैं। जिनसे अल्लाह का कोई कलाम या उसकी कोई किताब ख़ाली नहीं है।

किसी किताब को कलामे इलाही मानने के लिए ज़रूरी है कि सबसे पहले उस किताब का नाम क़ुरआन या हदीस में हो। उसके बाद उस किताब में कलामे इलाही की बुनियादी सिफ़तें मिलना ज़रूरी हैं।
जो किताब अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल होती है, उसमें तहरीफ़ होने के बाद भी कुछ ऐसी बातें ज़रूर बाक़ी रहती हैं, जिनसे अल्लाह के कलाम की माअरिफ़त रखने वाले बन्दे उसे पहचान लेते हैं कि यह कलाम हमारे रब की तरफ़ से उतरा है, जैसे कि
1. उस किताब में अल्लाह के सिफ़ाती नामों के साथ उसका कोई एक नाम सिर्फ़ उसी की ज़ात के परिचय के लिए इस्तेमाल होता है और वह नाम किसी इंसान या किसी दूसरी चीज़ के लिए इस्तेमाल नहीं होता जैसे कि क़ुरआन में अल्लाह और इंजील में एली।
एक आदमी कह सकता है कि अल्लाह नाम भी एक सिफ़ाती नाम है। हम कहते हैं कि आप हमारे लिखे हुए को एक बार फिर पढ़िए। हमने यह नहीं लिखा है कि कोई सिफ़ाती नाम अल्लाह का ज़ाती नाम नहीं हो सकता बल्कि हमने यह लिखा है कि कलामे इलाही या किताबुल्लाह में कोई एक नाम सिर्फ़ अल्लाह की ज़ात के लिए इस्तेमाल किया जाता है और उस किताब में वह नाम किसी मख़्लूक़ के लिए इस्तेमाल नहीं होता।
2. उस किताब में अल्लाह की तौहीद के बारे में मोहकम यानि ऐसी खुली हुई कुछ आयतें होती हैं, जिनमें कोई तशबीह और अलंकार नहीं होता। उन आयतों से तौहीद बिल्कुल साफ़ साबित होती है। उन आयतों के अर्थ तौहीद के ख़िलाफ़ नहीं बनाए जा सकते।
3. तीसरी सबसे अहम बात यह होती है कि उस किताब में अल्लाह के इलाह, हाकिम और रब होने का बयान करते हुए उससे डराया जाता है और उसी की इबादत और फ़रमाँबरदारी करने का हुक्म बिल्कुल साफ़ साफ़ दिया जाता है। 

अब अगर किसी किताब का नाम ही क़ुरआने करीम में या हदीसे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में न मिले या सिर्फ़ नाम से मिलता जुलता कुछ मिले और उस किताब में न अल्लाह की ज़ात के लिए कोई मख़्सूस नाम हो, न उसकी तौहीद की मोहकम आयतें हों और न ही उसमें अल्लाह से डराते हुए उसकी इबादत और फ़रमाँबरदारी का हुक्म दिया गया हो तो फिर वह किताब अल्लाह का कलाम और ईशवाणी नहीं होती।
वेद ऐसी ही किताबें हैं, जिनका नाम न क़ुरआने करीम में है और न हदीसे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में है। वेदों में न अल्लाह की ज़ात के लिए कोई मख़्सूस नाम है, जो किसी मख़्लूक़ के लिए इस्तेमाल न होता हो और न वेदों में उसकी तौहीद की मोहकम आयतें हैं और न ही उनमें अल्लाह से डराते हुए उसकी इबादत और फ़रमाँबरदारी का हुक्म दिया गया है।
फिर वेद अल्लाह का कलाम कैसे हैं और जब इनमें अल्लाह का नाम और उसकी तौहीद की मोहकम आयतें तक नहीं हैं तो अल्लाह ने इसके लगभग बीस हज़ार मन्त्रों में लोगों को क्या बताया है?
मैं मुबल्लिग़ भाईयों की ग़लती कम मानता हूँ क्योंकि मैं ख़ुद भी पहले उनकी तरह दूसरों की तहक़ीक़ पर भरोसा करके यह बात कह देता था लेकिन जब मैंने ख़ुद तहक़ीक़ की तो यह अक़ीदा बातिल साबित हुआ।
मैंने 30 साल तक चारों वेद, उपनिषद, गीता, बाईबिल, और क़ुरआन पढ़ा है और बार बार पढ़ा है।
जिस बात को मैंने ख़ुद मुश्किल से समझा है। उसे यहाँ आसान करके समझाया है।
जो मुस्लिम मुबल्लिग़ अब भी वेद को कलामे इलाही या ईशवाणी मानता हो और कोई मज़बूत दलील दे सकता हो तो वह आकर इस ब्लाग पर कमेंट करे और मुझसे डायलॉग करे।
मैं उसका शुक्रगुज़ार रहूंगा।

Alhamdulillah, ummat mein khair baqi hai aur ummat aaj pahle se zyada nafabakhsh hai

इदारा दावतुन्-निकाह के सद्र एक जलीलुल क़द्र बुज़ुर्ग हैं उम्मते मुस्लिमा के लिए अपने दिल में बहुत दर्द और तड़प रखते हैं। हज़रत के इख़्लास का आलम यह है कि उन्होंने अपनी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा उम्मते मुस्लिमा की भलाई में लगा दिया और ख़ुद को भी खपा दिया। वह एक रिश्ते में मेरे नाना लगते हैं।
जब से मेरे हक़ीक़ी नाना लतीफ़ ख़ाँ साहब का विसाल हुआ, तब से मैं ननिहाल नहीं जा पाया और तब से मैं हज़रते अक़दस से मिल नहीं पाया। कभी कभार उनका फ़ोन आता है तो दुआ सलाम हो जाती है।
उनके एक मुरीद ने आज फ़ोन करके मुझसे पूछा कि 'हज़रते अक़दस ने फ़रमाया है कि अब उम्मत नफ़ाबख़्श नहीं बची। इसलिए अल्लाह इसे बदलकर दूसरी क़ौम ले आएगा। इससे मुझे बहुत मायूसी हो रही है। क्या उनकी यह बात सही है?'
मैंने कहा कि बात यह है कि एक ही चाँद को देखकर एक भूखा आदमी उसे रोटी जैसा देख सकता है और नवाब साहब की इमदाद पर पल रहा शायर उसे महबूब जैसा देख सकता है। यह सब दाख़ली ज़हनियत (subjective mentality) का करिश्मा है।
जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम को मारने के लिए हथियार लहराता हुआ फ़िरऔनी लश्कर बढ़ा चला आ रहा था, तब वह यह  समझ रहा था कि हम इन्हें घेर चुके हैं और इन्हें मार देंगे। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम के बुद्धजीवी भी यही कह रहे थे कि मूसा ने हमें यहाँ लाकर फंसा दिया और फ़िरऔन के सैनिक हमें क़त्ल कर देंगे और वे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को इल्ज़ाम दे रहे थे और उनकी क़ौम मजमूई हैसियत से उस वक़्त नफ़ाबख़्शी का कोई काम भी नहीं कर रही थी तो भी क्या हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उनसे यह कहा कि मैं तुममें नफ़ाबख़्शी नहीं देख रहा हूँ इसलिए अब तुम मारे जाओगे। उन्हें अल्लाह की आदत का पता है कि जब तक उम्मत का इमाम अल्लाह से नजात की उम्मीद रखेगा, अल्लाह उसकी क़ौम को ज़ालिम अहंकारी सरकश दुश्मन से ज़रूर नजात देगा और अल्लाह ने उनकी उम्मीद को पूरा किया। अल्लाह किसी को मायूस नहीं करता। शैतान मायूस होता है और वही मायूस करता है।
ऐसे ही हम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी में देखते हैं कि मक्का के लोगों ने उनका अख़्लाक़ देखा। उनकी दौलत और शराफ़त से फ़ायदा उठाया लेकिन उन्होंने ऐलाने नुबूव्वत के बाद उनके साथ बदतमीज़ी शुरू कर दी। मक्का के बदमाशों ने अपने सरदारों के हुक्म पर उनके रास्तों में काँटे बिछाए, उन पर कूड़ा डाला, उनका मज़ाक़ उड़ाया, उनसे मौज्ज़े तलब किए और देखे और फिर इन्कार किया। ख़ुद क़ुरआन सुना और वैसा बना न पाए। उन पर बार बार जानलेवा हमले किए। जब उनकी पाक बीवी हज़रत ख़दीजा चूल्हे पर खाना पका रही होती थीं तो दुश्मनों की औरतें उनकी हाँडी में मिट्टी डाल देती थीं। दुश्मन सरदारों ने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पूरे क़बीले का बहिष्कार किया। उनकी बेटी को तलाक़ दिलवाई और फिर आख़िरकार उनके क़त्ल के इरादे से उनका घर घेरकर खड़े हो गए। तब नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सूरह यासीन की आयतें पढ़ते हुए उनके सामने से निकल गए। वह मदीना गए तो ये ज़ालिम दुश्मन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़त्ल करने की नीयत से फ़ौज लेकर वहाँ भी पहुंच गए और उनके बहुत से नेक साथियों को क़त्ल कर दिया। अबू सु़फ़ियान की बीवी हिंदा ने उन सहाबा के नाक कान काटकर उनका हार बनाकर अपने पैरों में और गले में सजाया। उसने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चाचा हज़रत हम्ज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु का सीना चीरकर उनका कलेजा चबाया। यह क़ौम न सिर्फ़ नफ़ाबख़्शी से ख़ाली थी बल्कि जानलेवा थी और युद्ध अपराधी थी लेकिन नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तब भी नहीं कहा कि मेरे जानी दुश्मन ख़ैर से बिल्कुल ख़ाली हैं।
अल्लाह ने सूरह यासीन, सूरह हूद, सूरह यूनुस और दूसरी सूरतों में ऐसे संगदिल कातिलों पर अज़ाब नाज़िल‌ करने की बात बार बार कही। जिस पर नबी ए रहमत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह से रो रोकर दुआ किया करते थे। अबू सुफ़ियान ख़ैर से ख़ाली था, हिन्दा ख़ैर से ख़ाली थी। इनसे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक्का में कभी ख़ैर हासिल नहीं हुई। तब क्या अल्लाह ने इन पर अपना ग़ज़ब नाज़िल करके इन्हें और इनके पिछलग्गू क़ातिलों को हलाक कर दिया?
नहीं!
बल्कि इन पर रहम किया गया और फ़तह मक्का के बाद भी इनको नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कोई सज़ा न दी और उनकी सरदारी को पहले की तरह बाक़ी रखा।
इससे हम अल्लाह के मिज़ाज को पहचान सकते हैं कि जब अल्लाह इतने भयानक मुजरिमों पर रहम कर सकता है तो अल्लाह आज नत्थू, फुल्लो, रज्जन के पोतों पर क्यों उनसे ज़्यादा ग़ज़बनाक होगा जबकि नत्थू, फुल्लो और रज्जन तो यहीं के अजमी बाशिंदे थे। जो इस्लाम में अच्छाई और राहत देखकर मुस्लिम बन गए थे और न उन्होंने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा, न उनसे क़ुरआन सुना और समझा और न उनसे तरबियत पाई लेकिन फिर भी उनसे मुहब्बत की और मुख़ालिफ़ हालात में भी इस्लाम से अपना ताल्लुक़ ज़ाहिर करते रहे। यह एक नामुमकिन बात है अल्लाह हिंदा से दरगुज़र कर दे और उसके बेटे को इस्लामी सरकार में ऊंचे ओहदे से नवाज़ दे और बेचारी फुल्लो के पोते में उसे कोई ख़ैर ही नज़र न आए।
नत्थू, फुल्लो, रज्जन उन आम अजमी हिंदी लोगों के प्रतिनिधि हैं जो मुस्लिम शासन काल में ईमान ले आए थे। आप पहले दौर से आज के दिन तक उनके हालात पढ़ें कि वे शिर्क के हाल में कैसे थे और आज कैसे हैं तो आप उनके हालात की कंपैरेटिव स्टडी के बाद ज़रूर यही कहेंगे कि उन्होंने तब से लेकर आज तक इस्लाम में तरक़्क़ी ही की है, पीछे नहीं लौटे और नबियों के वारिसों के साथ कभी वह सुलूक नहीं किया जो हिन्दा ने सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम अज्मईन के साथ किया था।
मेरी नज़र में यह उम्मत ख़ैर के कामों में लगातार आगे बढ़ी है और सब क़ौमों के लिए नफ़ाबख़्श बनी है लेकिन अगर किसी नज़र में यह उम्मत नफ़ाबख़्शी से ख़ाली हो चुकी है तो उसे एक बार सीरियसली डेटा जमा कर लेना चाहिए कि जब मुल्क आज़ाद हुआ, तब इस देश में और विदेश में उम्मत का क्या हाल था और आज क्या हाल है?
चंद बातें, जो अभी ताज़ा हैं, उन पर नज़र डाल सकते हैं-
  1. वर्ष 2018 में जब केरल में बाढ़ आई थी तो यूएई सरकार ने 700 करोड़ रूपए की मदद देकर आम लोगों को नफ़ा पहुंचाने की पेशकश की थी, जिसे भारत सरकार ने ठुकरा दिया था।
  2. प्रयागराज के फ़राज़ ज़ैदी अमरीका के फिलाडेल्फिया विस्टार इस्टीट्यूट में प्रोजेक्ट मैनेजर हैं और उनकी रहनुमाई में कोविड19 की वैक्सीन तैयार की जा रही है, जो पूरी दुनिया को नफ़ा पहुंचाएगी।
  3. सुल्तानपुर के समाज सेवी एवं रिज़वान उर्फ ‘पप्पू’ ने शहर के बीचों-बीच बना ‘न्यू शालीमार मैइज लान’ प्रशासन को क्वारेंटाइन सेंटर बनाने के लिए दे दिया। यहां चौदह दिन रखे गए लोगों को उन्होंने किसी भी समय कोई परेशानी नहीं होने दिया। इस बात की तारीफ़ स्वयं ज़िले के अधिकारियों ने की। इसके अलावा 75 हज़ार से ऊपर मास्क शहर, गांव देहात मे उन्होंने व उनकी पत्नी, बेटे और उनके साथियों ने बांट डाले। दिन के उजाले से लेकर रात के अंधेरे तक समाज के हर गरीब तबके के दरवाजे तक इनकी राशन किट पहुंच रही है। एक अनुमान के मुताबिक जिसकी तादाद करीब हजारों में है। काबिले ग़ौर बात जो जरूरतमंद आकर और मांग कर ले जाते हैं वो अलग, उससे अहम ये बात है कि रिजवान उर्फ पप्पू स्वयं, उनकी पत्नी व पूर्व प्रमुख नरगिस नायाब और उनके परिजन अलग-अलग गाड़ियों से रात के अंधेरे मे राशन किट लेकर निकलते हैं। गरीब के दरवाजे पर किट रखकर, दरवाजा खटखटा कर आगे बढ़ जाते हैं।
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  6. अमेरिका मे रहने वाले एक मुस्लिम डॉक्टर सऊद अनवर ने ऐसा वेंटीलेटर बना डाला है जिससे एक साथ सात मरीज़ों की देखभाल की जा सकती है, इनके घर पर बधाई देने वाले अमरीकियों का तांता लगा है जबकि इंडिया में कोई कह रहा है कि उम्मत नफ़ाबख़्श नहीं रही।

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12. 10 ऐसे मुसलमान जिन्होंने अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार जीता


ऐसे बेशुमार मुस्लिम हैं, जो हर धर्म के लोगों को हर देश में नफ़ा पहुंचा रहे हैं। उन सब के नाम यहां लिखना मुमकिन नहीं है। कोई आदमी इन सबको नज़रअंदाज़ करके कहता है कि मुस्लिम उम्मत आज नफ़ाबख़्श नहीं बची है तो यह उसका अपना एक नज़रिया है, जो सच्चाई से हटा हुआ है। ऐसे लोग उम्मत के बारे में ग़लत बातें बोलकर ख़ुद को दुश्मने दीन की नज़र में निष्पक्ष दिखाने की कोशिश करते हैं लेकिन उनकी बात से उम्मत को कोई नफ़ा नहीं होता और उनके मुरीद ख़ुद मायूसी के मरीज़ बन जाते हैं और दीन के दुश्मनों का मनोबल बढ़ जाता है।
ऐसे लोग फ़ौज के उन हाथियों जैसे साबित होते हैं जिन्हें दुश्मनों से लड़ने के लिए मैदान में सामने खड़ा किया जाता है लेकिन वे पलट कर उल्टी तरफ़ भागने लगते हैं और अपनी ही फ़ौज को मार डालते हैं।
चूंकि इदारा दावतुन्-निकाह कोई बहुत मशहूर इदारा नहीं है और हज़रते अक़दस किसी शोहरत के तालिब नहीं है इसलिए उनकी बात का नुक़सान भी ज़्यादा नहीं पहुंचेगा लेकिन अगर कोई मशहूर शख्सियत यही बात कह कर उसे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों में फैला रहा हो तो वह उम्मते मुस्लिमा में मायूसी का वायरस फैला रहा है। वह ज़्यादा मुस्लिमों की क़ूव्वते फ़िक्रो अमल को मफ़लूज कर रहा है।

क़ूव्वते फ़िक्रो अमल पहले फ़ना होती है
फिर किसी क़ौम की शौकत पर ज़वाल आता है
-अल्लामा इक़बाल
मेरा मक़सद किसी मुख़्लिस सर बकफ़ बुज़ुर्ग को ग़लत साबित करना नहीं है बल्कि यह बताना है कि हरगिज़ मायूस न हों। अल्लाह पहले भी नई नई क़ौमों को लाया है, जब आप तब्लीग़ कर सकते थे और अब जो नई क़ौम आने वाली है, हज़रत मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह उसकी मिसाल तातारी क़ौम के इस्लाम क़ुबूल करने से देते थे। जिससे पहले से मौजूद मुस्लिमों को क़ूव्वत और तरक़्क़ी नसीब हुई थी।
अब फिर वैसा ही होने जा रहा है और वह वक़्त क़रीब और क़रीब आता जा रहा है, अल्हम्दुलिल्लाह!
मीडिया वायरस के आतंकियों के मन्सूबे और निगेटिव थिंकर्स के क़यास सब ग़लत साबित होंगे और जिस रब ने कोरोना वायरस से हवा और पानी को साफ़ किया है, वही रब महज़ अपनी क़ुदरते कामिला से इंसानियत से भी गंदे शैतानों की नापाकी दूर करेगा, इन् शा अल्लाह!
अल्लाह पर ही हमें भरोसा है क्योंकि वही हमारा वकील है और वह हमें काफ़ी है।

Saturday, April 18, 2020

यह पोस्ट 'वेदों में तौहीद की तलाश' पर है और इसलिए ख़ास है कि यह जानना बहुत अहम है कि वेदों के किन मंत्रों में तौहीद है?

फ़ेसबुक पर S A Tariq ग्रुप में इस पोस्ट पर किए अपने कमेंट को Abdullah Shariq ने मिटा दिया। बातचीत सबके फ़ायदे की है। सो उस पोस्ट पर हुए डायलॉग को मैं यहां महफ़ूज़ कर रहा हूं। आप सब लोग आगे की बातचीत यहाँ कमेंट करके जारी रख सकते हैं।

Anwer Jamal Khan: Kartik Kumar bhai, हरेक दाई को मज़बूत बंदा मिलता है। ऐसा एक बंदा मुझे मिला था। 
Dr. Anwar Ahmed Khan उनका नाम है।
मुस्लिमों में जितने वेदाचार्य मुझे मिले,
उन सबमें सबसे ज़्यादा वेदज्ञान Dr. Anwar Ahmed Khan को है और वैदिक ऋषियों की परम्परा का ज्ञान भी उन्हें है।
वेद से पहले क्या था और वेद कैसे बने और पुरूष सूक्त का वास्तविक अर्थ क्या था और उसमें अब आरोपित क्या किया?
कैसे वैदिक पंडित लगातार वेद का अर्थ और धर्म की परंपराएं बदलते रहे और क्यों बदलते रहे?
तंत्र परंपरा क्या है?
आदि आदि और भी बहुत सी ऐसी ही बातें।
मैं दस दिवसीय कैंप का ज्ञान लेकर उन्हें वेदों में तौहीद, रिसालत और आख़िरत समझाता था और वह हरेक तर्क को कच्ची ककड़ी की तरह चटख़ा देते थे।
इससे मैं दूसरा पक्ष देखने में सक्षम हुआ जोकि वेद का वास्तविक पक्ष है।
जिसे दावती कैंपों में नहीं बताया जाता।
एक भी मुबल्लिग़ Dr. Anwar Ahmad sb के सामने टिक नहीं सकता क्योंकि उसे उनके बराबर जानकारी नहीं है और दूसरे यह कि उसे ग़लत जानकारी है।
उनकी नज़र में मौलाना फ़ारूक़ ख़ां साहब का वेद पर लिखा लिट्रेचर एक बचकानी कोशिश मात्र है और मैं उनसे सहमत हूँ।
हालांकि मैं ख़ुद इतनी महारत रखता हूं कि अगर मैं दिखाना चाहूं तो अपना नाम वेद और गीता में दिखाकर अपने पैदा होने की भविष्यवाणी सिद्ध कर सकता हूं लेकिन यह सिर्फ़ एक हुनर है,
वास्तविकता नहीं।
वास्तविकता देखने के लिए अपने दिमाग़ को खोलना होगा।

Friday, April 17, 2020

न अथर्ववेद में कोविड19 की औषधि है और न ही अथर्ववेद परमेश्वर की वाणी है

वेद रहस्य
स्वामी बने हुए दयानंद जी ने शासक ईसाई मुस्लिम कौमों को देखकर उनकी  नक़ल में दावा कर दिया था कि
वेद परमेश्वर की वाणी है और परमेश्वर ने अथर्ववेद में मनुष्य के सब रोगों की औषधियों का ज्ञान दिया है।
न अथर्ववेद में कोविड19 की औषधि है और न ही अथर्ववेद परमेश्वर की वाणी है।
यह जंगल में रहने वाले ऋषियों का काव्य है। अधिकतर इसमें पेड़ पौधों पर कविता है, बस।
इसमें कोविड19 की औषधि या थायराइड, डायबिटीज़ और कैंसर की औषधि खोजना व्यर्थ है।

Thursday, April 16, 2020

Survival Guidence: How to Manage Good and Cheap Food in Lockdown Like the Prophets? Part 2

आज देश विदेश में करोड़ों लोग बेरोज़गार हैं और करोड़ों लोग बीमार हैं। वे सब लोग हल चाहते हैं।
जिन्हें हल नहीं मिला, वे चोरी-डकैती से लेकर तन बेचने और सिर फोड़ने तक सब हराम काम कर रहे हैं।

इसीलिए मेरी तब्लीग़ ए दीन का शुरू से एक मेन प्वाईंट है-'दीनी तरीक़े से छोटी तिजारत शुरू करके अमीर बनो।
जिसे कोई भी दावती जमात न कहती है और न अमीर बनना सिखाती है।
जबकि ये काम नबियों और राशिद ख़लीफ़ा बुजुर्गों की सुन्नत है।

... लेकिन अब भुखमरी और बीमारी के दौर में केवल अमीर ही सरवाईव करेगा।
अमीर लोग ही सरकार और जनता को दान और मदद दे रहे हैं।
ग़रीब तो मदद माँग रहा है। जो किसी को मिल रही है और कोई भूखा पड़ा रो रहा है।
#Allahpathy में मैं सिखाता हूँ कि
'ऐ लोगो, बोओ, काटो और खाओ।'
'अपने घर पर गमलों में सब्ज़ी और फल पैदा करो।'
'सिरका बना लो।'
'अचार बना लो।'
'ताक़त और वक़्त बढ़ाने की कोई माजून बना लो।'
'पेट साफ़ करने की कोई चूरन-चटनी बना लो।'
'जो बिके, उसे बेच लो। जो बच जाए, उसे ख़ुद खा लो।'
हमारे वालिद मरहूम ने हमें ख़ूब अंडे मुर्ग़े खिलाए क्योंकि हमारा घर बड़ा है और उन्हें मुर्ग़ी बकरी पालने का शौक़ था।
'आपके पास कुछ जगह हो तो आप भी  अपने खाने के लिए मुर्ग़ी-बकरी पालो।'

इस देश में हर हाल में मौज लेने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं।
आपको उन संभावनाओं को पहचानकर उनसे फ़ायदा उठाना सीखना है।

मेरा विशेष अनुभव: धनिया, मिर्च, हल्दी और शहद असली हों तो इन्हें घर से भी आसानी से बेचा जा सकता है और बहुत आसानी से परिवार पाला जा सकता है। हर बेरोज़गार दुखी बाप-बेटे, बहन-भाई तक यह बात पहुंचा दें।
क़ुरआन से बरकत हासिल करें:
अपने घर में मौजूद खाने पीने के सामान पर, माल पर और औलाद पर सूरह कौसर पढ़कर दम करते रहो तो भी रिज़्क़, माल और औलाद में ग़ैब से बरकत होती है। आपकी नस्ल का दुश्मन कमज़ोर पड़ता है।
मुझे बरकत ऐसे ही मिली है। यह मेरा तजुर्बा है। जो काम इस लेसन में बताए गए हैं, वे सब काम मैंने ख़ुद किए हैं। मैं आज मौज ले रहा हूँ और मैंने जिसे भी रोज़ी कमाने का यह सबक़ दिया और उसने किया, वे सब भी आज मौज ले रहे हैं, अल्हम्दुलिल्लाह!

आप इस यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कर लें तो आपको कुछ महत्वपूर्ण लेक्चर एक जगह मिल जाएंगे। जो आपको मुश्किल वक़्त में सरवाईव करने में मदद देंगे।
https://youtu.be/pt1xj76LyQQ

Tuesday, April 14, 2020

Survival Guidence: How to Manage Good and Cheap Food in Lockdown Like the Prophets?

एक बातचीत
Anwer Jamal: लोक डाऊन चलता रहे। यह देेश की जनता के हित में है। बस आस पास के भूखों को खिलाते रहो।
लोक डाऊन ज़ालिम को चंदा देने टैक्स चोरों की और अपने माल में निर्धन वंचित का हिस्सा न मानने वालों की फैक्ट्री बंद कर चुका है।
देख लो।
Honey Gaur: जनाब उन भूखे नंगे और गरीब लोगों के अलावा एक और तबका रहता है जिसे मिडिल क्लास कहते है। वो मांगते भी नही है और अब उन सबके पैसे धीरे धीरे खत्म होने को है। lockdown अगर चलता रहा तो उनकी जरूर अब कमर तोड़ेगा। इन भुको और गरीबो को तो सरकार और पब्लिक भी ठूसा रही है।
मेरे अल्फ़ाज़ सख्त लग सकते है लेकिन ये भी एक हक़ीक़त है।
Anwer Jamal:  Honey Gaur bhai, आपके लफ़्ज़ सख़्त हैं तो ये आपके दर्दमंद होने की वजह से हैं लेकिन आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि इंसान की आमदनी चाहे जितनी कम हो, उसके लिए भूख कोई मसला नहीं है।
मसला हमारा नज़रिया है।
मसला यह है कि भोजन के बारे में हमारा नज़रिया नबियों के तरीक़े से हट चुका है।
हम ख़ुद पर दाल-चावल, रोटी-बोटी और सलाद फ़र्ज़ कर चुके हैं जोकि अल्लाह ने हम पर फ़र्ज़ नहीं किया न ही नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमारी तरह के खाने 'हर दिन' खाए।
हमें हर दिन, हर वक़्त पका हुआ या भुना हुआ खाना चाहिए।
जब हमें अपनी आदत के मुताबिक़ खाना नहीं मिलता तो हम तकलीफ़ महसूस करते हैं जबकि वह भोजन हमें बीमार डालता है और हमें धीरे धीरे मारता है।
रिफ़ाईंड ऑयल और चीनी ज़हर हैं। ये बात सब जान चुके हैं।
हो सकता है कि अल्लाह हमें इन दिनों उनसे बचा रहा हो क्योंकि हमें अल्लाह से मुसीबत से नजात की दुआएं की हैं और दुआ के क़ुबूल होने के बाद ऐसे हालात बनते देखे गए हैं कि आदमी का भोजन बदल जाता है।
जब हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम को मछली ने निगल लिया था और उन्होंने अल्लाह से उस मुसीबत से नजात की दुआ की थी, तब अल्लाह ने उन्हें मछली के पेट से निकालकर एक ऐसी जगह डाल दिया जहां न चूल्हा था और न बाज़ार था और न वे चल फिर कर शिकार करके उसे भून कर खा सकते थे।
अल्लाह ने उनके ऊपर लौकी कद्दू की बेल उगा दी। हजरत यूनुस अलैहिस्सलाम ने उसी लौकी कद्दू को कच्चा ही खाया। इससे उनके भोजन का मसला हल हो गया।
अल्हमदुलिल्लाह!
जिन लोगों के पास पैसे कम हैं, वे हजरत यूनुस अलैहिस्सलाम की तरह लौकी, कद्दू, खीरा, गाजर और टमाटर कच्चा खा सकते हैं।
मैंने कुछ दिन कच्ची लौकी खाकर देखी है तो 10 रूपये की लौकी में कई लोग अपना पेट भर सकते हैं।
कच्ची लौकी खाने का तरीका यह है कि उसकी स्किन को उतारकर अंदर से जो सफ़ेद गूदा निकले, उसे सेंधा नमक लगाकर खाएं। इससे कम लागत में फूड मिलेगा, गैस बचेगी और बड़ी अहम बात यह है कि आपकी आँत में जो दसियों किलो गंदगी पड़ी सड़ रही है, वह सारी गंदगी बाहर हो जाएगी। आपका वज़न बढ़ा हुआ है तो वह कम हो जाएगा। आपके दिल को ताक़त मिलेगी। जिन नसों में रिफाइंड ऑयल जमा हुआ है वह कम होना शुरू हो जाएगा। नया ख़ून बनेगा। इम्यूनिटी बढ़ेगी और बीमारी का ख़तरा कम होगा।
इस वक़्त मार्केट में लौकी कद्दू भरे हुए हैं। आप ख़ुद भी अपने घर में, गमलों में लौकी, कददू और टमाटर उगा सकते हैं।
अल्लाह ने फ़ूड को रूपए के मातहत नहीं रखा है। बंदे का रिज़्क़ अल्लाह के हाथ में है।
बंदे को अपनी आदतों की ग़ुलामी से आज़ादी की ज़रूरत है।
सरकार की तरफ़ या अमीर रिश्तेदार की तरफ़ देखने से केवल शिकायतें पैदा होंगी, जिससे आप मनोरोगी और बन जाएंगे।
सो इससे बचें और यह देखे कि तंगी के दिनों में नबियों ने कैसे सरवाईव किया?
इससे आप रब के शुक्रगुज़ार बनेंगे।
आप बीस तीस रूपये रोज़ के ख़र्च में मज़े से अपना परिवार पाल सकेंगे।
इससे आपके बच्चे मानसिक रूप से बहुत मज़बूत बन जाएंगे और वे ज़िंदगी में हर मसले को नबियों की ज़िन्दगी की रौशनी में हल करना सीख लेंगे।
अल्हमदुलिल्लाह!

Saturday, April 11, 2020

पवित्र क़ुरआन ऐसे पढ़ाएं कि माँगने वाले को देने वाला बनाएं -DR. ANWER JAMAL

अल्लाह ने लोगों पर अपना माल ख़र्च करने वाले रहमदिल नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पूरा एकदम दिखाया और पवित्र क़ुरआन लोगों तक थोड़ा थोड़ा पहुंचाया ताकि लोग उसे जज़्ब कर सकें।
सिखाने का सही नेचुरल तरीक़ा यही है।
कुछ लोग इसके बिलकुल उल्टा करते हैं। ये लोग पूरा क़ुरआन एकदम देते हैं और उसके तर्जुमे में या साथ में सीरते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नहीं होती।
यह तरीक़ा अनाड़ियों का महबूब तरीक़ा है। इससे कुछ लोगों को फ़ायदा होता है लेकिन कुछ लोग कन्फ़्यूज़्ड भी होते हैं।
और ज़रूरतमंद लोगों की माल से मदद का पाइंट इन प्रचारकों की तब्लीग़ से ग़ायब होता है।
जबकि पवित्र क़ुरआन एक वैलनेस बुक, किताब बराय फ़लाह है और यह आख़िरत की फ़लाह के साथ दुनिया में फ़लाह की गारंटी देती है।
यह एक पावर पाईंट है।
इस्लाम के प्रचारक आम तौर पर इसे फ़लाह के मक़सद से न ख़ुद पढ़ते हैं और न बांटते हैं और न वे अपनी फ़लाह की समीक्षा करते हैं।
उनका मक़सद दूसरे लोगों का अक़ीदा बदलना होता है और ख़ुद भारतीय मुस्लिम समाज दुनिया की फ़लाह में कहाँ खड़ा है?
सबसे पीछे!
वे अपनी फ़लाह पर ध्यान नहीं देते क्योंकि मुस्लिम समाज की दुनियावी फ़लाह दीनी पेशवाओं के विज़न में है ही नहीं और जो बात विज़न में न हो, वह मिलेगी भी नहीं।
जो लोग जायज़ तरीक़े से दुनिया की फ़लाह की बात करते हैं, दीन की ग़लत और महदूद ताबीर रखने वाला धर्म प्रचारक ग्रुप उन्हें दुनिया का लालची और इख़लास से हटा हुआ मानता है।
एक दीनी जमात तो ऐसी है कि स्टूडेंट्स के सिर पर एग्ज़ाम हों या किसी व्यापारी का सीज़न चल रहा हो तो भी वे उन्हें अपनी जमाअत में समय देने के लिए कहते हैं।
हमें अपनी फ़लाह और पवित्र क़ुरआन के बारे में अपना मेंटल एटीट्यूड बदलने की ज़रूरत है।
यह बात बहुत ज़्यादा ध्यान देने के लायक़ है कि एक स्टडी के मुताबिक़ इंडिया में 47% लोग 225 रूपये प्रतिदिन कमाते हैं और इनमें भी 29 करोड़ लोग केवल 30 रूपये प्रतिदिन कमाते हैं।
दैनिक हिन्दुस्तान 12 अप्रैल 2020
इन लोगों के लिए ज़िन्दगी का जो सबसे बड़ा मसला है, वह दीन की दाई जमातों के लिए कोई मसला ही नहीं है क्योंकि उन अधिकतर जमातों को खा खा कर अघाए हुए लोग चला रहे हैं और उनके सामने फ़िलहाल रोज़ी कोई मसला नहीं है।
कुछ जमातें ज़लज़लों और महामारी के दिनों में भोजन और नक़द रूपए से लोगों की मदद करती हैं, जो क़ाबिले तारीफ़ है लेकिन यह वक़्ती मदद होती है। यह उन्हें ग़रीबी और भुखमरी से नहीं निकालती। इन लोगों को ऐसे रहमदिल मददगार शिक्षकों का इंतिज़ार है, जो इन्हें ग़रीबी और भुखमरी से निकलने की शिक्षा दे सकें जैसे कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दी और उसे ख़ुद करके दिखाया।
Solution:
1. पवित्र क़ुरआन बांटने से पहले सीरते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बांटें और उसके बाद मक्की सूरतों का एक छोटा सा मजमूआ बांटना हिकमत भरा अमल है।
2. एक ख़ास बात यह है कि सूरह क़ुरैश और सूरह कौसर में ग़रीबी और भुखमरी के ख़ात्मे का पूरा प्लान है।

3. इन बुक्स पर वेबसाईट्स का पता और मोबाईल नंबर्स भी हों ताकि किसी को कुछ पूछना हो तो वह पूछ ले।