इदारा दावतुन्-निकाह के सद्र एक जलीलुल क़द्र बुज़ुर्ग हैं उम्मते मुस्लिमा के लिए अपने दिल में बहुत दर्द और तड़प रखते हैं। हज़रत के इख़्लास का आलम यह है कि उन्होंने अपनी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा उम्मते मुस्लिमा की भलाई में लगा दिया और ख़ुद को भी खपा दिया। वह एक रिश्ते में मेरे नाना लगते हैं।
जब से मेरे हक़ीक़ी नाना लतीफ़ ख़ाँ साहब का विसाल हुआ, तब से मैं ननिहाल नहीं जा पाया और तब से मैं हज़रते अक़दस से मिल नहीं पाया। कभी कभार उनका फ़ोन आता है तो दुआ सलाम हो जाती है।
उनके एक मुरीद ने आज फ़ोन करके मुझसे पूछा कि 'हज़रते अक़दस ने फ़रमाया है कि अब उम्मत नफ़ाबख़्श नहीं बची। इसलिए अल्लाह इसे बदलकर दूसरी क़ौम ले आएगा। इससे मुझे बहुत मायूसी हो रही है। क्या उनकी यह बात सही है?'
मैंने कहा कि बात यह है कि एक ही चाँद को देखकर एक भूखा आदमी उसे रोटी जैसा देख सकता है और नवाब साहब की इमदाद पर पल रहा शायर उसे महबूब जैसा देख सकता है। यह सब दाख़ली ज़हनियत (subjective mentality) का करिश्मा है।
जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम को मारने के लिए हथियार लहराता हुआ फ़िरऔनी लश्कर बढ़ा चला आ रहा था, तब वह यह समझ रहा था कि हम इन्हें घेर चुके हैं और इन्हें मार देंगे। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम के बुद्धजीवी भी यही कह रहे थे कि मूसा ने हमें यहाँ लाकर फंसा दिया और फ़िरऔन के सैनिक हमें क़त्ल कर देंगे और वे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को इल्ज़ाम दे रहे थे और उनकी क़ौम मजमूई हैसियत से उस वक़्त नफ़ाबख़्शी का कोई काम भी नहीं कर रही थी तो भी क्या हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उनसे यह कहा कि मैं तुममें नफ़ाबख़्शी नहीं देख रहा हूँ इसलिए अब तुम मारे जाओगे। उन्हें अल्लाह की आदत का पता है कि जब तक उम्मत का इमाम अल्लाह से नजात की उम्मीद रखेगा, अल्लाह उसकी क़ौम को ज़ालिम अहंकारी सरकश दुश्मन से ज़रूर नजात देगा और अल्लाह ने उनकी उम्मीद को पूरा किया। अल्लाह किसी को मायूस नहीं करता। शैतान मायूस होता है और वही मायूस करता है।
ऐसे ही हम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी में देखते हैं कि मक्का के लोगों ने उनका अख़्लाक़ देखा। उनकी दौलत और शराफ़त से फ़ायदा उठाया लेकिन उन्होंने ऐलाने नुबूव्वत के बाद उनके साथ बदतमीज़ी शुरू कर दी। मक्का के बदमाशों ने अपने सरदारों के हुक्म पर उनके रास्तों में काँटे बिछाए, उन पर कूड़ा डाला, उनका मज़ाक़ उड़ाया, उनसे मौज्ज़े तलब किए और देखे और फिर इन्कार किया। ख़ुद क़ुरआन सुना और वैसा बना न पाए। उन पर बार बार जानलेवा हमले किए। जब उनकी पाक बीवी हज़रत ख़दीजा चूल्हे पर खाना पका रही होती थीं तो दुश्मनों की औरतें उनकी हाँडी में मिट्टी डाल देती थीं। दुश्मन सरदारों ने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पूरे क़बीले का बहिष्कार किया। उनकी बेटी को तलाक़ दिलवाई और फिर आख़िरकार उनके क़त्ल के इरादे से उनका घर घेरकर खड़े हो गए। तब नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सूरह यासीन की आयतें पढ़ते हुए उनके सामने से निकल गए। वह मदीना गए तो ये ज़ालिम दुश्मन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़त्ल करने की नीयत से फ़ौज लेकर वहाँ भी पहुंच गए और उनके बहुत से नेक साथियों को क़त्ल कर दिया। अबू सु़फ़ियान की बीवी हिंदा ने उन सहाबा के नाक कान काटकर उनका हार बनाकर अपने पैरों में और गले में सजाया। उसने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चाचा हज़रत हम्ज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु का सीना चीरकर उनका कलेजा चबाया। यह क़ौम न सिर्फ़ नफ़ाबख़्शी से ख़ाली थी बल्कि जानलेवा थी और युद्ध अपराधी थी लेकिन नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तब भी नहीं कहा कि मेरे जानी दुश्मन ख़ैर से बिल्कुल ख़ाली हैं।
अल्लाह ने सूरह यासीन, सूरह हूद, सूरह यूनुस और दूसरी सूरतों में ऐसे संगदिल कातिलों पर अज़ाब नाज़िल करने की बात बार बार कही। जिस पर नबी ए रहमत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह से रो रोकर दुआ किया करते थे। अबू सुफ़ियान ख़ैर से ख़ाली था, हिन्दा ख़ैर से ख़ाली थी। इनसे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक्का में कभी ख़ैर हासिल नहीं हुई। तब क्या अल्लाह ने इन पर अपना ग़ज़ब नाज़िल करके इन्हें और इनके पिछलग्गू क़ातिलों को हलाक कर दिया?
नहीं!
बल्कि इन पर रहम किया गया और फ़तह मक्का के बाद भी इनको नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कोई सज़ा न दी और उनकी सरदारी को पहले की तरह बाक़ी रखा।
इससे हम अल्लाह के मिज़ाज को पहचान सकते हैं कि जब अल्लाह इतने भयानक मुजरिमों पर रहम कर सकता है तो अल्लाह आज नत्थू, फुल्लो, रज्जन के पोतों पर क्यों उनसे ज़्यादा ग़ज़बनाक होगा जबकि नत्थू, फुल्लो और रज्जन तो यहीं के अजमी बाशिंदे थे। जो इस्लाम में अच्छाई और राहत देखकर मुस्लिम बन गए थे और न उन्होंने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा, न उनसे क़ुरआन सुना और समझा और न उनसे तरबियत पाई लेकिन फिर भी उनसे मुहब्बत की और मुख़ालिफ़ हालात में भी इस्लाम से अपना ताल्लुक़ ज़ाहिर करते रहे। यह एक नामुमकिन बात है अल्लाह हिंदा से दरगुज़र कर दे और उसके बेटे को इस्लामी सरकार में ऊंचे ओहदे से नवाज़ दे और बेचारी फुल्लो के पोते में उसे कोई ख़ैर ही नज़र न आए।
नत्थू, फुल्लो, रज्जन उन आम अजमी हिंदी लोगों के प्रतिनिधि हैं जो मुस्लिम शासन काल में ईमान ले आए थे। आप पहले दौर से आज के दिन तक उनके हालात पढ़ें कि वे शिर्क के हाल में कैसे थे और आज कैसे हैं तो आप उनके हालात की कंपैरेटिव स्टडी के बाद ज़रूर यही कहेंगे कि उन्होंने तब से लेकर आज तक इस्लाम में तरक़्क़ी ही की है, पीछे नहीं लौटे और नबियों के वारिसों के साथ कभी वह सुलूक नहीं किया जो हिन्दा ने सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम अज्मईन के साथ किया था।
मेरी नज़र में यह उम्मत ख़ैर के कामों में लगातार आगे बढ़ी है और सब क़ौमों के लिए नफ़ाबख़्श बनी है लेकिन अगर किसी नज़र में यह उम्मत नफ़ाबख़्शी से ख़ाली हो चुकी है तो उसे एक बार सीरियसली डेटा जमा कर लेना चाहिए कि जब मुल्क आज़ाद हुआ, तब इस देश में और विदेश में उम्मत का क्या हाल था और आज क्या हाल है?
चंद बातें, जो अभी ताज़ा हैं, उन पर नज़र डाल सकते हैं-
- वर्ष 2018 में जब केरल में बाढ़ आई थी तो यूएई सरकार ने 700 करोड़ रूपए की मदद देकर आम लोगों को नफ़ा पहुंचाने की पेशकश की थी, जिसे भारत सरकार ने ठुकरा दिया था।
- प्रयागराज के फ़राज़ ज़ैदी अमरीका के फिलाडेल्फिया विस्टार इस्टीट्यूट में प्रोजेक्ट मैनेजर हैं और उनकी रहनुमाई में कोविड19 की वैक्सीन तैयार की जा रही है, जो पूरी दुनिया को नफ़ा पहुंचाएगी।
- सुल्तानपुर के समाज सेवी एवं रिज़वान उर्फ ‘पप्पू’ ने शहर के बीचों-बीच बना ‘न्यू शालीमार मैइज लान’ प्रशासन को क्वारेंटाइन सेंटर बनाने के लिए दे दिया। यहां चौदह दिन रखे गए लोगों को उन्होंने किसी भी समय कोई परेशानी नहीं होने दिया। इस बात की तारीफ़ स्वयं ज़िले के अधिकारियों ने की। इसके अलावा 75 हज़ार से ऊपर मास्क शहर, गांव देहात मे उन्होंने व उनकी पत्नी, बेटे और उनके साथियों ने बांट डाले। दिन के उजाले से लेकर रात के अंधेरे तक समाज के हर गरीब तबके के दरवाजे तक इनकी राशन किट पहुंच रही है। एक अनुमान के मुताबिक जिसकी तादाद करीब हजारों में है। काबिले ग़ौर बात जो जरूरतमंद आकर और मांग कर ले जाते हैं वो अलग, उससे अहम ये बात है कि रिजवान उर्फ पप्पू स्वयं, उनकी पत्नी व पूर्व प्रमुख नरगिस नायाब और उनके परिजन अलग-अलग गाड़ियों से रात के अंधेरे मे राशन किट लेकर निकलते हैं। गरीब के दरवाजे पर किट रखकर, दरवाजा खटखटा कर आगे बढ़ जाते हैं।
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- अमेरिका मे रहने वाले एक मुस्लिम डॉक्टर सऊद अनवर ने ऐसा वेंटीलेटर बना डाला है जिससे एक साथ सात मरीज़ों की देखभाल की जा सकती है, इनके घर पर बधाई देने वाले अमरीकियों का तांता लगा है जबकि इंडिया में कोई कह रहा है कि उम्मत नफ़ाबख़्श नहीं रही।
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12. 10 ऐसे मुसलमान जिन्होंने अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार जीता
ऐसे बेशुमार मुस्लिम हैं, जो हर धर्म के लोगों को हर देश में नफ़ा पहुंचा रहे हैं। उन सब के नाम यहां लिखना मुमकिन नहीं है। कोई आदमी इन सबको नज़रअंदाज़ करके कहता है कि मुस्लिम उम्मत आज नफ़ाबख़्श नहीं बची है तो यह उसका अपना एक नज़रिया है, जो सच्चाई से हटा हुआ है। ऐसे लोग उम्मत के बारे में ग़लत बातें बोलकर ख़ुद को दुश्मने दीन की नज़र में निष्पक्ष दिखाने की कोशिश करते हैं लेकिन उनकी बात से उम्मत को कोई नफ़ा नहीं होता और उनके मुरीद ख़ुद मायूसी के मरीज़ बन जाते हैं और दीन के दुश्मनों का मनोबल बढ़ जाता है।
ऐसे लोग फ़ौज के उन हाथियों जैसे साबित होते हैं जिन्हें दुश्मनों से लड़ने के लिए मैदान में सामने खड़ा किया जाता है लेकिन वे पलट कर उल्टी तरफ़ भागने लगते हैं और अपनी ही फ़ौज को मार डालते हैं।
चूंकि इदारा दावतुन्-निकाह कोई बहुत मशहूर इदारा नहीं है और हज़रते अक़दस किसी शोहरत के तालिब नहीं है इसलिए उनकी बात का नुक़सान भी ज़्यादा नहीं पहुंचेगा लेकिन अगर कोई मशहूर शख्सियत यही बात कह कर उसे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों में फैला रहा हो तो वह उम्मते मुस्लिमा में मायूसी का वायरस फैला रहा है। वह ज़्यादा मुस्लिमों की क़ूव्वते फ़िक्रो अमल को मफ़लूज कर रहा है।
क़ूव्वते फ़िक्रो अमल पहले फ़ना होती है
फिर किसी क़ौम की शौकत पर ज़वाल आता है
-अल्लामा इक़बाल
मेरा मक़सद किसी मुख़्लिस सर बकफ़ बुज़ुर्ग को ग़लत साबित करना नहीं है बल्कि यह बताना है कि हरगिज़ मायूस न हों। अल्लाह पहले भी नई नई क़ौमों को लाया है, जब आप तब्लीग़ कर सकते थे और अब जो नई क़ौम आने वाली है, हज़रत मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह उसकी मिसाल तातारी क़ौम के इस्लाम क़ुबूल करने से देते थे। जिससे पहले से मौजूद मुस्लिमों को क़ूव्वत और तरक़्क़ी नसीब हुई थी।
अब फिर वैसा ही होने जा रहा है और वह वक़्त क़रीब और क़रीब आता जा रहा है, अल्हम्दुलिल्लाह!
मीडिया वायरस के आतंकियों के मन्सूबे और निगेटिव थिंकर्स के क़यास सब ग़लत साबित होंगे और जिस रब ने कोरोना वायरस से हवा और पानी को साफ़ किया है, वही रब महज़ अपनी क़ुदरते कामिला से इंसानियत से भी गंदे शैतानों की नापाकी दूर करेगा, इन् शा अल्लाह!
अल्लाह पर ही हमें भरोसा है क्योंकि वही हमारा वकील है और वह हमें काफ़ी है।
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