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Monday, April 20, 2020

Islam ki Ghutti इस्लाम की घुट्टी اسلام کی گھٹی -DR. ANWER JAMAL

दास्ताने आरिफ़
आज मैंने अपने दोस्त को धीरे धीरे मौत की तरफ बढ़ते देखा तो जीवन से मेरा मोहभंग हो गया और मुझे खुदा याद आया। मेरा दोस्त कोल्ड ड्रिंक्स बहुत पीता था। उसकी किडनी फ़ेल हो गई थीं। मुझे मौत आएगी तो अल्लाह मुझे बहुत अज़ाब देगा। मुझे सांप, बिच्छुओं के डसने और आग में जलने की बातें याद आ गईं जो मैंने बचपन में सुनी थीं और जवानी में भूल गया था। मैंने ख़ुद को अपने कमरे में बंद सा कर लिया। बीवी बच्चे खाना दे जाते या खर्चे के पैसे ले जाते। इसी तरह महीना भर बीत गया। मेरे अब्बा और मेरी अम्मी दोनों मेरा हाल देख कर बहुत परेशान थे। उन्होंने मेरे एक दोस्त इस्लाम से मेरा हाल बयान किया तो एक दिन वह मुझसे मिलने के लिए आया। उसकी अक़्ल‌ बहुत तेज़ थी। उसके घर में कई नस्लों से बड़े बड़े आलिम और सूफ़ी हुए हैं। वह दुनिया के दर्जनों मुल्क घूम चुका है। रूपए और तालीम में मुझसे बहुत ज़्यादा है। फ़र्राटे से अंग्रेज़ी और फ़्रेंच से लेकर पंजाबी तक कई ज़ुबान बोलता है। लिबास भी अंग्रेज़ी ही पहनता है। यूरोप में उसके बहुत लोग मुरीद और फ़ैन हैं। न जाने वह उन्हें क्या घुट्टी पिलाता है। वह मुझसे दो साल बड़ा भी है। इन सब वजहों से मैं‌ इस्लाम की इज़्ज़त भी करता हूँ और उसकी बात मानता हूँ।
इस्लाम ने मुझसे पूछा कि क्या तुझे मौत के बाद आग में जलने से डर लग रहा है?
मैंने कहा कि हाँ!
इस्लाम ने पूछा कि तू क्या चाहता है?
मैंने कहा कि मैं तो बस यही चाहता हूं कि जब मैं मर जाऊँ तो अल्लाह मुझे आग में न डाले, मुझ पर रहम करे।
इस्लाम ने कहा कि यह बहुत आसान काम है लेकिन अगर मैंने तुझे यह क़ानूने क़ुदरत आसानी से बता दिया तो तू उसकी क़द्र न करेगा। इसलिए सबसे पहले तू दीनी रस्में नमाज़, रोज़ा, तिलावते क़ुरआन, दुरूद, ज़िक्र और हज व उमरह कर ले। फिर मैं तुझे वह बात बताऊंगा।
मेरे पास काफ़ी रूपया था। प्रॉपर्टी डीलिंग का बिजनेस ठंडा चल रहा था। सो वक़्त काफ़ी था मैं हज व उमरह कर आया और नमाज़, रोज़ा, तिलावते क़ुरआन, दुरूद और ज़िक्र का पाबंद हो गया।
एक दिन इस्लाम मुझसे मिलने आया तो उसने पूछा कि अब तेरे दिल को कुछ सुकून मिला?
मैंने कहा कि हां मुझे पहले से कुछ सुकून मिला है और अपनी माफ़ी की उम्मीद भी पैदा हुई है लेकिन अभी तक मैं इस यकीन को नहीं पहुंचा कि जब मैं मर जाऊंगा तो अल्लाह यक़ीनन मुझे माफ़ कर देगा। आप मुझे वह आसान काम बता दीजिए जिसे करने के बाद अल्लाह का रहम पाना यक़ीनी है।
इस्लाम ने कहा कि मैं वह बात कुछ वक्त बाद बताऊंगा।
अब मैं दीनी मजलिसों में भी जाने लगा था। इस बीच इस्लाम मलेशिया चला गया और मैं दीन में बहुत तरक़्क़ी कर गया था। मैंने दाढ़ी लंबी कर ली थी। मैं लंबा ढीला कुर्ता, ऊंचा पायजामा, सिर पर टोपी और पगड़ी पहनने लगा था। हर वक़्त मेरी जेब में मिस्वाक, हाथ में तस्बीह और ज़ुबान पर इस्मे आज़म का विर्द रहने लगा था। एक साल में ही दूर दूर से लोग मेरे दर्से क़ुरआन में आने लगे थे। मैं अपने गुनाहों को याद‌ करके जितना ज़्यादा रो रोकर अल्लाह से माफ़ी की दुआ माँगता, लोग मुझे उतना ज़्यादा अल्लाह का वली समझने लगे थे।
एक दिन जब मैं अपने घर के बड़े हॉल में दर्से क़ुरआन कर रहा था तो इस्लाम भी वहीं आकर बैठ गया। मैंने लोगों को ज़ुलक़रनैन और याजूज माजूज के बारे में बताया। दर्स पूरा होने से पहले ही वह उठकर चला गया और इससे मुझे सुकून मिला कि अब मैं खुलकर रो रो कर दुआ माँग सकता हूँ।
फिर इस्लाम का यह रोज़ का सिलसिला हो गया कि जब मैं दर्स शुरू करता तो वह कुछ देर बाद हॉल में आकर बैठ जाता और जब दर्स खत्म होने के करीब होता तो वह उठकर चला जाता। इस दौरान मैंने जिन सब्जेक्ट्स पर दर्स दिया, वे ये थे: ईसा मसीह अलैहिस्सलाम का आसमान पर उठाया जाना और दोबारा आना, नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का बशर होना, क़ुरआन महफ़ूज़‌ है, तरावीह की रकअतें बीस हैं, दाढ़ी एक मुठ्ठी भर होनी ज़रूरी है, दज्जाल का फ़ितना क्या है और इमाम महदी कब आएंगे?
एक दिन मैं इस्लाम के घर चला गया। उसने मुझे गले से लगाया और अपने पास बिठाकर वह मुझसे हंसते हुए बोला कि अब तो तू हज़रत जी हो गया है भाई।
मैंने कहा-'इस्लाम भाई, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?'
इस्लाम-'क्योंकि तेरी सोच और तेरी तालीम से यतीम, मिस्कीन और बीमारों का, भूखों का, क़र्ज़दारों का, बेवाओं का और दुख के मारे इंसानों की मदद का ज़िक्र ग़ायब है।'
मैं एकदम सन्नाटे में आ गया। मुझे रियलाईज़ हुआ कि इस्लाम भाई की बात सच है। मुझे लगने लगा कि मैंने अब तक अपना वक्त बर्बाद किया है और अगर आज इस्लाम भाई ने मुझे न बताया होता तो मैं आगे भी अपना वक़्त और ज़्यादा बर्बाद करता।
मैंने इस्लाम भाई को एक बार फिर याद दिलाया-'इस्लाम भाई प्लीज़ आज आप मुझे वह बात बता दें जो आपने मुझे बताने के लिए कहा था और आपने कहा था कि जब मैं एक आसान काम करूंगा तो अल्लाह मुझ पर ज़रूर रहम करेगा। वह काम क्या है?'
इस्लाम ने कहा- 'तुम ज़मीन वालों पर रहम करो, आसमान वाला तुम पर रहम करेगा। जिनसे तुम नाराज़ हो, तुम उन्हें माफ़ करो, अल्लाह तुम्हें माफ़ करेगा। तुम ज़रूरतमंदों की मदद करो। अल्लाह तुम्हारी ज़रूरत में तुम्हारी मदद करेगा। तुम लोगों के ऐब ढको, अल्लाह तुम्हारे ऐब ढकेगा। जैसा तुम दूसरों के साथ करते हो, अल्लाह वैसा ही तुम्हारे साथ करेगा। तुम अल्लाह से अपने साथ अच्छा बरताव चाहते हो तो तुम दूसरों के साथ अच्छा बरताव करो। अगर तुम इसकी क़द्र करो तो यह एक आसान काम है।'
मुझे महसूस हुआ कि दीन की रूह और अल्लाह की चाहत मुझ पर आज खुली है कि वह इ़सान से हक़ीक़त में क्या चाहता है!
इस्लाम की घुट्टी पीकर मुझे ऐसा लगा जैसे कि मैं आज एक नई दुनिया में आँखें खोल‌ रहा हूँ।

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