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Saturday, March 25, 2017

Financial Freedm with Quran ‘अल्लाह का फ़ज़्ल तलाश करो’

दावत के काम में माल की ज़रूरत भी पड़ती है। लोगों के पास जाने में और लोगों के अपने पास आने में, दोनों में कई तरह से माल ख़र्च होता है। उनके चाय-नाश्ते में, आॅडियो-वीडियो और किताबें देने में भी माल ख़र्च होता है। हक़ क़ुबूल करने वाले नए साथियों की मदद के लिए भी माल की ज़रूरत पड़ती है। अनाथ आश्रमों, मदरसों, मस्जिदों और राहत कार्यों में भी माल देना पड़ता है। इसके अलावा दीन के दाई के ऊपर घर बनाने, निकाह करने, नर्सिंग होम्स के बिल देने, अपने बच्चों की फ़ीस जमा करने और दूसरे घरेलू कामों में भी माल ख़र्च करने की ज़िम्मेदारी होती है।
जब तक एक दाई समाज में रहेगा, तब तक उसे माल की ज़रूरत पड़ती रहेगी। कोई दाई लोगों से चन्दा लेकर किताबें वग़ैरह तो बाँट सकता है लेकिन उसे अपना घर ख़र्च चलाने के लिए भी माल की ज़रूरत है। जिसका इन्तेज़ाम उसे ख़ुद करना पड़ता है। किसी दाई का घर-ख़र्च समाज नहीं देता। 

अल्लाह ने इन्सान की इस सबसे अहम ज़रूरत को पूरा करने के लिए हुक्म दिया है कि
1. फिर जब नमाज़ पूरी हो जाए तो धरती में फैल जाओ और अल्लाह का उदार अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो, और अल्लाह को बहुत ज़्यादा याद करते रहो, ताकि तुम सफल हो।
-क़ुरआन 62:10

2. इसमें तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि (हज यात्रा के दौरान) अपने रब का अनुग्रह तलब करो।
-क़ुरआन 2:198
कमाई के लिए मज़दूरी, दस्तकारी, खेती, नौकरी और बिज़नेस आते हैं। दाई को पूरी छूट है कि वह जायज़ तरीक़े से इनमें से जिस काम के ज़रिये कमाना चाहे कमा ले। ये सब काम करके दाई कमा रहे हैं। अल्हम्दुलिल्लाह!
हमने देखा है कि मज़दूरी और दस्तकारी के ज़रिये कमाने वालों को ग़रीब और तंगदस्त पाया। खेती और और नौकरी करने वालों के पास मज़दूरों और कारीगरों से ज़्यादा रूपया देखा लेकिन फिर भी इनकी आय सीमित ही होती है। ज़्यादातर लोग छोटी या औसत दर्जे की नौकरियाँ करते हैं और ज़्यादातर किसानों के पास खेती की ज़मीन भी कम होती है।
बिज़नेस से जुड़े दाईयों को हमने ज़्यादा बेहतर हालत में पाया। हमने उनके छोटे बिज़नेस को भी वक़्त के साथ बरकत पाते हुए और बढ़ते हुए देखा है।
अल्लाह की मदद और उसकी बरकत को ख़ुद हमने अपने बिज़नेस में भी देखा है और देख रहे हैं। हरेक दाई बिज़नेस के ज़रिये ‘अल्लाह का फ़ज़्ल’ तलाश कर सकता है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
जब हमने बिज़नेस की नीयत की तो हमारे पास एक रूपया भी नहीं था और हम पढ़ ही रहे थे। रब की रुबूबियत यानि परवरिश के बेहतरीन निज़ाम का एक उसूल यह है कि आप जिस काम की नीयत करते हैं, आपकी नीयत की वजह से उस काम के असबाब बनने लगते हैं।
हमारी नीयत के बाद हमारे पास कुछ रुपयों का इन्तेज़ाम हो गया। जो कि हमने उधार लिए थे और देखने में बहुत कम थे यानि कुल 2700/- रूपये मात्र।
रब की रुबूबियत यानि परवरिश के बेहतरीन इन्तेज़ाम में से यह भी है कि जब आप नेक नीयत के साथ नेक अमल भी करते हैं तो आपका तसव्वुर (कल्पना) हक़ीक़त बनने लगता है। अल्लाह ख़्वाब दिखाता है और फिर उनकी ताबीर भी वही ज़ाहिर करता है।
अल्लाह ने हमें इतना माल दिया, जो हमारी ज़रूरतों के काफ़ी था और जो हमारे सेल्फ़ कन्सेप्ट के ऐन मुताबिक़ था। 
हम बरसों तब्लीग़ करते रहे लेकिन हमने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया कि हिन्दुस्तान में सबसे पहले मालाबार में जिन अरब सहाबा ने दावते दीन का काम किया था, वे भी बिज़नेस करते थे। अस्हाबे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मालाबार में तिजारत और दावत का सबसे बहु उम्दा नमूना क़ायम किया है।
यह हक़ीक़त जानने के बाद हिन्दुस्तान के दाईयों की आर्थिक समस्याओं का बेहतरीन हल सामने आ गया है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
Cheraman Juma Masjid at Kodungallur, Kerala

आप दावत के साथ तिजारत (बिज़नेस) कर सकते हैं और आप तिजारत के साथ दावत भी दे सकते हैं। यह एक बेहतरीन काॅम्बिनेशन है। इसे हम आज़मा चुके हैं और अब भी यह अमल हमारी ज़िन्दगी में जारी है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
तिजारत की बरकतों पर जो बहुत सी हदीसें भी आई हैं, उन्हें भी एक दाई को अपनी नज़र के सामने रखना चाहिए। इससे वह अपने साथ हक़ क़ुबूल करने वाले नए साथियों की मदद भी अच्छी तरह कर पाएगा। सभी आत्म-निर्भर और ख़ुशहाल होंगे। जिसका असर उनकी दावत और परफ़ाॅर्मेन्स पर भी पड़ेगा।
जो लोग जमाअत बनाकर दावत का काम कर रहे हैं, उन्हें दावती तरबियती कैम्पों की तरह तिजारत की तरबियत देने वाले कैम्प भी लगाने चाहिएं।
इस एक काम से दाईयों को बहुत बड़ी ताक़त और आज़ादी नसीब होगी।
इन् शा अल्लाह!
हमने एक एक करके दावते दीन में लगे हुए कई बहन-भाईयों, मस्जिद के इमामों और हाफ़िजों को तिजारत की तरबियत दी है। वे सब अपने काम को बहुत अच्छा कर रहे हैं।
इसी के साथ हमने बहुत से हिन्दू बहन-भाईयों और बूढ़ों को भी बिज़नेस की  ट्रेनिंग देकर आत्म-निर्भर बनाया है।
एक अनाथ आश्रम के बच्चे और संचालक हमारे पास चन्दे के लिए आया करते थे। हमने उन्हें क़ुरआन दिया और उन्हें भी यही तब्लीग़ की कि आप अल्लाह के नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखो, वह भी अनाथ थे। उन्होंने बिज़नेस किया लेकिन किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। आप भी माँगना बन्द कर दीजिए और सच्चाई और अमानतदारी के साथ बिज़नेस कीजिए। अल्लाह आपकी मदद करेगा। आपके हालात इतने अच्छे हो जाएंगे कि आप ही दूसरों की मदद करने लगेंगे।
उन्होंने चन्दा माँगना तो बन्द नहीं किया लेकिन अपने आश्रम की जगह में दुकानें बनाकर बिज़नेस शुरू कर दिया। कुछ वक़्त बाद उन्होंने बताया कि आपकी सलाह से हमें बहुत फ़ायदा पहुंच रहा है।
आप हिन्दुस्तान में रह रहे हैं, जहाँ बाज़ार भी हैं और ख़रीदार भी। बस एक ईमानदार और अमानतदार सच्चे बिज़नेसमैन की ज़रूरत है।

Friday, March 24, 2017

दिलचस्प क़िस्सा आपके पैग़ाम को दिल पर नक़्श कर देता है Moral Hindi Stories

दावत ए दीन में जिन कल्याणकारी नियमों को सिखाया जाता है, उनमें एक है सदक़ा यानि दान।
आम लोगों को कथाएं बहुत पसन्द हैं। आप उन्हें कथाओं के माध्यम से शिक्षित करेंगे तो वे ज़्यादा आसानी से प्रभावित हो जाएंगे। कथाएं और सच्चे क़िस्से भी बहुत से हैं। आप ऐसा क़िस्सा चुनिए, जिसमें हिन्दू-मुस्लिम प्रेम का तत्व भी मौजूद हो। ऐसे लोगों का क़िस्सा हो, जिन्हें हिन्दुस्तान के लोग पहचानते हों, उन्हें आदर देते हों। 
मिसाल के तौर पर आप रहीम और तुलसीदास जी के क़िस्से को देखिए-
रहीम एक बहुत बड़े दानवीर थे। उनकी ये एक खास बात थी कि जब वो दान देने के लिए हाथ आगे बढ़ाते तो अपनी नज़रें नीचे झुका लेते थे।
ये बात सभी को अजीब लगती थी कि ये रहीम कैसे दानवीर हैं। ये दान भी देते हैं और इन्हें शर्म भी आती है।

ये बात जब तुलसीदास जी तक पहुँची तो उन्होंने रहीम को चार पंक्तियाँ लिख भेजीं जिसमें लिखा था-
*ऐसी देनी देन जु*
*कित सीखे हो सेन।*
*ज्यों ज्यों कर ऊँचौ करौ*
*त्यों त्यों नीचे नैन।।*

इसका मतलब था कि रहीम तुम ऐसा दान देना कहाँ से सीखे हो? जैसे जैसे तुम्हारे हाथ ऊपर उठते हैं वैसे वैसे तुम्हारी नज़रें तुम्हारे नैन नीचे क्यूँ झुक जाते हैं?
रहीम ने इसके बदले में जो जवाब दिया वो जवाब इतना गजब का था कि जिसने भी सुना वो रहीम का क़ायल हो गया। 
इतना प्यारा जवाब आज तक किसी ने किसी को नहीं दिया।

रहीम ने जवाब में लिखा-
*देनहार कोई और है*
*भेजत जो दिन रैन।*
*लोग भरम हम पर करैं*
*तासौं नीचे नैन।।*

मतलब, देने वाला तो कोई और है वो मालिक है वो परमात्मा है वो दिन रात भेज रहा है। परन्तु लोग ये समझते हैं कि मैं दे रहा हूँ रहीम दे रहा है। ये सोच कर मुझे शर्म आ जाती है और मेरी आँखें नीचे झुक जाती हैं।

Thursday, March 23, 2017

Islam and Hindu Dharm कल्याण का एक शाश्वत नियमः वेद से क़ुरआन तक

कल्याण का एक शाश्वत नियमः वेद से क़ुरआन तक


वह नियम शुक्र है.
रहमत वाले रब ने इन्सान को पैदा किया और उसकी फ़लाह को शुक्र के साथ जोड़ दिया।
जो इन्सान अल्लाह की नेमतों की क़द्र करता है, उनका सही इस्तेमाल करता है, वह रब का शुक्र करता है। वह फ़लाह यानि कल्याण पा जाता है।
जो नाक़द्री और नाशुक्री करता है, वह रब की नेमतों का ग़लत इस्तेमाल करता है और बर्बाद हो जाता है। वह अपने बुरे आमाल के अन्जाम को भुगतता है।
हमारे मानने का असर हमारे करने पर पड़ता है और करने से एक अन्जाम सामने आता है। हम अपने मानने और करने को अच्छा कर लें तो हम अच्छा अन्जाम पाएंगे।
यह एक शाश्वत नियम है।
यह नियम हर दौर में धर्म और विज्ञान ने सत्य सिद्ध किया है।
यह रब की सबसे बड़ी रहमत है कि हम एक ऐसे यूनिवर्स में रहते हैं, जिसमें नियम क़ायम है।
वेद से लेकर क़ुरआन तक कर्म और फल के आपसी सम्बंध को बताया गया है। लोगों को सत्य को मानने और शुक्रगुज़ार बनने की शिक्षा दी गई है। फ़लाह और कल्याण के लिए यह आवश्यक है। इसीलिए आपको हरेक धर्म-मत में यह शिक्षा ज़रूर मिलेगी। यह कल्याण की आधारशिला है। बाक़ी दूसरे सभी नियम और दूसरी शिक्षाएं इसी को विस्तार और बल देती हैं।
कल्याण करने वाली शिक्षा देने का नाम धर्म-प्रचार है, दीन की दावत और तब्लीग़ है। इससे सबकी ऊर्जा का प्रवाह सबके लिए होता है। सबको फलने-फूलने और विकास के अवसर मिलते हैं। सबको मानसिक आज़ादी नसीब होती है। धार्मिक लोग सबके विकास के लिए दीन-धर्म के नियम सबको सिखाते हैं।
सबका भला करने वाले ये धार्मिक लोग हर देश-काल में हुए हैं और आज भी हैं। ये लोग रहम और इन्साफ़ करने वाले होते हैं। धर्म इनके लिए चर्या होता है, केवल चर्चा नहीं।
समाज में इनके विपरीत उद्देश्य और आचरण वाले लोग भी हमेशा से रहे हैं और आज भी हैं।
आप उन्हें उनके कर्मों से पहचान लेंगे। ‘एलीट क्लास’ के ये लोग सबके विकास के बजाय केवल अपना और अपने वर्ग का विकास चाहते हैं। इसके लिए वे दूसरों को सत्य से अन्धकार में रखते हैं। उन्हें उल्टी शिक्षाएं और परम्पराएं सिखाते हैं। जिससे उनमें सृष्टि की मामूली चीज़ों तक से डरने की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है। चतुर लोग लोग उन्हें दीन-हीन, नीच, अछूत और पिछलग्गू बना लेते हैं। वे मानसिक दास बन जाते हैं। इन ग़ुलामों की ऊर्जा, धन और समय का वे अपने विकास में और अपने आप को मज़बूत बनाने में प्रयोग करते हैं। ये शोषण करने वाले लोगों का वर्ग है।
यह वर्ग भी हर देश-काल में रहा है।
यही वर्ग नबियों और समाज सुधारकों के विरोध और उनके ख़ात्मे की कोशिशें करता आया है। ये धर्म की केवल बातें करते हैं लेकिन जब भी चलते हैं तो अधर्म पर ही चलते हैं।
नबियों और सुधारकों के जाने के बाद यह वर्ग अपनी चालबाज़ियों से धर्म के केन्द्रों के मुखिया बन जाते हैं। ये लोग भेदभाव फैलाते हैं और सम्प्रदाय और मत-मज़हब बनाकर लोगों को बांट देते हैं। इसके बाद समाज के लोग इनकी बात को ईश्वर का आदेश और अल्लाह का फ़रमान समझने लगते हैं।
वे राजनीति और कूटनीति करते हैं। आम लोग इनकी बातों पर चलते हैं और नुक़्सान उठाते हैं। दुनिया में धर्म के नाम पर दंगा-फ़साद और ख़ून-ख़राबा होने लगता है। आम जनता को नुक़्सान होता है लेकिन उनके लीडर्स को फ़ायदा होता है। वे सत्ता का भोग करते हैं। आम जनता उनके जयकारे और नारे लगाती है। आम जनता भेड़ों की तरह हैं। उन्हें अपने लीडर्स के भेड़िया होने की पहचान नहीं है।
सत्य-असत्य और न्याय-अन्याय का यह संघर्ष चला आ रहा है। हिन्दू, मुस्लिम, चीन और अरब, हरेक क़ौम और हरेक देश में यह संघर्ष हुआ है और हो रहा है।
हिन्दुओं में भी समाज सुधारकों को क़त्ल किया गया है और मुसलमानों में भी हज़रत अली र. और इमामों को और वलियों को क़त्ल किया गया है। ईसा मसीह के साथ उनकी क़ौम के चौधरियों ने जो किया, वह मशहूर ही है।
जो भी इन्सान फ़लाह और कल्याण पाना चाहता है, उसे जागरूक होकर यह ज़रूर देख लेना चाहिए कि वह किसकी बात को ‘सत्य’ मान रहा है और उसकी शिक्षा उसे कितना शुक्रगुज़ार और न्यायकारी बना रही है?

इन्टरनेट पर शरारती तत्वों से धर्म पर बहस से बचें

नबियों ने सबको आत्म-विकास के लिए कल्याण के नियम सिखाने का काम किया। उनके साथ और उनके बाद जागरूक ईमान वाले यह काम करते रहे। यहां तक कि आज एक सिद्धान्त के रूप में समाज में विकास और बराबरी का अधिकार सबके लिए मान लिया गया है।
विकास और न्याय के नियमों का पालन करने वाले अपना काम कर रहे हैं लेकिन शोषण करने वाले अन्यायवादी तत्व भी अपनी राजनीति और कूटनीति में सरगर्म हैं।
पहले भी इन्होंने हिन्दुओं को सम्प्रदाय में बांटा और आपस में लड़ाया। मुसलमानों को मसलकों-मज़हबों में बांटा और उन्हें भी मामूली से अन्तर पर आपस में लड़ाया। ईसाईयों और सिक्खों के इतिहास में भी इस तरह की लड़ाईयां देखी जा सकती हैं।
आज अख़बार और इन्टरनेट का दौर है। फ़ेसबुक और व्हाट्सएप्प की वजह से किसी भी विचार को दूर तक और तेज़ी से फैलाना मुमकिन हो गया है। आपस में लड़ाकर राज करने वालों ने सोशल मीडिया पर अपनी काफ़ी पकड़ बना ली है।
दूर संचार कम्पनियां और आईटी प्रोफ़ेशनल्स की टीम उन्हें सहयोग दे रही है। कुछ देशों में हुकूमत ही ऐसे तत्वों ने हथिया ली है।
ऐसे वक़्त में जब एक आम हिन्दू और मुस्लिम इन सोशल वेबसाइट्स पर जाता है तो उसे कुछ भड़काऊ सामग्री मिलती है। कई बार कोई फ़र्ज़ी नाम से यह घिनौना काम करता है ताकि पकड़ा न जाए। कई बार दोनों तरफ़ से एक ही शरारती गैंग होता है, जो हिन्दू और मुस्लिम बनकर आपस में लड़ रहा होता है।
ऐसे में आम हिन्दू और मुस्लिम को यह समझने की ज़रूरत है कि कोई उनकी भावनाएं भड़का कर आपस में झगड़ा कराना चाहता है, जिसका लाभ लड़वाने वालों को मिलेगा।
यह एक चक्रव्यूह है, जिसे अच्छी तरह समझ लेना ज़रूरी है। इसलिए उनकी चालबाज़ी के शिकार न बनें।
कुछ लोग उनके ऊल जलूल सवालों का जवाब देने लगते हैं। इससे एक बहस जन्म ले लेती है।
मसलन कोई शरारती तत्व माँस, इसलामी आतंकवाद, जन्नत, हूर, तलाक़, ख़त्ना और ज़्यादा सन्तान की मज़ाक़ उड़ाता है और कोई आदमी उसे तर्क और तथ्यों के साथ सन्तुष्ट करने की कोशिश करता है तो उसके कई और साथी भी वहां आकर कमेन्ट में और ज़्यादा मज़ाक़ उड़ाने लगते हैं। पढ़ने वाले मुसलमान यह समझते हैं कि हिन्दू उसके दीन की मज़ाक़ उड़ा रहे हैं। वह ग़ुस्से में आकर हिन्दू धर्म की कमियां गिनाने लगता है। वह सती, नियोग और शूद्र की बातें करने लगता है। कुछ लोग उसका साथ देने लगते हैं।
इससे दिमाग़ गर्म हो जाता है और हर वक़्त बस यही बातें उसके दिमाग़ में घूमने लगती हैं कि उसके इस कमेन्ट का क्या जवाब दूँ?
वह उसकी बातों का जवाब देने के लिए इन्टरनेट पर पढ़ने लगता है। अब उसका ज़्यादा समय इन्टरनेट और बहसों में गुज़रने लगता है। जिससे उसका ध्यान विकास से हट जाता है। वह चिड़चिड़ेपन और ग़ुस्से का शिकार हो जाता है। उसकी सेहत और आमदनी घट जाती है। उसके बच्चे पढ़ाई में पिछड़ने लगते हैं।
इसके बावजूद वह दीन का काम समझकर बहसें करता रहता है।
जैसे ही वह किसी एक को सन्तुष्ट कर लेता है तो कोई नया शरारती तत्व एन्ट्री ले लेता है और वह उन्हीं मुद्दों को फिर से उठाता है, जिन्हें हल किया जा चुका होता है।
वह दूसरे को सन्तुष्ट कर देता है तो फिर कोई तीसरा एन्ट्री ले लेता है और फिर इसलाम पर वही पुराने ऐतराज़ उठाने लगता है।
यह खेल चलता रहता है। इसका कोई अन्त नहीं है।
इसलाम की तरफ़ से जवाब देने वाला समझता है कि वह दावतो तब्लीग़ का काम कर रहा है। वह बहस-मुनाज़िरों का इतना आदी हो जाता है कि अगर कोई उससे बहस करने न आए तो वह सर्च करके ख़ुद ऐसे लोग तलाश कर लेता है, जिनसे वह बहस कर सके और उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे सके।
इस तरह वह उन शरारती तत्वों की चालबाज़ी का शिकार हो जाता है।
इस चालबाज़ी को समझने और इन शरारती तत्वों से बचने की ज़रूरत है।
इसका एक आसान तरीक़ा यह है कि उन्हें सभ्यता और क़ानून के दायरे में रहते हुए जवाब दिए जाएं। किसी भी धर्म या धार्मिक हस्ती के बारे में मज़ाक़ हरगिज़ न करें। यह अति संवेदनशील मामला है। यह सायबर क्राइम में आता है।
किसी भी इन्टरनेट यूज़र को कोई ऐसी बात नहीं लिखनी चाहिए जो कि सायबर क्राइम के दायरे में आती हो।
कोई दो-अर्थी बात न लिखें। जो भी लिखें, तथ्यों के साथ शालीनता से लिखें। जिन बातों को पढ़कर पाठक भड़क सकते हैं, ऐसी बातें उनके साहित्य में हों तो भी उन्हें न लिखें ताकि भड़काऊ राजनैतिक तत्वों की चाल नाकाम रहे। ये दरअसल नौजवान होते हैं, जो शैतान की कठपुतलियां बने हुए हैं।
इनके चन्द गिने-चुने सवाल हैं। उन्हीं को वे बार बार रिपीट करते रहते हैं।
उन जवाबों को एक ब्लॉग पर सेव कर लिया जाए।
अगली बार जब कोई कहीं और उन्हीं मुद्दों को उठाए तो आप उस पोस्ट का लिंक शेयर कर दें या उसे कॉपी पेस्ट कर दें।
इससे भी आसान यह है कि जिस किताब में इन सवालों के जवाब हों, उसे स्कैन करके इन्टरनेट पर अपलोड कर दें। ज़रूरत पड़ने पर उसी किताब का लिंक दे दें।
जिस सवाल का जवाब किसी किताब में न मिले तो आप उसे लिखकर अपने ब्लॉग में सेव और पब्लिश कर दें। इससे वह कई साल बाद भी पढ़ा जा सकेगा। गूगल और सर्च इंजनों के ज़रिये लोग उसे पढ़ते रहेंगे। आप उसकी पीडीएफ़ और ईबुक बनाकर भी भेज सकते हैं।
...और एक सबसे अच्छी बात यह भी है कि अगर आप इन्हें सिरे से कोई जवाब ही न दें और उनके दिए कमेन्ट को डिलीट मार दें तो आप इनकी चाल को सिरे से ही नाकाम कर देते हैं।
...क्योंकि इन्हें आपसे कोई जवाब दरकार नहीं है, इन्हें तो आपके दीन का मज़ाक उड़ाकर आपको ग़ुस्सा दिलाना है।
इन्हें मनोविज्ञान और हिप्नॉटिज़्म के नियमों की ट्रेनिंग दी गई है। ये लोग हिटलर के नियम को जानते हैं कि अगर एक झूठ को हज़ार बार दोहराओ तो सुनने वाले को वह सच लगने लगता है।
इन लोगों को शिविर में इसी बात का प्रशिक्षण दिया जाता है कि इसलाम और मुसलमानों की छवि को कैसे बिगाड़ें?
लिहाज़ा इनसे बहस को जितना हो सके, नज़रअन्दाज़ करें।
जब भी आप इन्हें जवाब दें तो पहले यह ज़रूर लिख दें कि भाई! प्रेम करो, नफ़रत न फैलाओ। फिर तर्क और तथ्य दें।
हमने पाया है कि काफ़ी लोग धार्मिक हस्तियों की मज़ाक़ उड़ाने के बुरे काम को छोड़ देते हैं। फिर भी जो न मानें तो उन्हें उनके हाल पर छोड़ दें। ये वे लोग हैं जिनके बारे में अल्लाह क़ुरआन में कहता है कि इन्हें इनकी गुमराही में पड़ा हुआ छोड़ दो।
आप अपनी बात ऐसे लोगों को बताएं, जिन्हें सत्य की तलाश है, जो ज़िन्दगी और मौत के राज़ को समझना चाहते हैं।
प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं के अलावा बाक़ी सभी आम हिन्दू भाई बहनों को माँस, इसलामी आतंकवाद, जन्नत, हूर, तलाक़, ख़त्ना और ज़्यादा सन्तान जैसी बातों से कोई लेना देना नहीं है।
जब भी उन्हें कोई फ़ायदे की बात क़ायदे से बताता है तो वे मान लेते हैं।
क़ायदा यह है कि ज्ञान की बात प्रेम से कही जाए।

मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने और आलिमों ने हिन्दू धर्म के पेशवाओं का आदर करना और उनकी ख़ूबियों को सराहना सिखाया है।
आप अल्लामा इक़बाल की शायरी में इसकी मिसाल देख सकते हैं-
 राम
लबरेज़ है शराबे हक़ीक़त से जामे हिन्द          
सब फ़लसफ़ी हैं खि़त्ता ए मग़रिब के राम ए हिन्द 
यह हिन्दियों के फ़िक्र ए फ़लक रस का है असर
रिफ़अ़त में आसमां से भी ऊंचा है बामे हिन्द 
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त
मशहूर जिनके दम से है दुनिया में नाम ए हिन्द
है राम के वुजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़
अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द
ऐजाज़ उस चराग़ ए हिदायत का है यही
रौशनतर अज़ सहर है ज़माने में शाम ए हिन्द
तलवार का धनी था शुजाअत में फ़र्द था
पाकीज़गी में जोश ए मुहब्बत में फ़र्द था
      -बांगे दिरा मय शरह उर्दू से हिन्दी, पृष्ठ 467, एतक़ाद पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली 2
शब्दार्थ- लबरेज़-लबालब भरा हुआ, शराबे हक़ीक़त-तत्वज्ञान, ईश्वरीय चेतना, आध्यात्मिक ज्ञान, खि़त्ता ए मग़रिब-पश्चिमी देश, राम ए हिन्द-हिन्दुस्तान के अधीन (‘राम‘ यहां फ़ारसी शब्द के तौर पर आया है जिसका अर्थ है आधिपत्य), फ़िक्र ए फ़लक रस-आसमान तक पहुंच रखने वाला चिंतन, रिफ़अत-ऊंचाई, बामे हिन्द-हिन्दुस्तान का मक़ाम, मलक सरिश्त-फ़रिश्तों जैसा निष्पाप, अहले नज़र-तत्वदृष्टि प्राप्त ज्ञानी, इमाम ए हिन्द-हिन्दुस्तान का रूहानी पेशवा, ऐजाज़-चमत्कार, चराग़ ए हिदायत-धर्म मार्ग दिखाने वाला दीपक, रौशनतर अज़ सहर-सुबह से भी ज़्यादा रौशन, शुजाअत-वीरता, पाकीज़गी-पवित्रता, फ़र्द-यकता, अपनी मिसाल आप

हिन्दू विचारकों और बुद्धिजीवियों में भी ऐसे करोड़ों लोग हैं जो पैग़म्बर मुहम्मद साहिब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के गुणों की तारीफ़ करते हैं और उनकी एक रब की शुक्रगुज़ारी, बराबरी और सेवा जैसी शिक्षाओं को अपनाए हुए हैं।
बहुत बड़ी जनता आपकी बात सुनने को तैयार है। आप उन्हें कल्याणकारी सन्देश दीजिए।
उस आम जनता से आपको रोकने लिए ही ये शरारती तत्व आपको अपने फड्डे में बिज़ी करते हैं।
किसी अनाथ, बेघर, विधवा, क़र्ज़ में फंसे हुए, बेवजह जेलों में बन्द, बेरोज़गार, ज़रूरतमन्द या किसी ग़रीब की या किसी भूखे की मदद कीजिए। आपके कर्म से वह मान लेगा कि ईश्वर अल्लाह सचमुच है और आप उसके बन्दे हैं।
आपके चारों तरफ़ समाज में ऐसी बहुत लड़कियाँ हैं, जिनके निकाह और विवाह दहेज न होने या सही रिश्ते न मिलने की वजह से नहीं हो रहे हैं। आप उनकी मदद कर सकते हैं।
जब आप समाज में प्रेम और सेवा के कर्म करेंगे तो फिर ये प्रशिक्षित कार्यकर्ता मुंह ताकते रह जाएंगे। ये सिर्फ़ भड़काऊ बातें कर सकते हैं, ग़रीबों और ज़रूरतमन्दों की सेवा नहीं कर सकते। ज़रूरत अमीर को भी पड़ती रहती है।
अमीर हो या ग़रीब हो, हिन्दू हो या मुसलमान हो, जिसे भी किसी भलाई की ज़रूरत हो और आप वह सेवा दे सकते हैं तो आप वह सेवा दें।
जो लोग सेवा का शुल्क/फ़ीस दे सकते हैं, आप उनसे फ़ीस भी ले सकते हैं। किसी से कम भी ले सकते हैं। इस तरह आप ग़रीबों को बिना फ़ीस के सेवा के साथ धन भी दे पाएंगे। यह पूरी तरह जायज़ है। इस धन से आप वे साधन भी ख़रीद पाएंगे, जिनके ज़रिए आप आप अपनी सेवाएं ज़्यादा लोगों को और ज़्यादा अच्छे तरीक़े से दे पाएंगे।
इससे लोगों के जीवन में पॉज़िटिव बदलाव आते हैं। उनका विकास होता है। उन्हें ख़ुशी महसूस होती है। उन्हें यह जीवन रब का वरदान लगने लगता है। वे दिल से रब का शुक्र करते हैं।
ख़ुद एक रब का शुक्रगुज़ार बनना और दूसरों को बनने की शिक्षा देना ही मोमिनों का मिशन है। इस मिशन को ख़ूब अच्छी तरह पहचान लीजिए। यह काम सिर्फ़ बहस में हराने से पूरा नहीं हो जाता।
हमें रब से मदद पानी है तो किसी ज़रूरतमन्द को जो मदद हम दे सकते हैं, वह बिना किसी भेदभाव के देनी होगी, जैसा कि हमारे बुज़ुर्ग देते आए हैं।
आप ज़मीन वालों पर रहम कीजिए, आसमान वाला आप पर रहम करेगा।
जिस पर वह क़ुदरत वाला रब रहम कर दे, उस पर ज़ुल्म करने वाले दुश्मन मिट जाते हैं। क़ुरआन की सूरह कौसर, सूरह लहब और सूरह नूह में अल्लाह ने यह क़ानूने क़ुदरत/यूनिवर्सल लॉ/शाश्वत नियम बयान किया है।
आप क़ुरआन और यूनिवर्स के लॉ को जानिए, उनसे काम लीजिए। आप बाक़ी और ग़ालिब रहेंगे, इन शा अल्लाह।

‘ला तहज़न इन्नल्लाहा म‘अना’
-क़ुरआन 9:40
अर्थात् ग़म न कर अल्लाह हमारे साथ है।
आप इस ‘हक़’ को ख़ूब अच्छी तरह समझ लें। इसे समझने में, इसकी गहराई से वाक़िफ़ होने में आपको कुछ महीने या कुछ साल भी लग सकते हैं लेकिन इसे ध्यानपूर्वक समझें कि क़ुदरत वाले अल्लाह के हमारे साथ होने का क्या मतलब है और उसका क्या असर हमरे जीवन पर पड़ता है?
इस बात को सरसरी तौर पर न लें। इस बात से हर ग़म मिट जाता है।
हमारा निजी अनुभव भी है। अल्हम्दुलिल्लाह!
अल्लाह वह है जिससे हम सबसे ज़्यादा मुहब्बत करते हैं, ‘वह’ हमारा सच्चा महबूब है, प्रियतम है। महबूब साथ हो तो अन्दर ही अन्दर एक अलग ही ख़ुशी और आनन्द मिलता रहता है। महबूब लगातार साथ हो तो यह ख़ुशी और आनन्द लगातार मिलता रहता है। वह महबूब इतनी क़ुदरत वाला है कि दरिया फाड़कर रास्ते बना दे और जहां कुछ न हो वहां सब कुछ बना दे। जिस यूनिवर्स में आप आज, अब मौजूद हैं, यहाँ कुछ भी न था। यहाँ हम भी न थे लेकिन उसने चाहा कि यहाँ सब कुछ हो तो आज, अब यहाँ सब कुछ है और हम भी हैं।
ऐसी क़ुदरत वाला महबूब हमारे साथ है, यह जानकर तो आनन्द के साथ आत्म-विश्वास भी बढ़ जाता है।
हर वक़्त बढ़ते हुए आनन्द और आत्म-विश्वास की मनोदशा मोमिन की बायो-केमिस्ट्री ही बदल देती है। आनन्द का हॉर्मोन सेरोटोनिन का लेवल इतना बढ़ जाता है कि आनन्द ही महसूस होता है, ग़म का एहसास मिट जाता है। स्ट्रेस हॉेर्मोन्स  का रिसाव बहुत कम रह जाता है।
फिर यही मनोदशा आपके बर्ताव में झलकती है। जिससे आपके कर्मों में बदलाव आता है। आसानी से अच्छे कर्म होने लगते हैं, जिनके फल भी अच्छे आते हैं। हालात बदल जाते हैं।
आप अल्लाह को साथ महसूस करके, उसकी ख़ूबियों का चर्चा करके अपने हालात बदल सकते हैं।
यह काम आपको ही करना है। यह काम आपके लिए कोई सरकार या कोई लीडर नहीं कर सकता और न ही कोई सरकार या लीडर आपको इस काम से रोक सकती है।
यह दिल का मामला है। दिल की दुनिया में आप पूरी तरह आज़ाद हैं। आप अपने दिल की ताक़त देखना चाहते हैं तो आप इसमें पूरी क़ुदरत वाल अल्लाह को अपने साथ महसूस कीजिए। यही है अल्लाह पर वह ईमान, जिससे हालात बदलते हैं, जिससे दुश्मन ज़ेर होते हैं। जिससे कमज़ोर ताक़त पाते हैं। जिससे ग़ुलाम आज़ाद होते हैं।
‘अल्लाह’ के नाम की ताक़त से आप भलाई का जो काम करना चाहें, कर सकते हैं। इसके लिए आप ‘अल्लाह’ नाम के मतलब पर ग़ौर कीजिए। इस सब्जेक्ट पर एक साल तक जितना ज़्यादा आप पढ़ सकते हैं, पढ़िए।
अल्लाह की क़ुदरत और रहमत का मुशाहिदा (दर्शन) कीजिए। जिस ख़ूबी पर आपका ध्यान केन्द्रित हो जाता है, वह ख़ूबी आपकी ज़िन्दगी में झलकने और बढ़ने लगती है क्योंकि ‘चेतना’ की यही प्रकृति है। अपनी प्रकृति को पहचानिए।

ये चन्द फ़ायदेमन्द बातें हैं, जिन्हें हमने अपने कई साल के तजुर्बे के बाद समझा और अपनाया है।
आज इन्टरनेट एक शक्तिशाली माध्यम है। इसका सदुपयोग कीजिए। सबको अच्छी और भली बातें सिखाइये।
हरेक धर्म-मत के अच्छे लोगों को अपने साथ मिलाकर एक मंच बनाएं और भलाई का पैग़ाम दें। इस तरह शरारती तत्वों की  नफ़रत फैलाने और दंगा करने की चाल नाकाम हो जाएगी।
इन्टरनेट इस्तेमाल करने वाले दूसरे मुस्लिम युवाओं को भी समझाएं कि वे धर्म की मज़ाक़ उड़ाने वालों से बहस न करें।

❤ हिन्दू धर्म का प्रचार करने वालों से भी अनुरोध है कि वे वेद-आयुर्वेद और योग की ऐसी बातों का प्रचार करें जिनसे सभी वर्गों के लोग लाभ ले सकें ताकि सबका भला, सबका कल्याण हो।
❤ नफ़रत और भ्रम फैलाने वालों के मैसेज फ़ॉरवर्ड न करें।
❤ ग़ुस्से में न आएं।
❤ अपनी भावनाओं से दूसरों को न खेलने दें।
❤ अपना हित-अहित देखकर ही फ़ैसला लें।
इससे हम सब एक ऐसे प्रेमपूर्ण समाज को वुजूद दे पाएंगे, जिसमें हम और हमारे बच्चे सब सुरक्षित रहेंगे और विकास कर पाएंगे।
महत्वपूर्ण यह है कि अस्थियाँ बिखरने से पहले ‘आस्था’ जग जाए और चिता जलने से पहले ‘चेतना’ जाग जाए तो हम सबका जन्म सफल हो जाएगा।
हम अच्छे कर्मों को एक पालनहार ईश्वर के हुक्म से करें और फिर उन कर्मों को भी उस ईश्वर अल्लाह को ही समर्पित कर दें तो उसका फल हमें लोक परलोक में अच्छा ही मिलेगा।
इसी में हम सबका कल्याण है।

विनतीः आपको यह सन्देश पसन्द आए तो इसे दूसरों तक भी ज़रूर पहुंचा दें।
शुक्रिया।