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Sunday, March 27, 2022

Hame Allah Kafi Hai

 *एक जवाब*

Mohd Suhael Khan भाई, ऐसा नहीं है। मेरी दादी और नानी दोनों देवबंदी थीं और दोनों को अल्लाह काफ़ी हुआ। 

मेरे रिश्ते के एक चाचा सहारनपुर में हैं। वह बरेलवी राह पर चल पड़े। वह #DuroodTaj पढ़ते थे। उनके भी काम बने। 

मेरे दोस्तों में कई शिया हैं। अल्लाह ने उनके भी काम बनाए। अभी मेरे एक शिया दोस्त ने एक प्लाट ख़रीदा तो व्हाट्सएप पर मुझे उसका फोटो भेज कर दुआ के लिए कहा। यह उनकी मोहब्बत है जो वह मुझसे करते हैं।

अब बचे सल्फ़ी।

मेरे एक मित्र डा० आसिफ़ सल्फ़ी है। मैं उनका वाक़या लिख ही चुका हूँ कि उन्होंने रोज़ एक हज़ार बार आयतुलकुसर्सी 38 दिन पढ़ी और एक हफ़्ते बाद ही उनका दिल रौशन हो गया था। उन्हें जिन्न दिखने लगे थे।कोई मिलने आता था तो वे घर में बैठे बैठे साफ़ देख लेते थे कि गली में दो लोग हैं, जो मिलने आ रहे हैं और एक के पास साइकिल है। जब दूसरी जमाअत के आदमी उनसे लड़े तो उनके साथ बदतमीज़ी करने वालों ने बड़ा नुक़्सान नेचुरली उठाया।

मैं ऐसी बहुत घटनाएं देख चुका हूँ। जिनमें हर मस्लक के लोगों ने अल्लाह से मदद चाही और अल्लाह उन्हें काफ़ी हुआ।

मैंने बरेलवियों की मेहनत से संकलित किताब

#shama_shabistane_raza से एक अमल

#याअल्लाह नाम का देखकर एक देवबंदी विचारधारा की लड़की को बता दिया। जिसकी ससुराल रामपुर में है।

उसने 3 दिन #या_अल्लाह कहकर दुआ माँगी और चौथे दिन उसके शौहर ने वह क़र्ज़ा एक झटके में उतार दिया। जो उससे 2 साल में न उतर रहा था।

इससे पता चला कि अल्लाह तो काफ़ी है ही, एक फ़िर्क़े की किताब में लिखा अल्लाह का नाम भी दूसरे फ़िरक़े के लिए काफ़ी हो रहा‌है। 

यहाँ तक कि उम्मत में बिल्कुल एक नए फ़िर्क़े, फ़िक़हे-वर्की के लोग भी अल्लाह से दुआ करते हैं तो वे भी अपने कामों में अल्लाह की मदद पाते हैं।

मैंने कोई भी फ़िर्क़ा ऐसा न देखा,

जो अल्लाह को काफ़ी न मानता हो या उसकी दुआ और यक़ीन के बाद अल्लाह उसे काफ़ी न हुआ हो।

मैं अब इन ज़हनी तंगियों को छोड़ता जा रहा हूँ और अगर हक़ वाज़ेह करने की ज़रूरत न हो तो मैं इन बातों पर ज़्यादा बहस नहीं करता।

मैंने दूसरे धर्म के लोगों के लिए भी अल्लाह को काफ़ी होते हुए देखा है। उन्हें रब से रोज़ी, औलाद और मुरादें पाते हुए देखा है।

इसलिए मैं अब न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर बल देता हूँ कि सब धर्मों और एक धर्म के सब सब संप्रदायों के लोग अपने अपने धर्म, मत और संप्रदाय पर चलें और आपस में एक दूसरे का भला करें। जिसे भलाई की जो बात पता हो, वह दूसरों को बता दे। जिसे वह बात माननी हो मान ले और जिसे न माननी हो तो वह न माने।

और चैन से मर जाए।

मरने के बाद हरेक को ख़ुद पता चल जाएगा कि वास्तव में सत्य क्या था?