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Friday, April 6, 2018

The Secret of Dawah Work: How to utilize the power of isme Aazam

इस्लाम की दावत देने वालों को तिब्बे नबवी सीखना बहुत ज़रूरी है।
इन्टरनेट पर इस्लाम की तब्लीग़ का आम मतलब ऐतराज़ करने वालों के जवाब देना बन कर रह गया है। मुसलमान जवाब देने में लगे हैं। सवाल करने वाला कहीं पढ़ता है और एक नया सवाल ले आता है। सवालों के जवाब देते देते मुबल्लिग़ अल्लामा बन जाता है लेकिन नए लोग फिर पुराने सवाल करने आ जाते हैं। इस तरह तब्लीग़ एक सवाल जवाब का काम बनकर रह जाती है। मोदी नगर से रेहान भाई और इमरान भाई हमसे मिलने आए। वह आर्य समाजियों के सवालों का ज़िक्र करने लगे। 
हमने कहा-भाई, आप उन्हें कोई जवाब न दें। आप उनसे कहें कि आपको वेद मार्ग पसन्द है तो आप अपने बच्चों को कान्वेंट में न पढ़ाएं, उन्हें गुरूकुल भेजकर वेद पढ़ाएं। सुबह शाम हवन करें और 16 संस्कार पूरे करें। ऊंच-नीच और छूतछात को मानें। जो आपका धर्म कहे, आप उस पर चलें। बस इतना कहते ही सारी बहस ख़त्म हो जाएगी क्योंकि इन्हें इनमें से कुछ नहीं करना है। इन्हें तो बस आपसे बहस करनी है और मज़ाक़ उड़ाना है। 
आप जाहिलों से बहस से बचो। सवाल का जवाब उसी को दो, जो जानने की नीयत से सवाल करे। जो फ़ालतू बहस करे, कुतर्क करें, आप उसे उसके हाल पर छोड़ दो। आप केवल लोगों से कल्याण और फ़लाह की नीयत से बात करें। आप क़ुरआन की कोई भी बात न बताने लगें बल्कि आप क़ुरआन की ऐसी बात बताएं जिससे सुनने वाले की कोई प्राब्लम हल होती हो जैसे कि सूरह फ़ातिहा मतलब समझकर पढ़ने से हर बीमारी दूर होती है और हर जायज़ काम में रब की मदद मिलती है। वह सूरह फ़ातिहा पढ़ेगा तो उसका काम बनेगा। उसका काम ख़ुद उसे यक़ीन दिलाएगा कि पवित्र क़ुरआन की प्रार्थना से मुराद पूरी होती है। जिसकी मुराद पूरी हो जाती है, उसका शक दूर हो जाता है। अब वह कोई सवाल करेगा तो जानने की नीयत से करेगा। इन्हें ज़रूर जवाब दें।
मक़सद यह है कि लोगों को क़ुरआन की शक्ति से फ़ायदा उठाना सिखाएं। यह आप तब सिखा सकते हैं, जब ख़ुद आपने किसी से यह इल्म सीखा हो। इस इल्म का नाम तिब्बे नबवी है। हम 'वेलनेस साईन्सेज़ आफ़ तिब्बे नबवी' सिखाते हैं। हमसे कोई फ़ालतू सवाल नहीं करता। रब का शुक्र है।

*The Secret of Dawah Work*
लोग मरने के बाद क्या होगा से ज़्यादा फ़िक्र उस मसले की करते हैं जो उन्हें जीते जी पेश आ रहा है। जो उस मसले को हल करने का उपाय बताता है, लोग उसके पीछे हो लेते हैं क्योंकि लोग अपनी मुराद के पीछे हैं।
*तिब्बे नबवी से दावती और फ़लाही काम, बहुत आसान और पुरअसर*
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क़ुरआन में जाहिलों की फालतू बहस का जवाब देने से मना किया गया है।
हमारे ज़माने में इन जाहिलों की मिसाल वे आर्य समाजी हैं जो अल्लाह और रसूल की मज़ाक़ उड़ाते हैं। राजनैतिक हिंदुत्ववादी भी ऐसे ही हैं। इंटरनेट पर ये लोग जाली नाम से नफ़रत फैलाने का क्राइम करते हैं ताकि मुसलमान भड़कें।
सो ऐसी बहस से बचो। जिससे समाज का भला न हो बल्कि नुक़सान हो।
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क़ुरआन से उसे नसीहत करो, जो उसे सुने और उससे फ़ायदा उठाये।
नसीहत (उपदेश) का मक़सद है लोगों का और अपना भला करना।
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जब आप समाज में घूमते हैं तो भलाई की नीयत से घूमें।
आप देखें कि आप किसका क्या भला कर सकते हैं?
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आप हरेक को तौहीद, शिर्क, बिदअत और मौत के बाद के अज़ाब और सवाब समझायेंगे तो कोई इक्का दुक्का समझेगा।
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जब आप "इसके साथ" सही अक़ीदे और अच्छे अख़लाक़ के दुनियावी फ़ायदे भी बताएँगे तो हरेक समझेगा।
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अल्लाह के होने को, उसके क़ादिर ए मुत्लक़ होने को, उसके रहमान व रहीम, रब, रज़्ज़ाक़, वली, दोस्त, वकील, हफीज़, शाफ़ी, काफ़ी और मददगार होने को मानने के दुनियावी फ़ायदे ज़रूर बयान कीजिये।
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अल्लाह का नाम एक मोजज़ा और मिरेकल है।
*अल्लाह* नाम इस्मे आज़म है।
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जब भी 'सिद्क़ ए लजा' के साथ यह नाम लिया जाता है। बन्दे को अल्लाह की मदद मिलती है।
उसका बिगड़ा काम बनता है। 
उसकी मुराद पूरी होती है। 
उसकी दुआ की तासीर ज़ाहिर होती है।
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अक्सर दीन के मुबल्लिग़ इस्मे आज़म से काम लेने का तरीक़ा नहीं जानते।
वे पूछेंगे 'सिद्क़ ए लजा' क्या है?
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According to Dr. Anwer Jamal
जब समंदर में कोई किश्ती डूब रही होती है, उस वक़्त डूबने वाला ज़िन्दगी को जिस शिद्दत से चाहता है, उस शदीद जज़्बे का नाम सिद्क़ ए लजा है।
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उसी शिद्दत ए मुहब्बत के साथ आप 'अल्लाह' के वुजूद की तरफ़ तवज्जो करें। उसी के हुक्म पर अपने काम का बनना डिपेंड समझें। अपने काम को हालात और असबाब पर डिपेंड न समझें क्योंकि ऐसा करने से आप लिमिटेशन के शिकार हो जाएंगे। आप यक़ीन करें कि अल्लाह के हुक्म से हालात और असबाब बनते हैं।
'अब' अल्लाह का नाम लें और अपने काम की दुआ करें।
आप फ़ौरन ही अपने दिल में अपना काम बना हुआ देख लेंगे।
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अभी आपका काम आपके दिल में ही बना है जोकि 'आलमे अम्र' से जुड़ा है। जोकि *हक़* है।
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आपका जिस्म आलमे ख़ल्क़ से यानि ज़ाहिर से जुड़ा है। ज़िन्दगी का बहाव आलमे अम्र से आलमे ख़ल्क़ की तरफ़ है। आलमे अम्र का असर आलमे ख़ल्क़ पर पड़ता है।
इस राज़ को समझें।
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मैंने रब की रहमत से 40 साल से ज़्यादा इस्मे आज़म की रिसर्च और तिलावत की है, अल्हम्दुलिल्लाह!

इस लंबे अरसे में  वेलनेस साइंसेज़ के एक्सपर्ट और अल्लाह के वलियों ने, ईस्ट वेस्ट के कायनाती राज़ के सब जानकारों ने अपने अपने अंदाज़ में क़ानून ए क़ुदरत पर जो लिखा है, उसे हमने पढ़ा है।
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सबका कहना है कि
अगर आप अपने दिल में मौजूद तसव्वुर को लगातार तवज्जो देते रहे और उस पर अल्हम्दुलिल्लाह कहकर शुक्र करते रहे तो आपका काम 'लतीफ़' से 'कसीफ़' यानि micro से macro होता चला जायेगा। आख़िरकार वह आलमे ख़ल्क़ में हक़ीक़त बन कर सबको दिखने लगेगा।
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इस तरीके से आप अपनी और दूसरों की बीमारी का इलाज करके देखें।
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जब आप अल्लाह की तरफ़ बहुत ज़्यादा मुहब्बत के साथ तवज्जो करते हैं तो आप उस वक़्त बहुत पॉवरफुल होते हैं।
उस हालत में आप अल्लाह से जुड़े हुए होते हैं।

*अल्लाह से सारा ताल्लुक़ दिल से है*
अल्लाह से ग़फ़लत करना उससे कट जाना है।
अल्लाह की तरफ़ मुहब्बत से तवज्जो करने से बंदा अल्लाह से जुड़ जाता है।
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दिल की अवेयरनेस का नाम तवज्जो है। अवेयरनेस आपकी पॉवर है।
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हम फर्द की सतह पर देखते हैं कि
इस तवज्जो से ही इंसान के काम बिगड़ रहे हैं। उसकी तवज्जो प्रॉब्लम पर चिपक कर रह गयी है। उसके दिल में ग़म, डर, मायूसी और तनाव क़ब्ज़ा जमाये हुए है।
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प्रॉब्लम सॉल्व करने का क़ुदरती क़ानून यह है कि आप अपनी तवज्जो प्रॉब्लम से हटा लें और उसके सॉल्यूशन पर जमा लें।
🌹 आप जिस काम को बनाना चाहें, आप उसके सॉल्यूशन को माइंड में रख कर तवज्जो करें,अल्लाह आपको उस साल्यूशन के असबाब ज़रूर देगा।
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जब आप किसी बीमारी के इलाज पर तवज्जो देंगे तो अल्लाह आपको उसके इलाज के असबाब ज़रूर देगा।
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*शिफ़ा के यक़ीन से मिलती है शिफ़ा*
कई बार वह बीमारी बिना दवा के खुद ठीक हो जायेगी
क्योंकि जब आप रब का नाम लेते हैं या क़ुरआन सुनते हैं तो आपका ब्रेन 'पीसफ़ुल' हो जाता है। वह Alpha wave पैदा करता है।
जब ब्रेन अल्फ़ा लेवल पर होता है। तब नर्वस सिस्टम और इम्यून सिस्टम खुद ही बीमारी को ठीक करने के लिए ज़रूरी हॉर्मोन्स और केमिकल्स खून में छोड़ने लगते हैं।
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जब आप पीसफ़ुल होकर सोते हैं तो नींद में खुद हीलिंग होती है और बीमारी खुद ही ठीक हो जाती है। हीलिंंग की नीयत 
 सोने से हीलिंग तेज़ होती है।
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ज़ाहिर है कि दूसरे कामों की तरह,
MBBS, BUMS, BAMS की तरह तिब्बे नबवी भी सीखने से ही आएगी। इसमें वक़्त और माल लगता है।
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40 साल हमारे लग गए और माल भी लगा। जो कुछ सीखा, उससे ज़्यादा अभी और बाक़ी है सीखने के लिए।

हम अपनी रिसर्च का ख़ुलासा आप सबके फ़ायदे के लिए यहाँ मुफ़्त दे रहे हैं।
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मदरसों और मस्जिदों में तिब्बे नबवी के सबक़ दिए जा रहे होते तो आप इसे किसी हद तक समझ लेते।
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क़ुदरती हीलिंग सिस्टम को समझने के लिए आपको नर्वस सिस्टम को और उसके बदन पर पड़ने वाले असरात को भी समझना होगा।
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जब आप यह समझ लेंगे
तब आप 'अल्लाह' के नाम से शिफ़ा पाना सीख लेंगे
और
तब आप दूसरों को अल्लाह के नाम से शिफ़ा पाना सिखा सकते हैं।
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तब हरेक धर्म और मत और मसलक का आदमी और औरत आपसे रब का नाम और उसका कलाम सीखेगा।
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नबियों ने लोगों को हमेशा इस तरीके का इल्म दिया है।
इस वक़्त यह इल्म न मदरसों में है, न मस्जिदों में और न ही दावा सेंटर्स पर।
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क़ुरआन के नुज़ूल का मक़सद लोगों को उनकी प्रॉब्लम्स का सॉल्यूशन देना है।
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दीनी और फ़लाही काम में लगे मुबल्लिग़ यह समझ लें कि
तिब्बे नबवी लोगों के मसले हल करती है।
तिब्बे नबवी दीन का हिस्सा है।
तिब्बे नबवी की तालीम देना दीन की तालीम देना है।