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Wednesday, July 25, 2018

क्या आप जन्नत में जाएंगे? Radical Forgiveness

सवालः क्या आपको यक़ीन है कि मरने के बाद आप जन्नत में जाएंगे?

हिन्दू भाई आवागमन को मानते हैं और ईसाई भाई मूल पाप को मानते हैं। इसलिए वे हरेक आदमी को पापी मानते हैं।
मुस्लिम आवागमन और मूल पाप के सिद्धान्त को नहीं मानते लेकिन वे भी लोगों को यही बताते हैं कि तुम गुनाहगार हो।
मान्यताओं के अन्तर के बावुजूद हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई प्रचारक लोगों को सैकड़ों साल से यह एक बात ज़रूर बताते हैं कि ‘तुम पापी हो. तुम ईश्वर अल्लाह यहोवा के भयानक दण्ड के भागी हो।’
सैकड़ों और हज़ारों साल से ये सबको लाखों बार यह बता चुके हैं और इन पर विश्वास रखने वालों को इस बात का पक्का यक़ीन आ चुका है कि ‘हम सब पापी हैं. हम सब अपने पापों के कारण दण्ड के भागी हैं।’
हर नगर, हर गली और हर घर में पापी ही पापी।

यह एक एवरग्रीन बात है। इसे आज कह दें तो सच और दो हज़ार पहले किसी ने कहा तो तब सच और अगर पाँच हज़ार साल पहले किसी ने कहा तो तब भी सच। मक्का के लोगों से कह दो तो सच, काशी में कह दो तो सच और वेटिकन में कह दो तो सच।

इस पाप से मुक्ति कैसे मिले?
इसे बताने वाले एक्सपर्ट भी हर गली में हैं। मार्गदर्शन और सलाहें बहुत हैं।
आप यूं कर लें और आप वूं कर लें। इससे आपका रब आपसे राज़ी हो जाएगा। अगर आपने ऐसा न किया तो अल्लाह आपको आग में जलाएगा और दुनिया में भी सख़्त अज़ाब देगा। देखो यह बात इस किताब में यहाँ लिखी है।

मैं इन सब प्रचारकों की बहुत इज़्ज़त करता हूं लेकिन किसी की इज़्ज़त का तक़ाज़ा यह नहीं है कि मैं अपने अन्जाम के बारे में सोचना बंद कर दूं और सब कुछ ‘शायद’ के हवाले कर दूँ।

मैंने ऐसे ज्ञानियों से पूछा कि आपसे रब राज़ी हो गया है?
बस वे ख़ामोश रह जाते हैं। कहते हैं कि यह तो मरकर ही पता चलेगा।
मरकर पता चला कि रब राज़ी न था तो वहां से वापस तो आ नहीं सकते।

क्या मैं इतना बड़ा ख़तरा मोल ले सकता हूँ कि अपने अन्जाम को उस दिन पता करूँ, जिस दिन अल्लाह वाहिदुल क़ह्हार के सामने उसकी इजाज़त के बिना कोई बोल न सकेगा। जिस जगह से कोई वापस न आ सकेगा कि वह अपने कर्म को बदल सके ताकि अन्जाम बदल जाए। हमारे पास ‘आज और अब’ है, जो भी हमें करना है, हमें वह आज और अब में ही करना है।

मौत एक सच है। जिससे हरेक धर्म-मत के इंसान को गुज़रना ही पड़ता है।
मौत के बाद सबके साथ जो कुछ होना है, उसे सबके धर्म ग्रन्थों ने ख़ूब खोलकर बता दिया है।
जो भी आपको रब के बारे में ज़्यादा जानकारी देता हुआ मिले, आप उससे बस यही एक सवाल पूछें कि अपने धर्म ग्रन्थों से कोई ऐसी बात बता दें कि मुझे दुनिया में ही इस बात का यक़ीन हासिल हो जाए कि मेरा रब मुझ पर मरने के बाद रहम करेगा और वह मुझे माफ़ कर देगा!

आपको इसका सही जवाब वही देगा, जो रब की और उसके कलाम की मारिफ़त रखता है। बाक़ी लोग सिर्फ़ टामक टुइंय्या मारते रहते हैं। ये टामक टुइंय्या मारने वाले दावते दीन का काम कर रहे हैं। ये लोग अल्लाह की, उसकी ज़ात (अस्तित्व) और सिफ़ात की मारिफ़त नहीं रखते क्योंकि ये उसके तक्वीनी (नेचुरल लाॅ) और तशरीई (शरई) क़ानून को नहीं जानते। ये अनाड़ी मुबल्लिग़ रब के नाम के नाम से लोगों में रोज़ ब रोज़ रहमत के बजाय दहशत ज़्यादा फैला रहे हैं। 
हिन्द की फ़ौज के हारने में एक बड़ी वजह यह बताई जाती है कि फ़ौज के हाथी दुश्मनों पर हमला करने के बजाय पलटकर भागते थे और अपने ही फ़ौजियों को कुचलकर दुश्मन की फ़तह को आसान बना देते थे।
ये मुबल्लिग़ इंसानी समाज के लिए, ख़ास तौर से मुस्लिम समाज के लिए फ़ौज के ऐसे हाथी ही साबित हो रहे हैं। पिछले दिनों मशरूम की तरह बहुत से दावती मर्कज़ वुजूद में आए हैं। उनमें से कोई तो साल तक बता देता है कि मुस्लिम इस साल में नष्ट हो जाएंगे। जबकि उस साल में वे डूबेंगे, जो हज़रत नूह (जल प्लावन वाले मनु) के विरोधी सरदारों की तरह अमल करते हैं।
हिकमत से हटकर अल्लाह के अज़ाब से डराना ओवरडोज़ हो चुका है। डरते डरते लोगों का हाल यह हो गया है कि अब उन्हें डराओ तो वे डरते नहीं। उनका दुआओं में रोना भी एक रस्म बनकर रह गया है। दुआ ख़त्म होते ही रोने वाला बिल्कुल नाॅर्मल हो जाता है।
उनकी दुआ इसी बात से शुरू होती है कि 
‘हम गुनाहगार हैं, सियाहकार हैं। हम गुनाहों के समन्दर में ग़र्क़ हैं। हम बदबख़्त हैं। हम मोहताज हैं।’
ये तौबा करके इन सबसे निकल क्यों नहीं आते?
ताकि अपने रब के शुक्र से दुआ शुरू करें, जैसा कि सूरह फ़ातिहा में रब ने ख़ुद सिखाया है।
लोग कहेंगे कि हमने अपने बड़ों को ऐसे ही दुआ करते सुना है।
ठीक है। मैं उन सब बड़ों की इज़्ज़त करता हूँ और कहता हूँ कि जब कोई गुनाह हो जाए या दिल में ऐसा कहने की प्रेरणा उठे तो आप ऐसा ज़रूर कहें। ऐसा क़ुरआन में और मस्नून दुआओं में आया है लेकिन इसका रट्टा हर दुआ में न मारें।
आप रब के शुक्र से अपनी दुआ शुरू करके देखें। आपको कुछ अलग रूहानी कैफ़ियत महसूस होगी। आपको अपने रब की ज़्यादा मारिफ़त नसीब होगी। आप अपने रब के कलाम में तदब्बुर (सोच विचार) करते रहे तो आप जान लेंगे कि रब ने इसमें हिदायत और मग़फ़िरत से जुड़े क़ानून को खोलकर बयान किया है, जो कि अटल है। 

आप ख़ुद माफ़ी के यक़ीन तक आ सके तो आप दूसरों को भी रब से माफ़ी पाने का यक़ीनी क़ानून बता सकते हैं, जिसमें कोई अगर मगर नहीं है। इसी बात को बताने का नाम दीन की दावत ओ तब्लीग़ करना है।

यही बात आप हिन्दू भाईयों को वेद और गीता से और ईसाईयों को बाइबिल में बताए गए शाश्वत नियमों की दलील के साथ बता सकते हैं। वे यक़ीन करेंगे क्योंकि आपकी दलील मज़बूत है और किताब उनकी अपनी है।
वे शाश्वत नियम क्या हैं, जो वेद, बाइबिल और क़ुरआन तीनों में हैं, जिनसे इन्सान को जीते जी ही माफ़ी का यक़ीन हासिल होता है?
मैं इन्हें बहुत साल तलाश करता रहा। मुझे उम्मीद है कि आप भी इन्हें ज़रूर तलाश करना चाहेंगे।
मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मैं आपसे दुआ की इल्तिजा करता हूँ।

Saturday, July 21, 2018

क्या किसी बस्ती के हरेक आदमी पर हुज्जत पूरी होने के बाद ही कुदरती तबाही आती है? Misconceptions About Dawah Work

हमने Facebook पर एक सवाल किया था-
सवाल: क्या जब तक किसी बस्ती के हरेक आदमी पर दीने इस्लाम की तब्लीग़ करके हुज्जत पूरी न कर दी जाए तब तक उस बस्ती पर #बद्रीनाथ जैसी प्राकृतिक आपदा नहीं आती?
(Misconceptions About Natural Disasters)

Nurina Parveen दावते दीन के लिए समर्पित हैं. उन्होंने हमें जवाब में एक कीमती रिसर्च भेजी है, जो फ़ेसबुक पर किसी वजह से कमेंट की शक्ल में पोस्ट न हो सकी। उस कीमती जवाब को आप सबके ग़ौरो-फ़िक्र के लिए  हम यहां save कर रहे हैं. आप इस मुददे पर यहां ब्लाग पर और फ़ेसबुक पर अपनी दलीलें दे सकते हैं.
पोस्ट का लिंक:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1349076468559328&id=100003709647931
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जवाब (Nurina Parveen):
प्राकृतिक आपदा क्यों और कब आती है?

प्राकृतिक आपदा क्यों और कब आती है?

जब इंसान परस्पर ईश्वरीय विधान और नियमों का उल्लंघन करके अपनी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करने की लालसा में अनुशासनहीनता की सारी हदों को पार कर जाता है तब प्राकृतिक विपदा के जरिए इंसान का सर्वनाश किया जाता है और यह हमेशा होता रहा है आज के समय में हमें ऐसे बहुत से तथ्य मिलें हैं जिनसे इस बात की सटीक पुष्टि हो जाती है। कुरआन में भी इसका विवरण मिलता है:
"सुनो! तुम्ही लोग हो जिसे बुलाया जा रहा है जिससे तुम ईश्वर की राह में दान करो तब तुम में से कुछ लोग कंजूसी करने लगते हैं, और जो कंजूसी करता है वह अपने आप ही से कंजूसी करता है, और ईश्वर धनी है और तुम निर्धन हो' और अगर तुम मानने से इंकार करोगे तो अल्लाह तुम्हारी जगह पर (तुम्हारे प्राकृतिक आपदा के जरिए पूरी तरह मिटाकर) दूसरे लोगों को लाएगा फिर वह तुम्हारे जैसे नहीं होंगे।"
(सूरह: मुहम्मद 47; आयत नं.:38)

ईश्वर ने कभी भी किसी भी जगह या समुदाय को तब तक प्राकृतिक आपदाओं के जरिए विध्वंश नहीं किया जबतक कि वहां पर ईशदूत को भेजकर अपने विधान और कानून की पूरी तरह से पुष्टि न कर दिया हो। जैसे; 
"और नहीं है आपका पालनहार बस्तियों (किसी जगह या समुदाय) को विध्वंश करने वाला जबतक उनके बीच कोई रसूल नहीं भेजता जो उन्हें हमारी आयतों को पढ़कर सुनाये, और हम बस्तियों का विनाश करने वाले नहीं परंतु जब उसके वासी अत्याचारी हो जाएं।"
(सूरह: अल क़सस 28; आयत नं. :59)

और जबतक किसी बस्ती(जगह या समुदाय) में सावधान करने वाले ईश्वरीय ज्ञान देने वाले मौजूद रहते हैं तबतक वहां पर कोई बङी विपदा नहीं आती। उदाहरण स्वरूप;
"और हमने  किसी बस्ती का विनाश नहीं किया परंतु वहां पर (ईश्वरीय ज्ञान से)अवगत कराने वाले थे।"
(सूरह: अस्शोरा 26; आयत नं.: 208,209)

किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा किसी भी स्थान पर या समुदाय में उस समय तक नहीं आएगी जबतक वहां पर सुधार कार्य करने वाले उपस्थित होंगे;
"और आपका पालनहार ऐसा नहीं है कि बस्तियों को अत्याचार के साथ विध्वंश कर दे, जबकि उसमें सुधाकर (भी) हों।"
(सूरह: अल-रअद11; आयत नं.:117)

और ईश्वर का नियम है कि वह लोगों को अपनी सुधार का अवसर देता है जबतक वह अवसर पूरा नहीं हो जाता तबतक वह किसी को क्षतिग्रस्त तरीके से समाप्त नहीं करता;
"और अगर एक बात पहले से निश्चित न होती आपके पालनहार की ओर से तो यातना आ चुकी होती, और एक निर्धारित समय न  होता।"
(सूरह: ताॅहा 20; आयत नं.:129)

क्योंकि ईश्वर स्वंय लोगों के साथ अत्याचार या अन्याय नहीं करना चाहता बल्कि लोग खुद अपने साथ अत्याचार करते हैं ईश्वर के सिवा ऐसे को अपना पूज्य बनाकर जो उनकी किसी भी प्रकार से मदद करने में सक्षम नहीं। अर्थात् ईश्वर के समीप मानकर उनकी अंधभक्ति में लिप्त हो जाते हैं जिनकी सत्यता का कोई प्रमाण उनके पास नहीं होता और आखिर में यही हठधर्मी जो उनके विनाश का कारण बनती है।
"और हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, परंतु उन्होंने स्वंय अपने ऊपर अत्याचार किया। तो उनके वह पूज्य जिन्हें वह ईश्वर के अलावा पुकार रहे थे' उनके कुछ भी काम नहीं आये, जब आपके पालनहार का आदेश आ गया तब उन्होंने उनके नुकसान को बढ़ाने के सिवा कुछ नहीं किया।"
(सूरह:अल-रअद11; आयत नं. :101)

इंसान पर किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा या क्षति उस समय तक नहीं आती जबतक वहां पर ईश्वरीय शिक्षा और ईशदूत के कार्य को निरंतर जारी व सारी रखा जाता है। उदाहरण के लिए कुरआन की इस आयत को देखें;
"तो आप लोगों को सन्मार्ग की ओर बुलाते रहिये जैसे कि ईश्वर ने आपको आदेश दिये हैं और स्वंय उसपर स्थिर रहिये, और उनकी इच्छाओ का पालन न कीजिये। और कह दीजिए कि मैं शरण में आ गया हूँ उन सभी पुस्तकों की जो ईश्वर ने अवतरित की है, और मुझे आदेश दिया गया है कि मैं तुम्हारे बीच न्याय करूँ,(क्योंकि) ईश्वर हमारा तथा तुम्हारा पालनहार है। हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे कर्म' हमारे और तुम्हारे बीच कोई झगड़ा नहीं, ईश्वर (ही) हम सबको एकत्रित करेगा और हम सबको उसी की ओर जाना है।"
(सूरह: अश्-शूरा 42; आयत नं. :15)

लेकिन इसके बाद भी अगर कोई ईश्वर को और ईशदूत को और उसके विधान को मानने से इंकार करता है सिर्फ अपने घमंड के कारण, और सुधार कार्यक्रम करने वालों को प्रताड़ित किया जाता है और उन्हें उस जगह को छोड़ने पर विवश किया जाता है तब ऐसी स्थिति में उस जगह को प्राकृतिक आपदा के जरिए पूरी तरह विध्वंश कर दिया जाता है। प्रमाण स्वरूप कुरआन की इस आयत को देखें;
"तथा बहुत सी बस्तियों (जगह या समुदाय) को जो अधिक शक्तिशाली थीं आपकी बस्तियों से, और आपको निकाल दिया तब हमने उन्हें ध्वस्त कर दिया फिर उनके लिए कोई सहायक न (सहायता नहीं मिली) हुआ।"  
(सूरह: मुहम्मद 47; आयत नं. :13)