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Saturday, July 21, 2018

क्या किसी बस्ती के हरेक आदमी पर हुज्जत पूरी होने के बाद ही कुदरती तबाही आती है? Misconceptions About Dawah Work

हमने Facebook पर एक सवाल किया था-
सवाल: क्या जब तक किसी बस्ती के हरेक आदमी पर दीने इस्लाम की तब्लीग़ करके हुज्जत पूरी न कर दी जाए तब तक उस बस्ती पर #बद्रीनाथ जैसी प्राकृतिक आपदा नहीं आती?
(Misconceptions About Natural Disasters)

Nurina Parveen दावते दीन के लिए समर्पित हैं. उन्होंने हमें जवाब में एक कीमती रिसर्च भेजी है, जो फ़ेसबुक पर किसी वजह से कमेंट की शक्ल में पोस्ट न हो सकी। उस कीमती जवाब को आप सबके ग़ौरो-फ़िक्र के लिए  हम यहां save कर रहे हैं. आप इस मुददे पर यहां ब्लाग पर और फ़ेसबुक पर अपनी दलीलें दे सकते हैं.
पोस्ट का लिंक:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1349076468559328&id=100003709647931
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जवाब (Nurina Parveen):
प्राकृतिक आपदा क्यों और कब आती है?

प्राकृतिक आपदा क्यों और कब आती है?

जब इंसान परस्पर ईश्वरीय विधान और नियमों का उल्लंघन करके अपनी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करने की लालसा में अनुशासनहीनता की सारी हदों को पार कर जाता है तब प्राकृतिक विपदा के जरिए इंसान का सर्वनाश किया जाता है और यह हमेशा होता रहा है आज के समय में हमें ऐसे बहुत से तथ्य मिलें हैं जिनसे इस बात की सटीक पुष्टि हो जाती है। कुरआन में भी इसका विवरण मिलता है:
"सुनो! तुम्ही लोग हो जिसे बुलाया जा रहा है जिससे तुम ईश्वर की राह में दान करो तब तुम में से कुछ लोग कंजूसी करने लगते हैं, और जो कंजूसी करता है वह अपने आप ही से कंजूसी करता है, और ईश्वर धनी है और तुम निर्धन हो' और अगर तुम मानने से इंकार करोगे तो अल्लाह तुम्हारी जगह पर (तुम्हारे प्राकृतिक आपदा के जरिए पूरी तरह मिटाकर) दूसरे लोगों को लाएगा फिर वह तुम्हारे जैसे नहीं होंगे।"
(सूरह: मुहम्मद 47; आयत नं.:38)

ईश्वर ने कभी भी किसी भी जगह या समुदाय को तब तक प्राकृतिक आपदाओं के जरिए विध्वंश नहीं किया जबतक कि वहां पर ईशदूत को भेजकर अपने विधान और कानून की पूरी तरह से पुष्टि न कर दिया हो। जैसे; 
"और नहीं है आपका पालनहार बस्तियों (किसी जगह या समुदाय) को विध्वंश करने वाला जबतक उनके बीच कोई रसूल नहीं भेजता जो उन्हें हमारी आयतों को पढ़कर सुनाये, और हम बस्तियों का विनाश करने वाले नहीं परंतु जब उसके वासी अत्याचारी हो जाएं।"
(सूरह: अल क़सस 28; आयत नं. :59)

और जबतक किसी बस्ती(जगह या समुदाय) में सावधान करने वाले ईश्वरीय ज्ञान देने वाले मौजूद रहते हैं तबतक वहां पर कोई बङी विपदा नहीं आती। उदाहरण स्वरूप;
"और हमने  किसी बस्ती का विनाश नहीं किया परंतु वहां पर (ईश्वरीय ज्ञान से)अवगत कराने वाले थे।"
(सूरह: अस्शोरा 26; आयत नं.: 208,209)

किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा किसी भी स्थान पर या समुदाय में उस समय तक नहीं आएगी जबतक वहां पर सुधार कार्य करने वाले उपस्थित होंगे;
"और आपका पालनहार ऐसा नहीं है कि बस्तियों को अत्याचार के साथ विध्वंश कर दे, जबकि उसमें सुधाकर (भी) हों।"
(सूरह: अल-रअद11; आयत नं.:117)

और ईश्वर का नियम है कि वह लोगों को अपनी सुधार का अवसर देता है जबतक वह अवसर पूरा नहीं हो जाता तबतक वह किसी को क्षतिग्रस्त तरीके से समाप्त नहीं करता;
"और अगर एक बात पहले से निश्चित न होती आपके पालनहार की ओर से तो यातना आ चुकी होती, और एक निर्धारित समय न  होता।"
(सूरह: ताॅहा 20; आयत नं.:129)

क्योंकि ईश्वर स्वंय लोगों के साथ अत्याचार या अन्याय नहीं करना चाहता बल्कि लोग खुद अपने साथ अत्याचार करते हैं ईश्वर के सिवा ऐसे को अपना पूज्य बनाकर जो उनकी किसी भी प्रकार से मदद करने में सक्षम नहीं। अर्थात् ईश्वर के समीप मानकर उनकी अंधभक्ति में लिप्त हो जाते हैं जिनकी सत्यता का कोई प्रमाण उनके पास नहीं होता और आखिर में यही हठधर्मी जो उनके विनाश का कारण बनती है।
"और हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, परंतु उन्होंने स्वंय अपने ऊपर अत्याचार किया। तो उनके वह पूज्य जिन्हें वह ईश्वर के अलावा पुकार रहे थे' उनके कुछ भी काम नहीं आये, जब आपके पालनहार का आदेश आ गया तब उन्होंने उनके नुकसान को बढ़ाने के सिवा कुछ नहीं किया।"
(सूरह:अल-रअद11; आयत नं. :101)

इंसान पर किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा या क्षति उस समय तक नहीं आती जबतक वहां पर ईश्वरीय शिक्षा और ईशदूत के कार्य को निरंतर जारी व सारी रखा जाता है। उदाहरण के लिए कुरआन की इस आयत को देखें;
"तो आप लोगों को सन्मार्ग की ओर बुलाते रहिये जैसे कि ईश्वर ने आपको आदेश दिये हैं और स्वंय उसपर स्थिर रहिये, और उनकी इच्छाओ का पालन न कीजिये। और कह दीजिए कि मैं शरण में आ गया हूँ उन सभी पुस्तकों की जो ईश्वर ने अवतरित की है, और मुझे आदेश दिया गया है कि मैं तुम्हारे बीच न्याय करूँ,(क्योंकि) ईश्वर हमारा तथा तुम्हारा पालनहार है। हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे कर्म' हमारे और तुम्हारे बीच कोई झगड़ा नहीं, ईश्वर (ही) हम सबको एकत्रित करेगा और हम सबको उसी की ओर जाना है।"
(सूरह: अश्-शूरा 42; आयत नं. :15)

लेकिन इसके बाद भी अगर कोई ईश्वर को और ईशदूत को और उसके विधान को मानने से इंकार करता है सिर्फ अपने घमंड के कारण, और सुधार कार्यक्रम करने वालों को प्रताड़ित किया जाता है और उन्हें उस जगह को छोड़ने पर विवश किया जाता है तब ऐसी स्थिति में उस जगह को प्राकृतिक आपदा के जरिए पूरी तरह विध्वंश कर दिया जाता है। प्रमाण स्वरूप कुरआन की इस आयत को देखें;
"तथा बहुत सी बस्तियों (जगह या समुदाय) को जो अधिक शक्तिशाली थीं आपकी बस्तियों से, और आपको निकाल दिया तब हमने उन्हें ध्वस्त कर दिया फिर उनके लिए कोई सहायक न (सहायता नहीं मिली) हुआ।"  
(सूरह: मुहम्मद 47; आयत नं. :13)

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