#Rhonda_Byrne की मूवी की वजह से #Law_of_Attraction अचानक ही अरबों लोगों की नालिज में आ गया। फिर उसने #The_Secret के नाम से एक किताब भी लिखी।
#रहोन्डा_बर्न की सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि उसने एक यूनिवर्सल ला को इस तरह बयान किया कि उसकी मूवी और उसकी बुक्स पूरी दुनिया में हर देश में मशहूर हो गईं। जिससे उसे शोहरत के साथ काफ़ी दौलत भी मिली लेकिन उसकी मूवी और उसकी बुक्स की सबसे बड़ी कमी यह है कि उसने सभी #Universal_Laws नहीं बताए। जिनके साथ मिलकर ला आफ़ अट्रैक्शन काम करता है।
इस्लाम के रूख़ से देखें तो रहोन्डा ने क्रिएटर और क्रिएशन, God, Spirit & Universe में कोई फ़र्क़ नहीं किया है। सबको गड मड्ड कर दिया है और ला आफ़ अट्रैक्शन के कोच आम तौर पर ऐसा करते हैं। इसीलिए मैं रहोन्डा की बुक पढ़ने की सलाह देने से बचता हूँ।
मैंने एक बुक में ये कमियाँ नहीं पाईं। मैंने उसकी इमेज को फ़ेसबुक पर डीपी बना लिया है ताकि लोगों को ला आफ़ अट्रैक्शन पर एक अच्छी किताब पढ़ने को मिल सके।
इसके बावुजूद आप यह जान लें कि इसके चाँस कम हैं कि आप सिर्फ़ किताब पढ़कर कोई चीज़ हासिल कर लेंगे क्योंकि
आपके #core_beliefs हमेशा आपके आड़े आएंगे और आप यह कहेंगे कि
ला आफ़ अट्रैक्शन काम नहीं करता जबकि वह उस वक़्त भी काम कर रहा है, जब आप उसके काम न करने का यक़ीन कर रहे हैं।
ला आफ़ अट्रैक्शन केवल आपकी कल्पना पर नहीं बल्कि आपके कोर बिलीफ़्स के कुल योग से बने नक़्शे पर #paradigm पर काम करता है। ओशो रजनीश इसे 'चेतना की अन्तर्संरचना' कहते हैं। ओशो ने जो दौलत, शोहरत और सफलता पाई, उसके पीछे उनकी 'चेतना की अंतर्संरचना की गहरी समझ' थी।
मैंने एक दिन मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह से ओशो के बारे में पूछा तो मौलाना ने कहा कि 'वह बड़ी अक़्ल वाला आदमी है।'
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह की ख़ूबी यह थी कि वह हर इंसान को उसकी ख़ूबियों के पहलू से देखते थे और उसकी ख़ूबियों को एप्रिशिएट करते थे।
आम मुस्लिमों में यह ख़ूबी कम है या कहें कि वे इसके ख़िलाफ़ करते हैं। उनके माईंड को इसी तरह प्रोग्राम किया गया है। उन्हें नई चीज़ें सिखाओ तो वे निगेटिव कमेंट करने लगते हैं। तब मैं उनसे वही लैंग्वेज बोलता हूँ, जो उनके माईंड में रन हो रही है।
क्योंकि मुझे पता है कि एक मुस्लिम का माईंड जिस तरह प्रोग्राम्ड है;
जब तक मैं उसी के मुताबिक़ न बोलूं, उसका माईंड मेरी तालीम को क़ुबूल न करेगा!
मैं उनसे कहता हूँ कि
अल्हम्दुलिल्लाह, हमारी कामयाबी ईमान में है। दुनिया फ़ानी (मिटने वाली) है और आख़िरत बाक़ी रहेगी। इसलिए आख़िरत में जो काम फ़ायदा दे, बस वही काम करो। सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा की नीयत से अच्छे काम करो। अल्लाह का हुक्म मानो और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत पर चलो।
अल्लाह कहता है कि मुझ पर ईमान लाओ, मुझसे अच्छे गुमान करो। अच्छे कामों की नीयत करो। अपना दिल शक और वसवसों से पाक करो। जो भी मज़दूरी या तिजारत तुम कर सको। उसे करो। मैं तुम्हें इज़्ज़त की रोज़ी दूंगा। मेरा शुक्र करो। मैं तुम्हें बरकत दूंगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ।
तुम अपने दुश्मन से न डरो और बस मुझ से ही डरो और मुझ पर तवक्कुल करो। तुम सब्र करो। मैं अपनी ताक़त से ज़ालिम दुश्मन को पस्त कर दूंगा।
तुम दूसरों के साथ भलाई करो, तुम्हारा भला होगा। तुम जो भी नेकी करोगे, उसमें तुम्हारा अपना भला है।
सच्चे लोगों के साथ हो जाओ। यतीमों और बेघर लोगों को धक्के न दो। उनसे मुहब्बत करो, माफ़ी और नर्मी से काम लो। रहम करो। सलाम करो। खाना खिलाओ। ज़रूरतमंदों के काम आओ। हमारे नबी ने अच्छे अख़्लाक़ की तालीम दी है। हमें अच्छे अख़्लाक़ से रहना है। अहले बैत, सहाबा, वली और सब आलिमों की तालीम यही है।
मैं भी यही बताता हूँ और मैं इसे रब का क़ानून ए क़ुदरत कहता हूं कि जिस आदमी ने भी इन कामों से अपने सुधार की शुरूआत की, उसका दुनिया और आख़िरत में भला हुआ और आपका भला भी ज़रूर होगा।
ज़्यादातर मुस्लिम इसे क़ुबूल करते हैं क्योंकि ये बातें उनकी चेतना की अंतर्संरचना ( #mindset/ #paradigm ) से मेल खाती हैं।
उन्हें महसूस नहीं होता कि मैंने इसमें #आकर्षण_का_नियम ही बयान किया है।
जब कोई मेरी बात को क़ुबूल नहीं करता तो उसमें उसकी ग़लती कम और मेरी ग़लती ज़्यादा होती है।
ज़्यादातर मामलों में मेरी ग़लती यह होती है कि मेरी लैंग्वेज उसके माईंडसेट से अलग होती है।
फिर मुस्लिमों में भी शिया, सुन्नी, वहाबी, अहले हदीस, बरेलवी, देवबंदी, जमाअत ए इस्लामी, तब्लीग़ी जमात, जमीयतुल उलमा ए हिंद, मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब की जमाअत और सूफ़ी की सोच के फ़्लेवर थोड़े थोड़े अलग हैं। जैसे कि शिया से पहली बार बात करते वक़्त मौला अली और इमाम हुसैन का ज़्यादा ज़िक्र किया जाए तो वह आपको 'ठीक आदमी' मान लेगा और इन अज़ीम बुजुर्गों का चर्चा बाइसे बरकत ही है।
ऐसे ही सुन्नी से बात करते हुए हज़रत अबू बक्र, उमर और हज़रत आयशा र० का, वहाबी से बात करते हुए तौहीद और शिर्क से मुताल्लिक़ आयतों का, अहले हदीस से बात करते हुए तीन तलाक़ से जुड़ी सूरह तलाक़ का, बरेलवी से बात करते हुए आला हज़रत के इल्मी मरतबे की बुलंदी का, देवबंदियों से बात करते हुए मौलाना अशरफ़ अली थानवी र० और दूसरे उलमा ए देवबंद की क़ुर्बानियों का, जमाअत ए इस्लामी के लोगों से बात करते हुए दीन के कामिल तसव्वुर और इक़ामते दीन का, तब्लीग़ी जमाअत के लोगों से मौलाना इलियास रहमतुल्लाहि अलैह के इख़्लास का और दाढ़ी, लिबास और मिस्वाक की सुन्नतों का, जमीयतुल उलमा के उलमा से मिलने पर तहरीक रेशमी रूमाल का, मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब की जमाअत के लोगों से सुलह हुदैबिया और पाज़िटिविटी का और सूफ़ी से मिलने पर ख़्वाहिशाते नफ़्स पर क़ाबू पाने और हर वक़्त अल्लाह का ज़िक्र करने का बयान किया जाए तो हरेक को आपकी बातों में उनकी अपनी पसंद का फ़्लेवर मिलेगा और वे आपकी बातें सुनकर आपको अपने दिल में 'ठीक आदमी' समझेंगे।
ऐसे ही सैयद, पठान, मुग़ल, शेख़, अंसारी, शम्सी, क़ुरैशी, सैफ़ी और गाड़ों की सोच के भी अलग अलग फ़्लेवर हैं। आप सबके पास बैठकर उनकी बातें बहुत ध्यान से सुनें। आपको पता चल जाएगा कि एक बिरादरी की नज़र में क्या बात ख़ास अहमियत रखती है और दूसरी बिरादरी की नज़र में क्या?
जब आप अंसारी दोस्त के साथ बैठें तो आप ज़्यादातर सैयद, शैख़, पठान और मुग़ल के घमंडी होने का ज़िक्र करके एक दो आयतें पढ़ें कि अल्लाह तकब्बुर को पसंद नहीं करता और देखो, अंसारी कितने सादा मिज़ाज और कितने मेहनती होते हैं, सहाबा की तरह। अब अंसारी आपको 'ठीक आदमी' मान लेगा और वह आपको भरपूर मुहब्बत और इज़्ज़त देगा।
और आप यह बात पूरी ईमानदारी सच्चाई से कहें। इसमें कोई छल कपट न करें। ईमानदार बनें और लोगों के माईंडसेट को पहचानें। फिर अपने एक ही मुहब्बत और भलाई के मैसेज को उनके माईंडसेट के एंगल से पेश करें ताकि वे उसे क़ुबूल करें।
ऐसे ही हिंदू का माईंडसेट मुस्लिम से अलग होता है और दलित का माईंडसेट बनिए से अलग होता है। ठाकुर का माईंडसेट ब्राह्मण से अलग होता है। पुजारी का माईंड सेट भक्त से अलग होता है। हिंदुत्ववादी नेता का माईंडसेट उसके अपने वोटर से अलग होता है। हिंदू बहन का माईंड सेट भाई से, पत्नी का पति से और बाबा का माईंड सेट दानी से अलग होता है।
सबके फ़्लेवर के हिसाब से बात की जाय तो वह ज़्यादा असरदार है लेकिन जो बात मैंने ऊपर मुस्लिमों से कही है, अगर आप उसी को संस्कृतनिष्ठ कठोर हिंदी में अनुवाद करके कह दें तो हर फ़्लेवर का हिंदू उसे एक्सेप्ट करेगा क्योंकि वह उन बातों को बचपन से सुनता आ रहा है:
हे दिव्य आत्माओ, हमारा कल्याण केवल स्थिर आस्तिकता में निहित है। जगत मिथ्या है केवल ब्रह्म सत्य है। माया के मोह से बचो और परोपकार करो। परहित सरिस धरम नाहि। शुभ संकल्प करो और निर्लिप्त भाव से सत्कर्म करो। ऋषियों के मार्ग पर चलो। सनातन परम्परा का पालन करो। योग का अभ्यास करो। कुविचारों को मन से हटाते रहो। अपनी कल्पना में भी चुनो तो सदा शुभ चुनो। अपने संकल्प को और अपने वचन को शुभ बनाओ। अपने चित्त को कभी द्वंद और दुविधा में न डालो। सेवा या व्यापार, जिससे कमाते हो, धर्मानुसार कमाओ। तुम्हें धन और मान मिलेगा। तुम कृतज्ञ बनोगे तो परमेश्वर तुम्हें और अधिक बढ़ाएगा। उसकी ज्योति सदा तुममें है। वास्तव में उसी का प्रतिबिंब तुम्हारी आत्मा है। तुम अपने शत्रु से न डरो। अपनी आत्मा की दिव्य शक्ति को पहचानो। विश्वास करो कि तुम्हारी आत्मा तुम्हारे शत्रु को परास्त करने में सक्षम है। तुम्हारी आत्मा तुम्हारे अडिग विश्वास को फलित और घटित कर देगी।
तुम दूसरों का कल्याण करो, तुम्हारा कल्याण स्वयं होगा।
सदा सत्य पक्ष के लोगों के साथ रहो। अनाथ और बेसहारा लोगों को न धिक्कारो। धर्म का सार यह है कि सबसे दया, प्रेम, क्षमा, मधुरता और धैर्य आदि उत्तम गुणों के साथ व्वहार करो।
याचकों के काम आओ। हमारे ऋषियों ने सर्वश्रेषठ आचरण की शिक्षा दी है। हमारे अच्छे आचरण से ही हमारा कल्याण होता है। ऋषि, मुनि, मनस्वी, तपस्वी, यति और सिद्ध सबकी शिक्षा यही है। यही वेद मार्ग है।
यही सृष्टि नियम है। जिस मनुष्य का लोक परलोक में कल्याण हुआ सृष्टि नियम से ही हुआ है। अत: इस रहस्य को ह्रदयंगम कर लो।
ऐसे ही बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई, लिंगायत, ब्रह्माकुमारी मिशन, कबीर पंथ और दूसरे पंथों के लोगों का माईंड सेट एक दूसरे से थोड़ा थोड़ा अलग होता है।
जब उनमें से कोई आपकी बात क़ुबूल नहीं करता तो ज़्यादातर आपकी ग़लती होती है और वह ग़लती यह होती है कि आपने हिकमत के बग़ैर इल्म पेश कर दिया।
बात चल रही थी 'ला आफ़ अट्रैक्शन' की।
मुख़्तसर बात यह है कि अल्हम्दुलिल्लाह, मैं हर धर्म और हर पंथ के लोगों के सामने उनके धर्मग्रंथ से ला आफ़ अट्रैक्शन की शिक्षा दे सकता हूँ।
वे वही बातें हैं, जो वे रोज़ सुनते हैं जैसे कि
'हर पंछी अपने जैसे पंछी के साथ ही उड़ता है। कबूतर कबूतर के साथ और बाज़ बाज़ के साथ उड़ता है।'
या यह कहें कि 'बबूल बोने से बबूल ही मिलता है, आम नहीं।'
'जैसा बोना, वैसा काटना।'
क्या कोई इस क़ानूने क़ुदरत का इन्कार करेगा?
नहीं।
आज न्यू एज थिंकर्स इसे Law_of_Attraction कहते हैं।
आपको इस नाम से चिढ़ है तो आप कोई दूसरा नाम रख लें।
आप ला आफ़ अट्रैक्शन को साईंस नहीं मानते, तो मुझे क्या? मैं यह नहीं कहूंगा कि आप इसे साईंस मानें।
हमारे घरों में आर्ट और फ़लसफ़ों की तकनीकों से भी काम लिया जाता है। आप इसे आर्ट और फ़लसफ़ा तो ज़रूर मानेंगे!
आप मानते हैं कि न्यू एज थिंकर्स की किताबों में कमियां है तो मैं भी यह बात मानता हूं।
अब आप एक किताब ऐसी लिख दें जिसमें कोई कमी न हो और जिससे सब धर्मों के लोग फ़ायदा उठाएं।
मैं आपका स्वागत करता हूँ।
हम सब मिलकर पूरी मानव जाति को मुहब्बत और तिजारत का सबक़ दें तो सबके दिल और पेट भरेंगे।
चारों तरफ़ फैली हुई बेरोज़गारी और भूख को देखो और हर धर्म के लोगों को ऐसी बातें सिखाओ, जिससे वे पलें और वे अपने पालनहार को पहचानें।
मेरी इस बात में कोई कमी हो तो आप उस कमी को छोड़ दें और इस काम को और ज़्यादा उम्दा तरीक़े से करें।
मैं आपको एप्रिशिएट करूंगा।