Translate

Tuesday, August 11, 2020

हाथ से कमाने के कुछ आसान तरीक़े

मेरी तब्लीग़ में दीन की तालीम, रोज़गार की तालीम, कम्पैरेटिव स्टडी और अल्लाह की निशानियों में ग़ौर करना एक साथ चलता है। मिसाल के तौर पर आप मेरा यह लेख देखें:

बेहतरीन कमाई हाथ की कमाई है

بہترین کسب معاش ہاتھ کی کمائی ہے

ہاتھ کی کمائی رزق حلال حاصل کرنے کا سب سے اعلیٰ اور بلند ذریعہ ہے اور اس کے متعلق نبی اکرم ﷺ نے بہت تاکید فرمائی ہے۔ حضرت مقدام بن معدی کربؓ سے روایت ہے کہ رسول اﷲ ﷺ نے فرمایا : ’’ کسی نے اس سے بہتر کھانا نہیں کھایا جو اپنے ہاتھ کی کمائی سے کھائے اور بے شک اﷲ کے نبی حضرت داؤدؑ اپنے ہاتھوں کی کمائی کھایا کرتے تھے۔‘‘ (بخاری )


حضرت رافع بن خدیجؓ کا بیان ہے کہ آپؐ سے دریافت کیا گیا، یا رسول اﷲ ! (ﷺ) کون سا ذریعۂ معاش پاکیزہ ہے ؟ آپؐ نے فرما یا: آدمی کا اپنے ہاتھ سے کمانا 

اور ہر جائز تجارت۔‘‘ (مسند احمد)

इन हदीसों में अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जायज़ तरीक़े से जिस्मानी मेहनत करके अपने 'हाथ से' कमाकर खाने की फ़ज़ीलत बताई है। जिसमें, तिजारत, दस्तकारी, खेती और मज़दूरी सब काम आ गए हैं।

एक्यूप्रेशर की #reflexolology और #sujoke सीखकर भी आप हाथ से कमा सकते हैं और इस तरीक़े में मरीज़ के हाथ पर प्रेशर देकर मर्ज़ को कम किया जाता है। मेरा ज़ाती तजुर्बा है कि यह बहुत इफ़ेक्टिव है, ख़ासकर नस के दर्द में, सिर दर्द में, दिल के दर्द या अटैक में और पेट रोगों में। मैंने इससे पोलियो के पुराने मरीज़ ठीक होते हुए देखें हैं लेकिन पोलियो के मरीज़ को एक साल एक्यूप्रेशर कराना पड़ता है।

जो नौजवान छोटी तिजारत करने में शर्म महसूस करते हैं और बड़ी तिजारत करने के लिए रूपया और साधन नहीं हैं और दूसरों के मातहत काम करने का मिज़ाज नहीं है। ऐसे लोग यू ट्यूब और व्हाट्स एप पर एक्यूप्रेशर का कोर्स कर लें। कुछ हफ़्ते अपने शहर के किसी एक्सपर्ट के साथ रहकर अमली तजुर्बा हासिल कर लें।

इन् शा अल्लाह, तीन माह में आप कमाने के लायक़ हो जाएंगे।

मैं यहाँ 'हाथ' की अहमियत समझाने के लिए यह भी बता दूं कि हिब्रू भाषा में परमेश्वर ने अपना नाम 'यहुवा' बताया था। जिसका पहला अक्षर 'यद' है और हिब्रू और अरबी में यद का अर्थ 'हाथ' होता है। 

अगर आप ध्यान दें तो आपको अपने हाथ में 'अल्लाह' नाम दिख सकता है।

जब आप अपने हाथ से कमाते हैं, हक़ीक़त में तब आप रब के नाम से कमाते हैं। जब आप ऐसा मानकर कमाएंगे तो आपकी कमाई में बरकत होगी क्योंकि

'बड़ी बरकत वाला है तुम्हारे रब का नाम जो अज़मत और बुज़ुर्गी वाला' -पवित्र क़ुर'आन 55:78

अगर आप एक औरत हैं तो आप भी यह कला सीखकर कमा सकती हैं।

जो औरतें एक्यूप्रेशर नहीं सीख सकतीं, वे अपने घर से हाथ की सजावट का सामान मेंहदी और चूड़ी बेचकर कमा सकती हैं।

मैंने इस पोस्ट में हाथ से हाथ पर काम करके कमाने की जानकारी दी है क्योंकि

मेरा मिशन है रब के नाम से #Mauj_Ley



Sunday, August 9, 2020

सृ‌ष्टा राम और सृष्टि राम को पहचानिए, एक क्रिएटर गॉड और दूसरा महापुरुष है।

5 अगस्त 2020 को मैंने अपने दिल को चैक किया कि क्या मुझे अब भी राम नाम से प्यार है?

मैंने देखा कि वह राम नाम से प्रेम पहले की तरह ज्यों का त्यों है क्योंकि वह प्रेम राजनीति से प्रेरित नहीं है बल्कि ज्ञान पर आधारित है।

मैंने बहुत पहले अपने एक व्हाट्स एप ग्रुप में एक पोस्ट ख़ुद लिखकर शेयर की थी, जिसमें सब मुस्लिम थे और उसे सबने सराहा था। मैंने सोचा कि मैं आज उस पोस्ट को यहां अपने सब धर्म के पाठकों के सामने पेश करूँ ताकि एक रहस्य जिसे कम लोग जानते हैं, आज उसे ज़्यादा लोग जान लें।

*राम और राम की पहचान*

*बनाएगी मेरा भारत महान*

Dr. Anwer Jamal

💚🌹💚

मैंने अपने बड़ों को देखा है कि वे सृष्टा राम और दशरथ पुत्र राम को ख़ूब पहचानते हैं, जबकि सनातनी ही इनके अंतर को भूलकर इन्हें गडमड कर देते हैं। इस गडमड करने से ही आम मुस्लिम और आलिम कन्फ़्यूज़्ड हैं।

ख़ुद मुझे राम के विषय में यह जानने में 30 साल से ज़्यादा लग गए कि सनातनी हिन्दू एक से ज़्यादा पर्सनैलिटीज़ के लिए राम नाम बोलते हैं।

वे परमेश्वर को भी राम कहते हैं और एक महान राजा को भी राम कहते हैं, जो मनुष्य की तरह खाते पीते थे, जिनके पत्नी और बच्चे थे, जो पैदा हुए और फिर एक ब्राह्मण दुर्वासा के कारण उन्हें सरयू में समाकर अपने जीवन का अंत करना पड़ा। इसके अलावा भी दो राम और हैं। 

एक राम दशरथ घर डोले, एक राम घट घट में बोले

एक राम का सकल पसारा, एक राम दुनिया से न्यारा

सनातन परंपरा में चार अस्तित्व के लिए राम शब्द आया है। और कमाल की बात यह है कि 'जय श्री राम' का नारा लगाने वालों ने या श्री रामचंद्र जी में श्रद्धा रखने वालों ने मुझे या दूसरे मुसलमानों को यह रहस्य समझाने के लिए कोई पुस्तक या ऑडियो वीडियो भेंट नहीं की। इसमें से ज़्यादातर ज्ञान मुझे मौलाना साहिबान और सूफ़ियों ने और मुस्लिम स्कॉलर्स ने दिया है। कुछ ज्ञान मैंने अपने शौक़ से खुद शोध करके पता लगाया है।

मैं यह अंतर और रहस्य जानने के बाद समझ चुका हूँ कि हर मस्जिद राम मंदिर है और मैं एक रामभक्त हूँ।

इसके बावुजूद मैं ख़ुद सनातनियों से यह नहीं कहता कि मैं रामभक्त हूँ क्योंकि मैं कहूंगा सृष्टा राम के विषय में और वे समझेंगे सृष्टि राम के विषय में।

मेरा प्रेमपूर्ण सुझाव यह है कि मंदिर निमार्ण में अरबों रूपये लगाने के साथ कुछ लाख रूपये का लिट्रेचर राम नाम के पूरे परिचय और विवेचन के साथ प्रकाशित किया जाए और सृष्टा राम और सृष्टि राम का अंतर भी रेखांकित कर दिया जाए कि एक ने पैदा किया है और दूसरा पैदा हुआ है।

हिन्दू धर्म के प्रचारक चैनलों पर यह बात आम कर दी जाए कि सृष्टा राम प्रार्थना स्वीकार करता है और दशरथ पुत्र राम नित्य प्रार्थना करता था।

इससे भ्रम दूर हो जाएगा और हरेक मुस्लिम समझ लेगा कि सनातनी एक नाम 'राम' दोनों के लिए बोल रहे हैं।

फिर मुस्लिम यह समझ लेंगे कि एक राम क्रिएटर गॉड है और दूसरा एक महापुरुष और मर्यादा पुरुषोत्तम है।

क्रिएटर गॉड को मुस्लिम अल्लाह कहते हैं और उसी की वंदना करते हैं और उसी से प्रार्थना करते हैं, उसी के सामने झुकते हैं। इस तरह मुस्लिम समझ लेंगे कि जिसे हिंदू राम कहते हैं उसी को हम अल्लाह कहते हैं। और हम उसी क्रिएटर गॉड अल्लाह की वंदना उपासना और भक्ति करते हैं। जब यह भ्रम दूर हो जाएगा, तब मुस्लिम राम शब्द भी क्रिएटर के लिए आसानी से ऐसे ही बोल देगा जैसे कि वह ईरान की फ़ारसी भाषा का शब्द ख़ुदा बोलता है। जैसे वह अपने लिए ख़ुदा का बंदा बोलता है, वैसे ही वह तब ख़ुद को रामभक्त बोल सकेगा।

दशरथ पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम सृष्टि राम जी के गुणों की तारीफ़ अल्लामा इक़बाल ने अपनी कविता 'राम' में बहुत सुंदर शब्दों में की है। उसे भी मुस्लिम पढ़ते और रामचंद्र जी को एक महापुरुष के तौर पर आदर देते हैं। इन बातों से सनातनी लोग ही ग़ाफ़िल और अज्ञ हैं। आप इंटरनेट पर 'Ram by Allama Iqbal' लिखकर गूगल सर्च करके पढ़ सकते हैं।

अब जो चाहे सृष्टा राम की भक्ति कर ले और जो चाहे सृष्टि राम की भक्ति कर ले। भारतीय संविधान और वेद पुराण इसकी पूरी इजाज़त देते हैं कि हर एक जैसे चाहे वैसे अपने उपास्य राम की भक्ति कर ले।

सारा झगड़ा अज्ञान का है।

अज्ञान के कारण ही सनातनी तनातनी कर रहे हैं।

जब वे ज्ञान के आलोक में देखेंगे तो उन्हें स्पष्ट ज्ञात हो जाएगा कि जगत का सृष्टा राम, दशरथ पुत्र श्री राम से बड़ा है और मुस्लिम बड़े राम की भक्ति करने के कारण सनातनियों से ज़्यादा बड़े रामभक्त हैं।

मुस्लिम आम और खास लोगों के बारे में आप कोई राय बनाने से पहले अपने पूर्वाग्रह और द्वेष को दूर कर लें। मैं आपको बता दूं कि ख़ुद राम भक्ति का दावा करने वाले सनातनियों को नहीं पता कि राम तारक मंत्र क्या होता है?

इसका परीक्षण करने के लिए आप रेंडमली 'जय श्री राम' बोलने वाले 10 लोगों को चुनें और उनसे पूछें कि कृपया आप मुझे राम तारक मंत्र सुना दें जो कष्टों को दूर करता है और 10 के 10 लोग आपको राम तारक मंत्र नहीं सुना सकेंगे। यही कारण है कि मुझे किसी रामभक्त ने आज तक राम तारक मंत्र का ज्ञान नहीं दिया। मुझे राम तारक मंत्र का ज्ञान अपने गुरु जी आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी साहिब रहमतुल्लाहि अलैह ने दिया।

'राम रामाय नमः'

अर्थात् राम के राम के लिए नमन है।

इसमें स्पष्ट रूप से दो राम का वर्णन है।

क्या बड़े और सृष्टा राम की भक्ति करना रामभक्ति करना नहीं है, जो जगत को समस्त कष्टों से तारता है?

आप को राम भक्ति सीखनी है तो ऐसे मुस्लिम विद्वानों से मिलें, जिन्होंने पवित्र क़ुरआन के साथ वेद पुराण भी पढ़ा हो। वे आपको वास्तविक राम भक्ति सिखाएंगे। 

Note: मेरी पोस्ट से तंग नज़र लोग दूर रहें और पाठक आपस में ऐतराज़ का जवाब न दें। यह काम मेरा है और मैं ऐतराज़ का जवाब न दूं तो यह मेरा चुनाव है क्योंकि जिस बहस से कुछ हासिल न हो, उसे न करना बेहतर है।

सन्तोष पाण्डेय: अनवर साहब जहां तक मंत्र दान का प्रश्न है तो मैं इसका समर्थन नहीं करता (चूंकि मैं खुद ब्राह्मण हूं तो मुझे इससे नुक़्सान कम या कुछ नहीं लेकिन लाभ की सम्भावना अधिक है) मंत्रदान में कुलगुरू अपना और याचक का सर धोती से ढक देते हैं उधर पुरोहित जी शंख फूंकते हैं उसी बीच कान में तीन बार गुरूजी मंत्र बोलते और हिदायत देते हैं कि यह मंत्र किसी को बताना नहीं है सुबह शाम इसका जाप करना है (याद रहे सुबह शाम जाप करना है किसी मंदिर मस्जिद या मूर्ति के सामने नहीं स्वस्थान पर) लेकिन मुझे आज तक ये समझ में नहीं आया जो कल्याणकारी है उसमे इतनी गोपनीयता क्यों? उसे तो सार्वजनिक होना चाहिए सबका भला हो।

अब दूसरी बात राम तारक मंत्र की तो अधिकतर लोग शैव मंत्र ग्रहण करते हैं आधुनिक समय में क्योंकि राम तारक मंत्र में मांसाहार निषेध है (मान्यता अनुसार) और घर के बुजुर्गों का मानना होता है कि आजकल के बच्चे हैं कही मांस खा लिया तो पाप का भागी होगा इसलिए शैव मंत्र ही अपनाने पर ज़ोर देते हैं

रामायण में एक प्रसंग है जब समुद्र पार कर लंका जाने का समय हुआ तो समस्या आई तो राम सेना में दो लोग थे, नल नील, जिन्हें श्राप था वे जो कुछ भी पानी में फेंकेंगे वह तैरने लगेगा तो वे पथ्थरों पर राम राम लिखते और समुद्र में फेंक देते इस तरह पुल का निर्माण होने लगा एक पथ्थर भगवान राम ने भी फेंका वह डूब गया तो उन्होंने पूछा मेरा नाम लिखकर पत्थर डालने से नहीं डूबता लेकिन जब मैं स्वयं पत्थर डाल रहा हूं तो वह क्यों नहीं तैरता तब जामवन्त ने जबाब दिया प्रभु शक्ति आपमें नहीं आपके नाममें है, यह एक प्रसंग है आप समझदार हैं बेहतर समझ सकते हैं मैं इससे आगे जाउंगा तो तत्काल विधर्मी घोषित किया जाऊंगा।

हमारे यहां तो जेल में बंद रामपाल को भी ईश्वर का अवतार नास्त्रेदमस का सायरन न जाने क्या क्या घोषित करके मोटी मोटी किताबें बांटी जा रही हैं

फिर वो तो राम हैं ,विष्णु के अवतार लेकिन कहीं किसी ग्रंथ में ब्रम्हा विष्णु महेश को ईश्वर नहीं बताया गया उन्हे देवता देवाधिपति या महादेव ही कहा गया है यानि उनका भी कोई संचालक है जो सर्वोच्च है वही ईश्वर(अल्लाह) है।

Dr. Anwer Jamal का जवाब यानी मेरा जवाब: सन्तोष पाण्डेय भाई, मन्त्र का एक पहलू तो उसका भाव और अर्थ है कि जो उसे समझ ले तो उसका मन तर जाए दुविधा के सागर से और उसका मन अपेक्षाकृत स्थिर हो जाए। इसके लिए उपदेश में जन समूह को मंत्र सुनाए जाते हैं। जिन्हें कोई भी सुन सकता है और लाभ उठा सकता है।

मंत्र का दूसरा पहलू शक्ति का है जो साधना और अभ्यास से आती है। एक ही शब्द की जब बार बार आवृत्ति की जाती है तो सूक्ष्म स्तर पर ऊर्जा की तरंगें पैदा होती हैं और वे साधक के मन, शरीर और जीवन पर ही नहीं बल्कि उससे जुड़े लोगों फर, देश, दुनिया और ब्रह्मांड पर थोड़ा या ज़्यादा असर डालती हैं, जिसे साधक ख़ुद नहीं समझ सकता। कई बार साधक अपने होश खो देता है और परमहंस या मजज़ूब बन जाता है। अगर गुरू में शक्ति नहीं होती तो वह लंबे समय के लिए या हमेशा के लिए भी वैसा ही रह जाता है और अगर गुरू में मानसिक (रूहानी) शक्ति होती है तौ वह उसका उचित उपाय करके उसे नार्मल कर देता है। शक्ति और साधना को हमेशा गुप्त रखा जाता है ताकि लोग उस पर विपरीत विचार देकर साधक के मन में शंका न उत्पन्न कर दें।

सनातनी दशरथ पुत्र श्री राम को साकार परमेश्वर मानते हैं तो यह उनका अपना 'दर्शन' है परंतु दशरथ ने ऐसा नहीं कहा और न श्रृंगी ऋषि ने ऐसा कहा है, जिनके आशीर्वाद से श्री राम पैदा हुए और न श्री राम ने ऐसा कहा और न दुर्वासा ऋषि ने श्री राम को कभी परमेश्वर माना और न कान्यकुब्ज ब्राह्मणों ने उनके जीवन काल में उन्हें परमेश्वर माना बल्कि जब श्री राम ने कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से रावण वध के बाद शाप मुक्ति यज्ञ करने को कहा तो उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया था।

बाद में लोग जोश में आकर किसी के बारे में जो भी मानने लगें वह उनकी मान्यता है। बाल्मीकि रामायण में रामचंद्र जी के हाथ का पत्थर डूब जाने और छाया सीता की कथा नहीं है। बाद में लोग कुछ भी लिखते रहे हैं।

जैसे कि मोदी ने कभी नहीं कहा कि मैं परमेश्वर का अवतार हूँ लेकिन कुछ लोग जोश में ऐसा कह रहे हैं।

बाल्मीकि रामायण में शिकार और मांसाहार के कई प्रसंग हैं।

जब भरत जी सेना सहित भारद्वाज ऋषि के आश्रम में जाते हैं, तब भारद्वाज क्या खिलाते हैं?

आप पढ़ सकते हैं।

कश्मीरी, गढ़वाली, बंगाली, उड़िया और नेपाली ब्राह्मण माँस खाते हैं तो क्या वे  सब शैव मंत्र पढ़ते हैं?

यह सब गुरूओं की बाद की व्यवस्था है जो हर प्रान्त में अलग है बल्कि हरिद्वार के हर अखाड़े के विचार मंत्र और भोजन के विषय में अलग हैं।

भोजन का चयन मंत्र की प्रकृति को ध्यान में रखकर किया जाता है कि यह उग्र है या सौम्य?

गर्म मिज़ाज के मंत्र पढ़ो और घी दूध न खाओ तो अंदर से ख़ून रिसकर पाख़ाने पेशाब के साथ आने लगता है।

ऐसे ही कई बार गोश्त वग़ैरह से रोका जाता है तो उसकी कुछ वजह होती है।

एक वजह यौनेच्छा को कम करना भी होती है ताकि इसका ध्यान विपरीत लिंग की तरफ़ न जाए और एकाग्र चित्त होकर अपना अभ्यास करता रहे।

भारत में जिन इलाकों में बौद्ध जैन विचारधारा का प्रभाव बढ़ गया था। वहां वहां ब्राह्मणों ने यज्ञ बंद किए और माँसाहार को त्यागकर जनता का समर्थन जुटाया और फिर बौद्ध जैन विचारधारा का प्रभाव कम किया और अपना राजनैतिक क़ब्ज़ा वापस लिया।

राजनैतिक वर्चस्व को वापस पाने के चक्कर में कुछ इलाकों के ब्राह्मणों का भोजन बदल गया जबकि बाक़ी इलाक़ो में लोग वैदिक काल की तरह पूर्ववत मांसाहार करते रहे।

जो शक्तिशाली लोग या इंद्र आदि राजा हुए हैं या अश्विनी कुमार आदि वैद्य हुए हैं, उन्हें देवता कहा जाता है। अग्नि और सूर्य आदि प्राकृतिक चीज़ों को भी देवता कहा गया है। जो जनता को देता है, वैदिक जन उसे देवता कहते हैं। देवताओं का आदि और अंत है। परमेश्वर अनंत है। उसी अनंत परमेश्वर को मुस्लिम अल्लाह कहते हैं।

इस पोस्ट को फ़ेसबुक पर देखें:

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2073196642813970&id=100003709647931

Friday, August 7, 2020

Jinke bol aur amal achche honge unka bhala zuroor hoga

 #Rhonda_Byrne की मूवी की वजह से #Law_of_Attraction अचानक ही अरबों लोगों की नालिज में आ गया। फिर उसने #The_Secret के नाम से एक किताब भी लिखी।

#रहोन्डा_बर्न की सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि उसने एक यूनिवर्सल ला को इस तरह बयान किया कि उसकी मूवी और उसकी बुक्स पूरी दुनिया में हर देश में मशहूर हो गईं। जिससे उसे शोहरत के साथ काफ़ी दौलत भी मिली लेकिन उसकी मूवी और उसकी बुक्स की सबसे बड़ी कमी यह है कि उसने सभी #Universal_Laws नहीं बताए। जिनके साथ मिलकर ला आफ़ अट्रैक्शन काम करता है।

इस्लाम के रूख़ से देखें तो रहोन्डा ने क्रिएटर और क्रिएशन, God, Spirit & Universe में कोई फ़र्क़ नहीं किया है। सबको गड मड्ड कर दिया है और ला आफ़ अट्रैक्शन के कोच आम तौर पर ऐसा करते हैं। इसीलिए मैं रहोन्डा की बुक पढ़ने की सलाह देने से बचता हूँ।

मैंने एक बुक में ये कमियाँ नहीं पाईं। मैंने उसकी इमेज को फ़ेसबुक पर डीपी बना लिया है ताकि लोगों को ला आफ़ अट्रैक्शन पर एक अच्छी किताब पढ़ने को मिल सके।

इसके बावुजूद आप यह जान लें कि इसके चाँस कम हैं कि आप सिर्फ़ किताब पढ़कर कोई चीज़ हासिल कर लेंगे क्योंकि

आपके #core_beliefs हमेशा आपके आड़े आएंगे और आप यह कहेंगे कि

ला आफ़ अट्रैक्शन काम नहीं करता जबकि वह उस वक़्त भी काम कर रहा है, जब आप उसके काम न करने का यक़ीन कर रहे हैं।

ला आफ़ अट्रैक्शन केवल आपकी कल्पना पर नहीं बल्कि आपके कोर बिलीफ़्स के कुल योग से बने नक़्शे पर #paradigm पर काम करता है। ओशो रजनीश इसे 'चेतना की अन्तर्संरचना' कहते हैं। ओशो ने जो दौलत, शोहरत और सफलता पाई, उसके पीछे उनकी 'चेतना की अंतर्संरचना की गहरी समझ' थी।

मैंने एक दिन मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह से ओशो के बारे में पूछा तो मौलाना ने कहा कि 'वह बड़ी अक़्ल वाला आदमी है।'

मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह की ख़ूबी यह थी कि वह हर इंसान को उसकी ख़ूबियों के पहलू से देखते थे और उसकी ख़ूबियों को एप्रिशिएट करते थे।

आम मुस्लिमों में यह ख़ूबी कम है या कहें कि वे इसके ख़िलाफ़ करते हैं। उनके माईंड को इसी तरह प्रोग्राम किया गया है। उन्हें नई चीज़ें सिखाओ तो वे निगेटिव कमेंट करने लगते हैं। तब मैं उनसे वही लैंग्वेज बोलता हूँ, जो उनके माईंड में रन हो रही है।

क्योंकि मुझे पता है कि एक मुस्लिम का माईंड जिस तरह प्रोग्राम्ड है;

जब तक मैं उसी के मुताबिक़ न बोलूं, उसका माईंड मेरी तालीम को क़ुबूल न करेगा!

मैं उनसे कहता हूँ कि

अल्हम्दुलिल्लाह, हमारी कामयाबी ईमान में है। दुनिया फ़ानी (मिटने वाली) है और आख़िरत बाक़ी रहेगी। इसलिए आख़िरत में जो काम फ़ायदा दे, बस वही काम करो। सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा की नीयत से अच्छे काम करो। अल्लाह का हुक्म मानो और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत पर चलो।

अल्लाह कहता है कि मुझ पर ईमान लाओ, मुझसे अच्छे गुमान करो। अच्छे कामों की नीयत करो। अपना दिल शक और वसवसों से पाक करो। जो भी मज़दूरी या तिजारत तुम कर सको। उसे करो। मैं तुम्हें इज़्ज़त की रोज़ी दूंगा। मेरा शुक्र करो। मैं तुम्हें बरकत दूंगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ।

तुम अपने दुश्मन से न डरो और बस मुझ से ही डरो और मुझ पर तवक्कुल करो। तुम सब्र करो‌। मैं अपनी ताक़त से ज़ालिम दुश्मन को पस्त कर दूंगा।

तुम दूसरों के साथ भलाई करो, तुम्हारा भला होगा। तुम जो भी नेकी करोगे, उसमें तुम्हारा अपना भला है। 

सच्चे लोगों के साथ हो जाओ। यतीमों और बेघर लोगों को धक्के न दो। उनसे मुहब्बत करो, माफ़ी और नर्मी से काम लो। रहम करो। सलाम करो। खाना खिलाओ। ज़रूरतमंदों के काम आओ। हमारे नबी ने अच्छे अख़्लाक़ की तालीम दी है। हमें अच्छे अख़्लाक़ से रहना है। अहले बैत, सहाबा, वली और सब आलिमों की तालीम यही है।

मैं भी यही बताता हूँ और मैं इसे रब का क़ानून ए क़ुदरत कहता हूं कि जिस आदमी ने भी इन कामों से अपने सुधार की शुरूआत की, उसका दुनिया और आख़िरत में भला हुआ और आपका भला भी ज़रूर होगा।

ज़्यादातर मुस्लिम इसे क़ुबूल करते हैं क्योंकि ये बातें उनकी चेतना की अंतर्संरचना ( #mindset/  #paradigm ) से मेल खाती हैं।

उन्हें महसूस नहीं होता कि मैंने इसमें #आकर्षण_का_नियम ही बयान किया है।

जब कोई मेरी बात को क़ुबूल नहीं करता तो उसमें उसकी ग़लती कम और मेरी ग़लती ज़्यादा होती है।

ज़्यादातर मामलों में मेरी ग़लती यह होती है कि मेरी लैंग्वेज उसके माईंडसेट से अलग होती है।

फिर मुस्लिमों में भी शिया, सुन्नी, वहाबी, अहले हदीस, बरेलवी, देवबंदी, जमाअत ए इस्लामी, तब्लीग़ी जमात, जमीयतुल उलमा ए हिंद, मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब की जमाअत और सूफ़ी की सोच के फ़्लेवर थोड़े थोड़े अलग हैं। जैसे कि शिया से पहली बार बात करते वक़्त मौला अली और इमाम हुसैन का ज़्यादा ज़िक्र किया जाए तो वह आपको 'ठीक आदमी' मान लेगा और इन अज़ीम बुजुर्गों का चर्चा बाइसे बरकत ही है।

ऐसे ही सुन्नी से बात करते हुए हज़रत अबू बक्र, उमर और हज़रत आयशा र० का, वहाबी से बात करते हुए तौहीद और शिर्क से मुताल्लिक़ आयतों का, अहले हदीस से बात करते हुए तीन तलाक़ से जुड़ी सूरह तलाक़ का, बरेलवी से बात करते हुए आला हज़रत के इल्मी मरतबे की बुलंदी का, देवबंदियों से बात करते हुए मौलाना अशरफ़ अली थानवी र० और दूसरे उलमा ए देवबंद की क़ुर्बानियों का, जमाअत ए इस्लामी के लोगों से बात करते हुए दीन के कामिल तसव्वुर और इक़ामते दीन का, तब्लीग़ी जमाअत के लोगों से मौलाना इलियास रहमतुल्लाहि अलैह के इख़्लास का और दाढ़ी, लिबास और मिस्वाक की सुन्नतों का, जमीयतुल उलमा के उलमा से मिलने पर तहरीक रेशमी रूमाल का, मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब की जमाअत के लोगों से सुलह हुदैबिया और पाज़िटिविटी का और सूफ़ी से मिलने पर ख़्वाहिशाते नफ़्स पर क़ाबू पाने और हर वक़्त अल्लाह का ज़िक्र करने का बयान किया जाए तो हरेक को आपकी बातों में उनकी अपनी पसंद का फ़्लेवर मिलेगा और वे आपकी बातें सुनकर आपको अपने दिल में 'ठीक आदमी' समझेंगे।

ऐसे ही सैयद, पठान, मुग़ल, शेख़, अंसारी, शम्सी, क़ुरैशी, सैफ़ी और गाड़ों की सोच के भी अलग अलग फ़्लेवर हैं। आप सबके पास बैठकर उनकी बातें बहुत ध्यान से सुनें। आपको पता चल जाएगा कि एक बिरादरी की नज़र में क्या बात ख़ास अहमियत रखती है और दूसरी बिरादरी की नज़र में क्या?

जब आप अंसारी दोस्त के साथ बैठें तो आप ज़्यादातर सैयद, शैख़, पठान और मुग़ल के घमंडी होने का ज़िक्र करके एक दो आयतें पढ़ें कि अल्लाह तकब्बुर को पसंद नहीं करता और देखो, अंसारी कितने सादा मिज़ाज और कितने मेहनती होते हैं, सहाबा की तरह। अब अंसारी आपको 'ठीक आदमी' मान लेगा और वह आपको भरपूर मुहब्बत और इज़्ज़त देगा।

और आप यह बात पूरी ईमानदारी सच्चाई से कहें। इसमें कोई छल कपट न करें। ईमानदार बनें और लोगों के माईंडसेट को पहचानें। फिर अपने एक ही मुहब्बत और भलाई के मैसेज को उनके माईंडसेट के एंगल से पेश करें ताकि  वे उसे क़ुबूल करें।

ऐसे ही हिंदू का माईंडसेट मुस्लिम से अलग होता है और दलित का माईंडसेट बनिए से अलग होता है। ठाकुर का माईंडसेट ब्राह्मण से अलग होता है। पुजारी का माईंड सेट भक्त से अलग होता है। हिंदुत्ववादी नेता का माईंडसेट उसके अपने वोटर से अलग होता है। हिंदू बहन का माईंड सेट भाई से, पत्नी का पति से और बाबा का माईंड सेट दानी से अलग होता है।

सबके फ़्लेवर के हिसाब से बात की जाय तो वह ज़्यादा असरदार है लेकिन जो बात मैंने ऊपर मुस्लिमों से कही है, अगर आप उसी को संस्कृतनिष्ठ कठोर हिंदी में अनुवाद करके कह दें तो हर फ़्लेवर का हिंदू उसे एक्सेप्ट करेगा क्योंकि वह उन बातों को बचपन से सुनता आ रहा है:

हे दिव्य आत्माओ, हमारा कल्याण केवल स्थिर आस्तिकता में निहित है। जगत मिथ्या है केवल ब्रह्म सत्य है। माया के मोह से बचो और परोपकार करो। परहित सरिस धरम नाहि। शुभ संकल्प करो और निर्लिप्त भाव से सत्कर्म करो। ऋषियों के मार्ग पर चलो। सनातन परम्परा का पालन करो। योग का अभ्यास करो। कुविचारों को मन से हटाते रहो। अपनी कल्पना में भी चुनो तो सदा शुभ चुनो। अपने संकल्प को और अपने वचन को शुभ बनाओ। अपने चित्त को कभी द्वंद और दुविधा में न डालो। सेवा या व्यापार, जिससे कमाते हो, धर्मानुसार कमाओ। तुम्हें धन और मान मिलेगा। तुम कृतज्ञ बनोगे तो परमेश्वर तुम्हें और अधिक बढ़ाएगा। उसकी ज्योति सदा तुममें है। वास्तव में उसी का प्रतिबिंब तुम्हारी आत्मा है। तुम अपने शत्रु से न डरो। अपनी आत्मा की दिव्य शक्ति को पहचानो। विश्वास करो कि तुम्हारी आत्मा तुम्हारे शत्रु को परास्त करने में सक्षम है। तुम्हारी आत्मा तुम्हारे अडिग विश्वास को फलित और घटित कर देगी।

तुम दूसरों का कल्याण करो, तुम्हारा कल्याण स्वयं होगा।

सदा सत्य पक्ष के लोगों के साथ रहो। अनाथ और बेसहारा लोगों को न धिक्कारो। धर्म का सार यह है कि सबसे दया, प्रेम, क्षमा, मधुरता और धैर्य आदि उत्तम गुणों के साथ व्वहार करो।

याचकों के काम आओ। हमारे ऋषियों ने सर्वश्रेषठ आचरण की शिक्षा दी है। हमारे अच्छे आचरण से ही हमारा कल्याण होता है। ऋषि, मुनि, मनस्वी, तपस्वी, यति और सिद्ध सबकी शिक्षा यही है। यही वेद मार्ग है।

यही सृष्टि नियम है। जिस मनुष्य का लोक परलोक में कल्याण हुआ सृष्टि नियम से ही हुआ है। अत: इस रहस्य को ह्रदयंगम कर लो।

ऐसे ही बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई, लिंगायत, ब्रह्माकुमारी मिशन, कबीर पंथ और दूसरे पंथों के लोगों का माईंड सेट एक दूसरे से थोड़ा थोड़ा अलग होता है।

जब उनमें से कोई आपकी बात क़ुबूल नहीं करता तो ज़्यादातर आपकी ग़लती होती है और वह ग़लती यह होती है कि आपने हिकमत के बग़ैर इल्म पेश कर दिया।

बात चल रही थी 'ला आफ़ अट्रैक्शन' की।

मुख़्तसर बात यह है कि अल्हम्दुलिल्लाह, मैं हर धर्म और हर पंथ के लोगों के सामने उनके धर्मग्रंथ से ला आफ़ अट्रैक्शन की शिक्षा दे सकता हूँ।

वे वही बातें हैं, जो वे रोज़ सुनते हैं जैसे कि

'हर पंछी अपने जैसे पंछी के साथ ही उड़ता है। कबूतर कबूतर के साथ और बाज़ बाज़ के साथ उड़ता है।'

या यह कहें कि 'बबूल बोने से बबूल ही मिलता है, आम नहीं।'

'जैसा बोना, वैसा काटना।'

क्या कोई इस क़ानूने क़ुदरत का इन्कार करेगा?

नहीं।

आज न्यू एज थिंकर्स इसे Law_of_Attraction कहते हैं।

आपको इस नाम से चिढ़ है तो आप कोई दूसरा नाम रख लें।

आप ला आफ़ अट्रैक्शन को साईंस नहीं मानते, तो मुझे क्या? मैं यह नहीं कहूंगा कि आप इसे साईंस मानें।

हमारे घरों में आर्ट और फ़लसफ़ों की तकनीकों से भी काम लिया जाता है। आप इसे आर्ट और फ़लसफ़ा तो ज़रूर मानेंगे!

आप मानते हैं कि न्यू एज थिंकर्स की किताबों में कमियां है तो मैं भी यह बात मानता हूं।

अब आप एक किताब ऐसी लिख दें जिसमें कोई कमी न हो और जिससे सब धर्मों के लोग फ़ायदा उठाएं।

मैं आपका स्वागत करता हूँ।

हम सब मिलकर पूरी मानव जाति को मुहब्बत और तिजारत का सबक़ दें तो सबके दिल और पेट भरेंगे।

चारों तरफ़ फैली हुई बेरोज़गारी और भूख को देखो और हर धर्म के लोगों को ऐसी बातें सिखाओ, जिससे वे पलें और वे अपने पालनहार को पहचानें।


मेरी इस बात में कोई कमी हो तो आप उस कमी को छोड़ दें और इस काम को और ज़्यादा उम्दा तरीक़े से करें।

मैं आपको एप्रिशिएट करूंगा।

Monday, August 3, 2020

सख़्ती के बजाय नर्मी से कहें सच बात

आज मैंने एक कमेंट पढ़ा। जिसमें आलिमों के ख़िलाफ़ बहुत सख़्त ज़ुबान इस्तेमाल की है। देखिए-
मुस्लिमों ने ही अपने जाहिल मौलवियों के कहने में आकर अल्पसंख्यक वैदिक हिंदुओं को बहुसंख्यक माना है जबकि हिंदू केवल 15% हैं।
आदिवासी सरना धरम को मानते हैं। लिंगायत, बौद्ध, जैन, सिख, दलित और वेदों के विरोधियों के पंथों को अलग कर दें तो वैदिक हिंदू भारत में अल्पसंख्यक हैं। मुस्लिम यह राज़ समझकर कोई प्रोग्राम न बना लें; वैदिक हिंदू इस बात से डरे हुए हैं।
जब मुस्लिम इस बात को समझ लेंगे तो वे यहां बहुसंख्यक बन जाएंगे क्योंकि वे 18% से ज़्यादा है।
संघ और कांग्रेस ने मौलवियों को झांसा दिया है और नेता बने हुए मौलवियों की अक़्ल घास चरने गई हुई थी जो वे पहले कांग्रेस के और अब संघ के क़ौल पर ईमान लाए कि हिंदू बहुसंख्यक हैं।
जिन्हें राम मंदिर में कमाने का मौक़ा मिला है, उनकी जातियाँ देखो। बस वही जाति वर्ण हिंदू हैं। बाक़ी जबरन बनाए गए दास और सेवक हैं।

समीक्षा:
दावा सायकोलॉजी आपको नर्मी और हिकमत की तालीम देती है। जब आप कमेंट करें तो आलिमों के ख़िलाफ़ सख़्त ज़ुबान इस्तेमाल न करें वर्ना उनके मुरीद भड़क जाएंगे। मुरीद कभी नहीं मान सकते कि उनके पीर साहब के फ़ैसले ग़लत थे।
कांग्रेस और आरएसएस से भी अच्छी बातें सीखें कि वे कैसे नाकुछ से कुछ और भी राजनीति में सब कुछ हो गए।
अल्लाह ने हर चीज़ में हमारे लिए शिक्षा रखी है। वही शिक्षा लेना और देना हमारा काम है।

इबादत और इस्तआनत यानी ग़ुलामी और मदद के आपसी रिशते को समझकर अपनी इबादत सही करें

आपको पता हो या पता न हो लेकिन इस दुनिया की हर चीज़ एनर्जी से बनी है। एनर्जी एक लहर, wave है और यह wave, thought wave है। यह पूरा यूनिवर्स हक़ीक़त में विचार समुद्र है।
इसमें आपकी नैया डोल रही है तो आपको अपने विचार का चुनाव ठीक करना होगा।

आप किसी विचार को पैदा नहीं कर सकते।
हर विचार आपके पैदा होने से पहले कहीं मौजूद है।
विचार बस आपके मन में आते हैं।
आप केवल उनका चुनाव और मैनेजमेंट कर सकते हैं।
आपकी जीत हार और आपकी ग़रीबी अमीरी सब हालात हैं और ये हालात आपके #thought_management के नतीजे हैं।
आपकी जान माल आबरू पर बनी हुई है। आपके दिल का चैन ग़ारत है। आपको हर दम यह आशंका रहती है कि न जाने मंगोल या चीनी या कोई और दुश्मन किधर से हमला कर दे ...लेकिन
मौलवी साहब इसे अल्लाह का अज़ाब या नाराज़गी बता रहे हैं।
वे यह क़ुबूल नहीं कर रहे हैं कि
हमारे तख़मीने फ़ेल हो गए।
तुम हमारे मरवाए हुए हो क्योंकि हमारे पास हिफ़ाज़त का कोई विज़न नहीं था और हमने तुम्हें मस्जिदों में thought management सिखाया नहीं।

एक मौलवी साहब ने और फिर बहुत सारे मौलवी साहिबान ने यह वजह बताई कि मुस्लिमों ने दावते दीन का काम छोड़ दिया है। अगर मुस्लिम दावते दीन का काम करते और सबको मुस्लिम कर लेते तो आज मंगोल आदि के हमलों का डर न होता।
अगर ऐसा होता तो पाकिस्तान चैन से होता क्योंकि वहाँ अब तक़रीबन सब मुस्लिम ही हैं। उनका भी चैन ग़ारत है। वहां ग़रीबी है जबकि दुबई के शैख़ ने रेगिस्तान में फूल खिला दिए और वहाँ चैन भी है और वहाँ हर किसी के दावते दीन का काम करने पर भी पाबंदी है।
आप कहेंगे कि पाकिस्तान को अच्छे लीडर नहीं मिले।
अगर कोई पाकिस्तान के नागरिकों से पूछे कि बुरे लीडर कहाँ से आते हैं?
तो वे कहेंगे कि हममें से आते हैं और हमारे 'चुनाव' से आते हैं।

इस बात आकर हम पर और हमारे चुनाव टिकती है।
और 'चुनाव' बिना विचार के मुमकिन नहीं है।
बुरे लीडर की जगह अच्छा लीडर लाना भी विचार का चुनाव बदले बिना मुमकिन नहीं है।
यह तय है।
आपकी बाहर की हर समस्या का हल जाकर आपके अंदर के विचार पर टिकता है।
जब इंसानी सोसायटी पर कोई आफ़त मुसीबत या ग़ुलामी पड़ती थी तो नबियों आकर यही सिखाया कि अपने विचार बदलो। अपने दिल से बुरे विचार निकालो और अच्छे विचार जमाओ।

आपके अंदर हर वक़्त विचार आते हैं। आपके विचार आपकी शक्ति हैं। अब वक़्त है अपनी शक्ति पहचानने का।
आपको राजनैतिक लीडर और पेशवा-पुरोहित आपकी शक्ति की पहचान नहीं कराते ताकि आप अपनी मर्ज़ी से उसका इस्तेमाल न करने लगें। वे आपको ग़ुलाम बनाए हुए हैं और उनके बाप दादा ने आपके बाप दादा से ख़ुद को मनवाया और अब वे ख़ुद को आपसे मनवाते रहते हैं।
ये अपने नज़रिए में 'इलाहुल अर्ज़' यानी भूदेव बन चुके हैं और आपसे अपनी ग़ुलामी करवा रहे हैं। ग़ुलामी को ही अरबी में इबादत कहते हैं।

ये बातिल माबूद आप पर तभी तक मुसल्लत हैं, जब तक आप विचार नहीं करते। पवित्र क़ुरआन आपको विचार करने को कहता है और ये आपको दीन की बातों पर विचार करने से रोकते हैं।
विचार करना दीन का काम है। आप इस समय किस वक़्त की नमाज़ पढ़ेंगे?
आप यह बात अक़्ल और विचार से तय करते हैं। दीन की हर बात में अक़्लमंदी है और बातिल माबूद आपसे कहते हैं कि
दीन में अक़्ल को दख़ल नहीं है। हमारा दीन नक़्ल पर है।

आप जानते हैं कि नक़्ल करना बंदर का काम है।
हर धर्म के बातिल माबूदों ने अपने मानने वालो को बंदर बनाकर छोड़ दिया है और ऐसे बंदरों के लिए अल्लाह ने ज़िल्लत यानी पस्ती मुक़र्रर की है:
कहो, "क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि अल्लाह के यहाँ परिणाम की दृष्टि से इससे भी बुरी नीति क्या है? कौन गिरोह है जिसपर अल्लाह की फिटकार पड़ी और जिसपर अल्लाह का प्रकोप हुआ और जिसमें से उसने बन्दर और सूअर बनाए और जिसने बढ़े हुए फ़सादी (ताग़ूत) की बन्दगी की, वे लोग (तुमसे भी) निकृष्ट दर्जे के थे। और वे (तुमसे भी अधिक) सीधे मार्ग से भटके हुए थे।" -पवित्र क़ुर'आन 5:60

अफ़सोस की बात यह है कि फ़ितरत मस्ख़ (विकृत) हो चुकी है, जिसकी भविष्यवाणी हदीस में की गई है:
عبداللہ بن مسعود رضي اللہ تعالی عنہما بیان کرتے ہیں کہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا :

( قیامت سے قبل مسخ اورزمین میں دھنسنا پتھروں کی بارش ہوگی ) سنن ابن ماجہ حدیث نمبر ( 4059 ) اور صحیح ابن ماجہ ( 3280 ) ۔
अब आप इस बात से ज़रूर सहमत होंगे कि आपका असल मसला अल्लाह के ग़ैर की इबादत करना है।
इबादत और इस्तआनत (मदद) आपस में जुड़े हुए हैं। आप #creator_of_nature अल्लाह की इबादत करेंगे तो अल्लाह अपनी नेचर से आपकी मदद करता है और उससे मदद मांगने पर और ज़्यादा मदद करेगा।
जब आपने पेशवा पुरोहितों की ग़ुलामी (इबादत) की है तो उन्होंने मुसीबत में आपकी मदद नहीं की बल्कि उन्होंने ताग़ूत के सामने समर्पण करके ख़ुद को बचाया और लिंचिंग में छोड़ दिया और आपको अल्लाह की नेचर ने भी सपोर्ट न किया।

अगर आप विचार करेंगे तभी आप इस राज़ को समझ सकते हैं कि
आपकी मुसीबत की जड़ बुरे मौलवी साहब यानी उलमा ए सू हैं जो अपनी इबादत (ग़ुलामी) कराते हैं। जो आपके विज़न से औरतों की आबरू की हिफ़ाज़त जैसे अहम प्वाईंट को हटा चुके हैं। वे कभी इस पर न मस्जिद में तक़रीर करते हैं और न इस पर दो चार किताब लिखते हैं। वे इस अहम मौज़ू को छोड़कर दाढ़ी की लम्बाई पर किताब लिखते हैं।

यह यूनिवर्स एक समुद्र की तरह है, जिसमें हर चीज़ तैर रही है।
ۚ
وَكُلٌّ فِي فَلَكٍ يَسْبَحُونَ ﴿٤٠﴾

'और सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं।' -पवित्र क़ुर'आन 36:40
आप इस आयत में 'तैरना' शब्द देख सकते हैं।
अब वक़्त है कि आप जिस यूनिवर्स में रहते हैं, आप उसकी हक़ीक़त को और ख़ुद अपनी हक़ीक़त को समझें और Creator की इबादत करें ताकि यह नेचर आपको सपोर्ट करे। अगर आपको नेचर सपोर्ट करती है तो यह आपके दुश्मन को भी डुबा सकती है जैसे फ़िरऔन को डुबोया। आप हमेशा अच्छे विचार का चुनाव करें।
हमें उलमा ए हक़ से यह इल्म मुन्तक़िल हुआ है। उनसे अल्लाह राज़ी हो और अल्लाह से दुआ है कि वह उन पर और ज़्यादा रहमत नाज़िल करे।

कह दो, "यही मेरा मार्ग है। मैं अल्लाह की ओर बुलाता हूँ। मैं स्वयं भी पूर्ण प्रकाश में हूँ और मेरे अनुयायी भी - महिमावान है अल्लाह! - और मैं कदापि बहुदेववादी (भूदेववादी) नहीं हूँ।"
-पवित्र क़ुरआन 12:108