5 अगस्त 2020 को मैंने अपने दिल को चैक किया कि क्या मुझे अब भी राम नाम से प्यार है?
मैंने देखा कि वह राम नाम से प्रेम पहले की तरह ज्यों का त्यों है क्योंकि वह प्रेम राजनीति से प्रेरित नहीं है बल्कि ज्ञान पर आधारित है।
मैंने बहुत पहले अपने एक व्हाट्स एप ग्रुप में एक पोस्ट ख़ुद लिखकर शेयर की थी, जिसमें सब मुस्लिम थे और उसे सबने सराहा था। मैंने सोचा कि मैं आज उस पोस्ट को यहां अपने सब धर्म के पाठकों के सामने पेश करूँ ताकि एक रहस्य जिसे कम लोग जानते हैं, आज उसे ज़्यादा लोग जान लें।
*राम और राम की पहचान*
*बनाएगी मेरा भारत महान*
Dr. Anwer Jamal
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मैंने अपने बड़ों को देखा है कि वे सृष्टा राम और दशरथ पुत्र राम को ख़ूब पहचानते हैं, जबकि सनातनी ही इनके अंतर को भूलकर इन्हें गडमड कर देते हैं। इस गडमड करने से ही आम मुस्लिम और आलिम कन्फ़्यूज़्ड हैं।
ख़ुद मुझे राम के विषय में यह जानने में 30 साल से ज़्यादा लग गए कि सनातनी हिन्दू एक से ज़्यादा पर्सनैलिटीज़ के लिए राम नाम बोलते हैं।
वे परमेश्वर को भी राम कहते हैं और एक महान राजा को भी राम कहते हैं, जो मनुष्य की तरह खाते पीते थे, जिनके पत्नी और बच्चे थे, जो पैदा हुए और फिर एक ब्राह्मण दुर्वासा के कारण उन्हें सरयू में समाकर अपने जीवन का अंत करना पड़ा। इसके अलावा भी दो राम और हैं।
एक राम दशरथ घर डोले, एक राम घट घट में बोले
एक राम का सकल पसारा, एक राम दुनिया से न्यारा
सनातन परंपरा में चार अस्तित्व के लिए राम शब्द आया है। और कमाल की बात यह है कि 'जय श्री राम' का नारा लगाने वालों ने या श्री रामचंद्र जी में श्रद्धा रखने वालों ने मुझे या दूसरे मुसलमानों को यह रहस्य समझाने के लिए कोई पुस्तक या ऑडियो वीडियो भेंट नहीं की। इसमें से ज़्यादातर ज्ञान मुझे मौलाना साहिबान और सूफ़ियों ने और मुस्लिम स्कॉलर्स ने दिया है। कुछ ज्ञान मैंने अपने शौक़ से खुद शोध करके पता लगाया है।
मैं यह अंतर और रहस्य जानने के बाद समझ चुका हूँ कि हर मस्जिद राम मंदिर है और मैं एक रामभक्त हूँ।
इसके बावुजूद मैं ख़ुद सनातनियों से यह नहीं कहता कि मैं रामभक्त हूँ क्योंकि मैं कहूंगा सृष्टा राम के विषय में और वे समझेंगे सृष्टि राम के विषय में।
मेरा प्रेमपूर्ण सुझाव यह है कि मंदिर निमार्ण में अरबों रूपये लगाने के साथ कुछ लाख रूपये का लिट्रेचर राम नाम के पूरे परिचय और विवेचन के साथ प्रकाशित किया जाए और सृष्टा राम और सृष्टि राम का अंतर भी रेखांकित कर दिया जाए कि एक ने पैदा किया है और दूसरा पैदा हुआ है।
हिन्दू धर्म के प्रचारक चैनलों पर यह बात आम कर दी जाए कि सृष्टा राम प्रार्थना स्वीकार करता है और दशरथ पुत्र राम नित्य प्रार्थना करता था।
इससे भ्रम दूर हो जाएगा और हरेक मुस्लिम समझ लेगा कि सनातनी एक नाम 'राम' दोनों के लिए बोल रहे हैं।
फिर मुस्लिम यह समझ लेंगे कि एक राम क्रिएटर गॉड है और दूसरा एक महापुरुष और मर्यादा पुरुषोत्तम है।
क्रिएटर गॉड को मुस्लिम अल्लाह कहते हैं और उसी की वंदना करते हैं और उसी से प्रार्थना करते हैं, उसी के सामने झुकते हैं। इस तरह मुस्लिम समझ लेंगे कि जिसे हिंदू राम कहते हैं उसी को हम अल्लाह कहते हैं। और हम उसी क्रिएटर गॉड अल्लाह की वंदना उपासना और भक्ति करते हैं। जब यह भ्रम दूर हो जाएगा, तब मुस्लिम राम शब्द भी क्रिएटर के लिए आसानी से ऐसे ही बोल देगा जैसे कि वह ईरान की फ़ारसी भाषा का शब्द ख़ुदा बोलता है। जैसे वह अपने लिए ख़ुदा का बंदा बोलता है, वैसे ही वह तब ख़ुद को रामभक्त बोल सकेगा।
दशरथ पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम सृष्टि राम जी के गुणों की तारीफ़ अल्लामा इक़बाल ने अपनी कविता 'राम' में बहुत सुंदर शब्दों में की है। उसे भी मुस्लिम पढ़ते और रामचंद्र जी को एक महापुरुष के तौर पर आदर देते हैं। इन बातों से सनातनी लोग ही ग़ाफ़िल और अज्ञ हैं। आप इंटरनेट पर 'Ram by Allama Iqbal' लिखकर गूगल सर्च करके पढ़ सकते हैं।
अब जो चाहे सृष्टा राम की भक्ति कर ले और जो चाहे सृष्टि राम की भक्ति कर ले। भारतीय संविधान और वेद पुराण इसकी पूरी इजाज़त देते हैं कि हर एक जैसे चाहे वैसे अपने उपास्य राम की भक्ति कर ले।
सारा झगड़ा अज्ञान का है।
अज्ञान के कारण ही सनातनी तनातनी कर रहे हैं।
जब वे ज्ञान के आलोक में देखेंगे तो उन्हें स्पष्ट ज्ञात हो जाएगा कि जगत का सृष्टा राम, दशरथ पुत्र श्री राम से बड़ा है और मुस्लिम बड़े राम की भक्ति करने के कारण सनातनियों से ज़्यादा बड़े रामभक्त हैं।
मुस्लिम आम और खास लोगों के बारे में आप कोई राय बनाने से पहले अपने पूर्वाग्रह और द्वेष को दूर कर लें। मैं आपको बता दूं कि ख़ुद राम भक्ति का दावा करने वाले सनातनियों को नहीं पता कि राम तारक मंत्र क्या होता है?
इसका परीक्षण करने के लिए आप रेंडमली 'जय श्री राम' बोलने वाले 10 लोगों को चुनें और उनसे पूछें कि कृपया आप मुझे राम तारक मंत्र सुना दें जो कष्टों को दूर करता है और 10 के 10 लोग आपको राम तारक मंत्र नहीं सुना सकेंगे। यही कारण है कि मुझे किसी रामभक्त ने आज तक राम तारक मंत्र का ज्ञान नहीं दिया। मुझे राम तारक मंत्र का ज्ञान अपने गुरु जी आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी साहिब रहमतुल्लाहि अलैह ने दिया।
'राम रामाय नमः'
अर्थात् राम के राम के लिए नमन है।
इसमें स्पष्ट रूप से दो राम का वर्णन है।
क्या बड़े और सृष्टा राम की भक्ति करना रामभक्ति करना नहीं है, जो जगत को समस्त कष्टों से तारता है?
आप को राम भक्ति सीखनी है तो ऐसे मुस्लिम विद्वानों से मिलें, जिन्होंने पवित्र क़ुरआन के साथ वेद पुराण भी पढ़ा हो। वे आपको वास्तविक राम भक्ति सिखाएंगे।
Note: मेरी पोस्ट से तंग नज़र लोग दूर रहें और पाठक आपस में ऐतराज़ का जवाब न दें। यह काम मेरा है और मैं ऐतराज़ का जवाब न दूं तो यह मेरा चुनाव है क्योंकि जिस बहस से कुछ हासिल न हो, उसे न करना बेहतर है।
सन्तोष पाण्डेय: अनवर साहब जहां तक मंत्र दान का प्रश्न है तो मैं इसका समर्थन नहीं करता (चूंकि मैं खुद ब्राह्मण हूं तो मुझे इससे नुक़्सान कम या कुछ नहीं लेकिन लाभ की सम्भावना अधिक है) मंत्रदान में कुलगुरू अपना और याचक का सर धोती से ढक देते हैं उधर पुरोहित जी शंख फूंकते हैं उसी बीच कान में तीन बार गुरूजी मंत्र बोलते और हिदायत देते हैं कि यह मंत्र किसी को बताना नहीं है सुबह शाम इसका जाप करना है (याद रहे सुबह शाम जाप करना है किसी मंदिर मस्जिद या मूर्ति के सामने नहीं स्वस्थान पर) लेकिन मुझे आज तक ये समझ में नहीं आया जो कल्याणकारी है उसमे इतनी गोपनीयता क्यों? उसे तो सार्वजनिक होना चाहिए सबका भला हो।
अब दूसरी बात राम तारक मंत्र की तो अधिकतर लोग शैव मंत्र ग्रहण करते हैं आधुनिक समय में क्योंकि राम तारक मंत्र में मांसाहार निषेध है (मान्यता अनुसार) और घर के बुजुर्गों का मानना होता है कि आजकल के बच्चे हैं कही मांस खा लिया तो पाप का भागी होगा इसलिए शैव मंत्र ही अपनाने पर ज़ोर देते हैं
रामायण में एक प्रसंग है जब समुद्र पार कर लंका जाने का समय हुआ तो समस्या आई तो राम सेना में दो लोग थे, नल नील, जिन्हें श्राप था वे जो कुछ भी पानी में फेंकेंगे वह तैरने लगेगा तो वे पथ्थरों पर राम राम लिखते और समुद्र में फेंक देते इस तरह पुल का निर्माण होने लगा एक पथ्थर भगवान राम ने भी फेंका वह डूब गया तो उन्होंने पूछा मेरा नाम लिखकर पत्थर डालने से नहीं डूबता लेकिन जब मैं स्वयं पत्थर डाल रहा हूं तो वह क्यों नहीं तैरता तब जामवन्त ने जबाब दिया प्रभु शक्ति आपमें नहीं आपके नाममें है, यह एक प्रसंग है आप समझदार हैं बेहतर समझ सकते हैं मैं इससे आगे जाउंगा तो तत्काल विधर्मी घोषित किया जाऊंगा।
हमारे यहां तो जेल में बंद रामपाल को भी ईश्वर का अवतार नास्त्रेदमस का सायरन न जाने क्या क्या घोषित करके मोटी मोटी किताबें बांटी जा रही हैं
फिर वो तो राम हैं ,विष्णु के अवतार लेकिन कहीं किसी ग्रंथ में ब्रम्हा विष्णु महेश को ईश्वर नहीं बताया गया उन्हे देवता देवाधिपति या महादेव ही कहा गया है यानि उनका भी कोई संचालक है जो सर्वोच्च है वही ईश्वर(अल्लाह) है।
Dr. Anwer Jamal का जवाब यानी मेरा जवाब: सन्तोष पाण्डेय भाई, मन्त्र का एक पहलू तो उसका भाव और अर्थ है कि जो उसे समझ ले तो उसका मन तर जाए दुविधा के सागर से और उसका मन अपेक्षाकृत स्थिर हो जाए। इसके लिए उपदेश में जन समूह को मंत्र सुनाए जाते हैं। जिन्हें कोई भी सुन सकता है और लाभ उठा सकता है।
मंत्र का दूसरा पहलू शक्ति का है जो साधना और अभ्यास से आती है। एक ही शब्द की जब बार बार आवृत्ति की जाती है तो सूक्ष्म स्तर पर ऊर्जा की तरंगें पैदा होती हैं और वे साधक के मन, शरीर और जीवन पर ही नहीं बल्कि उससे जुड़े लोगों फर, देश, दुनिया और ब्रह्मांड पर थोड़ा या ज़्यादा असर डालती हैं, जिसे साधक ख़ुद नहीं समझ सकता। कई बार साधक अपने होश खो देता है और परमहंस या मजज़ूब बन जाता है। अगर गुरू में शक्ति नहीं होती तो वह लंबे समय के लिए या हमेशा के लिए भी वैसा ही रह जाता है और अगर गुरू में मानसिक (रूहानी) शक्ति होती है तौ वह उसका उचित उपाय करके उसे नार्मल कर देता है। शक्ति और साधना को हमेशा गुप्त रखा जाता है ताकि लोग उस पर विपरीत विचार देकर साधक के मन में शंका न उत्पन्न कर दें।
सनातनी दशरथ पुत्र श्री राम को साकार परमेश्वर मानते हैं तो यह उनका अपना 'दर्शन' है परंतु दशरथ ने ऐसा नहीं कहा और न श्रृंगी ऋषि ने ऐसा कहा है, जिनके आशीर्वाद से श्री राम पैदा हुए और न श्री राम ने ऐसा कहा और न दुर्वासा ऋषि ने श्री राम को कभी परमेश्वर माना और न कान्यकुब्ज ब्राह्मणों ने उनके जीवन काल में उन्हें परमेश्वर माना बल्कि जब श्री राम ने कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से रावण वध के बाद शाप मुक्ति यज्ञ करने को कहा तो उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया था।
बाद में लोग जोश में आकर किसी के बारे में जो भी मानने लगें वह उनकी मान्यता है। बाल्मीकि रामायण में रामचंद्र जी के हाथ का पत्थर डूब जाने और छाया सीता की कथा नहीं है। बाद में लोग कुछ भी लिखते रहे हैं।
जैसे कि मोदी ने कभी नहीं कहा कि मैं परमेश्वर का अवतार हूँ लेकिन कुछ लोग जोश में ऐसा कह रहे हैं।
बाल्मीकि रामायण में शिकार और मांसाहार के कई प्रसंग हैं।
जब भरत जी सेना सहित भारद्वाज ऋषि के आश्रम में जाते हैं, तब भारद्वाज क्या खिलाते हैं?
आप पढ़ सकते हैं।
कश्मीरी, गढ़वाली, बंगाली, उड़िया और नेपाली ब्राह्मण माँस खाते हैं तो क्या वे सब शैव मंत्र पढ़ते हैं?
यह सब गुरूओं की बाद की व्यवस्था है जो हर प्रान्त में अलग है बल्कि हरिद्वार के हर अखाड़े के विचार मंत्र और भोजन के विषय में अलग हैं।
भोजन का चयन मंत्र की प्रकृति को ध्यान में रखकर किया जाता है कि यह उग्र है या सौम्य?
गर्म मिज़ाज के मंत्र पढ़ो और घी दूध न खाओ तो अंदर से ख़ून रिसकर पाख़ाने पेशाब के साथ आने लगता है।
ऐसे ही कई बार गोश्त वग़ैरह से रोका जाता है तो उसकी कुछ वजह होती है।
एक वजह यौनेच्छा को कम करना भी होती है ताकि इसका ध्यान विपरीत लिंग की तरफ़ न जाए और एकाग्र चित्त होकर अपना अभ्यास करता रहे।
भारत में जिन इलाकों में बौद्ध जैन विचारधारा का प्रभाव बढ़ गया था। वहां वहां ब्राह्मणों ने यज्ञ बंद किए और माँसाहार को त्यागकर जनता का समर्थन जुटाया और फिर बौद्ध जैन विचारधारा का प्रभाव कम किया और अपना राजनैतिक क़ब्ज़ा वापस लिया।
राजनैतिक वर्चस्व को वापस पाने के चक्कर में कुछ इलाकों के ब्राह्मणों का भोजन बदल गया जबकि बाक़ी इलाक़ो में लोग वैदिक काल की तरह पूर्ववत मांसाहार करते रहे।
जो शक्तिशाली लोग या इंद्र आदि राजा हुए हैं या अश्विनी कुमार आदि वैद्य हुए हैं, उन्हें देवता कहा जाता है। अग्नि और सूर्य आदि प्राकृतिक चीज़ों को भी देवता कहा गया है। जो जनता को देता है, वैदिक जन उसे देवता कहते हैं। देवताओं का आदि और अंत है। परमेश्वर अनंत है। उसी अनंत परमेश्वर को मुस्लिम अल्लाह कहते हैं।
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