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Wednesday, November 27, 2019

इस्लाम क्या है और कब से है? -Dr. Anwer Jamal

यह एक अनोखा लेख है, जो आपको इस्लाम के सनातन और सार्वकालिक सत्य रूप का परिचय देता है। आप इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें।
✨💖✨
इस्लाम का अर्थ ईश्वर की आज्ञा और उसके नियमों का पूर्ण समर्पण के साथ पालन करना है।
सबसे पहले आप इस बात को अच्छी तरह समझ लें और फिर आप देख लें कि इस यूनिवर्स में जो सबसे पहले बना, वह अपने बनने के साथ ही अपने रचयिता का पाबंद हो गया था। हर चीज़ में एक डिज़ाइन है और हर चीज़ क़ानून के अनुसार चलती है। जब डिज़ाइन है तो डिज़ाइनर भी है और क़ानून है तो कोई उसका बनाने वाला और उसे क़ायम रखने वाला भी है, यह एक सामान्य बुद्धि की बात है।
आप हर एक चीज़ को देख सकते हैं कि हर एक चीज़ में डिज़ाइन है और यूनिवर्स की सारी चीज़ें आपस में तालमेल के साथ क़ानून के अनुसार काम कर रही हैं। उसी कानून को जानने और समझने का काम विज्ञान करता है और विज्ञान अभी तक एक बाल की भी पूरी स्टडी नहीं कर सका है कि विज्ञान यह कह दे कि अब बाल के बारे में जानने के लिए कुछ शेष नहीं बचा है। यूनिवर्स में एनर्जी के जितने रूप नज़र आते हैं उससे ज्यादा एनर्जी डार्क एनर्जी है। जिसके बारे में भी विज्ञान कुछ नहीं जानता। ऐसे में ईश्वर और दीन धर्म का इन्कार करना एक अवैज्ञानिक बात है।
इस सबके बावजूद यूनिवर्स में शांति है। यूनिवर्स का धर्म शांति है। अरबी शब्द इस्लाम जिस धातु से बना है, उसका अर्थ शांति है।
आप यूनिवर्स में हर जगह यूनिवर्स के रचयिता का आज्ञा पालन देखेंगे और शांति देखेंगे। वह रचयिता यह चाहता है कि मनुष्य भी आज्ञापालन करे, नियम पर चले और शांति से रहे। इसीलिए उसने शांति के नियमों का ज्ञान दिया और आदेश दिया कि इनका पालन करो। आप भी शांति के नियमों का इंकार ना करो बल्कि इनका पालन करो। सदा से यही धर्म है। सबका एक यही धर्म है कि शांति से अपने रचयिता के विधान को मानो। उसके शुक्रगुज़ार (क़द्रदान) बनो, परोपकार करो। यही संस्कृत में सनातन धर्म है। इसका दूसरी अलग भाषा में कोई और नाम हो सकता है। सबका एक ही धर्म है। इसीलिए हर धर्म में अच्छे गुण अपनाने को और भलाई करने को कहा गया है। यह इतना अनिवार्य काम है कि ईश्वर और धर्म का इन्कार करने वाला भी अच्छे गुण अपनाने और भलाई करने को कहता है।
दीन धर्म के समझने में आलिम, पंडित और पादरी से भूल चूक हो सकती है, किसी को उसकी व्याख्या से मतभेद हो तो यह बात अलग है। समझने और समझाने की नीयत से आलोचना, समीक्षा, विचार-विमर्श, उत्तर-प्रत्युत्तर और शास्त्रार्थ चलते रहना चाहिए।
सभी महापुरुष किसी न किसी रूप में इस्लाम अर्थात शांति और आज्ञापालन से ही जुड़े हुए थे, चाहे वे नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले आए हों। हम सबका सम्मान करते हैं। हम सबको अपना मानते हैं।

Sunday, November 24, 2019

जन्नत में 72 हूर, क्यों मिलेंगी हुज़ूर?

इस लेख में सतीशचंद गुप्ता जी के सवाल और ऐतराज़ का जवाब है। आप यह याद रखें कि सतीश गुप्ता जी एक विद्वान हैं। देखें उनका लेख, जो उन्होंने फेसबुक पर लिखा है:
🙏अध्ययन और चिंतन🙏
#जन्नत_की_सैर ..!!
सुना है जन्नत में दूध और शहद की नदियां होगी ..परिंदों के लजीज़ व्यंजन होंगे...72 प्रकार की हूरें होगी, जवान, बेमिसाल हुस्नो-जमाल,  नर्मों-नाजुक, शर्मिली आंखों वाली, मृगनयनी ..!!
हर प्रकार के सुरूर और लज्ज़तों के ढेर होंगे ..!!
दीबा और रेशम के कपड़े, सोने और बेशकीमती मोतियों के कंगन ..!!
बैठने-लेटने के लिए आरामदायक तकिएं और तख़्त होंगे ..!!
मोतियों जैसे खादिम ..!!
हर प्रकार के रसास्वादन, सौंदर्य, आकर्षण, ठाठबाट वहां सब होंगे ..!!
जो मनुष्य चाहेगा, सब कुछ मिलेगा ..!!
संक्षेप में कहा जाए तो जन्नत में हमारी खुशी बाह्य सामग्री, साधनों और सहारों की मोहताज होगी ?
वहां जो खुशी होगी, संतुष्टि होगी वह शारीरिक होगी, भौतिक होगी ..??
सवाल यहां यह है कि वह जन्नत ही क्या ..जहां सारी खुशियां दूसरों की मोहताज हो ??
साधनों की मोहताज हो ??
दूसरी बात यह कि बाह्य साधनों से आदमी को कभी खुशी और इतमीनान हासिल हो ही नहीं  सकता ..!!
अगर जन्नत जैसी कोई जगह है तो वहां की खुशियां आत्मिक होनी चाहिए ..आंतरिक होनी चाहिए ..स्वयं की होनी चाहिए ..!!
यह तो निश्चित है कि हमें मृत्यु के  पार जाना है, मगर ऐसी दुनिया में नहीं जहां शारीरिक सुख-भोग होंगे ..!!
हम केवल शरीर के तल पर सोचते हैं ..!!
मैं समझता हूं शरीर स्त्री-पुरूष होते हैं ..आत्मा स्त्री-पुरूष नहीं होती ..!!
जन्नत में हूरें ..??
कितनी बेतुकी, बेहूदी, घटिया और मूर्खतापूर्ण व्याख्या है जन्नत की ..??
....✍🌏
आदरणीय, सतीश गुप्ता जी ख़ुशी आज भी आंतरिक और आत्मिक है। केवल ख़ुशी ही नहीं बल्कि दिल का हरेक जज़्बा आज भी अंदर आत्मा में ही है।
अगर हम 'हिदायत' और सही समझ रखते हैं तो हमारी ख़ुशी बाहरी साधनों की मोहताज आज भी नहीं है। आपने ऐसे वाक़ये सुने होंगे कि एक आदमी देश के फ़ायदे के लिए ख़ुशी ख़ुशी मर गया या एक आदमी कम साधनों में या फ़क़ीरी हाल में भी ख़ुश और संतुष्ट रहा। उनकी समझ की वजह से ऐसा हुआ। 
आस्ट्रेलिया के Nicholas James Vujicic के पास हाथ पैर तक नहीं हैं लेकिन वह ख़ुश है। ख़ुशी आज भी साधनों की मोहताज नहीं है।
जन्नत, फलदार पेड़ों का साया, मेहरबान सच्चे दोस्त, सुंदर प्रेमी जीवन साथी, रेशमी लिबास ऊँचे तख़्त, गद्दे, तकिये, सोने-चाँदी के ज़ेवर, काँच के बर्तन, पीने को भरपूर दूध, शहद, पवित्र पेय, खाने को भरपूर फल गोश्त, हमेशा की जवानी और सेहत, ख़िदमत को ख़ादिम, राजसी वैभव और हर तरह से सलामती और सुरक्षा  ये सब इंसान की वे ख़्वाहिशें हैं, जो इस दुनिया में पूरी नहीं होतीं लेकिन ये किसी न किसी दर्जे में हर इंसान चाहता है। यह क़ानूने क़ुदरत है कि अगर आपके अंदर प्यास है तो कहीं पानी भी ज़रूर है और आपको उसे पीने का हक़ है।
इसी तरह अगर हरेक सेहतमंद और अक़्लमंद इंसान‌ के दिल में एक वैभवशाली, आनंददायक और सलामती भरा जीवन जीने की इच्छा है और वह यहाँ ठुक पिट कर, ज़लील होकर अभाव में जी और  मर रहा है तो यह एक नेचुरल बात है कि अगर उसकी मनोकामनाओं की तृप्ति इस लोक में न हो तो दूसरे लोक में; परलोक में हो क्योंकि इस यूनिवर्स में डिमांड एंड सप्लाई का रूल काम करता है।
यह एक असंभव बात है कि डिमांड हो और सप्लाई न हो।
अब आप आत्मा को समझें कि आत्मा अदृश्य और सीमाहीन है। अगर एक आत्मा के पास शरीर न हो तो यह कोई न जान पाएगा कि एक आत्मा कहां से शुरू हो रही है और कहां ख़त्म हो रही है? 
एक आत्मा को अपनी खूबियां दूसरी आत्मा पर प्रकट करने के लिए शरीर की आवश्यकता है। एक शरीर ही आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है कि वह आत्मा कैसी है, क्या करती है और क्या चाहती है?
अगर कहीं बहुत सारी आत्माएं हैं और उनके पास शरीर नहीं है तो वे अपने समाज में कुछ भी रचनात्मक नहीं कर सकतीं। एक आत्मा को अपने गुण प्रकट करने के लिए शरीर की बहुत आवश्यकता है। जब भी आत्मा के पास शरीर होगा तो उस शरीर की कुछ आवश्यकताएं ज़रूर होंगी और उन आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन भी उस समाज में उस जगह पर ज़रूर होंगे।
अब आप समझ सकते हैं कि यह अक़्ल में आने वाली और बिल्कुल नेचुरल बात है कि
जन्नत में दूध और शहद की नदियां होंगी ..परिंदों के लजीज़ व्यंजन होंगे...72 प्रकार की हूरें होंगी, जवान, बेमिसाल हुस्नो-जमाल,  नर्मों-नाजुक, शर्मीली आंखों वाली, मृगनयनी ..!!
हर प्रकार के सुरूर और लज्ज़तों के ढेर होंगे ..!!
दीबा और रेशम के कपड़े, सोने और बेशक़ीमती मोतियों के कंगन ..!!
बैठने-लेटने के लिए आरामदायक तकिए और तख़्त होंगे ..!!
मोतियों जैसे ख़ादिम ..!!
हर प्रकार के रसास्वादन, सौंदर्य, आकर्षण, ठाठबाट वहां सब होंगे ..!!
इन बातों को बुरा मानने की वजह यह है कि हमारे समाज में सेक्स संबंधों को बुरा और घिनौना काम माना गया है। हमारे समाज में सन्यास को और औरत से विरक्त रहने को बहुत ऊंचे दर्जे का अध्यात्म माना गया है और हजारों साल से सेक्स संबंधों को बुरा मानते रहने के कारण यह हमारे समाज के सामूहिक अवचेतन मन में बहुत गहराई तक बैठ गया है। लोग विवाह करते हैं और उसे पवित्र संबंध बताते हैं लेकिन फिर भी उनके मन में कहीं न कहीं उन संबंधों को लेकर कुछ अपराध बोध बना रहता है क्योंकि बचपन से ही इस काम को 'गंदा काम' बताया जाता है। हमारा समाज कुंठित है। वह एक बात अपने दिल में पाले हुए घूमता है और उससे विपरीत बात की सराहना करता है। जितने लोग 72 हूरों की बात पर मुस्लिमों की आलोचना करते हैं। आप उन्हें पोर्न मूवीज़ देखते हुए और फ़ेसबुक पर लड़कियों को इनबॉक्स मैसेज पर धिक्कार खाते हुए देख सकते हैं।
हो सकता है कि आज 72 हूरों की बात समझ में न आ पाए क्योंकि आज सभ्यता एक ऐसे दौर में पहुंच गई है जहां आदमी जंगलों और कुदरती माहौल से कटकर एक कमरे के दड़बे में जिंदगी गुज़ारने को मजबूर है। जिसमें एक बीवी और 4 बच्चों तक की गुंजाइश नहीं है। जहां घर बनाने के लिए काफ़ी माल देकर ज़मीन ख़रीदनी पड़ती है और फिर उसे बनाने सजाने में भी बहुत भारी ख़र्च आता है। जहां कमाई का साधन केवल जॉब या मज़दूरी है। जहां सुरक्षा के लिए पुलिस और सेना है।
आज के लोग अरब की उस दौर की परिस्थिति को नहीं समझ सकते, जब न बादशाह था, न सेना थी, न पुलिस थी और न कोई अदालत थी। बस क़बीले थे और बड़ा क़बीला कम संख्या वाले लोगों के क़बीले के लोगों पर हमला करके मर्दों को मार देता था और औरत और बच्चों को गुलाम बना लेता था। वह उनके घर लूट लेते थे, उनके बाग़ के मालिक ख़ुद बन कर बैठ जाते थे। जहां हर बात का फैसला ताकतवर तलवार से होता था। उस समाज में जीने के लिए और बाक़ी रहने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा लड़ाकों की ज़रूरत थी। जिसके लिए ज़्यादा संतान की ज़रूरत  थी और ज़्यादा संतान पैदा करने के लिए ज़्यादा पत्नियों की जरूरत पड़ती थी। इसलिए कबीलों में ज़्यादा शादियां करने का रिवाज आम था। ज़्यादा शादियां क़बीले की सुरक्षा और आज़ादी की गारंटी होती थी। आज के दौर का आदमी उन बातों को पूरी तरह नहीं समझ सकता, जो बातें उस दौर के लोगों की मानसिकता को सामने रखकर कही गई थीं। इसलिए आज शीघ्रपतन के रोगियों को 72 हूरों की बातें बहुत अटपट लगती हैं जबकि उस दौर में 72 औरतों से विवाह करने का चलन मौजूद था। जो बात तब कही गई थी। वह तब के चलन के मुताबिक़ कही गई थी। यह बात समझने की ज़रूरत है। यह बात आपके लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए लिख दी है ताकि दूसरों का काम इसी लेख से चल जाए।
आपके लिए हम यह  कहेंगे कि आपको 72 हूरें पसंद नहीं हैं तो आपको 72 हूरें नहीं मिलेंगी लेकिन आपकी पसंद से यह तय नहीं होगा कि दूसरों को भी वही मिलेगा जो आपको पसंद है।
हरेक को उसकी पसंद की चीज़ें मिलेंगी और यही होना भी चाहिए।

❤️❤️❤️

🙏अध्ययन और चिंतन🙏
#जन्नत_की_सैर ..!!
सुना है जन्नत में दूध और शहद की नदियां होगी ..परिंदों के लजीज़ व्यंजन होंगे...72 प्रकार की हूरें होगी, जवान, बेमिसाल हुस्नो-जमाल,  नर्मों-नाजुक, शर्मिली आंखों वाली, मृगनयनी ..!!
हर प्रकार के सुरूर और लज्जतों के ढेर होंगे ..!!
दीबा और रेशम के कपड़े, सोने और बेशकीमती मोतियों के कंगन ..!!
बैठने-लेटने के लिए आरामदायक तकिएं और तख़्त होंगे ..!!
मोतियों जैसे खादिम ..!!
हर प्रकार के रसास्वादन, सौंदर्य, आकर्षण, ठाठबाट वहां सब होंगे ..!!
जो मनुष्य चाहेगा, सब कुछ मिलेगा ..!!
संक्षेप में कहा जाए तो जन्नत में हमारी खुशी बाह्य सामग्री, साधनों और सहारों की मोहताज होगी ?
वहां जो खुशी होगी, संतुष्टि होगी वह शारीरिक होगी, भौतिक होगी ..??
सवाल यहां यह है कि वह जन्नत ही क्या ..जहां सारी खुशियां दूसरों की मोहताज हो ??
साधनों की मोहताज हो ??
दूसरी बात यह कि बाह्य साधनों से आदमी को कभी खुशी और इतमीनान हासिल हो ही नहीं  सकता ..!!
अगर जन्नत जैसी कोई जगह है तो वहां की खुशियां आत्मिक होनी चाहिए ..आंतरिक होनी चाहिए ..स्वयं की होनी चाहिए ..!!
यह तो निश्चित है कि हमें मृत्यु के  पार जाना है, मगर ऐसी दुनिया में नहीं जहां शारीरिक सुख-भोग होंगे ..!!
हम केवल शरीर के तल पर सोचते हैं ..!!
मैं समझता हूं शरीर स्त्री-पुरूष होते हैं ..आत्मा स्त्री-पुरूष नहीं होती ..!!
जन्नत में हूरें ..??
कितनी बेतुकी, बेहूदी, घटिया और मूर्खतापूर्ण व्याख्या है जन्नत की ..??
....✍🌏
मेरा जवाब:
आदरणीय, सतीश गुप्ता जी ख़ुशी आज भी आंतरिक और आत्मिक है। केवल ख़ुशी ही नहीं बल्कि दिल का हरेक जज़्बा आज भी अंदर आत्मा में ही है।
अगर हम 'हिदायत' और सही समझ रखते हैं तो हमारी ख़ुशी बाहरी साधनों की मोहताज आज भी नहीं है। आपने ऐसे वाक़ये सुने होंगे कि एक आदमी देश के फ़ायदे के लिए ख़ुशी ख़ुशी मर गया या एक आदमी कम साधनों में या फ़क़ीरी हाल में भी ख़ुश और संतुष्ट रहा। उनकी समझ की वजह से ऐसा हुआ। 
आस्ट्रेलिया के Nicholas James Vujicic के पास हाथ पैर तक नहीं हैं लेकिन वह ख़ुश है। ख़ुशी आज भी साधनों की मोहताज नहीं है।
जन्नत, फलदार पेड़ों का साया, मेहरबान सच्चे दोस्त, सुंदर प्रेमी जीवन साथी, रेशमी लिबास ऊँचे तख़्त, गद्दे, तकिये, सोने-चाँदी के ज़ेवर, काँच के बर्तन, पीने को भरपूर दूध, शहद, पवित्र पेय, खाने को भरपूर फल गोश्त, हमेशा की जवानी और सेहत, ख़िदमत को ख़ादिम, राजसी वैभव और हर तरह से सलामती और सुरक्षा  ये सब इंसान की वे ख़्वाहिशें हैं, जो इस दुनिया में पूरी नहीं होतीं लेकिन ये किसी न किसी दर्जे में हर इंसान चाहता है। यह क़ानूने क़ुदरत है कि अगर आपके अंदर प्यास है तो कहीं पानी भी ज़रूर है और आपको उसे पीने का हक़ है।
इसी तरह अगर हरेक सेहतमंद और अक़्लमंद इंसान‌ के दिल में एक वैभवशाली, आनंददायक और सलामती भरा जीवन जीने की इच्छा है और वह यहाँ ठुक पिट कर, ज़लील होकर अभाव में जी और  मर रहा है तो यह एक नेचुरल बात है कि अगर उसकी मनोकामनाओं की तृप्ति इस लोक में न हो तो दूसरे लोक में; परलोक में हो क्योंकि इस यूनिवर्स में डिमांड एंड सप्लाई का रूल काम करता है।
यह एक असंभव बात है कि डिमांड हो और सप्लाई न हो।
अब आप आत्मा को समझें कि आत्मा अदृश्य और सीमाहीन है। अगर एक आत्मा के पास शरीर न हो तो यह कोई न जान पाएगा कि एक आत्मा कहां से शुरू हो रही है और कहां ख़त्म हो रही है? 
एक आत्मा को अपनी खूबियां दूसरी आत्मा पर प्रकट करने के लिए शरीर की आवश्यकता है। एक शरीर ही आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है कि वह आत्मा कैसी है, क्या करती है और क्या चाहती है?
अगर कहीं बहुत सारी आत्माएं हैं और उनके पास शरीर नहीं है तो वे अपने समाज में कुछ भी रचनात्मक नहीं कर सकतीं। एक आत्मा को अपने गुण प्रकट करने के लिए शरीर की बहुत आवश्यकता है। जब भी आत्मा के पास शरीर होगा तो उस शरीर की कुछ आवश्यकताएं ज़रूर होंगी और उन आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन भी उस समाज में उस जगह पर ज़रूर होंगे।
अब आप समझ सकते हैं कि यह अक़्ल में आने वाली और बिल्कुल नेचुरल बात है कि
जन्नत में दूध और शहद की नदियां होंगी ..परिंदों के लजीज़ व्यंजन होंगे...72 प्रकार की हूरें होंगी, जवान, बेमिसाल हुस्नो-जमाल,  नर्मों-नाजुक, शर्मीली आंखों वाली, मृगनयनी ..!!
हर प्रकार के सुरूर और लज्ज़तों के ढेर होंगे ..!!
दीबा और रेशम के कपड़े, सोने और बेशक़ीमती मोतियों के कंगन ..!!
बैठने-लेटने के लिए आरामदायक तकिए और तख़्त होंगे ..!!
मोतियों जैसे ख़ादिम ..!!
हर प्रकार के रसास्वादन, सौंदर्य, आकर्षण, ठाठबाट वहां सब होंगे ..!!
इन बातों को बुरा मानने की वजह यह है कि हमारे समाज में सेक्स संबंधों को बुरा और घिनौना काम माना गया है। हमारे समाज में सन्यास को और औरत से विरक्त रहने को बहुत ऊंचे दर्जे का अध्यात्म माना गया है और हजारों साल से सेक्स संबंधों को बुरा मानते रहने के कारण यह हमारे समाज के सामूहिक अवचेतन मन में बहुत गहराई तक बैठ गया है। लोग विवाह करते हैं और उसे पवित्र संबंध बताते हैं लेकिन फिर भी उनके मन में कहीं न कहीं उन संबंधों को लेकर कुछ अपराध बोध बना रहता है क्योंकि बचपन से ही इस काम को 'गंदा काम' बताया जाता है। हमारा समाज कुंठित है। वह एक बात अपने दिल में पाले हुए घूमता है और उससे विपरीत बात की सराहना करता है। जितने शीघ्रपतन के रोगी 72 हूरों की बात पर मुस्लिमों की आलोचना करते हैं। वे ख़ुद उन्हें फ़ेसबुक पर 72 लड़कियों को इनबॉक्स मैसेज करते हैं और पोर्न मूवीज़ देखते हैं। आप उनमें से कुछ को फ़ेसबुक पर लड़कियों से धिक्कार खाते हुए देख सकते हैं। ये ग़ैर ज़िम्मेदार लड़के दस बारह लड़कियों को गर्ल फ़्रेंड बनाए हुए भी देखे जा सकते हैं।
हो सकता है कि आज 72 हूरों की बात समझ में न आ पाए क्योंकि आज सभ्यता एक ऐसे दौर में पहुंच गई है जहां आदमी जंगलों और कुदरती माहौल से कटकर एक कमरे के दड़बे में जिंदगी गुज़ारने को मजबूर है। जिसमें एक बीवी और 4 बच्चों तक की गुंजाइश नहीं है। जिस समाज में लोग माँ बाप को वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं। जहां घर बनाने के लिए काफ़ी माल देकर ज़मीन ख़रीदनी पड़ती है और फिर उसे बनाने सजाने में भी बहुत भारी ख़र्च आता है। जहां कमाई का साधन केवल जॉब या मज़दूरी है। जहां सुरक्षा के लिए पुलिस और सेना है।
आज के लोग अरब की उस दौर की परिस्थिति को नहीं समझ सकते, जब न बादशाह था, न सेना थी, न पुलिस थी और न कोई अदालत थी। बस क़बीले थे और बड़ा क़बीला कम संख्या वाले लोगों के क़बीले के लोगों पर हमला करके मर्दों को मार देता था और औरत और बच्चों को गुलाम बना लेता था। वह उनके घर लूट लेते थे, उनके बाग़ के मालिक ख़ुद बन कर बैठ जाते थे। जहां हर बात का फैसला ताकतवर तलवार से होता था। उस समाज में जीने के लिए और बाक़ी रहने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा लड़ाकों की ज़रूरत थी। जिसके लिए ज़्यादा संतान की ज़रूरत  थी और ज़्यादा संतान पैदा करने के लिए ज़्यादा पत्नियों की जरूरत पड़ती थी। इसलिए कबीलों में ज़्यादा शादियां करने का रिवाज आम था। ज़्यादा शादियां क़बीले की सुरक्षा और आज़ादी की गारंटी होती थी।
आज के दौर का आदमी उन बातों को पूरी तरह नहीं समझ सकता, जो बातें उस दौर के लोगों की मानसिकता को सामने रखकर कही गई थीं। इसलिए आज लोगों को 72 हूरों की बातें कुछ अटपटी लगती हैं जबकि उस दौर में हर धर्म में 72 औरतों से विवाह करने का चलन मौजूद था। कुछ ने उससे ज़्यादा विवाह भी किए हैं। जो बात तब कही गई थी। वह तब के चलन के मुताबिक़ कही गई थी। यह बात समझने की ज़रूरत है। यह बात आपके लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए लिख दी है ताकि दूसरों का काम इसी लेख से चल जाए।
हूर बड़ी आंखों वाली औरत को बोलते हैं, जिसे आपने मृगनयनी लिखा है। दुनिया में भी इंसान बड़ी आंखों वाली पत्नी चाहता है। बड़ी आंखें रूप सौंदर्य के पैमाने पर अच्छी लगती हैं और ये आत्मा के इस गुण को भी प्रकट करती हैं कि वह बड़ा और उदार नज़रिया रखती है। जिस आदमी में उदारता हो और उसके जीवन साथी में भी उदारता हो तो उसका घर इस दुनिया में ही जन्नत बन जाता है।
आपके लिए हम यह कहेंगे कि आपको 72 हूरें पसंद नहीं हैं तो आपको 72 हूरें नहीं मिलेंगी लेकिन आपकी पसंद से यह तय नहीं होगा कि दूसरों को भी वही मिलेगा जो आपको पसंद है।
पवित्र क़ुरआन में कहीं नहीं आया है कि हरेक आदमी को 72 हूरें ज़रूर मिलेंगी।
हरेक को उसकी पसंद की चीज़ें मिलेंगी और यही होना भी चाहिए।

Wednesday, November 13, 2019

शिर्क और मूर्ति पूजा से मुक्ति के लिए Maulana Shams Naved Usmani R. क्या तरीक़ा बताते थे?

मेरे व्हाट्स एप ग्रुप 'दावा सायकोलॉजी' पर आज हुई बातचीत यहाँ सबकी तालीम के लिए पेश कर रहा हूँ।
Mushtaq Ahmad: Surat No 4 : Ayat No 140 
وَ قَدۡ نَزَّلَ عَلَیۡکُمۡ فِی الۡکِتٰبِ اَنۡ اِذَا سَمِعۡتُمۡ اٰیٰتِ اللّٰہِ یُکۡفَرُ بِہَا وَ یُسۡتَہۡزَاُ بِہَا فَلَا تَقۡعُدُوۡا مَعَہُمۡ حَتّٰی یَخُوۡضُوۡا فِیۡ حَدِیۡثٍ غَیۡرِہٖۤ ۫ ۖاِنَّکُمۡ اِذًا مِّثۡلُہُمۡ ؕ اِنَّ اللّٰہَ جَامِعُ الۡمُنٰفِقِیۡنَ وَ الۡکٰفِرِیۡنَ فِیۡ جَہَنَّمَ جَمِیۡعَا ۨ ﴿۱۴۰﴾ۙ

 اور اللہ  تعالیٰ تمہارے پاس اپنی کتاب میں یہ حکم اتار چکا ہے کہ تم جب کسی مجلس والوں کو اللہ تعالٰی کی آیتوں کے ساتھ کفر کرتے اور مذاق اڑاتے ہوئے سنو تو اس مجمع میں ان کے ساتھ نہ بیٹھو! جب تک کہ وہ اس کے علاوہ اور باتیں نہ کرنے لگیں ،   ( ورنہ )  تم بھی اس وقت انہی جیسے ہو   یقیناً اللہ تعالٰی تمام کافروں اور سب منافقوں کو جہنم میں جمع کرنے والا ہے ۔  

क्या कोई इस आयत का अर्थ समझा सकता है, वो इसलिए कि हम लोग कुछ ऐसे ग्रुप में होते हैं जहां इस्लाम का मज़ाक उड़ाया जाता है क़ुरआन कि आयतों का मज़ाक उड़ाया जाता है, रसूल अल्लाह का मज़ाक उड़ाया जाता है। इस आयत की रोशनी में क्या हमें वो ग्रुप छोड़ देना चाहिए।।
इस पर आप लोग अपनी राय दें। 
दलील के साथ देंगे तो और अच्छा रहेगा।
*👆👆इस पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें*

Dr. Anwer Jamal: यह आयत उन आम लोगों के लिए है जो अल्लाह की मज़ाक़ उड़ाई जाते देखकर अपने व्यापारिक और खानदानी हितों के लिए उनकी हां में हां मिलाते हों या चुप रह जाते हों
लेकिन जो धर्म प्रचारक उनकी बातों का जवाब दे सकते हैं और उन्हें उनके ग़लत होने पर ध्यान दिला सकते हैं या उन्हें ऐसा करने से किसी भी तरह से रोक सकते हैं या उनके चंगुल में दूसरों को फंसने से बचा सकते हैं; उन धर्म प्रचारकों के लिए यह आयत नहीं है। उनके लिए वे दूसरी आयते हैं जिनमें उन्हें मजाक़ उड़ाने वालों को उस बुरे काम से रोकने का हुक्म दिया गया है।

धर्म के प्रचारक समाज में शांति और न्याय व्यवस्था की स्थापना के लिए ऐसे ग्रुपों में सही बात सामने लाने के लिए जुड़े रह सकते हैं।

Mushtaq Ahmad: 🌹🌹Jazakallahu Khairan Sir🌹🌹
लेकिन उसमें भी कई ऐसे लोग होते हैं जो आपकी बात नहीं मानते उल्टे सीधे आरोप लगाते रहते हैं। चाहे आप उनके आक्षेप का उत्तर दे चुके हों तब भी वो मानते नहीं और लगातार मज़ाक उड़ाते और गंदे गंदे शब्द का उपयोग करते हों। फिर चाहे वो नबी सल्ल. की हज़रत आयशा से शादी को लेकर हों या और भी बहुत कुछ। इन बातों को  आप हमसे अच्छी तरह से जानते हैं। क्यूंकि इन बातों का सामना बहुत किया है।

Dr. Anwer Jamal: उनकी बात सुनकर ईसा अलैहिस्सलाम ने कहा, “जो भले-चंगे हैं उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है। (इंजील)
✨💖✨
मुश्ताक़ भाई, एक दाई दिल (के नज़रिये) का डाक्टर होता है।
मैंने ऐसे लोगों को फ़ेस किया है। अल्लाह की मदद से इन्हें मग़्लूब किया है। आपमें से कुछ लोग दीन के एहकाम मुझसे ज़्यादा जानते हैं तो भी मैं यह 'फ़न' जानता हूं कि बहस में हमेशा दलील के साथ कैसे ग़ालिब रहें।
याद रखें कि बहस में ग़ालिब आने का ताल्लुक़ इल्म से कम और हिकमत (तकनीक) से ज़्यादा है।
कम इल्म रखते हुए भी आप हमेशा बहस में ग़ालिब आ सकते हैं।
सिर्फ़ कटहुज्जती करने वाले हठधर्म आपसे मग़्लूब होकर भी आपकी बात न मानेंगे लेकिन वे भी हमेशा आपकी बात पर लाजवाब हो जाएंगे।
बाक़ी पाठक दिल में आपसे सहमत हो जाएंगे और ख़ामोश रहेंगे और इक्का दुक्का लोग वहीं समर्थन भी कर देंगे।
💖
मैंने अपने इन तजुर्बात को ही दावा सायकोलॉजी की शक्ल दी है क्योंकि अल्लाह, इस्लाम, नबी, अहले बैत, सहाबा और सच की मज़ाक़ उड़ाने वाले साइकोलॉजिकल पेशेंट (दिल के मरीज़) हैं। उनके दिलों के रोग को दूर करने के लिए अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन को उतारा है।

एक दाई (दीन का शिक्षक) इस दवा को उनके हवास (सेंसेज़) के ज़रिये हिकमत के साथ उनके दिलों में उतारता है।
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जो आदमी अवचेतन मन (subconscious mind) के काम करने का तरीक़ा जानता है, वह अपनी पसंद की बात सुनने वाले के दिल में बिना उसे पता चले उतार सकता है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
एक इमेज इस काम को बहुत आसानी से करती है।
इसलिए किसी इमेज को देखते हुए बहुत होशियार और ख़बरदार रहने की ज़रूरत है।
✨💖✨
आज विकसित देशों की क़ौमें इस तकनीक से राजनीति और व्यापार में बहुत काम ले रही हैं।
सनातनी ब्राह्मण इस तकनीक से बहुत पुराने दौर से काम लेते आ रहे हैं।
कुछ दशक पहले उन्होंने भारत माता के जिस रूप की कल्पना की और उसके रूप का वह अलंकारिक चित्र बनाकर अपने फोलोवर्स को दिखाया, आज भारत उस रूप में मौजूद है।
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एक इमेज एक कान्सेप्ट होती है, जो सीधा सबकॉन्शियस माइंड यानी दिल में जाती है। उसे कॉन्शियस माइंड एनालाइज़ करके रोक नहीं पाता।
शब्दों में दिए गए मैसेज को चश्मा एंड एनालाइज करके उस पर सवाल खड़े कर सकता है और उसे सबकॉन्शियस माइंड में जाने से रोक सकता है। कॉन्शियस माइंड सबकॉन्शियस माइंड के लिए चौकीदार की तरह काम करता है और सब्कॉन्शियस माइंड एक स्टोर हाउस की तरह काम करता है
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जब आप कोई तस्वीर देख रहे होते हैं तो आप एक बहुत नाज़ुक मरहले से गुज़र रहे होते हैं। वह तस्वीर एक मैसेज होती है। 
वह मैसेज आपकी लाइफ़ को सपोर्ट भी कर सकता है और आपकी लाइफ़ को डैमेज भी कर सकता है।
जो कुछ आप एक तस्वीर की शक्ल में देखते हैं वह सीधा आपके दिल पर नक़्श हो रहा होता है।
जो कुछ आपके दिल पर नक्श हो जाएगा वह अपने ठीक टाइम पर किसी न किसी शक्ल में आपकी ज़िंदगी में खुद ज़ाहिर हो जाएगा।
आपके दिल में तख़्लीक़ी सिफ़त (creation power) है। यह बात आप नहीं जानते।
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जब कुछ अच्छी या बुरी घटनाएं एक आदमी के जीवन में प्रकट होती है तो वह हैरान रह जाता है कि मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया कि यह घटना मेरे जीवन में आती।
अगर वह व्यक्ति अपनी देखी गई छवियों को याद करे तो वह अपने जीवन में सहज रूप से प्रकट होने वाली अधिकतर घटनाओं का सोर्स पता कर सकता है कि इन घटनाओं को जन्म उसने तब दिया था जब उसे होश नहीं था और वह कुछ छवियों को देख रहा था।
देखी गई छवियां देखने वाले के जीवन में अपने अनुरूप घटनाओं के रूप में साकार होती हैं।
नबी सुलैमान अलैहिस्सलाम के हुक्म पर उनके लिए जिन्न प्रतिमाएं (तमासील تماثیل) बनाया करते थे। देखें पवित्र क़ुरआन 34:12-13
प्राचीन काल के लोगों को इस रहस्य का पता था। वे तालीम और यादगार जैसे दूसरे मक़सद के अलावा मैसेज देने के लिए भी धन, समृद्धि और विजय की छवियों और मूर्तियाँ बनवाया करते थे।
सभी विकसित संस्कृतियों में यह रिवाज आम था।
बाद में बहुत लोगों को यह पता नहीं रहा कि ज्ञानी लोगों ने उनका निर्माण किस उद्देश्य से किया था। तब वह काम परंपरा और रूढ़ि बन गईं और वह बिगड़ कर मूर्ति पूजा के रूप में प्रचलित हो गया।
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह कहते थे कि हिन्दू भाईयों में शिर्क (मूर्ति पूजा आदि) के रिवाज का कारण यह नहीं है कि इनके पास सत्य ज्ञान नहीं था बल्कि इसका कारण अपने धार्मिक ग्रंथों में मौजूद मुतशाबिहाती इल्म (गूढ़ ज्ञान) को ठीक से न समझ पाना है। आप उन्हें उनकी उलझी हुई गुत्थी को सुलझाने में मदद करें।
मौलाना ज़िन्दगी भर लोगों को मुतशाबिहाती इल्म (divine secrets) देकर उन्हें उस ग़लती के प्रति जारूक करते रहे, जो उनसे गूढ़ ज्ञान को समझने में हुई थी।
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दावत का एक पोशीदा रूहानी तरीक़ा
आप आज हिन्द में किसी सनातन धर्मी व्यापारी की दुकान पर जाएं तो आप देखेंगे कि उसने अपनी दुकान में लक्ष्मी देवी का एक चित्र लगा रखा है जिसके दोनों हाथों से सोने के सिक्के झड़ रहे हैं और नीचे के बर्तन सोने के सिक्कों से भरे होते हैं और कुछ सिक्के ज़मीन पर भी गिर रहे हैं।
इस चित्र में प्रचुरता यानि abundance दर्शाई गई है जो कि व्यापारी का लक्ष्य और मुराद है। यह चित्र भरपूर दौलत का एक कान्सेप्ट है। जब आप लगातार अपनी मुराद को अपनी नज़र में हाज़िर रखते हैं तो आप उसे आलमे अम्र (सूक्ष्म आत्मिक जगत) से आलमे ख़ल्क़ (स्थूल भौतिक जगत) में आने की दावत देते हैं। यह दावत का एक पोशीदा रूहानी तरीक़ा है। जब आप अपनी मुराद पर ज़्यादा लोगों की तवज्जो फ़ोकस करते हैं तो फिर वह मुराद ज़्यादा लोगों की तवज्जो पाकर ज़्यादा फलती फूलती चली जाती है। जब आप किसी बड़े समूह का भला करना चाहें तो उस उस उस समूह की तवज्जो अपनी मुराद पर फ़ोकस कर दें और बार बार लेक्चर देकर उनकी तवज्जो अपनी मुराद पर फ़ोकस किए रखें। यहाँ तक कि आपकी मुराद उन सबकी मुराद बन जाए और जैसे आप उस मुराद के अनुकूल काम कर रहे हैं, वैसे ही वे भी करने लगें।
आप इस पोशीदा रूहानी राज़ को अपनी और सबकी फ़लाह और कल्याण के लिए समझें और इसे अपनी दावत में इस्तेमाल करें।
एक व्यापारी अपनी नज़र के सामने सुबह से शाम तक abundance यानि प्रचुरता देखता रहता है और फिर उसी के अनुकूल कर्म भी करता है तो वह abundance उसके जीवन में प्रकट हो जाती है। भरपूर दौलत और ख़ुशहाली को ज़िन्दगी में बुलाने (दावत देने) के लिए व्यापार एक अनुकूल कर्म है।
वह व्यापारी समझता है कि लक्ष्मी जी की उस पर कृपा है जबकि यह सब उसकी मानसिक शक्ति का परिणाम है जिसका वह अपने हित में अनकॉन्शियसली यानि बिना ज्ञान के प्रयोग कर रहा है।
यह रब का क़ानून है, जो यूनिवर्स में काम कर रहा है।
जो आप देखते हैं, उसे आप आकर्षित करते हैं।
इसलिए हमेशा अपने मन में अपने लक्ष्य और अपनी मुराद को बिल्कुल साफ़ देखते रहें, जैसे कि मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह देखते थे कि लोग मूल धर्म का ज्ञान पाने के बाद परमात्मा (प्रथम आत्मा) और अहमद के एक होने का ज्ञान पाकर एक हो चुके हैं। सब लोग मिलकर मंदिरों में बा-जमाअत नमाज़ पढ़ रहे हैं।
उनके बोल सुनकर मैं भी यह मंज़र अपने दिल में देखता था और फिर यह मंज़र मेरे जीवन में ऐसे प्रकट हुआ कि मैं ग्वालियर मध्यप्रदेश गया तो  ग्वालियर में मेरे मेज़बान हिंदू भाई ने मुझे नमाज़ पढ़ने के लिए अपने पूजा के कमरे में खड़ा कर दिया। जिसमें दर्जनों मूर्तियां रखी हुई थीं और मुझे उस कमरे में सिर्फ एक मुसल्ला बिछाने की जगह भी बड़ी मुश्किल से नजर आई। मैंने उसमें नमाज़ पढ़ी।
यह 14 बरस पहले की घटना है। तब मैं नहीं जानता था कि मेरे जीवन में यह घटना क्यों प्रकट हुई?
आज यह मंज़र फिर से एक नये रूप में प्रकट हुआ है। मैं अब जिस मकान में रहता हूं। उसमें  पहले एक हिंदू भाई रहते थे और उन्होंने उसके आंगन में पूजा करने के लिए एक पत्थर गाड़ रखा था, जो अब भी गड़ा हुआ है और मैं उसी आंगन में नमाज़ पढ़ता हूं।
ये कुछ शुरूआती संकेत हैं कि जो कुछ हमने अपनी कल्पना में देखा है और जिसका हमें विश्वास है, वह घटना भी अपने सही समय पर सहज ही प्रकट होकर समाज का सच बन जाएगी।
इन् शा अल्ल्लाह!
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दावा साइकोलॉजी सब्जेक्ट के ज़रिए मैं दाई भाई बहनों को यही बात समझाने की कोशिश करता हूं कि आपकी बाहर की कोशिश भले ही छोटी हो लेकिन आप अपने मन में विज़न हमेशा बहुत बड़ा रखें।
आप अपने मन में बड़ा लक्ष्य एक क्रिस्टल क्लियर इमेज के रूप में हमेशा सामने रखें, तब दावत का काम करें। इससे आपकी दावत उसी सपने (vision) को साकार करने की तरफ़ चलेगी, जिसे आप अपनी कल्पना में देख रहे हैं और इसमें ज़मीनो आसमान की नेचुरल फोर्सेज़ आपकी मदद करेंगी। जिसे हम दीनी ज़ुबान में रब के हुक्म से फ़रिश्तों की ग़ैबी मदद आना कहते हैं।
जो चीज़ें आसमानों में हैं और जो ज़मीन में हैं, उस (रब) ने उन सबको अपनी ओर से तुम्हारे काम में लगा रखा है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है जो सोच-विचार से काम लेते हैं।
-पवित्र क़ुरआन 45:13
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मेरा मक़सद यही है कि आप अपने रब के क़ानूने क़ुदरत को समझें और अपने कामों में उसकी ग़ैबी मदद पाएं।
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जब मैं मूर्ति पूजकों को मन की शक्ति का विज्ञान और उसके लाभ समझाता हूँ तो वे मूर्तियों में शक्ति मानना छोड़ देते हैं।
आप स्वयं जानते हैं कि
इंसान हमेशा से माल के पीछे है। वह मूर्ति पूजा इसीलिए करता है कि उसे माल या कोई और लाभ मिल जाए। जब उसे पता चलता है कि यह सब उसे अपने मन की शक्ति से मिलता है तो फिर वह बाहर के सहारों से आशा करना छोड़ देता है। उसका यह विश्वास ख़त्म हो जाता है कि बाहर की बेजान चीज़ें उसके दुख में उसकी कुछ मदद कर सकती हैं।
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बातिल (मिथ्या भ्रम) को मिटाना हो तो बातिल में लोगों के विश्वास को सत्य ज्ञान देकर ख़त्म करो।
आदमियों को समझाओ कि जो कुछ उन्हें चाहिए, उन्हें वह सब किससे और कैसे मिलेगा?

Mushtaq Ahmad: Jazakallahu khair sir
ये लेख लिखने के लिए धन्यवाद।
आशा करता हूं कि इस ग्रुप के सभी सदस्यों को इस प्रकार की समस्याएं जो सामने आती है। इससे सभी को मार्गदर्शन मिलेगा।

Sunday, November 10, 2019

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पैग़ामे रहमत

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जन्म के मौक़े पर यह याद रखना और याद दिलाना ज़रूरी है कि

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं से आज हर देश प्रकाशित है। आज कन्या को मारना बंद है और विधवा विवाह का रिवाज आम है। आज उनकी शिक्षाओं को आज 'ह्यूमन राईट्स' के नाम से सारी दुनिया स्वीकार कर चुकी है। किसी देश का क़ानून ऐसा नहीं है, जिसमें आज उनकी शिक्षाएं न हों।

एक ख़ास बात यह है कि मुस्लिम समाज को इस्लाम के मानवतावादी पहलू को सामने रखकर ख़ुद उस पर अमल करने की बहुत ज़रूरत है। इससे मुस्लिम समाज संकीर्णता और सांप्रदायिकता से मुक्त होगा।

हर वक़्त मस्जिद, मदरसा और मुस्लिम की फ़िक्र करना ठीक नहीं है। कुछ वक़्त अपने पड़ोसियों और दूसरे समुदाय के लोगों के दुख-दर्द दूर करने में भी अपना जान माल वक़्त ख़र्च करें। आख़िर हम सब एक रब के बंदे और एक आदम की औलाद हैं। यह भी दीन का हिस्सा है।
इस मौक़े पर मुश्ताक़ अहमद भाई ने हमें हदीसों का  यह एक बहुत कल्याणकारी कलेक्शन भेजा है। जिसके लिए हम उनके शुक्रगुज़ार हैं।
*💖सलाम उस पर कि जिसने तीर खा कर भी दुआएं दीं 🌹🌹✨💖*

*और (ऐ मुहम्मद) हमने (अल्लाह ने) आपको सब लोकों के लिए रहमत बनाकर भेजा है।*(क़ुरआन 21:107)

*करुणा के सागर नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के कल्याणकारी संदेश* आज पहले से ज़्यादा फलदायी हो चुके हैं क्योंकि आज ज़मीन पर पहले से ज़्यादा इंसान आबाद हैं। हर धर्म का आदमी इन्हें अपनाकर अपना और संपूर्ण मानवता का कल्याण कर सकता है। भावार्थ हदीस नीचे दर्ज हैं:

✍तुम ज़मीन वालों पर रहम करो आसमान वाला तुम पर रहम करेगा (अबू दाऊद 4941)

✍स्वच्छता आधा ईमान है (मुस्लिम 534)

✍मां के क़दमों के नीचे जन्नत है। (निसाईं 3106)

✍बाप जन्नत का दरवाज़ा है। (इब्ने माजा 2089)

✍माता पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो। तुम्हारी औलाद तुमसे अच्छा व्यवहार करेगी। (मुस्तद्रक 7248)

✍मोमिन वह नहीं जो ख़ुद पेट भर खाए और उसका पड़ोसी भूखा रहे। 
(अस् सिलसिला तुस्सहीहा 387)

✍कोई पिता अपने पुत्र को सदाचार की शिक्षा से बेहतर कोई चीज़ नहीं देता।
 (तिरमिज़ी 1952)

✍अगर क़यामत आने वाली हो और खजूर के पौधे लगाने की मोहलत मिल जाए तो उसे लगा दे। (मसनद अहमद 12770)

✍आत्महत्या हराम है।
 (बुखारी 1365)

 ✍रास्ते से पत्थर या तकलीफ़ देने वाली चीज़ हटा देना सदक़ा है। (मिसकात उल मसाबीह 1911)

 ✍तुम में सबसे बेहतर वह है जिसका व्यवहार अच्छा हो।
( बुख़ारी शरीफ 6029)

✍जो लोगों का शुक्र अदा नहीं करता वह अल्लाह का भी शुक्र अदा नहीं कर सकता।
 (तिर्मीज़ी 1954)

 ✍रिश्ता नाता तोड़ने वाला जन्नत में दाखिल नहीं होगा।
(अबू दाऊद 1696)

 ✍पानी पिलाना उत्तम दान है। (दाऊद 1679)

✍पहलवान वह नहीं जो कुश्ती में हरा दे बल्कि असली पहलवान तो वह है जो गुस्से की हालत में अपने पर क़ाबू रखें , बेक़ाबू ना हो जाए।
(बुखारी 6114)

✍जब तुम में से कोई ऐसे व्यक्ति को देखे जो दौलत व शक्ल सूरत में उससे बढ़कर हो तो उसे ऐसे व्यक्ति का ध्यान करना चाहिए जो उससे कमतर हो।
 (बुखारी 6490)

✍जिसके पास कोई बेटी हो और वह उसे जीवित न दफ़नाए (वर्तमान में कन्या भ्रूण हत्या), न उसे कमतर जाने, न बेटे को उस पर प्राथमिकता दे तो अल्लाह तआला उसे स्वर्ग में दाख़िल करेगा।
(अबु दाऊद 5146)

✍जिसकी तीन बेटियां या तीन बहनें हों या दो बेटियां या दो बहनें हों, वह उनकी अच्छी परवरिश और  देखभाल करे और उनके मामले में अल्लाह से डरे तो उसके लिए जन्नत है।
(तिरमिज़ी 1916)

✍सबसे अच्छे वे लोग हैं जो क़र्ज़ की अदायगी में अच्छे हों।
(इब्ने माजा 2423)

✍झूठी क़समें खाकर माल बेचने वाले का माल तो बिक जाता है लेकिन कमाई से बरकत खत्म हो जाती है।
( मसनद अहमद 5781)

 ✍मैं ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग की ज़मानत देता हूं जो सत्य पर होते हुए भी झगड़ा छोड़ दे।
 (अबू दाऊद 4800 )

✍सख्त झगड़ालू व्यक्ति अल्लाह के नज़दीक अत्यंत नापसंदीदा व्यक्ति है।
 (मिश्कातुल मसाबीह 3762)

 ✍इस्लाम में बेहतर है, लोगों को खाना खिलाना, परिचित और अपरिचित दोनों को सलाम करना।
(अबु दाऊद 5194 )

✍ कमज़ोर निगाह वाले को रास्ता दिखाना सदक़ा है।
( मसनद अहमद 3614)

✍बीवी के कामों में मदद करना सुन्नत है। (बुखारी 676)

✍पत्नी को अपने हाथ से खाना खिलाना सदका है।
 (बुख़ारी 56)

✍भलाई की बातें बताने वाले को उतना ही पुण्य मिलता है जितना उस पर चलने वाले को।
(तिरमिज़ी 2671)

✍कोई भी प्राणी जो भूखा हो, उसका पेट भरना उत्तम दान है।
 (मिश्कातुल मसाबीह 1946)

✍रिश्वत देने वाले और रिश्वत लेने वाले दोनों पर अल्लाह की लानत है।
(इब्ने माजा 2313)

✍दो झगड़ा करने वालों में पहले सुलह समझौता करने वाले के गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं। (अत् तर्ग़ीब 2759)

✍जो व्यक्ति अत्याचार से बालिश्त बराबर ज़मीन हासिल करता है, रोज़े  क़यामत सात ज़मीनों तक उसके गले में तौक़ (जंजीर) डाला जाएगा।
(मिश्कात उल मसाबीह 293)

✍आपस में सुलह करवाना अफ़ज़लतरीन सदक़ा है।
 (अल सिलसिला तुस्सहिहा 37)

✍किसी से ऐसा मज़ाक़ मत करो जो झगड़े का सबब बने।
 (तिरमिज़ी 1995)

✍सबसे बा बरकत निकाह वह है जिसमें ख़र्च कम हो। 
(मिश्कात उल मसाबीह 3097)

✍शराब के पीने, पिलाने वाले, उसके बेचने वाले, उसको बनाने वाले, बनवाने वाले, उसे ले जाने वाले और जिसके लिए ले जाई जाए, उन सब पर अल्लाह की लानत है।
(अबु दाऊद 3674)

✍जिसके दिल में राई के दाने के बराबर भी अहंकार होगा वह स्वर्ग में नहीं जाएगा।
 (मुस्लिम 266)

✍जो नरमी से वंचित रहा वह कल्याण से वंचित रहा।
(मुसनद अहमद 3442)

✍जिसने लूटमार की, वह हममें से नहीं। 
(तिरमिज़ी 1601)

✍अपने भाई से मुस्कुरा कर मिलना सदक़ा है।
(तिरमिज़ी 1970)

✍तुम में से कोई मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने भाई के लिए वही पसंद न करे जो अपने लिए पसंद करता है।
(निसाई 5042)

✍ईर्ष्या नेकियों को ऐसे खा जाती है जैसे लकड़ी को आग।
( अबु दाऊद 4903)

✍जो व्यक्ति माफ़ कर देता है, अल्लाह उसका सम्मान बढ़ाता है।
(मुस्लिम 6592)

✍आसानी करो सख्ती न करो खुश करो नफ़रत न दिलाओ। 
(बुखारी 69)

नोट: हदीसों के संपादन में किसी प्रकार की कमी देखें तो ज़रूर सुधार कर लें और ईमेल करके हमें सूचित कर दें। हम भी सुधार कर लेंगे, इन् शा अल्लाह!
ईमेल: allahpathy@gmail.com
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Saturday, November 9, 2019

ईद मीलादुन्-नबी को यौमे रहमत के रूप में मनाने और इस दिन रहमत के काम करने पर मेरे विचार

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाईश पर ख़ुश होना बहुत अच्छा काम है। हरेक मोमिन बंदे को इस बात पर ख़ुश होना चाहिए। इसलिए ख़ुश ज़रूर हों।
इस मौक़े को धूम धड़ाके से मनाना ज़रूरी नहीं है। इसलिए इससे बचें।
रहमत के कामों से सब धर्म के लोगों का भला करना सचमुच क़ाबिले तारीफ़ है लेकिन मेरे विचार में एक और त्यौहार का इज़ाफ़ा करना ठीक नहीं है।
मैंने अपने उस्ताद मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह को ईद मीलादुन्-नबी को टीम के साथ मिलकर कुछ करके मनाते हुए नहीं देखा।
इस आसानी के लिए मैं उनका और सभी उलमा ए देवबंद का शुक्रगुज़ार हूँ।
✨💖✨
मुस्लिमों के एक तबक़े ने ईद मीलादुन्-नबी नाम रखकर इस्लाम में एक नया त्यौहार बना दिया है, जोकि ग़लत है।
उसके ग़लत होने के साथ इसमें जो फ़ुज़ूलख़र्ची और दूसरी ख़राबियां होती हैं, जैसे कि नमाज़ का छूट जाती है। जुलूस  देखने और चाट पकौड़ी खाने के लिए लड़कियाँ बन ठन कर आ जाती हैं और ठेलम ठाली के लिए लड़के आ जाते हैं। जिससे छेड़ छाड़ से लेकर झगड़े तक, प्यार से लेकर घर से फ़रार तक की नौबत आ जाती है।
यह एक सच्चाई है कि जब बहुत सारे लोग किसी कारण से एक जगह जमा होते हैं तो आने जाने में कुछ लोग ज़रूर मर जाते हैं। जितने लोग घरों से निकलते हैं, उतने लोग अपने घरों को वापस नहीं लौटते।
ईद मीलादुन्-नबी का त्यौहार धूम धड़ाके से न मनाकर इन सब नुक़्सानों से बचा जा सकता है।
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इस दिन को कोई नाम देकर ख़ास न  करें, ख़ास करके नेकी के काम न करें क्योंकि यह भी ईद मीलादुन्-नबी को प्रोमोट करता है।
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इसके बावजूद भी एक बड़ी तादाद ईद मीलादुन्-नबी का त्यौहार धूम धड़ाके से ज़रूर मनाएगी। उन्हें मनाने दें। उन पर ऐतराज़ न करें क्योंकि वे नहीं मानेंगे।
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इनमें जो लोग समझाने से समझ जाएं, उन्हें समझाएं‌ और अगर समझाने से फ़साद और झगड़े का अंदेशा हो तो आज के हालात में इन्हें समझाने से में बचें। जो भी करें, समाज की शांति को क़ायम रखते हुए करें।
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*Solution:*
हाँ, इस दिन को मनाने वालों के जमा होने की जगह पर दीनी शुऊर पैदा करने वाली किताबें तक़सीम कर सकते हैं।
उन लोगों को खाना, कपड़े और दवा वग़ैरह बांटकर  अपनी मुहब्बत का एहसास कराना अच्छी बात है।
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इस दिन बड़े पैमाने पर पैग़ाम पहुंचाना मुमकिन है।
सीरत पर ऑडियोवी वीडियोज़नाकर अपने दोस्तों को बड़े पैमाने पर शेयर करें और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़ूबियों को सामने लाएं।
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*धर्म के शिक्षक बहन भाई* इस दिन का लाभ दावते दीन में लें तो यह मेरी नज़र में ठीक है।
दावते दीन का मक़सद है लोगों को रब का शुक्रगुज़ार बनना सिखाना।
रब के जो क़ानून ज़मीन और आसमान में क़ायम हैं और हर धर्म की किताब में लिखे हुए हैं, उनकी शिक्षा देना; जैसे कि जैसा बोओगे, वैसा काटोगे। इसलिए अच्छे बीज बोओ। प्रेम के बीज बोओ, प्रेम की फ़सल काटो।
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हर धर्म के ग़रीब लोगों को ज़रूरत की चीज़ें प्रेम से बाँटो तो इस नेक काम में हर धर्म का आदमी सपोर्ट करेगा।
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इस दिन पूरे नगर में डीजे पर सहने लायक़ आवाज़ में नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के महान चरित्र का और उनके कामों का परिचय हर धर्म के लोगों को और ख़ुद मुस्लिमों को भी दें और
उन्हें उनकी ज़िंदगी का मक़सद याद दिलाएं।
रब की तरफ़ लौटने को याद दिलाएं।
लोगों को सीधे रास्ते के बारे में बताएं तो
इस दिन प्रशासन सपोर्ट करता है।
ऐसी सपोर्ट अन्य दिनों में नहीं मिलती।
प्रशासन समाज में शांति व्यवस्था चाहता है। मुस्लिम भी प्रशासन को सपोर्ट करें।