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Saturday, October 12, 2019

मौलवियों के शर से बचने के लिए उनकी बात में Falah Factor चेक कर लें

शुरू में जब अल्लाह ने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अहकाम नाज़िल करने शुरू किए और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाना शुरू किया तो इसका मक़सद था कल्याण, फ़लाह, वैलनेस। अब यह मक़सद आम और ख़ास की नज़र से हट चुका है।
समाज में जो लोग इलाह (विधाता) बने हुए थे और लोगों के लिए क़ानून बनाते थे और उनकी जान-माल और इज़्ज़त को जब चाहे तब ख़त्म कर देते थे। उन्होंने इसका विरोध किया कि सबको इज्ज़त, बराबरी और विकास के अवसर न मिलें। वे अपनी नस्ल की बुनियाद पर अपनी चौधराहट बाक़ी रखना चाहते थे।
फिर नबी, अहले बैत और सहाबा रज़ि. के लगातार मेहनत और क़ुर्बानियों के बाद सारे नक़ली खुदा ख़त्म हो गए। सारे चौधरियों की चौधराहट खत्म हो गई। अल्लाह का क़ानून समाज का क़ानून बन गया। ग़रीबों, कमज़ोरों, अनाथों, बेघरों, सताए हुए दबाए हुए वंचितों और औरतों को जीने का, इज्ज़त का, विरासत का, तालीम का और तरक़्क़ी का हक़ मिला। इसमें अहले बैत में और सहाबा में आपस में कुछ मतभेद और तकरार भी हुई जो कि एक समाज में रहने वाले लोगों में आम बात है। हज़रत अब्बास और हजरत अली रज़ि. के बीच हुई बातचीत की यह रिवायत सही है तो यह बात एक परिवार के सदस्यों के बीच हुई तकरार के रूप में पेश आई थी। 
इस रिवायत से यह मौलवी ख़ालिद ग़ाज़ीपुरी क्या साबित करना चाहते हैं?, इस छोटी सी क्लिप से यह स्पष्ट नहीं हुआ। अब उनके माफी मांगने की बात सुनाई दे रही है तो यह उनकी समझदारी की बात है। हिंद की जमीन अहले बैत की शान में गुस्ताख़ी करने वाले मौलवियों को क़ुबूल नहीं करती।
अब ज़्यादातर मौलवियों की बातें इसी तरह की unproductive हैं, जिनसे फ़साद और इन्तिशार फैलता है।
मैं इन बातों को मौलवियों के लिए छोड़ देता हूं और मैं ख़ुद अल्लाह के 'क़ानून ए फ़लाह' की जानकारी देता हूं, जिनसे मुस्लिमों का और हर धर्म के इंसानों का भला होता है। उन्हें आख़िरत से पहले इस दुनिया में भी फ़लाह, कल्याण, वैलनेस नसीब होती है।
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फ़साद फैलाने वाले मौलवियों के शर से आम मुस्लिम सिर्फ तभी बच सकते हैं जब वे उसके बोलने को फ़लाह की तराज़ू पर तोल कर देखें कि इससे मुस्लिम समाज की और दूसरे इंसानों की कितनी भलाई हुई?
जिस बात से भलाई न हो और बुराई फैले, उस बात को कहने वाले मौलवियों को मलामत करें। इससे वे तुरंत सीधे हो जाते हैं जैसे यह मौलवी ख़ालिद गाज़ीपुरी नदवी साहब सीधे हो गए हैं, अल्हम्दुलिल्लाह।
यक़ीनन आम आदमी आलिमों की तरह क़ुरआन का तर्जुमा नहीं जानता, वह हदीस की रिवायतों का सही, कमज़ोर और मौज़ू (गढ़ा हुआ) होना नहीं जानता। तब भी रब ने हर एक इंसान की फ़ितरत में यह जानकारी रख दी है की मेरी और सबकी भलाई इस बात में है या नहीं?
जिस बात में व्यक्ति और समाज की भलाई नहीं है, वह बात दीन की बात नहीं है।
हर इंसान इस कसौटी पर अपने मौलवियों की और हर एक धर्म के ज्ञानियों की बात को परख कर देख सकता है और बुरी बातों के शर से बच सकता है।
फ़लाह के लिए काम करने वाले आलिमों की हिमायत करना दीनी काम है। अच्छे आलिमों का साथ दें।
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फ़ेसबुक  की जिस पोस्ट में मौलवी ख़ालिद गाज़ीपुरी नदवी साहब की मशहूर आडियो क्लिप पेश की गई। उसका लिंक यह है; हमने उसी पोस्ट पर तह कमेंट दिया है।

Friday, October 4, 2019

सही दीन धर्म को पहचानने का तरीक़ा -Dr. Anwer Jamal

Dr. Arif Kamal: Anwer Jamal Khan साहब धर्म क्या है ? इसकी परिभाषा क्या है? अगर परिभाषा सही है तो धार्मिक आदमी सही हो सकता है। पर अफ़सोस, किसी भी धर्म की परिभाषा ही अभी तक सही नहीं है।
Dr. Anwer Jamal Khan: Arif Kamal bhai, दीन का मतलब तरीक़ा और क़ानून है। आदमी आस्तिक हो नास्तिक, हरेक को तरीक़े और क़ानून की ज़रूरत होती है। इसीलिए व्यक्ति और देश, आस्तिक हो नास्तिक, सबके पास तरीक़ा और क़ानून ज़रूर है।
अब आप यह देख लें कि जिस दीन यानि तरीक़ा और क़ानून से जन्म और मृत्यु के मक़सद के बारे में उठने वाले सवाल हल होते हों 
जिससे व्यक्ति और समाज का भला होता हो,
वह सही दीन है।
जिससे समाज के ग़रीबों और कमज़ोरों को शांति, सुरक्षा और आवश्यक वस्तुएं मिलती हों, वह दीन सही है।
यूनिवर्स में कुछ क़ानून काम कर रहे हैं जैसे कि
The law of cause and effect
The law of polarity
The law of gestation आदि
जो दीन इन प्राकृतिक नियमों के अनुकूल हो, वह सत्य है।