शुरू में जब अल्लाह ने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अहकाम नाज़िल करने शुरू किए और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाना शुरू किया तो इसका मक़सद था कल्याण, फ़लाह, वैलनेस। अब यह मक़सद आम और ख़ास की नज़र से हट चुका है।
समाज में जो लोग इलाह (विधाता) बने हुए थे और लोगों के लिए क़ानून बनाते थे और उनकी जान-माल और इज़्ज़त को जब चाहे तब ख़त्म कर देते थे। उन्होंने इसका विरोध किया कि सबको इज्ज़त, बराबरी और विकास के अवसर न मिलें। वे अपनी नस्ल की बुनियाद पर अपनी चौधराहट बाक़ी रखना चाहते थे।
फिर नबी, अहले बैत और सहाबा रज़ि. के लगातार मेहनत और क़ुर्बानियों के बाद सारे नक़ली खुदा ख़त्म हो गए। सारे चौधरियों की चौधराहट खत्म हो गई। अल्लाह का क़ानून समाज का क़ानून बन गया। ग़रीबों, कमज़ोरों, अनाथों, बेघरों, सताए हुए दबाए हुए वंचितों और औरतों को जीने का, इज्ज़त का, विरासत का, तालीम का और तरक़्क़ी का हक़ मिला। इसमें अहले बैत में और सहाबा में आपस में कुछ मतभेद और तकरार भी हुई जो कि एक समाज में रहने वाले लोगों में आम बात है। हज़रत अब्बास और हजरत अली रज़ि. के बीच हुई बातचीत की यह रिवायत सही है तो यह बात एक परिवार के सदस्यों के बीच हुई तकरार के रूप में पेश आई थी।
इस रिवायत से यह मौलवी ख़ालिद ग़ाज़ीपुरी क्या साबित करना चाहते हैं?, इस छोटी सी क्लिप से यह स्पष्ट नहीं हुआ। अब उनके माफी मांगने की बात सुनाई दे रही है तो यह उनकी समझदारी की बात है। हिंद की जमीन अहले बैत की शान में गुस्ताख़ी करने वाले मौलवियों को क़ुबूल नहीं करती।
अब ज़्यादातर मौलवियों की बातें इसी तरह की unproductive हैं, जिनसे फ़साद और इन्तिशार फैलता है।
मैं इन बातों को मौलवियों के लिए छोड़ देता हूं और मैं ख़ुद अल्लाह के 'क़ानून ए फ़लाह' की जानकारी देता हूं, जिनसे मुस्लिमों का और हर धर्म के इंसानों का भला होता है। उन्हें आख़िरत से पहले इस दुनिया में भी फ़लाह, कल्याण, वैलनेस नसीब होती है।
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फ़साद फैलाने वाले मौलवियों के शर से आम मुस्लिम सिर्फ तभी बच सकते हैं जब वे उसके बोलने को फ़लाह की तराज़ू पर तोल कर देखें कि इससे मुस्लिम समाज की और दूसरे इंसानों की कितनी भलाई हुई?
जिस बात से भलाई न हो और बुराई फैले, उस बात को कहने वाले मौलवियों को मलामत करें। इससे वे तुरंत सीधे हो जाते हैं जैसे यह मौलवी ख़ालिद गाज़ीपुरी नदवी साहब सीधे हो गए हैं, अल्हम्दुलिल्लाह।
यक़ीनन आम आदमी आलिमों की तरह क़ुरआन का तर्जुमा नहीं जानता, वह हदीस की रिवायतों का सही, कमज़ोर और मौज़ू (गढ़ा हुआ) होना नहीं जानता। तब भी रब ने हर एक इंसान की फ़ितरत में यह जानकारी रख दी है की मेरी और सबकी भलाई इस बात में है या नहीं?
जिस बात में व्यक्ति और समाज की भलाई नहीं है, वह बात दीन की बात नहीं है।
हर इंसान इस कसौटी पर अपने मौलवियों की और हर एक धर्म के ज्ञानियों की बात को परख कर देख सकता है और बुरी बातों के शर से बच सकता है।
फ़लाह के लिए काम करने वाले आलिमों की हिमायत करना दीनी काम है। अच्छे आलिमों का साथ दें।
फ़लाह के लिए काम करने वाले आलिमों की हिमायत करना दीनी काम है। अच्छे आलिमों का साथ दें।
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फ़ेसबुक की जिस पोस्ट में मौलवी ख़ालिद गाज़ीपुरी नदवी साहब की मशहूर आडियो क्लिप पेश की गई। उसका लिंक यह है; हमने उसी पोस्ट पर तह कमेंट दिया है।