दीन की कल्याणकारी दावत के शुरू में नए दाई सवाल पूछने वाले को फ़ौरन सही जानकारी देने लगते हैं। यह एक सही और नेक काम है। मैं भी ऐसी नेकियाँ करता था। वक़्त गुज़रा तो मुझे मालूम हुआ कि पवित्र क़ुरआन पर ऐतराज़ करने वालों ने कभी एक बार भी क़ुरआन और सीरते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नहीं पढ़ा है। इसके बाद मैं लोगों से पवित्र क़ुरआन और सीरते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पढ़ने के लिए कहने लगा। जो लोग सचमुच जवाब चाहते हैं, वे इन्हें पढ़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। मैं अपने दोस्तों से कहकर उन्हें पवित्र क़ुरआन की मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहिब की तफ़्सीर और सीरत की बुक्स कोरियर से भिजवा देता हूँ। वे उन्हें पढ़कर सवाल करते हैं तो मैं ऐसे लोगों के सवालों के जवाब देता हूँ और वे भी जवाब को क़ुबूल करते हैं, अल्हम्दुलिल्लाह!!!
Islam About Conceptions
Islam About Conceptions
मुझे कुछ लोग ऐसे भी मिले, जो कुछ सीखने के लिए नहीं बल्कि मनोरंजन के लिए सवाल करते हैं। कुछ ऐसे लोग भी सवाल पूछते हैं, जिन्हें ग़लतफ़हमियाँ (Misconceptions) फैलानी हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करना है। ऐसे लोगों को मैंने जब भी सही जानकारी दी तो उन्होंने उसे नहीं माना। वे डिबेट करने लगे और इस्लाम के बारे और ज़्यादा ग़लत बोलने लगे। मैंने जब उन्हीं बातों को उनके धर्मग्रंथों में दिखाया तो वे चुप हो गए।
ख़न्नास की पहचान क्या है?
कुछ वक़्त बाद, वे फिर सवाल के रूप में उसी वसवसे को लेकर आ गए। ख़न्नास यही काम करता है। ख़न्नास बुरी बात को बार बार दिल में डालता रहता है। इसी निशानी से आप ख़न्नास (elusive prompter who returns again and again) को पहचान सकते हैं। इंसानों में भी ख़न्नास होते हैं। इन्हें आपकी बात नहीं माननी है।
ख़न्नास की पहचान क्या है?
कुछ वक़्त बाद, वे फिर सवाल के रूप में उसी वसवसे को लेकर आ गए। ख़न्नास यही काम करता है। ख़न्नास बुरी बात को बार बार दिल में डालता रहता है। इसी निशानी से आप ख़न्नास (elusive prompter who returns again and again) को पहचान सकते हैं। इंसानों में भी ख़न्नास होते हैं। इन्हें आपकी बात नहीं माननी है।
मैं अब ऐसे लोगों को अलग अलग सही जानकारी देने में वक़्त नहीं लगाता क्योंकि इंटरनेट पर ऐसे लाखों लोग हैं। हरेक को अलग अलग कमेंट करके जवाब दिया जाए तो पूरी उम्र खप जाएगी और फिर भी सिर्फ़ चंद लोगों को ही जवाब दिया जा सकेगा।
मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इन लोगों को ख़ुद जवाब देने के बजाय ऐसे पेज, ग्रुप और वेबसाईट का लिंक दे दिया जाए, जहाँ ग़लतफ़हमियों को दूर किया जा रहा है।
अल्लाह का शुक्र है कि आज इंटरनेट पर कई आलिमों और दाईयों के ग्रुप दीन की जानकारी दे रहे हैं और वसवसों को दूर करके ग़लतफ़हमियों को मिटा रहे हैं।
एक आर्यसमाजी हिन्दुत्ववादी विचारक पिछले 7 साल से हमारे संपर्क में हैं। आज उन्होंने पहले मुझे मैसेंजर में आर्य समाजी प्रचारक महेन्द्र पाल आर्य की एक भड़काऊ पोस्ट भेजी और फिर मुझे उस पोस्ट का जवाब देने के लिए कहा।
अगर उन्हें सचमुच ग़लतफ़हमियाँ दूर करनी होतीं तो स्वामी अग्निवेश स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य, आचार्य प्रमोद कृष्णन व रौशंनलाल आर्य जैसे सनातनी और आर्य समाजी विद्वान उन्हें क़ुरआन में मानवता के शत्रुओं से युद्ध संबंधी आदेशों के बारे में अपनी किताबों और वीडियोज़ में सप्रमाण समझा चुके हैं। महेन्द्र पाल आर्य ने उनकी सही बात को समझने के बजाय उन्हें नक़ली घोषित कर दिया और फिर वही झूठा आरोप फिर दोहरा दिया, जिसका जवाब वे विद्वान बार बार दे चुके हैं।
विजय कुमार सिंघल जी ने आर्य समाजियों की आदत के मुताबिक़ मुझसे सवाल किया तो मैंने उन्हें Misconception About Islam ग्रुप में सवाल पूछने की सलाह दी। जिसे उन्होंने मान लिया और उन्होंने ग्रुप को सवाल भेज दिया है।
अगर उन्हें सचमुच ग़लतफ़हमियाँ दूर करनी होतीं तो स्वामी अग्निवेश स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य, आचार्य प्रमोद कृष्णन व रौशंनलाल आर्य जैसे सनातनी और आर्य समाजी विद्वान उन्हें क़ुरआन में मानवता के शत्रुओं से युद्ध संबंधी आदेशों के बारे में अपनी किताबों और वीडियोज़ में सप्रमाण समझा चुके हैं। महेन्द्र पाल आर्य ने उनकी सही बात को समझने के बजाय उन्हें नक़ली घोषित कर दिया और फिर वही झूठा आरोप फिर दोहरा दिया, जिसका जवाब वे विद्वान बार बार दे चुके हैं।
विजय कुमार सिंघल जी ने आर्य समाजियों की आदत के मुताबिक़ मुझसे सवाल किया तो मैंने उन्हें Misconception About Islam ग्रुप में सवाल पूछने की सलाह दी। जिसे उन्होंने मान लिया और उन्होंने ग्रुप को सवाल भेज दिया है।
इन आर्यसमाजी हिन्दुत्ववादी विचारक से हुई बातचीत को आपकी शिक्षा के लिए पेश किया जा रहा है। इससे आप समय और ऊर्जा की बचत करना सीखेंगे। कोई आपसे सवाल करे तो आप तुरंत उसे जवाब न देने लगें। आप उसे ऐसे आलिमों और दाईयों के ग्रुप में सवाल पूछने के लिए कहें, जो इसी काम के लिए प्रशिक्षित और समर्पित हैं। अगर वह निष्पक्ष होकर दलीलों पर विचार करेगा तो उसकी ग़लतफ़हमी दूर भी हो सकती है। देश को दुनिया में आगे बढ़ाने के लिए धर्म को लेकर ग़लतफ़हमियों को दूर करना बहुत ज़रूरी है।इस तरह कम लोग बहुत ज़्यादा लोगों की ग़लतफ़हमियाँ दूर कर सकते हैं।
देखिए उनकी भेजी हुई पोस्ट और उसके नीचे उनके साथ हुई बातचीत के स्क्रीन शाट:
||आज दूसरा भाग पढ़ें आर्य लोगो ||
|| कुरान में कत्ल का आदेश स्पष्ट है देखें कुरान ||
जो अग्निवेश सरीखे, स्वामी लक्ष्मीशंकरानंद, एक नकली शंकराचार्य, एक आचार्य प्रोमोद कृष्णन, व एक नकली आर्य कहलाने वाले रौशंनलाल आर्य | यह सभी लोग प्रचारक है कुरान के, और समर्थक हैं इस्लाम के और खुल कर प्रचार करते हैं इन इस्लाम वालों का, और कुरान की तारीफ करते नहीं थकते | और कहते हैं कुरान में किसी को मारने की बाते नहीं है | विशेष कर मेरा यह लेख उन्ही सेकुलरवादी विचार वालों के लिए हैं | जो लोग यह नहीं जानते की कुरान में अल्लाह का हुक्म क्या है, इसे हमें कुरान में ही देखना चाहिए |
وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ وَأَخْرِجُوهُم مِّنْ حَيْثُ أَخْرَجُوكُمْ ۚ وَالْفِتْنَةُ أَشَدُّ مِنَ الْقَتْلِ ۚ وَلَا تُقَاتِلُوهُمْ عِندَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ حَتَّىٰ يُقَاتِلُوكُمْ فِيهِ ۖ فَإِن قَاتَلُوكُمْ فَاقْتُلُوهُمْ ۗ كَذَٰلِكَ جَزَاءُ الْكَافِرِينَ [٢:١٩١]
और तुम उन (मुशरिकों) को जहाँ पाओ मार ही डालो और उन लोगों ने जहाँ (मक्का) से तुम्हें शहर बदर किया है तुम भी उन्हें निकाल बाहर करो, और फितना परदाज़ी (शिर्क) खूँरेज़ी से भी बढ़ के है और जब तक वह लोग (कुफ्फ़ार) मस्ज़िद हराम (काबा) के पास तुम से न लडे तुम भी उन से उस जगह न लड़ों पस अगर वह तुम से लड़े तो बेखटके तुम भी उन को क़त्ल करो काफ़िरों की यही सज़ा है | सूरा बकर 2 /191
समीक्षा :- {आयात उतरने का सन्दर्भ} यह आयत उस समय उतरी जब मुसलमान उन मूर्ति पूजकों से, अथवा मूर्तिपूजक मुसलमानों से लड़ रहे थे | मुशरिक लोग संघबद्ध तरीके से लड़ रहे थे, उसी समय अल्लाह ने यह आयात उतारी और मुसलमानों को जोश दिलाया की और जम कर मुशरिकों को कतल करने का हुक्म दिया | और जिहाद के लिए उपदेश देते हुए कहा अल्लाह त्यला तजादिज = { हदसे बढ़ जाना } वालों को पसंद नहीं करता |
यहाँ तक मुसलमानों को कहा कि अल्लाह तयला की नफरमानी न करो, उनके नाक, कान वगैरा न काटो | औरतों को और बच्चों को कतल न करो, बूढ़े को और कमजोरों को कत्ल न करो | जो लड़ने के काबिल नहीं है उनसे न लड़ो, और जो लड़ने के काबिल हैं और लड़ाई में दखल देते हैं उनसे लड़ो, और हैवानों {पशुयों } को भी ख़तम न करो |
हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़, हजरत मुकतिल बिन ह्यांन वगैरा से रवायत इस आयात के बनिस्बत है की,मुस्लिम शरीफ में उल्लेख है की हुजुर सल्लालाल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुजाहेदीन {जिहादीओं } के लिए फरमान दिया करते थे, की अल्लाह की राह में जिहाद करो | बदअहदी {यानि जो वादा } करो उसे पूरा करो | बुखारी व मुस्लिम में उल्लेख है की एक औरत को कत्ल कर दिया गया था, जब यह आयात उतरी और ऐसा करने से मना किया अल्लाह ने |
जिहाद के अहकाम {शर्त} हैं, जिसमें बजाहिर कत्ल व खून होता है, इस लिए यह भी फरमा दिया गया की एक तरफ कत्ल व खून है, तो दूसरी तरफ, अल्लाह के साथ कुफ्र व शिर्क है, और उसकी मालिक की राह से उसकी मखलूक को रोकता हैं | और यह फितना कत्ल से ज्यादा सख्त है | अबुल मालिक फरमाते हैं, तुम्हारी यह खताकारियां,और बदकरियां, कत्ल से ज्यादा नुक्सान दह है |
नोट :- जो सेकुलर वादी यह कहते हैं की कुरान में, जिहाद को जद्दोजिहद,या जुस्तजू करना {बार बार } प्रयास करने के अर्थों में लिया गया यह कहते और मानते हैं वह मिथ्या है और निरर्थक भी | यह अल्लाह ने स्पष्ट आदेश दिया है मुसलमानों को काफिरों से, मूर्ति पूजकों से लड़ो, उन्हें कतल करो | फिर यह भी तो बताया गया की कमजोरों को न मारो, बूढ़े लोगों को न मारो, औरतों न मारो और बच्चों को भी न मारो | क्या यह उपदेश किसी प्रयास के लिए है ? अथवा किसी और काम के लिए उपदेश दिया गया ? जहाँ स्पष्ट बताया जा रहा है इन्हें मारो | और इन्हें न मारो, इनको कतल करो, और इन्हें कत्ल न करो | इसके बाद भी अगर कोई यह कहे की कुरान में मारो काटो लूटो की बातें नहीं है, यह बात गले के नीचे उतरने वाली नहीं है | वह लोग कुरान को जानते तक नहीं हैं और नाहक कुरान पर अपना विचार देते रहते हैं।
जनता को अन्धकार में रखने वाली बात है यह, दूसरी बात है एह तो अभी जिहाद का पहला हुक्म है उसे मैंने लिखा और बताया जो इस्लाम जगत में जिन्हें विद्वान् माने जाते हैं मुफ़स्सिरे कुरान।
{ कुरान के भाष्य कार माने जाते हैं } उन्ही की लिखी किताब में यह बातें लिखी है जिसका प्रमाण यहाँ दिया गया है | जिसे तफसीर कहा जाता है, {इब्ने कसीर} और {कन्जुल ईमान } यह दोनों किताब हैं देवबंदी, और बरेलवी वालों की।
अर्थात देवबंदी वाले मानते हैं इब्नेकसीर को, और बरेलवी वाले मानते हैं, कन्जुलईमान को। मैंने दोनों को इस लिए लिया कि कोई यह न कह सके की हमारी मान्यता यह नहीं है।
आप दुनिया वालों को चाहिए की कुरान को समझदारी से पढ़ें, और और मानव होने के नाते परमात्मा ने जो दिमाग दिया है उसी दिमाग को कार्यान्वित करें= वेद में ईसाई मुसलमानों को मारो कहीं नहीं।
धन्यवाद के साथ महेन्द्रपाल आर्य =राष्ट्रीय प्रवक्ता राजार्य सभा = 26 /10/18
Misconceptions About Islam का लिंक यह है: