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Wednesday, October 24, 2018

Sun Worship in Vedas वेदों में सूरज की हम्द और इबादत

यह मेरे और मेरे दोस्तों के बीच व्हाट्स एप्प ग्रुप पर हुई एक चर्चा है। जिसे एडिट करके सबकी भलाई की नीयत से ब्लाग पर पेश किया जा रहा है:
*वेदों में शिर्क*
वेदों में तौहीद साबित करने वाले मुबल्लिग़ 'स एष एक एकवृदेक एव' अथर्ववेद 13:4:20 
का हवाला बड़ी रवानी से देते हैं और इस मंत्र में ईश्वर अल्लाह के 'एक' होने की बात मानते हैं।
💚🌹💚
जब यह मंत्र सियाक़ व सबाक़ से, पूर्वापर से मिलाकर पढ़ते हैं, तब पता चलता है कि
'स एष एक एकवृदेक एव' से तात्पर्य सूर्य का वृत है, न कि ईश्वर अल्लाह (The Creator)!
मंत्र में कहा गया है कि सूर्य का गोला एक है। अथर्ववेद 13:4:12-13 में मंत्र कर्ता ऋषि ब्रह्मा ने सूर्य को सब देवताओं से बड़ा बताते हुए बिल्कुल साफ़ कहा कि
'यह सब उसे ही प्राप्त होता है, यह एक वृत केवल एक है। सब देवता इन एक को ही वरण करते हैं।'
अथर्ववेद के 13वें कांड के चौथे अनुवाक को शुरू से पढ़ें।
आपको पता चलेगा कि पहले मंत्र से 45वे मंत्र तक सूर्य के गुण गाए जा रहे हैं।
आप सच जानना चाहते हैं तो बीच में से एक मंत्र पढ़ने के बजाय 45 मंत्रों को एक साथ पढ़ें।
अनुवाद: पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, हरिद्वार

हमारे इस लेख पर दाई भाई हाफ़िज़ शानुद्-दीन, पटना ने यह सवाल किया:
'परंतु श्रीमान ! स्वामी दयानंद सरस्वती के भाषयानुसार तो ये मंत्र ब्रह्म के लिए है। पंडित राम शर्मा आचार्य जी की अपनी विचार धारा है तो ये उनकी अपनी बात उनके अपने विचारधारा के अनुकूल है। सायण भाष्य भी इस मंत्र को ब्रह्म से जोड़ता है। जहाँ तक वेद की बात है तो इसमें तो अधिकतर मंत्र अलंकारिक (तमसीली) हैं। फिर ये निर्णय कैसे लिया जा सकता है कि अथर्ववेद 13:04:20 ईश्वर/अल्लाह के लिए नहीं *सूर्य के वृत के लिए है?*
बहस को जारी रखने के लिए मेरा ये comment है।'

जवाब: Hafiz Sahib! 1. यह बात आपको कैसे पता चली कि 'जहाँ तक वेद की बात है तो इसमें तो अधिकतर मंत्र अलंकारिक (तमसीली) हैं?'
2. सायण इसे ब्रह्म से जुड़ा मानता है। आपने इसका कोई हवाला नहीं दिया है।
*ज्ञान:*
यह मंत्र ब्रह्म से संबंधित है तो भी यह मख़्लूक़ (creations) से संबंधित है। ब्रह्म, बढ़ने वाली चीज़ों को कहते हैं।सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है। और उसी को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है।
वैदिक धर्म में सूर्य की उपासना (इबादत) की अहमियत जानने के लिए आप नीचे दिए लिंक पर यह लेख पढ़ सकते हैं:
देखिए पंडित. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं कि वैदिक धर्म में अन्न और यज्ञ आदि कई चीज़ों (creations) को ब्रह्म कहते हैं।
3. स्वामी दयानन्द जी की हैसियत हिन्दुओं में वैसी ही है, जैसी मुस्लिमों में बाग़ी खारिजियों और अहले क़ुरआन की है।
जिन कारणों से आप ख़्वारिज और अहले क़ुरआन के तर्जुमे और तफ़्हीम को नहीं मानते,
वैसे ही कारणों से हिन्दू वेद ज्ञानी शंकराचार्य स्वामी दयानन्द के वेदार्थ को नहीं मानते।
आप भी क़ुरआन को नबियों की सुन्नत और सहाबा र. की तारीख़ से जोड़कर समझने पर ज़ोर देते हैं और हिन्दू वेदज्ञानी शंकराचार्य भी वेद को परम्परा और ऋषियों के इतिहास से जोड़कर समझने पर बल देते हैं।
क्या यह सही तरीक़ा है कि
आप ख़ुद तो क़ुरआन का अर्थ सुन्नत और तारीख़े सहाबा से जोड़कर समझें और 
जब वेद का अर्थ लेना हो तो उस आदमी का अर्थ लें जो वेद का अर्थ परम्परा और ऋषियों के इतिहास से काटकर मनमर्ज़ी तरीक़े से लेता है। जबकि उस आदमी को ऋषि परम्परा और ऋषियों के इतिहास का ठीक से पता भी नहीं था और उसने एक गुरू विरजानन्द से केवल व्याकरण पढ़ा था और व्याकरण भी पूरी अवधि (period) नहीं पढ़ा था, बीच में ही छोड़ दिया था। (देखें महर्षि दयानंद सरस्वती का जीवन चरित्र)

4. वेदों में इतिहास है। स्वामी दयानन्द जी ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका नामक ग्रंथ में ऐसे वेदमंत्रवेद को  लिखा है जिनमें उन्हें अश्वमेध यज्ञ आदि में अश्लीलता नज़र आई। स्वामी जी ने ऐसी सब जगहों पर अलंकार और तमसील मान ली है। इसके बाद उन जगहों के अर्थ बदल देना मामूली सा काम है। अर्थ बदलने की नीयत से ही उन्होंने वेदों में इतिहास का इन्कार कर दिया।
5. फिर भी आप दयानंद जी का अर्थ मानते हैं तो मान लें लेकिन दूसरों को बता दें कि हम यह वेदार्थ किस से ले रहे हैं!
साथ ही यह भी याद रखें कि स्वामी दयानन्द जी अथर्ववेद में नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ज़िक्र नहीं मानते।
उसके लिए आपको सनातनी पंडित वेद प्रकाश उपाध्याय का वेदार्थ लेना पड़ेगा।
6. स्वामी दयानन्द जी पुराणों को झूठ मानते हैं लेकिन पुराणों के मामले में आप स्वामी दयानन्द जी की समझ का ऐतबार नहीं करते और आप पुराणों से हवाले देते हैं।
7. लेकिन आप अल्लोपनिषद का हवाला नहीं देते कि देखो, इसमें अल्लाह और रसूल बिल्कुल साफ़ लिखा है क्योंकि स्वामी दयानन्द जी अल्लोपनिषद को झूठा मानते हैं जबकि सनातनधर्मी उसे अब भी अपना धर्म ग्रंथ मानते हैं। जब सनातन धर्मी पुराणों की तरह अल्लोपनिषद को भी मानते हैं तो आप अल्लोपनिषद से भी सुबूत दें। 
कुल मिलाकर एक खिचड़ी सी पक रही है। यह अब आप आसानी से समझ सकते हैं।
मैं सभी मुबल्लिग़ों की नीयत और मेहनत की क़द्र करता हूं और सबके लिए क़ूव्वत और बरकत की दुआ करता हूं। जो मैंने पढ़ा है, उसे यहां सिर्फ़ ग़ौरो फ़िक्र के लिए पेश कर रहा हूँ। इस लेख का मक़सद किसी को ग़लत बताना नहीं है। मक़सद यह है कि तौहीद की दलील के रूप में वेद में से केवल वही मंत्र पेश किए जाएं, जो सचमुच ख़ालिक़ creator की शान में आए हैं।
दूसरी बात यह है कि स्वामी दयानन्द जी को वैदिक धर्म का प्रवक्ता न माना जाए और न ही उनके ऐतराज़ के दबाव में अल्लोपनिषद जैसे धर्म ग्रन्थ को छोड़ा जाए, जिसमें अल्लाह और रसूल का नाम बिल्कुल साफ़ लिखा है।

Bhai Hafiz Shanuddin: जनाब जब मैं संस्कृत से शास्त्री कर रहा था, तब मेरे गुरु जी श्री अखिलेश्वर महाराज जी, संस्कृतं उदबोधनं के पाठ्य में मुझे बताया था कि * संस्कृत में ब्रह्मा creator को कहते हैं, और ब्रह्म उस लामहदूद शक्ति को कहते हैं जो ब्रह्मा का creator है।
जनाब अल्लाह क़ुरआन मजीद में फरमाते हैं "नुरुन अला नूर" मैं प्रकाश के ऊपर एक प्रकाश हूँ।
अब सवाल ये है कि अल्लाह कैसा प्रकाश है, सूर्य का प्रकाश है, चंद्रमा का प्रकाश, आग का प्रकाश है, tube light का प्रकाश या रात में टिमटिमाने वाले जुगनू का प्रकाश है ??

जवाब: Ok. श्री अखिलेश्वर महाराज जी ने जिनके लिए ब्रह्म शब्द बोला जाता है, आपको उन कई में से केवल एक वुजूद के बारे में बताया था। आप जानते ही हैं कि संस्कृत में एक शब्द कई अर्थ देता है।
क्या आपने उनसे वेद से कोई प्रमाण मांगा, जहां 'ब्रह्मा  creator को कहा गया है?
क्या आपने उनसे वेद से कोई प्रमाण मांगा, जहां 'ब्रह्म उस लामहदूद शक्ति को कहा गया है, जो ब्रह्मा का creator है?
मुझे अंदाज़ा है कि आपने श्री अखिलेश्वर महाराज जी से यह नहीं पूछा होगा!!!
🌹😊🌹
मुझे लगता है कि अल्लाह कैसा प्रकाश है?, यह सवाल इस मुद्दे से अलग है, जिसमें हम अथर्ववेद के 13 वे कांड के चौथे अनुवाक के विषय पर बात कर रहे हैं।
*अल्लाह नूर है।* आप इसे बहुत आसानी से समझ सकते हैं, अगर आप ख़ुद के नूरे शुऊर (ख़ुदी Consciousness) को समझ लें, जिससे आपके जिस्म में ज़िन्दगी है। अल्लामा इक़बाल रहमतुल्लाहि अलैह इसे 'नूरी जौहर' कहते हैं:
तेरा जौहर है नूरी पाक है तू
फ़रोग़े दीदा ए अफ़लाक है तू

आप उस नूर के समंदर के एक अंश (जुज़) हैं, जिसकी लहरों (Light waves) से ये ज़मीनो आसमान बने हैं और जिसमें ये सब तैर रहे हैं। पहले आप इस 'नूरे अव्वल' या 'हक़ीक़ते अहमदी' को समझ लें। आदमी इस वसीले के बिना सूरह नूर की इस आयत (नं. 35) को अपनी अक़्ल और मिसाल से नहीं समझ सकता।

मैं आपको यह बात यहीं समझा देता लेकिन यह मुतशाबिहाती इल्म और बहुत लतीफ़ मारिफ़त है। इस ग्रुप में हरेक बुलन्दी और हरेक फ़िक्र के लोग हैं। कुछ लोग उलझन का शिकार हो सकते हैं। इसलिए हम इसके बयान को छोड़ते हैं।
इस आयत को आप 'रिजालुल्लाह' में से किसी से दरयाफ़्त कर लें, जिनका ज़िक्र सूरह नूर की आयत नं. 37 में आया है। इस आयत में ज़मीन व आसमान (Universe) का सबसे बड़ा राज़ है, जिसे जानने के बाद मोमिन को क़ूव्वत का मन्बा (Source) अपने दिल में ही मिल जाता है।
अल्हम्दुलिल्लाह!!!
Talib Nadwi Rampur Media House:
 *قوت احتساب*
"جب قوم میں اتنی ہمت اور جرأت نہ ہو کہ اپنے قائد کی غلط کاری پر ٹوک سکے تو ایسی قوم کو جو سر پھرا چاہے غلام بنا سکتا ہے،  ہر جاہل اور احمق اس کی عزت و شرف کی دھجی بکھیر سکتا ہے، ایسی قوم ہر ظلم و زیادتی کا شکار ہوسکتی ہے، اور ہر استعمار کے لئے لقمۂ تر ثابت ہوسکتی ہے" .
*از - مفکر اسلام حضرت مولانا سید ابو الحسن علی الندوی*

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