*वेदों में तौहीद या शिर्क?*
मैंने शुरू में 'वेदों में तौहीद (एकेश्वरवाद)' पर कुछ पढ़ा था। उन किताबों में वेदों के विषय में वह मान्यता आर्य समाज की थी।
बहुत बाद में आदरणीय प्र. ह. रा. दिवेकर साहित्याचार्य, एम. ए. (इलाहाबाद) डी. लिट्. (पेरिस) की बुक ऋग्वेद सूक्त विकास पढ़ी तो पता चला कि वेदों में एक साथ दो दो देवताओं की संयुक्त स्तुति भी है यानि वेदों में शिर्क है।
ऋग्वेद के छठे मंडल के 57वें सूक्त में
इन्द्रापूषणौ यानि इन्द्र और पूषन् दो देवताओं की एक साथ (संयुक्त) स्तुति की गई है।
जिनमें से एक इन्द्र सोम पीता है और दूसरा पूषन देवता 'घी मिला जौ का आटा' खाना पसंद करता है, जिसे करंभ बोलते हैं।
दोनों देवताओं की सवारी में भी अंतर है। पूषन् का रथ बकरे खींचते हैं और इन्द्र का घोड़े।
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अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में यह पहचान कराई है कि खाने पीने वाले लोग रब और माबूद नहीं होते। देखें-
मरयम का बेटा मसीह एक रसूल के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। उससे पहले भी बहुत-से रसूल गुज़र चुके हैं। उसकी माँ अत्यन्त सत्यवती थी। दोनों ही भोजन करते थे। देखो, हम किस प्रकार उनके सामने निशानियाँ स्पष्ट करते है; फिर देखो, ये किस प्रकार उलटे फिरे जा रहे है!
पवित्र क़ुरआन 5:75
अल्लाह ने निशानी स्पष्ट कर दी है।
अब तौहीद की पहचान रखने वाला जो आदमी इन्द्र और पूषन को माबूद माने, वह उल्टा फिर कर जा रहा है।
आप किन्हीं विद्वानों से पूछना चाहें कि वेदों में तौहीद है या शिर्क?
तो आप उनसे यह पूछना कि क्या उन्होंने वेदों में दो दो देवताओं की एक साथ पूजा स्तुति पढ़ी है, जो खाते पीते हैं और रथों पर सवारी करते हैं?
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देखें ऋग्वेद सूक्त विकास के पृष्ठ 104 व 105। दोनों पेज केवल विचार हेतु प्रेषित हैं। यह बुक 60 साल से ज़्यादा रिसर्च करके लिखी है। इसके लिए हम आदरणीय प्रथा. ह. रा. दिवेकर जी के बहुत आभारी हैं।
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