Translate

Saturday, October 6, 2018

मुस्लिम समाज के माली और सियासी मसलों का हल Let us sow love By Dr. Anwer Jamal


प्रेम की फ़सल वही लेगा, जो प्रेम के बीज बोएगा
मुस्लिमों के मारे जाने और उनके ऊपर एटमिक, रासायनिक, बारूदी और त्रिशूली हमलों पर मीडिया में बहुत से हिन्दू, सिक्ख और मुस्लिम भाई हमदर्दी के साथ सलाहें देते हैं। जिनमें बहुत कीमती सलाहें भी हैं। उन सबको इज़्ज़त देते हुए मैं यह कहना चाहता हूं कि
According to Dawah Psychology
मुस्लिमों का मसला दुनिया में और हिन्द में सियासी पार्टियों के बल पर या दूसरों से लड़कर हल नहीं हो सकता। मुस्लिम समाज की फ़लाह, कल्याण और wellness सामाजिक जागरूकता से ही मुमकिन है। इसमें 5-10 साल लग सकते हैं। 
इतिहास से यह सच पता चलता है कि मुस्लिमों की हालत सिर्फ़ आपस में लड़कर कमज़ोर हुई है और वे अब भी मसलक और सियासत वगैरह के नाम पर आपस में लड़े जा रहे हैं। 
पहले यहूदी आपस में लड़े। वे कमज़ोर हुए। दुश्मनों ने उन्हें क़त्ल किया। उनकी अक़्ल ठिकाने आ गई। उन्होंने आपस की लड़ाई छोड़ दी और तरक़्क़ी पर ध्यान दिया। उनकी तरक़्क़ी हो गई।
ईसाई पादरियों के हुक्म पर ईसाई आपस में लड़ते मरते रहे। तंग आकर ईसाई अवाम ने पादरियों की हुकूमत का ख़ात्मा कर दिया। तब पादरियों की अक़्ल ठिकाने आई। अब सारे मस्लकों के पादरी 'मिलकर' दुनिया में तब्लीग़ करते हैं। सो वे सेफ़ हैं और बढ़ रहे हैं।
सुर, असुर, शैव, वैष्णव, शाक्त, बौद्ध, जैन, वाममार्गी और नागा बनकर हिन्दू सदियों लड़ते रहे और बंटते रहे। अन्दर और बाहर के हमलावर आकर इन्हें मारते, कूटते और लूटते रहे। फिर इनकी अक़्ल ठिकाने आ गई। अब सब मतों के शाकाहारी और मांसाहारी हिन्दू एक ही पार्टी में सबका साथ देते हुए और अपना अपना विकास करते हुए मिल जायेंगे।
जब तक मुस्लिमों में एकता रही। मुसलमानों से लड़कर कोई न जीता। हज़रत उस्मान ग़नी रह. की शहादत के बाद मुनाफ़िक़ों ने हुकूमत क़ब़्ज़ाने के लिए मुस्लिमों का ख़ून बहाना शुरू किया। जो आज तक दुनिया भर में जारी है।
शुरू में सिर्फ़ एक सियासी मतभेद था। मस्लकी मतभेद को वे ज़्यादातर एडजस्ट करके चलते थे और फ़ालतू की डिबेट को नापसंद करते थे। बाद में मसलों के इख़्तिलाफ़ पर डिबेट होने लगीं। नए नए फ़लसफ़ों के आलिम दुनिया को दीन पहुंचाने के बजाय आपस में ही काफ़िर और मुरतद के फ़त्वे देने लगे। जिन पर पहले ख़लीफ़ा के हुक्म से अमल भी होता था। मसला ख़ल्क़े क़ुरआन पर दीन की रूह से नावाक़िफ़ ऐसे मुफ्तियों ने हज़ारों आलिमों की गर्दनें ख़लीफा ए वक़्त से कहकर कटवा दीं।
मुजद्दिद अलिफ़ सानी रह. के तज़्करे में लिखा है कि
अकबर के दरबार में भी ये आलिम मस्लकी डिबेट डिबेट खेलते रहे। यहां तक कि अकबर इन आलिमों से फिर गया और उसने अपने लिए अपना दीन 'दीने इलाही' ख़ुद बना लिया। मुग़ल हूकूमत ख़त्म हुई। फिर अंग्रेजी, कांग्रेसी और भगवाई हाकिम आए। मुस्लिमों की लीडरी करने वाले फ़तवेदार आलिमों को दौर की तब्दीली और उसमें Survival, Wellness और ग़लबे के रोड मैप का कुछ पता नहीं है। इनके पास मुसलमानों की एजुकेशन, हेल्थ, फायनेन्स, सेफ़्टी और Empowerment का कोई विज़न तक नहीं है। ये अब भी फ़त्वे दे रहे हैं जैसे कि ये मुग़ल काल में रह रहे हों। 🕌
अपनी मुक़ल्लिद क़ौम की तरबियत इन्होंने ऐसी की है कि जो लोग बचपन से नमाज़ पढ़ते पढ़ते बुज़ुर्ग हो चुके हैं, आप ऐसे 3 नमाजियों से क़ुरआन की सबसे छोटी 3 आयतों वाली सूरह कौसर का मतलब पूछ लीजिए। उनमें से एक भी न बता पाएगा। ये लोग आलिमों की नज़र में हिदायत पर होते हैं लेकिन जब ये आलिमों के आमाल का जायज़ा लेकर उन पर तन्क़ीद करने लगते हैं तो उनकी ज़ुबान बन्द करने के लिए फ़तवे को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
मैंने अपने बच्चों को क़ारी और मौलवी दोनों से कई साल क़ुरआन पढ़वाया। उन्होंने मेरे बच्चों को पूरा क़ुरआन पढ़ा दिया लेकिन किसी एक आयत का मतलब नहीं बताया। यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा रज़ियल्लाहुम. का तरीक़ा नहीं था।
मुस्लिमों का मसला दूसरे धर्म के क़ातिल ग़ुन्डे नहीं हैं बल्कि अपने ही आलिम और सियासी लीडर हैं, जो उन्हें क़ुरआन, हदीस, हिस्ट्री और नफ़ाबख़्श उलूम से दूर रखते हैं। जो मुस्लिमों को बांटते और लड़ाते आ रहे हैं। ये महदूद और ख़ुदग़र्ज़ सोच वाले आपको हरेक पार्टी का साथ देते हुए मिलेंगे। यही बात मुसलमानों को बेवज़न कर रही है।
*Solution:*
मेरी अपनी राय 30 साल की स्टडी के बाद यह है कि हिन्द में मस्लकी मुनाज़रेबाज़ फ़त्वेदार आलिमों का दीनी माडल फ़ेल है क्योंकि फ़त्वों से आम लोगों के रोज़ी, सेहत और सलामती के मसले हल नहीं होते।
जबकि सूफियों का दीनी माडल हिन्द में कामयाब है क्योंकि उनकी मुहब्बत के माडल से सब धर्मों के लोगों की वेलनेस होती है।
🍪🥣💖💐
Universal Law है कि
'जैसा बोओगे, वैसा काटोगे'
सूफ़ी मुहब्बत के बीज बोते हैं और मुहब्बत की फ़सल काटते हैं।
आज हर आदमी अपनी ज़िन्दगी में जिन मसलों (challenges) का सामना कर रहा है, उन्हें मुहब्बत से हल किया जा सकता है। मुस्लिम दूसरों का कल्याण करेंगे तो रब के क़ुदरती क़ानून के तहत उनका कल्याण ख़ुद होगा। 
🍪🥣💖💐
सूफियों का पैग़ाम मुहब्बत है।
उनका काम लोगों को आपस में जोड़ना और भूखों को खाना खिलाना, उन्हें भलाई की तालीम देना और उनकी मदद करना है।
रब का शुक्र है कि आज भी अच्छे आलिम इस माडल पर चल रहे हैं। उनका साथ दिया जाए। सब मुस्लिम मिलकर इस माडल पर चलें तो वे बिना लड़े आज भी कामयाब है।

1.मुस्लिम आलिम आपसी लड़ाई को फ़ौरन बन्द कर दें। इसी में उनका भला है।
2.चाहे वे सब अपने मतभेद बाक़ी रखें लेकिन सारे मसलकों के बड़े आलिम मिलकर एक All India Wellness Board ज़रूर बना लें और हर धर्म के लोगों की फ़लाह, कल्याण और वेलनेस के लिए ज़्यादा से ज़्यादा काम करें।
बस *सिर्फ़ इस एक काम के बाद ही दुश्मन के हौसले पस्त हो जाएंगे।*
3.मुनाफ़िक़ों के बहकावे में आकर मुस्लिम न लड़ें, न मुस्लिम से और न दूसरों से। शांति, प्रेम और एकता से हर मसला हल हो सकता है। इसीलिए रब कहता है:
और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थामे रहो और आपस में फूट न डालो।
पवित्र क़ुरआन 3:103
4. *आमदनी बढ़ाने के लिए* तिजारत करें। जो लोग मज़दूर हैं, दस्तकार हैं या कहीं नौकरी करते हैं तो उनकी ज़रूरत के मुक़ाबले उनकी आमदनी हमेशा कम रहेगी। इसका हल नबी ए रहमत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत 'तिजारत' में है। आप अपना काम करते हुए जिन लोगों से मिलते हैं, उन्हें ज़िन्दगी में काम आने वाली चीज़ें जैसे कि हर्बल प्रोडक्ट्स, कोई जड़ी बूटी और कपड़ा वग़ैरह बेच सकते हैं। इससे आपको 'डबल इन्कम' होगी।
तिब्बे नबवी की चीज़ें जैतून का तेल, शहद, सिरका, खजूर, अंजीर, सना, कलौंजी, लकड़ी का प्याला और मिस्वाक जैसी चीज़ों को बेचकर भी आप भारी मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
5.अपने घर के लोगों को मज़दूर या दस्तकार बनाने के बजाय उन्हें तालीम दिलाएं और उन्हें पढ़ने के साथ घर से ही अच्छी चीज़ें बेचना सिखाएं। छोटी पूंजी से शुरूआत करेंगे तो भी वह तिजारत बढ़ेगी। आप देख सकते हैं कि आर्थिक ढाँचा ही ऐसा है कि उम्र बढ़ने के साथ मज़दूर घटता है और व्यापारी बढ़ता है।
6.अगर आप किसान हैं और ज़मीन कम है तो आप अपने घर में ही मशरूम और कीड़ा जड़ी यार्सागुम्बा की खेती करके कई गुना ज़्यादा कमा सकते हैं।
आयुर्वेद में यार्सागुम्बा को जड़ी-बूटी की श्रेणी में रखा गया है जो हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में मिलता है। इसकी कीमत करीब 60 लाख रुपये प्रति किलोग्राम है। आप सरकारी केन्द्रों से इसकी खेती की ट्रेनिंग लेकर इसे पैदा करेंगे तो आपकी पैदावार 1.5 लाख प्रति किलोग्राम बिकेगी। आप एक कमरे से 40 दिन में 6 लाख रूपये का माल पैदा कर सकते हैं।

वह जिसको चाहता है हिकमत अता फ़रमाता है और जिसको (रब की तरफ़) से हिकमत अता की गई तो इसमें शक नहीं कि उसे ख़ूबियों से बड़ी दौलत हाथ लगी और अक्लमन्दों के सिवा कोई नसीहत मानता ही नहीं.
पवित्र क़ुरआन 2:269

7 comments:

  1. सही फ़रमाया।
    जितनी कोशिश उतना ही भरोसा अल्लाह पर।
    तमाम सफलताओं का यही सूत्र है।

    ReplyDelete
  2. Bahut umdah post hai sir.bahut khush hua dil post ko padh kar.

    All India wellness board wali baat sare maslo ka hal ho sakti hai.
    Bahut had tak.

    ReplyDelete
  3. Searching such type of post for many days thanx..

    ReplyDelete
  4. Jnab jmal sb tarikh ka muttala kijiye phir lub kushai keriye hazrer usman gani raziyallahu talaanhu hae rahimullah nhi quran khud kehta hae aur dusri sub sae imp bat ahle baite athar ko ap munafiq keh rehe hae jban aur hosh sambhaliye ap harate usman kae bad hazrate ali aur unke bat hazrate hasan hae khalifa ...apne kese kha ke hazrate usman kae bad munafiko nae gaddi kabzane kae liye khoon bhaya apko hazrate ali aur hazrate hasan per lub kushai apki dimagi aur ahle bait sae bugz ke nishani hae

    ReplyDelete