मुस्लिम बनने का तरीक़ा
एक हिन्दू भाई ने सवाल किया है कि मुसलमान बनने का तरीक़ा क्या है?
जवाबः मुस्लिम बनने का सही तरीक़ा होश में आना है, जागरूक होना है उस सत्य के प्रति जो कि मनुष्य के शरीर में और इस यूनिवर्स में हर तरफ़ आँखों से देखा जा सकता है और जिस पर बुद्धि से विचार करके निष्कर्ष निकाला जा सकता है।
शरीर के अन्दर और बाहर हर चीज़ का एक डिज़ायन है और हर चीज़ नियमों के अधीन है। हर चीज़ प्रकृति के नियमों का पालन कर रही है। सारी चीज़ें आपस में मिलकर एक यूनिट की तरह काम कर रही हैं, जैसे कि हाथ, पैर और दिल व गुर्दे सब अलग अलग भी हैं और वे सब आपस में मिलकर एक शरीर भी हैं।
मनुष्य भी इस यूनिवर्स का, इस प्रकृति का हिस्सा है। मनुष्य में भी डिज़ायन और लाॅ पाए जाते हैं। मनुष्य की हर चीज़ में डिज़ायन और लाॅ पाया जाता है। जब डिज़ायन है तो कोई डिज़ायनर भी है। जब लाॅ है, नियम है तो कोई नियामक शक्ति भी है। उसी को ईश्वर, अल्लाह, गाॅड कहते हैं। वह एक ही है। उसके साथ कोई पार्टनर नहीं है। कोई उसका सहायक नहीं है। कोई उसकी पत्नी, बेटी या बेटा नहीं है। मनुष्य की भाँति उसने किसी से जन्म नहीं लिया और न ही उसने किसी को मनुष्य की भाँति जन्म दिया है। उसी ने हर चीज़ को पैदा किया है। उसी ने इन्सान को पैदा किया है। उसी ने इन्सान को बुद्धि, भावना और चेतना दी है।
हर चीज़ अपने गुणों को ज़ाहिर कर रही है। सूरज अपनी रौशनी और ताप को ज़ाहिर कर रहा है। पानी अपनी पवित्रता और ठण्डक को ज़ाहिर कर रहा है। घास अपनी हरियाली को, पहाड़ अपनी ऊँचाई को और आसमान अपने फैलाव को ज़ाहिर कर रहा है। इन्सान को भी चाहिए कि वह अपनी इन्सानियत को ज़ाहिर करे।
इन्सान होने का मुख्य गुण क्या है?
पवित्र क़ुरआन के अनुसार इन्सान का सबसे बड़ा गुण ज्ञान है। इन्सान को चाहिए कि वह ज्ञान के गुण को ज़ाहिर करके अपने इन्सान होने को ज़ाहिर करे। अज्ञान के काम करना इन्सानियत के खि़लाफ़ है।
हर मनुष्य की शारीरिक और मानसिक शक्तियाँ कुछ निश्चित नियमों के अधीन काम करती हैं। कोई भी मनुष्य इन नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकता। जैसे कि कोई मनुष्य नाक से सुन नहीं सकता और आँख से चख नहीं सकता। यह नियम शरीर के लिए निश्चित है। पूर्व और पश्चिम के सभी देशों के सब मनुष्यों के लिए यही नियम है।
ऐसे ही मानसिक नियम हैं कि जो कोई ईष्र्या, द्वेष, अहंकार, क्रोध, लोभ, परनिन्दा, प्रतिशोध की मानसिकता में जिएगा, उसे सुख-शाँति और कल्याण नसीब नहीं हो सकता। वह इसी हाल में मर गया तो वह मर कर भी कष्ट ही पाएगा। उसके बाद उसे दुनिया में बुरा भला कहा जाएगा।
इसके विपरीत जो कोई सत्य ज्ञान, दया, प्रेम, परोपकार, क्षमा, संयम, दुआ, सब्र और शुक्र की मानसिकता के साथ अच्छे काम करेगा, उसका कल्याण होगा। उसके मरने के बाद भी लोग उसे अच्छाई के साथ याद करेंगे और वह भी मर कर सुख शाँति ही पाएगा।
जो जिस मानसिकता के साथ जिएगा, वह उसी मानसिकता में मरेगा और जिस हाल में वह मरेगा, उसी के मुताबिक़ वह अपनी चेतना में सुख या दुख पाएगा। यह अटल नियम है। मनुष्य इनके अधीन है। इन नियमों का पालन करने का नाम है ‘आज्ञाकारी’ होना। आज्ञाकारी होने को अरबी में मुस्लिम कहते हैं।
जो आज्ञाकारी नहीं बनता, वह आज्ञा का, नियम का उल्लंघन करता है और कष्ट उठाता है। आज्ञा न मानना लोगों के कष्ट का मूल कारण है। नबियों ने, सत्पुरूषों ने कष्ट के निवारण के लिए लोगों को ईश्वर की इन्हीं आज्ञाओं और प्राकृतिक नियमों का ज्ञान कराया।
वेद, बाइबिल और क़ुरआन में, सबमें ये मौलिक सत्य नियम मिल जाएंगे। वेद और बाइबिल इतिहास के लेखन से पहले रचे गए थे। वेद और बाइबिल में लोगों के बीच कार्य विभाजन, सम्पत्ति विभाजन, विवाह, शिक्षा, शासन और दण्ड व्यवस्था के बारे में जो नियम अब लिखे हुए मिलते हैं, उनका पालन करना आज किसी व्यक्ति और समाज के लिए सम्भव नहीं है। यह भी निश्चित नहीं है कि ये सभी नियम ऋषियों और नबियों ने ही बताए थे या उनके नाम से उनके बाद किसी और ने लिख दिए हैं क्योंकि वेद और बाइबिल आज अपने मौलिक स्वरूप में नहीं हैं और उनका बहुत हिस्सा खो गया है। वेद पहले ब्राह्मी लिपि में थे। आज उस लिपि को वेद के पण्डित पढ़ नहीं सकते। यही वजह है कि वेद और बाइबिल के नियमों का प्रचलन समाज में बन्द हो चुका है। ये ग्रन्थ आज किसी देश का संविधान नहीं हैं।
पैग़म्बर मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सिखाया है कि सबको सम्मान दो और मेरा अनुकरण करो। इस तरह उन्होंने प्राचीन काल से चले आ रहे कल्याणकारी नियमों को उनके शुद्ध रूप में पूरी मानव जाति को एक बार फिर से उपलब्ध करा दिया है। जो भी निष्पक्ष होकर इस बात की जाँच करेगा, वह इसकी सत्यता को आसानी से पहचान लेगा। उनके उत्तम आदर्श के अनुरूप आप एक व्यक्ति और एक समाज के रूप में पूर्व और पश्चिम में, हर देश में समान रूप से आसानी से अमल कर सकते हैं। जिससे आपका तुरन्त कल्याण होगा। आपको शरीर, मन और आत्मा के स्तर पर तुरन्त उन्नति अनुभव होगी।
ऐसा करना है तो आपको होश में आना होगा। लोग आम तौर पर नफ़रत में अन्धे हैं या फिर ग़ाफ़िल हैं कि उन्हें मौत आएगी। आपको न्यूट्रल होकर अपने हित अहित का विचार करना होगा। मौत आपको आनी है। अपने कर्मों का फल भी आपको ही भोगना है। क्या आप जीवन में और मृत्यु के बाद अपने लिए कष्टों का चुनाव करना चाहेंगे या फिर सुख-शाँति का?
सुख का चुनाव करना चाहते हैं तो होश में आईये।
धर्म के परिमार्जन की ज़रूरत है। धर्म परिवर्तन की ज़रूरत नहीं है क्योंकि सबका धर्म पहले ही से एक है। वह है कल्याण के लिए एक अजन्मे परमेश्वर के नियमों का पालन करना।