भारत में मुसलमानों की समस्याएं और उनका हल
भारत में मुसलमानों के सामने कई तरह की समस्याएं हैं जो कि जीवन का हिस्सा हैं। जब तक जीवन है तब तक एक इन्सान को रोज़गार, इलाज, शादी, मकान, विकास और सुरक्षा के सम्बन्ध में कई तरह की चुनौतियाँ पेश आती हैं। ये चुनौतियाँ हरेक धर्म के आदमी को पेश आती हैं, इसलिए ये मुसलमानों को भी पेश आती हैं। ये चुनौतियाँ हरेक देश में पाई जाती हैं, इसलिए ये भारत में भी पाई जाती हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि इस ज़मीन पर जीवन हो और जीवन में कोई चुनौती न हो। ऐसा भी नहीं हो सकता कि हरेक देश में चुनौतियाँ हों और भारत में किसी को या मुसलमानों को कोई चुनौती न हो। जीवन की प्रकृति को कोई बदल नहीं सकता। इन्सान की प्रकृति को भी कोई नहीं बदल सकता। भलाई और बुराई का चुनाव इन्सान की प्रकृति का हिस्सा है। एक इन्सान चाहे तो भलाई या बुराई, नफ़रत या मुहब्बत, शुक्र और नाशुक्री में से जिसे चाहे चुन सकता है। इन्सान को रब ने चुनाव के अधिकार के साथ पैदा किया है। यही वजह है कि हरेक इन्सान ख़ैर और शर के साथ आज़माया जाता है।
ज्ञानी लोगों ने हमेशा सबकी भलाई को चुना। उन्होंने सबकी भलाई में अपनी भलाई समझी। ज्ञानी को संस्कृत में पण्डित और अरबी में आलिम कहते हैं। यह एक गुण है। जिसमें ज्ञान या इल्म का गुण हो, उसे ज्ञानी या आलिम कहते हैं। ज्ञान एक श्रेष्ठ गुण है। जिसे जितना ज़्यादा ज्ञान होता है, उसे समाज में उतना ज़्यादा सम्मान मिलता है क्योंकि वह उस ज्ञान से समाज का सबसे ज़्यादा भला कर सकता है। जब किसी वंश में ज्ञान एक परम्परा के रूप आगे बढ़ने लगा तो फिर उनमें भी दो तरह के लोग हो गए। एक तरह के लोग तो अपने पूर्वजों की तरह सबकी भलाई में अपनी भलाई समझते थे लेकिन दूसरी तरह के लोग उनके खि़लाफ़ चलने लगे। वे सबके शोषण में अपनी ऐश देखने लगे। यह हर देश में हुआ और हर काल में हुआ। यह मक्का में भी हुआ और यही काशी में हुआ। यह चार हज़ार साल पहले भी हुआ और यही आज हो रहा है। ज्ञानी वर्ग की नीयत सही हो तो उनसे सही मार्गदर्शन पाकर हरेक इन्सान रोज़गार, इलाज, शादी, मकान, विकास और सुरक्षा के सम्बन्ध में पेश आने वाली चुनौतियों को हल कर सकता है लेकिन अगर ज्ञानी वर्ग की नीयत दूसरों के शोषण की हो जाए तो फिर आम लोगों का विकास नहीं बल्कि उनका विनाश होता है।
मेरी नज़र में सब समस्याएं तो जीवन की चुनौतियाँ हैं लेकिन वास्तव में जो सबसे बड़ी समस्या है, वह है ज्ञानी वर्ग की नीयत और उसके कर्म का बिगड़ जाना। ऐसे बिगड़े हुए ज्ञानी आपको हर ज़माने में और हर धर्म-मत में मिलेंगे। मुसलमानों में, हिन्दुओं में, सिखों में, ईसाईयों में और यहूदियों में सबमें ऐसे ज्ञानी मिलेंगे, जो धर्म के नाम पर शोषण करते हैं। ये ज्ञानी अपने समुदाय के लिए भी समस्या हैं और दूसरे समुदायों के लिए भी। बिगड़े हुए ज्ञानी अपनी कूटनीति से अपने समाज में सही नीयत और अच्छे कर्म वाले ज्ञानियों के मुक़ाबले ज़्यादा लोकप्रिय हो जाते हैं। ये लोगों में नफ़रत की भावना भड़काते हैं और उन्हें बदले के लिए उकसाते हैं। भावना में बहने के कारण लोग विवेक से काम लेना बन्द कर देते हैं। जिससे वे केवल भेड़ों की तरह उनके पीछे चलने के आदी हो जाते हैं। भीड़ जब भेड़ की तरह जीने लगती है, तब वह सोच विचार बन्द कर देती है। जिससे उसका विकास रूक जाता है। ऐसे में बिगड़े हुए ज्ञानी जुर्म को भी धर्म बता दें तो भीड़ उसे धर्म ही मानती है। जब बिगड़े हुए ज्ञानी अपने समाज में लोकप्रियता पा जाते हैं, तब वे प्रेम के बजाय नफ़रत और माफ़ी के बजाय इन्तेक़ाम की भावना लोगों के मन में भरते हैं। बार बार एक नफ़रत और इन्तेक़ाम का एक ही मैसेज मन में जाता है तो वह लोगों के अवचेतन मन का गहरा विश्वास बन जाता है। फिर लोग उस विश्वास के ग़ुलाम बन जाते हैं। उनकी भावनाएं बार बार भड़कती हैं और वे ज़रा ज़रा सी बात पर अपने ही जैसे लोगों को अपना दुश्मन समझकर उनसे लड़ते हैं।
जब ऐसा हो जाए, तब इस घातक माइन्ड प्रोग्रामिंग को बदलना ज़रूरी है। इसका एक तरीक़ा सबको जागरूक बनाना है। यह एक मुश्किल तरीक़ा है क्योंकि आम तौर से लोग अपने विश्वासों की जाँच करने के लिए तैयार नहीं होते। इसमें बुनियादी तौर पर लोगों को इन्सान के मन और प्रकृति के नियमों की सही जानकारी देकर यह सिखाया जाता है कि
1. कोई भी फ़ैसला लेने से पहले भलाई बुराई का विचार ज़रूर कर लिया जाए। जिस काम से सबका हित हो या किसी का अहित न हो, उस काम को अच्छे तरीक़े से किया जाए।
2. सबकी भलाई के मैसेज को सबके सामने बार बार दोहराया जाए ताकि वह जन गण मन का विश्वास बन जाए क्योंकि विश्वास के सही होने का असर व्यवहार पर ख़ुद ही पड़ता है।
हज़ारों साल पहले नबी नूह और इबराहीम अलै. ने यह किया और सबकी भलाई के लिए जो कुछ ज़रूरी था, वह सब किया। आज भी उनका नमूना हमें राह दिखाता है। मुसलमान, हिन्दू, यहूदी और ईसाई सबकी किताबों में इनका नाम बड़े आदर से लिया जाता है। ईसाई नूह को नोह और हिन्दू न्यूह व मनु कहते हैं। ईसाई इबराहीम को अब्राहम और हिन्दू ब्रह्मा कहते हैं। अब्राहम और ब्रह्मा नाम अंग्रेज़ी में लिखें जाएं तो इन में समानता और ज़्यादा प्रकट हो जाती है। केवल एक अक्षर ‘ए’ आगे से पीछे होता है और अलग अलग नामों के पीछे छिपी एक ही शख़्सियत सामने आ जाती है। जो आज भी मुस्लिम, हिन्दू, यहूदी और ईसाई, सबके लिए एकता का मज़बूत आधार है।
हिन्दू साहित्य में ईश्वर का एक सगुण नाम ब्रह्मा है। ईश्वर के इस पवित्र नाम पर कई ऋषियों के नाम हुए हैं। उन कई ऋषियों में से यह ब्रह्मा वह हैं जिनका निवास नाभिकमल पर बने तीर्थराज आदिपुष्कर में बताया जाता है। वैदिक इतिहास में इनकी एक और पहचान यह आई है कि वसिष्ठ से लड़ने के बाद विश्वामित्र तपस्या करने के लिए इन्हीं ब्रह्मा जी के पास आदि पुष्कर आए थे। इन्हीं के निर्देशन में साधना करने पर विश्वामित्र को गायत्री छन्द का ज्ञान हुआ। यह प्रथम काव्य था। गायत्री छन्द के रूप में वेद का का ज्ञान लेकर विश्वामित्र वसिष्ठ के पास आए तो वसिष्ठ ने उन्हें ब्रह्मर्षि की मान्यता दे दी।
भारत में मुसलमानों के सामने कई तरह की समस्याएं हैं जो कि जीवन का हिस्सा हैं। जब तक जीवन है तब तक एक इन्सान को रोज़गार, इलाज, शादी, मकान, विकास और सुरक्षा के सम्बन्ध में कई तरह की चुनौतियाँ पेश आती हैं। ये चुनौतियाँ हरेक धर्म के आदमी को पेश आती हैं, इसलिए ये मुसलमानों को भी पेश आती हैं। ये चुनौतियाँ हरेक देश में पाई जाती हैं, इसलिए ये भारत में भी पाई जाती हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि इस ज़मीन पर जीवन हो और जीवन में कोई चुनौती न हो। ऐसा भी नहीं हो सकता कि हरेक देश में चुनौतियाँ हों और भारत में किसी को या मुसलमानों को कोई चुनौती न हो। जीवन की प्रकृति को कोई बदल नहीं सकता। इन्सान की प्रकृति को भी कोई नहीं बदल सकता। भलाई और बुराई का चुनाव इन्सान की प्रकृति का हिस्सा है। एक इन्सान चाहे तो भलाई या बुराई, नफ़रत या मुहब्बत, शुक्र और नाशुक्री में से जिसे चाहे चुन सकता है। इन्सान को रब ने चुनाव के अधिकार के साथ पैदा किया है। यही वजह है कि हरेक इन्सान ख़ैर और शर के साथ आज़माया जाता है।
ज्ञानी लोगों ने हमेशा सबकी भलाई को चुना। उन्होंने सबकी भलाई में अपनी भलाई समझी। ज्ञानी को संस्कृत में पण्डित और अरबी में आलिम कहते हैं। यह एक गुण है। जिसमें ज्ञान या इल्म का गुण हो, उसे ज्ञानी या आलिम कहते हैं। ज्ञान एक श्रेष्ठ गुण है। जिसे जितना ज़्यादा ज्ञान होता है, उसे समाज में उतना ज़्यादा सम्मान मिलता है क्योंकि वह उस ज्ञान से समाज का सबसे ज़्यादा भला कर सकता है। जब किसी वंश में ज्ञान एक परम्परा के रूप आगे बढ़ने लगा तो फिर उनमें भी दो तरह के लोग हो गए। एक तरह के लोग तो अपने पूर्वजों की तरह सबकी भलाई में अपनी भलाई समझते थे लेकिन दूसरी तरह के लोग उनके खि़लाफ़ चलने लगे। वे सबके शोषण में अपनी ऐश देखने लगे। यह हर देश में हुआ और हर काल में हुआ। यह मक्का में भी हुआ और यही काशी में हुआ। यह चार हज़ार साल पहले भी हुआ और यही आज हो रहा है। ज्ञानी वर्ग की नीयत सही हो तो उनसे सही मार्गदर्शन पाकर हरेक इन्सान रोज़गार, इलाज, शादी, मकान, विकास और सुरक्षा के सम्बन्ध में पेश आने वाली चुनौतियों को हल कर सकता है लेकिन अगर ज्ञानी वर्ग की नीयत दूसरों के शोषण की हो जाए तो फिर आम लोगों का विकास नहीं बल्कि उनका विनाश होता है।
मेरी नज़र में सब समस्याएं तो जीवन की चुनौतियाँ हैं लेकिन वास्तव में जो सबसे बड़ी समस्या है, वह है ज्ञानी वर्ग की नीयत और उसके कर्म का बिगड़ जाना। ऐसे बिगड़े हुए ज्ञानी आपको हर ज़माने में और हर धर्म-मत में मिलेंगे। मुसलमानों में, हिन्दुओं में, सिखों में, ईसाईयों में और यहूदियों में सबमें ऐसे ज्ञानी मिलेंगे, जो धर्म के नाम पर शोषण करते हैं। ये ज्ञानी अपने समुदाय के लिए भी समस्या हैं और दूसरे समुदायों के लिए भी। बिगड़े हुए ज्ञानी अपनी कूटनीति से अपने समाज में सही नीयत और अच्छे कर्म वाले ज्ञानियों के मुक़ाबले ज़्यादा लोकप्रिय हो जाते हैं। ये लोगों में नफ़रत की भावना भड़काते हैं और उन्हें बदले के लिए उकसाते हैं। भावना में बहने के कारण लोग विवेक से काम लेना बन्द कर देते हैं। जिससे वे केवल भेड़ों की तरह उनके पीछे चलने के आदी हो जाते हैं। भीड़ जब भेड़ की तरह जीने लगती है, तब वह सोच विचार बन्द कर देती है। जिससे उसका विकास रूक जाता है। ऐसे में बिगड़े हुए ज्ञानी जुर्म को भी धर्म बता दें तो भीड़ उसे धर्म ही मानती है। जब बिगड़े हुए ज्ञानी अपने समाज में लोकप्रियता पा जाते हैं, तब वे प्रेम के बजाय नफ़रत और माफ़ी के बजाय इन्तेक़ाम की भावना लोगों के मन में भरते हैं। बार बार एक नफ़रत और इन्तेक़ाम का एक ही मैसेज मन में जाता है तो वह लोगों के अवचेतन मन का गहरा विश्वास बन जाता है। फिर लोग उस विश्वास के ग़ुलाम बन जाते हैं। उनकी भावनाएं बार बार भड़कती हैं और वे ज़रा ज़रा सी बात पर अपने ही जैसे लोगों को अपना दुश्मन समझकर उनसे लड़ते हैं।
जब ऐसा हो जाए, तब इस घातक माइन्ड प्रोग्रामिंग को बदलना ज़रूरी है। इसका एक तरीक़ा सबको जागरूक बनाना है। यह एक मुश्किल तरीक़ा है क्योंकि आम तौर से लोग अपने विश्वासों की जाँच करने के लिए तैयार नहीं होते। इसमें बुनियादी तौर पर लोगों को इन्सान के मन और प्रकृति के नियमों की सही जानकारी देकर यह सिखाया जाता है कि
1. कोई भी फ़ैसला लेने से पहले भलाई बुराई का विचार ज़रूर कर लिया जाए। जिस काम से सबका हित हो या किसी का अहित न हो, उस काम को अच्छे तरीक़े से किया जाए।
2. सबकी भलाई के मैसेज को सबके सामने बार बार दोहराया जाए ताकि वह जन गण मन का विश्वास बन जाए क्योंकि विश्वास के सही होने का असर व्यवहार पर ख़ुद ही पड़ता है।
हज़ारों साल पहले नबी नूह और इबराहीम अलै. ने यह किया और सबकी भलाई के लिए जो कुछ ज़रूरी था, वह सब किया। आज भी उनका नमूना हमें राह दिखाता है। मुसलमान, हिन्दू, यहूदी और ईसाई सबकी किताबों में इनका नाम बड़े आदर से लिया जाता है। ईसाई नूह को नोह और हिन्दू न्यूह व मनु कहते हैं। ईसाई इबराहीम को अब्राहम और हिन्दू ब्रह्मा कहते हैं। अब्राहम और ब्रह्मा नाम अंग्रेज़ी में लिखें जाएं तो इन में समानता और ज़्यादा प्रकट हो जाती है। केवल एक अक्षर ‘ए’ आगे से पीछे होता है और अलग अलग नामों के पीछे छिपी एक ही शख़्सियत सामने आ जाती है। जो आज भी मुस्लिम, हिन्दू, यहूदी और ईसाई, सबके लिए एकता का मज़बूत आधार है।
हिन्दू साहित्य में ईश्वर का एक सगुण नाम ब्रह्मा है। ईश्वर के इस पवित्र नाम पर कई ऋषियों के नाम हुए हैं। उन कई ऋषियों में से यह ब्रह्मा वह हैं जिनका निवास नाभिकमल पर बने तीर्थराज आदिपुष्कर में बताया जाता है। वैदिक इतिहास में इनकी एक और पहचान यह आई है कि वसिष्ठ से लड़ने के बाद विश्वामित्र तपस्या करने के लिए इन्हीं ब्रह्मा जी के पास आदि पुष्कर आए थे। इन्हीं के निर्देशन में साधना करने पर विश्वामित्र को गायत्री छन्द का ज्ञान हुआ। यह प्रथम काव्य था। गायत्री छन्द के रूप में वेद का का ज्ञान लेकर विश्वामित्र वसिष्ठ के पास आए तो वसिष्ठ ने उन्हें ब्रह्मर्षि की मान्यता दे दी।
आप विश्व का मानचित्र फैलाकर देख सकते हैं कि पृथ्वी के केन्द्र में प्राचीन तीर्थ मक्का स्थित है। इबराहीम यहीं रहते थे। तब मक्का में केवल एक ईश्वर को ही ईष्ट और इलाह माना जाता था। उसी से दुआ प्रार्थना की जाती थी। इस केन्द्र से यही ज्ञान हर तरफ़ फैलता था। यह ज्ञान भारत में भी आया। आज भी वेद और उपनिषदों के बहुत से मन्त्रों में यह ज्ञान मौजूद है। बाइबिल और क़ुरआन में इसी एक ज्ञान को बिल्कुल साफ़ देखा जा सकता है।
सभी सत्य ज्ञान का स्रोत एक ईश्वर को मानते हैं। सबके पास ईश्वर के प्रेम, समर्पण, क्षमा, दया, परोपकार और सन्मार्ग के सम्बन्ध में साफ़ आदेश मौजूद हैं। जिन्हें सब मिलकर मानते तो सब जीवन का आनन्द आसानी से ले रहे होते। ऐसा नहीं हो पाया क्योंकि धर्म के ग्रन्थों की व्याख्या ज्ञानी करते हैं और ज्ञानियों में दोनों तरह की मानसिकता के लोग मौजूद हैं। एक सच्चे और दूसरे पाखण्डी। एक न्यायकारी और दूसरे अन्याय करने वाले। एक सेवक और दूसरे शोषक। एक इन्सान और दूसरे शैतान। एक प्रेम अमृत बरसाने वाले और दूसरे नफ़रत की आग भड़काने वाले।
करबला का वाक़या मशहूर है। जिसमें यज़ीद के फ़ौजियों ने इमाम हुसैन र. को और उनके घर वालों को क़त्ल कर दिया था। इन क़ातिलों में ज्ञानी भी थे बल्कि कुछ तो उनके रिश्तेदार थे।
ईसा मसीह पर क़ातिलाना हमला करने वाले भी ज्ञानी थे।
राम-रावण युद्ध भी मशहूर है। रावण भी बहुत बड़ा ज्ञानी था।
महाभारत का युद्ध भी मशहूर है। वह भी एक ही संस्कृति के लोगों बल्कि एक ही परिवार के सदस्यों के बीच हुआ। ये सभी मशहूर वाक़ये हैं। इनमें आप दोनों प्रवृत्तियों को आसानी से पहचान सकते हैं। संस्कृति एक होने के बावजूद दो प्रवृत्तियाँ हमेशा से रही हैं और आज भी हैं। सबकी संस्कृति एक होने से लोगों में प्रेम और शाँति हुआ करती तो वाक़या करबला न होता, न राम-रावण युद्ध होता और न महाभारत होता।
जब एक संस्कृति के दो लोग आपस में टकराते हैं तो उस समाज के लोगों के लिए यह पहचानना थोड़ा आसान होता है कि कौन शैतान या रावण पक्ष कौन है?
...लेकिन जब यह टकराव दो संस्कृतियों के बीच होता है तो किसी भी संस्कृति के आम लोग यह नहीं मानते कि शैतान या रावण पक्ष उनकी संस्कृति वाला है। यह एक पेचीदा मनोवैज्ञानिक मसला है। इसे मुसलमानों को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए क्योंकि यह लेख मुसलमानों को उनकी समस्याओं का हल देने के लिए लिखा जा रहा है और जो कुछ करना है, अपने लिए उन्हें ख़ुद ही करना है।
मुसलमान हिन्दुओं के दुश्मन नहीं हैं और वे उनका बुरा नहीं चाहते। जितना हो सकता है, मुसलमान उनके साथ भलाई का बर्ताव करते हैं। यह बात मुसलमान जानते हैं क्योंकि वे अपने दिल की हालत तो जानते ही हैं। इस बात को आम हिन्दू भी जानते हैं। ठीक ऐसे ही आप देख सकते हैं कि भारत के हिन्दू मुसलमानों के दुश्मन नहीं हैं और वे उनका बुरा नहीं चाहते। जितना हो सकता है, हिन्दू भी मुसलमानों के साथ भलाई का बर्ताव करते हैं। स्कूल, अस्पताल, रेलवे स्टेशन, स्टेडियम, मज़ार, मन्दिर, गाँव और शहर; हर जगह आप हिन्दू मुस्लिम एकता को देख सकते हैं। हम सब एक हैं। यह एक सच्चाई है। इसी के साथ यह भी सच है कि मुसलमानों और हिन्दुओं के बीच कुछ शैतान और रावण भी हैं। जिन्हें यह एकता सहन नहीं होती। अपने राजनैतिक क़ब्ज़े के लिए ये दोनों में नफ़रत भड़काते हैं। एक को दूसरे से डराते हैं। एक को दूसरे पर हमले के लिए उकसाते हैं। आम लोग इस शैतान और रावण को अपनी संस्कृति का समझकर अपना शुभचिन्तक समझ लेते हैं। यह आम लोगों की भूल है। मुसलमान यह भूल न करें।
(...जारी)
सभी सत्य ज्ञान का स्रोत एक ईश्वर को मानते हैं। सबके पास ईश्वर के प्रेम, समर्पण, क्षमा, दया, परोपकार और सन्मार्ग के सम्बन्ध में साफ़ आदेश मौजूद हैं। जिन्हें सब मिलकर मानते तो सब जीवन का आनन्द आसानी से ले रहे होते। ऐसा नहीं हो पाया क्योंकि धर्म के ग्रन्थों की व्याख्या ज्ञानी करते हैं और ज्ञानियों में दोनों तरह की मानसिकता के लोग मौजूद हैं। एक सच्चे और दूसरे पाखण्डी। एक न्यायकारी और दूसरे अन्याय करने वाले। एक सेवक और दूसरे शोषक। एक इन्सान और दूसरे शैतान। एक प्रेम अमृत बरसाने वाले और दूसरे नफ़रत की आग भड़काने वाले।
करबला का वाक़या मशहूर है। जिसमें यज़ीद के फ़ौजियों ने इमाम हुसैन र. को और उनके घर वालों को क़त्ल कर दिया था। इन क़ातिलों में ज्ञानी भी थे बल्कि कुछ तो उनके रिश्तेदार थे।
ईसा मसीह पर क़ातिलाना हमला करने वाले भी ज्ञानी थे।
राम-रावण युद्ध भी मशहूर है। रावण भी बहुत बड़ा ज्ञानी था।
महाभारत का युद्ध भी मशहूर है। वह भी एक ही संस्कृति के लोगों बल्कि एक ही परिवार के सदस्यों के बीच हुआ। ये सभी मशहूर वाक़ये हैं। इनमें आप दोनों प्रवृत्तियों को आसानी से पहचान सकते हैं। संस्कृति एक होने के बावजूद दो प्रवृत्तियाँ हमेशा से रही हैं और आज भी हैं। सबकी संस्कृति एक होने से लोगों में प्रेम और शाँति हुआ करती तो वाक़या करबला न होता, न राम-रावण युद्ध होता और न महाभारत होता।
जब एक संस्कृति के दो लोग आपस में टकराते हैं तो उस समाज के लोगों के लिए यह पहचानना थोड़ा आसान होता है कि कौन शैतान या रावण पक्ष कौन है?
...लेकिन जब यह टकराव दो संस्कृतियों के बीच होता है तो किसी भी संस्कृति के आम लोग यह नहीं मानते कि शैतान या रावण पक्ष उनकी संस्कृति वाला है। यह एक पेचीदा मनोवैज्ञानिक मसला है। इसे मुसलमानों को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए क्योंकि यह लेख मुसलमानों को उनकी समस्याओं का हल देने के लिए लिखा जा रहा है और जो कुछ करना है, अपने लिए उन्हें ख़ुद ही करना है।
मुसलमान हिन्दुओं के दुश्मन नहीं हैं और वे उनका बुरा नहीं चाहते। जितना हो सकता है, मुसलमान उनके साथ भलाई का बर्ताव करते हैं। यह बात मुसलमान जानते हैं क्योंकि वे अपने दिल की हालत तो जानते ही हैं। इस बात को आम हिन्दू भी जानते हैं। ठीक ऐसे ही आप देख सकते हैं कि भारत के हिन्दू मुसलमानों के दुश्मन नहीं हैं और वे उनका बुरा नहीं चाहते। जितना हो सकता है, हिन्दू भी मुसलमानों के साथ भलाई का बर्ताव करते हैं। स्कूल, अस्पताल, रेलवे स्टेशन, स्टेडियम, मज़ार, मन्दिर, गाँव और शहर; हर जगह आप हिन्दू मुस्लिम एकता को देख सकते हैं। हम सब एक हैं। यह एक सच्चाई है। इसी के साथ यह भी सच है कि मुसलमानों और हिन्दुओं के बीच कुछ शैतान और रावण भी हैं। जिन्हें यह एकता सहन नहीं होती। अपने राजनैतिक क़ब्ज़े के लिए ये दोनों में नफ़रत भड़काते हैं। एक को दूसरे से डराते हैं। एक को दूसरे पर हमले के लिए उकसाते हैं। आम लोग इस शैतान और रावण को अपनी संस्कृति का समझकर अपना शुभचिन्तक समझ लेते हैं। यह आम लोगों की भूल है। मुसलमान यह भूल न करें।
Very knowledgeable for me. Jazak allahu khairn kaseera.
ReplyDeleteAwesome article....
ReplyDelete