मेरे व्हाट्स एप ग्रुप 'दावा सायकोलॉजी' पर आज हुई बातचीत यहाँ सबकी तालीम के लिए पेश कर रहा हूँ।
Mushtaq Ahmad: Surat No 4 : Ayat No 140
وَ قَدۡ نَزَّلَ عَلَیۡکُمۡ فِی الۡکِتٰبِ اَنۡ اِذَا سَمِعۡتُمۡ اٰیٰتِ اللّٰہِ یُکۡفَرُ بِہَا وَ یُسۡتَہۡزَاُ بِہَا فَلَا تَقۡعُدُوۡا مَعَہُمۡ حَتّٰی یَخُوۡضُوۡا فِیۡ حَدِیۡثٍ غَیۡرِہٖۤ ۫ ۖاِنَّکُمۡ اِذًا مِّثۡلُہُمۡ ؕ اِنَّ اللّٰہَ جَامِعُ الۡمُنٰفِقِیۡنَ وَ الۡکٰفِرِیۡنَ فِیۡ جَہَنَّمَ جَمِیۡعَا ۨ ﴿۱۴۰﴾ۙ
اور اللہ تعالیٰ تمہارے پاس اپنی کتاب میں یہ حکم اتار چکا ہے کہ تم جب کسی مجلس والوں کو اللہ تعالٰی کی آیتوں کے ساتھ کفر کرتے اور مذاق اڑاتے ہوئے سنو تو اس مجمع میں ان کے ساتھ نہ بیٹھو! جب تک کہ وہ اس کے علاوہ اور باتیں نہ کرنے لگیں ، ( ورنہ ) تم بھی اس وقت انہی جیسے ہو یقیناً اللہ تعالٰی تمام کافروں اور سب منافقوں کو جہنم میں جمع کرنے والا ہے ۔
क्या कोई इस आयत का अर्थ समझा सकता है, वो इसलिए कि हम लोग कुछ ऐसे ग्रुप में होते हैं जहां इस्लाम का मज़ाक उड़ाया जाता है क़ुरआन कि आयतों का मज़ाक उड़ाया जाता है, रसूल अल्लाह का मज़ाक उड़ाया जाता है। इस आयत की रोशनी में क्या हमें वो ग्रुप छोड़ देना चाहिए।।
इस पर आप लोग अपनी राय दें।
दलील के साथ देंगे तो और अच्छा रहेगा।
*👆👆इस पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें*
Dr. Anwer Jamal: यह आयत उन आम लोगों के लिए है जो अल्लाह की मज़ाक़ उड़ाई जाते देखकर अपने व्यापारिक और खानदानी हितों के लिए उनकी हां में हां मिलाते हों या चुप रह जाते हों
लेकिन जो धर्म प्रचारक उनकी बातों का जवाब दे सकते हैं और उन्हें उनके ग़लत होने पर ध्यान दिला सकते हैं या उन्हें ऐसा करने से किसी भी तरह से रोक सकते हैं या उनके चंगुल में दूसरों को फंसने से बचा सकते हैं; उन धर्म प्रचारकों के लिए यह आयत नहीं है। उनके लिए वे दूसरी आयते हैं जिनमें उन्हें मजाक़ उड़ाने वालों को उस बुरे काम से रोकने का हुक्म दिया गया है।
धर्म के प्रचारक समाज में शांति और न्याय व्यवस्था की स्थापना के लिए ऐसे ग्रुपों में सही बात सामने लाने के लिए जुड़े रह सकते हैं।
Mushtaq Ahmad: 🌹🌹Jazakallahu Khairan Sir🌹🌹
लेकिन उसमें भी कई ऐसे लोग होते हैं जो आपकी बात नहीं मानते उल्टे सीधे आरोप लगाते रहते हैं। चाहे आप उनके आक्षेप का उत्तर दे चुके हों तब भी वो मानते नहीं और लगातार मज़ाक उड़ाते और गंदे गंदे शब्द का उपयोग करते हों। फिर चाहे वो नबी सल्ल. की हज़रत आयशा से शादी को लेकर हों या और भी बहुत कुछ। इन बातों को आप हमसे अच्छी तरह से जानते हैं। क्यूंकि इन बातों का सामना बहुत किया है।
Dr. Anwer Jamal: उनकी बात सुनकर ईसा अलैहिस्सलाम ने कहा, “जो भले-चंगे हैं उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है। (इंजील)
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मुश्ताक़ भाई, एक दाई दिल (के नज़रिये) का डाक्टर होता है।
मैंने ऐसे लोगों को फ़ेस किया है। अल्लाह की मदद से इन्हें मग़्लूब किया है। आपमें से कुछ लोग दीन के एहकाम मुझसे ज़्यादा जानते हैं तो भी मैं यह 'फ़न' जानता हूं कि बहस में हमेशा दलील के साथ कैसे ग़ालिब रहें।
याद रखें कि बहस में ग़ालिब आने का ताल्लुक़ इल्म से कम और हिकमत (तकनीक) से ज़्यादा है।
कम इल्म रखते हुए भी आप हमेशा बहस में ग़ालिब आ सकते हैं।
सिर्फ़ कटहुज्जती करने वाले हठधर्म आपसे मग़्लूब होकर भी आपकी बात न मानेंगे लेकिन वे भी हमेशा आपकी बात पर लाजवाब हो जाएंगे।
बाक़ी पाठक दिल में आपसे सहमत हो जाएंगे और ख़ामोश रहेंगे और इक्का दुक्का लोग वहीं समर्थन भी कर देंगे।
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मैंने अपने इन तजुर्बात को ही दावा सायकोलॉजी की शक्ल दी है क्योंकि अल्लाह, इस्लाम, नबी, अहले बैत, सहाबा और सच की मज़ाक़ उड़ाने वाले साइकोलॉजिकल पेशेंट (दिल के मरीज़) हैं। उनके दिलों के रोग को दूर करने के लिए अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन को उतारा है।
एक दाई (दीन का शिक्षक) इस दवा को उनके हवास (सेंसेज़) के ज़रिये हिकमत के साथ उनके दिलों में उतारता है।
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जो आदमी अवचेतन मन (subconscious mind) के काम करने का तरीक़ा जानता है, वह अपनी पसंद की बात सुनने वाले के दिल में बिना उसे पता चले उतार सकता है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
एक इमेज इस काम को बहुत आसानी से करती है।
इसलिए किसी इमेज को देखते हुए बहुत होशियार और ख़बरदार रहने की ज़रूरत है।
इसलिए किसी इमेज को देखते हुए बहुत होशियार और ख़बरदार रहने की ज़रूरत है।
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आज विकसित देशों की क़ौमें इस तकनीक से राजनीति और व्यापार में बहुत काम ले रही हैं।
सनातनी ब्राह्मण इस तकनीक से बहुत पुराने दौर से काम लेते आ रहे हैं।
कुछ दशक पहले उन्होंने भारत माता के जिस रूप की कल्पना की और उसके रूप का वह अलंकारिक चित्र बनाकर अपने फोलोवर्स को दिखाया, आज भारत उस रूप में मौजूद है।
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एक इमेज एक कान्सेप्ट होती है, जो सीधा सबकॉन्शियस माइंड यानी दिल में जाती है। उसे कॉन्शियस माइंड एनालाइज़ करके रोक नहीं पाता।
शब्दों में दिए गए मैसेज को चश्मा एंड एनालाइज करके उस पर सवाल खड़े कर सकता है और उसे सबकॉन्शियस माइंड में जाने से रोक सकता है। कॉन्शियस माइंड सबकॉन्शियस माइंड के लिए चौकीदार की तरह काम करता है और सब्कॉन्शियस माइंड एक स्टोर हाउस की तरह काम करता है
शब्दों में दिए गए मैसेज को चश्मा एंड एनालाइज करके उस पर सवाल खड़े कर सकता है और उसे सबकॉन्शियस माइंड में जाने से रोक सकता है। कॉन्शियस माइंड सबकॉन्शियस माइंड के लिए चौकीदार की तरह काम करता है और सब्कॉन्शियस माइंड एक स्टोर हाउस की तरह काम करता है
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जब आप कोई तस्वीर देख रहे होते हैं तो आप एक बहुत नाज़ुक मरहले से गुज़र रहे होते हैं। वह तस्वीर एक मैसेज होती है।
वह मैसेज आपकी लाइफ़ को सपोर्ट भी कर सकता है और आपकी लाइफ़ को डैमेज भी कर सकता है।
जो कुछ आप एक तस्वीर की शक्ल में देखते हैं वह सीधा आपके दिल पर नक़्श हो रहा होता है।
जो कुछ आपके दिल पर नक्श हो जाएगा वह अपने ठीक टाइम पर किसी न किसी शक्ल में आपकी ज़िंदगी में खुद ज़ाहिर हो जाएगा।
आपके दिल में तख़्लीक़ी सिफ़त (creation power) है। यह बात आप नहीं जानते।
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जब कुछ अच्छी या बुरी घटनाएं एक आदमी के जीवन में प्रकट होती है तो वह हैरान रह जाता है कि मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया कि यह घटना मेरे जीवन में आती।
अगर वह व्यक्ति अपनी देखी गई छवियों को याद करे तो वह अपने जीवन में सहज रूप से प्रकट होने वाली अधिकतर घटनाओं का सोर्स पता कर सकता है कि इन घटनाओं को जन्म उसने तब दिया था जब उसे होश नहीं था और वह कुछ छवियों को देख रहा था।
देखी गई छवियां देखने वाले के जीवन में अपने अनुरूप घटनाओं के रूप में साकार होती हैं।
नबी सुलैमान अलैहिस्सलाम के हुक्म पर उनके लिए जिन्न प्रतिमाएं (तमासील تماثیل) बनाया करते थे। देखें पवित्र क़ुरआन 34:12-13
प्राचीन काल के लोगों को इस रहस्य का पता था। वे तालीम और यादगार जैसे दूसरे मक़सद के अलावा मैसेज देने के लिए भी धन, समृद्धि और विजय की छवियों और मूर्तियाँ बनवाया करते थे।
सभी विकसित संस्कृतियों में यह रिवाज आम था।
बाद में बहुत लोगों को यह पता नहीं रहा कि ज्ञानी लोगों ने उनका निर्माण किस उद्देश्य से किया था। तब वह काम परंपरा और रूढ़ि बन गईं और वह बिगड़ कर मूर्ति पूजा के रूप में प्रचलित हो गया।
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह कहते थे कि हिन्दू भाईयों में शिर्क (मूर्ति पूजा आदि) के रिवाज का कारण यह नहीं है कि इनके पास सत्य ज्ञान नहीं था बल्कि इसका कारण अपने धार्मिक ग्रंथों में मौजूद मुतशाबिहाती इल्म (गूढ़ ज्ञान) को ठीक से न समझ पाना है। आप उन्हें उनकी उलझी हुई गुत्थी को सुलझाने में मदद करें।
मौलाना ज़िन्दगी भर लोगों को मुतशाबिहाती इल्म (divine secrets) देकर उन्हें उस ग़लती के प्रति जारूक करते रहे, जो उनसे गूढ़ ज्ञान को समझने में हुई थी।
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दावत का एक पोशीदा रूहानी तरीक़ा
आप आज हिन्द में किसी सनातन धर्मी व्यापारी की दुकान पर जाएं तो आप देखेंगे कि उसने अपनी दुकान में लक्ष्मी देवी का एक चित्र लगा रखा है जिसके दोनों हाथों से सोने के सिक्के झड़ रहे हैं और नीचे के बर्तन सोने के सिक्कों से भरे होते हैं और कुछ सिक्के ज़मीन पर भी गिर रहे हैं।
इस चित्र में प्रचुरता यानि abundance दर्शाई गई है जो कि व्यापारी का लक्ष्य और मुराद है। यह चित्र भरपूर दौलत का एक कान्सेप्ट है। जब आप लगातार अपनी मुराद को अपनी नज़र में हाज़िर रखते हैं तो आप उसे आलमे अम्र (सूक्ष्म आत्मिक जगत) से आलमे ख़ल्क़ (स्थूल भौतिक जगत) में आने की दावत देते हैं। यह दावत का एक पोशीदा रूहानी तरीक़ा है। जब आप अपनी मुराद पर ज़्यादा लोगों की तवज्जो फ़ोकस करते हैं तो फिर वह मुराद ज़्यादा लोगों की तवज्जो पाकर ज़्यादा फलती फूलती चली जाती है। जब आप किसी बड़े समूह का भला करना चाहें तो उस उस उस समूह की तवज्जो अपनी मुराद पर फ़ोकस कर दें और बार बार लेक्चर देकर उनकी तवज्जो अपनी मुराद पर फ़ोकस किए रखें। यहाँ तक कि आपकी मुराद उन सबकी मुराद बन जाए और जैसे आप उस मुराद के अनुकूल काम कर रहे हैं, वैसे ही वे भी करने लगें।
आप इस पोशीदा रूहानी राज़ को अपनी और सबकी फ़लाह और कल्याण के लिए समझें और इसे अपनी दावत में इस्तेमाल करें।
एक व्यापारी अपनी नज़र के सामने सुबह से शाम तक abundance यानि प्रचुरता देखता रहता है और फिर उसी के अनुकूल कर्म भी करता है तो वह abundance उसके जीवन में प्रकट हो जाती है। भरपूर दौलत और ख़ुशहाली को ज़िन्दगी में बुलाने (दावत देने) के लिए व्यापार एक अनुकूल कर्म है।
वह व्यापारी समझता है कि लक्ष्मी जी की उस पर कृपा है जबकि यह सब उसकी मानसिक शक्ति का परिणाम है जिसका वह अपने हित में अनकॉन्शियसली यानि बिना ज्ञान के प्रयोग कर रहा है।
यह रब का क़ानून है, जो यूनिवर्स में काम कर रहा है।
जो आप देखते हैं, उसे आप आकर्षित करते हैं।
इसलिए हमेशा अपने मन में अपने लक्ष्य और अपनी मुराद को बिल्कुल साफ़ देखते रहें, जैसे कि मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह देखते थे कि लोग मूल धर्म का ज्ञान पाने के बाद परमात्मा (प्रथम आत्मा) और अहमद के एक होने का ज्ञान पाकर एक हो चुके हैं। सब लोग मिलकर मंदिरों में बा-जमाअत नमाज़ पढ़ रहे हैं।
उनके बोल सुनकर मैं भी यह मंज़र अपने दिल में देखता था और फिर यह मंज़र मेरे जीवन में ऐसे प्रकट हुआ कि मैं ग्वालियर मध्यप्रदेश गया तो ग्वालियर में मेरे मेज़बान हिंदू भाई ने मुझे नमाज़ पढ़ने के लिए अपने पूजा के कमरे में खड़ा कर दिया। जिसमें दर्जनों मूर्तियां रखी हुई थीं और मुझे उस कमरे में सिर्फ एक मुसल्ला बिछाने की जगह भी बड़ी मुश्किल से नजर आई। मैंने उसमें नमाज़ पढ़ी।
यह 14 बरस पहले की घटना है। तब मैं नहीं जानता था कि मेरे जीवन में यह घटना क्यों प्रकट हुई?
आज यह मंज़र फिर से एक नये रूप में प्रकट हुआ है। मैं अब जिस मकान में रहता हूं। उसमें पहले एक हिंदू भाई रहते थे और उन्होंने उसके आंगन में पूजा करने के लिए एक पत्थर गाड़ रखा था, जो अब भी गड़ा हुआ है और मैं उसी आंगन में नमाज़ पढ़ता हूं।
ये कुछ शुरूआती संकेत हैं कि जो कुछ हमने अपनी कल्पना में देखा है और जिसका हमें विश्वास है, वह घटना भी अपने सही समय पर सहज ही प्रकट होकर समाज का सच बन जाएगी।
इन् शा अल्ल्लाह!
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दावा साइकोलॉजी सब्जेक्ट के ज़रिए मैं दाई भाई बहनों को यही बात समझाने की कोशिश करता हूं कि आपकी बाहर की कोशिश भले ही छोटी हो लेकिन आप अपने मन में विज़न हमेशा बहुत बड़ा रखें।
आप अपने मन में बड़ा लक्ष्य एक क्रिस्टल क्लियर इमेज के रूप में हमेशा सामने रखें, तब दावत का काम करें। इससे आपकी दावत उसी सपने (vision) को साकार करने की तरफ़ चलेगी, जिसे आप अपनी कल्पना में देख रहे हैं और इसमें ज़मीनो आसमान की नेचुरल फोर्सेज़ आपकी मदद करेंगी। जिसे हम दीनी ज़ुबान में रब के हुक्म से फ़रिश्तों की ग़ैबी मदद आना कहते हैं।
जो चीज़ें आसमानों में हैं और जो ज़मीन में हैं, उस (रब) ने उन सबको अपनी ओर से तुम्हारे काम में लगा रखा है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है जो सोच-विचार से काम लेते हैं।
-पवित्र क़ुरआन 45:13
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मेरा मक़सद यही है कि आप अपने रब के क़ानूने क़ुदरत को समझें और अपने कामों में उसकी ग़ैबी मदद पाएं।
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जब मैं मूर्ति पूजकों को मन की शक्ति का विज्ञान और उसके लाभ समझाता हूँ तो वे मूर्तियों में शक्ति मानना छोड़ देते हैं।
आप स्वयं जानते हैं कि
इंसान हमेशा से माल के पीछे है। वह मूर्ति पूजा इसीलिए करता है कि उसे माल या कोई और लाभ मिल जाए। जब उसे पता चलता है कि यह सब उसे अपने मन की शक्ति से मिलता है तो फिर वह बाहर के सहारों से आशा करना छोड़ देता है। उसका यह विश्वास ख़त्म हो जाता है कि बाहर की बेजान चीज़ें उसके दुख में उसकी कुछ मदद कर सकती हैं।
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बातिल (मिथ्या भ्रम) को मिटाना हो तो बातिल में लोगों के विश्वास को सत्य ज्ञान देकर ख़त्म करो।
आदमियों को समझाओ कि जो कुछ उन्हें चाहिए, उन्हें वह सब किससे और कैसे मिलेगा?
Mushtaq Ahmad: Jazakallahu khair sir
ये लेख लिखने के लिए धन्यवाद।
आशा करता हूं कि इस ग्रुप के सभी सदस्यों को इस प्रकार की समस्याएं जो सामने आती है। इससे सभी को मार्गदर्शन मिलेगा।
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