यह एक अनोखा लेख है, जो आपको इस्लाम के सनातन और सार्वकालिक सत्य रूप का परिचय देता है। आप इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें।
✨💖✨
इस्लाम का अर्थ ईश्वर की आज्ञा और उसके नियमों का पूर्ण समर्पण के साथ पालन करना है।
सबसे पहले आप इस बात को अच्छी तरह समझ लें और फिर आप देख लें कि इस यूनिवर्स में जो सबसे पहले बना, वह अपने बनने के साथ ही अपने रचयिता का पाबंद हो गया था। हर चीज़ में एक डिज़ाइन है और हर चीज़ क़ानून के अनुसार चलती है। जब डिज़ाइन है तो डिज़ाइनर भी है और क़ानून है तो कोई उसका बनाने वाला और उसे क़ायम रखने वाला भी है, यह एक सामान्य बुद्धि की बात है।
आप हर एक चीज़ को देख सकते हैं कि हर एक चीज़ में डिज़ाइन है और यूनिवर्स की सारी चीज़ें आपस में तालमेल के साथ क़ानून के अनुसार काम कर रही हैं। उसी कानून को जानने और समझने का काम विज्ञान करता है और विज्ञान अभी तक एक बाल की भी पूरी स्टडी नहीं कर सका है कि विज्ञान यह कह दे कि अब बाल के बारे में जानने के लिए कुछ शेष नहीं बचा है। यूनिवर्स में एनर्जी के जितने रूप नज़र आते हैं उससे ज्यादा एनर्जी डार्क एनर्जी है। जिसके बारे में भी विज्ञान कुछ नहीं जानता। ऐसे में ईश्वर और दीन धर्म का इन्कार करना एक अवैज्ञानिक बात है।
इस सबके बावजूद यूनिवर्स में शांति है। यूनिवर्स का धर्म शांति है। अरबी शब्द इस्लाम जिस धातु से बना है, उसका अर्थ शांति है।
आप यूनिवर्स में हर जगह यूनिवर्स के रचयिता का आज्ञा पालन देखेंगे और शांति देखेंगे। वह रचयिता यह चाहता है कि मनुष्य भी आज्ञापालन करे, नियम पर चले और शांति से रहे। इसीलिए उसने शांति के नियमों का ज्ञान दिया और आदेश दिया कि इनका पालन करो। आप भी शांति के नियमों का इंकार ना करो बल्कि इनका पालन करो। सदा से यही धर्म है। सबका एक यही धर्म है कि शांति से अपने रचयिता के विधान को मानो। उसके शुक्रगुज़ार (क़द्रदान) बनो, परोपकार करो। यही संस्कृत में सनातन धर्म है। इसका दूसरी अलग भाषा में कोई और नाम हो सकता है। सबका एक ही धर्म है। इसीलिए हर धर्म में अच्छे गुण अपनाने को और भलाई करने को कहा गया है। यह इतना अनिवार्य काम है कि ईश्वर और धर्म का इन्कार करने वाला भी अच्छे गुण अपनाने और भलाई करने को कहता है।
दीन धर्म के समझने में आलिम, पंडित और पादरी से भूल चूक हो सकती है, किसी को उसकी व्याख्या से मतभेद हो तो यह बात अलग है। समझने और समझाने की नीयत से आलोचना, समीक्षा, विचार-विमर्श, उत्तर-प्रत्युत्तर और शास्त्रार्थ चलते रहना चाहिए।
सभी महापुरुष किसी न किसी रूप में इस्लाम अर्थात शांति और आज्ञापालन से ही जुड़े हुए थे, चाहे वे नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले आए हों। हम सबका सम्मान करते हैं। हम सबको अपना मानते हैं।
No comments:
Post a Comment