आज मैंने एक कमेंट पढ़ा। जिसमें आलिमों के ख़िलाफ़ बहुत सख़्त ज़ुबान इस्तेमाल की है। देखिए-
मुस्लिमों ने ही अपने जाहिल मौलवियों के कहने में आकर अल्पसंख्यक वैदिक हिंदुओं को बहुसंख्यक माना है जबकि हिंदू केवल 15% हैं।
आदिवासी सरना धरम को मानते हैं। लिंगायत, बौद्ध, जैन, सिख, दलित और वेदों के विरोधियों के पंथों को अलग कर दें तो वैदिक हिंदू भारत में अल्पसंख्यक हैं। मुस्लिम यह राज़ समझकर कोई प्रोग्राम न बना लें; वैदिक हिंदू इस बात से डरे हुए हैं।
जब मुस्लिम इस बात को समझ लेंगे तो वे यहां बहुसंख्यक बन जाएंगे क्योंकि वे 18% से ज़्यादा है।
संघ और कांग्रेस ने मौलवियों को झांसा दिया है और नेता बने हुए मौलवियों की अक़्ल घास चरने गई हुई थी जो वे पहले कांग्रेस के और अब संघ के क़ौल पर ईमान लाए कि हिंदू बहुसंख्यक हैं।
जिन्हें राम मंदिर में कमाने का मौक़ा मिला है, उनकी जातियाँ देखो। बस वही जाति वर्ण हिंदू हैं। बाक़ी जबरन बनाए गए दास और सेवक हैं।
समीक्षा:
दावा सायकोलॉजी आपको नर्मी और हिकमत की तालीम देती है। जब आप कमेंट करें तो आलिमों के ख़िलाफ़ सख़्त ज़ुबान इस्तेमाल न करें वर्ना उनके मुरीद भड़क जाएंगे। मुरीद कभी नहीं मान सकते कि उनके पीर साहब के फ़ैसले ग़लत थे।
कांग्रेस और आरएसएस से भी अच्छी बातें सीखें कि वे कैसे नाकुछ से कुछ और भी राजनीति में सब कुछ हो गए।
अल्लाह ने हर चीज़ में हमारे लिए शिक्षा रखी है। वही शिक्षा लेना और देना हमारा काम है।
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