दावत ए दीन में जिन कल्याणकारी नियमों को सिखाया जाता है, उनमें एक है सदक़ा यानि दान।
आम लोगों को कथाएं बहुत पसन्द हैं। आप उन्हें कथाओं के माध्यम से शिक्षित करेंगे तो वे ज़्यादा आसानी से प्रभावित हो जाएंगे। कथाएं और सच्चे क़िस्से भी बहुत से हैं। आप ऐसा क़िस्सा चुनिए, जिसमें हिन्दू-मुस्लिम प्रेम का तत्व भी मौजूद हो। ऐसे लोगों का क़िस्सा हो, जिन्हें हिन्दुस्तान के लोग पहचानते हों, उन्हें आदर देते हों।
आम लोगों को कथाएं बहुत पसन्द हैं। आप उन्हें कथाओं के माध्यम से शिक्षित करेंगे तो वे ज़्यादा आसानी से प्रभावित हो जाएंगे। कथाएं और सच्चे क़िस्से भी बहुत से हैं। आप ऐसा क़िस्सा चुनिए, जिसमें हिन्दू-मुस्लिम प्रेम का तत्व भी मौजूद हो। ऐसे लोगों का क़िस्सा हो, जिन्हें हिन्दुस्तान के लोग पहचानते हों, उन्हें आदर देते हों।
मिसाल के तौर पर आप रहीम और तुलसीदास जी के क़िस्से को देखिए-
रहीम एक बहुत बड़े दानवीर थे। उनकी ये एक खास बात थी कि जब वो दान देने के लिए हाथ आगे बढ़ाते तो अपनी नज़रें नीचे झुका लेते थे।
ये बात सभी को अजीब लगती थी कि ये रहीम कैसे दानवीर हैं। ये दान भी देते हैं और इन्हें शर्म भी आती है।
ये बात जब तुलसीदास जी तक पहुँची तो उन्होंने रहीम को चार पंक्तियाँ लिख भेजीं जिसमें लिखा था-
*ऐसी देनी देन जु*
*कित सीखे हो सेन।*
*ज्यों ज्यों कर ऊँचौ करौ*
*त्यों त्यों नीचे नैन।।*
इसका मतलब था कि रहीम तुम ऐसा दान देना कहाँ से सीखे हो? जैसे जैसे तुम्हारे हाथ ऊपर उठते हैं वैसे वैसे तुम्हारी नज़रें तुम्हारे नैन नीचे क्यूँ झुक जाते हैं?
रहीम ने इसके बदले में जो जवाब दिया वो जवाब इतना गजब का था कि जिसने भी सुना वो रहीम का क़ायल हो गया।
इतना प्यारा जवाब आज तक किसी ने किसी को नहीं दिया।
रहीम ने जवाब में लिखा-
*देनहार कोई और है*
*भेजत जो दिन रैन।*
*लोग भरम हम पर करैं*
*तासौं नीचे नैन।।*
मतलब, देने वाला तो कोई और है वो मालिक है वो परमात्मा है वो दिन रात भेज रहा है। परन्तु लोग ये समझते हैं कि मैं दे रहा हूँ रहीम दे रहा है। ये सोच कर मुझे शर्म आ जाती है और मेरी आँखें नीचे झुक जाती हैं।
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