दावत के काम में माल की ज़रूरत भी पड़ती है। लोगों के पास जाने में और लोगों के अपने पास आने में, दोनों में कई तरह से माल ख़र्च होता है। उनके चाय-नाश्ते में, आॅडियो-वीडियो और किताबें देने में भी माल ख़र्च होता है। हक़ क़ुबूल करने वाले नए साथियों की मदद के लिए भी माल की ज़रूरत पड़ती है। अनाथ आश्रमों, मदरसों, मस्जिदों और राहत कार्यों में भी माल देना पड़ता है। इसके अलावा दीन के दाई के ऊपर घर बनाने, निकाह करने, नर्सिंग होम्स के बिल देने, अपने बच्चों की फ़ीस जमा करने और दूसरे घरेलू कामों में भी माल ख़र्च करने की ज़िम्मेदारी होती है।
जब तक एक दाई समाज में रहेगा, तब तक उसे माल की ज़रूरत पड़ती रहेगी। कोई दाई लोगों से चन्दा लेकर किताबें वग़ैरह तो बाँट सकता है लेकिन उसे अपना घर ख़र्च चलाने के लिए भी माल की ज़रूरत है। जिसका इन्तेज़ाम उसे ख़ुद करना पड़ता है। किसी दाई का घर-ख़र्च समाज नहीं देता।
अल्लाह ने इन्सान की इस सबसे अहम ज़रूरत को पूरा करने के लिए हुक्म दिया है कि
1. फिर जब नमाज़ पूरी हो जाए तो धरती में फैल जाओ और अल्लाह का उदार अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो, और अल्लाह को बहुत ज़्यादा याद करते रहो, ताकि तुम सफल हो।
-क़ुरआन 62:10
2. इसमें तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि (हज यात्रा के दौरान) अपने रब का अनुग्रह तलब करो।
-क़ुरआन 2:198
कमाई के लिए मज़दूरी, दस्तकारी, खेती, नौकरी और बिज़नेस आते हैं। दाई को पूरी छूट है कि वह जायज़ तरीक़े से इनमें से जिस काम के ज़रिये कमाना चाहे कमा ले। ये सब काम करके दाई कमा रहे हैं। अल्हम्दुलिल्लाह!
हमने देखा है कि मज़दूरी और दस्तकारी के ज़रिये कमाने वालों को ग़रीब और तंगदस्त पाया। खेती और और नौकरी करने वालों के पास मज़दूरों और कारीगरों से ज़्यादा रूपया देखा लेकिन फिर भी इनकी आय सीमित ही होती है। ज़्यादातर लोग छोटी या औसत दर्जे की नौकरियाँ करते हैं और ज़्यादातर किसानों के पास खेती की ज़मीन भी कम होती है।
बिज़नेस से जुड़े दाईयों को हमने ज़्यादा बेहतर हालत में पाया। हमने उनके छोटे बिज़नेस को भी वक़्त के साथ बरकत पाते हुए और बढ़ते हुए देखा है।
अल्लाह की मदद और उसकी बरकत को ख़ुद हमने अपने बिज़नेस में भी देखा है और देख रहे हैं। हरेक दाई बिज़नेस के ज़रिये ‘अल्लाह का फ़ज़्ल’ तलाश कर सकता है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
जब हमने बिज़नेस की नीयत की तो हमारे पास एक रूपया भी नहीं था और हम पढ़ ही रहे थे। रब की रुबूबियत यानि परवरिश के बेहतरीन निज़ाम का एक उसूल यह है कि आप जिस काम की नीयत करते हैं, आपकी नीयत की वजह से उस काम के असबाब बनने लगते हैं।
हमारी नीयत के बाद हमारे पास कुछ रुपयों का इन्तेज़ाम हो गया। जो कि हमने उधार लिए थे और देखने में बहुत कम थे यानि कुल 2700/- रूपये मात्र।
रब की रुबूबियत यानि परवरिश के बेहतरीन इन्तेज़ाम में से यह भी है कि जब आप नेक नीयत के साथ नेक अमल भी करते हैं तो आपका तसव्वुर (कल्पना) हक़ीक़त बनने लगता है। अल्लाह ख़्वाब दिखाता है और फिर उनकी ताबीर भी वही ज़ाहिर करता है।
अल्लाह ने हमें इतना माल दिया, जो हमारी ज़रूरतों के काफ़ी था और जो हमारे सेल्फ़ कन्सेप्ट के ऐन मुताबिक़ था।
हम बरसों तब्लीग़ करते रहे लेकिन हमने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया कि हिन्दुस्तान में सबसे पहले मालाबार में जिन अरब सहाबा ने दावते दीन का काम किया था, वे भी बिज़नेस करते थे। अस्हाबे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मालाबार में तिजारत और दावत का सबसे बहु उम्दा नमूना क़ायम किया है।
यह हक़ीक़त जानने के बाद हिन्दुस्तान के दाईयों की आर्थिक समस्याओं का बेहतरीन हल सामने आ गया है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
Cheraman Juma Masjid at Kodungallur, Kerala |
आप दावत के साथ तिजारत (बिज़नेस) कर सकते हैं और आप तिजारत के साथ दावत भी दे सकते हैं। यह एक बेहतरीन काॅम्बिनेशन है। इसे हम आज़मा चुके हैं और अब भी यह अमल हमारी ज़िन्दगी में जारी है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
तिजारत की बरकतों पर जो बहुत सी हदीसें भी आई हैं, उन्हें भी एक दाई को अपनी नज़र के सामने रखना चाहिए। इससे वह अपने साथ हक़ क़ुबूल करने वाले नए साथियों की मदद भी अच्छी तरह कर पाएगा। सभी आत्म-निर्भर और ख़ुशहाल होंगे। जिसका असर उनकी दावत और परफ़ाॅर्मेन्स पर भी पड़ेगा।
जो लोग जमाअत बनाकर दावत का काम कर रहे हैं, उन्हें दावती तरबियती कैम्पों की तरह तिजारत की तरबियत देने वाले कैम्प भी लगाने चाहिएं।
इस एक काम से दाईयों को बहुत बड़ी ताक़त और आज़ादी नसीब होगी।
इन् शा अल्लाह!
हमने एक एक करके दावते दीन में लगे हुए कई बहन-भाईयों, मस्जिद के इमामों और हाफ़िजों को तिजारत की तरबियत दी है। वे सब अपने काम को बहुत अच्छा कर रहे हैं।
इसी के साथ हमने बहुत से हिन्दू बहन-भाईयों और बूढ़ों को भी बिज़नेस की ट्रेनिंग देकर आत्म-निर्भर बनाया है।
एक अनाथ आश्रम के बच्चे और संचालक हमारे पास चन्दे के लिए आया करते थे। हमने उन्हें क़ुरआन दिया और उन्हें भी यही तब्लीग़ की कि आप अल्लाह के नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखो, वह भी अनाथ थे। उन्होंने बिज़नेस किया लेकिन किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। आप भी माँगना बन्द कर दीजिए और सच्चाई और अमानतदारी के साथ बिज़नेस कीजिए। अल्लाह आपकी मदद करेगा। आपके हालात इतने अच्छे हो जाएंगे कि आप ही दूसरों की मदद करने लगेंगे।
उन्होंने चन्दा माँगना तो बन्द नहीं किया लेकिन अपने आश्रम की जगह में दुकानें बनाकर बिज़नेस शुरू कर दिया। कुछ वक़्त बाद उन्होंने बताया कि आपकी सलाह से हमें बहुत फ़ायदा पहुंच रहा है।
आप हिन्दुस्तान में रह रहे हैं, जहाँ बाज़ार भी हैं और ख़रीदार भी। बस एक ईमानदार और अमानतदार सच्चे बिज़नेसमैन की ज़रूरत है।
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