अल्लाह ने लोगों पर अपना माल ख़र्च करने वाले रहमदिल नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पूरा एकदम दिखाया और पवित्र क़ुरआन लोगों तक थोड़ा थोड़ा पहुंचाया ताकि लोग उसे जज़्ब कर सकें।
सिखाने का सही नेचुरल तरीक़ा यही है।
कुछ लोग इसके बिलकुल उल्टा करते हैं। ये लोग पूरा क़ुरआन एकदम देते हैं और उसके तर्जुमे में या साथ में सीरते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नहीं होती।
यह तरीक़ा अनाड़ियों का महबूब तरीक़ा है। इससे कुछ लोगों को फ़ायदा होता है लेकिन कुछ लोग कन्फ़्यूज़्ड भी होते हैं।
और ज़रूरतमंद लोगों की माल से मदद का पाइंट इन प्रचारकों की तब्लीग़ से ग़ायब होता है।
जबकि पवित्र क़ुरआन एक वैलनेस बुक, किताब बराय फ़लाह है और यह आख़िरत की फ़लाह के साथ दुनिया में फ़लाह की गारंटी देती है।
यह एक पावर पाईंट है।
इस्लाम के प्रचारक आम तौर पर इसे फ़लाह के मक़सद से न ख़ुद पढ़ते हैं और न बांटते हैं और न वे अपनी फ़लाह की समीक्षा करते हैं।
उनका मक़सद दूसरे लोगों का अक़ीदा बदलना होता है और ख़ुद भारतीय मुस्लिम समाज दुनिया की फ़लाह में कहाँ खड़ा है?
सबसे पीछे!
वे अपनी फ़लाह पर ध्यान नहीं देते क्योंकि मुस्लिम समाज की दुनियावी फ़लाह दीनी पेशवाओं के विज़न में है ही नहीं और जो बात विज़न में न हो, वह मिलेगी भी नहीं।
जो लोग जायज़ तरीक़े से दुनिया की फ़लाह की बात करते हैं, दीन की ग़लत और महदूद ताबीर रखने वाला धर्म प्रचारक ग्रुप उन्हें दुनिया का लालची और इख़लास से हटा हुआ मानता है।
एक दीनी जमात तो ऐसी है कि स्टूडेंट्स के सिर पर एग्ज़ाम हों या किसी व्यापारी का सीज़न चल रहा हो तो भी वे उन्हें अपनी जमाअत में समय देने के लिए कहते हैं।
हमें अपनी फ़लाह और पवित्र क़ुरआन के बारे में अपना मेंटल एटीट्यूड बदलने की ज़रूरत है।
यह बात बहुत ज़्यादा ध्यान देने के लायक़ है कि एक स्टडी के मुताबिक़ इंडिया में 47% लोग 225 रूपये प्रतिदिन कमाते हैं और इनमें भी 29 करोड़ लोग केवल 30 रूपये प्रतिदिन कमाते हैं।
इन लोगों के लिए ज़िन्दगी का जो सबसे बड़ा मसला है, वह दीन की दाई जमातों के लिए कोई मसला ही नहीं है क्योंकि उन अधिकतर जमातों को खा खा कर अघाए हुए लोग चला रहे हैं और उनके सामने फ़िलहाल रोज़ी कोई मसला नहीं है।
दैनिक हिन्दुस्तान 12 अप्रैल 2020 |
कुछ जमातें ज़लज़लों और महामारी के दिनों में भोजन और नक़द रूपए से लोगों की मदद करती हैं, जो क़ाबिले तारीफ़ है लेकिन यह वक़्ती मदद होती है। यह उन्हें ग़रीबी और भुखमरी से नहीं निकालती। इन लोगों को ऐसे रहमदिल मददगार शिक्षकों का इंतिज़ार है, जो इन्हें ग़रीबी और भुखमरी से निकलने की शिक्षा दे सकें जैसे कि नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दी और उसे ख़ुद करके दिखाया।
Solution:
1. पवित्र क़ुरआन बांटने से पहले सीरते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बांटें और उसके बाद मक्की सूरतों का एक छोटा सा मजमूआ बांटना हिकमत भरा अमल है।
2. एक ख़ास बात यह है कि सूरह क़ुरैश और सूरह कौसर में ग़रीबी और भुखमरी के ख़ात्मे का पूरा प्लान है।
3. इन बुक्स पर वेबसाईट्स का पता और मोबाईल नंबर्स भी हों ताकि किसी को कुछ पूछना हो तो वह पूछ ले।
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