रीहान भाई- Assalamualaikum warahmatullahi wabarakatu.
Sir kya vedo me ek ishwarvad ki taleem nhi h jaisa ki humne Abdullah Tariq sahab ki class ki to unhone bhi btaya aur Dr. Zakir Naik ne bhi btaya. sabhi Muslim scholers btate hain. agar is topic par koi post ho to kya aaplink send kr sakte hain?
DR. ANWER JAMAL- W alaykum assalam wrwb
JazakAllah. 🌹
आप जानते हैं कि क़ुरआन में सूरह इख़्लास में तौहीद की तालीम है।
आप शिया, सुन्नी, देवबंदी, बरेलवी और जमाते इस्लामी का उर्दू तर्जुमा देख लें या पंडित नन्द कुमार अवस्थी जी का हिंदी तर्जुमा या पिक्थाल का अंग्रेज़ी तर्जुमा देख लें।
आप किसी भी आलिम का, किसी भी देश के अनुवादक का और किसी भी भाषा का अनुवाद देख लें। आपको हरेक के अनुवाद में तौहीद ही मिलेगी। आपको ऐसा कोई मक़बूल अनुवाद न मिलेगा, जिसमें सूरह इख़लास का अनुवाद तौहीद के ख़िलाफ़ हो।
यह तौहीद का साफ़ और यक़ीनी बयान होता है और अल्लाह का कलाम या उसकी किताब का यह बुनियादी गुण होता है, जो उसमें ज़रूर पाया जाता है।
मैंने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पर उतरे कलामे इलाही के बाक़ी हिस्सों को पढ़ा तो देखा कि उसमें कुछ घट बढ़ होने के बावजूद तौहीद का साफ़ और यक़ीनी बयान मौजूद है। मैंने उनके कई संप्रदायों का अनुवाद पढ़ा लेकिन तौहीद का बयान करने वाली आयतों का अनुवाद सबमें समान था।
मैंने तीस साल से ज़्यादा वक़्त तक चारों वेद पढ़े लेकिन मुझे वेदों में तौहीद के साफ़ और असंदिग्ध बयान वाला एक भी सूक्त अब तक नहीं मिला है।
स्वामी दयानंद जी ने अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, दादा, परदादा, भाई और देवु आदि शब्दों के अर्थ बदलकर उन्हें परमेश्वर के नाम मान लिया और फिर जिन मंत्रों में अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, दादा, परदादा, भाई और देवी की इबादत या उनसे मदद की प्रार्थन की गई है या उनकी तारीफ़ की गई है, उनके अर्थ बदलकर परमेश्वरपरक अर्थात् तौहीद के अर्थ वाले बना डाले। यह उनकी व्याकरण की महारत का उम्दा प्रदर्शन कहला सकता है लेकिन उनकी इस धांधली की वजह से देश विदेश के वैदिक स्कालर्स ने उनके वेदानुवाद को उनके जीवन में ही स्वीकार करने से मना कर दिया था। स्वामी दयानन्द जी के अनुवाद को केवल आर्य समाजी मानते हैं जबकि सनातनी विद्वान सायण के वेदभाष्य को देश विदेश में सब मानते हैं और सायण के भाष्य में तौहीद नहीं मिलती। सनातनी विद्वान वेदों में देवी, देवताओं की इबादत को, अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश और दूसरी प्राकृतिक चीज़ों की इबादत करने और उन्हें नज़र चढ़ाने या उनके नाम पर क़ुरबानी करने की बात क़ुबूल करते हैं। क़ुरबानी के नाम पर चाहे वे नारियल ही क़ुरबान करते हों। उनकी रोज़ाना की ज़िन्दगी में वैदिक देवी देवताओं की इबादत के तरीक़े आसानी से सब देख सकते हैं।
अल्लामा सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब और डा० ज़ाकिर नाईक, दोनों जब वेद से तौहीद साबित करते हैं तो वे आर्य समाजी आनुवाद के हवाले देते हैं और इस तरह जाने अन्जाने में वे अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, दादा, परदादा, भाई और देवी को अल्लाह का नाम मान लेते हैं। जिसका खंडन क़ुरआन करता है और इसे 'इल्हाद फ़िल्-अस्मा' का बहुत बड़ा जुर्म और गुनाह क़रार देता है और अल्लाह इससे बचने का हुक्म देता है। अब अगर आप वेदों में तौहीद मानना चाहते हैं तो यह तभी मुमकिन है, जब आप अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, दादा, परदादा, भाई और देवी आदि चीज़ों के नामों को अल्लाह के नाम मान लें।
जिन दाईयों ने ख़ुद सनातनी और आर्य समाजी वेदभाष्यों की कम्पैरेटिव स्टडी नहीं की है और उन्हें समझने का कष्ट नहीं किया है। वे जब अल्लामा सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब और डा० ज़ाकिर नाईक के लेक्चर्स से वेदों के हवाले देकर दूसरों पर तौहीद साबित करते हैं, तब दरहक़ीक़त वे अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, दादा, परदादा, भाई और देवी आदि चीज़ों के नामों को अल्लाह के नाम मान रहे होते हैं और उन्हें इस बात का पता नहीं होता कि वे अल्लाह की नज़र में कितना बड़ा जुर्म और कितना बड़ा गुनाह कर रहे हैं।
जब वे कहते हैं कि हम क़ुरआन को कसौटी मानते हैं और हम हर बात को इसी की बुनियाद पर क़ुबूल और रद्द करते हैं तो मेरे भाईयो, अगर उन्होंने क़ुरआने करीम की कसौटी पर अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, दादा, परदादा, भाई और देवी आदि चीज़ों के नामों को परखा होता तो क्या क़ुरआने हकीम उन्हें अल्लाह के सिफ़ाती नामों के तौर पर इन्हें क़ुबूल करने की इजाज़त देता?
या आप अब क़ुरआने अज़ीम की रौशनी में देख लें तो क्या क़ुरआने हकीम आपको इन्हें अल्लाह के सिफ़ाती नामों के तौर पर क़ुबूल करने की इजाज़त देता है?
जब वे कहते हैं कि हम क़ुरआन को कसौटी मानते हैं और हम हर बात को इसी की बुनियाद पर क़ुबूल और रद्द करते हैं तो मेरे भाईयो, अगर उन्होंने क़ुरआने करीम की कसौटी पर अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, दादा, परदादा, भाई और देवी आदि चीज़ों के नामों को परखा होता तो क्या क़ुरआने हकीम उन्हें अल्लाह के सिफ़ाती नामों के तौर पर इन्हें क़ुबूल करने की इजाज़त देता?
या आप अब क़ुरआने अज़ीम की रौशनी में देख लें तो क्या क़ुरआने हकीम आपको इन्हें अल्लाह के सिफ़ाती नामों के तौर पर क़ुबूल करने की इजाज़त देता है?
हमने आप जैसे सभी भाईयों के लिए ऐसे कुछ लेखों में यह बात समझाई है, जो सचमुच 'वेदों में तौहीद' के विषय को समझना चाहते हैं। आप नीचे गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं:
1.आईये, अब अल्लाह के नामों के सम्बन्ध में कुटिलता ग्रहण करना छोड़ दें
इसी सब्जेक्ट पर मेरे कुछ और लेख भी हैं, जिन्हें आप मेरे ब्लाग पर क्लिक करके देख सकते हैं:
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