साजिद ख़ान भाई ने गुजरात से यह सवाल किया है:
इसमें कोई गलती हो तो सुधारे
यह सच में बात हुई थी।
💫💥 *Chamtkaar ya margdarshn* ✒📖
*time nikalke jarur padhna*
*book fair me ek teacher se baat hue islam pe , teacher surat ki badi school me principal he , baat lmbi thi yaha sirf ek hi point rkhta hu*
💥 *teacher* : *yah mera beta muje "haji ali dargah ki mannat se mila he (unhe dargah pe kafi bharosha)*
📌 *me : teacher agar aapki ek ungli kut jaaye to kya aap duniya ki kisi bhi dargah ya chamtkari mandir (koibhi dharmik jagah) se mannat maan ke vapis la sakti ho ?*
*teacher : nahi , aisa thodi ho sakta he* ❓
📌 *me : agar mannat se ek beta mil sakta he to ek kati hue ungli kyu nahi ?*
*teacher : !!!!???* ❗❓
💫 *me : teacher, yah acid test he !!!*
*aisa kabhi nahi ho sakta !!*
*dargah jis bujurg ki he voh hame*
*way of life, do & don't sikhane aaye the*
📖✒ *islam ne apni satyta manvane ke liye rivayati chamtkar ko kabhi base nahi banaya*
*Islam ne baudhik nishaniya di he taaki inshan uspe chintan manan karke saty ko pehchan ne ki koshis kare*
📌 *teacher : to fir Allah kati hue ungli kaise dega ?* ❓
*me : Allah hame guide karta he ki ungli ka ilaj karavo aur dhiraj rakho* ✅
📣 *Allah chahta to sabko iman vaala bana deta*
📖 *lekin voh to dekhna chahta he ki saty samaj me aane ke baad kon truth pe chalta he aur kaun false pe*
*bahut interesting discussion thi yaha bas itna hi*
🌿🍂☘🌸🍁🍀🌹🌿
जवाब: आपकी इस बात में कोई ग़लती नहीं है।
लेकिन आपको यह बात जाननी है कि भारत की जनता आशीर्वाद और चमत्कार में विश्वास रखती है। भारत का हिंदू विश्वास रखता है, भारत का मुसलमान भी विश्वास रखता है।
हिंदू अपनी मुराद के लिए मंदिर में जाता है। मुसलमान बाबा या मज़ार के पास जाता है या वह तावीज़ लेने के लिए जाता है। आप समझा कर तर्क से एक दो या 10-20 या 100 लोगों को रोक सकते हैं, भारत के सब लोगों को नहीं रोक सकते।
भारत के सब लोगों को शिर्क से रोकने के लिए आपको उन्हें बताना होगा कि जो भी मंदिर, पेड़ या मज़ार पर अपनी मुराद पाने के लिए जाता है और उसकी मुराद पूरी होती है तो उसकी मुराद रब के क़ानून के तहत पूरी होती है और वह क़ानून है यक़ीन का कानून।
जो भी इंसान कोई मक़सद रखता है और उसे उसके पूरा होने का यक़ीन है और फिर वह उसके लिए कोई अमल कर सकता है तो वह भी करता है और अगर वह जिस्म से अमल नहीं कर सकता, मजबूर है तो कोई बात नहीं लेकिन अगर वह विश्वास रखता है तो उसके जीवन में उसके विश्वास के कारण वह मुराद अपने आप किसी समय पर किसी न किसी रूप में ज़रूर पूरी हो जाती है।
अब कोई आदमी पेड़ पर, मूर्ति पर, मज़ार पर या तावीज़ पर यक़ीन रखता है तो वह पेड़, मूर्ति, मज़ार या तावीज़ उस मुराद को पूरी नहीं करता बल्कि उसका यक़ीन उस मुराद की शक्ल में पूरा होता है क्योंकि रब का क़ानून यही है।
इसीलिए इस्लाम में इख़्लास और यक़ीन दुआ के रुक्न हैं।
इन्हीं के होने से दुआ, दुआ है। ये रुक्न न हों तो दुआ, दुआ नहीं होती। हलाल माल खाना, हलाल माल से पहनना और हलाल माल से अपनी ज़रूरतें पूरी करना दुआ क़ुबूल होने की शर्त है।
मुस्लिम सूफ़ी पूरी ज़िन्दगी सब लोगों को दुआ के रुक्न और शर्तें सिखाते रहे और खुद दुआ करके दिखाते भी रहे यानि वे लोगों को दुआ की थ्योरी सिखाते रहे और प्रैक्टिकल करके दिखाते रहे लेकिन लोगों ने न उनसे थ्योरी सीखी और न उनके प्रैक्टिकल को देखकर ऐसी दुआ करना सीखा कि उनकी दुआ अपना असर ज़ाहिर करे।
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सबसे बड़ी दुआ अल-फ़ातिहा है। इसमें शुक्र की तालीम है। रब का नाम है। उसकी रहमत का और उसकी अनंत क़ुदरत का और उसकी मदद का बयान है। सूरह फ़ातिहा की चौथी आयत में रब से मदद मांगने की दुआ है।
शुक्रगुज़ार बनकर उसकी रहमत पर नज़र करके जिस काम में भी इख़्लास और यक़ीन के साथ मदद की दुआ की जाती है और फिर उसके पूरा होने तक सब्र और मुनासिब अमल किया जाता है, वह दुआ अपने ठीक वक़्त पर किसी न किसी रूप में अपने आप ज़रूर पूरी हो जाती है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
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इस तरह जो लोग ज्ञान के अभाव में ग़लत विकल्प चुनकर शिर्क कर रहे थे। वे ज्ञान मिलने पर सही तरीक़े से दुआ करेंगे और जब उनकी दुआ अपना असर ज़ाहिर करेगी तो फिर वे क्यों बाहर की चीज़ों से मदद मांगेंगे?
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हमें लोगों को मुराद पाने का सही तरीका सिखाना होगा। तब सब लोग शिर्क छोड़ेंगे।
शुक्रिया!
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