*Dawah Dialogue*
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'सत्यार्थ प्रकाश:समीक्षा की समीक्षा', यह किताब दावती दुनिया की बहुत मशहूर किताब है। सतीश चन्द गुप्ता जी इसके लेखक हैं। उनकी इस किताब को बहुत लोग इंटरनेट पर इस लिंक पर पढ़ते हैं:
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Satish Gupta जी ने यह लेख फ़ेसबुक पर लिखा है:
🙏चिंतन और चिंता🙏
जीवन का बड़ा सवाल यह है कि हम क्यों है ? हमें क्यों होना पड़ा है ? हमारे होने का कौन सा प्रयोजन है ? कौन सा अर्थ है ?
अगर हमें यह भी पता न चल पाए कि कौन सा प्रयोजन है, कौन सा अर्थ है, तो हम जीएंगे तो जरूर, लेकिन जीवन एक बोझ होगा। घटनाएं घटेंगी और समय व्यतीत हो जाएगा, जन्म से लेकर मृत्यु तक हम यात्रा पूरी कर लेंगे। लेकिन किसी सार्थकता को, किसी कृतार्थता को, किसी धन्यता को अनुभव नहीं कर पाएंगे।
हम करीब-करीब जीवन से अनजान और अपरिचित ही जीवन जीते हैं। निश्चित ही ऐसा जीवन कोई आनंद, कोई शांति, कोई सुख न दे पाए तो अस्वाभाविक नहीं होगा।
यही स्वाभाविक होगा कि जीवन एक दुख और चिंता, परेशानी और पीड़ा बन जाए। वैसा ही हमारा जीवन है।
बहुत थोड़े से लोग ही जीवन की सार्थकता को जान पाते हैं। हरेक मनुष्य के लिए जीवन को जानने के लिए सर्वप्रथम आवश्यक होगा कि उनके भीतर कोई प्यास हो, कोई तलब हो, कोई तलाश हो।
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हमने इस लेख पर जवाब देते हुए यह कमेंट किया है:
'हम क्यों हैं?'
यह जीवन क्यों हैं?
हम कैसे हैं?
यह जीवन कैसे है?
एक प्रयोजन तो प्रकृति में बिल्कुल स्पष्ट है।
वह यह है कि सारे जीव एक दूसरे को खाकर जीवित हैं और खाने के लिए जीवित है।
आप दही के सूक्ष्म बैक्टीरिया खा जाएं। दूसरी तरह के सूक्ष्म बैक्टीरिया आपको खा जाएंगे। आपको, खरबों सूक्ष्म बैक्टीरिया इस समय भी आपके शरीर के अंदर घुस कर खा रहे हैं।
हर एक जीव दूसरे जीव को खा रहा है। इस खाने के अमल को कोई भी रोक नहीं सकता और न बच सकता है। यह प्राकृतिक है।
आप देखेंगे कि यह दुनिया ज़मीन से आसमान तक एक विशाल भोजशाला (Dining Hall) है और सब खा रहे हैं।
यह एक तथ्य है।
दूसरी बात यह है कि
इंसान घोड़ा पालता है कि जब मेरी लड़ाई हो तो वह मेरे काम आए। घोड़े की वफ़ादारी की बात यह है कि वह अपने पालने वाले के लिए लड़ाई में जाता है और अपनी जान दे देता है। दूसरे की लड़ाई में ख़ुद मर जाता है।
इंसान को भी उसका पालने वाला इसीलिए पालता है कि वह उसके लिए लड़े और अपनी जान उसके लिए दे।
इंसान ऐसा करता है तो उसके जीवन का उद्देश्य पूरा हो जाता है।
खाओ और लड़ो।
जब तक बच सको, बचो।
जंगल और शहर, हर जगह जीवन ऐसे ही चल रहा है। हर जगह लड़ाई चल रही है।
लड़ने के लिए बाहर कोई न हो तो अपने नफ़्स से ही लड़ो। उसकी बुरी ख़्वाहिशों को पहचान कर उन्हें ख़त्म करते रहो। यह काम हर साँस करते रहो।
दुनिया के सब धर्म ग्रंथों में यह एक बात ज़रूर लिखी है कि
खाओ और अपना विकास करो।
अपनी सुरक्षा करनी है तो लड़ो।
एक वक़्त आएगा कि कोई दूसरा आपको बाहर से या अंदर से पूरा खा जाएगा। तब आपने जितना आत्म विकास कर लिया होगा, वह आपका अचीवमेंट है।
वह आपके साथ जाएगा।
यह जीवन आत्म विकास के लिए है। हरेक जीव का कुछ न कुछ विकास ज़रूर हो रहा है।
इंसान को अमरता की खोज है। कुछ लोग आत्म विकास के इस चक्र से ही मुक्ति चाहते हैं।
अमरता और मुक्ति दोनों उस 'चेतन तत्व' में हैं, जिससे हरेक जीव का शरीर साँस लेता है और विकास करता है। मनुष्य अपनी 'चेतना' Consciousness पर ध्यान दे तो उसे उसका मक़सद हासिल हो सकता है।
*Master Key 'ख़ुदी' है।*
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यहाँ अपने ब्लाग पर मैं यह और बताना ज़रूरी समझता हूँ कि ख़ुदी यानि चेतना को 'मैं' नाम से ज़ाहिर किया जाता है। ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने बहुत अच्छी तरह समझाया है।
'यीशु ने उन से कहा, जीवन की रोटी 'मैं हूं''
यूहन्ना 6:35
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ईश्वर अल्लाह के वुजूद का सुबूत इंसान की चेतना है
ईश्वर अल्लाह के वुजूद का सुबूत इंसान की चेतना है
इंसान ख़ुद से ग़ाफ़िल है।
वह ख़ुद में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
वह ज़मीन आसमान की चीज़ों में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
पवित्र क़ुरआन जगह जगह अपने आप में और ज़मीनो आसमान में ग़ौरो फ़िक्र की हिदायत करता है।
हरेक नास्तिक अपनी चेतना पर ध्यान दे और बताए कि यह क्या है?
जब वह अपनी चेतना के बारे में बताना शुरू करेगा तो वह ख़ुद ईश्वर और आस्तिकता की तरफ़ क़दम बढ़ाना शुरू कर देगा।
ख़ुशी की बात यह है कि क्वांटम फिजिक्स के साइंटिस्ट्स अब चेतना (Consciousness) पर रिसर्च करके जान रहे हैं कि यह कैसे काम करती है?
जब चेतना है तो कोई उस चेतना का स्रोत (Source) भी है। जब नास्तिक लोग चेतना को मानते हैं तो उसके सोर्स के बारे में बताएं और चेतना का इन्कार वे कर नहीं सकते।
क्या इंसान अपनी चेतना का, अपने वुजूद का इन्कार कर सकता है?
जब इंसान अपने वुजूद को मानता है तो अपने सोर्स को तलाश करे। जब इंसान है तो उसका सोर्स भी है। कोई इंसान उस सोर्स को जान और समझ न पाए, यह मुमकिन है। तब वह आदमी अपनी बेबसी और आजिज़ी का इक़रार करें कि मैं अपने वुजूद के सोर्स को जान और समझ नहीं पाया। सब नास्तिक कहलाने वालों को यही करना चाहिए।
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जब चेतना है तो कोई उस चेतना का स्रोत (Source) भी है। जब नास्तिक लोग चेतना को मानते हैं तो उसके सोर्स के बारे में बताएं और चेतना का इन्कार वे कर नहीं सकते।
क्या इंसान अपनी चेतना का, अपने वुजूद का इन्कार कर सकता है?
जब इंसान अपने वुजूद को मानता है तो अपने सोर्स को तलाश करे। जब इंसान है तो उसका सोर्स भी है। कोई इंसान उस सोर्स को जान और समझ न पाए, यह मुमकिन है। तब वह आदमी अपनी बेबसी और आजिज़ी का इक़रार करें कि मैं अपने वुजूद के सोर्स को जान और समझ नहीं पाया। सब नास्तिक कहलाने वालों को यही करना चाहिए।
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सतीश गुप्ता जी का फ़ेसबुक लिंक यह है:
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Suhail Narashans Bhai, Rampur ने हमारे कमेंट को अपनी FB Wall पर एक पोस्ट के रूप में पब्लिश कर दिया। उस पर कुछ नास्तिक आ गए। हमने उनसे एक ऐसी बात कह दी जो उन्होंने पहले कभी न सुनी थी।
Prem Kumar ji, मैं फ़ुरसत में आपके भ्रम को दूर करूंगा कि आप नास्तिक हैं।
हमने अपनी अनोखी बात के हक़ में एक अनोखी दलील दी, जिसे उनके सामने एक इमेज की शक्ल में पेश किया। आप उस इमेज को देखें:
हमारे कमेंट पर 100 से ज़्यादा कमेंट्स हो गए हैं और बहस अभी जारी है।
सुहैल नराशंस भाई की पोस्ट पर नास्तिकों से इल्मी बहस को आप इस लिंक पर देख सकते हैं:
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