क्या ईश्वर है?
फ़ेसबुक पर प्रशान्त कुमार फ़्रेन्ड बन गए। वह यह सवाल पूछते थे कि 'क्या ईश्वर है?'
'हमने उन्हें मैसेंजर में अपनी एक ब्लाग पोस्ट का यह हिस्सा भेज दिया:
ईश्वर अल्लाह के वुजूद का सुबूत इंसान की चेतना है।
इंसान ख़ुद से ग़ाफ़िल है।
वह ख़ुद में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
वह ज़मीन आसमान की चीज़ों में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
पवित्र क़ुरआन जगह जगह अपने आप में और ज़मीनो आसमान में ग़ौरो फ़िक्र की हिदायत करता है।
हरेक नास्तिक अपनी चेतना पर ध्यान दे और बताए कि यह क्या है?
जब वह अपनी चेतना के बारे में बताना शुरू करेगा तो वह ख़ुद ईश्वर और आस्तिकता की तरफ़ क़दम बढ़ाना शुरू कर देगा।
ख़ुशी की बात यह है कि क्वांटम फिजिक्स के साइंटिस्ट्स अब चेतना (Consciousness) पर रिसर्च करके जान रहे हैं कि यह कैसे काम करती है?
जब चेतना है तो कोई उस चेतना का स्रोत (Source) भी है। जब नास्तिक लोग चेतना को मानते हैं तो उसके सोर्स के बारे में बताएं और चेतना का इन्कार वे कर नहीं सकते।
क्या इंसान अपनी चेतना का, अपने वुजूद का इन्कार कर सकता है?
जब इंसान अपने वुजूद को मानता है तो अपने सोर्स को तलाश करे। जब इंसान है तो उसका सोर्स भी है। कोई इंसान उस सोर्स को जान और समझ न पाए, यह मुमकिन है। तब वह आदमी अपनी बेबसी और आजिज़ी का इक़रार करें कि मैं अपने वुजूद के सोर्स को जान और समझ नहीं पाया। सब नास्तिक कहलाने वालों को यही करना चाहिए।'
पूरी पोस्ट इस लिंक पर पढ़ें:
https://dawahpsychology.blogspot.com/2019/01/india-dr-anwer-jamal.html?m=1
बहस करने वाले ज़िद्दी लोगों के माइन्ड में बदलाव की शुरुआत कैसे करें?
फ़ेसबुक पर प्रशान्त कुमार फ़्रेन्ड बन गए। वह यह सवाल पूछते थे कि 'क्या ईश्वर है?'
'हमने उन्हें मैसेंजर में अपनी एक ब्लाग पोस्ट का यह हिस्सा भेज दिया:
ईश्वर अल्लाह के वुजूद का सुबूत इंसान की चेतना है।
इंसान ख़ुद से ग़ाफ़िल है।
वह ख़ुद में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
वह ज़मीन आसमान की चीज़ों में ग़ौर व फ़िक्र नहीं करता।
पवित्र क़ुरआन जगह जगह अपने आप में और ज़मीनो आसमान में ग़ौरो फ़िक्र की हिदायत करता है।
हरेक नास्तिक अपनी चेतना पर ध्यान दे और बताए कि यह क्या है?
जब वह अपनी चेतना के बारे में बताना शुरू करेगा तो वह ख़ुद ईश्वर और आस्तिकता की तरफ़ क़दम बढ़ाना शुरू कर देगा।
ख़ुशी की बात यह है कि क्वांटम फिजिक्स के साइंटिस्ट्स अब चेतना (Consciousness) पर रिसर्च करके जान रहे हैं कि यह कैसे काम करती है?
जब चेतना है तो कोई उस चेतना का स्रोत (Source) भी है। जब नास्तिक लोग चेतना को मानते हैं तो उसके सोर्स के बारे में बताएं और चेतना का इन्कार वे कर नहीं सकते।
क्या इंसान अपनी चेतना का, अपने वुजूद का इन्कार कर सकता है?
जब इंसान अपने वुजूद को मानता है तो अपने सोर्स को तलाश करे। जब इंसान है तो उसका सोर्स भी है। कोई इंसान उस सोर्स को जान और समझ न पाए, यह मुमकिन है। तब वह आदमी अपनी बेबसी और आजिज़ी का इक़रार करें कि मैं अपने वुजूद के सोर्स को जान और समझ नहीं पाया। सब नास्तिक कहलाने वालों को यही करना चाहिए।'
पूरी पोस्ट इस लिंक पर पढ़ें:
https://dawahpsychology.blogspot.com/2019/01/india-dr-anwer-jamal.html?m=1
बहस करने वाले ज़िद्दी लोगों के माइन्ड में बदलाव की शुरुआत कैसे करें?
Prashant Kumar मुझसे मैसेंजर में बात कर रहे थे और यह चाहते थे कि मैं उन्हें ईश्वर के होने के सुबूत दूं।
💓😊💓
वह सुबूत मैंने दिए नहीं।
⭐🌹⭐
मैं ऐसा मौक़ा नहीं देता कि मेरा विरोधी मेरा वक़्त बेकार करे।
मुझे मालूम है कि मैं जो भी दलील दूंगा, वह उसका इन्कार करता रहेगा और मेरा वक़्त बेकार करेगा क्योंकि उसके पास पहले से एक नज़रिया है, जिससे वह दलीलों को जज करता है। उसका माइन्ड प्रोग्राम्ड है।
मुझे मालूम है कि वह पहले भी मुस्लिमों से इस विषय पर डिबेट कर चुका होगा और वह इस विषय में एक दर्जे में एक्सपर्ट हो चुका होगा।
💞💕💞
सोशल वेबसाइट्स पर बहस करने वाले जब कोई सवाल करते हैं तो अक्सर वे लोग कुछ जानने की इच्छा नहीं रखते बल्कि वे मुस्लिम मुबल्लिग़ को हराने की नीयत रखते हैं।
वे अपनी नज़र में एक वैचारिक युद्ध लड़ रहे हैं।
जब ऐसा कोई योद्धा मुझसे पहले लड़ने आता था तो मैं नया था। मैं उसकी नीयत को नहीं पहचानता था। मैं उसे आख़िरत में जहन्नम की आग से बचाने के लिए तड़पकर सोचता और लिखता था।
मैं उसे प्यार और दलील से समझाते हुए एक दो साल लगा देता था और कुछ लोगों के साथ सात साल भी लग गए। कुछ के नज़रिए में बदलाव आया और कुछ आज भी पहले दिन जैसे ही विरोधी और हठी बने हुए हैं।
🌿⭐🌿
वक़्त और तजुर्बात ने मुझे यह सिखाया है कि जो ज्ञान चाहे, उसे तुरंत ज्ञान दो और और जो वैचारिक युद्ध करने आए सबसे पहले उसके कवच, कुंडल और हथियार रखवा लो। अब मैं उसे नि:शस्त्र करना ज़रूरी समझता हूं।
इसके लिए मैं उसे ऐसे mental field में ले जाता हूं, जिसे वह नहीं जानता। इंसान ख़ुद को और अपने मन की शक्तियों को नहीं जानता।
अब वह एक नौसिखिया हो जाता है। उसके पास दलील देने के लिए कुछ बाक़ी नहीं रहता। अब वह सिर्फ़ सुनता है और वह एक नए ज्ञान के लालच में मुझे छोड़कर भाग भी नहीं पाता।
वह मेरे दिए सब्जेक्ट को मुझसे छिपकर इन्टरनेट पर चोरी चोरी पढ़ता है
और यहीं से उसके नज़रिए में एक बदलाव की शुरुआत हो जाती है।
अल्हम्दुलिल्लाह!
🧠
मैंने प्रशान्त कुमार जी से कहा कि मैं उन्हें ईश्वर के होने के बारे में कुछ सिद्ध नहीं करूंगा बल्कि उन्हें एक तरीक़ा बताऊंगा, जिससे जवाब उसके अंदर से ख़ुद आएगा।
💓💞💓
मैंने उन्हें दो बुक्स पढ़ने के लिए कहा कि आप पहले ये पढ़ लें और फिर मैं आपको वह तरीक़ा बता दूंगा।
जिससे आपका दिल आपको ख़ुद बता देगा कि ईश्वर है या नहीं!
दोनों बुक्स westerners की लिखी हुई हैं और ईश्वर के होने न होने की दलीलें उसमें नहीं हैं। उनमें अपने मन से अपने सवालों के जवाब लेने के तरीक़े लिखे हुए हैं।
📗📗
आप प्रशान्त कुमार जी से हुई मैसेंजर चैट देखेंगे तो आप उन दोनों किताबों के नाम देख सकते हैं।
😊😊😊
हर सवाल का जवाब पाने का आत्मिक-वैज्ञानिक तरीक़ा:
यह तरीक़ा बहुत आसान और बहुत मुश्किल है। यह आसान इसलिए है कि इसमें आपको कुछ करना नहीं पड़ता और यह मुश्किल इसलिए है कि आपको जिस विषय में सवाल का जवाब अपने अंदर से लेना है तो पहले आपको उस विषय में अपनी पहले से बनी हुई मान्यता को न्यूट्रल करना होगा, पक्षपात से बचना होगा वर्ना अंदर से असली जवाब नहीं आएगा बल्कि रट्टू तोते की तरह मन को बाहर से जो याद कराया गया है, वही दोहरा देगा। हर वक़्त मन के विचारों और उसमें उठने वाली भावनाओं पर नज़र रखनी है और पहले से बनी मान्यताओं के असर से अपने मन में उठने वाले विचारों और भावनाओं को हटाते रहना है। बस यही काम सबसे मुश्किल काम है।
किसी नास्तिक को को पूछना है कि ईश्वर है या नहीं तो वह अपने मन में यह जान सकता है क्योंकि मन उसके भी पास है।
रोज़ाना रात को सोते वक़्त बिल्कुल आख़िर में वह अपने मन में यह नीयत कर ले कि जो बात सत्य है, वही मेरे मन में जम आए। अगर ईश्वर है तो यह बात मेरे मन में जम जाए और मैं ख़ुद ही ईश्वर के सबसे सीधे रास्ते पर आ जाऊँ। अगर ईश्वर नहीं है तो यही बात मेरे मन में जम जाए। इसी विचार को लेकर सोना है। सुबह को इसी विचार को लेकर जागना है। इसके पक्ष या विपक्ष, समर्थन या विरोध में तर्क से कुछ नहीं सोचना है। पक्ष या विपक्ष में जो भी तर्क आए, वह उसे हटाता जाए और ख़ुद को केवल निष्पक्ष रखें, न इधर और न उधर।
दूसरा मुश्किल काम सब्र करना है। हर आदमी चाहता है कि मुझे जल्दी से पता चल जाए कि ईश्वर है या ईश्वर नहीं है। अगर आपको जल्दी है तो यह तरीक़ा आपके लिए नहीं है। आपके लिए पहले से बहुत जवाब तैयार हैं। आप उनमें से मनचाहा जवाब चुन सकते हैं लेकिन आप यहां भी अपने मन का ही इस्तेमाल करते हैं।
Self Talk के तरीक़े में आपको जवाब आने तक सब्र करना होगा। हरेक को जवाब आने में अलग वक़्त लगता है।
किसी को कम और किसी को ज़्यादा। हाँ, आपके सवाल का जवाब ज़रूर आता है।
जब आप सत्य के लिए ख़ुद को खोलते हैं और जो भी सत्य है, उसे क़ुबूल करने के लिए ख़ुद को तैयार करते हैं तो जब भी आप पूरी तरह तैयार हो जाते हैं तो सत्य आपके अंदर से ही आप पर ज़ाहिर हो जाता है। आपको तैयार होने में जितना समय लगेगा, आपको जवाब मिलने मिलने में उतना ही वक़्त लगेगा।
और यह जवाब बाहर से तर्क और शब्द में नहीं आएगा बल्कि आपका अवचेतन मन आपकी डिमांड के मुताबिक़ आपको उसी हाल में ढाल देगा। आपका मन आपको ईश्वर के सबसे सीधे रास्ते पर ख़ुद खड़ा कर देगा।
जब आप वही बन चुके होंगे जोकि सत्य को पा लेने वाला बन जाता है तब आप ख़ुद जान लेंगे कि यह मेरे सवाल का जवाब है।
इस तरीक़े से आप हरेक सवाल का जवाब जान सकते हैं। वैज्ञानिक भी अपने सवालों के जवाब खोजने में इस तरीक़े से काम लेते हैं।
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